रद्दी वाला

PUBLIC BETA

Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.

You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.

Click here

रंजना को लाल बल्ब की हल्की रौशनी में कमरे का सारा नज़ारा साफ़-साफ़ दिखायी दे रहा था। उसने देखा की अंदर उसकी मम्मी ज्वाला देवी और वो रद्दी वाला बिरजु दोनों शराब पी रहे थे। ज़िन्दगी में पहली बार अपनी मम्मी को रंजना ने शराब की चुसकियाँ लेते हुए और गैर मर्द से रंग-रंगेलियाँ मनाते हुए देखा था। बिरजु इस समय ज्वाला देवी को अपनी गोद में बिठाये हुए था, दोनों एक दूसरे से लिपट चिपट रहे थे। दुनिया को नज़र अंदाज़ करके चुदाई का ज़बर्दस्त मज़ा लेने के मूड में दोनों आते जा रहे थे।

इस दृश्य को देख कर रंजना का हाल अजीब सा हो चला था, खून का दौरा काफ़ी तेज़ होने के साथ साथ उसका सिर भी ज़ोरों से घुम रहा था और चूत के आस पास सुरसुराहट सी होती हुई उसे लग रही थी। दिल की धड़कनें ज़ोर-ज़ोर से जारी थीं। गला व होंठ खुश्क पड़ते जा रहे थे और एक अजीब सा नशा उस पर भी छाता जा रहा था। ज्वाला देवी शराब पीती हुई बिरजु से बोले जा रही थी, उसकी बाँहें पीछे की ओर घुम कर बिरजु के गले का हार बनी हुई थी। ज्वाला देवी बिरजु को बार-बार “सनम” और “सैंया” के नाम से ही सम्बोधित कर रही थी। बिरजु भी उसे “रानी” ओर “मेरी जान” कह कह कर उसे दिलो जान से अपना बनाने के चक्कर में लगा हुआ था। बिरजु का एक हाथ ज्वाला देवी की गदराई हुई कमर पर कसा हुआ था, और दूसरे हाथ में उसने शराब का गिलास पकड़ रखा था। ज्वाला देवी की कमर में पड़ा उसका हाथ कभी उसकी चूची पकड़ता और कभी नाभी के नीचे अंगुलियाँ गड़ाता तो कभी उसकी जाँघें। फिर शराब का गिलास उसने ज्वाला देवी के हाथ में थमा दिया। तब ज्वाला देवी उसे अपने हाथों से शराब पिलाने लगी। मौके का फ़ायदा उठाते हुए बिरजु दोनों हाथों से उसकी भारी मोटी मोटी चूचियों को पकड़ कर ज़ोर-ज़ोर से भींचता और नोचता हुआ मज़ा लेने में जुट गया। एकाएक ज्वाला देवी कुछ फ़ुसफ़ुसाई और दोनों एक दूसरे की निगाहों में झांक कर मुसकुरा दिये। शराब का खाली गिलास एक तरफ़ रख कर बिरजु बोला, “जान मेरी ! अब खड़ी हो जाओ।” बिरजु की आज्ञा का तुरंत पालन करती हुई ज्वाला देवी मुस्कराते हुए ठीक उसके सामने खड़ी हो गयी। बिरजु बड़े गौर से और चूत-फ़ाड़ निगाहों से उसे घूरे जा रहा था और ज्वाला देवी उसकी आँखों में आँखे डाल कर चूत की ज्वाला में मचलती हुई मुस्कराते हुए अपने कपड़े उतारने में लग गयी।

उसके हाथ तो अपना बदन नंगा करने में जुटे हुए थे मगर निगाहें बराबर बिरजु के चेहरे और लंड के उठान पर ही जमी हुई थी। अपने शरीर के लगभग सारे कपड़े उतारने के बाद एक ज़ोरदार अंगड़ायी ले कर ज्वाला देवी अपना निचला होंठ दांतों में दबाते हुए बोली, “हाय ! मैं मर जाऊँ सैंया! आज मुझे उठने लायक मत छोड़ना। सच बड़ा मज़ा देता है तू, मेरी चूत को घोट कर रख देता है तू।” पैन्टी, ब्रा और हाई हील सैण्डलों में ज्वाला देवी इस उम्र में भी लंड पर कयामत ढा रही थी। उसका नंगा बदन जो गोरा होने के साथ-साथ गुद्देदार भींचने लायक भी था। लाल बल्ब की हल्की रौशनी में बड़ा ही लंड मार साबित हो रहा था।

