रद्दी वाला

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पापा के यूँ जानवरों की तरह पेश आने से रंजना की दर्द से जान तो निकलने को हो ही रही थी मगर एक लाभ उसे जरूर दिखायी दिया, यानि लंड अंदर तक उसकी चूत में घुस गया था। वो तो चुदवाने से पहले यही चाहती थी कि कब लंड पूरा घुसे और वो मम्मी की तरह मज़ा लूटे। मगर मज़ा अभी उसे नाम मात्र भी महसूस नहीं हो रहा था।

सहसा ही सुदर्शन कुछ देर के लिये शांत हो कर धक्के मारना रोक उसके उपर लेट गया और उसे जोरों से अपनी बाँहों में भींच कर और तड़ातड़ उसके मुँह पर चुम्मी काट काट कर मुँह से भाप सी छोड़ता हुआ बोला, “आह मज़ा आ गया आज, एक दम कुँवारी चूत है तुम्हारी। अपने पापा को तुमने इतना अच्छा तोहफ़ा दिया है। रंजना मैं आज से तुम्हारा हो गया।” तने हुए मम्मों को भी बड़े प्यार से वो सहलाता जा रहा था। वैसे अभी भी रंजना को चूत में बहुत दर्द होता हुआ जान पड़ रहा था मगर पापा के यूँ हल्के पड़ने से दर्द की मात्रा में कुछ मामूली सा फ़र्क तो पड़ ही रहा था और जैसे ही पापा की चुम्मी काटने, चूचियाँ मसलने और उन्हे सहलाने की क्रिया तेज़ होती गयी वैसे ही रंजना आनंद के सागर में उतरती हुई महसूस करने लगी। अब आहिस्ता आहिस्ता वो दर्द को भूल कर चुम्मी और चूची मसलायी की क्रियाओं में जबर्दस्त आनंद लूटना प्रारम्भ कर चुकी थी। सारा दर्द उसे उड़न छू होता हुआ लगने लगा था। सुदर्शन ने जब उसके चेहरे पर मस्ती के चिन्ह देखे तो वो फिर धीरे-धीरे चूत में लंड घुसेड़ता हुआ हल्के-हल्के घस्से मारने पर उतर आया। अब वो रंजना के दर्द पर ध्यान रखते हुए बड़े ही आराम से उसे चोदने में लग गया। उसके कुँवारे मम्मो के तो जैसे वो पीछे ही पड़ गया था। बड़ी बेदर्दी से उन्हे चाट-चाट कर कभी वो उन पर चुम्मी काटता तो कभी चूची का अंगूर जैसा निपल वो होंठों में ले कर चूसने लगता। चूची चूसते-चूसते जब वो हाँफ़ने लगता तो उन्हे दोनों हाथों में भर कर बड़ी बेदर्दी से मसलने लगता था। निश्चय ही चूचियों के चूसने मसलने की हरकतों से रंजना को ज्यादा ही आनंद प्राप्त हो रहा था। उस बेचारी ने तो कभी सोचा भी न था कि इन दो मम्मों में आनंद का इतना बड़ा सागर छिपा होगा। इस प्रथम चुदाई में जबकि उसे ज्यादा ही कष्ट हो रहा था और वो बड़ी मुश्किल से अपने दर्द को झेल रही थी मगर फिर भी इस कष्ट के बावजूद एक ऐसा आनंद और मस्ती उसके अंदर फ़ूट रही थी कि वो अपने प्यारे पापा को पूरा का पूरा अपने अंदर समेट लेने की कोशिश करने लगी।

क्योंकि पहली चुदाई में कष्ट होता ही है इसलिये इतनी मस्त हो कर भी रंजना अपनी गाँड़ और कमर को तो चलाने में अस्मर्थ थी मगर फिर भी इस चुदाई को ज्यादा से ज्यादा सुखदायक और आनन्ददायक बनाने के लिये अपनी ओर से वो पूरी तरह प्रयत्नशील थी। रंजना ने पापा की कमर को ठीक इस तरह कस कर पकड़ा हुआ था जैसे उस दिन ज्वाला देवी ने चुदते समय बिरजु की कमर को पकड़ रखा था। अपनी तरफ़ से चूत पर कड़े धक्के मरवाने में भी वो पापा को पूरी सहायता किये जा रही थी। इसी कारण पल प्रतिपल धक्के और ज्यादा शक्तिशाली हो उठे थे और सुदर्शन जोर जोर से हाँफ़ते हुए पतली कमर को पकड़ कर जानलेवा धक्के मारता हुआ चूत की दुर्गति करने पर तुल उठा था।

