साथी हाथ बढ़ाना Ch. 02

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खूबसूरत परी जैसी सुषमा की चूत में बिना थके मैं मेरा लण्ड काफी देर तक पेलता रहा। शायद सुषमा भी बहुत ज्यादा एन्जॉय कर रही होगी, क्यूंकि कई बार बिच में ही चुदवाते हुए वह झड़ रही थी। जब वह झड़ती थी तब उसके मुंह से हलकी सी सिसकारी या "उँह...." जैसी आवाज निकल जाती थी। अगर मैं थम जाता तो सुषमा मुझे चुदाई जारी रखने के लिए कहती।

चोदते हुए मुझे सुषमा की चूत में लण्ड अंदर बाहर होते हुए देख बड़ी ही अजीब सी फीलिंग होती थी। मैं ऐसी खूबसूरत औरत को चोदने का मौक़ा पाकर अपने आप को बड़ा ही भाग्यशाली समझ रहा था। सुषमा एक बड़ी ही संवेदनशील प्रेमिका थी। सेठी साहब बड़े भाग्यशाली थे की उन्हें ऐसी खूबसूरत, समझदार और संवेदनशील बीबी मिली।

जो भी पति मेरी कहानी पढ़ रहे हैं उनको अनुरोध है की अपनी बीबी को भी दूसरे मर्दों से चुदवाने का मौका दें, बल्कि उनको दूसरे मन पसंद मर्दों से चुदवाने के लिए प्रोत्साहित करें। कई बार बीबियाँ किसी दूसरे से चुदवाने के लिए मना कर देतीं हैं। इससे निराश मत होइए। अपनी कोशिश जारी रखिये। जब पत्नी को यह यकीन हो जाएगा की वाकई में आपको आपत्ति नहीं है और आपको जलन नहीं होगी तो बीबियाँ भी मान सकती हैं। साथ में मेरा पत्नियों से भी अनुरोध है की अगर आपके पति आपको दूसरे मर्दों से चुदवाने के लिए कहते हैं तो आप इनसे लड़ाई झगड़ा ना करें। अक्सर जो पति अपनी पत्नियों से प्यार करते हैं वह अपनी पत्नी को कैसे ज्यादा से ज्यादा सुःख दे सकें उसकी चिंता में रहते हैं। वह चाहते हैं की उनकी पत्नी भी बाहर के दूसरे मर्द से चुदवा कर उसकी जो उत्तेजना और आनंद है उसे अनुभव करें। जो युगल इस तरह एक दूसरे को सपोर्ट करते हैं वह वाकई में बड़े सुखी होते हैं।

कई बार पति चाहते हैं की उनकी पत्नी किसी और मर्द से उनके सामने ही चुदवाये। इस बात में भी पत्नियों को आश्चर्य करने की कोई आवश्यकता नहीं है। अक्सर जो पति पत्नियों को बेतहाशा प्यार करते हैं वह ऐसा करना चाहते हैं। पत्नी और पति दोनों मिलकर साथ में बैठ तय करें की पत्नी किस से इस तरह चुदवाये। पत्नियों को भी चाहिए की पति को भी किसी दूसरी औरत को चोदने की इजाजत दे।जो पति अपनी पत्नियों को दूसरे मर्द से अपने सामने चुदवाना चाहते हैं उन्हें नामर्द समझने की गलती ना करें। वह पति चाहते हैं की उनकी पत्नी दूसरे मर्दों से चुदवाते हुए जो आनंद और जो उत्तेजना महसूस करती है उसमें वह भी भागिदार बनें और पत्नी की ख़ुशी से वह भी खुश हों।

सुषमा को चोदते हुए कई बार मेर मन किया की एक बार तो मैं मेरा लण्ड सुषमा की इतनी खूबसूरत गाँड़ में पेलकर देखूं तो सही की कैसा फील होता है। पता नहीं कैसे पर सुषमा को इसकी भनक लगी होगी, क्यूंकि मुझसे चुदवाते हुए एक बार मौक़ा मिलते ही सुषमा ने पीछे मुड़कर मेरी और देख कर कहा, "मेरी गाँड़ मारने का मन तो नहीं कर रहा? मैं जरूर मौक़ा दूंगी। पर मैं चाहती हूँ की पहले आप अपना सारा माल मेरे गर्भाशय में डालकर मुझे गर्भवती बनादो। इसके बाद आप को जो करना है करो। मैं नहीं रोकूंगी।"

