साथी हाथ बढ़ाना Ch. 02

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मुझ से सारी बात जानने के बाद राज ने मेरे मेसेज के जवाब में लिखा वह पढ़ कर और मेरे पति से आश्वासन पाकर मुझे कुछ सकुन मिला और मैं बिस्तरे पर लेट गयी। जैसे ही मैं लेटी की फ़ौरन मेरी आँख लग गयी। मैं काफी देर तक सोती रही।

रात भर के जागने और परिश्रम से मैं थकी हुई थी। मुझे उठने में काफी देर हो गयी। जब मेरी आँख खुली तो सूरज तेज रौशनी डाले आसमान में काफी ऊपर चढ़ा हुआ था। जब मैं उठी तो सुबह के करीब ८ तो बजे ही होंगें। मुन्ना भाभी और मोहल्ले के बच्चों के साथ खेलने के लिए सुबह उठ कर जा चुका था। रात भर जो सेठी साहब ने मेरी तगड़ी चुदाई की थी तो दूसरे दिन मेरा बुरा हाल तो होने वाला ही था। सिर्फ तगड़ी चुदाई ही हुई होती तो भी चल जाता। पर मैंने जब उठ कर आईने में देखा तो मेरी हवा ही निकल गयी। सेठी साहब ने मुझे कई जगह पर इतना चूमा, चूसा और काटा था उसके जो निशान सेठी साहब के दांतों ने और होँठों ने मेरे बदन पर कई जगह छोड़ रक्खे थे वह हमारी रात की चुदाई के सुबूत बन कर दुश्मन की तरह मेरे बदन पर चुगली खाते दिख रहे थे। ऐसे हालात में मैं कैसे बाहर निकलती?

हड़बड़ा कर मैं जब सेठी साहब के कमरे में गयी तो देखा की सेठी साहब अपना कमरा एकदम साफसूफ कर सारे कपडे सामान सलीके से सजा कर निकल चुके थे। मैंने खिड़की से झांका तो सेठी साहब की कार जा चुकी थी।

मेरी भाभी से हुई रात की बात मुझे बड़ी ही खटक रही थी। जो मुझे सरल सी राह लग रही थी उसमें मुझे बदनामी के कांटें दिखाई रहे थे। मेरा मेरे पति राज से बात करना बहुत जरुरी था। राज ने कहा था की वह जरूर कोई न कोई हल ढूंढ निकालेगा। मुझे मेरे पति पर पुर भरोसा था की वह जरूर इसे सुलझा देंगे। मेरे पति ने कहा था की वह फ़ोन करेंगे।

मैं नहा कर तैयार होने के लिए बाथरूम में गयी। मैं नहा कर तौलिया पहन कर बाहर निकल ही रही थी की मुझे भाभी की दस्तक बाथरूम के दरवाजे पर सुनाई दी। भाभी ने बताया की वह चाय नाश्ता ले कर आयी थीं। मैंने बिना सोचे समझे हड़बड़ाहट में जब आधा दरवाजा खोला तो भाभी ने मेरे बदन का हाल देखा और उनकी आँखें चौंधियाँ सी गयीं। मैंने फटाफट दरवाजा बंद किया और दरवाजे के पीछे से ही मैंने भाभी को बताया की मैं तैयार हो रही हूँ। भाभी ने कहा वह बैठ कर मेरे बाहर आने का इंतजार करेगी। उसी समय मैंने बाथरूम के अंदर से मेरे कमरे में रखे हुए मेरे फ़ोन की घंटी बजती हुई सुनी। शायद राज का फ़ोन था। मैं अपना फ़ोन टेबल पर छोड़ नहाने आयी थी। मुझे फ़ोन पर बात करते हुए भाभी की आवाज सुनाई दी। बाथरूम के अंदर से भाभी की मेरे पति से क्या बात हुई वह मैं नहीं सुन पायी।

