रद्दी वाला

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मैं समझ गयी कि वो मेरी चूत को देखने के लिये बेताब था। और इस एहसास ने कि अब वो मेरी चूत को नंगा करके देख लेगा साथ ही शरारत भी करेगा, मैं रोमांच से भर गयी। मगर फिर भी दिखावे के लिये मैं मना करने लगी। वो मेरी जींस को उतार चुकने के बाद मेरी पैंटी को खींचने लगा तो मैं बोली, “छोड़ो न! मुझे शर्म आ रही है।”

“लंड मुँह में लेने में शर्म नहीं आयी और अब मेरा मन बेताब हो गया है तो सिर्फ़ दिखाने में शर्म आ रही है।” वो बोला। उसने खींच कर पैंटी को उतार दिया और मेरी चूत को नंगा कर दिया। चूत ही क्या... अब तो मैं पूरी नंगी थी... बस पैरों में हील वाले सैंडल थे। मेरे बदन में बिजली सी भर गयी। यह एहसास ही मेरे लिये अनोखा था कि उसने मेरी चूत को नंगा कर दिया था। अब वो चूत के साथ शरारत भी करेगा। वो चूत को छूने की कोशिश करने लगा तो मैं उसे जाँघों के बीच छिपाने लगी। वो बोला, “क्यों छुपा रही हो। हाथ ही तो लगाऊँगा। अभी चूमने का मेरा इरादा नहीं है। हाँ अगर प्यारी लगी तो जरूर चूमुँगा।” उसकी बात सुनकार मैं मन ही मन रोमांच से भर गयी। मगर प्रत्यक्ष में बोली, “तुम देख लोगे उसे, मुझे दिखाने में शर्म आ रही है। आँख बंद करके छुओगे तो बोलो।”

“ठीक है ! जैसी तुम्हारी मर्ज़ी। मैं आँख बंद करता हूँ। तुम मेरा हाथ पकड़ कर अपनी चूत पर रख देना।” मैंने हाँ में सिर हिलाया। उसने अपनी आँखें बंद कर ली तो मैं उसका हाथ पकड़ कर बोली, “चोरी छिपे देख मत लेना, ओके, मैं तुम्हारा हाथ अपनी चूत पर रख रही हूँ।” मैंने चूत पर उसका हाथ रख दिया। फिर अपना हाथ हटा लिया। उसके हाथ का स्पर्श चूत पर लगते ही मेरे बदन में सनसनाहट होने लगी। गुदगुदी की वजह से चूत में तनाव बढ़ने लगा। उस पर से जब उसने चूत को छेड़ना शुरु किया तो मेरी हालत और भी खराब हो गयी। वो पूरी चूत पर हाथ फ़ेरने लगा। फिर जैसे ही चूत के अंदर अपनी अंगुली घुसाने की चेष्टा की तो मेरे मुँह से सिसकारी निकल गयी। वो चूत में अंगुली घुसाने के बाद चूत की गहराई नापने लगा। मुझे इतना मज़ा आने लगा कि मैंने चाहते हुए भी उसे नहीं रोका। उसने चूत की काफ़ी गहराई में अँगुली घुसा दी थी।

मैं लगातार सिसकारी ले रही थी। मेरी बाप से चुदी हुई चूत का कोना कोना जलने लगा। तभी उसने एक हाथ मेरी गाँड के नीचे लगाया और कमर को थोड़ा ऊपर करके चूत को चूमना चाहा। उसने अपनी आँख खोल ली थी और होंठों को भी इस प्रकार खोल लिया था जैसे चूत को होंठों के बीच में दबाने का मन हो। मेरी हल्की झाँटों वाली चूत को होंठों के बीच दबा कर जब उसने चूसना शुरु किया तो मैं और भी बुरी तरह छटपटाने लगी। उसने कस कस कर मेरी चूत को चूसा और चन्द ही पलों में चूत को इतना गरम कर डाला कि मैं बर्दाश्त नहीं कर पायी और होंठों से कामुक सिसकारी निकालने लगी। इसके साथ ही मैं कमर को हिला-हिला कर अपनी चूत उसके होंठों पर रगड़ने लगी।

