बेनाम संबंध

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हर चीज का एक तरीका है तुम उसे पास नहीं आने दोगी और अगर गर्भवती हो गयी तो क्या कहोगी? मेरी बात सुन कर वह चुप हो गयी। मैंने उसे गले से लगाया और उस के कान में कहा कि जो सही है वह पहले करों उसके बाद तुम जो चाहोगी वही होगा। मेरी बात उस की समझ में आ गयी और वह उठ गयी मैं भी उठ कर कमरे से निकल कर बाहर के कमरें में आ कर बिस्तर पर लेट गया। फिर ना जाने कब सो गया। सुबह उठा तो माधुरी ने बताया कि अभी फोन आया था कि वहां पहुँच गये है। मुझें कुछ शंका सी लग रही थी सो सारे कमरे को देखने लगा, कुछ सन्देहास्पद नहीं मिला। सैफ रहना ही सही था। दूसरे दिन रात को गुप्ता वापस आया तब उस ने सारी कहानी बतायी कि उस के मित्र के मित्र के साथ हादसा हो गया था सो जाना जरुरी था, वहां जा कर पता चला कि किसी को खास चोट नहीं आयी थी लेकिन गाड़ी खत्म हो गयी थी। उस ने मुझ से कहा कि आप के होने से मैं जा पाया नहीं तो ऐसे में किसी मित्र की सहायता नहीं कर पाने का खेद वर्षों तक रहता है।

समय युहीं गुजर रहा था, माधुरी के बेटे का पहला जन्म दिन था, गुप्ता ने बड़े जोर-शोर से मनाया था। सारा मोहल्ला और रिश्तेदार शामिल थे। मैं जानबुझ कर थोड़ी देर के लिये ही गया और जल्दी वापस आ गया। वैसे भी मैं भीड़ में अपने आप को आरामदायक नहीं रख पाता हूँ। दूसरे दिन माधुरी मिठाई देने आयी तो पत्नी से बोली कि आप दोनों जल्दी आ गये थे। पत्नी ने बताया कि किसी का जरुरी फोन आ गया था सो आना पड़ा लेकिन केक तो खा कर आये थे। माधुरी संतुष्ट हो कर चली गयी। पत्नी बोली कि मैं भी वहां पर किसी तो जानती नहीं थी बैठ कर क्या करती? इस मामले में हम पति-पत्नी के विचार समान थे।

पत्नी ने बताया कि माधुरी के पति के साथ संबंध ठीक हो गये है मैंने उसे समझाया कि यह बड़ा कठिन समय है बच्चें पालने के चक्कर में पत्नियां पति की अवहेलना करना शुरु कर देती है जो उन के बीच झगड़ों का कारण बनता है। उस ने बात समझ कर दोनों के बीच सामन्जस्य बनाना सीख लिया है। पत्नी की बात सुन कर मुझें अच्छा लगा। इन दिनों मेरी आर्थिक हालत सही नहीं थी मुझे किसी मित्र से पैसा उधार लेना पड़ा था, मित्र का उधार चुकाने का इंतजाम नहीं हो पा रहा था। क्या करुँ समझ नहीं आ रहा था पत्नी सब जानती थी उसे पता था कि मैं किसी के सामने हाथ नहीं फैलाऊँगा।

एक दिन शाम को माधुरी आयी और मुझ से बोली कि मुझे पता चला है कि आप को पैसे की जरुरत है तो मैंने आश्चर्य से उसे देखा कि उसे कैसे पता चला तो वह बोली कि मुझे दीदी ने बताया था। आप ने अगर मुझे अपना समझा होता तो मुझ से कहा होता। उस के चेहरे पर गुस्सा साफ झलक रहा था। मैंने उसे शान्त करने के लिये कहा कि तेरी दीदी ने यह नहीं बताया कि मैं कैसा हूँ तो वह बोली कि यह भी बताया था। मैं हँस कर बोला कि फिर भी गुस्सा हो रही हो। मेरी बात सुन कर वह चुप हो गयी। फिर बोली कि कितनी रकम है मैं चुप रहा तो वह बोली कि अब आप का कोई बहाना नहीं चलेगा, मुझें बताना ही पड़ेगा, मैंने कहा कि दस हजार है तो वह कुछ नहीं बोली और चुपचाप उठ कर चली गयी। आधे घंटें बाद आयी और मेरे हाथ में दस हजार रख कर बोली कि आगे से आप मुझें अपना ही समझे, मेरा आप से कोई सामाजिक रिश्ता नहीं है लेकिन उस से भी बड़ा मन का रिश्ता है, हक है कि आप की हर परेशानी को मैं जानुं और उसे दूर करने की कोशिश करुँ।