मैं नहा कर बाथरूम से बाहर निकली और अपने भीगे बाल सूखा रही थी तब भाभी ने मुझे निचे से ऊपर तक अच्छी तरह से देखा। भाभी की पैनी नजर देख कर मेरी तो जान ही निकल गयी। मेरा हाल ऐसा था की काटो तो खून ना निकले। मेरे बदन (गाल, छाती, बाँहें इत्यादि) पर काफी निशान ऐसे थे जो कपड़ों में भी छिपाए नहीं जा सकते थे। खैर, भाभी सब कुछ देख कर शरारती लहजे में मुस्कुरायी पर कुछ ना बोली। भाभी ने मुझे कहा की जीजू (राज) का फ़ोन आया था। भाभी ने कहा की जीजू चाहते थे की मैं उनको फ़ोन करूँ। जब मैंने पूछा की क्या बात हुई तब भाभी ने कहा की जब मैं जीजू से बात करुँगी तो वह सब बता देंगे। मैं भाभी के शरारती स्वभाव को जानती थी। मुझे भाभी के बोलने के अंदाज से ही समझ में आ गया था की भाभी ने जरूर मेरा सेठी साहब के साथ हुए कारनामे के बारेमें अच्छा खासा विवरण दे दिया होगा।

भाभी यह कह कर चली गयी की वह कुछ देर के बाद आएगी और सारे बर्तन ले जायेगी। मैंने नाश्ता कर चाय पीकर राज से बात करने के लिए फ़ोन मिलाया। मेरा शक बिलकुल सही निकला। अंजू भाभी ने राज को मेरे बारे में जो कुछ भी उनके मन में था वह सब बता दिया था। कहीं ना कहीं भाभी को आइडिया था की राज भी इस कौभान्ड में शामिल था। इस लिए वह मेरे पति से सारी बातें इशारों इशारों में बताने से ना हिचकिचाई।

अब समस्या यह थी की इस अंजू भाभी से कैसे निपटा जाए ताकि सेठी साहब और मेरी बदनामी ना हो। मेरे पति राज से बात हो गयी तो फिर मेरे सामने अब एक और नयी चुनौती खड़ी हो गयी थी। राज ने जो आइडिया दिया वह मेरी समझ में ठीक से नहीं आ रहा था। पर मुझे सारी बातों को शान्ति और गंभीरता से सोचना पड़ेगा और तय करना होगा की क्या किया जाए। राज की यह बात तो सही थी की अंजू भाभी को सेट करना बहुत जरुरी था। वैसे तो भाभी सेट ही लग रही थी पर मुझे यह पक्का करना था की किसी भी हाल में आगे चलके वह हमारा राज़ किसी से उगल ना दे। और उसके लिए भाभी को मुझे हमारे पक्ष में लाना जरुरी था। मैंने तय किया की मैं भाभी को प्यार से मना कर पटा कर देखूंगी की उनके मन में क्या है और उनको कैसे सम्हाला जा सकता है। मेरे पति राज की बात मुझे ठीक लगी।

एक बात तो पक्की थी। भाभी से बात छिपाने की कोशिश करना बेवकूफी होगी। वह सब अच्छी तरह से समझ गयी थी। ऊपर से मेरे बदन पर निशान देखकर अब शक की कोई गुंजाइश ही नहीं बची थी। कुछ देर बाद जब अंजू भाभी वापस आयी तब मैंने बड़े प्यार से उन्हें मेरे बाजू में बिठा कर उनका हाथ मेरे हाथों में थाम कर कहा, "भाभी, आप बड़ी ही समझदार और संवेदनशील हैं। आपने फ़ौरन सेठी साहब और हमारे संबंधों की बारीकियों को समझ लिया है। पर अब मैं क्या करूँ मुझे चिंता हो रही है। इस हाल में मैं कैसे निचे जाऊं? कहीं भैया या मम्मी पापा को शक हो गया तो?"

मुझे लगा की मेरे साफसाफ ईमानदारी से बात करने का भाभी पर अच्छा खासा असर हुआ। भाभी अब गंभीर हो गयी और मेरा हाथ थाम कर अंजू भाभी एकदम धीमी आवाज में जैसे मेरे कान में फुसफुसा कर बोली, "ननदसा, आप चिंता कोनी करो। मैं हूँ ना। देखिये, आप मेरी ननद हैं। अब मैं आपसे कुबूल करती हूँ की हम दोनों एक ही डाल के पंछी हैं। हम एक दूसरे की बात किसी से क्यों करेंगे? मैं आपसे वादा करती हूँ की मैं चुप रहूंगी। ना मैंने कुछ देखा, ना मैंने कुछ सुना।"