उसने समझ लिया कि उसके द्वारा चूत चूसे जाने से मैं गरम हो रही हूँ। सो उसने और भी तेज़ी से चूसना शुरु किया, साथ ही चूत के सुराख के अंदर जीभ घुसा कर गुदगुदाने लगा। अब तो मेरी हालत और भी खराब होने लगी। मैं ज़ोर से सिसकारी ले कर बोली, “मृदुल यह क्या कर रहे हो। इतने ज़ोर से मेरी चूत को मत चूसो और ये तुम छेद के अंदर गुदगुदी... उई... मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा है। प्लीज़ निकालो जीभ अंदर से, मैं पागल हो जाऊँगी।” मैं उसे निकालने को जरूर कह रही थी मगर एक सच यह भी था कि मुझे बहुत मज़ा आ रहा था। चूत की गुदगुदाहट से मेरा सारा बदन कांप रहा था। उसने तो चूत को छेद-छेद कर इतना गरम कर डाला कि मैं बर्दाश्त नहीं कर पायी। मेरी चूत का भीतरी हिस्सा रस से गील हो गया। उसने कुछ देर तक चूत के अंदर तक के हिस्से को गुदगुदाने के बाद चूत को मुक्त कर दिया। मैं अब एक पल भी रुकने की हालत में नहीं थी। जल्दी से उसके बदन से लिपट गयी और लंड को पकड़ने का प्रयास कर रही थी कि उसे चूत में डाल लूंगी कि उसने मेरी टांगों को पकड़ कर एकदम ऊँचा उठा दिया और नीचे से अपना मोटा लंड मेरी चूत के खुले हुए छेद में घुसाने की कोशिश की।

वैसे तो चूत का दरवाज़ा आम तौर पर बंद होता था। मगर उस वक्त क्योंकि उसने टांगों को ऊपर की ओर उठा दिया था इसलिये छेद पूरी तरह खुल गया था। रस से चूत गीली हो रही थी। जब उसने लंड का सुपाड़ा छेद पर रखा तो ये भी एहसास हुआ कि छेद से और भी रस निकलने लगा। मैं एक पल को तो सिसकिया उठी। जब उसने चूत में लंड घुसाने की बजाये हल्का सा रगड़ा, मैं सिसकारी लेकर बोली, “घुसाओ जल्दी से। देर मत करो प्लीज़।” उसने लंड को चूत के छेद पर अड़ा दिया। मैंने जानबूझ कर अपनी टाँगें थोड़ी बंद कर ली जिससे कि लंड चूत में आसानी से न घुसाने पाये। मेरी हालत तो ऐसी हो चुकी थी कि अगर उसने लंड जल्दी अंदर नहीं किया तो शायाद मैं पागल हो जाऊँ। वो अंदर डालने की कोशिश कर रहा था। मैं बोली, “क्या कर रहे हो जल्दी घुसाओ न अंदर। उफ़ उम्म अब तो मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा है। प्लीज़ जल्दी से अंदर कर दो।”

वो बार-बार लंड को पकड़ कर चूत में डालने की कोशिश करता और बार-बार लंड दूसरी तरफ़ फ़िसल जाता। मैं उससे एक प्रकार का खेल खेल रही थी कि लंड चूत में आसानी से न जाने पाये। वो परेशान हो रहा था और मुझे मजा आ रहा था। मैं सिसकियाने लगी, क्योंकि चूत के भीतरी हिस्से में ज़ोरदार गुदगुदी सी हो रही थी। मैं बार बार उसे अंदर करने के लिये कहे जा रही थी। तभी उसने कहा, “उफ़्फ़ तुम्हारी चूत का सुराख तो इस कदर छोटा है कि लंड अंदर जाने का नाम ही नहीं ले रहा है मैं क्या करूँ?”

“तुम तेज़ झटके से घुसाओ अगर फिर भी अंदर नहीं जाता है तो फ़ाड़ दो मेरी चूत को।” मैं जोश में आ कर बोल बैठी। मेरी बात सुनकार वो भी बहुत जोश में आ गया और उसने ज़ोर का धक्का मारा। एकदम जानलेवा धक्का था, भक से चूत के अंदर पूरा लंड समा गया, इसके साथ ही मेरे मुँह से एक मस्ती की सिसकारी निकल गई। चूत के एकदम बीचो बीच धंसा हुआ उसका लंड खतरनाक लग रहा था। मैं ऐसी एक्टिंग करने लगी जैसे कि पहली बार चुद रही हूँ। “मॉय गॉड! मेरी चूत तो सचमुच फ़ट गयी उफ़्फ़ दर्द सहन नहीं हो रहा है। ओह मृदुल धीरे-धीरे करना, नहीं तो मैं मर जाऊँगी।”

