महारानी देवरानी 060

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राज के साझेदार
2.7k words
4.33
17
00

Part 60 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
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महारानी देवरानी

अपडेट 60

राज के साझेदार

बलदेव और देवरानी, बद्री और श्याम के साथ अपने घोड़ों से पारस की ओर तेजी से भागते हुए चले जा रहे थे।

देवरानी देखती है। उसे पहाड़ों के बीच से सूर्य उदय होता हुआ दिखाई देता ता है। वह उगते सूरज को देख बहुत खुश होती है।

देवरानी: (मन में-इतना सुन्दर सूर्योदय मेरे देश पारस का ही है।)

आसपास का नजारा बहुत सुंदर था जिसमे खूबसूरत हरे भरे मैदान, नदियों और छोटे बड़े जंगलो और पहाड़ो को पार करते हुए वह चारो तेजी से आगे अपनी मंजिल पारस देश की और बढ़ रहे थे ।

बलदेव तेजी से घोड़े को भगाये जा रहा था और देवरानी अपने राज्य जाने की ख़ुशी में फूले नहीं समा रही थी।

तभी घोड़ा एक लंबी छलांग मारता है। सामने गधा आ जाने की वजह से देवरानी थोड़ा उछल जाती है और अपने ख्याल से वापस निकलती है।

देवरानी: अय माँ!

देवरानी ऊपर को हो कर बैठती है।

बलदेव: हह!

हुआ ये था कि अचानक से उचक जाने से और फिर तेज़ी से बैठने से बलदेव की गोदी में जैसे ही देवरानी फिर बैठती है, उसकी भारी गांड बलदेव के लंड को दबा देती है और उसके और दबने से बलदेव दर्द से आह भरता है।

देवरानी को जैसा ही समझ आता है।

"ओह राजा मेरे वजह से तुम्हे दर्द हुआ माफ़ करना!"

"मां थोड़ा ऊपर हो कर बैठो...कोई बात नहीं!"

देवरानी लज्जा कर फिर अपनी गांड हल्की-सी उठाती है और फिर बैठ जाती है।

देवरानी को इस बार लोहे जैसा लंड उसकी गांड में महसुस होता है।

"उफ़ भगवान!"

बलदेव घोड़ा ज़ोर से भगाने लगता है।

"माँ क्या हुआ?"

"तुझे नहीं पता क्या हुआ!"

बलदेव जल्दबाजी में बोला "दर्द तो नहीं हो रहा ना ।"

"आह! चुप करो और चलते रहो।"

"मां अभी से मुंह बना रही हो पारस पहुँचने तक तुमको ऐसे ही बैठना है।"

"ह्म्म्म बलदेव!"

"डर गई क्या माँ? बस हो गयी इतनी जल्दी!"

"डरे मेरी जूती! बलदेव!"

"अच्छा तो कैसा लग रहा है। गोद में बैठ के जा रही हो मायके!"

देवरानी शर्मा जाती है।

"अच्छा आहह!"

बलदेव देवरानी के दोनों हिलते हुए वक्ष देख रहा था।

"मां ये बहुत हिल रहे हैं।"

"हाँ तो इतनी तेजी से घोड़ा जो दौड़ रहा है।"

"मां फिर तो जब मेरा घोड़ा आपकी गुफा में घूमेगा तो ये दोनों और भी ज्यादा हिलेंगे!"

"मतलब बलदेव?"

देवरानी अब उत्तेजना और लज्जा से भारी अपनी आंखे बंद कर लेती है।

बलदेव: अरी मेरी रानी नादान मत बनो!

देवरानी शर्माने लगती है।

ऐसे ही मस्ती करते आसपास के नजारो को देखते हुए वह चारो तेजी से अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहे थे।

घाटराष्ट्र

इधर घाटराष्ट्र में सेनापति सोमनाथ रात में आलोक की कुटाई कर उससे सब कुछ उगलवा लेता है और सुबह होते ही वह उठ कर सबसे पहले आलोक को सोया हुआ देखता है।

सोमनाथ आलोक को रस्सी को मजबूती से फिर से बाँधता है और कपडे से उसका मुँह बाँध देता है।

सोमनाथ: अब आलोक मेरे सपने को पूरा करने में तुम मेरी मदद करोगे, मैं इस महल के हर दीवार को तोड़ दूंगा और जैसे वह सब टूट जाएंगे मैं इस घाटराष्ट्र का राजा बन जाऊंगा।

सेनापति सोमनाथ अपनी कक्ष से निकल कर बाहर आता है तो सामने से उसे रें कमला गुनगुनाते हुए चली आती हुई दिखाई देति है।

सेनापति: कमला बड़ा सवेरे आ गयी तुम?