आप मुझें इससे रोक नहीं सकते ना भविष्य में रोकेगें। मैं उस की बात सुन कर गंभीर हो गया। वह बोली कि आप मेरे लिये क्या हो यह भी आप को बताना पड़ेगा? कोई स्त्री जब किसी को अपना तन-मन सौपती है तो वह उस पर पुरा विश्वास करती है, अपना सर्वस्व मानती है, आप मेरे लिये यही हो। इस से ज्यादा कुछ नहीं कह सकती। मैंने उस की हथेलियां अपने हाथों में ले कर चुमी और कहा कि आगे से ऐसी गल्ती नहीं करुँगा। तब जा कर वह शान्त हुई। उस के जाने के बाद मैं उस के बारें में सोचता रहा कि इस से भी कैसा संबंध बना है जो दिखाया भी नहीं जा सकता और छोड़ा भी नहीं जा सकता।

भाग्य में माधुरी और मेरा मिलना लिखा था, इस लिये जल्दी ही एक ऐसी घटना हो गयी कि हम दोनों को मिलन के लिये पर्याप्त समय मिला और हम दोनों ने उस कर भरपुर फायदा उठाया। माधुरी के पति का अपने दोस्तों के साथ पहाड़ घुमने का प्रोग्राम बन गया। उसे मेरी वजह से घर की चिन्ता तो थी नहीं, इसी लिये वह तीन दिन के लिये दोस्तों के साथ घुमने चला गया। मैं रात को माधुरी के घर सोने के लिये गया तो छत पर बिस्तर लगा कर सो गया। माधुरी को मना कर दिया कि वह सीढ़ीयों पर मेरा इंतजार ना करे, उसे अपने बच्चे के पास होना चाहिये। वह मेरी यह बात मान गयी। मेरी आँख ही लगी थी कि बुंदाबादी होने लगी कुछ देर तक तो मैं ऐसे ही पड़ा रहा कि बुंदाबादी है रुक जायेगी लेकिन बुंदाबादी तेज हो गयी और मैं जब तक बिस्तर उठाऊँ तेज बारिश में बदल गयी। मैं भिगने से बचने के लिये जल्दी से बिस्तर ले कर नीचे भागा। नीचे आ कर बाहर के कमरे में जहां जगह मिली बिस्तर डाल कर लेट गया।

अभी करवट बदल ही रहा था कि माधुरी आ गयी और पुछने लगी कि यहाँ क्यों लेटे हैं, मैंने उसे बताया कि बहुत तेज बारिश हो रही है, वह बोली कि आवाज तो आ रही थी लेकिन लगा नहीं था कि बारिश की आवाज है। मैंने कहा कि भीगने से बच गया हूँ नहीं तो पुरा भीग जाता, वह बोली कि अच्छा रहता, मैं बोला हां तुम्हारे लिये तो अच्छा रहता लेकिन मेरे लिये तो आफत हो जाती तो वह बोली कि भीगने के बाद भी इतनी गरमी मिलती की सही ही रहते बीमार नहीं पड़ते, इतना तो मैं जानती हूँ। यह कह कर वह मेरे बगल में लेट गयी। बिस्तर गीला हो गया था वह बोली कि यह तो गीला है तो मैंने कहा कि अब इसे गरम करो? उस ने मुझ से लिपट कर कहा कि सोने वाले गरम होगें तो यह अपने आप सूख जायेगा। उस ने अपने हाथों से कस कर मुझें अपने से लपेट लिया और मेरे चुम्बन लेने लगी। मैंने भी प्रतिउत्तर में चुम्बनों की झड़ी लगा दी। शायद एक साल बाद हमारा मिलन हुआ था, विरह की कमी को पुरा करना था।