“नहीं यार! मैं तुम्हे मरने थोड़ी ही दूँगा।” वो बोला और लंड को हिलाने लगा तो मुझे ऐसा अनुभव हुआ जैसे चूत के अंदर बवन्डर मच हुआ हो। जब मैंने कहा कि थोड़ी देर रुक जाओ, उसके बाद धक्के माराना तो उसने लंड को जहाँ का तहाँ रोक दिया और हाथ बढ़ा कर मेरी चूची को पकड़ कर दबाने लगा। चूची में कठोरता पूरे शबाब पर आ गयी थी और जब उसने दबाना शुरु किया तो मैं और उत्तेजित हो गई। कारण मुझे चूचियों का दबवाया जाना अच्छा लग रहा था। मेरा तो यह तक दिल कर रहा था कि वो मेरे निपल को मुँह में लेकर चूसटा। इससे मुझे आनंद भी आता और चूत की ओर से ध्यान भी बंटता। मगर टाँग उसके कंधे पर होने से उसका चेहरा मेरे निपल तक पहुँच पाना एक प्रकार से नामुमकिन ही था। तभी वो लंड को भी हिलाने लगा। पहले धीरे-धीरे उसके बाद तेज़ गति से। चूची को भी एक हाथ से मसल रहा था। चूत में लंड की हल्की-हल्की सरसराहट अच्छी लगने लगी तो मुझे आनंद आने लगा। पहले धीरे और उसके बाद उसने धक्कों की गति तेज़ कर दी। एकाएक मृदुल बोला, “तुम्हारी चूत इतनी कमसिन और टाईट है कि क्या कहूँ?”

उसकी बात सुनकार मैं मुसकरा कर रह गयी। मैंने कहा, “मगर फिर भी तो तुमने फ़ाड़ कर लंड घुसा ही दिया।”

“अगर नहीं घुसाता तो मेरे ख्याल से तुम्हारे साथ मैं भी पागल हो जाता।” मैं मुसकरा कर रह गयी। वो तेज़ी से लंड को अंदर बाहर करने लगा था। उसके मुकाबले मुझे ज्यादा मज़ा आ रहा था। कुछ देर में ही उसका लंड मेरी चूत की गहराई को नाप रहा था। उसके बाद भी जब और ठेल कर अंदर घुसाने लगा तो मैं बोली, “और अंदर कहाँ करोगे, अब तो सारा का सारा अंदर कर चुके हो। अब बाकी क्या रह गया है?”

“रंजना जान! जी तो कर रहा है कि बस मैं घुसाता ही जाऊँ।” यह कह कर उसने एक जोरदार थाप लगाई। उसके लंड के ज़ोरदार प्रहार से मैं मस्त हो कर रह गयी थी। ऐसा आनंद आया कि लगा उसके लंड को चूत की पूरी गहरायी में ही रहने दूँ। उसी में मज़ा आयेगा। यह सोच कर मैंने कहा, “हाय। और अंदर। घुसाओ। गहरायी में पहुँचा दो।” मृदुल अब कस कस के धक्के मारने लगा, तो एहसास हुआ कि वाकय जो मज़ा चुदाई में है वो किसी और तरीके से मौज-मस्ती करने में नहीं है। उसका ८ इन्च का लंड अब मेरी चूत की गहराई को पहले से काफ़ी अच्छी तरह नाप रहा था। मैं पूरी तरह मस्त होकर मुँह से सिसकारी निकालने लगी। पता नहीं कैसे मेरे मुँह से एकदम गन्दी-गन्दी बात निकलने लगी थी। जिसके बारे में मैंने पहले कभी सोचा तक नहीं था।

“फाड़ड़... दो मेरी चूत को आहह प...पेलो और तेज़ पेलो टुकड़े टुकड़े कर दो मेरी चूत के।” एकाएक मैं झड़ने के करीब पहुँच गयी तो मैंने मृदुल को और तेज़ गति से धक्के मारने को कह दिया। अब लंड मेरी चूत को पार कर मेरी बच्चेदानी से टकराने लगा था। तभी चूत में ऐसा संकुचन हुआ कि मैंने खुद-ब-खुद उसके लंड को ज़ोर से चूत के बीच में कस लिया। पूरी चूत में ऐसी गुदगुदाहट होने लगी कि मैं बर्दाश्त नहीं कर पायी और मेरे मुँह से ज़ोरदार सिसकारी निकलने लगी। उसने लंड को रोका नहीं और धक्के मारता रहा। मेरी हालत जब कुछ अधिक खराब होने लगी तो मेरी रुलायी छुट निकली। वो झड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था। मेरे रो देने पर उसने लंड को रोक लिया और मुझे मनाने का प्रयास करने लगा। मैं उसके रुक जाने पर खुद ही शाँत हो गयी और धीरे-धीरे मैं अपने बदन को ढीला छोड़ने लगी। कुछ देर तक वो मेरी चूत में ही लंड डाले मेरे ऊपर पड़ा रहा। मैं आराम से कुछ देर तक साँस लेती रही। फिर जब मैंने उसकी ओर ध्यान दिया तो पाया कि उसका मोटा लंड चूत की गहराई में वैसे का वैसा ही खड़ा और अकड़ा हुआ पड़ा था। मुझे नॉर्मल देखकर उसने कहा, “कहो तो अब मैं फिर से धक्के माराने शुरु करूँ।”

