देवाशीष और दीपा की दूबारा सुहागरात

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शादी के बाद पत्नी का पति के साथ संबंध बनाने से मना करना।
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यह कहानी एक प्रसिद्द जासुसी कहानी पर आधारित है। इस कहानी को मैंने सिर्फ प्लॉट के लिये इस्तेमाल किया है। बाकि की सारी कहानी की कल्पना मेरी अपनी है।

अब चलते है अपनी कहानी पर, हमारी कहानी की शुरुआत होती है कहानी के नायक देवाशीष के विवाह से। देवाशीष की शादी दीपा के साथ हुई। देवाशीष दूनिया में अकेला था। उस के माता-पिता दोनों का देहान्त हो चुका था। विवाह होने के बाद जब रात को वह सुहागरात के लिये अपनी पत्नी के पास कमरें में पहुँचा तो उसके सामने एक ऐसा रहस्य खुला कि उस की जिन्दगी की सारी आधारशिला ही हील गयी।

उस की नई नवेली दुल्हन ने कहा कि वह उस के साथ नहीं सोयेगी। वह किसी और को चाहती है और उसी के साथ विवाह करना चाहती थी। लेकिन उस के परिवार वालों ने उसकी शादी देवाशीष के साथ जबरदस्ती करवा दी है। वह उसे नहीं चाहती है। देवाशीष यह बात सुन कर अंदर तक हील गया। लेकिन उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें?

उस ने दीपा को यह राय दी कि वह उस से तलाक ले ले और अपने प्रेमी से शादी कर ले। दीपा इस बात के लिये तैयार नहीं हुई, उस ने बताया कि उस के परिवार वाले ऐसा नहीं होने देगे। वह बहुत परंपरावादी है ऐसी कोई बात होने पर उस के दादा जी अपने प्राण त्याग देगें। देवाशीष ने उसे सुझाया कि वह अपने मायके चली जाये तो वह इस के लिये भी तैयार नहीं थी।

उसे पता था कि उस का परिवार उसे फिर से वापस यही भेज देगा। अंत में यह निर्णय हुआ कि वह और देवाशीष दोनों अलग-अलग कमरों में रहेंगे। केवल देवाशीष अपने नौकर को दिखाने के लिये उस के कमरें का बाथरुम इस्तेमाल करेगा। दीपा इस बात के लिये राजी हो गयी।

शादी के अगले दिन ही देवाशीष अपनी मित्र मंडली में वापस पहुँच गया। उसे वहाँ देख कर उसके सब मित्र हैरान रह गये। जब सब ने इस का कारण पुछा तो वह बोला कि कोई खास बात नहीं है सब कुछ सही है। मित्र उस की बात समझ गये। फिर सब मित्र बातों में डुब गये।

देवाशीष की जिंदगी ऐसे ही गुजरने लगी। लेकिन वह प्रयास कर रहा था कि उसके और दीपा के बीच सब कुछ सही चलता रहे। शुरु में तो दीपा उस के हर प्रयास को रोकने की कोशिश करती थी। एक दिन रात को उसे बहुत बुखार हो गया और उस की तबीयत खराब हो गयी। उस ने जा कर दीपा के कमरे का दरवाजा खटखटाया, दीपा ने उस की आवाज सुन कर दरवाजा खोल दिया। उस ने दीपा को बताया कि उसे बहुत बुखार है और उस की तबीयत खराब हो रही है।

यह सुन कर दीपा ने अपने परिवार के डाक्टर को फोन कर के बुला लिया। डाक्टर ने आ कर दीपा को बताया कि देवाशीष को सर्दी लग गयी है इसी कारण से उसे बुखार आ गया है। वह दवा दे कर चले गये। जाने से पहले वह दीपा को समझा कर गये कि देवाशीष का कैसे ध्यान रखना है। दीपा ने अगले 10 दिन तक उस की बहुत सेवा-शुश्रूषा करी और वह पुरी तरह से सही हो गया।

इस कारण से दीपा और उस के बीच के संबंध सहज हो गये। पहले दीपा उस के साथ कहीं भी बाहर जाने से मना कर देती थी, लेकिन अब वह खुद कह कर देवाशीष के साथ फिल्म देखने जाने लगी। दिन ऐसे ही गुजर रहे थे। लेकिन उन दोनों की जिन्दगी में अभी एक बड़ा तुफान आने वाला था, यह उन दोनों को पता नहीं था।