कमला: हाँ अभी-अभी आई हूँ सेनापति जी. प्रणाम!

कमला (मन में-क्या बात है। आज ये सेनापति मुझसे क्यों बात कर रहा है। आज से पहले तो मुझे पूछता भी नहीं था।)

सेनापति: कमला एक बताओ!

कमला: कहिये सेनापति जी!

सेनापति: ये महारानी श्रुष्टि कहाँ होगी इस समय?

कमला: प्रश्न आपको उनसे क्या काम है, अभी-अभी जगी होंगी।

सेनापति मुस्कुराते हुए कहता है ।

सेनापति: अरे वह तो बस ऐसे ही...मुझे भला उनसे क्या काम रहेगा। वह तो तुम्हे देख ख्याल आया तो ऐसे ही पूछ लिया!

कमला: सेनापति सोमनाथ तू वह कुत्ता है, जो बिना हड्डी के पूँछ नहीं हिलाता तू जरूर कुछ न कुछ करने के चक्र में है।

सेनापति: चलो जाओ कमला बीएस यहीं पूछना था।

सेनापति हल्का गुस्सा होते हुए कहता है और चला जाता है।

कमला: अजीब प्राणी है।, खुद को काम है। मुझे रुकवाया और अब खुदमेरे पर बेकार में गुस्सा हो रहा है।

कमला फ़िर से गुनगुनाते हुए चलने लगती है और सीधा जा कर अतिथि गृह में जहाँ वैध जी का कक्ष था वहा पर रुक जाती है।

कमला: हे वैध जी!

अंदर से कोई आवाज़ नहीं आने पर फिर बोलती है ।

कमला: आर्य! ओ वैध जी उठ भी जाइये! सुबह हो गयी!

कमला थोड़े देर चिल्लाती रही!

उतने में दरवाजा खुलता है और वैध जी अपनी बड़ी दादी को सहलाते हुए निकलते हैं।

वैध: री कमला! क्यू सुबह-सुबह हंगामा मचा रही हो?

कमला: वैध जी वह राजमाता रानी जीविका का पेट ठीक नहीं है। कोई औषधि हो तो दे दो।

वैध: आओ अंदर।

कमला: मैं नहीं आती अंदर, मुझे पता है। अंदर जाने का मतलब है। एक घंटा लगना है।

वैध: मुस्कुरा कर "क्यू रोज-रोज तंग करती हो ।"

कमला: कहा तंग कीया आपको?

वैध: अब बोलो भी क्या चाहिए?

कमला: मुझे आज अपने पति देव जी से साडी चाहिए ।

वैध: तुम्हें कल तक मिल जाएगी।

कमला मुस्कुराती हुई अंदर आती है।

वैध जी झट से दरवाजा बंद कर देते हैं।

वैध: कमला तुम बिना कुछ लिए देती नहीं हो।

कमला: जब आप मेरे बराबर है। तो मेरा भी तो आप पर कुछ हक बनता है।

वैध: उच्च क्यों तुम्हारा तो पूरा हक बनता है। इसलिए तुम जब जो मांग करती हो मैं वही करता हूँ।

कमला: करना ही पड़ेगा वैधजी । आखिर इस उमर में तुम्हें कमला जैसी जवानी देखने को मिल रही है।

वैध जी आगे बढ़ कर कमला को पकड लेते हैं।

कमला: वैध जी जल्दी से राजमाता रानी जीविका के लिए औषधि दे दो!

वैध: महारानी जीविका की औषधि बाद में दूंगा पहले तुम्हे तुम्हारी औषधि तो खिला दू तुमको।

कमला मुस्कुराती है।

कमला: बस पाप करते रहो और मुझसे भी करवाते रहो पर विवाह नहीं करोगे हमसे। अगर कहीं हम पेट से हो गए तो?

वैध जी कमला को पकड कर मसलने लगते हैं।

वैध: अरे मेरी कमला तुम्हें तो पता है। के तुम एक विधवा हो और समाज कभी इस बात को नहीं मानेगा की विधवा का विवाह फिर से हो।

कमलाः विधवा ही हु तो क्या हुआ र मेरी भी इच्छाये है।

वैध कमला को पकड कर अपनी गोद में उठा लेता है।

"बहुत भारी हो गई हो कमला"

तुमने ही किया है वैध... महाराज! "

"अरे वैध जी से वैध?"

