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Click hereपड़ोसियों के साथ एक नौजवान के कारनामे
VOLUME II-विवाह और शुद्धिकरन
CHAPTER-5
मधुमास (हनीमून)
PART 32
कामरूप नगर की कहानी
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वसंत पंचमी की शुभकामनाये
वसंत पंचमी के दिन कामदेव की पूजा की जाती है। वसंत कामदेव का मित्र है इसलिए कामदेव का धनुष फूलों का बना हुआ है।
वसंत कामदेव का मित्र है, इसलिए कामदेव का धनुष फूलों का बना हुआ है। इस धनुष की कमान स्वरविहीन होती है। यानी जब कामदेव जब कमान से तीर छोड़ते हैं तो उसकी आवाज नहीं होती है। कामदेव का एक नाम 'अनंग' है यानी बिना शरीर के यह प्राणियों में बसते हैं। एक नाम 'मार' है यानी यह इतने मारक हैं कि इनके बाणों का कोई कवच नहीं है। वसंत ऋतु को प्रेम की ही ऋतु माना जाता रहा है। इसमें फूलों के बाणों से आहत हृदय प्रेम से सराबोर हो जाता है।
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मंजू, जो मेरे पैरों के पास बैठी थी, मेरे लंड पर झपट पड़ी और उसे मुँह में निगल गई। मैं उसकी इस हरकत से चौंक गया, क्योंकि उसका भाई और भाभी और भतीजी सब वहीं थे और उनकी छोटी बहन एक अजनबी के लिंग को चूस रही थी। मुझे हैरान देख मुखिया जी मुस्कुरा कर बोले...।
मुखिया जी: चिंता मत करो जोवाई जी। हमारे लिए यह सामान्य है। सेक्स हमारे दैनिक जीवन का एक हिस्सा है। हमें इसमें कोई एतराज नहीं है।
पायल: हाँ, मेरी ननद जब व्यस्क हुई और उसे यौवन मिला और 3 दिन बाद उसने अपने बड़े भाई के साथ से अपना कौमार्य खो दिया।
मुखिया: हाँ, व्यस्की होने पर कोई भी गाँव में या बाहर के उन लोगों के साथ, जिन्हें हम घर ले आते हैं, असुरक्षित यौन सम्बंध बना सकती है। लेकिन वह इसे पूर्ण अजनबियों के साथ नहीं कर सकती।
सीमा: क्या तुम मेरी बड़ी की नोनोद मंजू (बड़ी बहन-छोटी ननद) से मुख मैथुन करवाते हुए (ब्लो जॉब) करवाते हुए मेरे स्तन चूसना चाहोगे?
मैंने चौंक कर खुद को चकोटि मारी बाप रे! क्या मैं स्वर्ग में आ गया था? मुझे चकोटि मारते हुए मुखिया जी ने देख लिया।
मुखिया जी: चिंता मत करो जोवाई जी। यहाँ यह सब सामान्य है। मेरी साली (पत्नी की छोटी बहन) जब वह व्यस्क हुई थी तो उसने ने मेरे पिता के साथ अपना कौमार्य खो दिया था। सेक्स हमारे दैनिक जीवन का एक हिस्सा है। हमें इसमें कोई एतराज नहीं है।
मुखिया के घर में मेरे साथ मेरी पत्नी के सामने जो हो रहा था, उस पर मैं और मेरी पत्नी अभी भी अवाक थे। मुखिया की पत्नी पायल मेरे सामने सेमी टॉपलेस थी। उसकी बीवी की बहन सीमा अपने बूब्स मुझे ऑफर कर रही थी और उसकी बहन मंजू मेरे लंड को चूस रही थी और उसकी बेटी को मेरे सीधे और सख्त लंड ने गालों पर मारा था। मैं खाने की मेज पर बैठा हुआ था, उस समय मुखिया अभी भी कमरे में अपनी लाउंज कुर्सी पर पूरी तरह नग्न अवस्था में आराम कर रहा था।
