बेनाम संबंध

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मुझे चुप देख कर माधुरी बोली कि आप कुछ कहना चाहते है लेकिन कहते क्यों नहीं है? मैं बोला कि तुम क्या सुनना चाहती हो? वह बोली कि यह आप को भी पता है लेकिन आप कुछ कहते नहीं है। मैंने कहा कि जो सुनना चाहती हो वह मैं गलत मानता हूँ इस लिये कहता नहीं हूँ। हो सकता है कि मैं गलत सोच रहा हूँ तुम बताओ क्या सुनना चाहती हो? वह बोली कि आप मुझे अपनी समझ कर मेरा मार्गदर्शन करते रहे और अगर मैं कहीं फंस जाऊँ तो मुझे परेशानी से निकाल ले, इतनी सी ही चाहत है। मैंने कहा कि ऐसा तो मैं करता ही हूँ। वह कुछ नहीं बोली और बरतन ले कर चली गयी।

मुझें समझ आ रहा था कि वह क्या कहना चाहती है लेकिन शायद हम दोनों ही इसे कहने से बच रहे थे। अच्छा ही था, कुछ बातों को ना ही कहा जाये तो सही है। पुरा हफ्ता गुजर गया और पत्नी वापस आ गयी। मैंने उन्हें बताया कि पीछे से गुप्ता जी और माधुरी ने मेरी कैसी सेवा की है, तो वह बोली कि माधुरी बहुत बढ़िया है लेकिन दोनों के अभी तक बच्चा नहीं है इसी लिये परेशान रहती है। मैंने कहा कि इस का भी इलाज है डॉक्टर को दिखाना चाहिये। पत्नी ने बताया कि गुप्ता डॉक्टर के पास नहीं जाना चाहता। तब मुझे माधुरी की बातें कुछ कुछ समझ में आने लगी। लेकिन मैं कुछ कर नहीं सकता था।

बिजली खराब होना

दोनों परिवारों के बीच आत्मीयता काफी बढ़ गयी थी। गुप्ता को कुछ दिनों के लिये अचानक कहीं जाना पड़ा तो वह जाते में घर आ कर मुझ से बोला कि आप रात को घर पर सो जाइयेगा। माधुरी घर पर रात में अकेली रहेगी। मैंने कहा कि वह चिन्ता ना करें उस के पीछे हम माधुरी का ध्यान रखेगें। मेरी बात सुन कर वह चला गया। दोपहर में पत्नी माधुरी के पास चली गयी और शाम को वापस आ गयी अब रात को मेरे जाने की बारी थी। मैं घर की छत पर सोने वाला था। सो कोई चिन्ता की बात नहीं थी। रात को खाने के बाद जब मैं चलने ही वाला था कि माधुरी का फोन पत्नी के पास आया कि उस के घर की बत्ती चली गयी है, मैंने कहा कि मैं अभी बिजली विभाग में शिकायत कर देता हूँ और आ कर देखता हूँ कि घर के मेन बोर्ड में कोई खराबी तो नहीं हो गयी है। टार्च उठायी तो पता चला कि उस के सैल कमजोर हो गये थे। अब तो मोबाइल की लाइट का ही भरोसा था सो उसे ही लेकर कुछ औजार उठा कर माधुरी के घर चल दिया।

पत्नी ने कहा कि ध्यान से रहियेगा। मैंने सर हिलाया। माधुरी के घर पहुँचा तो वह बाहर ही खड़ी थी, मैंने उस के साथ अंदर जा कर मैनस्वीच देखा तो कुछ खराबी नहीं दिखी। इस के बाद मैंने बिजली विभाग को फोन किया तो वहां से जवाब मिला कि अब तो सुबह की कोई आ पायेगा। मैंने माधुरी से कहा कि वह नीचे से दरवाजा बंद कर ले और मैं ऊपर छत पर सो रहा हूँ तो चिन्ता की कोई बात नहीं है। उस के घर पर भी कोई टार्च नहीं थी। मोमबत्ती जल रही थी। उसी के पीले प्रकाश में मैं बिस्तर ले कर छत पर चला गया और बिस्तर बिछा कर लेट गया। कुछ देर बाद कदमों की आहट आयी तो देखा कि माधुरी थी बोली कि पानी की बोतल लायी हूँ रात को अगर प्यास लगे तो काम आयेगी। बोतल रख कर वह चली गयी। मैं सोने की कोशिश करने लगा।