एक दिन शाम को देवाशीष अपने मित्रों के पास जाने ही वाला था तभी उस के एक मित्र का फोन आया और उसे बाहर मिलने के लिये कहा। देवाशीष उस से मिलने के लिये निकल गया। वह दीपा से आधें घंटे में आने के लिये कह कर गया था। काफी समय बीत गया लेकिन देवाशीष नहीं आया।

दीपा बहुत चिन्ता कर रही थी लेकिन कुछ कर नहीं पा रही थी। उसे देवाशीष के किसी मित्र का फोन नंबर भी पता नही था। काफी रात को किसी अस्पताल से नर्स का फोन आया और उस ने दीपा को बताया कि उस का पति घायल है और अस्पताल में भर्ती है। यह सुन कर दीपा के पैरों के नीचे से धरती निकल गयी और वह बदहवास सी हो कर अस्पताल के लिये चल पड़ी।

वहाँ पहुँच कर उसे पता चला कि उस के पति की पीठ में किसी ने कुछ मार दिया था। इस कारण से वह बेहोश हो गया था। कुछ लोगों ने उसे वहाँ बेहोश पाया तो उसे लेकर अस्पताल आ गये। वहाँ पर आ कर लाने वाले लड़कों में से एक ने उसे पहचान लिया कि यह तो उस का मालिक देवाशीष है।

देवाशीष को जब होश आया तो उस ने घर का फोन नंबर बताया और अस्पताल ने उसे इस बारें में सुचित किया। दीपा अपने पति की देखभाल में लग गयी। पुलिस इस घटना की तहकीकात करने लगी। क्योकि देवाशीष एक उद्योगपति था और उस का कोई दुश्मन नहीं था इसी लिये सब बहुत परेशान थे।

पुलिस की जाँच पड़ताल जब आगे बढ़ी तो उन्हें पता चला कि दीपा ने एक बार अपने घर से भाग कर प्रेमी के पास जाने की कोशिश करी थी, लेकिन वह अपनी इस कोशिश में सफल नहीं हो पायी थी। उसे उस के भाई ने घर के बाहर ही पकड़ लिया था। पुलिस को शक था कि उस के प्रेमी ने ही, हो सकता है देवाशीष की हत्या करने की कोशिश करी हो। दीपा ने उन्हें कुछ खास नहीं बताया। पुलिस दीपा के धनी परिवार के कारण उस से ज्यादा पुछताछ भी नहीं कर सकती थी।

लेकिन पुलिस के जासुसों ने यह पता लगा लिया कि दीपा का इस घटना में कोई हाथ नहीं था। उस के प्रेमी ने ही उस के पति की हत्या की प्लानिग करी थी और इसे सिरियल किलिंग दिखाने के लिये इस के पहले तीन गरीब लोगों की हत्या कर दी थी। हत्यारा देवाशीष की मित्र मंडली का ही एक सदस्य था, जिस ने जबरदस्ती दीपा को अपने जाल में फँसा कर रखा हुआ था। दीपा जो कर रही थी वह उस का बचपना था। पुलिस ने मामला हल करके दीपा को उसके प्रेमी के जाल से मुक्त कर दिया।

15 दिन अस्पताल में रख कर देवाशीष वापस घर आ गया। इस दौरान दीपा हर समय उस की बगल में बैठी रही, जरा भी उस के पास से नही हटी। दीपा ने देवाशीष की बहुत सेवा-शुश्रूषा की। इस घटना के कारण दोनों एक दूसरे के बहुत करीब आ गये। अपने तथाकथित प्रेमी की सच्चाई जानने के कारण दीपा के मन से उस का नाम भी निकल गया। अब वह अपने पति के बहुत निकट आ गई थी।

दोनों जब घर में एकान्त में मिले तो उन्होंने तय किया कि अब वह अपनी सुहाग रात दूबारा मनायेगे क्यों शादी के बाद तो वह दोनों एक-दूसरे से अलग-अलग ही रह रहे थे। अब हमारी कहानी असल में शुरु होती है कि उन की यह सुहाग रात कैसे हुये, इसी का वर्णन इस कहानी का उद्देश्य है। पीछे की सारी कहानी तो आप कह सकते है कि कहानी की भूमिका ही थी।

