रद्दी वाला

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“मैं.. पीछे हटने वाली नहीं हूँ.. लाओ दो इसे मेरे मुँह में।” तुरंत अपना मुँह खोलते हुए ज्वाला देवी ने कहा। उसकी बात सुन कर सुदर्शन जी उसके मुँह के पास आ कर बैठ गये और एक हाथ से अपना लंड पकड़ कर उसके खुले मुँह में सुपाड़ा डाल कर वो बोले, “ले.. चूस.. चूस इसे साली लंड खोर हरामी।”

“उइए..उइई.. अहह..उउम्म।” आधा लंड मुँह में भर कर “उउम.. उउहहह” करती हुई वो उसे पीने लगी थी। लंड के चारों तरफ़ झांटों का झुर्मुट उसके मुँह पर घस्से से छोड़ रह था। जिससे एक मज़ेदार गुदगुदी से उठती हुई वो महसूस कर रही थी, चिकना व ताकतवर लंड चूसने में उसे बड़ा ही जायकेदार लग रहा था। जैसे-जैसे वो लंड चूसती जा रही थी, सुपाड़ा मुँह के अंदर और ज्यादा उछल-उछल कर टकरा रहा था। जब लंड की फुंकारें ज्यादा ही बुलंद हो उठीं तो सुदर्शन जी ने स्वयं ही अपना लंड उसके मुँह से निकाल कर कहा, “मैं अब एक पल भी अपने लंड को काबू में नहीं रख सकता ज्वाला.. जल्दी से इसे अपनी चूत में घुस जाने दो।”

“वाह.. मेरे सैंया… मैं भी तो यही चाह रही हूँ। आओ.. मेरी जाँघों के पास बैठो जी...” इस बार अपनी दोनों टाँगें ज्वाला देवी ऊपर उठा कर चुदने को पूर्ण तैयार हो उठी थी। सुदर्शन जी दोनों जाँघों के बीच में बैठे और उन्होंने लपलपाती गीली चूत के फड़फड़ाते छेद पर सुपाड़ा रख कर दबाना शुरु किया। अच्छी तरह लंड जमा कर एक टाँग उन्होंने ज्वाला देवी से अपने कंधे पर रखने को कहा, वो तो थी ही तैयार! फ़ौरन उसने एक टाँग फ़ुर्ती से पति के कंधे पर रख ली। चूत पर लगा लंड उसे मस्त किये जा रहा था। ज्वाला देवी दूसरी टाँग पहले की तरह ही मोड़े हुए थी। सुदर्शन जी ने थोड़ा सा झुक कर अपने हाथ दोनों चूचियों पर रख कर दबाते हुए ज़ोर लगा कर लंड जो अंदर पेलना शुरु किया कि फ़च की आवाज़ के साथ एक साँस में ही पूरा लंड उसकी चूत सटक गयी। मज़े में सुदर्शन जी ने उसकी चूचियां छोड़ ज़ोर से उसकी कोली भर कर धच-धच लंड चूत में पेलते हुए अटैक चालू कर दिये। ज्वाला देवी पति के लंड से चुदते हुए मस्त हुई जा रही थी। मोटा लंड चूत में घुसा बड़ा ही आराम दे रहा था। वो भी पति के दोनों कंधे पकड़ उछल-उछल कर चुद रही थी तथा मज़े में आ कर सिसकती हुई बक-बक कर रही थी, “आहह। ओहह। शाब्बास.. सनम.. रोज़.. चोदा करो.. वाहह तुम्म.. वाकय.. सच्चे... पति.. हो .. चोदो और चोदो.... ज़ोरर... से चोदो... उम्म्म... आ.. मज़ा.. आ.. रहा.. आ.. है जी.. और तेज़्ज़.... अहह..!” सुदर्शन जी मस्तानी चूत को घोटने के लिये जी जान एक किये जा रहे थे। वैसे तो उनका लंड काफ़ी फँस-फँस कर ज्वाला देवी की चूत में घुस रहा था मगर जो मज़ा शादी के पहले साल उन्हे आया था वो इस समय नहीं आ पा रहा था। खैर चूत भी तो अपनी ही चोदने के अलावा कोई चारा ही नहीं था।

उनके चेहरे को देख कर लग रहा था कि वो चूत नहीं मार रहे हैं बल्कि अपना फ़र्ज़ पूरा कर रहे हैं, न जाने उनका मज़ा क्यों गायब होता जा रहा था। वास्तविकता ये थी की शाज़िया की नयी-नयी जवान चूत जिसमें उनका लंड अत्यन्त टाईट जाया करता था उसकी याद उन्हे आ गयी थी। उनकी स्पीड और चोदने के ढंग में फ़र्क महसूस करती हुई ज्वाला देवी चुदते-चुदते ही बोली, “ओह.. ये। ढीले..से.. क्यों.. पड़.. रहे हैं.. आप.. उफ़्फ़.. मैं .. कहती हूँ.... ज़ोर.. से .. करो... आहह .. क्यों.. मज़ा .. खराब.. किये जा रहे हो जीइइइ... उउफ़्फ़..!”