रात को जोर का पेशाब लगा तो दरवाजा खोल कर मोबाइल की रोशनी में नीचे आया तो देखा कि सीढियों पर माधुरी बैठी है। शायद वही पर सो गयी थी। मैं उस से बचते हुये निकला तो वह मेरे कदमों की आहट से जग गयी और उठ कर खड़ी हो गयी। हड़बड़ाहट की वजह से डगमगायी तो मैंने उसे थाम लिया। वह मुझ से चिपक गयी। मुझें बहुत जोर से पेशाब आ रहा था सो उसे गोद में उठा कर कमरे में गया और बिस्तर पर लिटा दिया और बाथरुम की तरफ चल दिया। पेशाब करने के बाद लिंग को पानी से ना जाने क्या सोच कर धो लिया। वैसे मैं ऐसा कभी नहीं करता, लेकिन आज लगा कि करना चाहिये तो कर लिया। जब कमरे में पहुँचा तो वहां अंधेरा था मोबाइल की रोशनी में देखा कि माधुरी वैसी ही पड़ी थी जेसी में डाल कर गया था।

मैं उस के पास जा कर बैठ गया और उस की पीठ पर हाथ फिराया। मेरे हाथ के स्पर्श से वह उठ तक बैठ गयी। मैंने पुछा कि अभी तो सोई क्यों नहीं तो वह कुछ नहीं बोली। फिर मेरे गले से लिपट गयी। मेरा हाथ उस की पीठ को सहला रहा था और वह मुझे चुम रही थी। शायद रो भी रही थी क्योंकि मुझें अपनी गरदन पर पानी की बुंदें महसुस हुई थी। जब उस के होंठ मेरे होंठों से मिले तो वह उन से चिपक गये। गीले, गरम होंठ अपनी सारी मधुरता लुटाना चाहते थे सो मैंने अपनी जीभ उस के होंठो के मध्य डाल दी उस का मुँह खुल गया और मेरी जीभ उस की जीभ से मिल गयी। उस ने मेरी जीभ को चुसना शुरु कर दिया। उस के बाद उस के होंठ मेरे होंठों को बुरी तरह से काट रहे थे मुझे होश था कि यह सुबह परेशानी करेगे। इस लिये मैंने उस के चेहरे को हाथों में पकड़ कर उस के होंठों को चुसना शुरु कर दिया यह ध्यान रखा कि जोश में कही निशान ना बना दूं। अब उसने रोना बंद कर दिया था

उस के हाथ भी मेरी पीठ सहला रहे थे, उस के उरोज मेरी छाती में चुभ रहे थे। जवान कसे स्तनों का स्पर्श मैंने बहुत सालों बाद किया था सो मैं उस का मजा ले रहा था। अभी तक हम बैठे थे, फिर लुढक कर बिस्तर पर गिर गये। अब हम दोनों को आसानी थी। दोनों के शरीर ऊपर से नीचे तक एक दूसरें से लिपट गये। मेरे हाथ उस के कुल्हों पर थे और मांसल चुतड़ों को अपनी जाँघों से चिपटा रहे थे। माधुरी ने मुझें आंलिगन में कस रखा था उस के होंठ अब मेरी गरदन पर घुम रहे थे, मादक होंठों के स्पर्श से मेरे शरीर में आग सी लग रही थी मुझें चिन्ता थी की महीने में एक बार संभोग करने वाला मैं अधेड़ उम्र का इस की प्यास को बुझा भी पाऊंगा या नहीं। कुछ देर बाद उस के हाथो नें मेरा कुरता उतार दिया और उस के होंठ मेरे चुचकों को छेड़ने लगे।

