साथी हाथ बढ़ाना Ch. 02

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सुषमा ने फिर मेरा लण्ड अपनी चूत की सतह पर रगड़ा। सुषमा के स्त्री रस और मेरे लण्ड से निकले हुए मेरे पूर्व रस की चिकनाहट के कारण मेरा लण्ड वैसे ही काफी स्निग्ध तो था ही। सुषमा ने मेरे लण्ड को पकड़ कर हिलाकर जगह बनाते हुए अपनी चूत की पंखुड़ियों के बिच घुसेड़ा। मैंने एक हल्का सा धक्का दे कर मेरे लण्ड को सुषमाकी चूत में घुसेड़ दिया। सुषमाके मुंह से एक हलकी सिसकारी निकल गयी। काफी समय से उपयोग में ना आने के कारण शायद सुषमा की चूत का छिद्र कुछ सकुचा सा गया होगा। मेरे लण्ड ने घुसने के लिए जब जगह बनानी चाही तो कुछ तो दर्द होना ही था। खैर, सुषमा की चूत की सुरंग बड़ी लचीली और रसीली थी। मेरे लण्ड को सुषमाकी चूत की चमड़ी ने जकड के पकड़ लिया। मैं सुषमा की चुदवाने की तड़प कितनी तगड़ी थी वह सुषमा की चूत के अंदर हो रही फड़कन से ही समझ गया था।

मेरे लण्ड के सुषमा के चूत की सुरंग में घुसते ही सुषमा जैसे थरथर्रा उठी। सुषमा के पुरे बदन में रोमांच की लहर दौड़ रही थी जो मैं उसके चेहरे के भाव पढ़ कर बता सकता था। मेरे लण्ड के पुरे अंदर घसते ही सुषमा ने मुझे अपनी बाँहों में जकड़ लिया। मेरे होँठों को अपने होँठों से चिपका कर सुषमा मुझे एक अत्यंत प्रगाढ़ चुम्बन देना चाहती थी। मैंने भी अपने होँठों को सुषमा के होँठों से चिपका कर मैं सुषमा के होंठ और उसकी जीभ को चाटने और चूसने लगा। मेरी छाती में सुषमा की मदमस्त चूँचियाँ की निप्पलें कोंच रहीं थीं। कुछ देर बाद मैं अपने होँठ सुषमा के स्तनोँ पर रख दिए और उनको एक के बाद एक बारी से चूसने लगा। सुषमा के स्तन भी उत्तेजना से फुले हुए थे और मेरे होँठों में जाते हुए ही उनमें अजीब सी हलचल मैं महसूस करने लगा। स्त्रियों के स्तन स्त्रियों के सम्भोग में बड़ा महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। कहते हैं की अगर आप स्त्रियों के स्तनोँ को दक्षता से सेहलाओ तो स्त्रियां चुदवाने के लिए मजबूर हो जातीं हैं।

मेरा लण्ड सुषमा की सख्त चूत में जकड़ा हुआ था। सुषमाने मेरी कमर और कूल्हे को पीछे से अपने बाहुपाश में इतनी ताकत से खिंच कर अपने बदन से जकड़ा दिया था की उसके कारण मेरा पूरा का पूरा लण्ड सुषमा की चूत में जा घुसा था। मुझे मेरे लण्ड की सतह के ऊपर सुषमा की चूत की सुरंग में हो रही तेज कम्पन महसूस हो रही थी। सुषमा कई बार सेठी साहब के तगड़े लण्ड से चुद चुकी थी। पर फिर भी मेरे लण्ड से चुदने से सुषमा को इतनी उत्तेजना होगी, उसकी चूत में उत्तेजना के मारे ऐसी कम्पन होगी यह मैंने सोचा भी नहीं था।

सुषमा की चुदाई करते हुए मैं मेरी बीबी टीना की चुदाई की उसके साथ तुलना करने लगा। हालांकि मुझसे टीना पहले शुरुआत में काफी उग्रता और उत्तेजना से चुदवाती थी, पर शादी के कुछ सालों बाद वह गर्मजोशी नहीं रही थी। आखिर में तो मुझे उसे गरम करने के लिए सेठी साहब की कोई ना कोई कहानी बनानी पड़ती थी जिससे वह उत्तेजित हो कर चुदाई में रेस्पॉन्ड करती थी। पर मैंने कभी टीना की चूत में जैसे सुषमा की चूत में स्पंदन हो रहे थे वैसे स्पंदन कभी भी अनुभव नहीं किये। शायद गैर मर्दों से चुदवाते हुए औरतों को कुछ अधिक ही उत्तेजना होती होगी जिसके कारण उनकी चूत में ऐसे स्पंदन हो रहे होंगे। या फिर सुषमा मुझसे चुदवा कर टीना से शायद ज्यादा ही एन्जॉय कर रही होगी।

