महारानी देवरानी 068

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देवरानी: तो सुनो मेरे ससुराल वाले वर्षो से मुझे मारने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने मुझे हर तरह का दुख दिए जिस से मैं मर जाउ और तुमने स्वयं देखा ही है कैसे हमारे ऊपर हमला हुआ और मेरे झोले से सांप का निकला ।

बद्री: हम्म्म! वह तो है कोई आप की जान के पीछे है।

देवरानी: कोई क्या होगा बेटा! मेरे अपने ही मेरे अपने नहीं है । जब बलदेव तुम दोनों के साथ आचार्य जी के पास थे तब मैं कई बार सोचती थी की मैं खुद अपनी जान ले लू पर...!

बद्री: पर क्या मौसी?

देवरानी: आज मैं तुम्हें ये बात बता रही हूँ वह कभी बलदेव को ना कहना क्यू के मेरी जान ले कर भी ये लोग खुश नहीं होंगे। वह सब मेरे बलदेव की जान के पीछे भी है जिसे बलदेव नहीं देख पा रहा है ।

बद्री ये सुन कर कांप जाता है।

देवरानी: हा बेटा अगर मैं आत्महत्या कर भी लेती पर फिर मेरे बलदेव के साथ जो होता वह सोच मैंने निर्णय किया कि मैं बलदेव का कवच बन कर रहूंगी भले ही मुझे कितनी ही पीड़ा को सहना पड़े।

बद्री: पर मौसी सब आप दोनों की जान क्यों लेना चाहते हैं?

देवरानी: बेटा क्यू के वह नहीं चाहते घटराष्ट्र का महाराज बलदेव बने। यहाँ तक की रानी शुरष्टि क्यू के खुद के बच्चे को जन्म नहीं दे सकी, जो महाराज बने।

इसलिए मुझे मेरा शक है की वह घटराष्ट्र को हड़पने के लिए हम दोनों को रास्ते से हटाना चाहती हैं।

बद्री: पर मौसी बलदेव से ये सब...?

देवरानी: बेटा मैंने सच्चे मन से उसे अपना सब कुछ स्वीकार किया है और मैं नहीं चाहती कि कोई भी षड्यंत्र मेरे बेटे को छू भी ले इसलिए मैं उसकी कवच बानी इसी प्रकार रहूंगी।

बलदेव: पर धर्म में?

देवरानी: मुझे बस खुश रहना है, अब तुम अपनी मौसी को दुखी देखना पसंद करोगे जो बरसों से दुखी है या खुश देखना पसंद करोगे?

बद्री एक मुस्कुराहट के साथ देवरानी के मुरझाये चेहरे को देखता है।

बद्री: हमे बस आपको खुश देखना है ।

देवरानी अब मुस्कुराती है।

देवरानी: और कुछ पूछना है?

बद्री: नहीं मौसी मुझे मेरा उत्तर मिल गया।

या बलदेव वापस अपनी कक्ष में जाने लगता है ।

देवरानी: थोड़े देर में आ जाना । मैं खाना लगवाती हूँ।

बद्री मुड़ कर मुस्कुरा कर।

"जी मौसी!"

बद्री अपने कक्ष में चला जाता है और देवरानी अपने काम में लग जाती है।

दोपहर का भोजन का समय हो जाता है और सब बारी-बारी से खाना खाने बैठ जाते हैं बद्री और श्याम बार-बार मुस्कुरा कर कभी देवरानी को तो कभी बलदेव को देखते हैं।

अपने आप को बार-बार देखे जाने से देवरानी शर्मा जाती है वह समझ रही थी दोनों मउसे क्यू ऐसे देख रहे हैं।

बद्री: मौसी वह सब्जी देना।

देवरानी: ये लीजिये बद्री!

श्याम अपने आखे बड़ी कर!

(मन में-बद्री को इतनी इज्जत मौसी लीजिये कह रही है आज तक तो कभी नहीं ऐसे कहा?) तभी श्याम कुछ सोच कर!

श्याम: माता रानी मुझे भी सब्जी चाहिए।

देवरानी: ये लीजिए श्याम आपकी पसंददीदा सब्जी!

इस बार बद्री के कान खड़े होते हैं।

बद्री: (मन में-ये मौसी हम दोनों को इतनी इज्जत से क्यू बोल रही है।)

श्याम: (मन में-ये मौसी को क्या हुआ आज?)