“मेरे बच्चों की मां .. आहह.. ले.. तुझे.. खुश.. करके ही हटुँगा... मेरी.. अच्छी.. रानी.. ले.. और ले.. तेरी... चूत का... मैं अपने... लंड… से .... भोसड़ा... बना.. चुका हूँ… रन्डी.. और.. ले.. बड़ी अच्छी चूत हाय.. आह.. ले.. चोद.. कर रख दूँगा.. तुझे...” सुदर्शन जी बड़े ही करारे धक्के मार-मार कर अन्ट शन्ट बकते जा रहे थे। अचानक ज्वाला देवी बहुत ज़ोर से उनसे लिपट लिपट कर गाँड को उछालते हुए चुदने लगी। सुदर्शन जी भी उसका गाल पीते-पीते तेज़ रफ़्तार से उसे चोदने लगे थे। तभी ज्वाला देवी की चूत ने रज की धारा छोड़नी शुरु कर दी।

“ओह.. पति..देव... मेरे.. सैयां.. ओह.. देखो.. देखो.. हो.. गया..ए.. मैं.. गई...” और झड़ती हुई चूत पर मुश्किल से ८-१० धक्के और पड़े होंगे की सुदर्शन जी का लंड भी ज़ोरदार धार फेंक उठा। उनके लंड से वीर्य निकल-निकल कर ज्वाला देवी की चूत में गिर रहा था। मज़े में आ कर दोनों ने एक दूसरे को जकड़ डाला था। जब दोनों झड़ गये तो उनकी जकड़न खुद ढीली पड़ती चली गयी।

कुछ देर आराम में लिपटे हुए दोनों पड़े रहे और ज़ोर-ज़ोर से हांफ़ते रहे। करीब ५ मिनट बाद सुदर्शन जी, ज्वाला देवी की चूत से लंड निकाल कर उठे और मूतने के लिये बेडरूम से बाहर चले गये। ज्वाला देवी भी उठ कर उनके पीछे-पीछे ही चल दी थी। थोड़ी देर बाद दोनों आ कर बिस्तर पर लेट गये तो सुदर्शन जी बोले, “अब! मुझे नींद आ रही है डिस्टर्ब मत करना।”

“तो क्या आप दोबारा नहीं करेंगे?” भूखी हो कर ज्वाला देवी ने पूछा।

“अब बहुत हो गया… इतना ही काफ़ी है, तुम भी सो जाओ।” उन्होने लेटते हुए कहा। वास्तव में वे अब दोबारा इसलिये चुदाई नहीं करना चाहते थे क्योंकि शाज़िया के लिये भी थोड़ा बहुत मसाला उन्हे लंड में रखना जरूरी था। उनकी बात सुन कर ज्वाला देवी लेट तो गयी परंतु मन ही मन ताव में आ कर अपने आप से ही बोली, “मत चोद साले, कल तेरी ये अमानत रद्दी वाले को न सौंप दूँ तो ज्वाला देवी नाम नहीं मेरा। कल सारी कसर उसी से पूरी कर लुँगी साले।” सुदर्शन जी तो जल्दी ही सो गये थे, मगर ज्वाला देवी काफ़ी देर तक चूत की ज्वाला में सुलगती रही और बड़ी मुश्किल से बहुत देर बाद उसकी आंखें झपकने पर आयी। वह भी नींद के आगोश में डूबती जा रही थी।

***********

अगले दिन ठीक ११ बजे बिरजु की आवाज़ ज्वाला देवी के कानो में पड़ी तो खुशी से उसका चेहरा खिल उठा। भागी-भागी वो बाहर के दरवाजे पर आयी। तब तक बिरजु भी ठीक उसके सामने आ कर बोला, “मेम साहब ! वो बोतल ले आओ, ले लुँगा।”