दोनों ने अपनी सुहागरात की खुशी में अपने घर में एक बहुत बड़ी पार्टी दी। देवाशीष और दीपा के रिस्तेदार और मित्र इस में आये। रात को उन के जाने के बाद जब दोनों एक साथ एक कमरें में सोने गये। कमरें का दरवाजा बंद करने के बाद देवाशीष ने पुछा कि दीपा क्या हाल है तो वह बोली कि मुझे आप के सामने बहुत शर्म आ रही है।

आप ने मेरे बचपने को इतने दिन तक बर्दाश्त किया और किसी को इस बारें में पता भी नहीं चलने दिय। देवाशीष बोला कि तुम मेरी पत्नी हो तुम्हारी कोई भी बुराई मेरी बदनामी है ऐसा मैं कभी नहीं कर सकता। जो तुम कर रही थी वह मुझे समझ में नहीं आ रहा था लेकिन मैं तुम्हें कुछ समय देना चाहता था। मैंने वैसा ही किया और सब कुछ सही हो गया।

तुम ने भी कितनी बार मेरी सेवा-शुश्रूषा करी थी। वह कोई और नहीं कर सकता था केवल पत्नी ही कर सकती थी। जो बीत गया उसे भुल जायो।

अपने पति की बात सुन कर दीपा उस के पाँव छुने झुक गयी। देवाशीष ने उसे उठा कर गले से लगा लिया और उसे आलिंगन में भर लिया। दोनों के शरीर पहली बार एक-दूसरे से मिले थे। उन्हें एक-दूसरे के बदन की खुशबु का भी पता नहीं था। आज पहली बार दोनों ने एक-दूसरे की गंध को अपने नथुनों में महसुस किया। देवाशीष की नाक में दीपा के बदन की मादक सुंगंध समा रही थी ऐसा ही दीपा का हाल था उस की नाक में भी अपने पति की सुंगंध छा रही थी।

दीपा के हाथ भी पति की कमर पर कस गये। देवाशीष ने अपनी पत्नी के माथे पर प्यार से चुम्बन ले लिया। इस से एक तरंग सी दीपा के शरीर में दौड़ गयी। इस के बाद देवाशीष के होंठ दीपा के होंठों पर आ गये और दोनों एक गहरें चुम्बन में रत हो गये। दोनों बहुत प्यासे थे। उन दोनों के बीच दूरी भले ही रही हो लेकिन समय के साथ दोनों के मन में एक दूसरे के लिये लगाव पैदा हो गया था। वही लगाव अब दिखायी देने लगा था।

देवाशीष के आलिंगन में दीपा समा गयी। दोनों चुम्बन में काफी देर तक खड़े रहे। जब दोनों की सांस फुल गयी तो दोनों अलग हो गये। देवाशीष ने दीपा को बेड पर बिठा दिया, और वह खुद भी उस की बगल में बैठ गया। दीपा प्रथम मिलन के कारण शर्म से लजा रही थी। उस का चेहरा इस कारण से नीचे झुका हुआ था। देवाशीष को पता था कि आज उसे ही आगे बढ़ कर सब कुछ करना पड़ेगा। दीपा तो नारीसुलभ लज्जा के कारण उस का साथ पुरी तरह से नहीं दे पायेगी।

वह भी प्रथम मिलन के कारण कुछ घबराया हुआ सा था। लेकिन अब जो होना था सो होना ही था। स्त्री-पुरुष में जो आज तक होता आया है वही अब उन दोनों के मध्य होना था। वह कैसे होगा यह उन दोनों के उपर निर्भर करता है। यह वह दोनों अच्छी तरह से जानते थे।

गहन चुम्बन ने दोनों के शरीर में काम अग्नि प्रज्जवलित कर दी थी। देवाशीष ने दीपा को बेड पर लिटा दिया और उस की बगल में बैठ गया। उस ने दीपा की साड़ी उस के शरीर से अलग कर दी। दीपा ने अपने दोनों हाथों से अपनी छातियाँ ढ़क लिया। देवाशीष ने दीपा के होंठों पर फिर से अपने होंठों की छाप लगानी शुरु कर दी।