इस से मेरे अंदर की वासना की आग धधक गयी। मैंने भी उस का ब्लाउज उतार दिया और उस के कठोर स्तनों को दबोचना और काटना शुरु कर दिया। मेरे ऐसा करने से उस के निप्पल फुल कर आधें इंच से ज्यादा के हो गये और मैं उन्हें मुँह में ले कर पीने लगा। माधुरी को इस में मजा आ रहा था उस ने पहले को निकाल कर दूसरा स्तन मेरे मुँह पर लगा दिया। मेरी जाँघों के मध्य में रक्त का प्रवाह जमा होने लगा, मुझें खुद महसुस हुआ कि लिंग का साइज और कठोरता और दिनों से अधिक थी। माधुरी की नाभी को सहला कर मैंने हाथ उस के पेटीकोट में सरकाया तो वह नीचे चला गया।

वहां कोई बाल नहीं था चिकनाहट की वजह से हाथ फिसलता हुआ अपनी मंजिल पर पहुँच गया। जल्द ही उंगली योनि में घुस गयी। वहां नमी की कोई कमी नहीं थी। मेरा मन कर रहा था कि मैं उस की योनि का स्वाद लुं लेकिन मैंने अपने पर रोक लगायी और योनि के दोनों होंठों के मध्य को अपनी उंगली से सहलाना शुरु कर दिया इस से माधुरी की उत्तेजना इतनी बढी की उस के होठ मेरे होंठो को काटने लगे। फिर मेरी उँगली अंदर बाहर होने लगी, माधुरी उत्तेजना के कारण कहाहने लगी और आह ऊहहहहहहहहहहह अईईईईईईई करने लगी। हम इसे ज्यादा देर तक नहीं कर सकते थे सो मैंने अपना पायजामा उतार दिया और अपने आप को माधुरी के ऊपर करा और उस की योनि के मुँह पर लिंग का सुपारा रख कर उसे ऊपर नीचे कर के योनि को सहलाया और लिंग को योनि में घुसेड़ दिया।

आज लिंग पत्थर की तरह कठोर था पहली बार में ही अंदर घुस गया। माधुरी के मुँह से आह निकली। मैंने दूबारा जोर लगाया और लिंग को पुरा घुसेड़ दिया, दर्द के कारण माधुरी के नाखुन मेरी पीठ की खाल में समा गये। अब कुछ हो नहीं सकता था। माधुरी की गरदन दर्द के कारण इधर-उधर हो रही थी। मैं कुछ क्षण रुका फिर मैंने धक्कें लगाने शुरु कर दिये। मेरे में कुछ ज्यादा ही शक्ति आ गयी थी इस लिये बहुत जोर से प्रहार कर रहा था। शरीर में ज्वालामुखी धधक रहा था, काफी देर तक ऐसा करने के बाद मैं सांस लेने के लिये रुका और माधुरी के ऊपर से उतर गया और बगल में लेट गया।

माधुरी उठ कर मेरे ऊपर लेट गयी और धीरे धीरे कुल्हें हिलाने लगी। इस के बाद वह बैठ गयी और उसने हाथ से मेरा लिंग पकड़ कर योनि के मुँह पर लगाया और अपने कुल्हों को हिला कर उसे पुरा अंदर ले लिया। उस की योनि बहुत कसी हुई थी, गर्मी के कारण लिंग जल सा रहा था। योनि का कसाव लिंग को मथ सा रहा था। माधुरी की गति बढ़ गयी और मेरे हाथ उस के स्तनों को सहलाते रहे। हम दोनों पसीने से बुरी तरह नहा गये थे। कुछ देर बाद थक कर माधुरी नीचे उतर गयी और बगल में लेट गयी उस की सांसे तेज तेज चल रही थी अंधेरे के कारण सिर्फ सांसे ही सुनायी दे रही थी।

वासना की आग जो दोनों शरीरों में धधक रही थी उसे बुझाना भी जरुरी था सो मैं फिर से माधुरी के जाँघों के मध्य बैठ गया और उसकी टागों को उठा कर अपने कंधों पर रख लिया और लिंग को योनि में डाल दिया इस से योनि का कसाब और बढ़ गया। मुझे लगा कि किसी कुवारी लड़की के साथ संभोग कर रहा हूँ । मैंने सारा शरीर एक लकीर में सीधा कर लिया और जोर जोर से धक्कें लगाने लगा, माधुरी ने दर्द के कारण नोचा तो मैंने उस के पांव नीचे कर दिये। मेरे धक्कें चलते रहे, फिर अचानक लावा बह गया मेरी आँखों के आगें सितारें झिलमिला गये। ऐसा अनुभव बहुत दिनों बाद हुआ, वीर्य की गरमी लिंग पर महसुस हुई तभी माधुरी के पांव भी मेरी कमर पर कस गये वह भी स्खलित हो गयी थी। शरीर की जलन अब बर्दाश्त से बाहर थी। कुछ क्षणों बाद मैं माधुरी की बगल में लेट गया। फिर मैंने उसे अपने से लिपटा लिया। हम दोनों लम्बें चुम्बन में मग्न हो गये।

