एक नौजवान के कारनामे 192

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सुहागरात के दंगल की तैयारी
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Part 192 of the 278 part series

Updated 04/23/2024
Created 04/20/2021
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पड़ोसियों के साथ एक नौजवान के कारनामे

VOLUME II

विवाह-सुहागरात

CHAPTER-4

सुहागरात के दंगल की तैयारी

PART 1​

ज्योत्सना नीचे आयी और मेरी माँ को ताई जी ने कुछ काम के लिए बाहर बुला लिया और मेरी फूफेरी बहनो (ननदो) ने ज्योस्ना को घेर लिया। लूसी, सिंडी, अलका, बिना और श्रीजा दीदी, रीता और नीता और एक दो और लड़किया पहले से बैठी थी।

अलका बोली, "तो भाभी हो गई रात के दंगल की तैयारी। भाभी नज़र ना लगे बहुत मस्त लग रही हो, देखते ही कुमार तो आप पर टूट पड़ेंगे।"

लूसी बोली भाभी आप एकदम, कच्ची गुलाब की कली लग रही हो।

तो बिना दीदी बोली मैं तो यह सोच रही हूँ रात भर मसले रगड़े जाने के बाद इस कली की क्या हालत होगी। " एक ने छेड़ा तो दूसरी बोली।

श्रीजा दीदी बोली कली को फूल बनने का इन्तजार रहता है क्रीम लगा दी है कि नही।

फिर मत कहना कि ननदो ने पहले से बताया नही। " ये सिंडी बोली।

तभी वह पर बड़ी भाभी ऐश्वर्या आ गयी और बोलीतुम लोगों को छेड़ छाड़ के सिवा कोई काम नहीं है क्या । अभी कुछ ही दिन में तुम सबका नंबर लगने वाला है फिर देखती हूँ अपना ज्ञान तुम्हारे कितना काम आता है । तभी जूही वहाँ आ गयी और फिर एक थाल देते हुए बोली तुम लोग जाओ और देखो की सुहागरात का कमरा त्यार हो गया है और से थाल वही रख आओ ।

"अर्रे भाभी के गाल कितने प्यारे है लाल टमाटर की तरह..." रीता बोली।

"अर्रे तभी तो कुमार रात भर चटनी बनाएँगे," उसकी सहेली नीता ने छेड़ा।

तब तक मेरी माँ वह आ गयी और उन्होंने उन सबको डांटा।

फिर जेन ने ज्योत्स्ना को पकड़ कर मेरे बिठा दिया और उसका हाथ मेरे हाथ में दे दिया और ज्योत्स्ना ने अपना हाथ उसके हाथ पर रख दिया फिर उसने कहा, "आपको यह अजीब लग सकता है, लेकिन मुझे अभी कुछ समझ में आया है।"

माँ ने कहा, "वह क्या है?"

ज्योत्सना ने हंसते हुए कहा, "मुझे अभी-अभी एहसास हुआ कि मुझे एक गंभीर लड़की दिखने की आवश्यकता नहीं है!"

हम सब हँसे और माँ ने कहा, "यह सही है, बेबी, अब तुम जितनी चाहें उतनी शरारती हो सकती हो!"

ज्योत्सना हंस पड़ी, शरमा गई । छेड़ छाड़ मुझे थोड़ी बुरी भी लग रही थी और अच्छी भी।

लेकिन शायद वह छेड़ छाड़ ना होती तो शायद ज्योत्स्ना इतनी जल्दी सहज नहीं हुई होती और मुझे तब ये बहुत खराब लगता... बस मन में एक सिहरन-सी लग रही थी और इंतजार था और जब बड़ी ताई जी और बड़ी भाभी आयी तो उन्होने भी ज्योत्स्ना को छेड़ा और बोली, आज की रात तो दुल्हन तुम्हारी रात है, जलने वाले जला कर्रे खूब मजे करना ।

माँ ने हँसते हुए कहा, दुल्हन तुम जैसी अपनी माँ के पास रहती थी वैसे ही यहाँ रहना और खुश रहो बेटी! "वैसे, क्या दीपक के लिए अब कोई टास्क बचा हुआ है?"

विजया ने कहा, "अरे हाँ है।" मेरी ओर देखते हुए और ज्योत्सना की रंगी हुई हथेलियों को उलटते हुए, उसने कहा, "जीजू आपके आपका और जीजी दोनों के नाम खोजने होंगे: प्रत्येक हथेली पर एक है। क्या आप शुरू करने के लिए तैयार हो?"