उसके हर धक्के पर रंजना कराह कर ज़ोर से सिसक पड़ती थी और दर्द से बचने के लिये वो अपनी गाँड़ को कुछ उपर खिसकाये जा रही थी। यहाँ तक कि उसका सिर पलंग के सिरहाने से टकराने लगा, मगर इस पर भी वो दर्द से अपना बचाव न कर सकी और अपनी चूत में धक्कों का धमाका गूँजता हुआ महसूस करती रही। हर धक्के के साथ एक नयी मस्ती में रंजना बेहाल हो जाती थी। कुछ समय बाद ही उसकी हालत ऐसी हो गयी कि अपने दर्द को भुला डाला और प्रत्येक दमदार धक्के के साथ ही उसके मुँह से बड़ी अजीब से दबी हुई अस्पष्ट किलकारियाँ खुद-ब-खुद निकलने लगीं।

“ओह पापा अब मजा आ रहा है। मैने आपको कुँवारी चूत का तोहफ़ा दिया तो आप भी तो मुझे ऐसा मजा देकर तोहफ़ा दे रहे हैं। अब देखना मम्मी से इसमें भी कैसा कॉंपीटिशन करती हूँ। ओह पापा बताइये मम्मी की लेने में ज्यादा मजा है या मेरी लेने में?” सुदर्शन रंजना की मस्ती को और ज्यादा बढ़ाने की कोशिश में लग गया। वैसे इस समय की स्तिथी से वो काफ़ी परिचित होता जा रहा था। रंजना की मस्ती की ओट लेने के इरादे से वो चोदते चोदते उससे पूछने लगा, “कहो मेरी जान.. अब क्या हाल है? कैसे लग रहे हैं धक्के.. पहली बार तो दर्द होता ही है। पर मैं तुम्हारे दर्द से पिघल कर तुम्हें इस मजे से वँचित तो नहीं रख सकता था न मेरी जान, मेरी रानी, मेरी प्यारी।” उसके होंठ और गालों को बुरी तरह चूसते हुए, उसे जोरों से भींच कर उपर लेटे लेटे ज़ोरदार धक्के मारता हुआ वो बोल रहा था, बेचारी रंजना भी उसे मस्ती में भींच कर बोझिल स्वर में बोली, “बड़ा मज़ा आ रहा है मेरे प्यारे सा.... पापा, मगर दर्द भी बहुत ज्यादा हो रहा है..” फ़ौरन ही सुदर्शन ने लंड रोक कर कहा, “तो फिर धक्के धीरे धीरे लगाऊँ। तुम्हे तकलीफ़ में मैं नहीं देख सकता। तुम तो बोलते-बोलते रुक जाती हो पर देखो मैं बोलता हूँ मेरी सजनी, मेरी लुगाई।” ये बात वैसे सुदर्शन ने ऊपरी मन से ही कही थी। रंजना भी जानती थी कि वो मज़ाक के मूड में है और तेज़ धक्के मारने से बाज़ नहीं आयेगा, परन्तु फिर भी कहीं वो चूत से लंड न निकाल ले इस डर से वो चीख पड़ी, “नहीं.. नहीं।! ऐसा मत करना ! चाहे मेरी जान ही क्यों न चली जाये, मगर आप धक्कों की रफ़्तार कम नहीं होने देना.. इतना दर्द सह कर तो इसे अपने भीतर लिया है। आहह मारो धक्का आप मेरे दर्द की परवाह मत करो। आप तो अपने मन की करते जाओ। जितनी ज़ोर से भी धक्का लगाना चाहो लगा लो अब तो जब अपनी लुगाई बना ही लिया है तो मत रुको मेरे प्यारे सैंया.. मैं.. इस समय सब कुछ बर्दाश्त कर लूँगी.. अहह आई रिइइ.. पहले तो मेरा इम्तिहान था और अब आपका इम्तिहान है। यह नई लुगाई पुरानी लुगाई को भुला देगी।”

