साथी हाथ बढ़ाना Ch. 02

PUBLIC BETA

Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.

You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.

Click here

यहां मैं मेरे रसिक पाठकगण जो अपनी महबूबाओं को अपनी बनाना चाहते हैं अथवा अपनी प्यारी रूढ़िवादी पत्नियों को खुले सम्भोग की दुनिया में शामिल करवाना चाहते हैं उनसे निवेदन है की वह अपनी पत्नियों खुलने का पूरा अवसर दें। जो अपनी मेहबूबा या पत्नी को पसंद है वह बात करें, जैसा उनको पसंद है वैसा माहौल बनाएं। एक बात पति या प्रेमी हमेशा ध्यान रखें की स्त्रियों में पुरुषों से कई गुना अधिक सेक्स कूट कूट कर भरा हुआ होता है। हम पुरुषों को यह बात नहीं मालुम। हम हमारी मेहबूबा या पत्नियों के सूखे रवैय्ये से यह सोचने लगते हैं की स्त्रियां सेक्स में ज्यादा रूचि नहीं रखतीं। इसका कारण यह है की अक्सर पत्नियां बस पति के प्रति अपना फर्ज निभाने के लिए जब पति का मन करता है तब अपनी टाँगें खोल कर उन्हें अपने बदन को अर्पण कर पति को सम्भोग करने देतीं हैं। अपना योगदान यातो रखती ही नहीं या फिर पति को खुश करने के लिए एन्जॉय करने का ढोंग करतीं हैं।

पर वास्तविकता अलग है। स्त्रियों में भगवानने जन्मजात ही सम्भोग के मामले में पुरुषों से कहीं ज्यादा रूचि और उग्रता कूट कूट कर भरी है। पर समाज में अपयश के डर और पति पर अविश्वास के कारण पत्नियां उस उग्रता को बड़ी ही बखूबी छिपा कर अपने जहन के किसी अँधेरे कोने में गाड़ कर रख देतीं हैं। अपने जन्म से ही रूढ़िवादी उपदेशों को सुनते रहने के कारण सामाजिक मर्यादाओं का सच्चे मन से पालन करते हुए कई बार पति के लाख मनाने पर भी विवाहिता अपनी सम्भोग की उग्रता वाली सख्सियत को अँधेरे कूप से बाहर निकालने में अपने आपको असमर्थ पातीं हैं।

रूढ़िवादी सामाजिक ग्रंथियों से बाहर निकालने के लिए हम पतियों को बड़े ही धैर्य और संवेदना से काम करना होगा ताकि हमारी पत्नियां हमारी संवेदना को समझ पाएं और संभोगिक प्रक्रिया में हमारा खुल कर साथ दे कर वह स्वयं भी उस अप्रतिम आनंद का आस्वादन कर सकें और हमें भी कराएं। हरेक पति को अपनी पत्नी की यह मानसिकता और संवेदना की कदर करते हुए बड़ी नाजुकता और प्यार से उन जटिल ग्रंथियों को एक के बाद एक कर खोलना होगा। जब कोई धागा या रस्सि या हमारे पाजामे का नाडा भी उलझ जाता है तो उन गांठों को खोलने के लिए हमें बड़े ही धैर्य और हलके से उन्हें खोलना पड़ता है। उस वक्त जल्दबाजी या समय ज्यादा लगने के कारण होती झुंझलाहट का प्रदर्शन करने से पुरा मामला और ज्यादा उलझ सकता है।

इसी लिए पति को चाहिए की पत्नी की संवेदना का ध्यान रखें और पत्नी से सम्भोग करते समय उसे बार बार सम्भोग के आनंद के बारेमें बात करे और खुले सम्भोग के लिए उकसाता रहे। ऐसा करते हुए वह पत्नी के विरोध या अवहेलना को ज्यादा गंभीरता से ना ले और अपनी पत्नी में छुपी हुई वह सम्भोग की आक्रामकता को उस अँधेरे कूप से बाहर निकालने की कोशिश में बिना थके लगा रहे। साथ साथ में वह पत्नी को मौक़ा दे की वह दूसरे कोई आकर्षक पुरुष के साथ मौक़ा मिलने पर उसे आकर्षित करे या दूसरे पुरुष से आकर्षित हो कर मौक़ा पाकर उससे सम्भोग करे।