संभोग धमाकेदार था मैंने तो इतना आनंद शादी के शुरु के वर्षों के बाद नहीं लिया था। माधुरी की तो वही जानती होगी। मैंने उठ कर मोबाइल की रोशनी में कपड़ें पहने और माधुरी को भी पहनने में सहायता की। फिर बाथरुम में जा कर लिंग को साफ करके चुपचाप छत पर चला गया। मुझे पता नहीं था कि संभोग में कितना समय लगा था लेकिन मेरा छत पर होना जरुरी था सो चुपचाप दरवाजा बंद करके बिस्तर पर लेट गया। छत पर घुपाघुप अंधेरा था। कुछ देर में नींद आ गयी।

सुबह जल्दी आँख खुल गयी, बिस्तर लपेट कर नीचे पहुँचा तो देखा कि माधुरी जाग गयी थी। चलने लगा तो वह बोली कि चाय पी कर जाये। इस लिये रुक गया। हल्की रोशनी हो गयी थी। जब वह चल रही थी तो मुझे लगा कि उस की चाल में लड़खड़ाहट थी मैंने पुछा कि क्या बात है तो वह बोली कि कुछ नहीं है। लगता है पांव सो गया है कुछ देर में सही हो जायेगा। मैंने चाय पीते में कहा कि जब बिजली वाले आते है तो मुझें बुला लेना तो वह बोली कि आप को ही सही करवानी पड़ेगी मुझें तो कुछ पता नहीं है।

मैं चाय पी कर घर वापस आ गया। मन में चोर था इस लिये नित्यक्रम करके नहाने चला गया। मेरा बदन भी दर्द कर रहा था, अब ऐसे संभोग की आदत नहीं थी। हम पति पत्नी दोनों का संभोग तो तीन-चार मिनट में खत्म हो जाता था। उर्जा की कमी उस में झलकती थी। लगता था कि शयद उम्र की वजह से ऐसा है लेकिन कल रात के अनुभव के बाद लगा कि सेक्स में साथी के पुरे मन से भाग ना लेने के कारण ऐसा होता है। नाश्ता कर के बैठा था कि माधुरी का फोन पत्नी के फोन पर आया कि बिजली वाले आ गये है मैं जल्दी से घर से निकल गया। मीटर से कुछ खराबी थी, बिजली वालों नें सही कर दी। मैं सब काम करा कर घर चला आया। दोपहर को पत्नी माधुरी के पास चली गयी। मैं घर पर अकेला रात की घटना के बारे में सोचता रहा कि क्या यह सही था, क्या माधुरी शारीरिक संबंध चाहती थी लेकिन शर्म की वजह से बोल नहीं रही थी जो भी था लेकिन कल का अनुभव मुझे तो आनंदित कर के गया था।

अगर समय मिला तो माधुरी से उस के अनुभव के बारें में पुंछुगा। रात को ऐसा मौका मिल गया। रात को जब सोने गया तो माधुरी बोली कि कुछ देर तो नीचे रुकिये, आप तो मुझ से दूर ही भागते रहते है। उस की बात सुन कर मैं रुक गया और बोला कि और कितना पास चाहती हो? वह मुस्करा कर बोली की मुझ से पुछिये इस नजदीकी के लिये कितना इंतजार किया है। मैंने कहा कि कई बार जल्दबाजी नुकसान करती है। कल तो तुम ने हद ही कर दी थी, सीढियों पर ही सो गयी थी। वह बोली कि मुझे लगा कि आप नीचे आऐगें, इसी लिये बैठी थी लेकिन आप आये नहीं और मैं सो गयी। मैंने उस का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा कि एक बार इशारा तो कर सकती थी तो वह बोली कि होली से लेकर कल तक ना जाने कितने इशारें किये लेकिन आप समझ ही नहीं रहे थे। वो तो भाग्य ने कल मिला दिया नहीं तो ना जाने कब तक इंतजार करना पड़ता। मुझे चुप देख कर वह बोली कि आप तो मौनी बाबा का रुप धर कर बैठ गये थे।