मज़बूरन अपनी गाँड़ को रंजना उछालने पर उतर आयी थी। कुछ तो धक्के पहले से ही जबर्दस्त व ताकतवर उसकी चूत पर पड़ रहे थे और उसके यूँ मस्ती में बड़बड़ाने, गाँड़ उछालने को देख कर तो सुदर्शन ने और भी ज्यादा जोरों के साथ चूत पर हमला बोल दिया। हर धक्का चूत की धज्जियाँ उड़ाये जा रहा था। रंजना धीरे-धीरे कराहती हुई दर्द को झेलते हुए चुदाई के इस महान सुख के लिये सब कुछ सहन कर रही थी। और मस्ती में हल्की आवाज़ में चिल्ला भी रही थी, “आहह मैं मरीइई। पापा कहीं आपने मेरी फाड़ के तो नहीं रख दी न? ज़रा धीरे.. हाय! वाहह! अब ज़रा जोर से.. लगा लो । और लो.. वाहह प्यारे सच बड़ा मज़ा आ रहा है.. आह जोर से मारे जाओ, कर दो कबाड़ा मेरी चूत का।” इस तरह के शब्द और आवाज़ें न चाहते हुए भी रंजना के मुँह से निकल रहीं थीं। वो पागल जैसी हो गयी थी इस समय। वो दोनों ही एक दूसरे को बुरी तरह नोचने खासोटने लगे थे। सारे दर्द को भूल कर अत्यन्त घमासान धक्के चूत पर लगवाने के लिये हर तरह से रंजना कोशिश में लगी हुई थी। दोनों झड़ने के करीब पहुँच कर बड़बड़ाने लगे।

“आह मैं उड़ीई जा रही हूँ राज्जा ये मुझे क्या हो रहा है... मेरी रानी ले और ले फ़ाड़ दूँगा हाय क्या चूत है तेरी आहह ओह” और इस प्रकार द्रुतगति से होती हुई ये चुदाई दोनों के झड़ने पर जा कर समाप्त हुई। चुदाई का पूर्ण मज़ा लूटने के पश्चात दोनों बिस्तर पर पड़ कर हाँफ़ने लगे। थोड़ी देर सुस्ताने के बाद रंजना ने बलिहारी नज़रो से अपने पापा को देखा और तुनतुनाते हुए बोली, “आपने तो तो मेरी जान ही निकाल दी थी, जानते हो कितना दर्द हो रहा था, मगर पापा आपने तो जैसे मुझे मार डालने की कसम ही खा रखी थी।” इतना कह कर जैसे ही रंजना ने अपनी चूत की तरफ़ देखा तो उसकी गाँड़ फ़ट गयी, खून ही खून पूरी चूत के चारों तरफ़ फ़ैला हुआ था, खून देख कर वो रूँवासी हो गयी। चूत फ़ूल कर कुप्पा हो गयी थी। रुँवासे स्वर में बोली, “पापा आपसे कट्टी। अब कभी आपके पास नहीं आऊँगी।” जैसे ही रंजना जाने लगी सुदर्शन ने उसका हाथ पकड़ के अपने पास बिस्तर पर बिठा लिया और समझाया कि उसके पापा ने उसकी सील तोड़ी है इसलिये खून आया है। फिर सुदर्शन ने बड़े प्यार से नीट विलायती शराब से अपनी बेटी की चूत साफ़ की। इसके बाद शराबी अय्याश पापा ने बेटी की चूत की प्याली में कुछ पेग बनाये और शराब और शबाब दोनों का लुफ़्त लिया। अब रंजना पापा से पूरी खुल चुकी थी। उसे अपने पापा को बेटी-चोद गान्डु जैसे नामों से सम्बोधन करने में भी कोई हिचक नहीं होती थी।

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अब आगे की कहानी आप रंजना की जुबान में सुनें।