सुषमा की मजबूरी और उसके मन की वेदना मैं समझने लगा था। अक्सर हम मर्द स्त्रियों के मन के भाव नहीं समझ पाते हैं। ज्यादातर स्त्रियों में या यूँ कहिये की लगभग सारी स्त्रियों में ही भगवान ने माँ का जो भाव स्थापित किया है जिसके कारण यह सारी दुनिया चल रही है, वह अद्भुत है। सबसे पहले माँ बनने का और माँ बनने के बाद अपने बच्चे की जी जान से रक्षा और लालन पालन करने का जो भाव है वह मात्र स्त्रियां ही महसूस कर सकती हैं।

सुषमा को पीछे से चोदते हुए मैं बहुत ज्यादा देर टिक नहीं पाया। हालांकि मैं अपने आप को झड़ने से रोक सकता था। पर सुषमा की वीर्य को पाने की प्रबल इच्छा देख मैंने अपने आप को नहीं रोका। दूसरे सुषमा की इतनी सेक्सी गाँड़ देख कर ही मेरे लण्ड में पता नहीं क्या हो जाता था। मेरी चुदाई के कारण सुषमा तो कई बार झड़ी, पर मैं टिका रहा था। आखिर में करीब दस या पंद्रह मिनट चोदने के बाद मैं झड़ने के कगार पर पहुंचा तब मैं सुषमा की खूबसूरत गाँड़ के गालों को जोर से दबाते हुए बोला, "सुषमा मैं झड़ने वाला हूँ। मैं तुम्हार अंदर मेरा सारा माल छोड़ता हूँ।"

यह कह कर मैंने उस रात दूसरी बार सुषमा की चूत में मेरे वीर्य का गरमागरम फव्वारा छोड़ा। मैं सुषमा की चूँचियाँ दोनों हाथों में पकड़ कर सुषमा की चूत में पीछे से लण्ड डाले हुए वैसे ही खड़ा रहा जब तक मेरे वीर्य की आखिरी बून्द सुषमा की चूतमें ना चली जाए। सुषमा भी वैसे ही घोड़ी बनकर मेरे वीर्य को स्वीकार करके शायद अपने इष्ट को प्रार्थना कर रही होगी की वह मेरे वीर्य से गर्भवती हो।

कुछ समय के पश्चात मैं और सुषमा थकान से त्रस्त हो कर पलंग पर लुढ़क पड़े। सुषमा काफी थकी हुई थी। नंगे बदन पर कपड़ा भी ढकने की उसमें ताकत नहीं थी। मैंने सुषमा को पलंग पर ठीक से सुलाया और मैं सुषमा से लिपट कर उसकी गोरी गाँड़ से मेरा ढीला पड़ा हुआ लण्ड सटा कर सो गया।

पता नहीं कितने बजे होंगे। खिड़की के घने परदे के पीछे से सूरज की किरणों का आभास हो रहा था। उसी समय मेरे फ़ोन पर मैसेज आने का नोटिफिकेशन सूना। मैंने व्हाट्सप्प खोला तो टीना का डराने वाला मैसेज आया हुआ था जिसे पढ़कर मेरे पाँव तले से जमीन खिसक गयी।

टीना ने लिखा था। "प्यारे राज, मैं जानती हूँ इस समय शायद तुम बिजी होंगे या थके हुए होंगे। (टीना भी जानती थी की उसके निकलते ही मैं सुषमा को पकड़ लूंगा, नहीं छोडूंगा) पता नहीं कैसे मेरी भाभी को हमारे राज़ का अंदेशा हो गया है। कल रात को भाभी ने मुझे मुन्ने को सुलाकर सेठी साहब के कमरे में जाने के लिए बारबार आग्रह किया और कहा की मैं बेशक पूरी रात सेठी साहब के साथ रहूं और खूब एन्जॉय करूँ। बल्कि मैं जब आनाकानी कर रही थी तब उन्होंने मुझे धक्के मार कर भेजा और कहा की अगर मैं नहीं गयी तो वह खुद रातभर सेठी साहब के साथ सोयेगी, तो मेरे भाई को भी पता चल जाएगा। मैं बहुत डरी हुई हूँ की कहीं भाई को पता चल गया तो मेरी मट्टी पलित हो जायेगी।"