"हाँ क्यू नहीं कहू जब तुम मुझे कमला कह सकते हो बिना जी लगाए, तो मैं क्यू ना कहू, हमारे राज्य में स्त्री पुरुष दोनों एक समान होते है।"

"बात तो सही कह रही हो मेरी कमला जी ।"

वैध कमला को पलंग पर पटक देता है।

कमला की टांगो और पैरो को चूमते हुए ऊपर बढ़ने लगता है।

"कमला युवराज पारस चले गए और जाने से पहले मुझसे मिले भी नहीं।"

"वैध जी आप जंगल गए हुए थे इसलिए आप से मिल नहीं पाए वह आपकी औषधिया ले कर गए हैं।"

वैध जी कमला की साडी को ऊपर खसका कर उसके घुटनों को चूम रहे थे और अपने हाथों से कमला के गठीले बदन को सहला रहे थे।

कमला: आह उहह! वैध जी!

"कमला तुम्हारी ये जाँघे कितनी मांसल है।"

वैध जी कमला के जाँघ को सहला के खूब चूम रहे थे।

थोड़े देर चूमने के बाद साडी को पेरिकोट के साथ ऊपर कर देते हैं और कमला अपना हाथ अपने बालो से भरी चूत पर रख देती है।

वैध: क्यू शर्मा रही हो प्यारी कमला! अपनी चूत तो दिखाओ।

कमला: चुप करो मैंने वहाँ के बाल साफ नहीं किये है। मुझे शर्म आती है।

वैध: अरे मैंने कितनी बार उसने इस चूत को मसल कर पेला है। मुझसे क्या शर्माना और वैसे भी अगर तुम्हारी चूत पर बाल है। तो और ज्यादा मजा आएगा।

वैध धीरे से कमला के हाथ को हटा कर देखता है। चूत बड़े घने बालो से ढकी हुई थी।

वैध खूब अच्छे से छूट के बालो को सहलाते हुए छूट का छेद ढूँढ लेता है और अपनी एक उंगली अंदर डाल देता है।

कमला: उफ्फ्फ हाये!

कमला अपनी आँख बंद कर लेती है।

धीरे धीरे चूत को खूब उंगली करते हुए वैध जी ऊपर को आते हैं और कमला के मांसल पेट से उसके साडी और पेटीकोट को निकल फेकते है और कमला के पेट पर चुम्मो की बरसात कर देते हैं।

वैध ने अब अपना एक हाथ कमला की चूत में डाला हुआ था और दूसरे हाथ से कमला के ब्लाउज का हुक खोल दिया। फिर कमला का बड़ा दूध को देख क्र बोलता है ।

वैध: आह कमला इनमे दूध कब भरेंगा?

कमला: आआह जब तुम मुझसे विवाह करोगे और बच्चा होगा पर तुम मुझसे क्यू विवाह करोगे?

वैध: चुप कर कमला तू तो मेरी जान है।

कमला की चूत से उंगली निकाल कर दोनों हाथो से उसके बड़े दूध को पकड़ कर मसलने लगता है।

"आआह वैध जी धीरे उह आआह!"

"कमला क्या दूध है तुम्हारे!"

दूध को खूब मसलते हुए वैध जी बीच-बीच में कमला को होठो को चूम और चूस रहे थे।

वैध: कमला तुमने मुझे अभी तक मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया?

"आह! उह कौन-सा प्रश्न वैध जी?"

"यहीं कि जब मैंने कोई पत्र दिया ही नहीं था तो तुमने महाराज से क्यू कहा था कि मैंने युवराज बलदेव के लिए पत्र दिया है?"

"वैध जी इस बारे में मेरा उत्तर यहीं है कि सही समय आने पर आपको उस पत्र का राज़ भी पता चल जाएगा।"

वैध जी गुस्सा हो कर कमला को देखते हैं। फिर उसको छोड़ कर बैठ जाते हैं। "

"क्या हुआ वैध जी रुक क्यों गए?"

"तुम मुझे अपना पति कहती हो और मुझ पर रत्ती भर भरोसा नहीं है।"

"वैध जी ऐसा नहीं है पर वह राज़ घटराष्ट्र की प्रतिष्ठा से सम्बंधित है।"

"मुझे कुछ नहीं पता कमला मुझे बताओ!"