वास्तव में रंजना को ज्वाला देवी इस समय इतनी खराब सी लगने लगी थी कि वो सोच रही थी कि ‘काश! मम्मी की जगह वो नंगी हो कर खड़ी होती तो चूत के अरमान आज अवश्य पूरे हो जाते।’ मगर सोचने से क्या होता है? सब अपने-अपने मुकद्दर का खाते हैं। बिरजु का लंड जब ज्वाला देवी की चूत के मुकद्दर में लिखा है तो फिर भला रंजना की चूत की कुँवारी सील आज कैसे टूट सकती थी।

जोश में आ कर बिरजु अपनी जगह छोड़ कर खड़ा हुआ और मुसकुराता हुआ ज्वाला देवी के ठीक सामने आ पहुँचा। कुछ पल तक उसने सिर से पांव तक उसे देखने के बाद अपने कपड़े उतारने चालू कर दिये। एक-एक करके सभी कपड़े उसने उतार कर रख दिये और वो एक दम नंग धड़ंग हो कर अपना खड़ा लंड हाथ में पकड़ कर दबाते हुए सिसका, “हाय रानी आज! इसे जल्दी से अपनी चूत में ले लो।” इस समय जिस दृष्टिकोण से रंजना अंदर की चुदाई के दृश्य को देख रही थी उसमें ज्वाला देवी का सामने का यानि चूत और चूचियाँ तथा बिरजु की गाँड और कमर यानि पिछवाड़ा उसे दिखायी पड़ रहा था। बिरजु की मर्दाना तन्दुरुस्त मजबूत गाँड और चौड़ा बदन देख कर रंजना अपने ही आप में शरमा उठी थी। अजीब सी गुदगुदी उसे अपनी चूचियों में उठती हुई जान पड़ रही थी।

बिरजु अभी कपड़े उतार कर सीधा खड़ा हुआ ही था की ज्वाला देवी ने अपनी गुद्दाज व मुलायम बाँहें उसकी गर्दन में डाल दीं और ज़ोर से उसे भींच कर बुरी तरह उससे चिपक गयी। चुदने को उतावली हो कर बिरजु की गर्दन पर चुम्मी करते हुए वो धीरे से फ़ुसफ़ुसा कर बोली, “मेरे सनम ! बड़ी देर कर दी है तूने ! अब जल्दी कर न! देखो, मारे जोश के मेरी तो ब्रा ही फ़टी जा रही है, मुझे बड़ी जलन हो रही है, उफ़्फ़! मैं तो अब बरदाश्त नहीं कर पा रही हूँ, आह जल्दी से मेरी चूत का बाजा बजा दे सैंया… आह।” बिरजु उत्तर में होंठो पर जीभ फ़िराता हुआ हँसा और बस फिर अगले पल अपनी दोनों मर्दानी ताकतवर बाँहें फ़ैला कर उसने ज्वाला देवी को मजबूती से जकड़ लिया। जबरदस्त तरीके से भींचता हुआ लगातार कई चुम्मे उसके मचलते फ़ड़फ़ड़ाते होंठों और दहकते उभरे गोरे-गोरे गालों पर काटने शुरु कर डाले।

ज्वाला देवी मदमस्त हो कर बिरजु के मर्दाने बदन से बुरी तरह मतवाली हो कर लिपट रही थी। दोनों भारी उत्तेजना और चुदाई के उफ़ान में भरे हुए ज़ोर-ज़ोर से हाँफ़ते हुए पलंग की तरफ़ बढ़ते जा रहे थे। पलंग के करीब पहुंचते ही बिरजु ने एक झटके के साथ ज्वाला देवी का नंगा बदन पलंग पर पटक दिया। अपने आपको सम्भालने या बिरजु का विरोध करने की बजाये वो गेंद की तरह हँसती हुई पलंग पर धड़ाम से जा गिरी। पलंग पर पटकने के तुरन्त बाद बिरजु ज्वाला देवी की तरफ़ लपका और उसके उपर झुक गया। अगले ही पल उसकी ब्रा खींच कर उसने चूचियों से अलग कर दी और उसके बाद चूत से पैन्टी भी झटके के साथ जोश में आ कर उसने इस तरह खींची कि पैन्टी ज्वाला देवी की कमर व गाँड का साथ छोड़ कर एकदम उसकी टाँगो में आ कर गिरी। जैसे ही बिरजु का लंड हाथ में पकड़ कर ज्वाला देवी ने ज़ोर से दबाया तो वो झुँझला उठा, इसी झुँझलाहट और ताव में आ कर उसने ज्वाला देवी की उठी हुई चूचियों को पकड़ कर बेरहमी से खींचते हुए वो उन पर खतरनाक जानवर की तरह टूट पड़ा।