मैंने पुछा कि उस की क्या हालत है तो वह बोली कि मत पुछिये चलने में बहुत दर्द हो रहा है, आपने रात में सारा शरीर तोड़ दिया है पता नहीं दीदी का क्या हाल करते होगे? मैंने हँस कर कहा कि पुछ क्यों नहीं लेती तो जवाब मिला कि अब पुछ कर मानुगी। मैंने कहा कि अब हम दोनों कुछ नहीं करते। शायद महीने में एक बार मिलते है वह भी एक खानापुर्ति से ज्यादा कुछ नहीं होता। फिर मैंने उसे बताया कि कल का अनुभव अद्भूत था, ऐसा आनंद आज तक नहीं आया। वह सकुचायी और बोली कि मुझे तो एक बार लगा था कि कहीं मेरी जान ही ना निकल जाये, मेरे लिये तो यह नया अनुभव था। आप को कही काट तो नहीं लिया था? मैंने कहा कि कटा भी है और उस के नाखुनों के निशान मेरी पीठ पर है इस लिये कुछ दिनों तक बड़ी सावधानी बरतनी पड़ेगी। वह शरारत से मुस्करा दी। मैंने उस से पुछा कि उसे तो मैंने कही नहीं काटा तो वह बोली कि कहीं कोई निशान तो नहीं दिखा लेकिन आज आप रोशनी में देख कर बताना। मैंने कहा कि ज्यादा शैतानी अच्छी नहीं है तो वह बोली कि मेरा मन अभी भरा नहीं है।

माधुरी उठ कर मेरे पास आयी और मेरे होंठों पर चुम्बन दे कर बोली कि मैं रात को नीचे सीढियों पर बैठी मिलुगी आपकी मर्जी है कब आये? मैंने कहा कि सो जाना तुम्हें उठा लुगा तो वह बोली कि मुझे नींद नहीं आयेगी। मैं बिस्तर ले कर छत पर चला गया और बिस्तर बिछा कर लेट गया। कुछ देर बाद माधुरी पानी की बोतल रखने आयी और बोतल रख कर चली गयी। उस के जाने के कुछ देर बाद बिजली चली गयी। चारों तरफ अंधेरा छा गया। माधुरी के मन का ही हो रहा था। मैं उठ कर दरवाजा खोल कर के नीचे चला आया, माधुरी नीचे सीढियों पर ही बैठी थी। मैंने उसे झकझोरा तो वह जग गयी। मैंने कहा कि आज बिजली चली गयी है। वह कुछ नहीं बोली हम दोनों कमरें में आ गये। मैंने अपने कपड़ें उतार कर एक तरफ रख दियें। आज भी मोबाइल की रोशनी में ही काम चल रहा था। वह भी अपने कपड़ें उतारने लगी। मैं उसे देखता रहा उस का बदन कसा हुआ था, कुछ मांसल था। भरे स्तन, पतली कमर और भरे कुल्हें, कामदेव नें सारी शक्तियां उसी में भर दी थी। मेरे जैसा सामान्य व्यक्ति कामदेव के बाणों से कैसे बच सकता था।

हम दोनों एक दुसरे से लिपट गये। लगा कि एक दूसरे में समा जायेगे। फिर शुरु हुआ सनातन खेल, इस बार दोनों मन से पुरी तरह तैयार थे। सो जोरदार खेल हुआ। आगे से संभोग के बाद मैंने उसे पेट के बल लिटा दिया उसे लगा कि मैं उस की गांड़ मारुंगा तो वह बोली कि सुना है बड़ा दर्द होता है मैंने कहा कि मैंने भी सुना है लेकिन किया नहीं है लेकिन आज नहीं कर रहा हूँ यह कह कर मैं उस की योनि में पीछे से प्रवेश किया, उसे दर्द तो हुआ लेकिन मजा भी आया इस लिये काभी देर तक यही आसन करते रहे, फिर मिशनरी पोजिशन में आ कर जोरदार संभोग किया और मन को संतोष करा कर कपड़ें पहन कर तैयार हो गये। बिजली अभी तक नहीं आयी थी सो मैं चुपचाप ऊपर आ गया और सो गया।