फिर मेरे बदन पर हुए निशानों पर नजर मार कर बोली, "और जहां तक आपके इन निशानों को देखने का सवाल है, आप चिंता कोनी करो। मैं इन पर कुछ लेप लगा दूंगी दोपहर तक सब गायब हो जाएगा। तब तक मैंने सांस ससुरजी को बोल दिया है की ननदसा की तबियत थोड़ी ढीली है। शाम तक ठीक हो जाएगी। आपके भाईसा उनकी कंपनी के काम से दो दिन के लिए टूर पर गए हैं।"

फिर मेरी मेरी आँखों में आँखें डालकर मेरी दाढ़ी की ठुड्डी पकड़ कर उसे हिलाती हुई भाभी बोली, "पर दीदी एक बात कहनी पड़ेगी। सेठी साहब का जवाब नहीं। मेरी ननद जैसी सुंदरी अप्सरा को भी वश में कर लिया उन्होंने। खैर सेठी साहब भी तो कुछ कम नहीं। आखिर मेरी ननदसा कोई ऐसे वैसे से थोड़े ही पटेगी?"

मैंने जब भाभी से यह सूना की "हम पंछी एक डालके।" तब मेरी जान में जान आयी। इसका मतलब तो यह हुआ की मेरी भाभी की भी कहीं ना कहीं किसी ना किसी से सेटिंग थी। अगर मैं इन सब बातों को भाभी ने सेठी साहब की तारीफ़ की उससे जोड़ कर देखूं तो एक बात साफ़ हो गयी की इसका मतलब बहभी मुझे सेठी साहब के बारे में कुछ ना कुछ इशारा कर रही थी। अचानक मेरे दिमाग की बत्ती जल उठी। बापरे! मेरे पति बिलकुल ठीक कह रहे थे। भाभी सेठी साहब से काफी इम्प्रेस्सेड हो चुकी थी और मुझे बिना कहे कुछ इशारा कर रही थी। मुझे समझना पडेगा की वह क्या कहना चाह रही थी।

यहां मैं पाठकगण को एक जरुरी बात कहना चाहता हूँ। हमारे रिश्तों में कई बार ऐसा होता है की हम जो कहना चाहते हैं वह कह नहीं पाते। अगर वह बात हमें खाये जाती है तो हम उसे इशारों इशारों में कहने की कोशिश करते हैं। जैसे कोई लड़की अगर अपने प्रेमी से चुदना चाहती है तो वह पहले तो यह उम्मीद रखेगी की उसे कुछ कहना या करना ना पड़े और प्रेमी ही पहल करे। पर अगर प्रेमी भोंदू हो तो प्रेमिका उसे कुछ ना कुछ इशारा करेगी। या तो वह अपने आपको एक्सपोज़ करने की कोशिश करेगी, क्लीवेज दिखाएगी, अपने कूल्हे टेढ़े मेढ़े करेगी या ऐसा कुछ करके इशारा करेगी की वह चुदासी है।

मुझे भी मेरी भाभी क्या इशारा कर रही थी वह समझना होगा। मैंने तय किया की मैं एक दाँव खेलूंगी। हो सकता है मेरा तीर निशाने पर लग जाए। मैंने भाभी से बड़े ही प्यार से कहा, "भाभी जब आपने इतना खुल कर बात कह ही दी है तो मैं एक बात कहूं? आप बुरा तो नहीं मानोगे?"

भाभी ने मेरी और कुछ शंका भरी नजर से देखा और बोली, "नहीं ननदसा, बोलो ना, क्या बात है?"

मैंने कहा, "भाभी आप कह रही थी ना की आप सेठी साहब से बड़ी इम्प्रेस्सेड हैं? अरे मैं क्या बताऊं? आपसे सेठी साहब और भी ज्यादा इम्प्रेस्सेड हैं। वह तो कल आपकी आवभगत, आपकी फिटनेस और आपकी सुंदरता की बड़ी तारीफ़ कर रहे थे। वह कह रहे थे की मेरा भाई बड़े ही तक़दीर वाला है की उन्हें आप जैसी सुशिल, सुन्दर और गुणवान पत्नी मिली। चूँकि घर में वह आपसे खुल कर बात नहीं कर सकते, तो क्या आप आज कुछ ना कुछ बहाना कर के रात को यहां मेरे कमरे में ऊपर आ सकते हो? हम लोग साथ में बैठ कर कुछ गपशप मारेंगे।"