सुषमाजी के मामले में ऐसी कोई बाधा नहीं थी। टीना से सुषमाजी के बारे में मेरी बात के बाद मैं सुषमाजी की संवेदनाओं से भलीभाँति परिचित था। मैं जानता था की सम्भोग को सुषमाजी बहुत अच्छी तरह एन्जॉय करतीं थीं। जरुरत थी को एक सही माहौल की जो बन रहा था और फिर एक चिंगारी की जो उस माहौल को आग में बदल दे।

सुषमाजी ने अपने जाने पहचाने एक बड़े संगीतकार का एक कॉन्सर्ट में अपनी सितार पर बजाया हुआ राग ब्लूटूथ के द्वारा अपने साउंड सिस्टम पर बजाना शुरू किया। वातावरण एक रोमांचक और उन्मादक संगीत की ध्वनि से गूंज उठा। संगीत अत्यन्त मधुर और रोमांचक था और मैं सुषमाजी को देख रहा था जो संगीत की मादकता में झूम रही थी। मैं भी संगीत की मादकता का आस्वादन करते हुए सुषमाजी के साथ संगीत की लहरों में बहने लगा। फर्श पर बिछाये हुए एक ही गद्दे पर हम दोनों एक दूसरे के करीब बैठ कर कभी आँखें मूंद कर उस मधुर संगीत का आस्वादन कर रहे थे तो कभी एक दूसरे की आँखों में देख एक दूसरे के मन के भाव पढ़ते हुए शायद सही मौके का इंतजार कर रहे थे जब हम दोनों अपने मन की बात को उसके अंजाम तक पहुंचा सकें। कौन पहला कदम आगे बढ़ाएगा शायद वही असमंजस में हम दोनों उलझे हुए थे।

थोड़े समय के बाद सुषमाजी ने संगीत का वॉल्यूम कुछ कम किया और मेरी और देख कर बोलीं, "तुम पूछ रहे थे ना की यह कौन है?"

मैंने सकारत्मक अंदाज में जब अपनी मुंडी हिलायी तो उन्होंने उस मशहूर उस्ताद सितार वादक उस्ताद एहसान अली खान का नाम लेकर अपने कानों को छूते हुए कहा, "उस्तादजी मेरे पिताजी के अच्छे खासे दोस्त थे और जब भी कभी उनका कोई बड़ा कॉन्सर्ट होता था तब वह हमें अवश्य बुलाते थे।"

सितार की धुन में मैं भी खो गया था। मैंने देखा की बात करते करते सुषमाजी की आँखें नम हो रहीं थीं। सही मौक़ा आ चुका था। मैंने सुषमाजी के करीब खिसक कर उन्हें अपनी बाँहों में भर दिया और उनके आंसुओं को हलके से पोंछते हुए बोला, "संगीत जीवन का अमृत है। संगीत की एहमियत का कोई हिसाब नहीं। संगीत प्यारों का प्यार है और भगवान की साधना है।"

सुषमाजी ने मेरी और नजर उठा कर देखा, थोड़ा मुस्कुरायी और बोली, "इस रिकॉर्ड से मुझे ज्यादा लगाव इस लिए है क्यूंकि यह गाना मेरे सामने बजाया गया था। उस्ताद एहसान अली खान मेरे पिताजी के समकालीन थे और उन्होंने मुझे भी संगीत शास्त्रीय नृत्य की तालीम दी है। यह गाना जब रिकॉर्ड हुआ तब मैं छोटी थी और उस्तादजी ने मेरे सामने ही इसे बजाया था। उस समय मैं उनके इस गाने पर नाच रही थी।उस समय मैं गुरूजी से शास्त्रीय नृत्य की तालीम ले रही थी। मुझे इण्टर स्कूल कम्पटीशन में मेरे नृत्य के कई पारितोषिक मिले हुए थे। मुझे अपनी धून पर नाचते देख मेरे गुरूजी इतने भावुक हो गए की यह राग उन्होंने करीब एक घंटे तक बजाया और मैं उनकी धुन पर एक घंटे तक नाचती रही। उस माहौल को मैं आज तक भूल नहीं पायी हूँ। पर पिछले कुछ सालों से सांसारिक झंझट के चलते वह सब छूट गया।"

मैंने खड़े हो कर सुषमाजी को खिंच कर खड़े करते हुए कहा, "सुषमाजी, आज इतने सालों के बाद मैं आपका वह नृत्य उस्तादजी के संगीत की ले के साथ देखना चाहता हूँ। आशा है आप मुझे निराश नहीं करेंगी।"

सुषमाजी ने मेरी बात का यकीन नहीं करते हुए कहा, "यह स्कर्ट पहन कर तुम मुझे नाचने के लिए कह रहे हो? वह ज़माना अलग था। मैं छोटी सी दुबली पतली तरवराहट से भरी एक किशोरी लड़की थी। आज मैं एक शादीशुदा मोटी औरत बन गयी हूँ। अब वह चुलबुलाहट और जोश कहाँ?"