बाहर बारिश की जोरदार आवाज हो रही थी और कमरे में हम दोनों के चुम्बनों की आवाज थी। जब एक-दूसरे को चुम कर मन भर गया तो मैंने अपने हाथों से उसकी पीठ सहला कर कहा कि बताओं क्या चाहती हो तो वह बोली कि यह भी मैं ही बताऊँ? मैंने कहा कि कुछ तो चाहती होगी तो वह बोली कि तुम को सब पता है, मुझें एक और बच्चा चाहिये। मैंने कहा कि चलों ट्राई करते है, देखते है क्या होता है तो वह बोली कि नहीं ट्राई नहीं मुझे पक्का चाहिये ही। उस की टांग मेरी टांग को लपेट कर पड़ी थी। उसकी छाती मेरी छाती में गढ़ी जा रही थी। दोनों के शरीरों के बीच में कपड़ों के सिवा कुछ नहीं था।

वह भी अब हटने वाला था। माधुरी नें मेरे कुर्ते में हाथ डाल कर उसे उतार दिया और मेरे चुचकों पर चुम्बन लेने लगी। पुरुष के चुचुक ऐसी जगह है शरीर की कि इस को छेड़ते ही सारे शरीर में उत्तेजना की लहर दौड़ जाती है। उस के बाद मेरा नंबर था मैंने उस का ब्याउज उतार दिया। उस के अंदर ब्रा नहीं पहनी थी, मैंने भी स्तनों के चुचुकों को होंठों में ले कर चुसना शुरु कर दिया, मेरे मुँह में दूध की बुंदे आ गयी। माधुरी मेरे कान में बोली कि अभी दूध बनना बंद नहीं हुआ है तुम भी स्वाद लो। मैं भी दोनों स्तनों को चुसता रहा बहुत दिनों बाद उन का स्वाद लेने का मौका मिला था सो इसे कैसे छोड़ देता।

जब उन से मन भर गया तो उस की नाभी को चुमता हुआ उस की योनि तक पहुँचने की कोशिश में पेटीकोट से सामना हुआ, पेटीकोट का नाड़ा खोल कर साड़ी अलग कर दी। माधुरी के हाथों नें मेरा पायजामा और ब्रीफ उतार दी थी। हम दोनों एकदम नंगे एक दूसरे से लिपटे हुऐ एक-दूसरे के शरीर की गर्मी ले रहे थे। दोनों के हाथ एक-दूसरे के कुल्हों को सहला रहे थे। मेरे हाथ ने कुल्हों की गहरी दरार में नीचे जा कर गुदा के मुख पर उँगली से सहलाया तो वह बोली कि यह करना है मैंने कहा कुछ कह नही सकते पहले वह करेगें जो जरुरी है वह मेरा कान अपने दांत से काट कर बोली कि राजा यही सही रहेगा। तुम को मेरी कितनी चिन्ता है, मैंने कहा कि फिर तुम उस दिन मेरे हाथ लगाने से गुस्सा हो कर भाग क्यों गई थी? माधुरी बोली कि मुझे इतना धक्का लगा था कि समझ ही नहीं आया कि क्या करुँ और तुम्हारें पास से भाग आयी। बाद में बहुत बुरा लगा लेकिन कुछ किया नहीं जा सकता था।

मेरा तन तुम्हारा ही है जो करना है करों मैंने कब मना किया है। उस की इस बात की सत्यत्ता परखने के लिये मैंने अपनी उंगली गुदा में अंदर घुसेड़ दी। माधुरी ने उफ तक नहीं की। लेकिन अभी मुझे कुछ करना नहीं था सो मैंने अपनी उँगली निकाल ली और नीचे ले जाकर उस की योनि के अंदर डाल दी। योनि में नमी भरी थी। मैं कुछ देर उँगली को अंदर बाहर करता रहा फिर योनि के होंठों को सहलाने लगा। इस से माधुरी की उत्तेजना बढ़ने लगी। उत्तेजना वश उस ने मेरे होठ चुसने शुरु कर दिये। मेरे योनि के होंठों के बीच उँगली करने से उस की उत्तेजना इतनी बढ़ गयी कि अब वह दांतों से काटने भी लगी थी। मैंने उस से पुछा कि महावारी कब खत्म हुई थी तो उस ने बताया कि दो हफ्तें हो गये है। उस ने पुछा कि क्या बात है तो मैंने बताया कि यही सही समय है गर्भधारण करने का। इस समय अंडा गर्भाशय में आया हुआ है अगर वीर्य से मिल गया तो गर्भ ठहर जायेगा। वह बोली कि यह तो अच्छी बात है दो दिन से इन से भी कुछ संभोग किया है।