मेरी बात सुनते ही भाभी उछल पड़ी। उनके चेहरे की मुस्कान मुझे बता रही थी की मेरा तीर निशाने पर लगा था। भाभी ने कहा, "ननदसा, उसकी चिंता आप मति करो। मैंने सांस को बोला है की आपकी तबियत ठीक नहीं है। मैं रात को घर ठीकठाक करके आपके पास आ जाउंगी। मैं सांस ससुर को कह दूंगी की मुझे आपका ध्यान रखना पडेगा। आपके भाई टूर पर गए हैं। चिंता की कोई बात ही नहीं है। आप जहां जाना है जाओ। मुन्ने का ध्यान मैं रखूंगी।"

फिर कुछ दबी हुई आवाज में भाभी ने कहा, "पर ननदसा मैं आप दोनों के बिच में रंग में भंग नहीं करना चाहती। कबाब में हड्डी नहीं बनना चाहती। मैं जानती हूँ कितने पापड़ बेल कर आप दोनों ने यहां आने का प्रोग्राम बनाया होगा।"

मैंने मेरी भाभी को बाँहों में भर लिया। अब मेरे सर से सारी चिंता छूमंतर हो चुकी थी। मैंने भाभी को बड़ा प्यार जताते हुए कहा, "भाभी, आप रंग में भंग थोड़े ही करोगे? आप के आने से आप तो हमारे रंग में और भी रंग भर दोगे। और भाभी सच कहूं? मैं आपका बहुत बड़ा शुक्रिया करती हूँ की आपने मेरी बात मान ली। सेठी साहब तो यह सुनकर बड़े ही खुश होंगे। भाभी, मैंने कभी सोचा भी नहीं था की मेरी भाभी इतनी रंगीली होगी।"

भाभी ने भी मेरी बात का सटीक जवाब देते हुए कहा, "ननदसा, सोचा तो मैंने भी नहीं था की मेरी ननदसा भी ऐसी रंगीली होगी। चलो देर आये दुरस्त आये। पर ननदसा, यह बात हम दोनों के बिच ही रहनी चाहिए। तुम्हारे भाई को कानो कान कोई खबर ना हो।"

मेरे मुंह से हँसी फूट पड़ी। मैंने बड़े ही शरारती लहजे में कहा, "भाभी क्या बात करते हो? बेईमानी के धंधे में सब बड़े ईमानदार होते हैं। ना आप कुछ बोलोगे ना हम।" मैंने मेरी जीभ पर अपनी उँगलियों से पट्टी लगाने का इशारा कर बात वहीँ ख़त्म की।

मैंने राज को फ़ौरन मेसेज भेजा, "आपकी मेरे लिए बतायी गयी कड़वी दवाई भाभी पर काम कर गयी। अब हमें भाभी रात भर झेलना है। पर मिशन सफल हुआ। भाभी भी कार्यक्रम में शामिल होगी। अब कोई दिक्क्त नहीं।"

मेरे पति ने जवाब में लिखा, "चलो जो हुआ अच्छा हुआ। आखिर तुम्हारा टेंशन तो टला। अब तुम्हारा थ्रीसम का सपना भी पूरा हो जाएगा।"

मैंने एक मेसेज सेठी साहब को भी भेजा। लिखा, "मुबारक हो। कहते हैं, देने वाला जब भी देता देता छप्पर फाड़ के। अब तुम्हारे रंगमहल में मेरी भाभी भी शामिल होने को तैयार हो गयी है।"

सेठी साहब का फ़ौरन जवाब आया, "इस के लिए मैं जिम्मेवार नहीं हूँ। अगर तुम कहती हो तो ठीक है। एक से दो भली।"

मैंने सेठी साहब को जवाब में गुस्से वाली इमोजी भेजी।

अब भाभी और मेरे बिच आत्मीयता और सुहार्दमय सम्बन्ध स्थापित हो चुका था। भाभी ने मेरे गाल, हाथ, गले और छाती के दीखते हुए निशानों पर चन्दन का लेप लगाया। मैंने जब उन्हें मेरी स्तनोँ, चूत और जाँघों पर भी लेप लगाने को कहा तो वह हँस पड़ी और बोली, "रहने दो उन्हें ननदसा। उन्हें कौन देखेगा? रात को यह निशान अपने प्रियतम को दिखाना। वह अपनी मर्दानगी पर खुश होंगे और उनके हाथों से ही लेप लगवा लेना। यातो वह लेप लगाएंगे या तो वह उन्हें और बढ़ा देंगे।"

मैंने भी हँस कर मजाकिया अंदाज में एक हल्का सा नकली घूँसा भाभी को मारा, हालांकि अंदर से तो भाभी पर मैं गुस्से की आग में धधक रही थी। रात में मेरे और सेठी साहब के बिच के प्रोग्राम में भाभी ने बड़ी सेंध मार दी थी। पर कहते हैं ना की मरता क्या ना करता?