मैंने ज़िद करते हुए कहा, "सुषमाजी, आप क्या हैं, कितनी छोटी, बड़ी, पतली, मोटी, खूबसूरत इत्यादि हैं वह देखने वाले की नज़रों पर छोड़ दो। सवाल यह नहीं है की आप बचपन के मुकाबले कैसा नाचोगी। सवाल आपके प्रशंशक, यानीं के मैं आपको वही उस्तादजी के संगीत में वही नृत्य करते हुए देखना चाहता हूँ। सवाल कला और कला के चाहने वालों की फरमाइश का है। एक सच्चा कलाकार कभी अपने चाहने वालों की फरमाइश को नहीं टालेगा।"

सुषमाजी ने मेरी आँखों में आँखें मिलाकर यह जानने की कोशिश की कहीं मैं मजाक तो नहीं कर रहा। मेरी आँखों में गंभीरता का भाव देख कर वह बोलीं, "अरे बाबा, सालों बीत गए मेरे नाचे हुए। ऊपर से यह कपडे। मैं कैसे नाचूं? छोडो, जाने दो, बादमें कभी मैं तुम्हें जरूर वह नृत्य करने दिखाउंगी।"

मैंने जब जिद पकड़ी और सुषमाजी ने यह देखा की मैं नहीं मानने वाला, तब अपने हथियार डालते हुए उन्होंने कहा, "ठीक है, तुम इतनी ज़िद कर रहे हो तो मैं तुम्हें कुछ स्टेप्स दिखाती हूँ। पर अगर मेरा नृत्य ठीक ना हो तो मेरा मजाक मत करना।"

मैंने सुषमाजी की बात का कोई जवाब नहीं दिया और उनके नाचने का इंतजार करने लगा। सुषमाजी ने मोबाइल फ़ोन पर उस्तादजी का सितार वादन दुबारा शुरुआत सी शुरू किया और सीधे खड़े हो कर दोनों हाथों को और पॉंवों को सटा कर रखते हुए सरस्वती वन्दना करते हुए उस्तादजी की सितार की धुन के साथ नृत्य करना शुरू किया।

हालांकि मैं कोई नृत्य का निष्णात तो नहीं हूँ, पर उस शाम वह नजाकत और संजीदगी से सुषमाजी ने जो नृत्य किया शायद उसे देख कर बड़े बड़े उस्ताद भी उनके नृत्य का लोहा मान जाएंगे। जहां तक मेरा सवाल था तो मैं नृत्य के अलावा नाचते हुए सुषमाजी की स्कर्ट के ऊपर उठ जाने पर थिरकती हुई नंगी जाँघें और बड़े ही मादक तरीके से झूमते और कूदते हुए स्तन मंडल को देख कर पागल हो रहा था। शराब के दो गिलास चढाने के बाद और नाच की थकान से कुछ देर बाद सुषमाजी के पाँव डगमगाने लगे। मैं देख रहा था की वह पसीने से तरबतर हो रहीं थीं। सुषमाजी के पाँव इधर उधर जा रहे थे। अचानक ही जैसे वह लड़खड़ा कर गिरने लगी तो मैंने उन्हें पकड़ तो लिया पर मैं भी लुढ़का और मैं और सुषमाजी दोनों बिस्तर पर जा गिरे। सुषमाजी निचे और मैं उनके ऊपर।

उधर साउंड सिस्टम पर संगीत की धुन ख़त्म हो चुकी थी। कमरे में मेरे और सुषमाजी की तेज चल रही साँसों के अलावा पूरा सन्नाटा छाया हुआ था। या तो शराब के नशे में या थकान की वजह से सुषमाजी गिर कर बेहोश सी मेरे निचे दबी हुई कुछ देर सोती रहीं। सुषमाजी का स्कर्ट उनकी जाँघों के ऊपर चढ़ कर उनकी करारी नंगी उन्मादक जाँघों के दर्शन करा रहा था। स्कर्ट के अंदर सुषमाजी एक छोटी सी पैंटी पहने हुए थीं। मैं अपनी लोलुप नज़रों से उस पैंटी के पीछे छिपी हुई सुषमाजी की चूत को अपनी काल्पनिक नज़रों से देख रहा था। दृश्य इतना मादक था की मैं बड़ी मुश्किल से मेरे हाथ सुषमाजी की पैंटी में डालकर उनकी प्यारी सी शायद गीली हुई चूत की पंखुड़ियों को सहलाने से रोके हुए था। मेरा एक सिद्धांत था की नशे में धुत बेहोश महिला से कभी कोई हरकत नहीं करनी चाहिए। मेरी नज़रों मैं ऐसा करना उस महिला का बलात्कार करने जैसा होता है।