अब मुझ से भी नहीं रुका जा रहा था सो माधुरी की जाँघों के बीच बैठ कर उस की जाँघों को चौड़ा करके लिंग को योनि के मुँह पर लगा कर जोर लगाया तो लिंग अंदर चला गया। दूसरी बार धक्का दिया तो माधुरी के मुँह से जोर की आह निकली उस ने पीठ पर नाखुन गड़ा कर कान में कहा कि धीरे करो, जल्दी क्या है? मेरे धक्कें चालु हो गये, नीचे से वह भी अपने कुल्हों को उछाल कर उन का साथ दे रही थी। माधुरी शायद स्खलित हो गयी थी इस लिये फच फच की आवाज आने लगी। दोनों अपने शरीर में भड़की वासना की आग को बुझाने में लगे हुये थे। बाहर आसमान धरती की प्यास बुझा रहा था। बरसात की आवाज के कारण और कोई आवाज सुनाई नहीं दे रही थी।

उत्तेजना वश हम दोनों बिस्तर पर लुढक-पुढ़क हो रहे थे। माधुरी मेरे ऊपर आ गयी और उस ने बैठ कर लिंग पर धक्कें लगाने शुरु कर दिये। उस के हिलते स्तनों को मैं हाथ से सहलाने और मसलने लगा। फिर निप्पल मेरे मुँह में आ गये और उन को चुसना शुरु कर दिया। माधुरी के दर्द हो रहा था वह बोली कि धीरे करो दर्द होता है। मैंने अपने आप कर रोक लगाई। थक कर वह बगल में लेटी तो मैंने उन के पांव कंधे पर रख कर लिंग को अंदर पैल दिया। कुछ देर तो माधुरी सहती रही फिर बोली कि पांव नीचे कर दो मैंने उन्हें नीचे कर के एक पांव कंधे पर रख कर धक्कें देना शुरु किया। कुछ देर बाद माधुरी ने हाथ से इशारा किया कि अब बस करो। मैंने उसें भी नीचे कर के तकिया उठा कर माधुरी की गांड के नीचे लगा दिया और उभरी हुई चूत में लंड़ डाल दिया दोनों को मजा आ रहा था।

काफी देर हो चुकी थी मेरे से बर्दास्त नहीं हो रहा था सो मैंने सारा शरीर एक सीध में करके जोर-जोर से धक्कें देने लगा, कुछ देर बाद मेरे लिंग के मुँह पर मानों आग लग गयी। इतना गर्म वीर्य निकला की लगा कि अंदर जल ना जाऊँ। महीने से ज्यादा समय का वीर्य भरा हुआ था सो पुरी योनि वीर्य से भर गयी, वीर्य और माधुरी के योनि द्रव की नमी से लिंग सरकता हुआ बाहर आ गया। उस की कठोरता कम नहीं हुई थी लेकिन वीर्यपात तो हो चुका था। कुछ देर तक में माधुरी के ऊपर ही लेटा रहा, उद्देश्य यह था कि वीर्य गर्भाशय में ज्यादा मात्रा में जाये इस लिये लिंग को हाथ से पकड़ कर योनि में डाल दिया ताकि योनि से द्रव बाहर ना निकले। माधुरी यह सब समझ रही थी। हम दोनों के मिलन में उस की कामना पुरी करने की इच्छा सबसे प्रबल थी। मेरा आनंद तो बाद में आता था। कोई दो-तीन मिनट के बाद में माधुरी के ऊपर से हट गया।

उस की बगल में लेट गया था हम दोनों की सांस फुली हुई थी। मुझें तो कुछ ज्यादा ही गर्मी लग रही थी। माधुरी मेरे से लिपटी पड़ी थी। कोई पंद्रह मिनट बाद माधुरी ने मेरी जाँघों के बीच हाथ लगाया तो उसे पता चला कि मेरे महाराज दूबारा चढ़ाई के लिये तैयार थे। उस ने मेरे मुँह को चुमा और मेरे ऊपर आ कर हाथ से लिंग को योनि में डाल लिया और अपने चूतड़ों को ऊपर नीचे कर के लिंग को समाने लगी। योनि के घर्षण के कारण लिंग में तनाव और बढ़ गया और वह फुल कर कुप्पा हो गया। अब उस की चुत में समाता मेरा लंड़ फच फच की आवाज कर रहा था। कोई पांच मिनट बाद माधुरी थक कर बगल में लेट गयी। मैंने उसे पलट कर उस की पीठ अपनी तरफ करी और उस की चुत में पीछे से लंड को घुसेड़ दिया।