“सायकल इधर साईड में खड़ी करके अंदर आ जाओ और खुद ही उठा लो।” वो बोली।

“जी आया अभी” बिरजु सायकल बरामदे के बराबर में खड़ी कर ज्वाला देवी के पीछे पीछे आ गया। इस समय वह सोच रहा था की शायद आज भी बीवीजी की चूत के दर्शन हो जायें। मगर दिल पर काबू किये हुए था। ज्वाला देवी आज बहुत लंड मार दिखायी दे रही थी। पति व बेटी के जाते ही वह चुदाई की सारी तैयारी कर चुकी थी। उसे अब किसी का डर न रहा था। वो इस तरह तैयार हुई थी जैसे किसी पार्टी में जा रही हो। गुलाबी साड़ी और हल्के ब्लाऊज़ में उसका बदन और ज्यादा खिल उठा था। साथ ही उसने बहुत सुंदर मेक-अप किया था। हाथों में गुलाबी चुड़ियाँ और पैरों में चाँदी की पायल और सफेद रंग की ऊँची एड़ी की सैण्डल उसकी गुलाबी साड़ी से बहुत मेल खा रहे थे। ब्लाऊज़ के गले में से उसकी चूचियों का काफ़ी भाग झाँकता हुआ बिरजु साफ़ देख रहा था। चूचियाँ भींचने को उसका दिल मचलता जा रहा था। तभी ज्वाला देवी उसे अंदर ला कर दरवाजा बंद करते हुए बोली, “अब दूसरे कमरे में चलो, बोतलें वहीं रखी हैं।”

“जी, जी, मगर आपने दरवाजा क्यों बंद कर दिया?” बिरजु बेचारा हकला सा गया। घर की सजावट और ज्वाला देवी के इस अंदाज़ से वह हड़बड़ा सा गया। वो डरता हुआ वहीं रुक गया और बोला, “देखिये मेम साहब ! बोतलें यहीं ले आइये, मेरी सायकल बाहर खड़ी है।”

“अरे आओ न, तुझे सायकल मैं और दिलवा दूँगी।” बिरजु की बाँह पकड़ कर उसे जबरदस्ती अपने बेडरूम पर खींच लिया ज्वाला देवी ने। इस बार सारी बातें एकाएक वो समझ गया, मगर फिर भी वो कांपते हुए बोला, “देखिये, मैं गरीब आदमी हूँ जी, मुझे यहाँ से जाने दो, मेरे बाबा मुझे घर से निकाल देंगें।”

“अरे घबड़ाता क्यों है, मैं तुझे अपने पास रख लुँगी, आजा तुझे बोतलें दिखाऊँ, आजा ना।” ज्वाला देवी बिस्तर पर लेट कर अपनी बाँहें उसकी तरफ़ बढ़ा कर बड़े ही कामुक अंदाज़ में बोली।

“मैं… मगर.. बोतलें कहाँ है जी..” बिरजु बुरी तरह हड़बड़ा उठा।

“अरे ! लो ये रही बोतलें, अब देखो इसे जी भर कर मेरे जवान राजा।” अपनी साड़ी व पेटिकोट उपर उठा कर सफ़ाचट चूत दिखाती हुई ज्वाला देवी बड़ी बेहयाई से बोली।

वो मुस्कराते हुए बिरजु की मासूमियत पर झूम-झूम जा रही थी। चूत के दिखाते ही बिरजु का लंड हाफ़ पैन्ट में ही खड़ा हो उठा मगर हाथ से उसे दबाने की कोशिश करता हुआ वो बोला, “मेम साहब! बोतलें कहाँ हैं? मैं जाता हूँ, कहीं आप मुझे चक्कर में मत फसा देना।”

“ना.. मेरे .. राजा.. यूँ दिल तोड़ कर मत जाना तुझे मेरी कसम! आजा पट्ठे इसे बोतलें ही समझ ले और जल्दी से अपनी ओट लगा कर इसे ले ले।” चुदने को मचले जा रही थी ज्वाला देवी इस समय। “तू नहा कर आया है न?” वो फिर बोली।

“जी .. जी। हाँ। मगर नहाने से आपका मतलब?” चौंक कर बिरजु बोला।

“बिना नहाये धोये मज़ा नहीं आता राजा इसलिये पूछ रही थी।” ज्वाला देवी बैठ कर उससे बोली।

“तो आप मुझसे गन्दा काम करवाने के लिये इस अकेले कमरे में लाये हो।” तेवर बदलते हुए बिरजु ने कहा।

“हाय मेरे शेर तू इसे गन्दा काम कहता है! इस काम का मज़ा आता ही अकेले में है, क्या तूने कभी किसी की नहीं ली है?” होंठो पर जीभ फ़िरा कर ज्वाला देवी ने उससे कहा और उसका हाथ पकड़ उसे अपने पास खींच लिया। फिर हाफ़ पैन्ट पर से ही उसका लंड मुट्ठी में भींच लिया। बिरजु भी अब ताव में आ गया और उसकी कोली भर कर चूचियों को भींचते हुए गुलाबी गाल पीता-पीता वो बोला, “चोद दूँगा बीवीजी, कम मत समझना। हाय रे कल से ही मैं तो तुम्हारी चूत के लिये मरा जा रहा था।” शिकार को यूँ ताव में आते देख ज्वाला देवी की खुशी का ठिकाना ही न रहा, वो तबियत से बिरजु को गाल पिला रही थी।