मैं कुछ देर तक सुषमाजी को बाँहों में लिए हुए उनके ऊपर उनको होश में आने का इंतजार करते हुए बिस्तरे पर आँखें मूंद कर लेटा रहा। अचानक मैंने तब अपनी आँखें खोलीं जब मेरे कानों में सुषमाजी की मीठी आवाज पड़ी। उन्होंने कुछ उलाहना देते हुए कटाक्ष भरे स्वर में कहा, "एक मेरे जैसी स्कर्ट और उसके अंदर एक छोटी सी पैंटी पहनी हुई युवती को जिसे तुम कई बार खूबसूरत कह चुके हो, अपनी बाँहों में भर कर अपने निचे मैथुन करने की मुद्रा में लिटाए हुए हो और काफी समय से कुछ भी नहीं कर रहे हो। यह क्या बात है? कहीं तुम्हारी मर्दानगी पर शक करने की नौबत तो नहीं आ गयी?"

सुषमाजी की बात सुनकर मुझे एक अजीब सा झटका लगा। मेरी सज्जनता और शालीनता को यह औरत नामर्दगी कह रही थी? मैं सुषमाजी को बेहोशी के हालात में कुछ करना नहीं चाहता था। पर यहां तो उसका कुछ गलत ही मतलब निकाला जा रहा था। मैंने फ़ौरन बिना समय गँवाए, सुषमाजी के स्कर्ट के निचे अपना हाथ डालकर सुषमाजी की छोटी सी पैंटी को निचे की और खिसका कर उनकी चूत की पंखुड़ियों के बिच में अपनी दो उँगलियों को डालकर उनकी चूत को अपनी उँगलियों से चोदना शुरू किया। मैंने तब महसूस किया की सुषमाजी की चूत ना सिर्फ गीली हो चुकी थी बल्कि उनकी चूत में से उस समय जैसे उनके स्त्री रस की बुँदे थमने का नाम नहीं ले रहीं थीं जो सुषमाजी की चुदासी हालात को बयाँ कर रही थी। शायद पहले से ही सुषमाजी ने तय कर लिया था की वह उस रात मुझसे चुदेगी।

मैंने कहा, "मोहतरमा, किसी मर्द की सज्जनता और भद्रता को नामर्दानगी कहना आप जैसी सभ्य महिला को जंचता नहीं। जब आप नशे में करीब बेहोशी के हालात में थीं तब मैं आपसे कोई ऐसा कर्म नहीं करना चाहता था जिसे गलती से भी बलात्कार या जबरदस्ती की संज्ञा दी जा सके। जहां तक मर्दानगी का सवाल है तो मैं सेठी साहब के मुकाबले कितना सही उतरूंगा यह तो कह नहीं सकता पर इतना तो जरूर कह सकता हूँ की मैं आपकी इस रंगीन शाम को और रंगीन बनाने की पूरी कोशिश करूँगा। मैं कितना सफल होता हूँ वह आप मुझे बताएंगी।"

मैंने कुछ गुस्से और कुछ प्यार भरे लहजे में जब यह कहा तब सुषमाजी ने मुस्कुराते हुए अपनी पैंटी, जो उनके घुटनों के ऊपर तक खिसका दी गयी थी उसे पाँव ऊपर निचे कर निकाल फेंका। फिर मुझे अपने ऊपर खींचतीं हुई बोलीं, "अरे यार अगर मुझे बलात्कार जैसा लगता तो क्या मैं तुम्हारे निचे इस मुद्रा में इतने काफी समय से लेटी हुई थोड़ी होती?"