भाभी ने सारा प्रोग्राम बड़ी ही दक्षता से सेट कर दिया था। दोपहर को एक रैपिड कोरोना किट मंगवा कर भाभी ने सबको यह कह दिया की मेरा टेस्ट नेगेटिव आया है। पर मेरी तबियत ढीली होने के कारण भाभी रात भर मेरा ध्यान रखने के लिए मेरे साथ सोयेगी। रात में भाभी ने मेरे मुन्ने को अपने मुन्ने के साथ अपने कमरे में सुला दिया। मैंने दिन भर काफी आराम किया और सोई। भाभी ने मेरा खाना भी मेरे कमरे में पहुंचा दिया था।

सेठी साहब अपना काम निपटा कर जयपुर से करीब आठ बजे घर पहुंचे। उनका बेसब्री से इंतजार हो रहा था। नहाकर फ्रेश होने के बाद सेठी साहब करीब नौ बजे डिनर टेबल पर आये तब मैं भी खाना खा कर तैयार हो रही थी। वह रात कुछ अजीब सी होने वाली थी। भाभी के कारनामों के बावजूद भी पता नहीं क्यों और कैसे मेरे मन में भाभी के लिए बड़े अजीबोगरीब भाव उमड़ रहे थे। एक तरफ मुझे भाभी पर मेरी सेठी साहब के साथ रति क्रीड़ा की योजना में सेंध मारने के लिए बड़ा ही गुस्सा आ रहा था। पर दूसरी तरफ मुझे भाभी पर अजीब तरह का प्यार भी था की मेरे प्रियतम को वह भी पसंद करती हैं।

औरत का दिल बड़ा ही संवेदानशील होता है। वह आसानी से पिघल जाता है। भाभी के सौहार्दपूर्ण व्यवहार से मेरे मन में उनके प्रति कड़वाहट तो थी ही पर साथ साथ में प्यार का अंकुर भी पनप रहा था। आखिर भाभी भी तो एक औरत है। सेठी साहब जैसे वीर्यवान पुरुष के प्रति आकर्षित होती है तो उसका क्या दोष? मैं भी तो भाभी की तरह ही एक प्रेमाकांक्षी औरत ही हूँ। मैंने भी तो विवाहोतर प्रेम किया था सेठी साहब से और चुदवाया।

सेठी साहब डिनर के बाद टहलते हुए आये और मेरे दरवाजे में से अंदर झाँक कर उन्होंने मेरा हाल पूछा। फिर वह अपने कमरे में चले गए। मैं फिर नहाने चली गयी। करीब दस बजे से पहले ही भाभी सब को खाना खिला कर, बच्चों को उनके कमरे में सुलाकर, रसोई, डाइनिंग टेबल बगैरह साफसूफ कर ऊपर आने की सीढ़ी के दरवाजे पर ताला लगा कर एक थैली में कुछ कपडे और एक बक्सा ले कर मेरे पास आयी। मैं तब तक तैयार नहीं हुई थी।

भाभी मेरे पास आ कर बोली, "ननदसा, एक बात कहूं? आप मुझे सेठी साहब के पास मत ले जाओ। मुझे बहुत बुरा लग रहा है। मैं वाकई में कबाब में हड्डी नहीं बनना चाहती। बल्कि मैं आप को अभी सेठी साहब के लिए ऐसा सजाऊंगी की आपकी सुंदरता में और भी चार चाँद लग जाएंगे।"

मैंने भाभी का हाथ पकड़ कर पूरी आत्मीयता से कहा, "भाभी ऐसा मत कहो। आप कबाब में हड्डी नहीं कबाब में मसाला बन कर आओगी। अब ज्यादा बात मत करो। हम जल्दी तैयार हो जाते हैं। ज्यादा देर ना हो जाए। मियाँ इंतजार कर रहे होंगे। ज्यादा देर हो गयी तो कहीं नाराज ना हो जाएँ।"