मम्मी अभी पीहर से १५ दिन बाद आने वाली थी और इधर घर पर मेरे पापा ही मेरे सैंया बन चुके थे तो मुझे अब और किसकी फ़िकर हो सकती थी। अगले दो दिन तो मैं कॉलेज भी नहीं गई। दूसरे ही दिन मैं दोपहर में पापा के ऑफिस में पहुँच गई। पापा ने मेरा परिचय अपनी मस्त जवान प्राइवेट सेक्रेटरी शाज़िया से करवाया। शाज़िया को जब मैंने पहली बार देखा तो एकटक उसे देखती ही रह गई। उँचा छरहारा कद और बला की खूबसूरत। हालांकि शाज़िया और मेरी उम्र में काफ़ी फ़ासला था फिर भी शाज़िया मेरी अच्छी दोस्त बन गई। शाज़िया बहुत ही खुली किस्म की लड़की थी और तीन चार मुलाकातों के बाद ही वह मेरे से सेक्स की बातें भी करने लगी और मैं भी शाज़िया से पूरी तरह खुल गई। लेकिन न तो कभी मैंने अपने और पापा के सम्बंधों का जिक्र किया और न ही कभी शाज़िया ने अपने मुँह से यह कहा कि मेरे पापा उसके साथ जवानी के कैसे-कैसे खेल खेलते हैं।

मेरे पापा के पास दो कारें हैं। कार चलाना तो मैंने एक साल पहले ही सीख लिया था पर मम्मी मुझे ड्राईव करने से मना करती थी। अब कोइ रोक टोक नहीं थी और मैं पापा की कार लेके दो दिन बाद कॉलेज गई। मृदुल के पास एक अच्छी सी बाईक थी। मगर वो बाईक कभी-कभी ही लेकर आता था, जब भी वो बाईक लेकर आता मैं अकसर उसके पीछे बैठ कर उसके साथ घूमने जाती। मृदुल को मैं मन ही मन प्यार करती थी और मृदुल भी मुझसे प्यार करता था, मगर न तो मैंने कभी उससे प्यार का इज़हार किया और न ही उसने। उसके साथ प्यार करने में मुझे कोइ झिझक महसूस नहीं होती थी।

पिछले दो दिनों में मैं अपने पापा से कइ बार क्या चुदी कि मृदुल को देखने का मेरा नज़रिया ही बदल गया। एक बार जब मैं मृदुल को लेकर घर आई थी और उसका परिचय मेरी माँ ज्वाला देवी से करवाया था, तब मृदुल को देख कर जिस तरह मेरी माँ के मुँह से लार टपकी थी आज उसी तरह क्लास में मृदुल को देख कर मैं लार टपका रही थी। आज मृदुल बाईक लेके नहीं आया था। छुट्टी के बाद मैं और मृदुल कार में घूमने निकल पड़े। कार मृदुल चला रहा था और मैं मृदुल के पास बैठी हुई थी। मृदुल सदा की तरह कुछ कम बोलने वाला और शाँत था जबकि मैं और दिनों की अपेक्षा ज्यादा ही चहक रही थी। शायाद यह चूत में लंड जाने का नतीज़ा हो।

हम दोनों में और दिनों की तरह ही प्यार की रोमांटिक बातें हो रही थीं। अचानक ऐसी ही बातें करते हुए मैंने उसके गाल पर चूम लिया। ऐसा मैंने भावुक हो कर नहीं बल्कि उसकी झिझक दूर करने के लिये किया था। मेरे इस चुम्बन ने मृदुल को बिल्कुल बदल दिया। मैं जिसे शर्मिला समझती थी वह तो पूरा चालू निकला। वो इससे पहले प्यार की बात करने में भी बहुत झिझकता था। एक बार उसकी झिझक दूर होने के बाद मुझे लगा कि उसकी झिझक दूर करके मैंने उसकी भड़की हुई आग जगा दी है। क्योंकि उस दिन के बाद से तो उसने मुझसे इतनी शरारत करनी शुरु कर दी कि कभी तो मुझे मज़ा आ जाता था और कभी उस पर गुस्सा। मगर कुल मिलाकर मुझे उसकी शरारत बहुत अच्छी लगती थी। उसकी इन्ही सब बातों के कारण मैं उसे पसन्द करती थी और एक प्रकार से मैंने अपना तन मन उसके नाम कर दिया था।

अगले दो तीन दिन युँ ही गुजर गये। रात में मेरे पापा जानी मुझे जम के चोदते। मैं समय पर कॉलेज जाती। छुट्टी के बाद कुछ देर कार में मृदुल के साथ सैर सपाटे पर जाती। अब मृदुल मेरे लिये कुछ ज्यादा ही बेचैन रहने लगा। मैं उसकी बेचैनी का मजा लेते हुये कुछ समय उसके साथ गुजार पापा के ऑफिस में चली जाती। वहाँ शाज़िया से मेरी बहुत घुल घुल के बातें होने लगी थीं। बातों ही बातों में मैंने शाज़िया से अपने और मृदुल के प्यार का भी जिक्र कर दिया।