मैंने सुषमाजी की चूत को अपनी उँगलियों से और फुर्ती से चोदते हुए कहा, "सुषमाजी, मैं ही जानता हूँ की इस शाम का कई महीनों से मैं कितनी बेसब्री से इन्तेजार कर रहा था। आपके लिए ना सही पर मैं अपने लिए तो यह कह ही सकता हूँ। अब कहीं आज जा कर मुझे सही मौक़ा मिला है।"

सुषमाजी ने कुछ कटाक्ष भरे स्वर में कहा, "पता नहीं। हालांकि तुम मुझे लाइन तो मार रहे थे पर आगे बढ़ने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे थे। मुझे आखिर में यह लगने लगा था की शायद तुम्हें मुझमें कोई इंटरेस्ट नहीं है। तुमने मेरे करीब आने के लिए कोई भी ठोस कदम ही नहीं उठाये जब की तुम्हारे दोस्त ने तो तुम्हारी बीबी को सातवें आसमान की सैर भी करा दी"

मैंने सुषमाजी को खिंच कर थोड़ा बिठा कर उनके ब्लाउज के बटन को खोलते हुए कहा, "सुषमाजी, देर से ही सही पर दुरस्त तो आया हूँ ना?"

सुषमाजी ने अपनी उँगलियों को मेरे होँठ पर रख कर कहा, "अब बोलना बंद, काम चालु।"

मुझे कहाँ कोई समय गँवाना था? मैंने सुषमाजी के ब्लाउज और ब्रा को हटा कर उनको पहली बार साक्षात नग्न रूप में देखा। कामदेव की रति के समान सुषमाजी बिस्तर पर मेरी बाँहों में अपने दोनों स्तनोँ की सीधी सख्ती से खड़ी हुई निप्पलों को मेरे होंठों से लगाते हुए मेरी और देख कर मुस्करायीं। सुषमाजी के स्तनोँ को एक के बाद मुंह में रख कर उनकी निप्पलों को चूसने का आनंद पाने की मेरी कामना कई महीनों की तपस्या के बाद पूरी हो रही थी। मैंने सुषमाजी की जाँघों के बिच स्थित उनकी गुलाबी चूत को देखा। मैंने कई स्त्रियों के गुप्तांग देखे थे पर सुषमाजी की चूत इतनी गुलाबी और सुकोमल सी दिख रही थी जैसे कोई दक्ष चित्रकार ने अपनी उच्चतम कल्पना से उनका चित्रण किया हो।

सुषमाजी की जाँघे ऐसी अद्भुत सुआकार और कमल की कोमल डंडी के समान निचे से ऊपर की और सुंदरता से सहज सी उभरती हुई थीं की देखने वाला देखता ही रह जाए। उभरती हुई जाँघें जहां जाकर एक दूसरे से मिल जातीं थीं वहाँ आगे और पीछे से तंत्र वाद्य गिटार जैसा बदन का मादक उभार अच्छे अच्छे मर्दों की मर्दानगी के धैर्य को जबरदस्त चुनौती देने वाला था। चूत को छिपाए हुए आगे का अग्रभाग और कूल्हों में परिवर्तित पीछे का उभार ऐसा सुआकार, रोमांचक और कामुक था की अगर उसे कोई नामर्द भी देखले तो उसका लण्ड भी खड़ा हो जाए।

मैंने सुषमाजी की नाभि के ऊपर कमर को सहलाते हुए कहा, "सुषमाजी आप भगवान की एक अद्भुत कलाकृति समान हो। मैंने आपके नग्न रूप की आजतक मात्र कल्पना ही की थी। आज मुझे यह कहने में कोई झिझक नहीं हो रही की नग्न रूप में आपका बदन मेरी कल्पना से भी कहीं ज्यादा आकर्षक और मादक है।"

सुषमाजी ने मेरी आँखों में आँखें मिलाकर मंद मुस्कुराते हुए कहा, "राजजी, मैं आपकी भोग्या प्रियतमा हूँ। मैं नहीं चाहती की आप मुझे सुषमाजी कह कर बुलाएं। भगवान ने हर स्त्री में इतनी कामुकता कूट कूट कर भरी है की अगर स्त्रियों पर मान मर्यादा और स्त्री सहज लज्जा का जबरदस्त घना पर्दा ना हो तो स्त्रियां चुदाई में इतनी बेबाक हो जाएँ की उनको सम्हालना भी मुश्किल हो जाए। स्त्रियों के मन में उसके साथ साथ एक और स्त्री सहज कामना होती है की जब स्त्री और पुरुष सम्भोग करते हैं उस समय पुरुष अपनी स्त्री को सम्मान पूर्वक पर साथ ही में आक्रामकता और उग्रता से सम्भोग करे माने चोदे। आपका मुझे सुषमाजी कहना मुझे इस समय नहीं जँच रहा। आप मुझे सुषमा कह कर ही बुलाएं और मुझे अब बेरहमी से खूब तगड़ा चोदें।"