मैं मैसेज पढ़ कर कुछ देर सुन्न सा सोचता रहा फिर मैंने टीना को मैसेज किया, "डार्लिंग, चिंता मत करो। चिंता करने से कुछ नहीं होगा। तुम इस समय काफी थकी हुई होगी। चिंता की कोई बात नहीं है। अभी तुम कुछ देर विश्राम करो। सुबह उठ कर शान्ति से रोज की तरह ही वर्तन करना। देखो भाभी क्या कहती है। घबड़ाने की कोई जरुरत नहीं। मुझे लगता है भाभी सिर्फ हमारी परिस्थिति का मजा ले रही है। वह भाई को यह सब नहीं कहेगी। तुम निश्चिन्त रह कर सब काम सामान्य तरीके से करो। जैसे ही कुछ विशेष बात हो मुझे मैसेज करना या बात करना।"

सुषमा पलंग पर गहरी नींद सो रही थी। मैं उठा और तैयार होने लगा। सुबह दूधवाला, अखबार वाला, कामवाली यह सब आने लगते हैं। अगर उन्होंने सेठी साहब की अनुपस्थिति में मुझे इस घर में देख लिया तो मेरी कहानी सारी कॉलोनी में फ़ैल जायेगी। मैंने सुषमा को उठा कर कपडे पहन कर फिर सोने को कहा। मने कहा की कहीं दूध वाला, कामवाली बगैरह आ ना जाएँ।

सुषमा ने कहा की उसने कामवाली को तीन दिन की छुट्टी दे रखी थी, दूध सुषमा ने पिछले दिन ही ले रखा था। अखबार वाला तो बाहर अखबार डालकर चला जाता था, तो उसे कोई चिंता नहीं थी। यह कह कर जब वह सोने लगी तो मैंने उसे कहा की मैंने यह सब इंतजाम नहीं किया था सो मुझे जाना पड़ेगा। यह कह कर मैं अपने फ्लैट में जा पहुंचा और टीना के मेसेज या फ़ोन का इंतजार करने लगा।

लगभग पूरी रात जागने के बाद भी टीना का मेसेज पढ़ कर मेरी नींद हवा हो चुकी थी। मुझसे अब और इंतजार नहीं हो रहा था। पर सुबह दूध वाला, काम वाली सब के आते जाते रहने के कारण मैं टीना से बात नहीं कर पाया। मैंने करीब साढ़े आठ टीना को फ़ोन मिलाया। पर फ़ोन टीना ने नहीं टीना की भाभी अंजू ने उठाया।

अंजू ने फ़ोन उठाते ही हँसी मजाक के लहजे में पूछा, "जीजू सा, प्रणाम! ननद सा से बात किये बगैर चैन नहीं पड़ता क्या आपको? ननदसा अभी बाथरूम में है। जीजू, एक बात तो माननी पड़ेगी। आपके और दीदी के बिच में जो अंडरस्टैंडिंग है उसका जवाब नहीं। आप यहां की बिलकुल फ़िक्र मत करना। मैं हूँ ना। सब सम्हाल लुंगी। सुबह दीदी काफी देर से उठी है। लगता है दीदी की तबियत थोड़ी ठीक नहीं। चिंता की कोई बात नहीं। दीदी एक्चुअली तो बहुत ज्यादा थकी हुई हैं। पूरी रात बेचारी सो नहीं पायी। उनको पूरी रात मच्छरों ने या पता नहीं खटमलों ने काटा और परेशान किया। वैसे हमारे यहां अभी एक भी मच्छर या खटमल नहीं है, पर पता नहीं शायद कहीं से कोई एक मच्छर या खटमल ने दीदी की नींद हराम कर दी है। दीदी का खून कुछ ज्यादा ही मीठा होगा। दीदी के बदन पर कई जगह लाल लाल निशान हैं। कुछ तो ऐसी जगह हैं की किसीको दिखा नहीं सकते। गरमी के कारण शायद रात में दीदी ने कपडे निकाल दिए होंगे। वैसे उनके और सेठी साहब के कमरे में तो ए.सी. लगा हुआ है और बढ़िया काम कर भी रहा है। खैर, मैं अभी ननदसा को निचे नहीं जाने दूंगी। पापा या मम्मी ने ननदसा को अगर इस हाल में देख लिया और बदन के निशान देखे तो वह कुछ और सोचेंगे। मैं सब को कह दूंगी की ननदसा की तबियत थोड़ी ठीक नहीं है। मुन्ना सेठी साहब के साथ निचे खेलने गया है। सेठी साहब नाश्ता करके अपने काम पर जयपुर के लिए निकल चुके हैं। वह भी थके हुए दिख रहे थे। शायद वह भी रात भर सो को नी पाए। उनको भी रात भर मच्छरों ने परेशान किया लगता है। रात को वापस आएंगे। दीदी के भाई आज दफ्तर के काम से तीन दिन के लिए बाहर गए हैं। जीजू, आप ननदसा की बिलकुल चिंता मत करना, मैं सब सम्हाल लुंगी। यहां सब कुछ ठीक है। दीदी बाथरूम से निकलेगी तो आपसे बात करेगी।"

