पूजा की कहानी पूजा की जुबानी Ch. 08

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"मममम...ममम...." मेरे मुहं से एक मीठी सिसकारी निकली।

उस हाथ से मेरे गेंद को दबाते दूसरे हाथ से वह एक एक करके मेरी ब्लाउज के हुक्स खोलदिए। ब्लाउज के दोनों छोर दोनों ओर लटक कर मेरे सुनहरी गेंदें बाबूजी को नुमायुं हो गए। लगता है अब उन्हें संभाले नहीं जा रहा है। इधर मेरा भी यही हल है।

भूखे भेड़िये की तरह एक मस्ती को मुहंमे लेकर, उसकी निप्पल को अपने होंठों से जोर से दबाये।

"ooooommmm....ooooo" सिसकते मैं उनके सर को मेरी मस्तियों पर दबाली। मैं एक ओर पुलकित हो रही थी तो दूसरी और में शर्म से लाल हो रही थी। गरम खून मेरे गालों में बह रहीथी। ससुरजी एक के बाद एक करके मेरि चूचियों को चूसते, चुबकते, चाटने लगे तो मैं रोमंचित हो रही थी। मेरे शरीर पर रोयें खड़े हो गए है।

"पूजा.. ऑफ़ो.. तम्हारे कितने सुन्दर और सुनहरे है..." मेरी स्तन को चुबकते, हलके से काटते, निप्पल्स को दांतों से दबाते वह अपनी मन की मुराद पूरा कर रहे है और मुझे पागल कर ने के साथ साथ मुझे स्वर्ग दिखा रहे है।

"आअह्हह। ..... मममममम... मम... बा... बु ...जी... वूँ। ... " कहते में ससुरजी के सर को मेरे स्तनों पर दबा रही थी। निचे मेरे मदन पुष्प से मकरंद की धारा बहने लगी। अंदर कही बेतहाशा खुजली हो रही है... मुझे मेरे पति से भी ज्यादा मस्ती मिलने लगी।

"पूजा...." वह मेरे एक हाथ को चूमते बोले " आज से तुम राकेश की घर की ही नहीं बल्कि मेरे दिल की रानी भी हो" कहते इतना जोर से मेरी चाचियों को मींजे की में दर्द के मारे तिल मिला उठी।

मैं मस्ती में झूमते ससुरजी के शरीर से एक बेल की तरह लिपट रही थी। मैं अपनी चूचियों को खुद मसल रही थी। निप्पल को जोर जोरसे पिंच कर रही थी। अपने होंठो को खुद दांतों से दबा रही थी।

"पूजा..." वह मुझे बुलाये।

"क्या है बाबूजी...?" मैं उनकी आँखों में देखती पूछी। मुझे उनकी आँखों की चमक सितारों की चमक जैसे दिखे।

"मेरे पास एक नयाब चाबी है, तुम्हरो सासुमा उसे अपने पास के एक ताले में लगाती थी। तुम्हारी सासु माँ गुजर जाने ले बाद उस चाबी को जंग लगने लगी।

क्या तुम उसे भी संभल के रखोगी..? उसे जंग न लगे ऐसे देख भाल करोगी...?" मेरी आँखों में देखते पूछे।

ससुरजी क्या पूछ रहे है मैं समझ गयी। मेरा सारा शरीर एक बार फिर से पुलकित हुआ। मेरे जांघों के बीच नहर में बाढ़ और बढ़ गयी।

"में उन्हें लिपट कर उनके होंठों को चूमती बोली " बाबूजी... मेरे पस भी एक ताला है...आप की चाबी को मैं उस ताले में लगावुंगी..." मादक हंसी के साथ मैं कहि और शर्म से मेरे मुहं को उनके छाती में छुपाली।

मेरे उस हंसी ने बाबूजी को पागल बना दिया। उन्होंने मेरी टोढ़ी के निचे हाथ रख मेरे मुहं को उठाए और मेर आँखों में झांकते पूछे... "ओह.. तो तुम्हे मालूम है वो चाबी कौन सी है...?"