मैं बिना बोले सुषमाजी को ताकता ही रहा। सुषमाजी उस समय अपने मन की बात को बयाँ कर रही थी और एक कामातुर स्त्री के मन के भाव को दर्शा रही थी। सुषमाजी ने अपने मन की बात को जारी रखते हुए कहा, "आज आप इस समय सारे सम्मान को छोड़ मुझे अपनी रखैल, रंडी या छिनाल समझ कर मुझसे अपना प्यार जतायें। इससे मेरी स्त्री सुलभ कामनाओं की पूर्ति होगी। आपका लण्ड मेरी चूत को अपनी ही मालकियत समझ कर उसी अच्छी तरह रगड़े जिससे मुझे लगे की मैं आपकी निजी संपत्ति हूँ। आप मेरा अपनी मन मर्जी के अनुसार भोग करो और अपनी मन मर्जी के अनुसार मुझे चोदो।"

मैंने झुक कर सुषमा की चूत को चूमते हुए कहा, "सुषमा तुम्हारी बात बिलकुल सही है। प्यार में सम्मान अन्तर्निहित होता है। सम्मान ख़ास रूप से देने की जरुरत नहीं होती। मुझे तुम्हारी चूत और तुम्हारे स्तन मंडल को खूब चूमना है और प्यार जताना है।"

अनायास ही सुषमा का हाथ मेरे पाजामे के नाड़े पर जा पहुंचा। वह चाहती थी की मैं भी अनावश्यक आवरणों को त्याग कर अपने प्राकृतिक अवस्था में प्रस्तुत होऊं। शायद वह मेरे लण्ड को सहलाना चाह रही थी। मैंने फुर्ती से पाजामे का नाडा खोल कर पजामा और अंदर की निक्कर निकाल फेंकी। मेरे पाजामे और निक्कर के हटते ही बंधन में जकड़ा हुआ मेरा लण्ड सख्ती से खड़ा हो गया। मेरा लण्ड का साइज शायद सेठी साहब के मुकाबले उन्नीस हो सकता है पर सुषमा के चेहरे से मुझे ऐसा कुछ लगा नहीं। सुषमा ने मेरे लण्ड के आझाद होते ही अपनी हाथों में ले लिया और बड़े ही प्यार से उसे अपने हाथों से सहलाने लगी।

अब माहौल कुछ ज्यादा ही निजी होने लगा था। सुषमा शायद मेरे मन के अंदर चल रही गुथम्गुत्थि को समझने की कोशिश कर रही थी। कुछ देर सुषमा चुप रहीं और आँखे मुंद कर कुछ सोचती रहीं। कुछ देर बाद मेरी और देख कर बोलीं, "राज तुम्हें पता है, मैंने सेठी साहब और टीना को क्यों भेज दिया तुम्हारे ससुराल एक साथ?"

मैंने सुषमाजी की और देखा। उन्होंने कहा, "मैं चाहती हूँ की तुम्हारा और हमारा परिवार एक हो। मतलब सेठी साहब और टीना के सम्बन्ध, सेठी साहब और मेरे बिच में हैं वैसे ही हों। समझे, मैं क्या कह रही हूँ?"

हालांकि मुझे काफी अच्छा आइडिया था की सुषमा क्या कहने जा रहीं थीं, मैं वह बात उनकी जुबानी ही सुनना चाहता था। शायद सुषमा भी यह समझतीं थीं। उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रख कर कहा, "मुझे पता है राज की तुम कई महीनों से मुझे पाने की कोशिश कर रहे थे। शायद इसी लिए तुमने आगे चल कर टीना से सेठी साहब के संबंधों को काफी करीबी बनाने की कोशिश की और उनको साथ में टीना के मायके भेजा। शायद तुम भी वही चाहते हो जो मैं चाहती हूँ। मुझे तुम बहुत पसंद हो। तुम्हारी हर बात मुझे पसंद है। राज आज मैं तुम्हारे सामने हाथ जोड़ कर कुबूल करती हूँ की मैं तुम्हारे बच्चे की माँ बनना चाहती हूँ। राज मुझे एक बच्चा देदो। मैं जिंदगी भर तुम्हारी ऋणी रहूंगी।" यह कहते हुए सुषमा ने हाथ जोड़े और मैंने देखा की सुषमा की आँखों में आंसूं भर आये। शायद किसी मर्द से चुदवाने के लिए प्रार्थना करने की आदत नहीं थी उनको। शायद वह मुझ से एक बच्चा पाने के लिए बेबस थी।