हो सकता है अगर टीना सेठी साहब से चुदवाने के लिए राजी हो गयी तो टीना भी सेठी साहब से चुदवाते हुए अपनी चूत में ऐसे स्पंदन महसूस कर रही हो। वैसे मुझे यकीन था की जिस तरह से मैंने टीना को बार बार सेठी साहब की बात कर सेठी साहब से चुदवाने के लिए मानसिक रूपसे तैयार किया था, टीना अपने मायके में सेठी साहब से जरूर चुदवायेगी। मुझे यह भी यकीन था की सेठी साहब टीना पर इतने फ़िदा हो गए थे की वह टीना को चोदे बगैर नहीं छोड़ेंगे। पर फिर भी मुझे चिंता थी की कहीं टीना लाज शर्म की वही घिसी पीटी पुरानी बात कर सेठी साहब का मुड़ ऑफ ना करदे। मैंने तो सुषमा को चोदने का रास्ता बना लिया था पर टीना को भी सेठी साहब से चुदवाना जरुरी था। मैंने तय किया की अगले दिन मैं फ़ोन कर पता करूंगा की रात को सेठी साहब से टीना की चुदाई हुई की नहीं।

मेरा खड़ा हुआ सख्त लण्ड सुषमा की रसीली चूत में अंदर बाहर जाता हुआ कमरे में "पिचक पिचक" की आवाजें पैदा कर रहा था। साथ साथ में मेरे सुषमा को जोरदार धक्के मारने से कई बार सुषमा "ओह..... आह..... " इत्यादि सिसकारियां निकाल रही थीं। मुझे मेरे लण्ड में एक अनूठा सुरूर महसूस ह रहा था। सुषमा की चूत टाइट होते हुए भी रसीली और चिकना थी। सुषमा की चूँचियाँ इतनी गोरी और लाल थीं की हाथ लगाने में भी डर लगता था की कहीं हाथ में लाल गुलाबी रंग ना लग जाए। जैसे जैसे मैं चोदते हुए सुषमा को धक्के पेल रहा था, सुषमा का पूरा बदन हिल जाता था और साथ में उसकी गोरी गुलाबी फूली हुई चूँचियाँ पूरी निप्पलों के साथ ऐसे हिलतीं थीं जैसे बारिस के समय हवाके तेज झोंके से पेड़ हिलते हों।

मुझे सुषमा को चोदने का ऐसा बढ़िया मौक़ा मिला था की मैं रुकने वाला नहीं था। सुषमा को चोदते हुए सुषमा का पूरा नंगा इतना खूबसूरत बदन देखते हुए मैं नहीं थक रहा था। सुषमा की गोरी चिट्टी चूत में मेरा तगड़ा चिकना लण्ड अंदर बाहर होते हुए देखने का मजा ही कुछ और था। कई बार सुषमा अचानक ही सिसकारी लगा कर बोल उठती, "राज चोदो मुझे, फ़क मी, तुम बहुत अच्छा चोद रहे हो।" बगैरह बगैरह। काफी देर तक सुषमा को चोदने के बाद एक बार सुषमा बोल पड़ी, "अच्छा स्टैमिना है राज आपका। मानना पडेगा। आप सेठी साहब से कम नहीं हो। आप सेठी साहब को अच्छी खासी टककर दे सकते हो।" तब मुझे लगा की शायद सुषमा कुछ थकने लगी थी।

सब से ज्यादा उत्तेजना मुझे सुषमाकी उड़ती हुई चूँचियों को देख कर होती थी। जैसे ही मैं सुषमा की चूत में अपना लण्ड पेलता और एक धक्का मारता तब सुषमा की फूली भरी हुई मदमस्त चूँचियाँ फ़ैल कर हवा में उड़ने लगतीं। जो स्तन स्थिर होते हुए इतने भरे हुए सख्त और सुआकार दीखते थे वह धक्के से फ़ैल जाने के कारण एक अजीब सा आकार बनाते हुए वापस वही सख्त गोलाई और भरी हुई स्थिति में वापस आ जाते थे। चुदाई की उत्तेजना के मारे सुषमा की चूँचियों की निप्पलें फूल कर कोई गुम्बज के शिखर के समान सुषमा के स्तनोँ पर अपना वर्चस्व स्थापित कर डटी हुई दिखती थीं।