उस के होंठ दीपा के होंठों से उतर कर उस की गरदन पर चुम्बन लेने लग गये। दीपा की हालत खराब सी हो रही थी। वह इस के कारण होने वाली उत्तेजना की आदी नहीं थी। गरदन के बाद उसके पति के होंठ दीपा के वक्षस्थल के मध्य चुम्बन लेने लगे। दीपा 18 साल की जवान थी यौवन उस के शरीर में भरा हुआ था। पुष्ट उरोज ब्लाउज में और फुल गये थे।

उरोजों के मध्य चुमने के बाद देवाशीष के होंठ दीपा की कमर पर आ गये। सपाट चिकनी कमर पर चुम कर वह नाभी को चुमने लगा। इस के बाद उस ने पेटीकोट के ऊपर से उस की जाँघों को सहलाया। इस सहलाने से दीपा काँप सी गयी। देवाशीष पेटीकोट के ऊपर से ही दीपा की भरी हुई जाँघों को सहलाता रहा।

इस के कारण उस के शरीर में भी उत्तेजना भरती जा रही थी। उस की जाँघों के मध्य में रक्त का प्रवाह बहुत बढ़ गया था। वह अपने लिंग को तनाव लेता महसुस कर रहा था। दोनों अब ऐसे सफर पर चलने के लिये तैयार थे जिस पर दोनों पहले नहीं चले थे।

देवाशीष ने अपनी पत्नी के ब्लाउज को उतारने की कोशिश की तो पहली बार दीपा ने उसे उतारने नहीं दिया। दूसरी बार जब देवाशीष ने कोशिश की तो दीपा ने विरोध नहीं किया। देवाशीष ने हुक खोल कर ब्लाउज खोल दिया।

ब्लाउज के खुलते ही दूध की तरह धवल पुष्ट उरोज देवाशीष के सामने आ गये। उन को देख कर देवाशीष के होंठ सुख गये। उस ने हाथ से एक उरोज को सहलाया और दूसरे के कुचांग पर अपने होंठ रख दिये। दीपा का शरीर ऐठने लग गया। वह आहहहहहहहहहहहहहह उहहहहहहहहहहहहहहह करने लगी।

कुचाँग फुल कर लम्बा हो गया। फिर दूसरे का नंबर आया वह भी फुल कर लम्बा हो गया। भरे हुये उरोजों को देवाशीष दबाने लगा इस से वह दोनों भी कड़े हो गये। देवाशीष फिर से दीपा के होंठों को चुमने लगा। दोनों के शरीर में वासना की तरंगें दौड़ने लगी।

वासना का तुफान अब दोनों के शरीर में उफान पर था। देवाशीष ने दीपा के पेटीकोट का नाड़ा खोल कर उसे नीचे खिसका दिया। नीचे करने से अब दीपा की हल्कें बालों से ढ़की योनि उभर कर सामने आ गयी। देवाशीष ने अपने हाथ से उस की योनि को सहलाना शुरु कर दिया। उत्तेजना के कारण दीपा की योनि से पानी निकल रहा था।

देवाशीष अपनी पत्नी की जाँघों को सहलाता रहा फिर उन्हें चुमता हुआ उस के पंजों तक पहुँच गया। वहाँ पर दोनों पंजों की उंगलियों को चुम कर फिर से पिड़लियों को चुमता हुआ ऊपर आया और अपनी पत्नी के कुल्हों को चुम कर उस की पीठ पर चुमता हुआ फिर से उस की गरदन पर पहुँच गया।

दीपा ने करवट बदल कर पति के होंठों को चुम लिया। अब दोनों प्यार की रेस में दौड़ने के लिये पुरी तरह से तैयार थे। काम पुरी तरह से उन दोनों के शरीर में जाग गया था।

देवाशीष ने अपने कपड़े उतार कर रख दिया। अब दोनों बिना कपड़ें के थे। दोनों फिर से आलिंगन में बंध गये। कुछ देर तक दोनों एक-दूसरे के शरीर की गर्मी लेते रहे। इस के बाद देवाशीष दीपा की जाँघों में जगह बना कर उन के बीच में बैठ गया। उस का पाँच इंच लंबा लिंग कड़ा हो कर दीपा की योनि को छु रहा था।