ज्वाला देवी के गुलाबी होंठो को जबर्दस्त तरीके से उसने पीना शुरु कर दिया। उसके गालों को ज़ोर- ज़ोर से भींच कर होंठ चूसते हुए वो अत्यन्त जोशीलापन महसूस कर रहा था। चन्द पलों में उसने होंठों को चूस-चूस कर उनकी माँ चोद कर रख दी। जी भर कर होंठ पीने के बाद उसने एकदम ही ज्वाला देवी को पलंग पर घुमा कर चित्त पटक दिया और तभी उछल कर वो उसके उपर सवार हो गया। अपने शरीर के नीचे उसे दबा कर उसका पूरा शरीर ही उसने ऐसे ढक लिया मानो ज्वाला देवी उसके नीचे पिस कर रहेगी। बिरजु इस समय ज्वाला देवी के बदन से लिपट कर और उसे ज़ोरों से भींच कर अपना बदन उसके मुलायम जनाने बदन पर बड़ी बेरहमी से रगड़े जा रहा था। बदन से बदन पर घस्से मारता हुआ वो दोनों हाथों से चूचियों को ज़ोर-ज़ोर से दबाता जा रहा था और बारी-बारी से उसने चूचियों को मुँह में ले कर तबियत से चूसना भी स्टार्ट कर दिया था। बिरजु और ज्वाला देवी दोनों ही इस समय चुदाई की इच्छा में पागल हो चुके थे। बिरजु के दोनों हाथों को ज्वाला देवी ने मजबूती से पकड़ कर उसकी चुम्मों का जवाब चुम्मों से देना शुरु कर दिया।

ज्वाला देवी मस्ती में आ कर बिरजु के कभी गाल पर काट लेती तो कभी उसके कंधे पर काट कर अपनी चूत की धधकती ज्वाला का प्रदर्शन कर रही थी। अपनी पूरी ताकत से वो ज़ोर से बिरजु को भींचे जा रही थी। एकाएक ज्वाला ने बिरजु की मदद करने के लिये अपनी टाँगे उपर उठा कर अपने हाथों से टाँगों में फ़ंसी हुई पैन्टी निकाल कर बाहर कर दी और हाई हील सैण्डलों के अलावा किसी कपड़े का नामोनिशान तक अपने बदन से उसने हटा कर रख दिया। उसकी तनी हुई चूचियों की उभरी हुई घुन्डी और भारी गाँड सभी रंजना को साफ़ दिखायी पड़ रहा था। बस उसे तमन्ना थी तो सिर्फ़ इतनी कि कब बिरजु का लंड अपनी आँखों से वो देख सके।

सहसा ही ज्वाला देवी ने दोनों टाँगे उपर उठा कर बिरजु की कमर के इर्द गिर्द लपेट ली और जोंक की तरह उससे लिपट गयी। दोनों ने ही अपना-अपना बदन बड़ी ही बेरहमी और ताकत से एक दूसरे से रगड़ना शुरु कर दिया। चुम्मी काटने की क्रिया बड़ी तेज़ और जोशीलेपन से जारी थी। ज़ोर ज़ोर से हाँफ़ते सिसकारियाँ छोड़ते हुए दोनों एक दूसरे के बदन की माँ चोदने में जी जान एक किये दे रहे थे। तभी बड़ी फ़ुर्ती से बिरजु ज़ोर-ज़ोर से कुत्ते की तरह हाँफ़ता हुआ सीधा बैठ गया और तेज़ी से ज्वाला देवी की टाँगों की तरफ़ चला आया।

इस पोजिशन में रंजना अपनी मम्मी को अच्छी तरह नंगी देख रही थी। उसने महसूस किया की मम्मी की चूत उसकी चूत से काफ़ी बड़ी है। चूत की दरार उसे काफ़ी चौड़ी दिखायी दे रही थी। उसे ताज्जुब हुआ की मम्मी की चूत इतनी गोरी होने के साथ-साथ एकदम बाल रहित सफ़ाचट थी। कुछ दिन पहले ही बड़ी-बड़ी झांटों का झुरमुट स्वयं अपनी आँखों से उसने ज्वाला देवी की चूत पर उस समय देखा था, जब सुबह सुबह उसे जगाने के लिये गयी थी।