अभी तीन दिन पहले की बात थी कि मैं कॉलेज से पापा के ऑफिस में चली गई। पापा ऑफिस में अकेले थे और शाज़िया कहीं दिखाई नहीं पड़ी तो मैंने पापा को छेड़ते हुये पूछा, “क्यों पापा! आज आपकी तितली दिखाई नहीं पड़ रही।” यह सुनते ही पापा बोले, “तो शाज़िया ने तुम्हे सब कुछ बता दिया।” पापा की बात सुनते ही मेरे कान खड़े हो गये। जो शक का कीड़ा शाज़िया से मिलने के बाद मेरे मन में कुलबुला रहा था वह हकीकत था। मैंने पापा के गले में बाँहें डालते हुए कहा, “जब आपने बेटी को नहीं छोड़ा तो उसे कहां छोड़ने वाले थे।” पापा ने हड़बड़ा कर मुझे अलग किया। पापा और शाज़िया जब पापा के रूम में अकेले होते तो उनके बीच क्या चल रहा होगा इस बात का सब ऑफिस वालों को पता था पर एक दिखावे के लिये पऱदा पड़ा हुआ था। पर ऐसा कुछ मेरे और पापा के बीच भी उस ऑफिस में हो सकता है इसकी सोच का भी पापा किसी को मौका नहीं देना चाहते थे। मैं संयत होकर पापा के सामने कुर्सी पर बैठ गई।

तभी पापा ने बताया कि अगले सप्ताह मेरी मम्मी ज्वाल देवी अपने पीहर से वापस आ जायेगी। मैंने भी पापा को बता दिया कि अगर उन्होंने अपनी सेक्रेटरी को फाँस रखा है तो मैंने भी अपने साथ पढ़ने वाले एक लड़के को फाँस रखा है। हालाँकि यह बात मैंने पापा को जलाने के लिये कही थी पर पापा बहुत ही शाँत स्वर में बोले कि भई हमें भी अपने यार से मिलवावो। मैं भी पापा से पूरी खुल चुकी थी ओर बोली, “हाँ उसे तो मैं कल ही घर ले आऊँगी।”

“हूँ तो यह बात है, मम्मी के जाते ही अपने आशिक को घर में लाने की चाहत जोर मार रही है। यदि उसे ले आओगी तो हमारा क्या होगा?” जब पापा का लंड मेरी चूत तक में जा चुका था तो मैं भी पापा से पूरी खुल चुकी थी और पापा के अंदाज़ में ही बोली, “आप अपनी सेक्रेटरी का मजा लिजिये हम अपने यार का।” पापा ने कहा, “क्यों न हम सब साथ-साथ सारा मजा लूटें। तुम कहो तो शाज़िया को भी घर में रात भर रख लेंगे।” पापा की बात सुन के मैं सोच में पड़ गई। मेरे मन में सवाल उठने लगे कि मृदुल क्या सोचेगा। मैं कुछ देर पापा से हंसी मजाक करती रही और ऑफिस से चली आई।

जबसे यह रहास्योदघाटन हुआ कि पापा शाज़िया को भी चोदते हैं, मेरा मन बेचैन हो उठा। जब मैं कॉलेज जाती हूँ, मम्मी तब रद्दीवाले बिरजू से चुदवा सकती है और पापा अपनी सेक्रेटरी को चोद सकते हैं तो मैं भी जहाँ चाहूँ चुदवा सकती हूँ। उसी बेचैनी का नतिजा था कि मैंने मृदुल को ज्यादा लिफ्ट देनी शुरु कर दी। अब तो मैं जवानी का खेल खुल के खेलने के लिये छटपटा उठी।