"उम्म्म्म...."

"क्या...? सच में तुम्हे मालूम है की वह चाबी कौन सी है...? कौन सी है वह चाबी दिखावो तो सही..." ससुरजी बोल ही रहे थे की मैंने उनकी धोती में हाथ डालकर उनकी कड़क हो चके इस्पात की चढ़ को मुट्ठी में बांध पूछी... "यही है न बाबूजी.. आपकी वह नायाब चाबी.." मेरे वैसे पूछ ते ही बाबूजी की मुहं एक बार फिर चमक उठी।

जोश में आकर ससुरजी मेरे गालों को काटते बोले... "शाबाश..... अब जरा अपनी ताला भी तो दिखाओ.." एक ओर मेरी हरकतें उन्हें मदहोश कर रहे तो दूसरी ओर पागल सा भी हो रहे थे।

ससुरजी ऐसा पोछते ही मेरा शरीर तपने लगा। मेर जांघों के बीच की दरार में खुजली दस गुना बढ़ी। अब मैं लाज शर्म सब भूल कर बाबूजी केँ हाथ पकड़ कर साड़ी के ऊपर से ही मेरी उभरी योनि पर लगाई। ससुरजी भी ऐसा मौका न गंवाते अपने बहु यानि कि मेरा चूत को जोर जोरसे मसलने लगे। उनका एक हाथ मेरी मस्तीयों को दबाते मसलते रहे तो दूसरी हाथ मेरी नाजुक फूल को मसलते, मेरी होंठों को खाजाने लगे।

"sssss..hhaaa..sss..haaaa ...." मैं एक मदहोश सिसकी ली।

"क्या हुआ मेरी बहु...? मेरी दिल की रानी ..." मुझे छेड़ते, मेरे नाक को मरोड़ते पूछे।

"उफ्फ्फ.. बबुजी... अब.. रहा नहीं जता.. प्लीज... मेरी तप रही है... अंदर न सहने वाला खुजली हो रही है... जल्दी से आपका चाबी मेरे ताले में डाल कर घुमाइए...आहह..." मैं बाबूजी के शरीर से लिपटती बोली।

"मेरी दिल की रानी... पहले तुम्हारा ताला तो दिखा दो..." मेंरी साड़ी फ्रिल्स में हाथ घुसाते बोले। दोस्तों यह सब वरांडे में दिन के उजाले में हो रही है।

"जाईये बाबूजी.. आप भी... इतने बेशर्म हो गये है...दिन के समय इतने उजाले में... और वो भी वरांडे में.... छी... मुझे लज्जा होती है" मैं नखरे करती बोली।

"साली......" वह प्यार से मेरे गालों को चिकोटी काटते बोले "इस उजाले में ही तूने अब तक अपनी चूची मिंजवायी और चुसवाई है...और क्या करि मालूम.." वह रुके और फिर बोल पड़े.."मेरी लंड को ऐंठ रही थी।

"छी....छी... कितने गंदे है आप..." कहते में अपना मुहं उनके छाती में छुपाली। बाबूजी ने फिर से मेरी ठोढ़ी के निचे ऊँगली रखकर ऊपर उठाये तो मैं अपनी ऑंखें और निचे झुकाली।

"ठीक है चलो.. अंदर चलते है.." कहते उन्होंने मुझे उठालिये।

"हाय....हाय.. बबुजी... यह क्या... कोई देख लेगा... निचे उतारो..." मैं और नखरे करते बोली। ससुरजी ने मुझे एक गुड़िया की तरह उठा लिए और अंदर ला कर बेड पर मेरे पीट के बल लिटाये। मैं दोनों हाथो से मेरे मुहं को छुपाकर उँगलियों की बीच के गैप (gap) से उन्हें देख रही थी।

मेरे ब्लॉउस के दोनों चोर दोनों तरफ लटक रहे है... मेरे मस्तियाँ पूर्ण रूप से नंगे है... गेहूं रंगत के मेरे निप्पल्स कड़क हो कर खड़े है। मेरी साड़ी मेरे शरीर पर रहूं या नहीं सोच रही है।