भाभी मेरे करीब आयी और मुझे लिपट कर बोली, "ननदसा, मुझे माफ़ कर दो। आप बहुत अच्छी हो। देखिये आज और कल आप दोनों की रंग रैलियां मनाने की रातें हैं। हालांकि मैं जानती हूँ सुंदरता में मेरा आपसे कोई मुकाबला नहीं, पर मैं आउंगी तो हो सकता है सेठी साहब का ध्यान थोड़ा सा बँट जाए और यह आपके ऊपर अन्याय होगा।"

मैंने भाभी को आलिंगन करते हुए कहा, "भाभी आप क्या उलटिपुलटि बातें करती हो। आप सुंदरता में कोई कम नहीं। सेठी साहब खुद आपकी तारीफ़ कर रहे थे।" फिर मैं भाभी के और करीब गयी और उनके कानों में बोली, "भाभी एक गुप्त बात कहूं? आप आओगी उसमें मुझे फायदा है।"

मेर्री बात सुन कर भाभी के कान तेज हो गए। मैंने कहा, "भाभी, सेठी साहब के प्यार की मार मैं अकेली झेल नहीं पाती। मुझे आपके सहारे की जरुरत है। यह जो मेरा हाल हुआ है ना वह एक ही रात का फल है। आप साथ में होंगे तो हम दोनों मिल कर सेठी साहब को झेल लेंगे। प्लीज अब और तर्कवितर्क मत करो।"

भाभी मेरी बात सुन कर मुझसे लिपट पड़ी। भाभी की आँखें भर आयी थीं। वह कुछ भावुक सी हो गयी। मुझसे बोली, "ननदसा, मैंने कुछ नादानियत में आपका मजा किरकिरा कर दिया। सेठी साहब से मैं कुछ आकर्षित हुई थी और स्त्री सुलभ इर्षा में मैंने सब गड़बड़ कर दिया।"

मैंने भाभी की आँखों में से आंसूं पोंछते हुए कहा, "भाभीजी एक स्त्री ही दूसरी स्त्री के भाव समझ सकती है। आपने कुछ भी गड़बड़ नहीं किया। आपने सब ठीक ही किया है। चलो मुझे आप तैयार करने वाली थी ना? तो शुरू हो जाओ।"

भाभी अपना सजावट का बक्सा ले कर आयी थी। अपना बक्सा खोलते हुए भाभी बोली, "पहले मैं आपके बालों को सजाऊंगी फिर आपकी भौंहें, चेहरा और फिर जाँघों और पाँवोँ का सुंदरीकरण करुँगी। आपके स्तन मंडल और आपकी चूत को भी मैं सजाऊंगी। आज आपके प्रियतम आप को बीती कल से कहीं ज्यादा भोगनिय पाएंगे।"

मेरी भाभी ने शहनाज़ हुसैन इंस्टिट्यूट से सुंदरीकरण का अभ्यास किया था और बादमें एक ब्यूटीपार्लर भी कुछ सालों तक चलाया था।

यह कह कर भाभी ने मुझे पकड़ कर आयने के सामने खड़ा कर बोली, "आज मैं आपको आपके प्रियतम के लिए तैयार करना चाहती हूँ। मैं आपके लिए एक ख़ास ड्रेस भी लायी हूँ।"

यह कह कर भाभी ने मेरे लिए लायी ड्रेस निकाली। भाभी की लायी हुई ड्रेस देख कर मैं स्तब्ध रह गयी। वह जाली वाली स्कर्ट जैसी ड्रेस थी। भाभी ने मुझे एक स्टूल पर बैठा दिया और शुरू हो गयी। मैं भाभी की सजावट करने की क्षमता के बारे में भलीभाँति परिचित था। मुझे तैयार करने में भाभी ने आधे घंटे से ज्यादा नहीं लगाया। उन्होंने मेरे बाल को इतना खूबसूरत तरीके से सजाया की जब मैंने देखा तो मैं खुद आश्चर्यचकित हो गयी। फिर मेरे पुरे बदन पर भाभी ने चन्दन का उबटन लगाया और देखते ही देखते भाभी ने मेरा काया कल्प कर दिया। जब भाभी ने मेरे अल्लड़ स्तनोँ को देखा तो उनकी आँखें चौंधियाँ सी गयीं। वह उन्हें अपने हाथों में पकड़ कर सहलाते हुए बोली, "ननदसा, क्या बात है! इसी लिए मेरे जीजाजी और सेठी साहब आपके दीवाने हैं। भला ऐसी चूँचियाँ देख कर कौन मर्द पागल नहीं होगा?"