देवाशीष ने उसे दीपा की योनि पर दो-तीन बार फिराया और फिर लिंग को दीपा की कसी हुई योनि के मुँह पर लगा कर दबाव डाला। पहली बार में लिंग योनि में नहीं गया। दूसरी बार प्रयास करने पर लिंग का सुपाड़ा योनि में अंदर गया। दीपा की योनि बहुत कसी हुई थी लेकिन वहाँ नमी भी थी।

योनि के अंदर बहुत गर्मी थी। दीपा का दर्द के कारण बुरा हाल था। उसे पता था कि पहली बार में बहुत दर्द होता है। देवाशीष ने फिर से धक्का लगाया तो उस का लिंग योनि में आधा चला गया। दर्द के कारण दीपा ने अपने नीचे के होंठ से उपर का होंठ दबा लिया।

देवाशीष को लग रहा था कि उस का लिंग किसी भट्टी में घुस गया है। लिंग को रुकावट मिल रही थी। देवाशीष ने जोर से धक्का दिया तो लिंग कुछ फाड़ता हूआ योनि में समा गया। दर्द के कारण दीपा सर को इधर-उधर पटक रही थी।

देवाशीष कुछ देर के लिये रुक गया। उस ने झुक कर दीपा को चुमा और फिर से लिंग को अंदर बाहर करना शुरु किया। योनि के कसे होने के कारण उस के लिंग पर भी बहुत घर्षण हो रहा था। लेकिन उत्तेजना के कारण वह रुक नहीं पा रहा था।

उस के कुल्हें जोर-जोर से धक्कें लगाने लग गये। कुछ देर बाद दीपा का दर्द कुछ कम हो गया और वह अपने कुल्हों को उठा कर देवाशीष का साथ देने लग गयी।

अब दोनों रेस में पुरी ताकत से दौड़ने लग गये। यह रेस काफी देर तक चलती रही, फिर दोनों के शरीर में लगी आग चरम पर पहुँच कर बुझ गयी। और दोनों पस्त हो कर एक-दूसरे की बगल में लेट गये। कुछ देर बाद दोनों को होश आया तो दोनों ने एक-दूसरे की तरफ देखा।

दोनों के शरीर के नीचे का हिस्सा गिला था और देवाशीष का लिंग और दीपा की योनि खुन से लाल हो रही थी। बेड की चद्दर भी लाल हो गयी थी। दीपा की योनि से अभी भी लाल पानी निकल रहा था।

कुछ देर तक दोनों अपने प्रथम मिलन का आनंद लेते रहे फिर उठ कर बैठ गये। देवाशीष ने उठ कर दीपा को कपड़ा दिया और योनि साफ करने को कहा। दीपा ने कपड़ा ले कर योनि साफ की और देवाशीष को कपड़ा वापस कर दिया। देवाशीष ने भी अपना शरीर साफ कर लिया।

देवाशीष को कुछ ध्यान आया तो उस ने दीपा से पुछा कि अब दर्द का क्या हाल है तो उस ने कहा कि कम हो गया है। प्रथम संभोग के कारण दोनों थक गये थे इस लिये हाथों में हाथ डालें निंद्रा देवी की अराधना में डुब गये।

सुबह जब देवाशीष की नींद खुली तो उसने देखा कि बगल में दीपा नहीं है। उसे चिन्ता सी हुई, लेकिन वह जब उठ कर बैठा तो उस ने देखा कि दीपा बाथरुम से नहा कर निकल रही है। नहा कर निकली दीपा गीले बालों में बहुत सुन्दर लग रही थी।

पति को अपने आप को घुरता देख दीपा नें शर्मा् कर अपना चेहरा अपने हाथों में छुपा लिया और कमरे से बाहर भाग गयी। देवाशीष के मन में संतोष हुआ कि अब उस के और उसकी पत्नी के बीच कोई दूराव नहीं है। वह भी बिस्तर से उठ कर खड़ा हो गया और बाथरुम के लिये चल दिया।

--- समाप्त ----

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