इस समय ज्वाला देवी बड़ी बेचैन, चुदने को उतावली हो रही थी। लंड सटकने वाली नज़रों से वो बिरजु को एक टक देख रही थी। चूत की चुदाई करने के लिये बिरजु टाँगों के बल बैठ कर ज्वाला देवी की जाँघों पर, चूत की फाँकों पर और उसकी दरार पर हाथ फ़िराने में लगा हुआ था और फिर एकदम से उसने घुटने के पास उसकी टाँग को पकड़ कर चौड़ा कर दिया। तत्पश्चात उसने पलंग के पास मेज़ पर रखी हुई खुश्बुदार तेल की शीशी उठायी और उसमें से काफ़ी तेल हाथ में ले कर ज्वाला देवी की चूत पर अच्छी तरह से अंदर और बाहर इस तरह मलना शुरु किया की उसकी सुगन्ध रंजना के नथुनों में भी आ कर घुसने लगी। अपनी चूत पर किसी मर्द से तेल मालिश करवाने के लिये रंजना भी मचल उठी। उसने खुद ही एक हाथ से अपनी चूत को ज़ोर से दबा कर एक ठंडी साँस खींची और अंदर की चुदाई देखने में उसने सारा ध्यान केन्द्रित कर दिया।

ज्वाला देवी की चूत तेल से तर करने के पश्चात बिरजु का ध्यान अपने खड़े हुए लंड पर गया। और जैसे ही उसने अपने लम्बे और मोटे लंड को पकड़ कर हिलाया कि बाहर खड़ी रंजना की नज़र पहली बार लंड पर पड़ी। इतनी देर बाद इस शानदार डंडे के दर्शन उसे नसीब हुए थे। लंड को देखते ही रंजना का कलेजा मुँह को आ गया। उसे अपनी साँस गले में फ़ंसती हुई जान पड़ी। वाकई बिरजु का लंड बेहद मोटा, सख्त और जरूरत से ज्यादा ही लंबा था। देखने में लकड़ी के खूंटे की तरह वो उस समय दिखायी पड़ रहा था। शायद इतने शानदर लंड की वजह ही थी की ज्वाला देवी जैसी इज़्ज़तदार औरत भी उसके इशारों पर नाच रही थी। रंजना को अपनी सहेली की कही हुई शायरी याद आ गयी, “औरत को नहीं चाहिये ताज़ो तख्त, उसको चाहिये लंड लंबा, मोटा और सख्त।”

हाँ तो बिरजु ने एक हाथ से अपने लंड को पकड़ा और दूसरे हाथ से तेल की शीशी उल्टी करके लंड के उपर तेल की धार उसने डाल दी। फ़ौरन शीशी मेज़ पर रख कर उसने उस हाथ से लंड पर मालिश करनी शुरु कर दी। मालिश के कारण लंड का तनाव, कड़ापन और भी ज्यादा बढ़ गया। चूत में घुसने के लिये वो ज़हरीले सांप की तरह फ़ुफ़कारने लगा। ज्वाला देवी लंड की तरफ़ कुछ इस अंदाज़ में देख रही थी मानो लंड को निगल जाना चाहती हो या फिर आँखों के रास्ते पी जाना चाहती हो। सारे काम निबटा कर बिरजु खिसक कर ज्वाला देवी की टाँगों के बीच में आ गया। उसने टाँगों को जरूरत के मुताबिक मोड़ा और फिर घुटनों के बल उसके उपर झुकते हुए अपने खूंटे जैसे सख्त लंड को ठीक चूत के फ़ड़फ़ड़ाते छेद पर टिका दिया। इसके बाद बिरजु पंजो के बल थोड़ा उपर उठा। एक हाथ से तो वो तनतनाते लंड को पकड़े रहा और दूसरे हाथ से ज्वाला देवी की कमर को उसने धर दबोचा। इतनी तैयारी करते ही ज्वाला देवी की तरफ़ आँख मारते हुए उसने चुदाई का इशारा किया।