इस में पहले तो वह कुनमुनाई लेकिन फिर इस का आनंद लेने लगी मेरे हाथ उस के स्तनों को मसल रहे थे। मेरे धक्कें उस के चूतड़ों की दरार के बीच में मेरे अंडकोषों को घुसेड़ रहे थे। काफी देर बाद मेरे लंड़ ने पानी छोड़ा। क्योकि पहले ही एक दौर चल चुका था। माधुरी के चूतड़ं मेरे धक्कों की मार से लाल हो गये थे। जब हम अलग हुये तो वह बोली कि यही लेटी रहुँ। मैंने कहा कि नहीं कपड़ें पहन कर कमरे में जा कर सोये। मैं भी सही हो कर लेटता हूँ। वह मेरी बात मान कर चली गयी। आज के मिलन से मैं बहुत थक गया था दो बार संभोग नें काफी शक्ति खा ली थी। लग रहा था कि पीठ टुट ही जायेगी। ना जाने कब नींद आ गयी। सुबह बारिश कम हो गयी थी सो उठ कर घर चला गया। नींद भर पीठ में दर्द होता रहा। इस लिये कहीं बाहर भी नहीं गया।

लिंग भी इतने घर्षण से छील सा गया था सो उस पर भी सरसों की तेल की मालिश करी क्योंकि अभी तो दो दिनों तक उस ने कितनी बार चुत चोदनी थी ये तो मुझे भी पता नहीं था सो उस की हालत सही रहना जरुरी था। आज भी मौसम बारिश का सा था सो छत पर सोने का सवाल ही नहीं था। नीचे सोने से मिलन में कोई बाधा नहीं थी। रात को बिस्तर पर लेटा तो थोड़ी देर बाद माधुरी आयी। आज उस ने कुर्ता पायजामा डाल रखा था वह बोली कि रखा हुआ था सो सोचा कि इसे ही पहन लेती हूँ बड़ा आरामदायक है। मेरे पास लेट कर बोली कि मैं हर समय अपने बारे में ही सोचती रहती हूँ आप भी सोचते होगे कि यह बहुत स्वार्थी है। मैंने कहा कि ऐसा विचार मेरे मन में तो नहीं आया है।

वह बोली चलो पीछे से कर के देखे। मैंने कहा कि करने का मन तो है तुम बताओं दर्द से घबराओंगी तो नहीं, तो जवाब मिला कि कर के देख लो। मेरा भी गांड मारने का यह पहला अनुभव होने वाला था सो मैं कुछ सही तरीके से कह नहीं सकता था। हम दोनों नयी चीज के लिये तैयार थे मैंने उस से कहा कि कटोरी में सरसों का तेल ले कर आये तो वह तेल लेने चली गयी। जब वह तेल ले कर आयी तो मैंने उस के कुरते और पायजामें को उतार कर एक तरफ रख दिया और अपने कपड़ें भी उतार दिये। जैसा किताबों में पढ़ा था और फिल्मों में देखा तो उसे आज अजमाने का मौका था। मैंने पहले तो उस का गहरा चुम्बन लिया, वह भी चुम्बन लेने लगी। हम दोनों एक दूसरें के शरीर पर हाथ लगा कर एक-दूसरे को गरम करने लगे। जब पुरी तरह से गर्म हो गये तो मैंने अपनी उँगली तेल में डुबो कर उस की गांड़ के मुँह पर रगड़नी शुरु कर दी। कुछ देर में मेरी उँगली गांड़ में आराम से अंदर बाहर हो रही थी। फिर मैंने अपना अंगुठा डाल कर देखा तो वह भी चला गया। मुझे लगा कि अब वह गांड़ मरवाने के लिये तैयार है।