आज फिर कॉलेज की छुट्टी के बाद मैं और मृदुल अपने रोजाना के सैर सपाटे पर निकले। कार वोही ड्राईव कर रहा था। एकाएक उसने कार का रुख शहर से बाहर जाने वाली सड़क पर कर दिया। फिर उसने कार एक पगडन्डी पर उतार दी। एक सुनसान जगह देखकर उसने कार रोक दी और मेरी ओर देखते हुए बोला, “अच्छी जगह है न! चारों तरफ़ अन्धेरा और पेड़ पौधे हैं। मेरे ख्याल से प्यार करने की इससे अच्छी जगह हो ही नहीं सकती।” यह कहते हुए उसने मेरे होंठों को चूमना चाहा तो मैं उससे दूर हटने लगी। उसने मुझे बाँहों में कस लिया और मेरे होंठों को ज़ोर से अपने होंठों में दबाकर चूसना शुरु कर दिया। मैं जबरन उसके होंठों की गिरफ़्त से आज़ाद हो कर बोली, “छोड़ो, मुझे साँस लेने में तकलीफ़ हो रही है।” उसने मुझे छोड़ तो दिया मगर मेरी चूची पर अपना एक हाथ रख दिया। मैं समझ रही थी कि आज इसका मन पूरी तरह रोमांटिक हो चुका है। मैंने कहा, “मैं तो उस दिन को रो रही हूँ जब मैंने तुम्हारे गाल पर किस करके अपने लिये मुसीबत पैदा कर ली। न मैं तुम्हे किस करती और न तुम इतना खुलते।”

“तुमसे प्यार तो मैं काफ़ी समय से करता था। मगर उस दिन के बाद से मैं यह पूरी तरह जान गया कि तुम भी मुझसे प्यार करती हो। वैसे एक बात कहूँ, तुम हो ही इतनी हसीन कि तुम्हे प्यार किये बिना मेरा मन नहीं मानता है।” वो मेरी चूची को दबाने लगा तो मैं बोली, “उफ़्फ़ क्यों दबा रहे हो इसे? छोड़ो न, मुझे कुछ-कुछ होता है।”

“क्या होता है?” वो और भी ज़ोर से दबाते हुए बोला। मैं क्या बोलती। ये तो मेरे मन की एक भावना थी जिसे शब्दों में कह पाना मेरे लिये मुश्किल था। इसे मैं केवल अनुभव कर रही थी। वो मेरी चूची को बादस्तूर मसलते दबाते हुए बोला, “बोलो न क्या होता है?”

“उफ़्फ़ मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं इस भावन को कैसे व्यक्त करूँ। बस समझ लो कि कुछ हो रहा है।” वो मेरी चूची को पहले की तरह दबाता और मसलता रहा। फिर मेरे होंठों को चूमने लगा। मैं उसके होंठों के चूम्बन से पूरी गरम हो गई। जो मौका हमे संयोग से मिला था उसका फ़ायादा उठाने के लिये मैं भी व्याकुल हो गयी। तभी उसने मेरे कपड़ों को उतारने का उपक्रम किया। होंठ को मुक्त कर दिया था। मैं उसकी ओर देखते हुए मुसकराने लगी। ऐसा मैंने उसका हौंसला बढ़ाने के लिये किया था। ताकि उसे एहसास हो जाये कि उसे मेरा बढ़ावा मिल रहा है। मेरी मुसकरहाट को देखकर उसके चेहरे पर भी मुसकरहाट दिखायी देने लगी। वो आराम से मेरे कपड़े उतारने लगा, पहले उसका हाथ मेरी चूची पर था ही सो वो मेरी चूची को ही नंगा करने लगा। मैं हौले से बोली, “मेरा विचार है कि तुम्हे अपनी भावनाओं पर काबू करना चाहिये। प्यार की ऐसी दीवानगी अच्छी नहीं होती।”

उसने मेरे कुछ कपड़े उतार दिये। फिर मेरी ब्रा खोलते हुए बोला, “तुम्हारी मस्त जवानी को देखकर अगर मैं अपने आप पर काबू पा लूँ तो मेरे लिये ये एक अजूबे के समान होगा।” मैंने मन में सोचा कि अभी तुमने मेरी जवानी को देखा ही कहाँ है। जब देख लोगे तो पता नहीं क्या हाल होगा। मगर मैं केवल मुसकरायी। वो मेरे मम्मे को नंगा कर चुका था। दोनों चूचियों में ऐसा तनाव आ गया था उस वक्त तक कि उनके दोनों निपल अकड़ कर ठोस हो गये थे। और सुई की तरह तन गये थे। वो एक पल देख कर ही इतना उत्तेजित हो गया था कि उसने निपल समेत पूरी चूची को हथेली में समेटा और कस-कस कर दबाने लगा। अब मैं भी उत्तेजित होने लगी थी। उसकी हरकतों से मेरे अरमान भी मचलने लगे थे। मैंने उसके होंठों को चूमने के बाद प्यार से कहा, “छोड़ दो न मुझे मृदुल। तुम दबा रहे हो तो मुझे गुदगुदी हो रही है। पता नहीं मेरी चूचियों में क्या हो रहा है कि दोनों चूचियों में तनाव सा भरता जा रहा है। प्लीज़ छोड़ दो, मत दबाओ।”