उन कभी उड़ते तो कभी ठहरे हुए फुले हुए स्तनोँ को अपने हाथों में लेकर मसलना और निप्पलों को इतना दबाना की सुषमा के मुंह से दबी हुई सिसकारी निकल जाए उसका मजा ही कुछ और था। मैं झुक कर जब भी मौक़ा मिलता सुषमा की कोई एक चूँची की निप्पल को मुंह में ले लेता और जैसे ही दांतों से काटने लगता सुषमा चिल्लाती, "राज दर्द हो रहा है। बस करो।"

पर अब करीब पंद्रह बीस मिनट की चुदाई के बाद सुषमा के चेहरे पर थकान का भाव देख कर मैं थम गया। मुझे भी सर पर पसीना आ रहा था। मैंने झुक कर सुषमा के होँठ से अपने होँठ चिपका कर सुषमा को एक गहरा चुम्बन किया। सुषमा भी मेरे होँठों को चूसती हुई मेरी जीभ को अपने मुंह में ले कर मेरी लार चूस कर निगलने लगी। काफी समय के बाद इतना उत्तेजक और लंबा चुम्बन मैं कर रहा था।

सुषमा ने अपनी बाँहें फैलायीं और मैं सुषमा की बाँहों में सुषमा के बगल में लेट गया। सुषमा पलट कर मेरी आँखों में आँखें डालकर बोली, "कैसा रहा? अच्छा लगा मेरे साथ?"

मैंने सुषमा की नाक से अपनीं नाक रगड़ते हुए कहा, "सुषमाजी, अभी तो पिक्चर बाकी है। मुझे इतना अच्छा लगा की अब सेठी साहब का चांस नहीं लगेगा। मैं तुम्हें छोडूंगा ही नहीं। सेठी साहब को टीना के पास भेज दूंगा। अब तुम आसानी स मुझसे पिंड छुड़ा नहीं पाओगी।"

सुषमा ने भी मुस्कुराते हुए कहा, " कौन साली पिंड छुड़ाना चाहती है? मैं तो चाहती हूँ की तुम मुझसे ऐसे ही चिपके रहो। सेठी साहब अगर टीना से चिपक कर रहते हैं तो फिर तो हमारी बल्ले बल्ले। पर अगर सेठी साहब नाराज हो गए तो तुम सम्हालना उनको।"

मैंने पट से जवाब दिया, "मैं क्यों सम्हालूं? टीना सम्हालेगी उनको।"

मेरी बात सुन कर टीना मुस्कुरायी और बोली, "अरे वाह रे मेरे टीना के हस्बैंड! एक ही रात में तुम तो बिलकुल पलट गए! पर यह तो पता करो की तुम्हारी बीबी और मेरे पति की सेटिंग हुई भी की नहीं? कहीं ऐसा तो नहीं की हम यहां बैठे बैठे उनके मिलन के सपने देख रहे हों और वहाँ वह दोनों के बिच कुछ हुआ ही ना हो? वह रात को अपने अपने बेड में सो रहे हों।"

मैंने कहा, "कैसे पता करें? अगर टीना सेठी साहब के साथ है तो इस समय उसे फ़ोन करना ठीक नहीं होगा। कहीं वह भड़क नहीं जाए। हाँ एक काम कर सकता हूँ। मैं सालेजी को फ़ोन कर पूछता हूँ की टीना और सेठी साहब पहुँच तो गये ना ठीकठाक। उनकी बातों से पता चल जाएगा।"

सुषमा ने मेरी बात से सहमति जताई और मैंने मेरे साले साहब को रात के करीब ग्यारह बजे फ़ोन लगाया। सुषमा भी सुन सके इस लिए मैंने फ़ोन का लाउड स्पीकर ऑन कर रखा था। कुछ देर घंटी बजने के बाद फ़ोन साले साहब के बजाय साले साहब की पत्नी अंजू ने उठाया।

फ़ोन के दूसरे छोर से जब अंजू की आवाज सुनी तो मैंने पूछा, "कौन अंजुजी हैं?"