चलो अब तो अंदर आ गए हैं .. अब तो दिखदो अपना ताला" मेरे साइड में बैठ कर बोले।

"वूहूं। ... मुझे लज्जा हो रही है.." कह कर मेरे दोनों हाथों को जांघों के बीच रख ली।

"ठीक है... तुम मत दिखाओ.. मैं ही देख लेता हूँ.." कहे और मेरे हथों को वहां से हठा कर अपने हाथ मेरी जांघों में घसेड कर मेरी उभार को अपने मुट्ठी में जकड़े और कहे... "यही है न तुम्हारी ताला?

ससुरजी के हरकतों से और उनके बातों से मैं शर्म से पानी पानी हो रही थी साथ में मैं उत्तेजित भी हो रहीथी। एक हाथ मेरे जांघों में घुसेङ्कर दूसरे हाथ से ससुरजी ने मेरी शरीर से साड़ी और पेटीकोट उखड फेंके। अब मेरी नंगी उभार अपने खुले होंठों के साथ उनके सामने। जैसे ही मै नंगी हुयी शर्म से लाल होतो मेरी नंगा पन उनसे बचाने के लिए मैं झट औंधी पलटी।

वह भी मेरी गलती थी कि मेरे पलटते ही मेरे मांसल, मुलायम नितंब दिन के उजाले में चमकते ससुरजी के सामने।

"ओह बहु.. कितनी सुन्दर है तुम्हारे यह भरे हुए कूल्हे.. जी चाह रहा है की अभी इसी समय इसे काट के खाने को दिल कर रहा है" कहते वह मेरे मुलायम चकिनी गांड पर अपने हाथ फेरते चूमते और दाँतोंसे से काटने लगे। मैं वैसे ही औंधी पड़े पड़े उनके चुंबनीं का मजा ले रही थी। मेरे सारे शरीर में आग लगी हुयी थी।

जी भर कर मेरे नितम्बों पर चुम्बनों का भौचार करने के बाद, धीरे से मुझे मेरे पीट के बल पलटाये। मेरी उभरे चूत और उसके फूले होंठ देखकर ससुरजी के आँखे चमकने लगी।

मेरी चूत की खुजली इतनी बढ़ी की अब मुझसे सहा नहीं जा रहा है। ससुरजी कब अपना मुस्सल मेरे में घुसेड़ेंगे मैं इंतजार कर रहीथी। लेकिन वह मेरे ऊपर आने का नाम ही नहीं ले रहे थे। अब मेरे सहन शक्ति मर चुकी थी और ससुरजी से बोली.....

"बाबूजी.. अब आ भी जाईये... मुझे बहुत खुजली हो रही है.. मुझे सहा नहीं जाता.. जल्दी अपना मुसल मेरि ओखली डाल कर जी भर कूटिये...साली बहुत अकड़ रही है.. उसकी अकड़ मिठाइये..देखो कैसा रिस रही है.." कहते मैं बेशर्म हो कर मेरी बुर के फांके खोल कर ससुरजी को दिखायी।

"बहु... अब मुझसे भी रहा नहि जाता....इस दस दिनों से तुम्हारी सुंदरता और और तुम्हरी यह बुर तो मुझे पागल बन दिए है। ले... अपने बाबूजी का.. अपने रिसते बुर में... आआह क्या चूत है...अब तक जितंनों को मैंने चोदे है सबसे अनोखी और मस्ती भरी है..." कहते अपने लंड मेरे बुर के मुहाने पर रख मोटा सुपाडे को मेरे फांकों के बीच रगड़ने लगे।

"आहहह। ... बाबूजी.." कहते मैंने कमर उछली।

उन्होंने अपने कमर को निचे को दबाये। बबुजी का मोटा सूपड़ा आधे से ज्यादा मेरे बुर में घुस गयी।