फिर मैं 8-सीटर डाइनिंग टेबल के सिरहाने बैठ गया-प्रत्येक छोटे सिरों पर एक सोफे और-और 3 लम्बे सोफे थे। मुखिया दूसरे छोर पर मेरे सामने बैठ गया, जबकि मंजू टेबल के नीचे मेरे लंड को चूसती रही।
इतनी कम उम्र की लड़की जिस तरह से मेरा लिंग चूस रही थी उससे लग्गता थाकि वह अपनी जीभ के साथ एक बड़ी निपुणता रखती है। वह साथ-साथ अपनी जीभ को लंडमुंड के चारों ओर गोल-गोल घुमा रही थी, साथ ही धीरे से चाट रही थी। सीमा मुस्कुरा रही थी और मेरे दाहिनी ओर बैठ गई और मुझे अपने दृढ़ स्तनों तक पूरी पहुँच प्रदान कर रही थी। ज्योत्सना मेरे बायीं ओर बैठी और पायल ज्योत्सना के सामने बैठी हुई थी। भोजन की टेबल पर मुखिया की लड़की नमिता पायल के साथ वाली सीट पर अकेली बैठी हुई थी।
पायल ने नौकरानी को बुलाया। ब्लाउज़ और सुपर शॉर्ट स्कर्ट पहने एक लंबी और गोरी महिला ने खाना लाकर टेबल पर रख दिया और भोजन परोसने से पहले, उसने अपने बड़े और गोल स्तनों को दिखाते हुए अपना ब्लाउज उतार दिया। उसने एक मुस्कान के साथ प्लेटो में भोजन परोसा और मंजू के बदले मेरा लिंग टेबल के नीचे चूसने की पेशकश भी की ताकि मंजू भी हमारे साथ दोपहर का भोजन कर सके। मैंने मना कर दिया और कहा।
मैं: मैं अभी के लिए ठीक है और फिर हमने लंच करना शुरू कर दिया।
मुखिया जी ने खाना खाते समय अपना बायाँ हाथ नौकरानी की चूत पर रगड़ते रहे और मुझसे बात करते रहे। हर बार जब मजाक में कुछ कहता तो पायल मेरा लंड पकड़ लेती। कुल मिलाकर, खाना स्वादिष्ट था और मुखिया के परिवार का साथ अद्भुत था।
भोजन करने के बाद सब एक के बाद एक उठ खड़े हुए। फिर हम सिंक में हाथ धोने गए और लिविंग रूम में लौट आए।
लिविंग रूम में डबल लाउंज कुर्सियाँ थीं और उस आरामकुर्सी के अलावा कोई एकल सीट नहीं थी जिस पर मुखिया जी पहले अपनी दाढ़ी बनवा रहे थे। मैंने एक सीट ली और मंजू जल्दी से रेंगकर मेरे पास आई और मुझे एक तरफ से अपने गले से लगा लिया और मेरे सीने से लिपटी हुई थी।
फिर उसने अपना बायाँ पैर मेरे ऊपर एक साइड-हगिंग पोज़ में मेरी टांग पर रख दिया। जैसे ही उसकी योनी ने मेरे पैर के किनारे को छुआ, मैंने उसकी जांघो को पनी तरफ से खरोंचते हुए महसूस किया। यह अजीब तरह से उत्तेजित कर रहा था क्योंकि उसने धीरे से अपनी योनी को मेरे पैर की तरफ से ऊपर-नीचे किया जैसे कि वह मुझे गरमा रही हो।