आज बिरजु भी नहा धो कर मंजन करके साफ़ सुथरा हो कर आया था। उसकी चुदाई की इच्छा, मदहोश, बदमाश औरत को देख-देख कर जरूरत से ज्यादा भड़क उठी। उसकी जगह अगर कोई भी जवान लंड का मालिक इस समय होता तो वो भी ज्वाला देवी जैसी अल्हड़ व चुदक्कड़ औरत को बिना चोदे मानने वाला नहीं था।

“नाम क्या है रे तेरा?” सिसकते हुए ज्वाला देवी ने पूछा।

“इस समय नाम-वाम मत पूछो बीवीजी! आह आज अपने लंड की सारी आग निकाल लेने दो मुझे। आह.. आजा।” बिरजु लिपट-लिपट कर ज्वाला देवी की चूचियों व गाल की माँ चोदे जा रहा था। उसकी चौड़ी छाती व मजबूत हाथों में कसी हुई ज्वाला देवी भी बेहद सुख अनुभव कर रही थी। जिस बेरहमी से अपने बदन को रगड़वा-रगड़वा कर वह चुदवाना चाह रही थी आज इसी प्रकार का मर्द उसे छप्पर फ़ाड़ कर उसे मुफ़्त में ही मिल गया था। बिरजु की हाफ़ पैन्ट में हाथ डाल कर उसका १८ साल का खूँखार व तगड़ा लंड मुट्ठी में भींच कर ज्वाला देवी अचम्भे से बोली, “हाय। हाय.. ये लंड है.. या घिया.. कद्दु.. उफ़्फ़.. क्यों.. रे.. अब तक कितनी को मज़ा दे चुका है तू अपने इस कद्दु से..”

“हाय.. मेम साहब.. क्या पूछ लिया ... तुमने .. पुच्च.. पुच.. एक बार मौसी की ली थी बस.. वरना अब तक मुट्ठी मार-मार कर अपना पानी निकालता आया हूँ.. हाँ.. मेरी अब उसी मौसी की लड़की पर नज़र जरूर है.. उसे भी दो चार रोज़ के अंदर चोद कर ही रहुँगा। हाय.. तेरी चूत कैसी है.. आह.. इसे तो आज मैं खूब चाटुँगा.. हाय.. आ.. लिपट जा..” बिरजु ने ज्वाला देवी की साड़ी उपर उठा कर उसकी टाँगों में टाँगे फसा कर जाँघों से जाँघें रगड़ने का काम शुरु कर दिया था। अपनी चिकनी व गुदाज़ जाँघों पर बिरजु की बालों वाली खुरदरी व मर्दानी जाँघों के घस्से खा-खा कर ज्वाला देवी की चूत के अंदर जबरदस्त खलबली मच उठी थी। जाँघ से जाँघ टकरवाने में अजीब गुदगुदी व पूरा मज़ा भी उसे आ रहा था। “अब मेम साहब.. ज़रा नंगी हो जाओ तो मैं चुदाई शुरु करूँ।” एक हाथ ज्वाला देवी की भारी गाँड पर रख कर बिरजु बोला।

“वाहह.. रे.. मर्द.. बड़ा गरम है तू तो.. मैं.. तो उस दिन .. रद्दियाँ तुलवाते तुलवाते ही तुझे ताड़.. गयी.. थी.. रे..! आहह। तेरा लंड... बड़ा.. मज़ा.. देगा.. आज आहह.. तू रद्दियों के पैसे वापिस ले जाना.. प्यारे.. आज.. से सारी.. रद्दियाँ.. तुझे.. मुफ़्त दिया... करूँगी मेरी प्यारे आहह चल हट परे ज़रा नंगी हो जाने दे.. आह तू भी पैन्ट उतार मेरे शेर” ज्वाला देवी उसके गाल से गाल रगड़ती हुई बके जा रही थी। अपने बदन को छुड़ा कर ज्वाला देवी पलंग पर सैंडल पहने हुए ही खड़ी हो गयी और बोली, “मेरी साड़ी का पल्लु पकड़ और खींच इसे।” उसका कहना था कि बिरजु ने साड़ी का पल्ला पकड़ उसे खींचना शुरु कर दिया। अब ज्वाला देवी घुमती जा रही थी और बिरजु साड़ी खींचता जा रहा था। यूँ लग रहा था मानो दुर्योधन द्रौपदी का चीर हरण कर रहा हो। कुछ सेकेन्ड बाद साड़ी उसके बदन से पूरी उतर गयी तो बिरजु बोला, “लाओ मैं तुम्हारे पेटिकोट का नाड़ा खोलूँ।”