परिणाम स्वरूप, ज्वाला देवी ने अपने दोनों हाथों की अंगुलियों से चूत का मुँह चौड़ा किया। अब चूत के अंदर का लाल-लाल हिस्सा साफ़ दिखायी दे रहा था। बिरजु ने चूत के लाल हिस्से पर अपने लंड का सुपाड़ा टिका कर पहले खूब ज़ोर-ज़ोर से उसे चूत पर रगड़ा। इस तरह चूत पर गरम सुपाड़े की रगड़ायी से ज्वाला देवी लंड सटकने को बैचैन हो उठी। “देख! देर न कर, डाल .. उपर-उपर मत रहने दे.. आहह। पूरा अंदर कर दे उउफ़ सीईई सी।” ज्वाला देवी के मचलते अरमानों को महसूस कर बिरजु के सब्र का बांध भी टूट गया और उसने जान लगा कर इतने जोश से चूत पर लंड को दबाया कि आराम के साथ पूरा लंड सरकता चूत में उतर गया। ऐसा लग रहा था जैसे लंड के चूत में घुसते ही ज्वाला देवी की भड़कती हुई चूत की आग में किसी ने घी टपका दिया हो, यानि वो और भी ज्यादा बेचैन सी हो उठी। और जबर्दस्त धक्कों द्वारा चुदने की इच्छा में वो मचली जा रही थी। बिरजु की कमर को दोनों हाथों से कस कर पकड़ वो उसे अपनी ओर खींच-खींच कर पागलों की तरह पेश आ रही थी। बड़ी बेचैनी से वो अपनी गर्दन इधर-उधर पटकते हुए अपनी दोनों टाँगों को भी उछाल-उछाल कर पलंग पर मारे जा रही थी। लंड के स्पर्श ने उसके अंदर एक जबर्दस्त तूफ़ान सा भर कर रख दिया था। अजीब-अजीब तरह की अस्पष्ट आवाज़ें उसके मुँह से निकल रही थी। “ओहह मेरे राजा मार, जान लगा दे। इसे फ़ाड़ कर रख दे .. रद्दी वाले आज रुक मत अरे मार न मुझे चीर कर रख दे। दो कर दे मेरी चूत फ़ाड़ कर आह.. सीईई।”

बिरजु के चूत में लंड रोकने से ज्वाला देवी को इतना गुस्सा आ रहा था कि वो इस स्तिथी को सहन न करके ज़ोरों से बिरजु के मुँह पर चांटा मारने को तैयार हो उठी थी। मगर तभी बिरजु ने लंड को अंदर किया ओर थोड़ा दबा कर चूत से सटा दिया और दोनों हाथों से कमर को पकड़ कर वो कुछ उपर उठा और अपनी कमर तथा गाँड को उपर उठा कर ऐसा उछला कि ज़ोरों का धक्का ज्वाला देवी की चूत पर जा कर पड़ा। इस धक्के में मोटा, लंबा और सख्त लंड चूत में तेज़ी से घुसता चला गया और इस बार सुपाड़े की चोट चूत की तलहटी पर जा कर पड़ी।

इतनी ज़ोर से मम्मी की चूत पर हमला होता देख कर रंजना बुरी तरह कांप उठी मगर अगले ही पल उसके आश्चर्य का ठिकाना ही नहीं रहा क्योंकि ज्वाला देवी ने कोई दिक्कत इस भारी धक्के के चूत पर पड़ने से नहीं ज़ाहिर की थी, बल्कि उसने बिरजु को बड़े ही ज़ोरों से मस्ती में आ कर बाँहों में भींच लिया। इस अजीब वारदात को देख कर रंजना को अपनी चूत के अंदर एक न दिखायी देने वाली आग जलती हुई महसूस हुई। उसके अंदर सोयी हुई चुदाई इच्छा भी प्रज्वलित हो उठी थी। उसे लगा कि चूत की आग पल-पल शोलो में बदलती जा रही है। चूत की आग में झुलस कर वो घबड़ा सी गयी और उसे चक्कर आने शुरु हो गये। इतना सब कुछ होते हुए भी चुदाई का दृश्य देखने में बड़ा अजीब सा मज़ा उसे प्राप्त हो रहा था, वहाँ से हटने के बारे में वो सोच भी नहीं सकती थी। उसकी निगाहे अंदर से हटने का नाम ही नहीं ले रही थी। जबकि शरीर धीरे-धीरे जवाब देता जा रहा था। अब उसने देखा कि बिरजु का लंड चूत के अंदर घुसते ही मम्मी बड़े अजीब से मज़े से मतवाली हो कर बुरी तरह उससे लिपट गयी थी और अपने बदन तथा चूचियों और गालों को उससे रगड़ते हुए धीरे-धीरे मज़े की सिसकारियाँ छोड़ रही थी, “पेल.. वाह..रे.. मार.. ऐसे ही श.. म.. हद.. हो गयी वाहह और मज़ा दे और दे सी आह उफ़ ।” लंड को चूत में अच्छी तरह घुसा कर बिरजु ने मोर्चा सम्भाला। उसने एक हाथ से तो ज्वाला देवी की मुलायम कमर को मजबूती से पकड़ा और दूसरा हाथ उसकी भारी उभरी हुई गाँड के नीचे लगा कर बड़े ज़ोर से हाथ का पन्जा, गाँड के गोश्त मे गड़ाया। ज़ोर-ज़ोर से गाँड का गुद्दा वो मसले जा रहा था। ज्वाला देवी ने भी जवाब में बिरजु की मर्दानी गाँड को पकड़ा और ज़ोर से उसे खींचते हुए चूत पर दबाव देती हुई वो बोली, “अब इसकी धज्जियाँ उड़ा दे सैंया। आह ऐसे काम चलने वाला नहीं है.. पेल आह।”