उसके बड़े भाई की पत्नी (भाभी) -पायल अपनी साड़ी पूरी तरह उतार कर नग्न हो मेरे बगल में बैठ गई और दूसरी तरफ से मेरे साथ चिपक गयी और मुझे गले से लगा लिया। उसने धीरे से मेरे निप्पलों को गुदगुदाना शुरू कर दिया जिससे मुझे एक और झटका लगा कि सीमा ने तुरंत मेरा लिंग अपने हाथ से पकड़ लिया और सहलाने लगी।
मुखिया अपनी आराम कुरसी पर बैठ गया और उनकी बेटी नमिता के साथ ज्योत्स्ना बाते करने लगी मैं सामने वाली लाउंज चेयर पर बैठे मुखिया से और बातें करने लगा। फिर मैंने उनसे गाँव और उसके इतिहास के बारे में और बताने को कहा।
मुखिया ने कहानी शुरू की।
जोवोई राज। यहाँ आस पास तीन गाँव हैं कुछ सदियों पहले गांवों में अपराध और दुष्कर्मों की भरमार थी। हम आपस में लड़ते रहते थे और इससे जगह-जगह मातम पसर गया। लोग बाहर से बहुत रूढ़िवादी थे और हर तरह की हिंसा का सहारा लेते थे।
फिर हमारे तीनो गाँवों के पूर्वज मुखियाओं ने राजकुमारी जी के पूर्वज महाराज से संपर्क किया की वह हमारी मदद करे । क्योंकि वही हमारे राजा थे और उन्होंने ह्मणारे समस्या सुन सेना नियुक्त न करते हुए अपने गुरुजी से मदद मांगी। जोवोई जय जी आप के परिवार और राजकुमारीजी के परिवार के गुरुजी सर्व शक्तिमान हैं। तो महाराज ने गुरूजी से मदद मांगी तो एक दिन इस स्थिति के चरम पर, गुरुजी हमारे गाँव में चले आये। वह तीनो गाँव के बीच में एक बड़े बरगद के पेड़ के नीचे बैठ गए। उन्हें गाँव की शांत सुंदरता अच्छी लगी और ध्यान करने लगे जल्दी ही उन्होंने इसकी उथल-पुथल और प्राचीन इतिहास के बारे में जान लिया।
उन्होंने वहाँ खेल रहे बच्चो से मुखिया को बुलाने भेजा । हम तीनो गाँवों के मुखिया उनके पास गए । तो उन्होंने सब गांववालों को बुलाया । । तीनो गाँव में से हमारे गाँव की मुखिया का नाम रम्भा था और वह अप्सरा रम्भा के समान ही सुंदर मानी जाती थी । और तीनो गाँवों में झगड़े के प्रमुख वजह हमारे गाँव की स्त्रियों की सुंदरता ही थी क्योंकि बाकी दोनों गाँव के लोग किसी भी तरह से इन स्त्रियों को प्राप्त करना चाहते थे ।
गुरूजी ने तीनो गाँव के लोगों को इस पूरे क्षेत्रका महत्त्व बताने के लिए कामदेव, कामरूप नगर की कहानी सुनाई।
प्राचीन काल में देवकार्य से कामदेव अपने पुष्प के धनुष को हाथ में लेकर वसन्तादि सहायकों के साथ लेकर अपना प्रभाव फैलाया और समस्त संसार को अपने वश में कर लिया। जिससे क्षणभर में ही सारी मर्यादा मिट गई. ऐसे में सभी देवों की अनुशंसा पर कामदेव ने उन पर अपना बाण चलाकर आकर्षण विकसित किया। क्रोधित होकर जब आंखें खोलीं तो उससे कामदेव भस्म हो गए। कामदेव को जब भस्म कर दिया, तब उसकी पत्नी रति पास जाकर करुण विलाप करने लगी। तब उस पर दया करके उसे वरदान दिया कि कृष्ण के पुत्र में रूप में उसका पति पुनः उत्पन्न होगा।