जब साले साहब की बीबी अंजू ने सूना की मैं बोल रहा हूँ तो फ़ौरन बोल पड़ी, "जी जीजा सा। मैं अंजू बोल रही हूँ। आपके साले साहब अभी वाशरूम में हैं। तब तक हम से ही बात कर लो जी! आपने तो हमारी ननद सा को आपके दोस्त के साथ भेज दिया! यह बात समझ में आयी को नी। पर चिंता करना मति। जैसे की आपने कहा था इस वक्त हमारी ननद सा आपके दोस्त सेठी साहब के साथ ऊपर की मंजिल में सलामत है। जैसा की आपने कहा था मैंने उन दोनों की सलामती और प्राइवेसी का पूरा इंतजाम कर दिया है। मैंने आपके दोस्त के लिए ड्रिंक का तो इन्तिजाम किया ही है पर रात को अगर नींद ना आये और जरुरत पड़े तो ननद सा सेठी साहब को चाय पिला सके उसके लिए सेठी साहब के कमरे में चाय का सामान भी रख दिया है।"

अंजू की बात सुन कर सुषमा की आँखें चौड़ी हो गयीं। वह चौंक कर बोल उठी, "राजजी, आपके साले की बीबी तो कमाल है! बड़ी तीखी नजर और समझ है उसकी! वह तो आपकी चाल को भांप गयी लगती है!"

सुषमा को ध्यान नहीं रहा की फ़ोन को स्पीकर फ़ोन पर लगाने से उसकी हलकी सी आवाज भी अंजू को उस तरफ सुनाई पड़ रही थी। सुषमा की आवाज सुन कर अंजू बोल पड़ी, "सुषमाजी, नमस्कार! मैं राजजी के साले साहब की पत्नी अंजू बोल रही हूँ। आप और जीजा जी इस समय साथ में है यह जान कर बहुत अच्छा लगा। अब मैं कुछ कुछ समझने लगी हूँ की आखिर यह सब माजरा क्या है। अब तक मैं समझी को नी की जीजा जी ने ननद जी को अकेली आपके पति सेठी साहब के साथ कैसे भेज दिया? पर आपकी आवाज सुन कर अब सब ठीक समझ में आया। आप और जीजाजी निश्चिन्त रहें की तीन दिन तक ननद सा और सेठी साहब को यहां कोई आंच नहीं आने दूंगी। और वहाँ आप भी हमारे जीजाजी के साथ निश्चिन्त रहें। यह सारी कहानी हम तीनों के बिच में ही रहेगी। जीजाजी को कहना की यहां आपके साले साहब को या किसी और को ज़रा भी भनक नहीं लगने दूंगी की माजरा क्या है। पर सुषमाजी, एक बात तो माननी पड़ेगी की आपके पति हैं बड़े हैंडसम। ननद सा वाकई खुश हो जाएंगी। और वैसे सुषमाजी, हमारे जीजा जी भी कुछ कम नहीं। आल धी बेस्ट सुषमाजी।"

मैंने फ़ौरन फ़ोन काट दिया। यह तो बड़ी गड़बड़ हो गयी! अंजू ने हमारी सारी प्लानिंग को भाँप लिया था। मेरे चेहरे पर चिंता के छाये हुए बादल देख कर सुषमा हँस पड़ी और बोली, "अरे चिंता क्यों कर रहे हो? अंजू ने भले ही आप की प्लांनिंग को भाँप लिया हो पर उसने यह भी कहा ना की वह किसी को इसके बारे कुछ भी बताएगी नहीं। जब वह सामने चल कर खुल्लमखुल्ला कह रही है तो निश्चिन्त हो जाओ। और फिर अगर मान भी लो की वह सब कुछ बोल देती भी है तो क्या होगा? जब हम चारों राजी तो क्या करेगा क़ाज़ी? अब रंग में भंग मत करो। अभी हमारा काम पूरा नहीं हुआ।"

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यह कह कर सुषमा बिना कोई चिंता के मेरे ऊपर मरे बदन को अपनी नंगी करारी टाँगों के बिच में ले कर मेरे ऊपर सवार हो गयी और अपनी चूत को मेरे लण्ड के करीब लाकर मेरे लण्ड को पकड़ कर अपनी चूत की पंखुड़ियों के केंद्र बिंदु पर सटा दिया। सुषमा अब मुझे चोदने के लिए तैयार हो गयी। सुषमा के मस्त स्तन सुषमा की उस मुद्रा में भी थोड़ा सा भी झुके और लटके बिना फुले भरे हुए अपनी निप्पलों के सख्त शिखर को अपनी चोटी में रखे हुए उन्नत, अल्लड़ और उच्छृंखल से अपनी उद्दंडता दिखा रहे थे।