बलदेव दोनों को देख समझ जाता है उसके मित्रो के दिल में क्या चल रहा है।

बलदेव दोनों को देख मुस्कुराता है।

बलदेव: (मन में ये दोनों बुधू ही है।)

सब धीरे-धीरे खाना खा कर उठ जाते हैं और आखिर में देवरानी भी जाने लगती है।

हुरिया, देवरानी सुनो मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।

देवरानी: हाँ आप सुबह से कहना चाह रही हैं बोलिए ना!

हुरिया: चलो मेरे होज़रे (कक्ष) में चलते हैं ।

हुरिया देवरानी को ले जा कर अपने कमरे में बंद करती है।

देवरानी: ऐसी भी क्या बात है दीदी?

हुरिया गुस्से से आखे लाल करते हुए कहती है ।

"देवरानी आप हमारी मेहमान हैं या आप हिंद की महारानी हैं। इतनी अक्ल मंद और ईमान वाली है आप। क्या आप पर ये शोभा देता है।"

"क्या दीदी मैं समझी नहीं?"

"देखिए देवरानी, आपसे बात इतनी जल्दी और बिना वक्त गवाए करने का राज ये है कि मैं आपको आगे मुसीबत त में नहीं देखना चाहती।"

"दीदी आप क्या कह रही हैं कैसी मुसीबत कौन-सा राज़ मुझे मतलब नहीं समझ में आ रहा है।"

"महारानी साहिबा आप इतने नेक दिल हैं आपके दिल में कोई छल कपट नहीं है । आप दिन रात खुदा को याद करती हो फिर कैसे तुमने गलत कदम उठा लिया?"

देवरानी को अब हल्का मेहसूस हो जाता है कि बात किस ओर जा रही है पर वह ये सोच कर की बात कुछ या भी हो सकती है मल्लिका से कहती है ।

"दीदी मैंने ऐसा क्या पाप कर दिया? मल्लिका ए जहाँ!"

"तुम वह जहन्नुमी हो देवरानी जिसने अपने बेटे से रिश्ता कायम किया है।"

ये सुन कर देवरानी की धड़कन बढ़ जाती है और वह कांपने लगती है।

"देवरानी तुम्हें पता है इसकी सजा पारस में क्या है और तुम्हारे भाई को ये बात पता चली तो तुम्हें जिंदा दीवारों में चुनवा देंगे?"

"दीदी आप गलत समझ रही हैं।"

"चुप कर बदज़ात औरत! मुझे तो तुझ जैसे गुनहगार से तो बात ही नहीं करनी है, पर मैं तुम्हें बता दूं कि अपना ये घटिया काम चोरी छुपे करना। मैं नहीं चाहती की मेरे मेहमान को कल घिनौने जुर्म में फांसी की सजा ही जाए।"

देवरानी ने आगे बढ़ कर हुरिया को गले लगा लिया।

"दीईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई"

"अगर आप मल्लिका हैं तो मैं भी एक राजपूतनी हूँ। मेरे सामने इतना चिल्ला कर बात ना करे। हम धीरे से बात करते हैं, इसका मतलब ये नहीं कि हम चिल्ला नहीं सकते।"

हुरिया: तुम्हारे पास क्या है कहने के लिए?

देवरानी: तो सुनो दीदी आप भी एक रानी हो अगर आपका पति 18-20 साल तक आपको अपनी पत्नी न समझे और आपको आपका हक नहीं दे और शरीरिक सुख भी ना दे तो आपको कैसा लगेगा?

हुरिया: बुरा लगेगा ही पर...!

"आप बस सुनिए जो मैं कह रही हूँ मल्लिका ए जहाँ जी । उसके बाद आप चाहे मुझे फांसी पर लटका देना, पर एक राजपूतनी को कभी धमकी मत देना।"

देवरानी खूब गुस्से से चिल्ला कर कहती है ।

हुरिया: चुप कर देवरानी मैं सुन रही हूँ। पर आवाज कमकरो । दिवारो के भी कान हो सकते हैं बस तुम्हारे अच्छे के लिए कह रही हूँ बाकी तुम्हारी मर्जी।

देवरानी: दीदी मेरा विवाह मुझसे बिना पूछे कम आयु में करवा दिया गया । मेरा बलदेव पैदा भी नहीं हुआ था कि मेरे पति ने मेरे साथ सोना छोड़ दिया।

