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VOLUME II- विवाह, और शुद्धिकरन
CHAPTER-5
मधुमास (हनीमून)
PART 16
मदन कामदेव
नाश्ते के बाद मैंने ज्योत्स्ना से पुछा जानेमन अब हमारे हनीमून शुरू हो गया है. अब इसमें दो काम हो सकते हैं या तो हम ये समय यही कमरे में बिता दे या फिर थोड़ा बाहर घूम आते हैं. बोलो तुम्हारी क्या इच्छा है. पूर्वोत्तर बहुत हरा भरा है और सुंदर है. कही घूमने चल सकते है.
ज्योत्स्ना चलो बाहर चलते हैं।"
"कहाँ?"
"मुझे क्या मालूम? आपका शहर है .... आपको जहाँ ठीक लगे, वाहन ले चलिए ...."
तो ज्योत्स्ना बोली यहाँ पर पास ही कामरूप की मानी हुई देवी, ब्रह्मपुत्र नदी और मदन कामदेव है वहां चलते है.
ससुर जी से बात की गया और उन्होंने फटाफट मंदिर जाने की सब व्यवस्था करवा दी. अंगरक्क्षक मरीना, के साथ ही वहा ईशा और उसकी कुछ और साहियकाये भी आ गयी थी और मैंने मरीना को ज्योत्स्ना और ईशा को मेरी सुरक्षा की सुरक्षा का जिम्मा दे दिया. पहले हमे कामरूप की मानी हुई देवी के दर्शन और पूजा-पाठ करनी थी। पूजा स्थान पहाड़ के ऊपर बना था। वहां पर लगभग मंदिर से २०० मीटर पहले तक कार जाती है. वहां से आगे पैदल पहाड़ी रास्ते पर चलते हुए मैंने ज्योत्सना से पूछा की क्या वह ठीक से चल पा रही है। .... जिसका उत्तर उसने हाँ में दिया। रास्ते में हमारे साथ आयी हुई अलका, रोजी रूबी, मोना, रीती टीना और हेमा मेरी साली विजया, उसकी भाभी अनुपमा और भाभी ऐश्वर्या सब आपस में कुछ न कुछ बातें कर रही थी -- मेरी साली विजया, और भाभी अनुपमा सब को उस जगह के बारे में बताते जा रहे थे और ज्योत्स्ना मुझे उस स्थान के बारे में बता रही थी ।
कुछ देर चलते रहने के मंदिर आया। वहां ससुर जी, सासु माँ और साले साहब पहले से उपस्थित थे. हमने उन्हें प्रणाम किया और वहां के पुजारी जी भी पहले से ही तैयार थे, और हमारे आते ही मंत्रो का जाप और पूजा शुरू हो गयी । कुछ देर में पूजा सम्पन्न हुई ।
वहांसे ब्रह्मपुत्र नदी का विहंगम दृश्य हमने देखा. नदी वास्तव में सागर जैसी दिख रही थी. नदी का विशाल रूप और जल का तेज बहाव अध्भुत लग रहा था और आस पास ही हरियाली बहुत मनोहर थी.
फिर वहां से हम मदन कामदेव जाने वाले हैं ये जानते हुए मेरे सास ससुर और साले साहब खिसक लिए क्योंकि मदन कामदेव को पूर्वोत्तर का खुजराहो माना जाता है.