मैंने सुषमा का हाथ अपने हाथों में लिया और बोला, "सुषमा, ऐसा मत कहो। मैं भी चाहता हूँ की तुम्हें बच्चा हो और तुम्हारी और सेठी साहब की जिंदगी में फिर से वही रौनक आये। मुझे टीना ने आपके और सेठी साहब के दर्द और अंतर्द्वंद के बारे में बताया था। अब हमारे बिच औपचारिकता की जूठी दिवार या पर्दा नहीं है। हम एक दूसरे से बेझिझक अपने मन की बात कह सकते हैं। अगर मेरे वीर्य से आपका अंकुर फलीभूत हुआ तो यह मेरा सौभाग्य होगा। सुषमा मैं सिर्फ आपकी बाँहों में नहीं आपके मन में समा जाना चाहता हूँ। हालांकि आप सेठी साहब की पत्नी हो, मैंने आपके तन और मन दोनों पाने की उम्मीद सेठी साहब के साथ और उनके विश्वास के कारण ही रखी। मैं आपको यह विश्वास दिलाना चाहता हूँ की आप और सेठी साहब के जीवन में एक दूसरे के लिए हमेशा प्यार बना रहे इस लिए मैं सदासर्वदा प्रयत्नशील रहूँगा। पर तुम हमेशा मेरी तन और मन से पत्नी भी रहोगी। हमारा मिलन सिर्फ बच्चे के लिए नहीं होगा।"

सुषमा मेरी बाँहों में से निकलती हुई बोली, "राजजी अब ना तो तुम और टीना हमें छोड़ कर कहीं जा सकते हो और ना ही हम कहीं जाना चाहेंगे। अगर जाना भी पड़ा तो भी हमारे सम्बन्ध कम मजबूत नहीं होंगे क्यूंकि हमारी जान मतलब हमारे बच्चे एक दूसरे के पास होंगे।"

मैंने कहा, "सुषमा, अब हम एक होने वाले हैं। हमारा यह मिलन यादगार होना चाहिए।"

सुषमा ने मेरी बाँहों में मचलते हुए जवाब दिया, "हाँ, मैं चाहती हूँ की हमारा प्यार भरा मिलन प्यार भरे संगीत के वातावरण में ही होना चाहिए। सेठी साहब के साथ मेरा मिलन हमेशा तूफानी अंदाज में ही होता है। उनके साथ सिर्फ बदन की भूख प्यार के साथ मुकाबला करती है। पर आज मैं बदन की भूख को प्यार से संगीतमय माहौल में बुझाना चाहती हूँ।"

यह कह कर सुषमा बिस्तरे से उठ खड़ी हुईं और अपने म्यूजिक सिस्टम की और जाने लगी। नंगी सुषमा को कमरे में चलते हुए देख मेरा पूरा बदन रोमांच से भर गया। नंगी चलती हुई सुषमा के कूल्हों की लचक देखना किसी भी मर्द को पागल करने के लिए काफी था। सुषमा की गाँड़ का रंग और उभार इतना ज्यादा मादक था की मैंने सुषमा को पास बुलाया और बुला कर सुषमाकी गुलाबी गोरी गाँड़ पर हाथ फिराते हुए उन्हें कभी बड़े प्यार से सहलाया तो कभी दो तीन चपेट मार कर और भी लाल किया। चलते चलते सुषमा के स्तनोँ का उछलना किसी बिजली के गिरने से कम चमत्कारिक नहीं था। कुछ देर बाद जब मैं सुषमा की गाँड़ से फारिग हुआ तो सुषमा ने उनके चहिते सितार वादक की एक प्यार भरी धुन अपने म्यूजिक सिस्टम पर बजानी शुरू की और शुरू होते ही वापस लपक कर वह मेरी बाँहों में आ गयी।