"ज़रूर," मैंने कहा, "यह कितना कठिन हो सकता है?" महिलाओं ने एक दूसरे को देखा और मुस्कुरा दी।

डिजाइनों की कलात्मकता और विवरण मनमौजी और जबरदस्त थी! क्या आपने कभी सावन ऋतु के दौरान किसी उपवन या पार्क या वन में हरे रंग के बटन को खोजने की कोशिश की है? बस मेरा भी वही हाल था मैंने देखा और मैंने खोजै। मैंने उसकी बायीं हथेली में अपना नाम मिलने से पहले पंद्रह मिनट तक तलाश की और मुझे उसकी बाईं हथेली में उसका नाम खोजने में दस मिनट लगे।

हम सब हँसे और मैंने विजया से मज़ाक में कहा, " कार्य समाप्त हो गया है और मैं पुरस्कार की प्रतीक्षा कर रहा हूँ।

अब बड़ी भाभी ऐश्वर्या बोली दुल्हन क्या आप तैयार हो? "

चंचलता से अपने चेहरे को छुपाते हुए ज्योत्स्ना ने माँ की ओर देखा और कहा, "ओह माँ! क्या इस लड़की और उसके गुणों की रक्षा करने का कोई और उपाय नहीं है?"

माँ को लगा अब हमे आगे बढ़ने की जरूरत है ।

दासीयाँ भी मेरे साथ हँसी ठिठोली करने लगीं। ज्योत्सना के साथ उसकी कुछ सखिया और परिचारिकायें भी विवाह के उपरान्त ज्योत्सना के साथ ही आ गयी थी और सभी परिचारिकायें और सखिया अत्यंत प्रसन्न थीं।

खूब इशारे कर के नाच के गाने लगी,

बलम हमपे हाथ ना लगाइयो, दुर ही रहियो,

बलम गले पर दाँत ना लगाइयो, हमसे दुर ही रहियो।

निगोड़ी कैसे जवानी मोरी चोली पर आई, इसे लूट मत जाईयो

बलम मोरे जोबन पर हाथ ना लगाइयो, दुर ही रहियो।

जवानी मोरी लहंगा पर आई, अनमोल चीज़ ना छुईयो,

बलम मेरी बुलबुल पर हाथ ना लगाइयो। दुर को रहियो।

अब मेरी बहन जेन कौन-सा कम थी उसने भी धीरे से बोल दिया बलम हाथ न लगाइयो मुँह लगाइयो

उसके हाथों के बीच अपना सिर झुकाते हुए, जूही ने कहा, "कयामत, हे कयामत! कुमार को भाला दिया जाएगा और सखी तुम्हारा सब सामान चकनाचूर हो जाएगा! कृपा करके कुमार आप कृपया दयालु बनें रहना और भाले के बजाय एक छोटे से खंजर का उपयोग करना।"

हंसते हुए, मैंने उत्तर दिया, " मुझे लगता है कि मैं इसके बजाय चौड़ी तलवार का उपयोग करूंगा।

माँ बोली लड़कियों चलो अब दुल्हन को उसके शयन कक्ष में ले जाओ! "

बेचारी कहाँ मना कर रही है, ये तो तैयार होके शृंगार करके तैयार होके बैठी है, ये लड़किया ही नहीं ले कर जा रही हो। " बड़ी भाभी ने चुटकी ली।

चल बही थोड़ा आराम कर ले, 11 बज गये है। जा बहू जा।

चलने के पहले, किसी ने बोला घबड़ाना मत ज़रा-सा भी माँ बोली, घबड़ाने की क्या बात है। ज्योत्स्ना को उसकी माँ ने सीखा रखा था कि सुहाग के कमरे में जाने से पहले अपनी सास का पैर ज़रूर छू लेना ज्योत्स्ना ने सब के पेअर छुए और माँ ने ज्योत्सना के सर पर हाथ फेरते हुए, कान में मुस्करा के बोली, ना घबड़ाना ना शरमाना और आशीष दी, "बेटी तेरा सुहाग अमर रहे और तेरी हर रात सुहाग रात हो" मेरी बहने दुल्हन को सुहाग के कमरे में ले जाने के लिए तैयार खड़ी हो गयी ।

खास दासीयाँ, मौसियो के पुत्रवधुएँ मीना और स्मिता भाभियाँ और ऐश्वर्या, भाभी मुझे उसके साथ-साथ चलने लगी अनुपमा भी अब हँसी ठिठोली करने लगीं।