वो मुसकरा कर बोला, “मेरे बदन के एक खास हिस्से में भी तो तनाव भर गया है। कहो तो उसे निकाल कर दिखाऊँ?” मैं समझ गई कि वह मुझे लंड निकाल कर दिखाने की बात कर रहा है। मैं उसे मना करती रह गयी मगर उसने अपना काम करने से खुद को नहीं रोका, और अपनी पैन्ट उतार कर ही माना। जैसे ही उसने अपना अंडरवीयर भी उतारा… मैं एक टक उसके खड़े लंड को देखने लगी। लंबा तो पापा के लंड जितना ही था पर मुझे लगा कि पापा के लंड से मृदुल का लंड मोटा है। उस लंड को अपनी चूत में लेने का सोच कर ही मैं रोमांचित हो उठी पर मृदुल को अपनी जवानी इतनी आसानी से मैं भी पहली बार चखाने वाली नही थी। तभी उसकी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी, “छू कर देखो न। कितना तनाव आ गया है इसमें। तुम्हारे निपल से ज्यादा तन गया है ये।” मैंने अपना हाथ छुड़ाने की एक्टिंग भर की। सच तो ये था कि मैं उसे छूने को उतावली हो रही थी। मेरा दोस्त मृदुल यह बात बिल्कुल नहीं जानता था कि मैं इस खिलौने की पक्की खिलाड़ी हो चुकी हूँ और वह भी अपने सगे बाप के खिलौने की।

मैं मृदुल के सामने इसी तरह से पेश आ रही थी जैसे कि यह सब कुछ मेरे साथ पहली बार हो रहा है। उसने मेरे हाथ को बढ़ा कर अपने लंड पर रख दिया। मेरे दिल की धड़कन इतनी तेज़ हो गयी कि खुद मेरे कानो में भी गूँजती लग रही थी। मैं उसके लंड की जड़ की ओर हाथ बढ़ाने लगी तो एहसाह हुआ कि लंड-लंबा भी काफ़ी था। मोटा भी इस कदर कि उसे एक हाथ में ले पाना एक प्रकार से नामुमकिन ही था। मुझे एकाएक रद्दीवाले बिरजू के लंड का ख्याल आ गया जिससे मेरी माँ चुदती थी। वो मुझे गरम होता देख कर मेरे और करीब आ गया और मेरे निपलों को सहलाने लगा। एकाएक उसने निपल को चूमा तो मेरे बदन में खून का दौरा तेज़ हो गया, और मैं उसके लंड के ऊपर तेज़ी से हाथ फ़ेरने लगी। मेरे ऐसा करते ही उसने झट से मेरे निपल को मुँह में ले लिया और चूसने लगा। अब तो मैं पूरी मस्ती में आ गयी और उसके लंड पर बार बार हाथ फ़ेर कर उसे सहलाने लगी। बहुत अच्छा लग रहा था, मोटे और लम्बे गरम लंड पर हाथ फ़िराने में। एकाएक वो मेरे निपल को मुँह से निकाल कर बोला, “कैसा लग रहा है मेरे लंड पर हाथ फ़ेरने में?”

मैं उसके सवाल को सुनकर अपना हाथ हटाना चाही तो उसने मेरा हाथ पकड़ कर लंड पर ही दबा दिया और बोला, “तुम हाथ फ़ेरती हो तो बहुत अच्छा लगता है, देखो न, तुम्हारे द्वारा हाथ फ़ेरने से और कितना तन गया है।”

मुझसे रहा नहीं गया तो मैं मुसकरा कर बोली, “मुझे दिखायी कहाँ दे रहा है?”