मैंने मेरे लण्ड को सुषमा की चूत में सेट करते हुए ऊपर की और एक धक्का दिया। सुषमा के बदन के वजन से और चिकनाहट से लथपथ मेरा लण्ड सुषमा की चूत में जैसे मक्खन के ब्लॉक में छुरी घुस जाती है ऐसे पूरा का पूरा अंदर घुस गया। सुषमा की आँखों के मटकने से मैं समझ गया की उसे भी मेरे लण्ड के उसकी बच्चेदानी तक घुस जाने से एक रोमांचक भाव जरूर महसूस हुआ होगा। सुषमा की चूत की वही कम्पन तब मैंने कहीं ज्यादा महसूस की। सुषमा की चूत की त्वचा बार बार मेरे लण्ड को जकड रखे हुए इतनी तेजी से फड़फड़ा रही थी की मुझे यह महसूस होने लगा जैसे सुषमा मुझे चोदते हुए बारबार झड़ रही हो।

मेरे ऊपर सवार हुई सुषमा जैसे जैसे मुझे और ज्यादा से ज्यादा फुर्ती से चोदती रही उसकी चूत के अंदर का कम्पन मेरे लण्ड को अपने अंदर खिंच कर मेरे लण्ड के वीर्य की एक एक बूँद जैसे चूसना चाहती हो ऐसा मुझे महसूस होता रहा। हालांकि सुषमा मुझे चोद रही थी पर चोदते हुए वह बार बार काफी गर्म जोशीसे मुझे कह रही थी, "राज, और चोदो, और जोर से चोदो मुझे। फ़क मी हार्ड। बहुत अच्छा लग रहा है। तुम बहुत अच्छा चोद रहे हो।"

सुषमा की नन्हीं सी फ्रेम में इतनी जबरदस्त एनर्जी होगी यह मैंने नहीं सोचा था। जैसे ही मेरा लण्ड उसकी चूत में घुसाथा वह मुझ पर पूरी आक्रमकता से टूट पड़ीथी। उसके सर पर पता नहीं कैसा जनून सवार हो गया था। जैसे किसी इंसान के सर पर भूत सवार होता है ऐसे ही सुषमा के बिखरे हुए बाल उसके खूबसूरत चेहरे पर हर तरफ फैले हुए थे। हवा में उड़ रहे बिखरे हुए बालों को कभी मैं तो कभी सुषमा संवारते और एक जूथ सा बना कर उन्हें अपनी जगह रख देते, किन्तु शीघ्र ही वह फिर से बिखर जाते और फिर से वही सब। मुझे चोदते हुए सुषमा अपनी गाँड़ क्या अपना पूरा बदन जब ऊपर निचे करती तो उसकी चूँचियाँ भी चारों तरफ फ़ैल जातीं। मैं उनको अपने हाथोँ में पकड़ कर सेहला कर सम्हालता रहता तो कभी सुषमा को मेरे बदन से सटा कर उनको चूसता, चूमता और कभी कभी उनकी निप्पलों को काटता भी। मैं वाकई में अपने आप को बड़ा ही भाग्य शाली मान रहा था की इतनी सुन्दर औरत मुझे इतने प्यार से चोद रही थी जो मेरे लिए एक ख्वाब के समान था।

मुझे चोदते हुए सुषमा तो पता नहीं कितनी बार झड़ चुकी होगी पर तब मैं भी अपने आप को रोक नहीं पा रहा था। मैं जानता था की सुषमा तहे दिल से मेरे वीर्य की एक एक बून्द अपनी चूत में भर देना चाहती थी। पर मेरा वीर्य जब बाहर निकलने वाला था तब एक भद्र पुरुष की तरह मेरा कर्तव्य था की मैं अपनी प्रियतमा को पूछूं की क्या वह मेरा वीर्य अपनी चूत की गहराइयों में समा देना चाहती थी।