मदन कामदेव, आसाम का खुजराहो, गुवाहाटी से ४० किलोमीटर दूर, बैहटा चरियाली नामक स्थान पर है, मुझे ज्योत्स्ना ने बताया मदन कामदेव वास्तव में एक पहेली है, एक रहस्य है, एक चमत्कार है जो प्राचीन कामरूप के बारे में बोलता है। पहाड़ी विभिन्न प्रकार के जंगलों से घिरी हुई थी, जो सांपों, बिच्छुओं और हिरणों और बाघों जैसे जंगली जानवरों से भरी हुई थी और अनेक पक्षी गाते हैं और पेड़ों में चहकते हैं। कामदेव के ठीक नीचे मदनकुरी नदी पूर्व में और उत्तर की ओर बहती है। पहाड़ी के नीचे दलदली भूमि का एक बड़ा भाग है; गोपेश्वर की पहाड़ियों की एक श्रृंखला उत्तर से पश्चिम तक चलती है ।
दीवानगिरी पहाड़ी के चारों ओर हरी-भरी पहाड़ियों और बहती हुई नदियों की एक सुखद पृष्ठभूमि के साथ बिखरे हुए, पथरो, दीवारो और स्तम्भों पर अप्सराएं, नाच करती हुई परियां, ब्रह्मांडीय विकास में संलग्न देवी-देवता, जानवरों की ाक्तिया और मुर्तिया उकेरी गयी है, कल्प-वृक्ष से सजाए गए चौखट हैं। छह भुजाओं वाले भैरव, दानव, नाग और पुरुष, स्त्री और जानवर हर बोधगम्य कामुक मुद्रा में चित्रित हैं, सभी खंडहर-विशाल हैं ।
नक्काशियाँ ऐसी सुंदर है जो समय को रोक देती हैं और प्रेम और आनंद के लिए शाश्वत तड़प की घोषणा करती रहती हैं। यहां की हर घुमावदार सतह उत्साह के साथ जीवंत है जिसने चट्टानों पर एक कालातीत सपना जीवित किया है और ऐसा लगता है वो सांस ले रही है ।
ऐसा माना जाता है कि क्रोधित भगवान शिव द्वारा राख में बदल जाने के बाद, काम या मदन, प्रेम के देवता का इस स्थान पर पुनर्जन्म हुआ था। एक स्कूल का मानना है कि मदन का पुनर्जन्म हुआ था और इस छोटी सी पहाड़ी में उनकी पत्नी रति से एकजुट हो गए थे। एक अन्य मत का तर्क है कि मदन कामदेव नाम का इस स्थान से रोमांटिक संबंध है, क्योंकि इसमें कई कामुक मूर्तियां हैं।
शायद भारत में खजुराहो और कोणर्क के अलावा कोई जगह नहीं है, जहां भय, संदेह, प्रेम, जेली और भोग जुनून में फंसी नश्वर की बुनियादी कमजोरियों को इतनी वाक्पटुता से व्यक्त किया गया हो। यह वास्तव में एक रहस्य है, कि मदन कामदेव, एक उत्कृष्ट पुरातन स्थान, गुवाहाटी के इतने निकट इतने लंबे समय तक सभी की नज़रों से कैसे बचता रहा।
पुरातत्व ने कमोबेश इस बात की पुष्टि की है कि मदन कामदेव के खंडहर 10वीं से 12वीं शताब्दी के थे जब पाल वंश ने कामरूप पर शासन किया था। माना जाता है कि खंडहर भगवान शिव को सौंपे गए 20 से अधिक मंदिरों के अवशेष हैं। मदन कामदेव के बचे हुए हिस्से से पता चलता है कि ये शायद पूरी ब्रह्मपुत्र घाटी में बने अब तक के सबसे बेहतरीन मध्यकालीन मंदिर थे।
ऐसे ही बाते करते हुए हम मदन कामदेव पहुँच गए और वहां पर भी गाइड की व्यवस्था थी हम उसके मार्गदर्शन में कुछ देर वहां मुर्तिया और कलाकृतियाँ देखते रहे. कृतियाँ सच में काफी कामुक और सुंदर थी.
मुझे तो सिर्फ ज्योत्स्ना का साथ चाहिए था, लेकिन यहाँ पर लोगों का जमावड़ा था। मैं उसके साथ कहीं खुले में या अकेले में कुछ पल जीना चाहता था।
मैंने गाइड, रोजी मरीना और ईशा को इशारा किया और उसने मुझे एक तरफ जाने का इशारा किया हम उस तरफ को चले गए बाकी लोगो को गाइड और रोजी कुशलता से दूसरी तरफ ले गया और हमारे पीछे सिर्फ काफी दूरी पर मरीना और ईशा थी.
मैं ज्योत्स्ना को मुख्य मार्ग से अलग पहाड़ी रास्तों से प्रकृति के सुन्दर दृश्यों की तरफ ले गया । हमे कुछ देर तक पैदल चढ़ाई करनी पड़ी। वहां से नीचे दूसरी तरफ उतरे तो वहां थोड़ा सा समतल मैदान था और पेड़ो का झुरमुट था. उसके आगे घास के मैदान जिसमे में हरी घास और मौसमी फूलों की मानो एक कालीन सी बिछी हुई थी । यहाँ से चारों तरफ दूर-दूर तक ऊंचे-ऊंचे सुपारी के पेड़ देखे जा सकते थे।
"क्या मस्त जगह है ..." कहते हुए मैंने ज्योत्सना का हाथ थाम लिया, और उसने भी मेरा हाथ पकड़ लिया। थोड़ा सा और आगे की तरफ एक झील थी । उसके बगल में ही एक झोपड़ा भी बना हुआ था। रश्मि वहां जा कर रुक गयी। पास से देखने पर यह झोपड़ा नहीं, एक घर जैसा लग रहा था। एकदम वीरान जगह थी, लेकिन कितनी रोमांटिक! एक भी आदमी नहीं था आस पास।
कहानी जारी रहेगी