“देखोगी! ये लो।” कहते हुए वो मेरे बदन से दूर हो गया और अपनी कमर को उठा कर मेरे चेहरे के समीप किया तो उसका मोटा तगड़ा लंड मेरी निगाहों के आगे आ गया। लंड का सुपाड़ा ठीक मेरी आँखों के सामने था और उसका आकर्षक रूप मेरे मन को विचलित कर रहा था। उसने थोड़ा सा और आगे बढ़ाया तो मेरे होंठों के एकदम करीब आ गया। एक बार तो मेरे मन में आया कि मैं उसके लंड को गप से पूरा मुख में ले लूँ मगर अभी मैं उसके सामने पूरी तरह से खुलना नहीं चाहती थी। वो मुसकरा कर बोला, “मैं तुम्हारी आँखों में देख रहा हूँ कि तुम्हारे मन में जो है उसे तुम दबाने की कोशिश कर रही हो। अपनी भावनाओं को मत दबाओ, जो मन में आ रहा है, उसे पूरा कर लो।” उसके यह कहने के बाद मैंने उसके लंड को चूमने का मन बनाया मगर एकदम से होंठ आगे न बढ़ा कर उसे चूमने की पहल नहीं की। तभी उसने लंड को थोड़ा और आगे मेरे होंठों से ही सटा दिया, उसके लंड के दहकते हुए सुपाड़े को होंठों पर अनुभव करने के बाद मैं अपने आप को रोक नहीं पायी और लंड के सुपाड़े को जल्दी से चूम लिया। एक बार चूम लेने के बाद तो मेरे मन की झिझक काफ़ी कम हो गयी और मैं बार बार उसके लंड को दोनों हाथों से पकड़ कर सुपाड़े को चूमने लगी। एकएक उसने सिसकारी लेकर लंड को थोड़ा सा और आगे बढ़ाया तो मैंने उसे मुँह में लेने के लिये मुँह खोल दिया और सुपाड़ा मुँह में लेकर चूसने लगी।

इतना मोटा सुपाड़ा और लंड था कि मुँह में लिये रखने में मुझे परेशानी का अनुभव हो रहा था, मगर फिर भी उसे चूसने की तमन्ना ने मुझे हार मानने नहीं दी और मैं कुछ देर तक उसे मज़े से चूसती रही। एकाएक उसने कहा, “हाय रंजना! तुम इसे मुँह में लेकर चूस रही हो तो मुझे कितना मज़ा आ रहा है, मैं तो जानता था कि तुम मुझसे बहुत प्यार करती हो, मगर थोड़ा झिझकती हो। अब तो तुम्हारी झिझक समाप्त हो गयी, क्यों है न?” मैंने हाँ में सिर हिला कर उसकी बात का समर्थन किया और बदस्तूर लंड को चूसती रही। अब मैं पूरी तरह खुल गयी थी और चुदाई का आनंद लेने का इरादा कर चुकी थी। वो मेरे मुँह में धीरे-धीरे धक्के लगाने लगा। मैंने अंदाज़ लगा लिया कि ऐसे ही धक्के वो चुदाई के समय भी लगायेगा। चुदाई के बारे में सोचाने पर मेरा ध्यान अपनी चूत की ओर गया, जिसे अभी उसने निर्वस्त्र नहीं किया था। जबकि मुझे चूत में भी हल्की-हल्की सिहरन महसूस होने लगी थी। मैं कुछ ही देर में थकान का अनुभव करने लगी। लंड को मुँह में लिये रहने में परेशानी का अनुभव होने लगा। मैंने उसे मुँह से निकालने का मन बनाया मगर उसका रोमांच मुझे मुँह से निकालने नहीं दे रहा था। मुँह थक गया तो मैंने उसे अंदर से तो निकाल लिया मगर पूरी तरह से मुक्त नहीं किया। उसके सुपाड़े को होंठों के बीच दबाये उस पर जीभ फ़ेरती रही। झिझक खत्म हो जाने के कारण मुझे ज़रा भी शर्म नहीं लग रही थी। तभी वो बोला, “हाय मेरी जान, अब तो मुक्त कर दो, प्लीज़ निकाल दो न।” वो मिन्नत करने लगा तो मुझे और भी मज़ा आने लगा और मैं प्रयास करके उसे और चूसने का प्रयत्न करने लगी। मगर थकान की अधिकता हो जाने के कारण, मैंने उसे मुँह से निकाल दिया। उसने एकाएक मुझे धक्का दे कर गिरा दिया और मेरी जींस खोलने लगा और बोला, “मुझे भी तो अपनी उस हसीन जवानी के दर्शन करा दो, जिसे देखने के लिये मैं बेताब हूँ।”