“मारो, मैं देखती हूँ कि मैं बर्दाश्त कर पाती हूँ या नहीं।” उसने दोबारा जब धक्के मारने शुरु किये तो मुझे लगा जैसे मेरी चूत में काँटे उग आये हों। मैं उसके धक्के झेल नहीं पायी और उसे मना कर दिया। मेरे बहुत कहने पर उसने लंड बाहर निकालना स्वीकार कर लिया। जब उसने बाहर निकाला तो मैंने राहत की साँस ली। उसने मेरी टांगों को अपने कंधे से उतार दिया और मुझे दूसरी तरफ़ घुमाने लगा तो पहले तो मैं समझ नहीं पायी कि वो करना क्या चाहता है। मगर जब उसने मेरी गाँड को पकड़ कर ऊपर उठाया और उसमें लंड घुसाने के लिये मुझे आगे की ओर झुकाने लगा तो मैं उसका मतलब समझ कर रोमाँच से भर गयी। मैंने खुद ही अपनी गाँड को ऊपर कर लिया और कोशिश की कि गाँड का छेद खुल जाये। उसने लंड को मेरी गाँड के छेद पर रखा और अंदर करने के लिये हल्का सा दबाव ही दिया था कि मैं सिसकी लेकर बोली, “थूक लगा कर घुसाओ।” उसने मेरी गाँड पर थूक चुपड़ दिया और लंड को गाँड पर रखकर अंदर डालने लगा। मैं बड़ी मुशकिल से उसे झेल रही थी। दर्द महसूस हो रहा था। कुछ देर में ही उसने थोड़ा सा लंड अंदर करने में सफ़लता प्राप्त कर ली थी। फिर धीरे-धीरे धक्के मारने लगा, तो लंड मेरी गाँड के अंदर रगड़ खाने लगा ।

तभी उसने अपेक्षाकृत तेज़ गति से लंड को अंदर कर दिया। मैं इस हमले के लिये तैयार नहीं थी, इसलिये आगे की ओर गिरते-गिरते बची। सीट की पुश्त को सख्ती से पकड़ लिया था मैंने। अगर नहीं पकड़ती तो जरूर ही गिर जाती। मगर इस झटके का एक फ़ायादा यह हुआ कि लंड आधा के करीब मेरी गाँड में धंस गया था। मेरे मुँह से दर्द भरी सिसकारियां निकलने लगीं, “उफ़... आहह... मर गयी। फ़ट गयी मेरी गाँड। हाय ओह।” उसने अपना लंड जहाँ का तहाँ रोक कर धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरु किये। मुझे अभी आनंद आना शुरु ही हुआ था कि तभी वो तेज़-तेज़ झटके मारता हुआ काँपने लगा। लंड का सुपाड़ा मेरी गाँड में फूल और पिचक रहा था।

“आहह मेरी जान मज़ा आ..आया... आईई” कहता हुआ वो मेरी गाँड में ही झड़ गया। मैंने महसूस किया कि मेरी गाँड में उसका गाढ़ा और गरम वीर्य टपक रहा था। उसने मेरी पीठ को कुछ देर तक चूमा और अपने लंड को झटके देता रहा। उसके बाद पूरी तरह शाँत हो गया। मैं पूरी तरह गाँड मरवाने का आनंद भी नहीं ले पायी थी। एक प्रकार से मुझे आनंद आना शुरु ही हुआ था। उसने लंड निकाल लिया। मैं कपड़े पहनते हुए बोली, “तुम बहुत बदमाश हो। शादी से पहले ही सब कुछ कर डाला।” वो मुसकराने लगा। बोला, “क्या करता, तुम्हारी कमसिन जवानी को देख कर दिल पर काबू रखना मुश्किल हो रहा था। कईं दिनों से चोदने का मन था, आज अच्छा मौका था तो छोड़ने का मन नहीं हुआ। वैसे तुम इमानदारी से बताओ कि तुम्हे मज़ा आया या नहीं?” उसकी बात सुनकार मैं चुप हो गयी और चुपचाप अपने कपड़े पहनती रही। मैं मुसकरा भी रही थी। वो मेरे बदन से लिपट कर बोला, “बोलो न! मज़ा आया?”