असम में ये गुप्त स्थान यह मंदिर घने जंगलों के भीतर पेड़ों से छुपा हुआ है। इसी स्थान पर कि भस्म हो गए कामदेव का इस स्थान पर पुनशक्तिकरण तथा उनकी पत्नी रति के साथ पुन: मिलन हुआ था। इसीलिए इस स्थान का नाम कामरूप नगर है ।
कामदेव के प्रभाव से क्षणभर में ही सारी मर्यादा मिट गई, ब्रह्मचर्य, नियम, नाना प्रकार के संयम, धीरज, धर्म, ज्ञान, विज्ञान, सदाचार, जप, योग, वैराग्य आदि विवेक की सारी सेना डरकर भाग गई सारे जगत् में खलबली मच गई जगत में स्त्री-पुरुष संज्ञा वाले जितने चर-अचर प्राणी थे, वे सब अपनी-अपनी मर्यादा छोड़कर काम के वश में हो गए, सबके हृदय में काम की इच्छा हो गई। लताओं (बेलों) को देखकर वृक्षों की डालियाँ झुकने लगीं। नदियाँ उमड़-उमड़कर समुद्र की ओर दौड़ीं और ताल-तलैयाँ भी आपस में संगम करने मिलने-जुलने लगींआकाश, जल और पृथ्वी पर विचरने वाले-सा जीव पेड़ पौधे वृक्ष पशु-पक्षी काम के वश में हो गए. सिद्ध, विरक्त, महामुनि और महान् योगी भी काम के वश होकर योगरहित या स्त्री के विरही हो गए. जो समस्त चराचर जगत को सामान देखते थे, वे अब उसे स्त्रीमय देखने लगे। स्त्रियाँ सारे संसार को पुरुषमय देखने लगीं और पुरुष उसे स्त्रीमय देखने लगे। दो घड़ी तक सारे ब्राह्मण्ड के अंदर कामदेव का रचा हुआ तमाशा रहा। कामदेव ने सबके मन हर लिए। तभी कामदेव सर्वशक्तिमान के सामने पहुँच तो वह कामदेव डर गए और तुरंत ही सब जीव पहले जैसे ही सुखी हो गए।
इस लिए आप सब भी मन से कामदेव के वेग को त्याग दीजिये काम थोड़ी देर आनद देता है और फिर दुःख तो जब आप काम के ताप से मूकजत हो जाएंगे तब आप सब भी सुखी हो जाएंगे और आपके परस्पर झगड़े मिट जायेंगे । मैं कामदेव का दमन करने के लिए उपाय बता देता हूँ इससे आपके सारे झगड़े मिट जायेंगे ।
लेकिन उस समय सब पर कामदेव का प्रबल वेग था और मुखिया रम्भा देवी को लगा इस तरह तो उन का पुरुषो पर प्रभाव बिलकुल समाप्त हो जाएगा तो उन्होंने इसका विरोध किया और गुरूजी से संवाद करना शुरू कर दिया ।
रंभा यौवन और शृंगार का वर्णन करते नहीं थकती, तो गुरूजी संयम, विवेक और सर्वशक्तिमान का। दोनों के बीच हुआ संवाद सुंदरता और आनंद की उत्तम व्याख्या है।
रम्भा: हे मुनि! हर मार्ग में नयी मंजरी शोभायमान हैं, हर मंजरी पर कोयल सुमधुर टेहुक रही हैं। टेहका सुनकर मानिनी स्त्रीयों का गर्व दूर होता है और गर्व नष्ट होते हि पाँच बाणों को धारण करनेवाले कामदेव मन को बेचेन बनाते हैं। हे मुनि! हर घर में घूमती फिरती सोने की लता जैसी ललनाओं के मुख पूर्णिमा के चंद्र जैसे सुंदर हैं। उन मुखचंद्रो में नयनरुप दो मछलीयाँ दिख रही है और उन मीनरुप नयनों में कामदेव स्वतंत्र घूम रहा है। मुनिवर! सुंदर स्तनवाली, शरीर पर चंदन का लेप की हुई, चंचल आँखोंवाली सुंदर युवती का, प्रेम से जिस पुरुष ने आलिंगन किया नहीं, उसका जन्म व्यर्थ है।
