साथी हाथ बढ़ाना Ch. 02

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मैंने भाभी के हाथ को कर उन्हें कुछ मानसिक सहायता देने का प्रयास किया। भाभी ने तब मेरा हाथ थामा और उसे दबाने लगी जिससे मैंने अनुभव किया की भाभी काफी दर्द झेल रही थी। पर जैसे जैसे समय गुजरता गया, भाभी के हाथ की पकड़ की सख्ती कम होती गयी और उसकी जगह भाभी की उंगलियां मेरे हाथ को सहलाने लगीं। इसका मतलब यह था की भाभी अब सेठी साहब की चुदाई एन्जॉय करने लगी थी। भाभी के मन के उन्माद का कयास उनकी उँगलियों के खेलने के ऊपर से मैं लगा रही थी। मैं यह भी देख पा रही थी की भाभी का तन सेठी साहब के लण्ड को जवाब देते हुए सही लय में ऊपर की और उछल कर सेठी साहब की चुदाई को एक सही जोड़ीदार की तरह मैच कर रहा था। सेठी साहब ने एक एक बार मेरी नज़रों से नजरें मिला कर ऐसा इशारा किया जैसे वह भाभी जी को चुदवा ने के लिए लाने के लिए मेरा शुक्रिया कर रहे हों।

मैंने भाभी की इस चुदाई के दरम्यान एक अजीब बात महसूस की। हालांकि मैं जानती थी की भाभी को सेठी साहब की चुदाई के कारण असह्य दर्द महसूस हो रहा था, पर आश्चर्य इस बात का था की उसी चुदाई के दरम्यान भाभी बार बार झड़ती रहती थी। मैंने भाभी को सेठी साहब की चुदाई की शुरुआत में कम से कम तीन बार झड़ते हुए महसूस किया। जब सेठी साहब ने चुदाई की फुर्ती बढ़ाई और जब भाभी भी चुदाई का आनंद लेने लगी तब तो भाभी पता नहीं कितनी बार झड़ गयी।

औरत का मन बड़ी ही अजीबो गरीब विषमताओं से भरा हुआ होता है। मैं भी तो एक औरत ही थी ना। जब मैंने देखा की सेठी साहब और भाभी एक दूसरे से चुदाई में इस तरह खो गए थे की वह मुझे भी भूल गए थे तब मेरे मन में उदारता की जगह इर्षा ने ले ली। अरे भाभी अकेली सेठी साहब की चुदाई के मजे कैसे ले सकती है? सेठी साहब की चुदाई की पहली हकदार तो मैं ही थी ना? यह तो मेरी उदारता का नतीजा था की मैंने भाभी साहेब को सेठी साहब से पहले चुदवाया। पर क्या किया जाए? सेठी साहब और भाभी इस तरह चुदाई में तल्लीन थे की उनको इस हालात में छेड़ना और उनकी इस तरह उन्नत चुदाई में बाधा डालना कोई पाप से कम नहीं। जब कोई मर्द और औरत चुदाई में मग्न हों तो उनकी चुदाई में विघ्न डालने जैसा कोई बड़ा पाप नहीं है यह मैं जानती थी।

भाभी को सेठी साहब की चुदाई में इतना मजे लेते हुए देख मेरा मन जल उठा। पर क्या करती? मैं चुपचाप उन दोनों की चुदाई देखती रही। जब मुझसे न रहा गया, तब मौक़ा पा कर मैंने सेठी साहब की गाँड़ पर एक जोरदार चूँटी भरी। भाभी की चुदाई जारी रखते हुए सेठी साहब ने एक आँख खोल कर देखा तो मेरी क्रोधित नजर को देखा। मेरी आँखों का भाव पढ़ कर ही वह समझ गए की मेरी इर्षा मेरे सद्भाव पर हावी हो रही थी। मैं चाह रही थी की सेठी साहब भाभी को छोड़ मुझे चोदे। सेठी साहब ने मुझे आँख मार कर इशारा किया की वह जल्द ही मेरी इच्छा पूरी करेंगे।