"छोड़ोगे नहीं अपनी कमला को।"

"नहीं जब तक तुम बताओगी तब तक नहीं! "

कमला: उफ़ तो खाओ मेरी कसम तुम बिना मेरे जानकारी के किसी को नहीं बताओगे।

वैध: मैं तुम्हारी कसम खाता हूँ।

कमला: अरे बुड्ढे में बताती हूँ तुम्हे ये राज! अपना काम चालू करो । मैं बता रही हूँ।

वैध जी फ़िर से कमला के दूध को पकड़ कर चूसने लगता है।

कमला: तो सुनो वह पत्र महारानी देवरानी के लिए बलदेव ने लिखा था। जिसे महाराज राजपाल ने देख लिया था।

वैध जी अब अपनी धोती को खोल अपने लौड़े को कमला की चूत पर मारते हैं और अपने लौड़े को एक झटके में कमला की चूत में पेल देते हैं ।

"हाय! आआह वैध जी!"

अब तेज झटके लगाते हुए।

वैध जी: कमला आह! पर बलदेव ने तो अपनी माँ को पत्र लिखा था उसे अपने पिता से छुपाने की क्या आवश्यकता हो गयी?

कमला: आह आआह वैध जी क्यू के वह बलदेव का प्रेम पत्र था। जिसमें बलदेव ने देवरानी के लिए अपना प्रेम पन्नो पर लिख भेजा था।

वैध जी ये सुन कर सकपका का रुक जाते हैं।

वैध: क्या बक रही हो कमला?

कमला:-आह तुम चोदो वैध आआह! चोदो! चोदना जारी रखो!

वैध जी फिर झटका मारने लगते हैं।

वैध जी (मन में उफ़! कैसे एक माँ को बेटा प्रेम पत्र लिख सकता है और उस दिन तो देवरानी भी सामने थी तो इसका मतलब है कि देवरानी जानती थी कि उसके बेटे ने पत्र में क्या लिखा है।

वैध: क्या मैं जो सोच रहा हूँ वह सही है, कमला?

एक झटका मार कर वैध जी बोलते हैं।

कमला: हाँ वैध जी दोनों माँ बेटा एक दूसरे से बहुत प्रेम करते है। आआह और पेलो! चोदो! जोर से! आह!

वैध: पर ये तो...।

कमला: अब मैंने सब तुम्हे बता दिया अब तुम इस बात को दुहराओ मत!

वैध: अच्छा-अच्छा...इसीलिए बलदेव और देवरानी जाने के जल्दी में थे ।

असंभव हे भगवान! घोर पाप!

कमला: तुम 60 साल के बूढ़े मुझ गदराई विधवा को चोद रहे हो, तो ये संभव है। ये पाप नहीं है?

वैध: पर माँ बेटा?

कमला: जैसी माँ बेटे का अवैध सम्बंध तुम्हें पाप लग रहा है। वैसे वह हम दोनों का सम्बंध भी पाप ही है। कोई पुण्य नहीं है ।

वैध एक ज़ौर का झटका मारता है। उसका लौड़ा माँ बेटे की कहानी सुन ज़ोर से झड जाता है।

वैध आख बंद किये हुए "पर कमला!"

"पर वर क्या? वह दोनों एक दूसरे से सच्चा प्रेम करते हैं और बलदेव अपनी माँ के जीवन भर के दुख को खुशहाली में बदल रहा है और इससे अधिक क्या पुण्य करेगा बेचारा ।"

वैध अपना लौड़ा कमला की चूत से निकलता है।

कमला अपनी चूत कपडे से पूछती है।

"वैसे वैध जी हमारे बारे में भी देवरानी को पता है और उन्हें कोई आपत्ति नहीं ।"

पहले ये बात सुन कर वैध घबरा जाता है। फिर देवरानी को आपति नहीं है ये सुन कर उसको सांसों में सांस आती है।

कमला: जैसे उन्हें हम दोनों के सम्बंध से आपत्ति नहीं है और वैसे ही हमें उनके सम्बंध से कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।

वैध: हम्म बात तो ठीक कर रही हो मेरी जान!

कमला वैसे आपको धन्यवाद! उस दिन अगर आप हमारा साथ नहीं देते तो पता नहीं क्या होता । उस पत्र को देख महाराज को शक हुआ था और उस दिन वह पकड़े जाते।

कमला फ़िर अपने वस्त्र पहनने लगती है।

वैध: ठीक है। कमला पर ये सब शुरू कैसे हुआ?