"दीदी! पिछले 18 साल से मेरे ऊपर अत्याचार हुआ। किसी ने मेरा साथ नहीं दिया । ना भाई था ना बाप ना पति ना बेटा। में अकेली हर दुख का जहर पिया है। मैंने तो जीना छोड़ दिया था, दीदी! पर मेरे बलदेव ने मुझे जीने का कारण दिया वही है जिसने मुझे मेरे जीवन में हर घड़ी मेरा साथ निभाया और उसको मुझसे प्रेम हो गया । वह मेरे लाख मना करने के बाद भी नहीं माना और वह मेरे पीछे था तो दीदी मैं अपने जीवन की जल रहे एक ज्योति को भला कैसे खुद से बुझाती। फिर मैंने भी बलदेव को स्वीकार कर लिया तो धीरे-धीरे मुझे भी महसूस हुआ कि प्रेम क्या होता है । ये कड़वा सच है जो मेरे हृदय में पहले प्रेम की ज्योति किसी ने जलाई वह बलदेव है और सिर्फ बलदेव ही है ।"

हुरिया: बड़ी साधु बन रही हो, ये मजहब में किसी ने लिखा नहीं की ऐसा करो।

देवरानी: " दीदी मज़हब धर्म आप से कह दूं बस अपने मन की शांति के लिए है । मैं मानती हूँ और जीवन भर मानूंगी । आप मुझे ये बताएँ ये कौन से धर्म में लिखा है कि पति अपनी पत्नी को बरसो तक उसे पति सुख नहीं दे?

कौन से ग्रंथ में लिखा है के पति 10 पत्नी कर ले और पत्नी अपने पति की मृत्यु के बाद भी सती बनी रहे?

ये क्या मजहब है कि दीदी की आपकी पति सुल्तान मीर वाहिद 150 लौंडिया अपने हरम में रखे और उन सबको भोगे और खुद 4 पत्निया रखे और उनको भी भोगे और आपको एक हफ्ते में एक बार ही ये मौका मिले? "

हुरिया: चुप करो इसमें सुल्तान की ज़िक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं!

देवरानी: जरूरी है दीदी आप अपनी आंखे खोलिए हर छूट हर ऐश सिर्फ मर्द को है, पुरुष को सब माफ़ है । स्त्री तो दासी है जो अपने आदमी से कुछ नहीं कह सकती... आपको लगी ना बुरी बात जब मैंने कहा कि सुल्तान के कितने मजे हैं और आप सप्ताह मैं एक बार खुश हो सकती हो । तो सोचो जब आपको सप्ताह में एक बार खुशी मिलती है तो भी आप दुखी हो तो मैं तो पति सुख के लिए सालो साल तड़पी हूँ, क्या ये सही है मेरा पति राजपाल वैश्यो से खूब मजे करे । अपनी दूसरी पत्नी को सुख दे पर मेरा पति मुझे तो नौकरानी ही समझे और राजा रतन की कुबेरी में जा कर रंगरेलिया मनाये ।

देवरानी अब चुप हो जाती है और वही पलंग पर बैठ कर सुबुक कर रोने लगती है।

हुरिया का दिल पसीज जाता है और वह जा कर जग से गिलास में पानी डाल कर देवरानी के पास आ कर कहती है ।

"ये लो पानी पीयो, तुम तो घायल शेरनी की तरह बरस पड़ी।"

देवरानी ग्लास का पानी पीती हैऔर ग्लास रख कर खड़ी हुई हुरिया के पैरों पर गिर जाती है।

हुरिया: अरी देवरानी! ये क्या कर रही हो और उसे अपने हाथों से ऊपर उठाती है।

"दीदी हो आप मेरी बड़ी हो हमारे धर्म में बड़ो के चरणों में पड़ते हैं।"

ये सुन कर हुरिया की आंखो में भी आसू आजाते है और वह देवरानी को गले लगा लेती है।

"देवरानी तुम इतनी अच्छी हो, के मैं तुम्हे कहना नहीं चाहती थी, कुछ भीकरो पर मैं बस तुम्हे बस होशियार करना चाहती थी के अगर तुम यहाँ पकड़ी गई तो तुम दोनों खामखा मारे जाओगे!"