गुरुदेव: हे रंभा! कमल जैसे नेत्रवाली, केयूर पर सवार, कुंडल से सुशोभित मुखवाली का यौवन भी आयु और समय के साथ समाप्त हो जाता है, वही संसार में हमेशा रहने वाले आनद की प्राप्ति, जिसने एकाग्रचित्त होकर, नहीं की, उसका जीवन व्यर्थ है।
रम्भा: हे गुरुदेव! भोग की ईच्छा से व्याकुल, परिपूर्ण चंद्र जैसे मुखवाली, बिंबाधरा, कोमल कमल के नाल जैसी, गौर वर्णी कामिनी जिसने छाती से नहीं लगायी, उसका जीवन व्यर्थ गया। हे गुरुराज! अनेक प्रकार के वस्त्र और आभूषणों से सज्ज, लवंग कर्पूर इत्यादि सुगंध से सुवासित शरीरवाली नवयुवती को, जिसने अपने दो हाथों से आलिंगन दिया नहीं, उसका जन्म व्यर्थ गया।
गुरुदेव: हे रंभा! मार्ग में सज्जनो का संग होता है, सज्जनो के साथ हर वक्त आन्नद का आभास होता है। हर स्थान पर पवित्र आन्नद प्रदान काने वालो का समुदाय विराजमान है। उस समुदाय में तत्त्व का विचार हुआ करता है। उन विचारों से ज्ञान होता है और उस ज्ञान से सदा रहने वाले आनद प्राप्त होता है। हे रंभा! हर स्थान में रत्न की वेदी दिख रही है, हर वेदी पर गंधर्वों की सभा होती है। उन सभाओं में किन्नर गण किन्नरीयों के साथ गाना गा रहे हैं। हर गाने में आन्नद गाया जाता है। जिसके आनद रूप का चिंतन नहीं हो सकता, जो ज्ञान से परिपूर्ण है, ऐसे हमेशा रहने वाले आन्नद को जिसने स्वयं के हृदय में प्राप्त नहीं किया है, उसका जन्म व्यर्थ गया। हे रंभा! ये भोग की ईच्छा, आनद क्षण भंगुर है हमेशा रहने वाले आनद की प्राप्ति, जिसने जाग्रत अवस्था में नहीं किया, उसका जन्म व्यर्थ गया।
रम्भा: हे मुनिवर! प्रिय बोलनेवाली, चंपक और सुवर्ण के रंगवाली, हार का झुमका नाभि पर लटक रहा हो ऐसी, स्वभाव से रमणशील ऐसी स्त्री के साथ जिसने भोग विलास नहीं किया, उसका जीवन व्यर्थ गया। हे मुनिश्रेष्ठ! चंचल कमरवाली, नूपुर से मधुर शब्द करनेवाली, नाक में मोती पहनी हुई, सुंदर नयनों से सुशोभित, सर्प के जैसा अंबोडा जिसने धारण किया है, ऐसी सुंदरी का जिसने सेवन नहीं किया, उसका जन्म व्यर्थ है । सुगंधी पान, उत्तम फूल, सुगंधी तेल और अन्य पदार्थों से सुवासित कायावाली कामिनी के कुच का मर्दन, रात को जिसने नहीं किया उसका जीवन व्यर्थ है । कस्तूरी और केसर से युक्त चंदन का लेप जिसने किया है, अगरु के गंध से सुवासित वस्त्र धारण की हुई तरुणी, रात को जिस पुरुष की छाती पर लेटी नहीं, उसका जन्म भी व्यर्थ है।