यह सब कह कर अंजू ने फ़ोन रख दिया। अंजू की इतनी बात से मैं समझ गया की अंजू ने सब कुछ भाँप लिया था और फिर भी वह किसी को कुछ नहीं बताएगी। अंजू यह भी समझ गयी थी की इस सारे तामझाम में मैं और टीना मिल कर सब कुछ एक दूसरे की सहमति से कर रहे थे। क्यूंकि वरना अंजू मुझसे इतनी ऐसे बात नहीं करती। यह बात मेरी समझ में नहीं आ रही थी। पर एक बात अच्छी थी की सिचुएशन नियंत्रण में थी।

कुछ ही देर में टीना का फ़ोन आया। टीना कुछ घबड़ायी हुई थी। टीना ने कहा, "अंजू भाभी बड़ी शरारती और शातिर है। वह सेठी साहब और मेरे बिच की बात भाँप गयी है। उसने मुझे निचे पापा और मम्मी के पास जाने से मना किया है। वैसे उसकी बात भी ठीक है। मैं उस हालात में नहीं की मैं निचे जा सकूँ। अब मैं आपको क्या बताऊँ? आप तो आप के दोस्त सेठी साहब का नेचर जानते हो। भाभी ने आपको सब कुछ बता ही दिया है। पर वैसे चिंता की कोई बात नहीं। मुझे लगता है भाभी मजे ले रही है वह किसी से कुछ कहेगी नहीं। मैं भाभी को सम्हाल लुंगी। लगता है भाभी सेठी साहब से बड़ी इम्प्रेस हुई है। रात को मुझे धमकी दे रही थी की अगर मैं सेठी साहब के पास नहीं गयी तो खुद चली जायेगी। पता नहीं सेठी साहब के पास क्या जादू है की हर लड़की उनके पास जाना चाहती है।"

मैंने टीना से मजाक में कहा, "हाँ भाई, ऐसा क्यों नहीं कहती की सेठी साहब की पर्सनालिटी ही कुछ ऐसी है की लडकियां उनसे इतनी इम्प्रेस्सेड हो जाती हैं की जो लड़की सेठी साहब से मिलती है वह उनसे चुदवाना चाहती है?"

टीना ने कुछ रिलैक्स्ड होते हुए कहा, "लगता है तुम्हें सेठी साहब से जलन हो रही है।"

मैंने कहा, "वह तो होगी ही। अरे मेरी खूबसूरत कमसिन बीबी को ही जिन्होंने वश में कर लिया हो उनसे जलन नहीं होगी क्या?"

टीना ने कटाक्ष का जवाब कटाक्ष में देते हुए कहा, "अच्छा? बड़ी तत्वचिंतन की बात करने लगे हो! मेरा मुंह मत खुलवाओ। तुमने जो उनकी देवलोक की अप्सरा जैसी खूबसूरत बीबी को अपने निचे पूरी रात दबा के रखा उसका क्या?"

मैंने टीना की बात को काटते हुए कहा, "अरे हम कहाँ बेकार में झगड़ने लगे। यहां बात तो तुम्हारी अंजू भाभी को सेट करने की है, और हम आपस में ही लड़ने लग गए।"

अचानक मेरे दिमाग में बत्ती हुई। मैंने टीना को कहा, "अगर तुम्हारी भाभी सेठी साहब से बहुत इम्प्रेस हुई है और सेठी साहब से रातको मिलने के लिए भी तैयार हो गयी थी तो तुम क्यों ना उसे आधी रात को चुपचाप अकेले सेठी साहब के कमरे में ले जा कर उसे सेठी साहब से मिला दो और ऐसा कुछ जुगाड़ करो की सांप भी मरे और लाठी भी ना टूटे?" मैं जैसे तैसे अंजू को मामला शांत करना चाहता था।