उसके इतना कहते ही बिरजु ने सम्भाल कर ज़ोरदार धक्का मारा और कहा, “ले। अब नहीं छोड़ूँगा। फ़ाड़ डालूँगा तेरी...” इस धक्के के बाद जो धक्के चालू हुए तो गजब ही हो गया। चूत पर लंड आफ़त बन कर टूट पड़ा था। ज्वाला देवी उसकी गाँड को पकड़ कर धक्के लगवाने और चूत का सत्यानाश करवाने में उसकी सहायता किये जा रही थी। बिरजु बड़े ही ज़ोरदार और तरकीब वाले धक्के मार-मार कर उसे चोदे जा रहा था। बीच-बीच में दोनों हाथों से उसकी चूचियों को ज़ोर-ज़ोर से दबाते हुए वो बुरी तरह उसके होंठो और गालों को काटने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रहा था। चूत में लंड से ज़ोरदार घस्से छोड़ता हुआ वो चुदाई में चार चांद लगाने में जुटा हुआ था।

चूत पर घस्से मारते हुए वो बराबर चूचियों को मुँह में दबाते हुए घुन्डियों को खूब चूसे जा रहा था। ज्वाला देवी इस समय मज़े में इस तरह मतवाली दिखायी दे रही थी कि अगर इस सुख के बदले उन पलो में उसे अपनी जान भी देनी पड़े तो वो बड़ी खुशी से अपनी जान भी दे देगी, मगर इस सुख को नहीं छोड़ेगी। अचानक बिरजु ने लंड चूत में रोक कर अपनी झांटे व अन्डे चूत पर रगड़ने शुरु कर दिये। झांटो व अन्डों के गुदगुदे घस्सो को खा-खा कर ज्वाला देवी बेचैनी से अपनी गाँड को हिलाते हुए चूत पर धक्कों का हमला करवाने के लिये बड़बड़ा उठी, “हाय उउई झांटे मत रगड़.. आहह तेरे अन्डे गुदगुदी कर रहे हैं सनम, उउई मान भी जो आईईईई चोद पेल... आहह रुक क्यों गया ज़ालिम... आहह मत तरसा आहह.. अब तो असली वक्त आया है धक्के मारने क। मार खूब मार जल्दी कर.. आज चूत के टूकड़े टूकड़े... फ़ड़ डाल इसे... हाय बड़ा मोटा है.. आइइई।” बिरजु का जोश ज्वाला देवी के यूँ मचलने सिसकने से कुछ इतना ज्यादा बढ़ उठा, अपने उपर वो काबू न कर सका और सीधा बैठ कर जबर्दस्त धक्के चूत पर लगाने उसने शुरु कर दिये। अब दोनों बराबर अपनी कमर व गाँड को चलाते हुए ज़ोर-ज़ोर से धक्के लगाये जा रहे थे। पलंग बुरी तरह से चरमरा रहा था और धक्के लगने से फ़चक-फ़चक की आवाज़ के साथ कमरे का वातावरण गूंज उठा था। ज्वाला देवी मारे मज़े के ज़ोर ज़ोर से किल्कारियाँ मार रही थी, और बिरजु को ज़ोर ज़ोर से धक्के मारने के लिये उत्साहित कर रही थी, “राजा । और तेज़.. और तेज़.. बहुत तेज़.. रुकना मत। जितना चाहे ज़ोर से मार धक्का.. आह। हाँ। ऐसे ही। और तेज़। ज़ोर से मार आहह।” बिरजु ने आव देखा न ताव और अपनी सारी ताकत के साथ बड़े ही खुँख्वार चूत फ़ाड़ धक्के उसने लगाने प्रारम्भ कर दिये। इस समय वो अपने पूरे जोश और उफ़ान पर था। उसके हर धक्के में बिजली जैसी चमक और तेज़ कड़कड़ाहट महसूस हो रही थी। दोनों की गाँड बड़ी ज़ोरो से उछले जा रही थी। ओलों की टप-टप की तरह से वो पलंग को तोड़े डाल रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे वो दोनों एक दूसरे के अंदर घुस कर ही दम लेंगे, या फिर एक दूसरे के अंग और नस-नस को तोड़ मरोड़ कर रख देंगे। उन दोनों पर ही इस समय कातिलाना भूत पूरी तरह सवार था। सहसा ही बिरजु के धक्कों की रफ़्तार असाधारण रूप से बढ़ उठी और वो ज्वाला देवी के शरीर को तोड़ने मरोड़ने लगा।