सोचिये उस समय मेरी हालत कैसी रही होगी। मेरी प्यारी सुषमा को मेरी बाँहों में पाकर मेरे लिए अब अपने आप पर नियत्रण रखना बड़ा ही कठिन था। मैंने सुषमा की चूत में फिर से दो उंगलियां डाली और मैं बड़े ही प्यार से सुषमा की चूत में से उन उँगलियों को अंदर बाहर कर सुषमा को तैयार करने की कोशिश में लगा था। सुषमा तो तैयार ही थी। शायद उसे भी महीनों से मेरे लण्ड की उम्मीद थी। एक तरफ म्यूजिक सिस्टम पर सितार वादन की लय और तबले की थाप माहौल को संगीतमय बना रही थी तो दूसरी तरफ मैं सुषमा की चूत को मेरी उँगलियों से चोदते हुए उसे चुदवाने के लिए तैयार कर रहा था। संगीत की मधुरता के साथ मेरी उँगलियों की चुदाई से सुषमा भी पलंग पर मचल मचल कर चुदाई के लिए तैयार होने के संकेत दे रही थी।

पर संगीतमय चुदाई के साथ साथ जीवन की एक ठोस सच्चाई भी मुझे नजर आ रही थी। शायद सुषमा और सेठी साहब ने यह मिलजुल कर फैसला लिया हो की वह दोनों मुझसे और टीना से जातीय सम्बन्ध बनाएंगे और उस संभोग से अगर बच्चे हुए तो हम सब आपस में मिलजुल कर उन्हें सांझा कर लेंगे। इस समझौते में मैं और टीना भी भागिदार थे यह तो मैं पहले पार्ट में बता ही चुका हूँ। सुषमा का बच्चा वह रख लेंगे और टीना का बच्चा हम। इस तरह कोई झगड़ा और मनमुटाव नहीं रहेगा। मुझे इसमें कोई आपत्ति नहीं थी। वैसे भी मैं और टीना दुसरा बच्चा प्लान कर ही रहे थे। अगर वह मेरे दोस्त सेठी साहब के वीर्य से भी होगा तो क्या हुआ? होगा तो हमारा ही। अगर दोनों बच्चे हो गए तो वह बच्चे हमारी दोनों फॅमिलियों को जोड़ कर रखेंगे। फिर तो सेठी साहब और सुषमा चाहे जहां कहीं भी हों, हमसे अलग नहीं होंगें। मैं चाहता था की टीना और सेठी साहब मिल कर बच्ची पैदा करे। हमारा एक बेटा तो था ही अब बेटी होने से हमारी फॅमिली पूरी हो जायेगी।

मेरी उंगली चोदन से सुषमा काफी उत्तेजित हो चुकी थी। वह बार बार दबी सी आवाज में, "राज, अब बस भी करो, मुझे अपने लण्ड से चोदो। देर मत करो। मुझे तुम्हारी उंगलियां नहीं, तुम्हारा मोटा तगड़ा लण्ड चाहिए।" कह कर अपनी उत्तेजना प्रदर्शित कर रही थी। तब फिर मैं रुक गया। सुषमा को मैंने बिस्तर पर लिटाया और उसकी मादक टांगें मैंने अपने कंधे पर रखदीं। सुषमा की गुलाबी चूत की पंखुड़ियां एकदम गोरी गोरी सी मेरे लण्ड का इंतजार कर रही हों ऐसे फरफरा रहीं थीं। सुषमा खुद चुदवाने के लिए इतनी बेबस हो रही थी की बार बार वह अपनी चूत की पंखुड़ियों को अपनी ही उँगलियों से सेहला कर अपनी चुदवाने की इच्छा जाहिर कर रही थी।

अक्सर औरतें अपनी चुदवाने की इच्छा तीन तरीकों से जाहिर करती हैं। पहला वह अपने स्तनोँ को निचे से पकड़ कर अपनी हथेली में उठा कर अपनी बेबसता का इजहार करेगी, दुसरा वह अपनी चूत की पंखुड़ियों को सेहला कर अपनी इच्छा जाहिर करेगी और तीसरा तरिका है अपनी उंगलियां मुंह में डाल कर उस पर अपनी लार लिपटाती रहेंगी और आपकी और देख कर हल्का हल्का मुस्कुरा कर अपनी आँखों से इशारा करेगी की वह इच्छुक है। सुषमा की चूत में से धीरे धीरे उसके स्त्री रस की बूंदें निकलती दिख रहीं थीं। सुषमा शायद मुझसे भी ज्यादा बेबाक थी चुदने के लिए। सुषमा ने मेरे लण्ड को पकड़ा और उसे सहलाते हुए बोली, "राज, मेरा बड़ा मन कर रहा है इसे चूसने के लिए। पर सबसे ज्यादा मेरी चूत फड़फड़ा रही है तुम्हारा लण्ड लेने के लिए। सेठी साहब से हमारी कुछ दिनों से अनबन चल रही थी तो कई दिनों से यह बेचारी भूखी है।"

123456...8