सुबह उठ कर नीचे आया तो देखा कि माधुरी सो रही थी, जगाया तो बोली कि आज तो दर्द के मारे उठा नहीं जा रहा है चल भी नहीं पाऊंगी। मैंने पुछा कि कोई दर्द की गोली है तो उस ने कहा कि है मैंने कहा कि उठ कर एक गोली खा ले नहीं तो किसी को भी शक हो सकता है। मैंने उसे बताया कि मेरा भी यही हाल है मैं भी जा कर गोली खाता हूँ नहीं तो तुम्हारी दीदी शक करेगी। वह यह सुन कर उठ कर बैठ गयी और मेरे सहारे चल कर गोली निकाल ली मैंने पानी दिया तो उस ने गोली खा ली। मैंने उस से कहा कि चाय बनाने की जरुरत नहीं है मैं जा रहा हूँ वह नहाने चली जाये, नहाने से आराम मिलेगा। वह सिर हिलाती रही।

मैं घर के लिये चल दिया। घर आ कर पहले गोली खायी उसके बाद नहाने चला गया। नहाने के बाद आराम मिला। नाश्ता करके कुछ काम करने के लिये निकल गया। जब शाम को घर पर लौटा तो पत्नी बोली कि दोपहर का खाना कहाँ खाया? मैंने उसे बताया कि कहीं नहीं खाया, इस लिये भुख लग रही है मेरी बात सुन कर वह खाना लाने चली गयी। तभी माधुरी आ गयी। पत्नी के पास जा कर बातें करने लगी। पत्नी ने उसे बताया कि मेरे लिये खाना बना रही है तो वह बोली कि इन्होनें अभी तक खाना नहीं खाया यह तो गलत बात है मेरी पत्नी बोली कि यह जब भी बाहर जाते है तो घर आ कर ही खाना खाते है। दोनों ने फैसला किया किया आज की रात मेरी पत्नी माधुरी के साथ सोयेगी। यह सुन कर मेरी चिन्ता कम हो गयी। मुझे पता था कि अगर में माधुरी के घर पर सोया तो उस से संबंध बनाने से बच नहीं पाऊंगा और बदनामी होने का डर मुझ पर तारी हो जायेगा। इस लिये जितना हो गया था मैं उतने से ही संतुष्ट था। ज्यादा की तरफ भागने से गिर जाने का खतरा था जिसे मैं लेना नहीं चाहता था। उम्र आपको सब्र करना सीखा देती है जो जवानी में नहीं होता है।

आत्मीयता में बढ़ोत्तरी

इस तरह मेरी और माधुरी की अतरंगता बढ़ती रही। हमें जब भी एकांत मिलता हम अपने मन और तन की प्यास मिटा लेते थे। फिर कुछ दिनों बाद पत्नी नें बताया कि माधुरी गर्भवती है, यह सुन कर मुझें अच्छा लगा, मैं पक्के तौर पर कह नहीं सकता था कि यह किसका बच्चा है लेकिन वह गर्भवती है यही मेरे लिये अच्छा था। पत्नी से उस के गर्भधारण करने के बारें में ज्यादा पुछताछ नहीं सकता था। सोचा कि जब माधुरी से मिलुंगा तभी पुछ लुंगा लेकिन ऐसा अवसर मिला नहीं। नौ महीने बाद माधुरी नें एक बेटे को जन्म दिया। उस के नामकरण पर हम दोनों गये थे। माधुरी ने मेरी गोद में जब लड़के को दिया तो उसका चेहरा दमक रहा था। लड़का माधुरी पर गया था। यह देख कर मुझें चैन पड़ा। मेरी पत्नी अब ज्यादा समय माधुरी के यहाँ जाती थी। उसे छोटें बच्चों से लगाव था। कुछ महीनों बाद माधुरी भी हमारें घर आने लगी। उस के चेहरे की चमक बढ़ गयी थी।