मेरी बात सुनकर कुछ झुंझलाती हुई टीना बोली, "क्या बकते हो? मैं भाभी को सेठी साहब से रात को मिलाऊँ? भाभी तो वैसे ही उनसे मिलने के लिए बड़ी बेताब है। वह तो फ़ौरन तैयार हो जायेगी। भाभी बड़ी बेशरम, शरारती और शातिर है। अगर मैंने सेठी साहब से उसे रात को मिला दिया तो समझो हो गया काम तमाम। अगर मैंने ऐसा कुछ किया तो भाभी का कोई भरोसा नहीं। वह तो सारे कपडे निकाल कर सेठी साहब से लिपट ही जायेगी। इतना झंझट कम है की एक और झंझट पैदा करूँ? मतलब? तुम कहना क्या चाहते हो?"

मैंने बड़ी ही शांति से कहा, "थोड़ा ठंडे दिमाग से सोचो। अगर अंजू भाभी सेठी साहब से इतनी ज्यादा इम्प्रेस्सेड है और रात को वह उनके कमरे में जाने के लिए भी तैयार हो जाती है और जैसे तुम कह रही हो की वह तो अपने कपडे निकाल कर सेठी साहब से भी लिपट सकती है तो मतलब की तुम्हारी भाभी सब तरह से तैयार है। तुम समझ गयी ना मैं क्या कहना चाहता हूँ? तुम्हारे भाई कहीं टूर पर गए हैं। वह है नहीं तो उन्हें कुछ भी पता चलेगा नहीं। तो तुम्हारी अंजू भाभी को अगर तुम सेठी साहब से रातमें मिला देती हो, तो जो होता है होने दो। भाभी भी खुश, सेठी साहब भी खुश, तुम्हारे भाई को भी पता नहीं चलेगा और उसमें हमारा क्या जाता है? अब हम तुम को ऐसी जलन से ऊपर उठ जाना चाहिए। अंजू भाभी खुश होंगी और चुप रहेगी। वैसे भी अंजू भाभी तुम्हारे और सेठी साहब के बारे में जान ही गयी है। तो तुम भाभी को भी सेठी साहब से अच्छी तरह से मिला दो। तुम सोचो और जैसे ठीक लगे करना। यह तो मेरे दिमाग में एक बात आयी तो मैंने बतायी। बाकी आप भी सोचो की भाभी को कैसे शांत किया जाए।"

सामने से टीना का कोई जवाब नहीं आया। शायद वह मेरी बात को ध्यान से सुन कर उसके बारे में गंभीरता से सोच रही थी। कुछ देर बाद टीना ने अकुलाते हुए कहा, "पता नहीं यह भाभी बिच में कहाँ से आ टपकी? खैर, आपने कहा इसके बारे में मैं सोचती हूँ। अभी तो मेरा दिमाग बिलकुल काम नहीं कर रहा। मैं बाद में फ़ोन करती हूँ।" टीना ने यह कह कर फ़ोन काट दिया।

मैं टीना की उलझन समझ सकता था। एक तो जिंदगी में पहली बार मेरी बीबी किसी गैर मर्द से चुदवा रही थी ऊपर से कहते हैं ना की "प्रथम ग्राशे मक्षिका" (खाना खाने बैठे और पहले ही निवाले में मछली दिखी तो कैसा हाल होगा?) वैसे पहले ही अनुभव में टीना को भाभी की शरारत का सामना करना पड़ रहा था तो टीना का झल्लाना स्वाभाविक था। पर कहते हैं ना की फूलों के साथ साथ काँटों को भी स्वीकार करना पड़ता है। मैंने अपना काम कर दिया था। अब क्या मेरी बीबी मेरे आइडिया पर अमल करेगी? अगर करेगी तो देखना यह था की टीना मेरे आइडिया को अमली जामा कैसे पहनाती है।

अब मेरा ध्यान टीना इस नयी चुनौती का कैसे सामना करती है उस पर था।

प्यारे पाठकगण चलिए हम भी देखते हैं टीना कैसे इस चुनौती का सामना करती है उसे टीना से ही क्यों ना सुनें?