मैंने अपने लंड़ को सरसों के तेल से सान लिया, अब माधुरी की गांड़ को अपने सामने उठा कर अपने लिंग को गांड़ के मुँह पर लगा कर हल्का सा धक्का दिया लंड का सुपारा माधुरी की गांड में घुस गया इसके बाद मैंने जोर लगाया तो लंड़ और अंदर चला गया। माधुरी की आह निकली लेकिन उस ने दर्द सह लिया। अब मैंने पुरा लंड गांड में घुसेड़ दिया, गांड इतनी कसी थी कि लंड़ की हालत पतली हो रही थी लेकिन वह पुरा चला गया। मैं कुछ देर के लिये रुक गया और माधुरी के चूतड़ों को हाथ से सहलाया ताकि उस का दर्द कुछ कम हो वह अपनी गरदन बिस्तर में गड़ा कर गांड को ऊपर उठा कर लेटी रही। मैंने लिंग को अंदर बाहर करना शुरु किया तो माधुरी की आहह उईईईई उईईईईईईईईई निकलने लगी। मैंने रुक कर पुछा कि क्या करुँ तो वह बोली कि रुको मत करते रहो। मैंने फिर से गांड़ मारना शुरु कर दिया। गांड़ मारने में मारने वाले और मरवाने वाले दोनों को एक जैसा दर्द होता है, मुझे तो कुछ ज्यादा अच्छा नहीं लग रहा था। इस लिये एक बार पुरा लंड़ निकाल कर दूबारा डाला और दस पंद्रह बार अंदर बाहर करके निकाल लिया।

इस से ज्यादा दर्द मैं सहन नहीं करना चाहता था। सो मैंने माधुरी को सीधा किया और लंड़ को उसकी चुत में डाल दिया, चुत भी पानी छोड़ रही थी सो फचफच करने लगी। माधुरी ने मुझें रुकने का इशारा किया और मुझें लिटा कर मेरे ऊपर बैठ गयी कुछ देर कुल्हों को हिला कर मेरे लिंग को छेड़ती रही और बोली कि बहुत दर्द हो रहा है। मैंने कहा कि बेकार था वह बोली कि मुझे करने दो। वह चुपचाप धीरे-धीरे धक्कें लगा कर संभोग करने लगी। फिर हम दोनों की आग भड़क गयी और हम दोनों नें जोरदार दौड़ लगायी और एकसाथ मंजिल पर पहुँच गये। मैंने सारा वीर्य उस की योनि में डाल दिया। वह भी पीठ के बल पड़ी रही। जबकि पीछे गांड में उसे दर्द और जलन हो रही थी। लेकिन यह काम जरुरी था। मैं थक कर उस की बगल में लेट गया। मैंने कहा कि गांड मारने के बारे में बहुत सुना था देखा था लेकिन करके मजा नहीं आया तो वह बोली कि बहुत दर्द होता है पता नहीं आदमियों को इस में क्या मजा आता है। मैंने कहा मैं भी तो आदमी हूँ मुझें तो मजा नहीं आया। वह मुझे चुम कर बोली कि आप कोई आम आदमी थोड़ें ना हो आप तो मेरे राजा हो। यह कह कर वह मेरे से लिपट गयी और मेरे कान में बोली कि सुबह जाने से पहले प्यार करके जाना। यह कह कर वह उठ कर कपड़ें पहनने लगी। मैं भी उठ गया। मेरी पीठ आज धोखा दे रही थी।

सुबह जल्दी उठ कर हम दोनों ने एक बार संभोग और किया, आराम से मिशनरी पोजिशन में। माधुरी बोली कि आप को काटने का मन कर रहा है, मैंने कहा काट ले अब यह शरीर भी तुम्हारा ही है। वह कुछ नहीं बोली और मेरे होंठों को चुम कर बोली कि मैं आप को कष्ट पहुँचा सकती हूँ यह आप ने सोचा भी कैसे? मैंने हँस कर कहा कि अभी तुम नें ही तो कहा है तो वह बोली कि मन में कई इच्छायें होती है कभी कभी आप के सामने बोल देती हूँ। लिंग पर रात के गुदा मैथुन से बहुत जोर पड़ा था मैंने माधुरी से कहा कि हो सकता है कि आज मैं उस के साथ संभोग नहीं कर पाऊंगा तो वह बोली कि यह तो गलत होगा फिर ऐसा मौका कब मिलेगा। मैंने कहा कि रात का वायदा नहीं करता लेकिन कोई उपाय करुँगा कि कुछ हो पाये। यह कह कर मैं घर चला आया।