“परे हटो, पराये मर्दो से कपड़े नहीं उतरवाती, बदमाश कहीं का।” अदा से मुस्कराते हुए अपने आप ही पेटिकोट का नाड़ा खोलते हुए वो बोली। उसकी बात पर बिरजु धीरे से हंसने लगा और अपनी पैन्ट उतारने लगा तो पेटिकोट को पकड़े-पकड़े ही ज्वाला देवी बोली, “क्यों हंसता है तू, सच-सच बता, तुझे मेरी कसम।”

“अब मेम साहब, आपसे छिपाना ही क्या है? बात दरअसल ये है की वैसे तो तुम मुझसे चूत मरवाने जा रही हो और कपड़े उतरवाते हुए यूँ बन रही हो, जैसे कभी लंड के दीदार ही तुमने नहीं किये। कसम तेरी ! हो तुम खेली खायी औरत।” हीरो की तरह गर्दन फ़ैला कर डायलॉग सा बोल रहा था बिरजु। उसका जवाब देते हुए ज्वाला देवी बोली, “अबे चूतिये! अगर खेली खायी नहीं होती तो तुझे पटा कर तेरे सामने चूत खोल कर थोड़े ही पड़ जाती। रही कपड़े उतरवाने की बात तो इसमें एक राज़ है, तू भी सुनना चाहता है तो बोल।” वो पेटिकोट को अपनी टाँगों से अलग करती हुई बोले जा रही थी। पेटिकोट के उतरते ही चूत नंगी हो उठी और बिरजु पैन्ट उतार कर खड़ा लंड पकड़ कर उस पर टूट पड़ा। और उसकी चूत पर ज़ोर-ज़ोर से लंड रख कर वो घस्से मारता हुआ एक चूची को दबा-दबा कर पीने लगा। वो चूत की छटा देख कर आपे से बाहर हो उठा था उसके लंड में तेज़ झटके लगने चालू होने लगे थे। “अरे रे इतनी जल्दी.. मत कर। ओह रे मान जा।”

“बात बहुत करती हो मेमसाब, आहह चोद दूँगा आज ।” पूरी ताकत से उसे जकड़ कर बिरजु उसकी कोली भर कर फिर चूची पीने लगा। शायद चूची पीने में ज्यादा ही लुफ़्त आ रहा था उसे। चूत पर लंड के यूँ घस्से पड़ने से ज्वाला देवी भी गर्मा गयी और उसने लंड हाथ से पकड़ कर चूत के दरवाज़े पर लगा कर कहा, “मार.. लफ़ंगे मार। कर दे सारा अंदर... हाय देखूँ कितनी जान है तेरे में.. आहह खाली बोलता रहता है चोद दूँगा चोद दूँगा। चल चोद मुझे।”

“आहह ये ले हाय फाड़ दूँगा।” पूरी ताकत लगा कर जो बिरजु ने चूत में लंड घुसाना शुरु किया कि ज्वाला देवी की चूत मस्त हो गयी। उसका लंड उसके पति के लंड से किसी भी मायने में कम नहीं था ज्वाला देवी यूँ तड़पने लगी जैसे आज ही उसकी सील तोड़ी जा रही हो। अपनी टाँगों से बिरजु की कमर जकड़ कर वो गाँड बिस्तर पर रगड़ते हुए मचल कर बोली, “हाय उउफ़्फ़ फाड़ डालेगा तू। आह यँऽऽऽ मत कर… तेरा.. तो दो के बराबर है... निकाल साले फ़ट गयी उफ़्फ़ मार दिया।” इस बार तो बिरजु ने हद ही कर डाली थी। अपने पहलवानी बदन की सारी ताकत लगा कर उसने इतना दमदार धक्का मारा था कि फ़च्च्च्च के तेज़ आवाज़ ज्वाला देवी की चूत के मुँह से निकल उठी थी। अपनी बलशाली बाँहों से लचकीले और गुद्देदार जिस्म को भी वो पूर्ण ताकत से भींचे हुए था। गोरे गाल को चूसते हुए बड़ी तेज़ी से जब उसने चूत में लंड पेलना शुरु कर दिया तो एक जबरदस्त मज़े ने ज्वाला देवी को आ घेरा। हैवी लंड से चुदते हुए बिरजु से लिपट-लिपट कर उसकी नंगी कमर सहलाते हुए ज्वाला देवी ज़ोर-ज़ोर से सिसकारियाँ छोड़ने लगी। चूत में फस-फस कर जा रहे लंड ने उसके मज़े में चार चाँद लगा डाले थे। अपनी भारी गाँड को उछालते हुए तथा जाँघों को बिरजु की खुरदुरी खाल से रगड़ते हुए वो तबियत से चुद रही थी। मखमली औरत की चूत में लंड डाल कर बिरजु को अपनी किस्मत का सितारा बुलंद होता हुआ लग रहा था। उँच-नीच, जात-पात, गरीब-अमीर के सारे भेद इस मज़ेदार चुदाई ने खत्म कर डाले थे।