कई बार मुझे नंगी कर मेरे बदन को सजाते हुए भाभी मेरे अंगों को देख कर रुक जाती और बेतहाशा वहाँ चूमने लगती। मैंने भाभी से मजाक में कहा, "भाभी कहीं आप ही मुझे यहीं पर चोदना शुरू मत कर देना।"

भाभी ने मेरी और देख कर कहा, "ननदसा, काश मैं मर्द होती तो आपको छोड़ती नहीं।"

मेरे बदन को सजाने के बाद भाभी ने फटाफट मेरी साडी ब्लाउज, ब्रा निकाल दिए। मैं सिर्फ पैंटी में भाभी के सामने खड़ी हो गयी। मैंने जब भाभी की लायी हुई स्कर्ट पहनी तो शर्म के मारे मैं पानी पानी हो रही थी। भाभी ने मुझे उस ड्रेस के नीच कुछ भी पहनने से मना कर दिया। हालांकि जाली में सुराख बारीक से थे पर मेरी त्वचा का सारा गोरापन, मेरे बदन का हरेक घुमाव, उभार, खांचा, छिद्र, दरार और सारी बारकियों का अच्छा खासा आभास उस ड्रेस में से हो रहा था। स्कर्ट घुटने से थोड़ा सा ऊपर था जिसे ऊपर उठाने से मेरी गोरी गुलाबी चूत दिख जाती थी।

स्कर्ट का कपड़ा अति महिम जैसे ढाका की मलमल हो। उसमें बिच बिच में छोटे से जगह जगह पर छिद्र। मैंने आयने के सामने जा कर देखा तो मैं खुद अपनी छाया देख कर मोहित हो गयी। सामने ऐसी सेक्सी और अत्यंत खूबसूरत औरत कपडे पहने हुए पर लगभग नंगी खड़ी हो, की सब अंगों की झाँखी हो पर वास्तव में कुछ भी साफ़ ना दिखता हो। भाभी ने मुझे अश्लील नहीं पर अत्यंत प्रलोभनीय रति समान कामेश्वरी बना दिया था। भाभी ने मेरे बालों की संरचना इतनी बखूबी से की थी की मेरे घने काले बालों को मेरे सर का मुकुट बना दिया था। इसकी तुलना में मेरी भाभी ने कोई ख़ास मेकअप नहीं किया था। मैंने बिलकुल समय ना गँवाते हुए भाभी के सारे पहने हुए कपडे निकाल दिए और भाभी को ब्रा और पैंटी में खड़ी कर दिया। फिर मैंने भाभी की ब्रा भी निकाल दी और भाभी की चूँचियों को पहली बार देखा। एक बच्चा होने के बावजूद भी भाभी की चूँचियाँ ढीली नहीं पड़ी थीं। मेरे मुकाबले भाभी की चूँचियाँ थोड़ी छोटी थीं। पर भाभी की निप्पलेँ काफी गहरी और लम्बी फूली हुई थीं। भाभी की पैंटी मैंने झुक कर निचे खिसका दी और उनके बदन पर मेरी एक पतली सी साडी लपेट दी।

रात के करीब ग्यारह बजे भाभी मेरा हाथ पकड़ कर मुझे सेठी साहब के कमरे में ले गयी। किसी देखने वाले को वह सिन देख कर ऐसा ही लगता जैसे किसी नयी नवेली दुल्हन को उसकी भाभी सुहागरात के पलंग पर ले जा रही हो। सेठी साहब उस समय पलंग पर सफ़ेद कुर्ता पाजामें में कामदेव जैसे सुन्दर दिख रहे थे। जैसे ही उन्होंने मुझे देखा तो उनकी शक्ल देख कर मुझे लगा जैसे वह बेहोश होने जा रहे थे। उनके चेहरे से हवाइयां उड़ रहीं थीं। वह कुछ बोलने वाले थे पर उनका मुंह खुला का खुला ही रह गया था।

भाभी ने मुझे सेठी साहब के बाजू में पलंग पर बिठा कर सेठी साहब की और देख कर कहा, "आपकी प्रियतमा को मैंने आपके लिए तैयार किया है उसे स्वीकारिये।" ऐसा कह कर भाभी कमरे से बाहर निकल ने लगी तो मैंने उनका हाथ पकड़ा और कहा, "आप कहाँ जा रही हो भाभी? आपने मुझे भले ही आज की सुहागरात के लिए तैयार किया हो, पर बिना तैयार हुए ही आप मुझसे भी ज्यादा सुन्दर लग रही हो।"