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आगे की कहानी टीना की जुबानी

रात की चाय पिने के बाद सेठी साहब ने मुझे फिर अपनी बाँहों में उठा कर पलंग पर लिटाया और खुद मेरी टांगें अपने कंधे पर रख कर फिर उसके बाद उस रात उन्होंने मुझे ऐसे चोदा ऐसे चोदा की बिना रुके और बिना रेस्ट किये रेलवे के स्टीम इंजन की तरह मैं लगभग आधे घंटे तक सख्ती से उनके निचे लेटी हुई चुदती रही, चुदती रही। मैं मेरी चूत में कुछ अजीब सी तीखी फीलिंग महसूस कर रही थी। वह दर्द था या उत्तेजक नशा यह कहना मुश्किल था। पर पूरी चुदाई के दरम्यान इतना जबरदस्त उत्तेजक नशा मेरे दिमाग पर छाया हुआ था की मैं उस आधे घंटे में कम से कम छे सात बार झड़ गयी और बार बार मैं चुदवाते हुए सेठी साहब से और जोर से चोदने के लिए कहती रही। जो रहम और दया सेठी साहब ने पहली चुदाई में दिखाई थी वह गायब थी। हाँ वह बार बार झुक कर मुझे कभी होँठों पर तो कभी गाल पर तो कभी मेरे स्तनों पर चूमते, चूसते और काटते रहते और मुझे "टीना तुम बहुत अच्छे से चुदाई करवाती हो। तुम्हें चोदने में जो मजा आता है किसी के साथ भी नहीं आया आज तक।" यह सब कहते रहते थे।

आधे घंटे की नॉनस्टॉप चुदाई के बाद मुझे लगा की अगर सेठी साहब को मैंने नहीं रोका तो कहीं मैं बेहोश ना हो जाऊं। मैंने बड़ी ही धीमी आवाज में सेठी साहब से वाशरूम जाने का इशारा किया। सेठी साहब रुक गए और लण्ड निकाल कर मुझे जब खडा किया तब मुझे पता चला की मेरी टांगें लड़खड़ा रहीं थीं। सेठी साहब का लण्ड मैंने देखा तो वह तो वैसे का वैसे कोई चमड़े का बड़ा पाइप हो ऐसे उनकी टांगों के बिच पहले जितनी ही सख्ती से खड़ा ही था। मैं जैसे तैसे वाशरूम गयी और वाशरूम में ही फर्श पर लुढ़क पड़ी। कुछ देर वाशरूम में फर्श पर पड़े रहने के बाद मैं खड़ी हुई।

मैंने सेठी साहब से पूरी रात वह जैसे चाहें मुझे चोदना चाहें चोदे, यह वचन दिया था इस लिए मैं अब पीछे नहीं हट सकती थी। मुझे लगता था की सेठी साहब की भी कहीं ना कहीं कोई लिमिट तो होगी ही जब वह भी थक जाएंगे। मुझे उसी का इंतजार करना पड़ेगा। तब मुझे सुषमा जी की हालत समझ में आ रही थी। मैं वाशरूम से धीरे से उठ कर चलती हुई वापस सेठी साहब के कमरे में पहुंची। मैंने मेरी चाल में कृत्रिम फुर्ती लायी जिससे सेठी साहब को यह ना लगे की मैं थक गयी थी। मैं पलंग पर पहुंच कर सेठी साहब के गले लिपट पड़ी। मैंने सेठी साहब के होँठों से अपने होँठ चिपकाते हुए कहा, "सेठी साहब जो सुख और आनंद मुझे आज रात में आपसे मिला है, मैंने जिंदगी में सोचा भी नहीं था की सेक्स में ऐसा सुःख मिल सकता है।"

सेठी साहब ने मेरी आँखों में आँखें डालकर पूछा, "टीना सच सच बताना मेरी चुदाई से तुम्हें दर्द या कष्ट तो नहीं हो रहा?"

हालांकि मुझे मेरी चूत में कुछ दर्द सा महसूस हो रहा था पर उससे अधिक उस दर्द में मुझे इतनी उत्तेजना और मादकता महसूस हो रही थी की उसे दर्द कहना बेमानी होगी। मैंने सेठी साहब की आँखों में उतने ही आत्मविश्वास से आँखें डाल कर कहा, सेठी साहब मुझे दर्द नहीं आनंद और उत्तेजना का अतिरेक हो रहा है। अब मुझे समझ में आ रहा है की क्यों आपके पीछे लडकियां हाथ धो कर पड़ी रहतीं हैं। मेरी भाभी भी आप को देख कर आप पर फ़िदा हो गयी है। शायद वह हमारे बारे में समझ गयी है। वह मुझसे आपकी बड़ी तारीफ़ कर रही थी। वह मुझे कह रही थी की मैं बड़ी लकी हूँ। उसके कहने का मतलब था आप इतने मजबूत और मरदाना हैं। मुझे उसकी बातों और नज़रों से ऐसा लगा की काश उसे अगर मौक़ा मिला तो वह आपको छोड़ेगी नहीं।"

मेरी बात सुन कर सेठी साहब हँस पड़े और बोले, "तुम्हारी भाभी तो बड़ी खूबसूरत है। तुम्हारे भैया बड़े ही लकी हैं की उन्हें तुम्हारी भाभी जैसी बीबी मिली हैं। तुम्हारे भैया भी बड़े तगड़े दीखते हैं। भाभी भैया से खुश नहीं है क्या?"