गुप्ता भी अब घर पर ज्यादा समय देने लगा था लेकिन उस की की मजबुरियां थी इस लिये उस की व्यस्तता को माधुरी माफ कर देती थी। उस के काम मेरी सहायता से हो ही जाते थे। बच्चे के जन्म के बाद हम दोनों को संभोग करने का मौका नहीं मिला था लेकिन कोई चाहत भी नहीं थी जिंदगी सही चल रही थी। माधुरी अपने बच्चे में मस्त थी और मैं अपने जीवन में। लेकिन ऐसा ज्यादा दिन नहीं चला। बच्चे के जन्म के आठ-नौ महीने बाद एक दिन शाम को जब पत्नी मंदिर गयी हुई थी, माधुरी आयी उसके साथ उसका लड़का भी था। मैंने उसे बिठाया, वह लगभग रोज ही घर आया करती थी सो उस का आना कोई नयी बात नहीं थी। माधुरी बैठ गयी और बोली कि आप से कुछ बात करनी है, मैंने कहा बोलो, तो वह बोली कि आप से कितने दिनों से मिलना नहीं हो पाया है, फिर से मिलना कैसे और कब हो सकेगा? उस की बात सुन कर मैंने कहा कि यह सब प्रारब्ध की बात है जो जब होना होता है तभी होता है तो वह बोली कि मैं आप से मिलना चाहती हूँ आप को नहीं पता आप ने मेरा कितना बड़ा उपकार किया है।

उस की बात से मैं चौंक गया और उस के चेहरे की तरफ देखा तो वह बोली कि कुछ याद है या सब भुल गये है। मैंने कहा कि भुलने की बात है जो भुल जाऊँगा। उस नें धीरे से अपने बेटे की तरफ इशारा किया और बोली कि यह उसी का फल है, यह कहते में उस की आवाज बिल्कुल धीमी थी। मुझे भी बहुत कठिनाई से समझ आयी। मैं उठ कर उस के पास गया और बैठ कर बोला कि सही कह रही हो तो वह बोली कि हां सही है। मैंनें उस के कान में कहा कि मुझे इस बात का शक तो था लेकिन कभी तुम से बात नहीं कर पाया इस लिये पक्का नहीं हो पाया। वह मेरे करीब हुई और बोली कि अब मुझे एक और चाहिये और मुझे पता है कि इस बार लड़की होगी। मैं उस के आत्म विश्वास को देख कर हैरान था। चुप रहा फिर कुछ सोच कर बोला कि अभी इस बात के लिये जल्दी है कुछ दिन और बीत जाने दो फिर इस बात को सोचना। वह बोली कि मेरे सोचने से क्या होगा, जब आप चाहेगे तभी होगा लेकिन आप को बता दिया है।

मैंने पुछा कि पति देव से कैसा चल रहा है तो वह बोली कि वह तो आप की बात को गांठ बांध कर बैठ गये है तो कुछ ना कुछ तो होता ही है लेकिन उस से कोई नतीजा नहीं निकलता है यह मुझे पता है। उस की बात में सच्चाई थी यह वही सही जान सकती थी। मैं उसे ज्यादा कटोचना नहीं चाहता था सो चुप रहा। मैंने उस के कंधे थपथपायें। फिर उस की साड़ी ऊपर करी और जाँघों के बीच हाथ डाल कर उस की योनि में अपनी ऊगली डाल दी, मैं देखना चाहता था कि बच्चे के जन्म के बाद योनि में क्या परिवर्तन हुये है। योनि उतनी ही कसी थी, जन्म के बाद अपनी पहली अवस्था में आ गयी थी। मेरी हरकत से हैरान सी वह बोली की बता नहीं सकते थे कि क्या जानना चाहते हो? मैंने कहा कि जो जानना चाहता था सो जान लिया। मेरे को जोर से नोच कर वह बोली कि शरारत की हद होती है, मैंने कहा कि मन में एक जिज्ञासा थी जो अब शान्त हो गयी है।