" हमारी राजकुमारी बहुत कोमल हैं, अपने कठोर हाथ उनसे दूर ही रखियेगा कुमार! अनुपमा ने हस्ते हुए कहा।

"सच कह रही हो सखी, नहाते हुए यदि जल अधिक गर्म हो या फिर उसमे इत्र और पुष्पों के रस की मात्रा तनिक भी अधिक हो जाये, तो दीदी के अंग विहल हो जाते हैं!"। तो विजया बोली।

"मुझे नहीं लगता की कुमार पूरी रात राजकुमारी को सिर्फ मीठी-मीठी बातें करके ही कटायेंगे!" और ये अब रीता बोली।

"अब तो प्रात: काल राजकुमारी के स्नान के समय ही पता चलेगा की उनके किस-किस अंग को कितना काटा गया और कितनी क्षति हुई है!"। जूही ने छेड़ा।

सभी भाभियाँ, बहने, मेरी साली विजया और ज्योत्सना की अंतरंग सखी खिलखिला कर हँसने लगीं।

"निर्लज्ज लड़कियों! अब भागो यहाँ से। कुमार और दुल्हन के विश्राम का समय हो गया है!"। बड़ी भाभी ने अनुपमा और विजया को डांट डपट लगाई और बोली अरे कुमार और दुल्हन आप इनकी बातो के चक्कर में मत पड़ जाना आख़िर दूर रखना था तो इतनी दूर से लिवाने क्यों आये हैं"जेन ने फिर से छेड़ा"।

"हमें तो नहीं लगता की महाराज और राजकुमारी जी आज पूरी रात सिर्फ विश्राम करेंगे!"। फिर से किसी ने कहा तो सभी लड़किया और भाभियाँ फिर से हँस पड़ी।

"कुमार! इन उदंड लड़कियों को कुछ उपहार दे दीजिये, वर्ना ये यहाँ से जायेंगी नहीं और आपको ऐसे ही तंग करती रहेंगी!"। महारानी ऐश्वर्या ने कहा।

मैंने रोजी से इस अवसर के लिए बना कर राखी अँगूठिया उतार कर विजया और अनुपमा को भेंट दी, तो उन्हें लेकर अनुपमा हँसती खिलखिलाती बोली अब चलो जीजी अब हमे कबाब में हड्डी नहीं बना चाहिए और हँसती खिलखिलाती हुई वहाँ से चली गई।

मैं और ज्योत्सना अब कमरे के द्वार पर खड़े थे और अब जब अंदर प्रवेश करने को आगे बढे तो अब उनकी फूफेरी बहने जेन, अलका, लूसी और सिंडी और उनकी मौसेरी बहने श्रीजा, बीना और भतीजियाँ नीता और रीता सुहागरात कक्ष के द्वार पर मोर्चे बना कर डटी हुई थी और हमे रोका और एक बोली जानती है भाभी ये कमरा आप के लिए खास तौर पर कुमार भाई ने खुद डिज़ाइन कर के बनवाया है। दूसरी बोली और इसलिए की इसमे आप को कोई डिस्टर्ब नहीं कर पाए, आराम से रात भर। तब तक एक और ने छेड़ा, नहीं रे, असल में इससे हम लोग नहीं डिस्टर्ब होंगे। नहीं तो रात भर आ उहह, बस करो, चीख पुकार ।सिसक़ियो की आवाज़, पायल और बिछुओ की झंकार सुनते । ये लोग खुद तो रात भर सोएंगे नहीं और हम लोगों को भी नहीं सोने देंगे। एक ने कमरे का दरवाजा खोला, तो एक बहन बोली, बस भैया भाभी, अब इंतजार की घड़िया ख़तम, जिस पल का आपको इतने महीनो से इंतजार था और फिर ज्योत्सना का घूँघट ठीक करते हुए मेरे कान में बोली।

" अरे अरे! ये क्या? चाह कुमार अपनी बहनो का नेग तो देते जाईये। नववधु के साथ सुहागकक्ष में प्रवेश अपनी बहनो को नेग देने के बाद ही मिलेगा। तो मैंने अँगूठिया अपनी बहनो और भतीजियों को नेग में दे दिए।

"और भी कोई सेवा हो तो बता दीजिये भाभी जी!"। मैंने बड़ी भाभी ऐश्वर्या से मज़ाक में कहा।

बस अब जल्दी से भतीजे का मुँह दिखला दीजिये देवर, देवरानी जी।

कहानी जारी रहेगी

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