मैंने कहा, "सेठी साहब मेरी और भाभी की अच्छी जमती है। वह मुझसे बड़ी खुली हुई है। वह मुझसे सारी बातें खुल्लमखुल्ला कहती हैं। यहां तक की मेरा भाई उसे कैसे चोदता है वह भी मुझे कह देती है। पहले तो भाई इतना बिजी रहता है की उसे भाभी के लिए समय ही नहीं है। दुसरा यह की भाभी तो यहां तक कह रही थी की आप इतने हैंडसम हो की अच्छी से अच्छी लडकियां आपके सामने नंगी हो जाएँ। मैंने उन्हें हंसी मजाक में पूछा की भाभी आप भी सेठी साहब के सामने नंगी हो जाओगी? तो वह बेशरम सी बोली की अगर तुम्हें एतराज नहीं हो तो वह हो जायेगी। मतलब सेठी साहब वह आपके और मेरे बिच की अंडरस्टैंडिंग के बारे में सब कुछ समझ गयी है।"

मेरी बात सुनकर सेठी साहब की आँखों और चेहरे पर चिंता के बादल छा गए। उन्होंने मुझे बाँहों में ले कर कहा, "यह तो गड़बड़ हो गयी। मेर्री वजह से तुम्हारी बदनामी हो यह मैं नहीं चाहता। अब क्या करें?"

मैंने कहा, "सेठी साहब आज आपको मुझे रात भर चोदना है। अभी तो आधी रात ही हुई है। सेठी साहब कहीं ऐसा तो नहीं की मेरी भाभी की बात सुनकर आप उसी के बारे में सोचने लग गए हैं और आपका मुझ में इंटरेस्ट कम हो गया है?"

सेठी साहब ने मेरी और तीखी नज़रों से देखा और बोले, "क्या बात करती हो? वह खूबसूरत है, ठीक है। वैसे तो मुझे कोई और सिचुएशन में मिली होती तो उन्हें चोदने में ख़ुशी होती। पर वह आपकी भाभी है और मैं यहां कुछ काम से आया हूँ। मेरे कारण आपकी बदनामी हो यह मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता। मैं सुबह ही यहां से चला जाऊंगा जिससे बात आगे ना बढे।"

मैंने सेठी साहब का हाथ थाम कर कहा, "सेठी साहब जल्द बाजी मत कीजिये। आप अगर यहां से जाएंगे तो उलटा असर भी हो सकता है। भाभी नाराज हो जाएंगी। वह शायद आपसे अकेले में मिलना चाहती हैं। वह कुछ मजाकिया है। आपसे हंसी मजाक कर सकती है। आप उसे मिल लीजिये। हो सकता है यह प्रॉब्लम वहीँ सुलझ जाए।"

मैंने इतना कह कर फ़ौरन अपना गाउन निकाल फेंका और सेठी साहब के सामने नंगी हो गयी। मैंने कहा, "अब मेरी भाभी को नहीं मुझे देखिये।"

सेठी साहब ने मुझे घोड़ी बनाते हुए कहा, "तुम्हारी भाभी जब आएगी तब देखेंगे। अभी तो मैं तुम्हारी गाँड़ देख रहा हूँ। तुम्हारी गाँड़ बड़ी तगड़ी और गोरी चिट्टी है। मैं तुम्हें पीछे से तुम्हारी गाँड़ देखता हुआ तुम्हें चोदुँगा। डरो मत, मैं तुम्हारी गाँड़ नहीं मारूंगा।" यह कह कर सेठी साहब ने मेरी निचे की और लटकी हुई चूँचियों को अपनी हथेली में लेकर खूब प्यार से जोरसे दबाया और उन्हें मसलने लगे। फिर दो तीन धक्के मार कर उन्होंने अपना लण्ड मेरी चूत में पेल दिया। मेरी चूत में मुझे एक तेज सी टीस महसूस हुई। पर उसके बाद सेठी साहब के फौलादी बदन में जकड़ी हुई मैं उनके लण्ड का तगड़ा मार मेरी चूत में झेलती रही। मेरी गाँड़ पर बार बार कुछ सख्ती से सेठी साहब जब चपेट मारते तो मेरी गाँड़ लाल हो जाती होगी। उस दर्द में भी मुझे बड़ी ही उत्तेजना महसूस हो रही थी।