"aaaahhhhh...shhh..off.." में कही। ससुरजी का चढ़ मेरे चूत के दीवारों को रगड़ते अंदर को घुसी।

"आआह्ह्ह्ह...ससससस... कितना तंग है तुम्हारी.. बिलकुल कुंवारी चूत के जैसे ही... क्यों तेरे पति तुझे नहीं कर रह है क्या...?" एक और दक्का देते पूछे।

"कहाँ बाबूजी.. पंद्रह बीस दिन तो टूर पर ही रहते है... इसी लये तो मेरी हमेशा प्यासी रहती है..." कह कर में मेरी कूल्हे ऊपर उछाली।

"अब तुम चिंता मत कर, जबतक मैं यहाँ हूँ इसकी देखभाल में करूंगा..." वह अपना सुपडे तक बाहर खींच एक जोर क दक्का दिए... '

"आआह्ह्ह्ह... मरीईईईई.." में दर्द से चिल्लाई.... बाबूजी का पूरा का पूरा मेरे अंदर और अंदर गहराई में कहीं ठोकर दे रही थी।

फिर क्या था हम दोनों की धमसान चुदाई शुरू होगयी। सच में ससुरजि में जैसा रेखा ने कही अच्छी शक्ति है। पूरे आधे घंटे तक मुझे चोद कर अपना गर्म वीर्य से मेरी बुर को ठंडा करे।

उसके बाद जब तक ससुरजी मेरे यहाँ थे मैं हर रात उनकी बिस्तर गर्म करने लगी। इस दौरान उन्होंने अपने कुछ किस्से सुनाते मुझे लेते थे। औरतों को / लड़कियों को रिझाने वह माहिर है। तब मुझे पहली बार अंदेशा हुआ कि कहीं बाबूजी मेरी जेठानी को भी....

एक दिन वह मुझे झुका कर मजा लेने के बाद हम दोनों बिस्तर पर नंगे लेटे थे और मैं उनकी छाती पर सर रख कर लेटी थी तो पूछी "बाबूजी... क्या आप... जेट... जेठानी को भी ...."

"पूजा यह सब राज की बातें है.. ऐसे कभी किसि से किसी के बारे में मत पूछो जिस घर की राज उस घर में ही..." उनके इन बातों से मैं समझ गयी की मेरा भी राज महफूज़ रहेगी। ससुरजी हमारे यहाँ एक महीने से ज्यादा रुके। एक महीने में मुझ मेरे घर में हर जगह लिए है। उनके बैडरूम में, मेरे बैडरूम में, किचन प्लटफॉर्म पर, डाइनिंग टेबल पर बिठाके, झुकाके, अखिर एक दिन दिनके उजाले में आँगन में आम के पेड़ के निचे भी....और हर बार मैं अपने नितम्बों को उठाकर, पीछे धकेलते चुदवा लि। ऐसे में एक दिन जब वह मुझे जम कर चोदने बाद मेरे बुर मे अपना गर्म गम वीर्य उड़ेलते.... "आअह्ह्ह रमा..रमा...आहहह उछाल अपनी गांड.. आअह्हः" कहे। उनकी यह बात सुन कर मैं सकते में रह गयी.. क्यों की रमा मेरे ससुरजी की दूसरी बेटी है... मेरे से दो वर्ष छोटी।

'ओफ़्फ़्फ़ो... बाबूजी आप चुड़क्कड़ है यह मालूम है लेकिन इतनी चुदक्क्ड़ होंगे, यहाँ तक कि अपनी बेटी को ही.... यह नहीं मालूम थी...' में सोची लेकिन मैं यह बात उनसे पूछी नहीं, अपने में ही रख ली। दोस्तों ऐसे है मेरे ससुर।

दोस्तों इस एपिसोड का आनंद लिए है तो अपना कमेंट जरूर देना..

आपकी पूजा मस्तानी

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Anonymous
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1 Comments
AnonymousAnonymous7 months ago

Bahut mast maza ayega jb puja k sasur ne kese apni shadishuda beti ko chodenge aur uska bade stan se doodh piynge

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