घर आ कर मैंने लिंग की मालिश करी लेकिन कोई खास फर्क नहीं पड़ा। दोपहर सोचता रहा कि क्या करुँ फिर ध्यान आया कि कोई लुबरिकेन्ट ला कर उसे लगा कर संभोग करने से दर्द नही होगा। यही सोच कर नेट सर्च किया और बाजार जा कर एक लुबरिकेन्ट ले आया। रात तो जब सोने गया तो उसे कपड़ों में छिपा कर ले गया। रात को संभोग से पहले उसे लिंग पर लगया और माधुरी की योनि में भी लगाया उस के बाद संभोग किया तो दोनों को दर्द नहीं हुआ माधुरी बोली की यह दवा तो अच्छी है अंदर दर्द नहीं हो रहा है मैंने उसे बताया कि इस के बारें में दोपहर में ही बता चला है। दोनों नें मन भर कर मिलन किया। जब थक गये तो थम गये।

मैंने माधुरी से बोला कि अगर गर्भ ठहरना होगा तो जरुर ठहर जायेगा। इसके बाद जल्दी बाजी में कुछ नहीं करना। वह कुछ नहीं बोली। सुबह में जब चलने लगा तो वह मेरे गले में बांहें डाल कर झुल गयी और बोली कि अब कब मिलेगे? मैंने उसे थपथपाया और कहा कि मायुस होने की कोई जरुरत नहीं है अगर गर्भ ठहर गया तो साल भर की छुठ्ठी मिल जायेगी, अगर नहीं ठहरा तो फिर मौका ढुढ़ेगें। वह मेरे होंठ चुम कर अलग हो गयी। मैं घर आ गया। जीवन अपनी चाल से चलता रहा। कोई दो महीने बाद पत्नी नें कहा कि माधुरी फिर से गर्भवती है। यह सुन कर मैंने चैन की सांस ली। माधुरी के मन का हो रहा था। सो वह भी खुश होगी ऐसा मेरा सोचना था।

एक दिन रात को जब हम पति-पत्नी संभोग में रत थे तो पत्नी बोली कि माधुरी का जीवन संवर गया है, उस का पति बच्चा पैदा नहीं कर सकता था लेकिन आप ने उसे बच्चें दे कर उस की जिन्दगी बचा ली है। यह सुन कर मैं हैरान रह गया। मेरे चेहरे पर हैरानी देख कर पत्नी बोली कि मुझे सब पता है, माधुरी बहुत परेशान थी, आत्महत्या करने की बात किया करती थी। एक बार मेरे से बोली कि दीदी आप एक बच्चा पैदा करके मुझे दे दो। मेरा जीवन बच जायेगा। मैंने उसे बताया कि हमारें भी एक के बाद कोई बच्चा नहीं हुआ है। और फिर अब इस उम्र में कहाँ से पैदा करुँ बच्चा। वह बोली कि किसी दिन आप मेरी लाश देखेगी। यह कुछ सुनते नहीं है मेरे लिये भी मरना ही एकमात्र उपाय है। मैंने उसे बहुत समझाया, लेकिन उस पर पागलपन सवार था। फिर मुझे लगा कि हम तो अपनी जिन्दगी जी चुके है। बच्चें पैदा मैं ही तो नहीं कर सकती शायद तुम तो कर सकते हो। शायद तुम से बात करुँ तो तुम तैयार ना हो। एक दिन तुम्हारा वीर्य ले कर चैक करवाने गयी। टेस्ट में पता चला कि कोई खराबी नहीं है। लेकिन तुम से कहुं कैसे तुम किस तरफ जाओगें यह पता नहीं था।

मेरी सेक्स लाइफ ज्यादा नहीं थी अगर तुम्हें माधुरी में दिलजस्पी हो जाये तो शायद बात बन जाये। माधुरी भी तुम्हें पसन्द तो करती है यह मुझे पता था। फिर हम दोनों नें तय किया कि तुम माधुरी को मां बनाओगें। कैसे यह हमें पता नहीं था। लेकिन जब माधुरी तुम्हारें पास आने लगी तो लगा कि काम बन गया है। फिर सब कुछ होता गया। भाग्य नें तुम्हें रात को उस के यहाँ रुकने का मौका दिया और तुम दोनों का मिलन हो गया। तुम्हें जवान शरीर मिला और उसे मां बनने का मौका। मैंने हैरानी से बाहर आ कर पत्नी से पुछा कि अगर में तैयार नहीं होता या उस के घर रुकने का मौका नहीं मिलता तो क्या करती?। वह बोली कि इस हालत में, मैं और माधुरी तुम से सीधी बात करते और हमें पता था कि तुम हमारी बात नहीं टालते। मैं किसी तरह तुम दोनों को मिलने का मौका देती और बात बन जाती।