सेठी साहब ने मुझे उसी घोड़ी पोज़ में फिर ४५ मिनट से ज्यादा तक चोदा होगा। वह अपना लण्ड पेलते ही गए, पेलते ही गए। मुझे समझ में नहीं आता की कैसे सेठी साहब का लण्ड इतना चोदते हुए छील नहीं जाता होगा क्या? और इस बार तो इतना तगड़ा और इतना सख्ती से चोद रहे थे वह की मैं बार बारझडती ही रही और वह बिना रुके पीछे से लण्ड पेलते रहे। मुझे जिंदगी में मेरे पति ने कभी इस तरह नहीं चोदा। मेरी जिंदगी एक अद्भुत दौर से गुजर रही थी।

सेठी साहब ने करीब ४५ मिनट के बाद फिर मुझे विश्राम का मौक़ा दिया। मैंने सेठी साहब के लिए फिर चाय बनायी। उसके बाद सेठी साहब तीसरी बार मेरे ऊपर सवार हुए और उन्होंने मुझे ऊपर चढ़ कर बड़े प्यार से एक के बाद एक तगड़े धक्के मार कर पर उतनी जल्द बाजी से नहीं पर धीरे धीरे चोदा। उनके एक धक्के में मैं पूरा हिल जाती। उस बार सेठी साहब अपना वीर्य मेरी चूत में उंडेलना चाहते थे। मेरे झड़ने की तो कोई गिनती ही नहीं रही थी। आखिर में रात के करीब तीन बजे सेठी साहब के लण्ड से जबरदस्त गरम फव्वारा निकला और मेरी चूत के सारी सुरंग को भर दिया। निचे लेटी हुई मैंने सेठी साहब का सारा वीर्य अपनी चूत में भर लिया था। मुझे समझ में नहीं आया की इस तरह कोई आदमी कैसे चोद सकता है। फारिग होते होते रात के तीन बज गए। सेठी साहब से फारिग हो कर मैं बाथरूम में से हो कर अपने कमरे में रात के लगभग तीन बजे पहुंची।

हालांकि मैं बहुत ज्यादा थक चुकी हुई थी पर मेरी भाभी की बातों ने मेरी नींद हराम कर रक्खी थी। मेरे लिए यह जरुरी था की मैं मेरे पति राज को इसके बारे में पूरी जानकारी दूँ। मैंने सोने की काफी कोशिश की और शायद कुछ देर सोई भी सही पर सपने में भी मेरी भाभी मुझे डराती धमकाती दिखाई पड़ रही थी की वह मेरे और सेठी साहब के संबंधों के बारे में सब को बता देगी। ऐसे में ढंग की निंद आने का तो सवाल ही नहीं था। मैंने काफी सोच कर सुबह करीब छे बजे मेरे पति को पिछले दिन भाभी से हुई बातचीत के बारे में लिख कर एक लंबा सा व्हाट्सप्प सन्देश भेजा।

मुझे अच्छा खासा आइडिया था की मेरे पति रात भर सुषमा जी की बाँहों में ही होंगे और उस समय हमारे घर में वापस आकर बिंदास सो रहे होंगे। पर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ जब राज का फ़ौरन जवाब आ गया। जिससे मुझे कुछ ढाढस जरूर मिला। पर जब फ़ौरन जवाब आया तो मुझे मन में थोड़ी शंका भी हुई की ऐसा तो नहीं हुआ की कहीं यहां मैं उनकी पत्नी रात भर सेठी साहब से तगड़ी चुद रही हूँ और उधर मेरे पति को सुषमाजी ने बिना घास डाले भगा तो नहीं दिया? औरतों का दिमाग भगवान ने कैसा बनाया है! अगर मेरा पति किसी औरत को चोदे तो भी शिकायत और अगर कोई औरत मेरे पति को बिना चोदे रिजेक्ट करके भगा दे तो भी शिकायत! पर मेरा दिमाग उस समय यह सब सोचने या पूछने की स्थिति में नहीं था।

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