मेरा पूरा बदन सख्त होने लगा। मैं झड़ने के कगार पर था। मरे शारीरिक अंदाज से सुषमा समझ गयी की मैं झड़ने वाला हूँ। मैंने भी सुषमा के चोदने की फुर्ती को कुछ कम करने का संकेत जरूर दिया होगा। स्त्रियां कामक्रीड़ा में शायद पुरुष से कहीं ज्यादाही संवेदनशील होतीं हैं। वह हमारे बदन के सुरते हाल से ही समझ जातीं हैं की हमारे दिमाग में और बदन में उस समय क्या चल रहा है। सुषमा तो बड़ी ही ज्यादा संवेदनशील और अक्लमंद औरत थी। उसे समझने में देर नहीं लगी की मैं झड़ने वाला हूँ और शायद इस असमंजस में हूँ की अपना वीर्य सुषमा की चूत में खाली करूँ या नहीं।

सुषमा ने अपने चोदने की फुर्ती को और तेज करते हुए कहा, "राजजी, मैं आपके बच्चे को अपने गर्भ में रखना चाहती हूँ। मैंने यह बात टीना को भी कह दी थी। मुझे तुमसे बच्चा चाहिए। मैंने आप से भी पहले से ही यह शर्त रखी थी। प्लीज़ मुझे निराश मत करना। मुझे अपना सारा वीर्य देदो। मुझे गर्भवती बनाओ। मुझे बच्चा चाहिए। मैं माँ बनना चाहती हूँ" यह कह कर सुषमा मेरे बदन पर चढ़ी हुई मुझे फुर्ती से चोदते हुए फफक फफक कर रोने लगी।

उस समय मैं इतना अजीबोगरीब महसूस कर रहा था की आज मैं उस समय के मेरे मन के भाव का वर्णन करने में असमर्थ हूँ। एक इतनी सेक्सी, खूबसूरत चुदवाने के लिए बड़ी ही बेताब चुदक्क्ड़ औरत मुझे पूरी शिद्द्त से चोदते हुए रोते रोते कह रही थी की मैं उसको माँ बनाऊं। अक्सर औरतें किसी दूसरे मर्द से चुदवा तो लेती हैं पर उसके गर्भ से माँ बनाना नहीं चाहतीं। पर यहां तो उलटा ही था। सुषमा की आँखों में आंसूं देख कर मुझे बुरा लगा।

मैंने कहा, "मेरे मन की बात आप कैसे जान लेती हैं? खैर मैं बिलकुल नहीं रोकूंगा। अपना सारा वीर्य आपके अंदर उंडेल दूंगा पर प्लीज़ आप आंसूं मत बहाओ। मैं आपको बच्चा दूंगा। आप शान्त हो जाओ।"

मेरी बात सुनकर सुषमा के चेहरे पर मुस्कान लौट आयी। वह बोली, "सच में? मुझे तुम माँ बनाओगे? तुम जब कहोगे मैं तुमसे चुदवाउंगी। पर मुझे एक बच्चा दे दो।"

यह कह कर सुषमा मुझ पर लेट गयी और मेरा सारा वीर्य अपने अंदर लेते हुए वह मरे होंठों से अपने होँठ चिपका कर मुझे पागल की तरह चूमने लगी। एक औरत में माँ बनने की कितनी जबरदस्त इच्छा होती है यह मैंने पहली बार इतने सटीक तरीके से देखा।"

उस समय मैं मेरे वीर्य का फव्वारा रोक नहीं पा रहा था और रोकने वाला भी नहीं था। सुषमा की चूत की चमड़ी ने मेरे लण्ड को इतनी सख्ती से जकड़ा हुआ था और सुषमा की जबरदस्त चुदाई के कारण मैं वैसे भी अपने वीर्य को रोक नहीं पा रहा था। बिजली के कड़ाके से होते हुए धमाके की तरह मेरे लण्ड से मेरे गरम गरम वीर्य का जबरदस्त फव्वारा छूटा और सुषमा ने उसे जरूर अपनी चूत की सुरंगों में लावा सा गरमागरम प्रवाही बहता हुआ महसूस किया होगा।

मैं और सुषमा उसी पोज़िशन में काफी देर तक पड़े रहे। सुषमा मुझे होँठों पर चूमती रही। कुछ देर बाद इस डर से की कहीं मेरा वीर्य बाहर नहीं गिर जाए, सुषमा ने मुझे अपने ऊपर चढ़ा दिया और मेरा लण्ड अपनी चूत में रखे हुए वह मेरे निचे लेट गयी ताकि मेरे वीर्य की एक बून्द भी उसकी चूत में से बाहर ना निकले। मैं सुषमा की इस इच्छा का सम्मान करता था। मेरे सुषमा को चोद पाने में सुषमा की इस इच्छा का बड़ा योगदान था यह मैं भलीभाँती जानता था। वरना पता नहीं इतनी खूबसूरत औरत मिलना कोई सपने के साकार होने से कम नहीं था।