“उफ़्फ़.. मेरा.. गाल नही.. निशान पड़ जायेंगे। काट डाला उफ़.. सिर्फ़ चोद रद्दी वाले... गाल चूसने के लिये हैं.. मर गयी... हरामी बड़े ज़ोर से दाँत गड़ा दिये तूने तो.. उउफ़ चोद.. मन लगा कर.. सच मज़ा आ रहा है मुझे..” बिरजु उसके मचलने को देख कर और ज्यादा भड़क गया, उसने नीचे को मुँह खिसका कर उसकी चूची पर दाँत गड़ाते हुए चुदाई जारी रखी और वो भी बक-बक करने लगा, “क्या चीज़ है तेरी.. बोतलें फोड़ दूँगा। उफ़्फ़्फ़ हाय मैं तो सोच भी नहीं सकता था की तेरी चूत मुझे चोदने को मिलेगी। हाय आज मैं ज़न्नत में आ गया हूँ.. ले.. ले.. पूरा.. डाल दूँगा.. हाय फ़ाड़ दूँगा हाय ले..” बुरी तरह चूत को रौंदने पर उतर आया था बिरजु। लंड के भयानक झटके बड़े मज़े ले-ले कर ज्वाला देवी इस समय झेल रही थी। प्रत्येक धक्के में वो सिसक-सिसक कर बोल रही थी, “हाय सारी कमी पूरी कर ले .. उउम्म अम्म उउफ़्फ़ तुझे चार किलो रद्दी मुफ़्त दूँगी। मेरे राजा.. आह हाय बना दे रद्दी मेरी चूत को तू.. हाय मार डाल और मार उम्म्म... उम्म्म” दोनों की उठका-पटकी, रगड़ा-रगड़ी के कारण बिस्तर पर बिछी चादर की ऐसी तैसी हुई जा रही थी। एक मामूली कबाड़ी का डंडा, अमीर व गद्देदार ज्वाला देवी की हाँडी में फस-फस कर जा रहा था।

चन्द लम्हों के अंदर ही उसकी चूत को चोद कर रख दिया था बिरजु ने। जानदार लंड से चूत का बाजा बजवाने में स्वर्गीय आनंद ज्वाला देवी लूट-लूट कर बेहाल हुई जा रही थी। चूत की आग ने ज्वाला देवी की शर्मो हया, पतिव्रत धर्म सभी बातों से दूर करके चुदाई के मैदान में ला कर खड़ा कर डाला था। लंड का पानी चूत में बरसवाने के लिये वो जी जान की बाज़ी लगाने पर उतर आयी थी। इस समय भूल गयी थी ज्वाला देवी की वो एक जवान लड़की की माँ है, भूल गयी थी कि वो एक इज़्ज़तदार पति की पत्नी भी है। उसे याद था तो सिर्फ़ एक चीज़ का नाम और वो चीज़ थी बिरजु का मोटा ताकतवर और चूत की नस-नस तोड़ देने वाला शानदार लंड। इसी लंड ने उसके रोम-रोम को झंकृत करके रख दिया था। लंड था की झड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था। एकाएक बिरजु ने जो अत्यन्त ज़ोरों से चूत में लंड का आवागमन प्रारम्भ किया तो मारे मस्ती के ज्वाला देवी उठ-उठ कर सिसक उठी। तभी उसकी एक चूची की घुन्डी मुँह में भर कर सुपाड़े तक लंड बाहर खींच जो एक झटके से बिरजु ने धक्का मारा की सीधा हमला बच्चेदानी पर जा कर हुआ। “ऐई ओहह फाड़ डाली ओह उफ़ आह री मरी सी आइई फ़ट्टी वाक्क्क्कई मोटा है। उफ़ फसा आह ऊह मज़ा ज़ोर से और ज़ोर से शाबाश रद्दी वाले।” इस बार बिरजु को ज्वाला देवी पर बहुत गुस्सा आया। अपने आपको रद्दी वाला कहलवाना उसे कुछ ज्यादा ही बुरा लगा था। ज़ोर से उसकी गाँड पर अपने हाथों के पंजे गड़ा कर धक्के मारता हुआ वो भी बड़बड़ाने लगा, “तेरी बहन को चोदूँ, चुदक्कड़ लुगायी आहह .. साली चुदवा रही है मुझसे, खसम की कमी पूरी कर रहा हूँ मैं…आहह और.. आहह साली कह रही है रद्दी वाला, तेरी चूत को रद्दी न बना दूँ, तो कबाड़ी की औलाद नहीं, आह हाय शानदार चूत खा जाऊँगा फाड़ दूँगा ले… ले और चुद आज”