“हाँ” मैंने हौले से कह दिया।

“लेकिन रंजना डार्लिंग मेरा तो अभी पूर मन नहीं भरा है। दिल करता है कि इस सुनसान जगह पर हम दोनों पूरी रात यूँ ही गुजार दें।”

“दोनों तरफ़ का बाजा बजा चुके हो फिर भी मन नहीं भरा तुम्हारा?”

“नहीं ! बल्कि अब तो और ज्यादा मन बेचैन हो गया है। पहले तो मैंने इसका स्वाद नहीं लिया था, इसलिये मालूम नहीं था कि चूत और गाँड चोदने में कैसा मज़ा आता है। एक बार चोदने के बाद और चोदने का मन कर रहा है। और मुझे यकीन है कि तुम्हारा भी मन कर रहा होगा।”

“नहीं मेरा मन नहीं कर रहा है”

“तुम झूठ बोल रही हो। दिल पर हाथ रख कर कहो।”

मैंने दिल की झूठी कसम नहीं खायी। सच कह दिया कि वाकय मेरा मन नहीं भरा है। मेरी बात सुनने के बाद वो और भी ज़िद करने लगा। कहने लगा कि “प्लीज़ मान जाओ न! बड़ा मज़ा आयेगा। सारी रात रंगीन हो जायेगी।”

मैंने कहा, “नहीं मृदुल आज नहीं। फिर कभी पूरी रात रंगीन करेंगे। लेकिन यह काम अकेले सम्भव नहीं, कुछ साथियों की भी मदद लेनी होगी। अभी तो हमें घर जाना चाहिये।”

एकाएक उसने मेरे हाथ में अपना लंड पकड़ा दिया और बोला, “घर के बारे में नहीं, इसके बारे में सोचो। यह तुम्हारी चूत और गाँड का दिवाना है। और तुम्हारी चूत माराने को उतावला हो रहा है।” यह कहते हुये उसने मुझे लंड पकड़ा दिया। उसके लंड को पकड़ने के बाद मेरा मन फिर उसके लंड की ओर मुड़ने लगा। उसे मैं सहलाने लगी। उसके लंड को जैसे ही मैंने हाथ में लिया था, उसमें उत्तेजना आने लगी। वो बोला, “देखो फिर खड़ा हो रहा है। अगर मन कर रहा है तो बताओ चलते-चलते एक बार और चुदाई का मज़ा ले लिया जाये।” यह कहते हुए उसने लंड को आगे बढ़ कर चूत से सटा दिया। उस वक्त तक मैंने जींस और पैंटी नहीं पहनी थी। वो चूत पर लंड को रगड़ने लगा। उसके रगड़ने से मेरी चूत पानी छोड़ने लगी। मेरे मन में चुदाई का विचार आने लगा था। मगर मैंने अपनी भावनाओं पर काबू पाने का प्रयास किया। उसने मेरी चूत में लंड घुसाने के लिये हल्का सा धक्का मारा। मगर लंड एक ओर फ़िसल गया। मैंने जल्दी से लंड को दोनों हाथों से पकड़ लिया, और बोली, “चूत में मत डालो। या तो इसे ठंडा कर लो या फिर मैं किसी और तरीके से इसे ठंडा कर देती हूँ।”

“तुम किसी और तरीके से ठंडा कर दो। क्योंकि ये खुद तो ठंडा होने वाल नहीं है।” मैं उसके लंड को पकड़ कर दो पल सोचती रही फिर उस पर तेज़ी से हाथ फ़िराने लगी। वो बोला, “क्या कर रही हो?”

“मैंने एक सहेली से सुना है कि लड़के लोग इस तरह झटका देकर मूठ मारते हैं और झड़ जाते हैं।”

वो मेरी बात सुनकार मुसकरा कर बोला, “ऐसे मज़ा तो लिया जाता है मगर तब, जब कोइ प्रेमिका न हो। जब तुम मेरे पास हो तो मुझे मूठ मारने की क्या जरूरत है?”

“समझो कि मैं नहीं हूँ?”