काफी देर के बाद मैं सुषमा के बगल में जा कर लेट गया। जैसे ही मेरी आँखें गहराने लगीं की सुषमा ने मुझे झकझोरते हुए कहा, "अभी तो रात का खाना और खाने के बाद पूरी रात का खेल बाकी है। अभी से कहाँ सोने का प्लान कर रहे हो? चलो उठो।"

मैं थका हुआ था और कुछ देर विश्राम करना चाहता था। मैंने सुषमा से कहा, "मैं कुछ देर विश्राम करना चाहता हूँ।" सुषमा ने जब देखा की मैं वाकई में थका हुआ था तो मेरे बदन पर एक सरसरी नजर फेंक मुस्कुराती हुई उठ खड़ी हुई और बोली, "ठीक है, कुछ देर विश्राम कर लो, तब तक मैं टेबल पर खाना गरम कर लगाती हूँ।"

मैं वहीँ फर्श पर बिछाये हुए गद्दे पर ही ढेर हो गया। पता नहीं कितना समय मैं सोया हुआ होऊंगा पर काफी देर बाद जब मुझे महसूस हुआ की सुषमा मुझे झकझोर कर जगा रही है तब मैंने आँखें खोल कर देखा तो मेरी प्रियतमा नाइटी पहन कर सजी हुई मुझे खाने के टेबल पर आने के लिए कह रही थी। मैंने उठ कर सुषमा ने रखा हुआ सेठी साहब का कुर्ता पजामा पहना। हम ने फुर्ती से खाना खाया और सुषमा ने बनायी हुई गरम कॉफ़ी पी। सारा टेबल चन्द मिनटों में साफ़ कर मेरी रात की रानी आयी और मेरा हाथ थाम कर मुझे पकड़ कर अपने बैडरूम में ले गयी।

हम जैसे ही बैडरूम में पहुंचे सुषमा ने मेरे पाजामे के नाडा खोल कर उसे उतार कर मेरे ढीले लण्ड को अपनी उँगलियों में लिया और उसे ले कर प्यार से सहलाते हुए बोली, "आज रात तो यहीं गुजारेंगे ना राज साहब?"

मैंने सुषमा को अपनी बाँहों में भर कर कहा, "ऐसी खूबसूरत अप्सरा अगर इस तरह प्यार से बुलाये तो कौन साला अपने घर जाएगा? पर मोहतरमा अब आगे क्या प्रोग्राम है?"

सुषमा ने अपने हाथ में मेरे लण्ड को सेहला कर उसे सख्त करते हुए कहा, "इसे अब अपनी जवानी में आ जाने दो। फिर तुम इसे तैयार करो।" यह कह कर सुषमा ने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी जाँघों के बिच में रख दिया।

मैंने सुषमा के गाउन की झिप खोल कर गाउन को निचे उतार कर सुषमा को ऊपर से नंगी कर दिया। सुषमा ने गाउन के अंदर और कुछ नहीं पहन रखा था। सुषमा के अल्लड़ मस्त स्तनोँ को अपने हाथों में मसलते हुए मैंने सुषमा के बदन से पूरा गाउन निकाल दिया। मत्स्यगंधा जल मछली सी अत्यंत खूबसूरत नंगी सुषमा अपने कपडे उतरते ही लाज से शर्माती हुई नजरें झुका कर मेरी छाती पर अपना सर रख कर आगे मैं क्या करता हूँ उसका इंतजार करने लगी। मुझसे करीब एक घंटे चुदवाने के बाद भी जब इस औरत को मैंने दुबारा नंगी किया तो लाज शर्म से वह पानी पानी हो रही थी। यही हमारी भारतीय महिलाओं की खूबसूरती है। लज्जा उनका आभूषण है।

मैंने अपना कुर्ता निकालते हुए सुषमा को अपनी गोद में बिठा दिया। मेरा लण्ड सख्त हो चुका था। मैं सुषमा की चूँचियों को सहलाते हुए और उसकी निप्पलों को उँगलियों में पिचकते हुए अपने घुटनों पर बैठ खड़ा हुआ और सुषमा को भी अपने घुटनों पर आधा खड़ा करने लगा। सुषमा समझ गयी की मैं उसे घोड़ी बना कर पीछे से चोदना चाहता था। सुषमा ने थोड़ा आतंकित नज़रों से मुझे देखा। शायद उसे लगा की कहीं मैं उसकी गाँड़ मारना तो नहीं चाह रहा था?