बिरजु के इन खूंख्वार धक्कों ने तो हद ही कर डाली थी। चूत की नस-नस हिला कर रख दी थी लंड की चोटों ने। ज्वाला देवी पसीने में नहा उठी और बहुत ज़ोरों से अपनी गाँड उछाल-उछाल कर तथा बिरजु की कस कर कोली भर कर वो उसे और ज्यादा ज़ोश में लाने के लिये सिसिया उठी, “आहह री ऐसे ही हाँ… हाँ ऐसे ही मेरी चूत फाड़ डालो राज्ज्ज्जा। माफ़ कर दो अब कभी तुम्हे रद्दी वाला नहीं कहुँगी। चोदो ईईईई उउम चोदो..” इस बात को सुन कर बिरजु खुशी से फूल उठा था उसकी ताकत चार गुनी बढ़ा कर लंड में इकट्ठी हो गयी थी। द्रुत गति से चूत का कबाड़ा बनाने पर वो तुल उठा था। उसके हर धक्के पर ज्वाला देवी ज़ोर-ज़ोर से सिसकती हुई गाँड को हिला-हिला कर लंड के मज़े हासिल कर रही थी। मुकाबला ज़ोरो पर ज़ारी था। बुरी तरह बिरजु से चिपटी हुई ज्वाला देवी बराबर बड़बड़ाये जा रही थी, “आहहह ये मारा… मार डाला। वाह और जमके उफ़ हद कर दी ओफ़्फ़ मार डालो मुझे..” और जबरदस्त खुंखार धक्के माराता हुआ बिरजु भी उसके गालों को पीते-पीते सिस्कियाँ भर रहा था, “वाहह मेरी औरत आहह हाय मक्खन चूत है तेरी तो.. ले.. चोद दूँगा.. ले… आहह।” और इसी ताबड़तोड़ चुदाई के बीच दोनों एक दूसरे को जकड़ कर झड़ने लगे थे, ज्वाला देवी लंड का पानी चूत में गिरवा कर बेहद तृप्ती महसूस कर रही थी। बिरजु भी अन्तिम बूँद लंड की निकाल कर उसके उपर पड़ा हुआ कुत्ते की तरह हाँफ़ रहा था। लंड व चूत पोंछ कर दोनों ने जब एक दूसरे की तरफ़ देखा तो फिर उनकी चुदाई की इच्छा भड़क उठी थी, मगर ज्वाला देवी चूत पर काबू करते हुए पेटिकोट पहनते हुए बोली, “जी तो करता है की तूमसे दिन रात चुदवाती रहूँ, मगर मोहल्ले का मामला है, हम दोनों की इसी में भलाई है की अब कपड़े पहन अपना अपना काम सम्भालें।”

“म..मगर। मेम साहब.. मेरा तो फिर खड़ा होता जा रहा है। एक बार और दे दो न हाय।” एक टीस सी उठी थी बिरजु के दिल में, ज्वाला देवी का कपड़े पहनना उसके लंड के अरमानों पर कहार ढा रहा था। एकाएक ज्वाला देवी तैश में आते हुए बोल पड़ी, “अपनी औकात में आ तू अब, चुपचाप कपड़े पहन और खिसक ले यहाँ से वर्ना वो मज़ा चखाऊँगी की मोहल्ले तक को भूल जायेगा, चल उठ जल्दी।” ज्वाला देवी के इस बदलते हुए रूप को देख बिरजु सहम उठा और फ़टाफ़ट फुर्ती से उठ कर वो कपड़े पहनने लगा। एक डर सा उसकी आँखों में साफ़ दिखायी दे रहा था। कपड़े पहन कर वो आहिस्ते से बोला, “कभी-कभी तो दे दिया करोगी मेमसाहब, मैं अब ऐसे ही तड़पता रहुँगा?” बिरजु पर कुछ तरस सा आ गया था इस बार ज्वाला देवी को, उसके लंड के मचलते हुए अरमानों और अपनी चूत की ज्वाला को मद्देनज़र रखते हुए वो मुसकुरा कर बोली, “घबड़ा मत, हफ़्ते दो हफ़्ते में मौका देख कर मैं तुझे बुला लिया करूँगी, जी भर कर चोद लिया करना, अब तो खुश?” वाकई खुशी के मारे बिरजु का दिल बल्लियों उछल पड़ा और चुपचाप बाहर निकल कर अपनी सायकल की तरफ़ बढ़ गया। थोदी देर बाद वो वहाँ से चल पड़ा था। वो यहाँ से जा तो रहा था मगर ज्वाला देवी की मक्खन चूत का ख्याल उसके ज़ेहन से जाने का नाम ही नहीं ले रहा था। वाह री चुदाई, कोई न समझा तेरी खुदाई।