“ये कैसे समझ लूँ। तुम तो मेरी बाँहों में हो।” कह कर वो मुझे बांहों में लेने लगा। मैंने मना किया तो उसने छोड़ दिया। वो बोला, “कुछ भी करो। अगर चूत में नहीं तो गाँड में।” कह कर वो मुसकराने लगा। मैं इठला कर बोली, “धत्त।” “तो फिर मुँह से चूस कर मुझे झाड़ दो।” मैं “नहीं-नहीं” करने लगी।

आखिर में मैंने गाँड मराना पसन्द किया। फिर मैं घोड़ी बनकार गाँड उसकी तरफ़ कर घूम गयी। उसने मेरी गाँड पर थोड़ा सा थूक लगाया और अपने लंड पर भी थोड़ा सा थूक चुपड़ा और लंड को गाँड के छेद पर टिका कर एक ज़ोरदार धक्का मारा और अपना आधा लंड मेरी गाँड में घुसा दिया। मेरे मुँह से कराह निकल गयी, “आइई मम्मीई मार दिया फ़ाड़ दी। बचा लो मुझे मेरी गाँड ऊफ़ उउम बहुत दर्द कर रहा है।” उसने दो तीन झटको में ही अपना लंड मेरी गाँड के आखिरी कोने तक पहुँचा दिया। ऐसा लगा जैसे उसका लंड मेरी अंतड़ियों को चीर डाल रहा हो। मैंने गाँड में लंड डलवाना इसलिये पसन्द किया था, कि पिछली बार मैं गाँड मरवाने का पूरा आनंद नहीं ले पायी थी और मेरा मन मचलता ही रह गया था, वो झड़ जो गया था। अब मैं इसका भी मज़ा लूंगी ये सोच कर मैं उसका साथ देने लगी। गाँड को पीछे की ओर धकेलने लगी। वो काफ़ी देर तक तेज़ तेज़ धक्के मारता हुआ मुझे आनन्दित करता रहा। मैं खुद ही अपनी २ अंगुलियां चूत में डाल कर अंदर बाहर करने लगी। एक तो गाँड में लंड का अंदर बाहर होना और दूसरा मेरा अंगुलियों से अपनी चूत को कुचलना; दो तरफ़ा आनंद से मैं जल्द ही झड़ने लगी और झड़ते हुए बड़बदने लगी, “आह मृदुल मेरे यार मज़ा आ गया चोदो राजा ऐसे ही चोदो मुझे। मेरी गाँड का बाजा बजा दो। हाय कितना मज़ा आ रहा है।” कहते हुए मैं झड़ने लगी, वो भी ३-४ तेज़ धक्के मारता हुआ बड़बड़ाता हुआ झड़ने लगा, “आहह ले मेरी रानी आज तो फ़ाड़ दूँगा तेरी गाँड, क्या मलाई है तेरी गाँड में... आह लंड कैसे कस कस कर जा रहा है.. म्म्म” कहता हुआ वो मेरी पीठ पर ही गिर पड़ा और हांफ़ने लगा। थोड़ी देर ऐसे ही पड़े रहने के बाद, हम दोनों ने अपने अपने कपड़े पहने। तभी मृदुल ने पूछा, “रंजना तुम ने कहा था कि कुछ साथियों की मदद लेनी होगी, उस समय मैं कुछ समझा नहीं।”

मैंने कहा, “देखो मृदुल तुम एक लड़के हो। घर से रात भर बाहर रहने का अपने घर वालों से सौ बहाने बना सकते हो। पर मैं एक लड़की हूँ और मेरे लिये ऐसा सम्भव नहीं।” अब मैंने मृदुल का मन टटोलने का निश्चय किया। “मृदुल आज तो तुमने जवानी का ऐसा मजा चखाया कि अब तो मैं तुम्हारी दिवानी हो गई हूँ। मैं तो ऐसा मजा रात भर खुल के चखने के लिये कुछ भी कर सकती हूँ। बोलो तुम ऐसा कर सकते हो?” मृदुल मेरे से भी ज्यादा इस मजे को लेने के लिये पागल था, फ़ौरन बोला, “अरे तुम बन्दोबस्त तो करो। जिन साथियों की मदद लेनी है लो। तुम कहोगी तो उन से गाँड भी मरवा लुँगा।”

उसकी बात सुनते ही मुझे बरबस हँसी आ गई। मैंने कहा, “देखो आज तुमने मेरी गाँड का बाजा बजाया है तो इसके लिये तुम्हें गाँड तो मरवानी पड़ेगी, फिर पीछे मत हट जाना।” मेरी बात सुन के मृदुल ओर व्याकुल हो गया और बोला। “रंजना! अभी तो तुम्हारी माँ भी घर पर नहीं है क्यों न मुझे घर ले चलो और अपने कमरे में छुपा लो।” मुझे अचानक पापा की कही बात याद आ गई कि क्यों न हम सब मिलके इस खेल का मजा लूटें। फिर भी मैंने मृदुल से कहा, “देखो मृदुल तुम अब मेरे सब कुछ हो। घर पर पापा से बच के तुम रात मेरे साथ नहीं गुजार सकते। पर मैं अपने पापा को इसके लिये भी राजी कर सकती हूँ।” मेरी बात सुन के मृदुल हक्का बक्का सा मेरे मुँह की तरफ़ देखने लगा। “देखो हमारा परिवार बहुत खुला हुआ है और हमारे घर के बंद कमरों में बहुत कुछ होता रहाता है। तुम यदि मुझे हमेशा के लिये अपनी बनाना चाहते हो तो तुम्हें भी हमारे परिवार का एक हिस्सा बनना होगा।” मेरी बात सुन के मृदुल पहले से भी ज्यादा असमंजस की स्थिति में आ गया। तभी मैंने चुटकी ली, “अभी तो कह रहे थे कि मेरे लिये तुम्हें अपनी गाँड मरवानी भी मँजूर है। अब क्या देख रहे हो। आज रात मेरे घर आ जाओ। साथ ही खाना पीना करेंगे और तुम्हारा पापा से परिचय भी करवा दूँगी। फिर पापा की मर्जी... हमें रात भर साथ रहने दें या न दें।”