गुरुवर: हे रम्भा देवी भोग तो जानवर भी कर लेते हैं जिस प्राणी ने मनुष्य शरीर पाकर भी, दूसरो की-की सेवा न की, उसका जन्म तो व्यर्थ ही है। हे रंभा! संसार के दुखियो की सेवाधर्म का पालन, ज्ञान की प्राप्ति, गुणों की प्राप्ति कर आनंद जिसने प्राप्त नहीं किया, उसका जन्म व्यर्थ गया।
हे गुरुदेव! जिस पुरुष ने हेमंत ऋतु में, कठोर और भरे हुए स्तन के भार से झुकी हुई, पतली कमरवाली, चंचल और खंजर से नैनोंवाली स्त्री का संभोग नहीं किया, उसका जीवन व्यर्थ है और हे मुनिवर! सद्लक्षण और गुणों से युक्त, प्रसन्न मुखवाली, मधुर बोलनेवाली, मानिनी सुंदरी के नाभि का जिसने चुंबन नहीं किया उसका किसी काम का नहीं है। जिस पुरुष ने वसंत ऋतु में लंबे बालवाली, सुंदर नेत्रों से सुशोभित कामदेव के समस्त भंडाररुप ऐसी कामिनी के साथ विहार न किया हो, उसका जीवन व्यर्थ गया।
गुरुवर: : हे रंभा! जिस इन्सान ने, भोग विलास से नाश होता है और नारी के सेवन से उत्पन्न सब सुख नाशवंत और दुःखदायक है ऐसा जानने के बावजुद जिसने सदा रहने वाले आन्नद को प्राप्त करने का प्रयास नहीं किया, उसका जीवन व्यर्थ गया।
हे मुनि! जिस पुरुष ने अपनी युवानी में, समस्त शृंगार और मनोविवाद करने में चतुर और अनेक लीलाओं में कुशल और कोकिलकंठी कामिनी के साथ विलास नहीं किया, उसका जीवन व्यर्थ है। जिसके बिल्वफल जैसे कठिन स्तन है, अत्यंत कोमल जिसका शरीर है, जिसका स्वभाव प्रिय है, ऐसी सुवासित केशवाली, ललचानेवाली गौरी युवती को जिसने आलिंगन नहीं दिया, उसका जीवन व्यर्थ गया। आनंद और कामदेव के खजाने समान, खनकते कंगन और नूपुर पहेनी हुई कामिनी के होठ पर जिसने चुंबन किया नहीं, उस पुरुष का जीवन का कोई प्रयोजन नहीं है। चंद्र जैसे मुखवाली, सुंदर और गौर वर्णवाली, जिसकी छाती पर स्तन व्यक्त हुए हैं ऐसी, संभोग और विलास में चतुर, ऐसी स्त्री को बिस्तर में जिसने आलिंगन नहीं दिया, उसका जीवन व्यर्थ है। आनंदरुप, नतांगी युवती, उत्तम धर्म के पालन में और पुत्रादि पैदा करने में सहायक, राजा को भी संतोष देनेवाली नारी जिस पुरुष के घर में न हो, उसका जीवन व्यर्थ है। पतली कमरवाली, हंस की तरह चलनेवाली, प्रमत्त सुंदर, सौभाग्यवती, चंचल स्वभाववाली स्त्री को रतिक्रीडा के वक्त अनुकुलतया पीडित नहीं किया है, उसका जीवन व्यर्थ है। सुंदर, सुगंधित पुष्पों से सुशोभित शय्या हो, मनोनुकूल सुंदर स्त्री हो, वसंत ऋतु हो, पूर्णिमा के चंद्र की चांदनी खीली हो, पर यदि पुरुष में परिपूर्ण पुरुषत्त्व न हो तो उसका जीवन व्यर्थ है।
गुरुवर: सुंदर शरीर हो, युवा पत्नी हो, मेरु पर्वत समान धन हो, मन को लुभानेवाली मधुर वाणी हो, पर यदि फिर भी मन में आन्नद न हो, तो जीवन व्यर्थ है।
कहानी जारी रहेगी