पर वह कुछ नहीं बोली और अपनी गाँड़ मेरी और कर घोड़ी की पोजीशन में हो गयी। मैंने फ़ौरन सुषमा के पीछे उसकी मस्त गुलाबी गोरी चिट्टी, बड़े ही कामुक घुमाव वाली भरी हुई गाँड़ पर एक सख्त चपेट मारी। मेरी चपेट उतनी तेज नहीं थी पर शायद सुषमा को ऐसी चपेट की अपेक्षा नहीं थी। सुषमा के मुंह से सिसकारी निकल गयी। उसने घूम कर पीछे देख कर कुछ मुस्कुराते हुए कुछ कटाक्ष से और कुछ असहायता भरे स्वर में कहा, "क्या करते हो?" और चुपचाप वैसे ही घोड़ी की पोजीशन में बनी रही। शायद वह अपने मन में असमंजस में थी की अब मैं क्या करूंगा? उसकी गाँड़ मारूंगा या पीछे से उसकी चूत चोदूंगा।

मैंने सुषमा की गाँड़ पर अपनी हथेली फिराते हुए उसकी गाँड़ के गालों को दबाकर उनसे खेलते हुए उसकी गांड के बिच की दरार में उंगली डाली। सुषमा की गाँड़ सेठी साहब कई बार मार चुके होंगे। इसके कारण वह उतनी टाइट नहीं थी जितनी की टीना की थी। सुषमा ने पीछे मुड़कर देखा और बोली, "उसमें डालोगे क्या? उसको छोडो यार आगे डालो। मैं बेसब्री से इंतजार कर रही हूँ।"

मैंने बिना बोले पीछे से मेरा लण्ड सुषमाकी चूत की पंखुड़ियों में सेट किया। सुषमा ने फिर एक बार पीछे मुड़कर देखा और और अपनी उँगलियों को बारबार अपने मुंह में डाल कर अपनी लार से मेरे लण्ड को और अपनी चूत की पंखुड़ियों को चिकना किया। फिर थोड़ा पीछे हट कर मेरे लण्ड को अपनी चूत पर थोड़ा दबाव डलवा कर मुझे मेरे लण्ड को उसकी चूत में अंदर घुसाने का संकेत दिया। मेरा लण्ड तो तना हुआ सुषमा की चूत में घुसने के लिए बेताब था ही। मैंने एक जोरदार धक्का मार कर मेरा लण्ड सुषमा की चूत में घुसेड़ दिया। शायद चिकनाहट कम थी या सुषमा की चूत मेरे लण्ड को अंदर लेने के लिए तैयार नहीं थी, पर सुषमा के मुंह से दर्द के मारे हलकी सी चीख निकल पड़ी।

मैं थम गया। सुषमा ने अपनी गाँड़ से पीछे की और धक्का मार कर मुझे निर्देश दिया की मैं बिना रुके सुषमा की चुदाई जारी रखूं। मैंने मेरी रानी की आज्ञा का पालन करते हुए पीछे से सुषमा की चूतमें मेरे लण्ड को पेलना शुरू किया। मैं यहां यह कुबूल करता हूँ की मुझे मेरी प्रेमिका को पिछसे चोदना बहुत पसंद है। जब मैं चोदते हुए मेरी प्रेमिका की सुन्दर नशीली गाँड़ देखता हूँ तो मुझ में और जोश भर जाता है। और एक नशीला दृश्य होता है माशूका की चूँचियों का झूल कर चुदवाते हुए हिंडोले की तरह झूलते हुए देखना। जो चूँचियाँ सख्ती से गुरुत्वाकर्षाण के नियम को तोड़कर भी अपना आकार बना कर रखती हैं, वह पीछे से चुदवाते हुए सख्त तेज तगड़े धक्के पेलने के कारण लटकते हुए हिंडोले की तरह झूलने लगतीं हैं। उनको पीछे से पकड़ कर दबाना, मसलना, उनकी निप्पलों को जोर से पिचकाने का मजा ही कुछ और है।

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