मेरी बात सुनते ही मृदुल का चेहरा कमल सा खिल उठा। मैंने जैसे उसके मन की बात कह दी हो। अब मृदुल की बारी थी। “तो यह कहो न कि मुझे तेरे बाप से गाँड मरवानी होगी।” मैंने उसके गाल को चूमते हुये कहा। “अरे नहीं यार। देखो मैं अभी पापा से मोबाइल पर बात करती हूँ और सारे इन्तज़ाम हो जायेंगे।”

“सारे इन्तज़ाम से तुम्हारा क्या मतलब?”

“मतलब खाने पीने से है।” मैंने मुसकरा कर कहा। मैंने कार से ही पापा से मोबाइल पर बात की और कहा कि आज मेरा दोस्त खाने पर घर आने वाला है। पापा ने बताया कि वे शाज़िया को ले कर सारा इन्तज़ाम करके घर जल्द पहुँच जायेंगे। मैंने मृदुल को यह बात बता दी। तब मृदुल ने कहा कि, “यार रंजना तुम तो बड़ी छुपी रुस्तम निकलीं। मैं तो अभी से हवा में उड़ने लगा हूँ। पर एक बात तो बताओ... तुम्हारे पापा का मिजाज कैसा है। मैं तो पहली बार उनसे मिलूँगा। मेरा तो अभी से दिल धड़कने लगा है।” तब मैंने हँस कर कहा, “अरे मेरे पापा बहुत ही खुले दिमाग के और फ्रेंक है। मेरे लिये तो वैसे ही हैं जैसे तुम मेरे लिये हो।” मेरी इस द्विअर्थी बात को मृदुल ठीक से नहीं समझ सका पर उसके चेहरे पर तसल्ली के भाव आगये। फिर मेरे मन में ख्याल आया कि अभी तो पापा के घर पहुँचने में काफी देर है... क्यों न दोनों सज-धज के एक साथ घर पहुँच के पापा को सरप्राइज़ दें। मैंने मन की बात मृदुल को बताई तो उसने मोबाइल से अपने घर में खबर दे दी कि आज रात वह अपने दोस्त के घर रहेग। वहाँ से हम कार ड्राईव करके शहर के सबसे शानदार ब्यूटी पार्लर में पहुँचे। ब्यूटी पार्लर से फ़ारिग होते होते रात के ९ बज चुके थे। ब्यूटी पार्लर से निकल के मैंने कार अपने घर की तरफ़ मोड़ दी।

घर पर पापा ने ही दरवाजा खोला। पापा हम दोनों को लेके ड्राइंग रूम में आ गये। वहाँ शाज़िया पहले से ही बैठी थी। पापा ने कहा, “हम तुम दोनों की ही राह देख रहे थे, वह भी बड़ी बेचैनी से।” उसके बाद मैंने मृदुल का परिचय पापा से करवाया। मैं देख रही थी कि पापा गहरी निगाहों से मृदुल की ओर देखे जा रहे थे। पापा के चेहरे को देख कर लग रहा था कि वो मृदुल से मिलके बहुत खुश हैं। फिर मैंने मृदुल का परिचय शाज़िया से करवाया। मृदुल शाज़िया को एक टक देखे जा रहा था। साफ़ ज़ाहिर हो रहा था कि शाज़िया उसे बहुत पसन्द आ रही है। एकाएक मैं बोली, “मृदुल शाज़िया मेरी भी बहुत अच्छी दोस्त है और पापा की तो खासम खास है।” तभी पापा ने कहा, “यार, रंजना तुम्हारी पसन्द लाजबाब है। तुम दोनों ने एक दूसरे को पसन्द कर लिया है तो फिर तुम दोनों दूर दूर क्यों खड़े हो। साथ बैठो, इंजॉय करो।” पापा की बात सुन के मैं मृदुल के साथ एक सोफ़े पर बैठ गई और दूसरे सोफ़े पर पापा शाज़िया के साथ बैठ गये।