उस को शायद दर्द हो रहा था, वह बोली कि अभी तक तो इन को भी हाथ लगाने नहीं दिया था तुम नें तो सीधा अंदर ही घुसेड़ दिया। मैं हँसा और बोला कि पुरा अधिकार है यह सब करने का। वह कुछ नाराज सी दिखी और उठ कर चली गयी। पत्नी के आने पर जब मैंने माधुरी के आने के बारे में बताया तो वह बोली कि बच्चे के लालन-पालन में वह कुछ चिड़चिडी सी हो गयी है। मैंने कहा तुम भी तो हो गयी थी, इस पर जवाब मिला कि तुम तो मुझें छोड़ने वाले थे। मैंने कहा कि उस उम्र में सेक्स को लेकर बड़ी चाहत थी जब नहीं मिलता था जो बड़ी कोफ्त होती थी उसी सब का नतीजा था तुम्हारी मेरी लड़ाई। पत्नी ने राज खोला कि गुप्ता में और माधुरी में भी ऐसा ही कुछ हो रहा है, इस पर मैंने उसे सलाह दी कि माधुरी को सलाह दे कि पति को दुत्कारें ना, प्यार करें और उसकी इच्छाओं का भी ध्यान रखे। पत्नी ने कहा कि कह तो तुम सही रहे हो, अबकी बार जब मिलेगी तो समझाऊंगी।

काफी दिन तक माधुरी का मेरा सामना नहीं हुया। उस के बारे में कोई खबर पत्नी से भी नहीं मिली। एक दिन अचानक दोपहर में गुप्ता घर पर आया और बोला कि भाई साहब मुझे किसी की साथ जाना पड़ रहा है, आज रात आप घर पर सो जाना, बच्चे के साथ माधुरी अकेली है। मैंने कहा कि तुम कोई चिन्ता ना करो पत्नी को भेज दूंगा तो गुप्ता बोला कि आप ही चले जाना कुछ रकम घर पर पड़ी है उस की बात समझ कर मैंने कहा कि मैं ही चला जाऊँगा। मेरी बात सुन कर वह चला गया। ठंड के दिन थे दिन जल्दी ढल जाते थे सो रात का खाना खा कर मैं माधुरी के घर की तरफ चल पड़ा। छत पर सोने का तो सवाल ही नहीं था। नीचे ही सोना पड़ेगा, यह मुझे पता था। माधुरी मेरे ही इंतजार में बैठी थी। मैंने पुछा कि कहाँ पर गये है तो उस ने बताया कि किसी परिचित के साथ कोई दूर्घटना घट गयी है सो उन के साथ गये है पता नहीं कितने दिन लगे? दिन? मेरे सवाल पर वह बोली कि आपको कुछ बता कर नहीं गये है। मैंने ना में सिर हिलाया तो उस ने बताया कि कल सुबह तक तो वहां पहुँचेगे। वहां पहुँच कर पता चलेगा कि क्या हुआ है।

मेरे मन में जो शंका थी वह मिट गयी। बाहर के कमरे में मेरा बिस्तर लगा था। मैं लेट गया। शायद लेटते ही नींद आ गयी। कुछ देर बाद ऐसा लगा कि कोई हिला रहा है सो आँखें खोली तो देखा कि माधुरी थी पीछे आने का इशारा कर रही थी। मैं चुपचाप उठ कर उस के पीछे चल दिया। कमरे में उस का बेटा पलंग के पास झुले में सो रहा था। कमरे का दरवाजा बंद करके मैं पलंग पर बैठ गया। माधुरी चुपचाप मेरे पास आ कर बैठ गयी। उस के बदन की सुगन्ध मुझे मदहोश सा कर रही थी लेकिन मैं स्थिर बैठा रहा। उस की बाहें मेरे गले में पड़ गयी। मुझें चुम कर बोली कि नाराज हो? मैंने ना में सर हिलाया। उस ने मेरा हाथ उठा कर अपने जाँघों के मध्य में रख दिया। मैंने उस से धीरे से पुछा कि पति के साथ संबंध बने तो उस ने ना में सर हिलाया तो मैंने कहा कि जब तक वह काम नहीं होगा तब तक यह भी संभव नहीं है। वह कुछ नहीं बोली, फिर बोली कि क्या करुँ मैंने कहा कि तुम्हें सब पता है, मैं यह सब क्यों कह रहा हूँ।