ज्वाला देवी मज़े में मस्तानी हो कर दुगुने जोश के साथ चीखने चिल्लाने लगी, “वाह मेरे प्यारे.. मार.. और मार हाँ बड़ा मज़ा आ रहा है। वाह तोड़ दे फ़ाड़ डाल, खा जा छोड़ना मत उफ़्फ़.. सी.. मार जम के धक्का और पूरा चोद दे इसे हाय।” और इसी के साथ ज्वाला देवी के धक्कों और उछलने की रफ़्तार कम होती चली गयी। बिरजु भी ज़ोर-ज़ोर से उछलने के बाद लंड से वीर्य फैंकने लगा था। दोनों ही शांत और निढाल हो कर गिर पड़े थे। ज्वाला देवी झड़ कर अपने शरीर और हाथ पांव ढीला छोड़ चुकी थी तथा बिरजु उसे ताकत से चिपटाये बेहोश सा हो कर आँखें मूंदे उसके उपर गिर पड़ा था और ज़ोर-ज़ोर से हाँफ़ने लगा था।

इतना सब देख कर रंजना का मन इतना खराब हुआ कि आगे एक दृश्य भी देखना उसे मुश्किल जान पड़ने लगा था। उसने गर्दन इधर-उधर घुमा कर अपने सुन्न पड़े शरीर को हरकत दी, इसके बाद आहिस्ता से वो भारी मन, कांपते शरीर और लड़खड़ाते हुए कदमों से अपने कमरे में वापस लौट आयी। अपने कमरे में पहुँच कर वो पलंग पर गिर पड़ी, चुदाई की ज्वाला में उसका तन मन दोनों ही बुरी तरह छटपटा रहे थे, उसका अंग-अंग मीठे दर्द और बेचैनी से भर उठा था, उसे लग रहा था कि कोई ज्वालामुखी शरीर में फ़ट कर चूत के रास्ते से निकल जाना चाहता था। अपनी इस हालत से छुटकारा पाने के लिये रंजना इस समय कुछ भी करने को तैयार हो उठी थी, मगर कुछ कर पाना शायद उसके बस में ही नहीं था। सिवाय पागलो जैसी स्तिथी में आने के। इच्छा तो उसकी ये थी कि कोई जवान मर्द अपनी ताकतवर बाँहों में ज़ोरों से उसे भींच ले और इतनी ज़ोर से दबाये कि सारे शरीर का कचुमर ही निकल जाये। मगर ये सोचना एकदम बेकार सा उसे लगा। अपनी बेबसी पर उसका मन अंदर ही अंदर फ़ुनका जा रहा था। एक मर्द से चुदाई करवाना उसके लिये इस समय जान से ज्यादा अनमोल था, मगर न तो चुदाई करने वाला कोई मर्द इस समय उसको मिलने जा रहा था और न ही मिल सकने की कोई उम्मीद या आसार आस पास उसे नज़र आ रहे थे।

उसने अपने सिरहाने से सिर के नीचे दबाये हुए तकिये को निकाल कर अपने सीने से भींच कर लगा लिया और उसे अपनी कुँवारी अनछुई चूचियों से लिपट कर ज़ोरो से दबाते हुए वो बिस्तर पर औंधी लेट गयी। सारी रात उसने मम्मी और बिरजु के बीच हुई चुदाई के बारे में सोच-सोच कर ही गुज़ार दी। मुश्किल से कोई घन्टा दो घन्टा वो सो पायी थी। सुबह जब वो जागी तो हमेशा से एक दम अलग उसे अपना हर अंग दर्द और थकान से टूटता हुआ महसूस हो रहा था, ऐसा लग रहा था बेचारी को, जैसे किसी मज़दूर की तरह रात में ओवरटाइम ड्यूटी करके लौटी है। जबकि चूत पर लाख चोटें खाने और जबर्दस्त हमले बुलवाने के बाद भी ज्वाला देवी हमेशा से भी ज्यादा खुश और कमाल की तरह महकती हुई नज़र आ रही थी। खुशियाँ और आत्म-सन्तोश उसके चेहरे से टपक रहा था। दिन भर रंजना की निगाहें उसके चेहरे पर ही जमी रही। वो उसकी तरफ़ आज जलन और गुस्से से भरी निगाहों से ही देखे जा रही थी।