"दीदी मैं अबतक बहुत सह लीया । मुझे अब मरने की कोई परवाह नहीं। अगर दुनिया यहीं चाहती है, तो अब हम दोनों मर जाएंगे।"

"चुप कर पगली मैंने तुम्हारी हर बात सुनी और समझ गयी तुमने पूरी जिंदगी मुसीबत उठाई और अब मर जाओगी। भले ही मैं तुम्हारे इस रिश्ते के खिलाफ हूँ और कभी-कभी इस बात को अच्छा नहीं मान सकती, जो इतना बड़ा गुनाह है पर तुम ही अगर गुनाह में डूबना चाहती हो और तुम्हें लगता है इससे, तुम खुश हो तो तुम्हारी मर्जी."

"दीदी अगर मैं एक बात गलत कहूँ तो बताइये जब ये राजा महाराजा सबको प्यार नहीं दे सकते तो क्यू करते हैं इतने विवाह? इनके शरीर की इच्छा पूरी करने के लिए एक पत्नी भी क्या कम है?"

"देवरानी अब हम क्या कर सकते हैं? यहा शुरू से ऐसा ही है होते आ रहा है। हम उसे बदल नहीं सकते।"

"दीदी मर्द चार शादी कर ले या हम औरतें एक ही । हम जीवन भर तड़पे, ये कैसा नियम है और तो और हमारे यहाँ तो जिसके पति की मृत्यु हो जाये वह भले हे 18 साल की स्त्री हो वह जीवन भर बिधवा का जीवन जीती है।"

हुरिया देवरानी को ले कर बिस्तर पर बैठाती है और खुद भी बैठती है।

"देवरानी मैं इस गुनाह को गुनाह ही मानुगी पर जब तुम दोनों सच में इश्क करते हो तो थोड़ा चुपचाप और छुप कर करो।"

"छुप कर क्यू करे दीदी क्या आपके पति सुल्तान मीर वाहिद अपने हरम में 150 रखेल छुपा कर रखे हुए हैं?"

हुरिया मायुस होते हुए: नहीं!

देवरानी: क्या प्रजा को पता नहीं कि सुल्तान की चार बिविया और 150 लौंडिया है जिसका साथ उनके शरीरिक सम्बंध है?

हुरिया: पता है सबको।

देवरानी: तो आपको बुरा नहीं लगता, आपका पति इतने महिलाओं से सम्बंध बना रहा है क्या ये दुनिया वाले को ये सब सही लगता है।

हुरियारे आखे भर आती हैं।

"चुप करो देवरानी ये सब बात मत करो!"

देवरानी: क्यू ना करु मल्लिका ए जहाँ आपके नाम का मल्लिका ए जहाँ है। मैं नाम की रानी बनी पर हमारे पति अपने रंगरलिया मनाते हैं जो गलत है और मैं बोलू भी नहीं यहीं कमी है हम औरतों में मर्द की बात आते ही हम चुपपी मार लेते हैं।

हुरिया: तो मैं करू लडू सुल्तान से ।

देवरानी: मर्द तो हमारी गलती निकाल कर हमारे लिए नियम कानून निकाल देते हैं और हम औरतें चुप रह कर अपने आदमी ने हमारे लिए जो नियम बना दिए हैं उनका भुगतान करती हैं ।

हुरिया: हम्म्म देवरानी!

देवरानी: हा दीदी लड़िये अपने हक के लिए! अपने सम्मान के लिए और मर्दो के नियम में हम क्यू माने, जब ये हमारे नियम नहीं मानते और ना ही समाज ने हमें नियम बनाने का अधिकार दिया है ।

हुरिया: छोडो मेरी बात1 मैं कभी इस बात से इत्तेफाक नहीं रख सकती, कभी भी नहीं । रही मेरे शौहर की बात तो उसका इंसाफ खुदा करेगा!

देवदानी हुरिया को देख रही थी।

देवरानी: ठीक है दीदी पर मैं बलदेव से अपनी जान से ज्यादा प्रेम करती हूँ।

हुरिया: ठीक है पर ये बात इस घर में किसी को पता ना चले। अच्छा हुआ मेरे सांस ससुर और बाकी लोग पारस में नहीं हैं । नहीं तो...!

देवरानी: ठीक है दीदी मैं इस बात का ध्यान रखूंगी!

हुरिया: जाओ बहन तुम्हें अपने जन्मस्थान पर भी जाना है ना घुमने, जाओ जल्दी निकलो शाम तक वापस आजाना।

देवरानी उठ कर जाने लगती है और रुक कर कहती है ।

"धन्यवाद दीदी शाम में मिलते हैं।"

हुरिया: मुस्कुरा कर "जाओ मेरे बच्ची!"

जारी रहेगी

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