कमला: वैध जी अभी मेरे पास पूरी बात कहने का समय नहीं है इस बात का उत्तर आपको जल्द ही मिल जाएगा। अभी मुझे महल मैं बहुत काम है । आप औषधि दो मुझे, मैं निकलू।

वैध औषधि देता है और कमला औषधि ले कर निकल जाती है।

इधर सोमनाथ महल में घुस जाता है और शुरष्टि के कक्ष को पहचान कर देखता है कि उसका दरवाजा खुला हुआ है तो वह अंदर घुस जाता है।

अंदर उसके सामने सृष्टि थी जो अभी स्नान कर के बाहर आई थी । सृष्टि के बदन को एक झीने से कपडे में लिपटा देख सोमनाथ को आखे वही ठहर जाती है।

जैसे ही सृष्टि को आभास होता है कोई उसके कक्ष में है। वह उसे सामने खड़ा हुआ देखती है।

सृष्टि सोमनाथ को अपने सामने देख गुस्से से आग बबूला हो जाती है।

"सेनापति सोमनाथ तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई बिना अनुमती के हमारे महल में घुसने की?"

सोमनाथ: महारानी वो...!

सृष्टि तेजी से उसके पास आकर उसके चेहरे पर एक तमाचा मारती है।

सोमनाथ अपना गाल पकड़े खड़ा हुआ था।

शुरष्टि: तुम्हे नियम नहीं पता? महल में दासियो के सिवा बाहर का कोई पुरुष नहीं आना चाहिए और युद्ध की स्थिति में सैनिक सिर्फ महाराज की अनुमति से अंदर आते हैं।

सोमनाथ इस तरह से थप्पड़ खा कर खड़ा हुआ था।

सोमनाथ: मेरी बात सुनिए महारानी ।

शुरुआत: बदतमीज़ मेरे से ज़ुबान लड़ाता है। मेरे कक्ष में घुसने के नियम तोड़ने की सज़ा फासणी है। मैं चाहूँ तो आज ही तुम्हे फांसी हो जाएगी।

सोमनाथ गुस्सा होते हुए "सृष्टि! चुप रहो और मुझे ज्यादा नियम सिखाने की कोशिश मत करो!"

सृष्टि: तुम हद पार कर रहे हो सोमनाथ!

सोमनाथ: अच्छा तो क्या कहू महारानी शुरष्टि...-हाहाहा सुनो तुम्हारी साजिश का कच्चा चिट्ठा खुल गया है। आलोक मेरे हीरासत में है।

स्तब्ध सृष्टि ये सुन कर चुप हो जाती

"कौन आलो आलोक में नहीं जानती"

सोमनाथ सृष्टि को ऊपर से नीचे देख कर मुस्कुरा कर बोलता है।

"वही आलोक जिसने तुम्हें जहरीला सांप दिया था।"

"क्या बक रहे हो?"

"हाँ वही सांप जिसको तुमने रानी देवरानी को मारने के लिए उसके अश्व पर टंगे हुए थैले में रखा था।"

शुरष्टि की आखे बाहर आ जाती है।

"क्यू महारानी श्रुष्टि सांप सुंघ गया ना! "

मैं ऐसे ही सेनापति नहीं हूँ और तुम मुझे आकर कहोगी कि मुझे राजा ने बुलाया है और मैं चला जाऊंगा। "

सृष्टि स्तब्ध ही कर अपने दोनों आखे फाड़े हुए खड़ी थी।

"मूर्ख महारानी सृष्टि, फिर मैंने देखा की किस चतुराई से तुमने सैनिकों को भी भगाया था। फिर मैंने तुम्हे साँप रखते हुए देख लिया था। मैं वही छुप कर सब देख रहा था।"

अब सृष्टि के ऊपर जैसे आसमान गिर पड़ा हो।

"महारानी श्रुष्टि आपकी मालूम नहीं था के में महाराज से मिल कर ही आया था और उस समय उनके निर्देशसे ही अपना कार्य कर रहा था। हाहाहाहाहा"

शुरुष्टि: तुमको क्या चाहिए सोमनाथ? सृष्टि दांत पीसते हुए बोली ।

सोमनाथ: जब तक मैं जिंदा हूँ तुम्हारा राज छुपा रहेगा। इसलिए भूल से भी मेरे विरुद्ध कोई षड्यंत्र किया तो उससे पहले अपना अंजाम सोच लेना।

शुरष्टि: तुम आलोक को छोड़ दो!

सोमनाथ: उसका क्या करना है। वह मैं बाद में बताउंगा। महारानी श्रुष्टि अभी में चला । हाहाहाहा! वैसे आपकी जो गलती है। उससे तो नियम अनुसार आपको अभी फांसी की सजा हो जाएगी। हाहाहा।

सृष्टि गुस्से से और अपनी बेबसी पर हाथ मलती है और उस दिन को कोसने लगती है।

शुरुष्टि: ये तो बहुत बुरा हुआ! अब क्या करू...?

जारी रहेगी

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