करीब आधे घन्टे तक हम चारों सोफ़े पर बैठे हुये बातें करते रहे। इस दौरान मृदुल पापा और शाज़िया से बहुत खुल गया। मृदुल पापा के खुलेपन से बहुत प्रभावित था और बार बार पापा की प्रसंशा कर रहा था। फिर हम सबने खाने पीने का प्लान बनाया। पापा ने पूरी तैयारी कर रखी थी। मैं और शाज़िया मिल के डायनिंग टेबल पर खाना सजाने लगे। सारा सामान मौजूद था। मैंने जिस दिन जिन्दगी में पहली बार शराब चखी थी उसी दिन अपने पापा से चुद गई थी और आज फिर मुझे वही व्हिस्की पेश की जा रही थी। मुझे आश्चर्य हुआ कि मृदुल मंझे हुये शराबी की तरह पापा और शाज़िया का साथ दे रहा था। खाना पीना समाप्त होने के बाद पापा हम सब को लेके अपने आलिशान रूम में आ गये। पापा ने मौन भंग किया। “भई अब हम चारों पक्के दोस्त हैं और दोस्ती में किसी का भी कुछ किसी से छुपा हुआ नहीं होना चाहिये। ज़िन्दगी इंजॉय करने के लिये है और अपने अपने तरीके से सब खुल के इंजॉय करो।” मृदुल को शराब पूरी चढ़ गई थी और झूमते हुए बोला, “हाँ पापा ठीक कहते हैं।” पापा ने मृदुल से कहा, “भइ हमें तुम्हारी और रंजना की जोड़ी बहुत पसन्द आई। अभी तक कुछ किया या नहीं, या बिल्कुल कोरे हो।” मृदुल हंसते हुये बोला, “सर आपकी और शाज़िया जी की जोड़ी भी क्या कम है।” पापा ने नहले पर दहला मारा, “पर हम तो कोरे नहीं है।” मृदुल भी नशे की झौंक में बोल पड़ा, “कोरे तो हम भी नहीं हैं।”

मृदुल की बात सुनते ही पापा ने मेरी आँखों में आँखें डाल के देखा। “पापा वो सब आज ही हुआ है। इसका जी नहीं भरा तो मुझे आपको फोन करना पड़ा।”

“हूँ तो तुम दोनों पूरा मजा लूट के आये हो। खैर अब क्या इरादा है अकेले-अकेले या दोस्ती में मिल बाँट के?” पापा ने जब मृदुल की निगाहों में झांका तो मृदुल मुझसे बोला, “क्यों रन्जू डार्लिंग क्या इरादा है।” अब मैं भी रंग में आ गई थी और बोली, “मैंने तो तुम्हें पहले ही कहा था कि हमारे यहाँ सब चलता है। देखना चाहते हो तो देखो।” यह कहते हुए मैंने शाज़िया को पापा की ओर धकेल दिया। पापा ने जल्दी ही उसे बाँहों में ले लिया। मेरी ओर मृदुल की झिझक दूर करने के लिये शाज़िया पापा से लिपट गयी और उनके होंठों को चूमने लगी। फिर पापा शाज़िया को गोद में ले सोफ़े पर बैठ गये और बोले, “देखो हम तो अपनी जोड़ीदार को अपनी गोद में खिलाते हैं। अब तुम लोगों को भी ज़िन्दगी का लुत्फ़ लेना है तो खुल के लो। इस खेल का असली मजा खुल के खेलने में ही आता है।” मृदुल पहले ही शराब के नशे में पागल था और पापा का खुला निमंत्रण पाके वो मुझे भी खींच के अपनी गोद में बिठा लिया और मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिये। मृदुल मेरी चूची दबाने लगा तो पापा ने भी शाज़िया के मम्मो पर हाथ रख दिया और उसकी चूचियों को सहलाने लगे। मैं शाज़िया की ओर देखकर मुसकराई। शाज़िया भी मुसकरा दी और फिर पापा के बदन से लिपट कर उन्हें चूमने लगी। फिर शाज़िया मेरी ओर देख के, सोफ़े के नीचे पापा के कदमों में बैठ गई और पापा की पैंट उतार दी। फिर उसने पापा का अंडरवीयर भी उनकी टांगों से निकाल दिया। फिर उसने झुक कर पापा का लंड दोनों हाथों में पकड़ा और सुपाड़े को चाटने लगी।