मैंने पत्नी से पुछा कि तुम्हारा दिल तो बहुत बड़ा है तो वह बोली कि माधुरी की हालत देख कर मैं पिघल गयी। नहीं तो कोई और तुम्हारी तरफ देखता तो उसकी आँखे निकाल लेती। मेरा सेक्स में कम रुचि लेना तुम्हारा सेक्स के लिये तड़पना लेकिन फिर भी कोई उलटी-सीधी हरकत ना करना मुझे बहुत परेशान करता था। माधुरी को देख कर मुझे लगा कि एक बार में ही कई समस्यायें हल हो जायेगी। तुम्हें सेक्स के लिये एक साथी मिल जायेगा। उसे बच्चा मिल जायेगा तथा ऐसा होने से एक जीवन खत्म होने से बच जायेगा। यह सब सोच कर मैंने यह सब किया।

उस की सब बातें सुन कर मैं सन्न था, वह मुझे चुप देख कर बोली कि नाराज हो? मैंने कहा कि नाराज इस बात से हूँ कि तुम दोनों ने और खास कर माधुरी से धोखा करा है। पत्नी बोली कि माधुरी ने मुझ से कहा था कि दीदी इन को सब बता दो इन के साथ धोखा करना मुझे से नही होगा। मैंने उसे कसम दे कर तुम्हें सब कुछ बताने से मना किया था। मेरे शरीर से वासना का भूत उतर गया और मैं संभोग अधुरा छोड़ कर पत्नी के पास से उठ कर चला गया। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करुँ?

सुबह नाश्ता कर के बैठा ही था कि माधुरी लड़के के साथ आ गयी। मुझे पकड़ कर अंदर के कमरे में ले गयी और दरवाजा बंद कर दिया। अपना लड़का मेरे हाथ में दिया और कहा कि जो आप इस के साथ और मेरे साथ करना चाहते हो मुझे मंजुर है। लड़का आँखें खोल कर मुझे ही देख रहा था। उस की आँखों में कुछ ऐसा था जिसे देख कर मेरे अंदर का सारा गुस्सा बह गया। उसे चुम कर मैंने वापस माधुरी की गोद में डाल दिया। माधुरी बोली कि आप जो मुझे सजा देना चाहे दे सकते है। दीदी ने मुझे जीवन देने के लिये अपना पति दे दिया, आप ने जीवन दे दिया अब इसे वापस चाहते है तो मैं सब कुछ वापस कर दूंगी। लेकिन आप की आँखों में अपने लिये नफरत नहीं देख सकती। मैं चुप बैठा रहा फिर मैंने उठ कर माधुरी का चेहरा अपने हाथों में लिया और कहा कि तुम दोनों के त्याग को ऐसे व्यर्थ नहीं जाने दूंगा। जो हुआ उसे भुल जाओ, मैं किसी से भी नाराज नहीं हूँ। यह कह कर मैं चुप हो गया।

माधुरी बोली कि मुझे आप से सच में प्यार है नहीं तो आपको अपना सर्वस्व नहीं सौपती। दीदी नें मुझे जीवन दिया है तो मैं उन के उपकार का बदला नहीं चुका सकती, लेकिन मैं अब आप की हूँ आप मानो या ना मानो। मैंने कहा कि मुझे किसी से कुछ नहीं चाहिये तुम अब खुश रहो। वह बोली कि यह कैसी खुशी है कि खुशी देने वाला ही खुश नहीं है। मैं उस की इस बात पर हँस दिया और पत्नी को आवाज दे कर बोला कि सुनती हो, जरा यहाँ आओं और इसे बतायों कि मैं कैसे खुश होता हूँ मेरी आवाज सुन कर पत्नी कमरे में आयी और माधुरी से बोली कि अगर यह कह रहे है कि खुश है तो सही कह रहे होगे।