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सुदर्शन जी सरकारी काम से १ हफ़्ते के लिये मेरठ जा रहे थे, ये बात जब ज्वाला देवी को पता चली तो उसकी खुशी का ठिकाना ही न रहा। सबसे ज्यादा खुशी तो उसे इसकी थी कि पति की गैरहाज़िरी में बिरजु का लंबा व जानदार लंड उसे मिलने जा रहा था। जैसे ही सुदर्शन जी जाने के लिये निकले, ज्वाला ने बिरजु को बुलवा भेजा और नहा धो कर उसी दिन की तरह तैयार हुई और बिरजु के आने का इंतज़ार करने लगी। बिरजु के आते ही वो उससे लिपट गयी। उसके कान में धीरे से बोली, “राजा आज रात को मेरे यहीं रुको और मेरी चूत का बाजा जी भर कर बजाना।”

ज्वाला देवी बिरजु को ले कर अपने बेडरूम में घुस गयी और दरवाजा बंद करके उसके लौड़े को सहलाने लगी। लेकिन उस रात गज़ब हो गया, वो हो गया जो नहीं होना चाहिये था, यानि उन दोनों के मध्य हुई सारी चुदाई-लीला को रंजना ने जी भर कर देखा और उसी पर निश्चय किया कि वो भी अब जल्द ही किसी जवान लंड से अपनी चूत का उद्घाटन जरूर करा कर ही रहेगी। हुआ यूँ था की उस दिन भी रंजना हमेशा की तरह रात को अपने कमरे में पढ़ रही थी। रात १० बजे तक तो वो पढ़ती रही और फिर थकान और उब से तंग आ कर कुछ देर हवा खाने और दिमाग हल्का करने के इरादे से अपने कमरे से बाहर आ गयी और बरामदे में चहल कदमी करती हुई टहलने लगी। मगर सर्दी ज्यादा थी इसलिये वो बरामदे में ज्यादा देर तक खड़ी नहीं रह सकी और कुछ देर के बाद अपने कमरे की और लौटने लगी कि मम्मी के कमरे से सोडे की बोतलें खुलने की आवाज़ उसके कानो में पड़ी। बोतलें खुलने की आवाज़ सुन कर वो ठिठकी और सोचने लगी, “इतनी सर्दी में मम्मी सोडे की बोतलों का आखिर कर क्या रही है?”

अजीब सी उत्सुकता उसके मन में पैदा हो उठी और उसने बोतलों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के उद्देश्य से ज्वाला देवी के कमरे की तरफ़ कदम बढ़ा दिये। इस समय ज्वाला देवी के कमरे का दरवाज़ा बंद था इसलिये रंजना कुछ सोचती हुई इधर उधर देखने लगी और तभी एक तरकीब उसके दिमाग में आयी। तरकीब थी पिछला दरवाजा, जी हाँ पिछला दरवाजा। रंजना जानती थी की मम्मी के कमरे में झाँकने के लिये पिछले दरवाजे का की-होल है। वहाँ से वो सुदर्शन जी और ज्वाला देवी के बीच चुदाई- लीला भी एक दो बार देख चुकी थी। रंजना पिछले दरवाजे पर आयी और ज्योंही उसने की-होल से अंदर झांका कि वो बुरी तरह चौंक पड़ी। जो कुछ उसने देखा उस पर कतई विश्वास उसे नहीं हो रहा था। उसने सिर को झटका दे कर फिर अंदर के दृश्य देखने शुरु कर दिये। इस बार तो उसके शरीर के कुँवारे रोंगटे झनझना कर खड़े हो गये, जो कुछ उसने अंदर देखा, उसे देख कर उसकी हालत इतनी खराब हो गयी कि काफ़ी देर तक उसके सोचने समझने की शक्ति गायब सी हो गयी। बड़ी मुश्किल से अपने उपर काबू करके वो सही स्थिती में आ सकी।