भाभी कुछ आशंका भरी नज़रों से सेठी साहब की और देखने लगी। मैंने भाभी को खिंच कर सेठी साहब के दूसरी तरफ बिठा दिया और कहा, "भाभीसाहेब, सुनो पहली बात, मैं और सेठी साहब हम दोनों आपको पसंद करते हैं। मैं चाहती हूँ की आप भी आज रात हमारी मस्ती में हमारे साथ शामिल हों। इससे हमारा आनंद आधा नहीं दुगुना हो जाएगा। और दूसरी बात आज रात आप देखेंगे की सेठी साहब एक साथ हम दोनों को खुश करने की क्षमता रखते हैं। सिर्फ मेरे रहने से सेठी साहब को पूरा मजा नहीं आता। आप शामिल होगी तो सेठी साहब भी सेटिस्फाई होंगे और हम को भी सैटिस्फाई करेंगे।"

भाभी ने सेठी साहब की और शायद उनकी रजा मंदी के लिए देखा। सेठी साहब ने मुझे अपनी बाँहों में भरकर बोला, "भाभी साहब, टीना जो कहती है डंके की चोट पर कहती है। मैं तो तुम्हारी ननदसा का ग़ुलाम हूँ। वह बड़ी मीठी मीठी बातें करती है। पर उसकी इच्छा मेरे लिए आज्ञा है। मैं एक ही बात कहूंगा, मुझे टीना की पसंद पसंद है।" यह कह कर सेठी साहब ने अपनी दूसरी बाँह लम्बी कर भाभी को भी अपने सीने से लगा लिया। सेठी साहब की चौड़ी छाती पर लगभग उनकी गोद में बैठे हुए मेरी और भाभी की नाक एक दूसरे से टकराये इतनी करीब हो गयी। मैंने भाभी के चेहरे को प्यार से सहलाते हुए उसे अपनी हथेलियों में भरते हुए कहा, "भाभी, आप के लिए और मेरे लिए भी आज का अनुभव एक अद्भुत अनुभव है। हमने कभी अपने प्यार को बाँटा नहीं। पर कहते हैं ना की बाँटने से सूख बढ़ता है और दुःख कम होता है। तो चलो आज हम अपना सुख बाँटते हैं।"

भाभी मेरी बात सुन कर कुछ तनाव मुक्त होती हुई बोली, "सच कहूं? सेठी साहब को देखते ही पता नहीं कैसे उन्होंने मेरे अंदर कुछ अजीब सा घमासान मचा दिया था?"

मैंने भाभी की टाँग खींचते हुए कहा, "अंदर माने कहाँ? दिलमें, या जाँघों के बिच में?"

भाभी ने कुछ शर्माते हुए कहा, "ननदसा, अब मेरा मजाक मत उड़ाओ। आपको तो पता है की औरतों को कहाँ कहाँ घमासान मचता है जब वह कोई तगड़े मन पसंद आदमी को उन निगाहों से देखती है। सारी जगह घमासान मचा दिया था तुम्हारे सेठी साहब ने।"

मैंने भाभी की ठुड्डी पकड़ कर उसे हिलाते हुए कहा "ओयहोय! क्या बात है? बदन में सब जगह ही घमासान मचा दिया क्या हमारे सेठी साहब ने? देखो सेठी साहब अब सिर्फ मेरे नहीं, तुम्हारे भी हैं। अब वह हमारे सेठी साहब हैं। फिर मैंने सेठी साहब का कुर्ता निकालने का प्रयास करते हुए कहा, "सेठी साहब का सीना काफी चौड़ा है। उस पर हम दोनों के लिये काफी जगह है।" सेठी साहब ने अपने हाथ ऊपर उठाते हुए मुझे अपना कुर्ता निकालने दिया। मैंने सेठी साहब के सीने को सहलाते हुए भाभी का हाथ पकड़ कर मैंने सेठी साहब की निप्पलों पर रखते हुए कहा, "देखो यह होता है मर्द का सीना। एक दिन सेठी साहब बाहर पार्क में अपना कुर्ता निकाल कर कसरत कर रहे थे। इसी सीने को देख कर ही मैं पानी पानी हो गयी थी।"

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