ज्वाला देवी के प्रति रंजना के मन में बड़ा अजीब सा भाव उत्पन्न हो गया था। उसकी नज़र में वो इतनी गिर गयी थी कि उसके सारे आदर्शो, पतिव्रता के ढोंग को देख देख कर उसका मन गुस्से के मारे भर उठा था। उसके सारे कार्यों में रंजना को अब वासना और बदचलनी के अलावा कुछ भी दिखायी नहीं दे रहा था। मगर अपनी मम्मी के बारे में इस तरह के विचार आते आते कभी वो सोचने लगती थी कि जिस काम की वजह से मम्मी बुरी है वही काम करवाने के लिये तो वो खुद भी अधीर है।

वास्तविकता तो ये थी कि आजकल रंजना अपने अंदर जिस आग में जल रही थी, उसकी झुलस की वो उपेक्षा कर ही नहीं सकती थी। जितना बुरा गलत काम करने वाला होता है उतना ही बुरा गलत काम करने के लिये सोचने वाला भी होता है। बस! अगर ज्वाला देवी की गलती थी तो सिर्फ़ इतनी कि असमय ही चुदाई की आग रंजना के अंदर उसने जलायी थी। अभी उस बेचारी की उम्र ऐसी कहाँ थी कि वो चुदाई करवाने के लिये प्रेरित हो अपनी चूत कच्ची ही फ़ुड़वाले। बिरजु और ज्वाला देवी की चुदाई का जो प्रभाव रंजना पर पड़ा, उसने उसके रास्ते ही मोड़ कर रख दिये थे। उस रोज़ से ही किसी मर्द से चुदने के लिये उसकी चूत फ़ड़क उठी थी। कईं बार तो चूत की सील तूड़वाने के लिये वो ऐसी ऐसी कल्पनायें करती कि उसका रोम-रोम सिहर उठता था। अब पढ़ायी लिखायी में तो उसका मन कम था और एकान्त कमरे में रह कर सिर्फ़ चुदाई के खायाल ही उसे आने लगे थे। कईं बार तो वो गरम हो कर रात में ही अपने कमरे का दरवाजा ठीक तरह बंद करके एकदम नंगी हो जाया करती और घन्टो अपने ही हाथों से अपनी चूचियों को दबाने और चूत को खुजाने से जब वो और भी गर्माँ जाती थी तो नंगी ही बिस्तर पर गिर कर तड़प उठती थी, कितनी ही देर तक अपनी हर्कतो से तंग आ कर वो बुरी तरह छटपटाती रहती और अन्त में इसी बेचैनी और दर्द को मन में लिये सो जाती थी।

*************

उन्ही दिनों रंजना की नज़र में एक लड़का कुछ ज्यादा ही चढ़ गया था। नाम था उसका मृदुल। उसी की क्लास में पढ़ता था। मृदुल देखने में बेहद सुन्दर-स्वस्थ और आकर्षक था, मुश्किल से दो वर्ष बड़ा होगा वो रंजना से, मगर देखने में दोनों हम उम्र ही लगते थे। मृदुल का व्यव्हार मन को ज्यादा ही लुभाने वाला था। न जाने क्या खासियत ले कर वो पैदा हुआ होगा कि लड़कियाँ बड़ी आसानी से उसकी ओर खींची चली आती थीं। रंजना भी मृदुल की ओर आकर्षित हुए बिना न रह सकी। मौके बेमौके उससे बात करने में वो दिलचस्पी लेने लगी। खूबसुरती और आकर्षण में यूँ तो रंजना भी किसी तरह कम न थी, इसलिये मृदुल दिलोजान से उस पर मर मिटा था। वैसे लड़कियों पर मर मिटना उसकी आदत में शामिल हो चुका था, इसी कारण रंजना से दो वर्ष बड़ा होते हुए भी वो अब तक उसी के साथ पढ़ रहा था। फेल होने को वो बच्चों का खेल मानता था।