तब सेठी साहब ने मेरी भाभी के बदन पर कुछ झुक कर उनके होंठों से अपने होंठ मिलाये। भाभी भी सेठी साहब की चुदाई से कुछ थकी हुई लग रही थी। सेठी साहब की चुदाई को झेलना कोई आसान बात नहीं थी। भाभी ने पहली ही इन्निंग्स में बड़ा अच्छा परफॉरमेंस दिखाया यह मुझे मानना पडेगा। सेठी साहब और भाभी प्रगाढ़ चुम्बन में लग गए। मैं बड़ी ही बेचैनी से उनके अलग होने की प्रतीक्षा करती रही। कुछ समय बाद सेठी साहब ने बड़े प्यार से भाभी के कानों में कहा, "तुम थक गयी हो। चाय पी जाए।"

भाभी ने कहा, "आपका तो अभी छूटा नहीं। आपको भी तो अपना माल छोड़ना है।"

सेठी साहब ने बड़े प्यार से भाभी को समझाते हुए कहा, "अभी तो पूरी रात बाकी है। पर भाभीजी आप कमाल हैं। क्या आपको अच्छा लगा?"

भाभी ने भी सेठी साहब से शर्माते हुए कहा, "मैं ननदसा का जितना शुक्रिया करूँ कम है। आज के जैसा अनुभव मुझे पहले कभी नहीं हुआ। आप बहुत अच्छा करते हैं।"

सेठी साहब ने इस बार भाभी का सर चूमते हुए अपना लण्ड भाभी की चूत में से निकालते हुए कहा, "भाभी जी अब हम से शर्माना छोड़िये। जो कहना है साफ़ साफ़ शब्दों में कहिये। बोलिये की अच्छी चुदाई हुई। बोलिये भाभीजी।"

भाभी ने शर्माते हुए कहा, "सेठी साहब शर्म आती है, ऊपर से ननदसा भी यहां है।"

मैंने भाभी के कूल्हे पर एक हलकी सी चपेट मार कर मुस्कुराते हुए कहा, "भाभीजी, चुदवाते हुए शर्म नहीं आयी तो बोलने में क्या शर्म? बोलो जो बौलना है।"

भाभी जी ने आँखें निचे गाड़ते हुए कहा, "सेठी साहब बहुत अच्छा चोदते हैं। मुझे तुम्हारे भाई ने इतने सालों में ऐसा कभी नहीं चोदा।"

मेरे मुंह से निकल गया, "भाभीजी अभी देखती जाओ। अभी तो सेठी साहब का एक बार भी छूटा नहीं है। अभी तो पूरी रात बाकी है।"

सेठी साहब ने हम दोनों की चूँचियों को अपने एक हाथ से मसलते हुए कहा, "हे महिलाओं, अगर आपकी मेहरबानी हो तो हम चाय का एक प्याला पियें।"

भाभी ने कुछ शर्माते हुए और कुछ हिम्मत दिखाते हुए सेठी साहब को चूँचियों को दबाते हुए की और इशारा करते हुए कहा, "सेठी साहब, रुको, दूध रखा हुआ है। इनमें से दूध निकालने की जरुरत नहीं है। वैसे भी इन में अब दूध नहीं बचा है।"

मैंने भाभी से कहा, "भाभी सा, देखते जाओ। सेठी साहब का कोई भरोसा नहीं। कहीं सेठी साहब ने ठान ली तो देखना कहीं इन्हें चूसते हुए इन में से भी दूध निकाल ना लें।"

भाभी ने फटाफट आगे बढ़ कर सेठी साहब का हाथ लगा कर आननफानन में एक साडी अपने ऊपर लपेट ली और चाय बनाने में लग गयी। तब सेठी साहब ने उसे रोका और बोले, "इतने सुंदर बदन को छिपा क्यों रही हो? यह सिर्फ चुदाई के लिए नहीं, दर्शन के लिए भी है।" सेठी साहब ने भाभी की लपेटी हुई साडी छीन कर भाभी को नंगी कर दिया।

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