साथी हाथ बढ़ाना Ch. 03

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मैंने सेठी साहब की नज़रों से कुछ पल नजरें मिलायीं फिर नजरे नीची कर कहा, "मैं यही तो चाहती हूँ।"

सेठी साहब के अपना वीर्य मेरी चूत में पूरी तरह से खाली कर देने के बाद फिर हम ने चाय का अल्पविराम रखा। अब तो भाभी बस मुझे ही सेठी साहब से चुदवाने पर आमादा थी। वह चाहती थी की सेठी साहब मुझे बार बार चोदे और अपना वीर्य बार बार मेरी चूत में उँडेले। कहीं न कहीं कभी ना कभी तो उनका कोई शुक्राणु मेरे अणु से मिल कर उसे फलीभूत करेगा। उस रात भाभी ने सेठी साहब से तीन बार मेरी चूत में वीर्य स्खलन करवाया। अब मेरी भाभी ऐसे करने लगी जैसे उन्होंने ने मुझे सेठी साहब से गर्भवती बनाने की ठान ही ली हो।

उस रात मेरी तीन बजे तक चुदाई हुई। मैं क्या बताऊँ, सेठी साहब का लण्ड तो कहर ढा ही रहा था मेरी चूत पर, पर भाभी भी कुछ कम नहीं थी। भाभी बार बार सेठी साहब को जोश दिलाती, कभी उनके लण्ड के इर्दगिर्द अपनी दोनों हथेलियों की उँगलियों से रिंग बना कर सेठी साहब के अंदर बाहर हो रहे लण्ड को और उत्तेजित करना तो कभी चुदाई के चलते मेरी चूत की पंखुड़ियों को सहलाते रहना।

भाभी ने मुझे दो बार तो घोड़ी बनवाया और सेठी साहब से चुदवाया। जब मुझे घोड़ी बनायी तब खुद ही बोलती की सेठी साहब मेरी गाँड़ नहीं मारेंगे क्यूंकि उनको माल चूत में डालना है, गाँड़ में नहीं। साथ में सेठी साहब को मेरी तरफ से यह भी वचन दे दिया की मैं सेठी साहब से जरूर गाँड़ मरवाउंगी पर एक बार मेरा गर्भ रह जाए। जब मैं घोड़ी बन के सेठी साहब से चुदवा रही थी तो भाभी मेरे आगे लेट कर मुझसे अपनी चूँचियाँ चुसवा रही थी और मेरी चूँचियों को जोर से मसल रही थी।

भाभी ने मुझसे चुदवाते हुए कई बार यह बोलते हुए अपनी चूत चुसवाई की "ननद सा, सेठी साहब से चुदवाने के सारे मजे तो आप ले रहे हो तो मुझे कुछ मजे तो लेने दो।"

उस रात मैंने कई बार कोशिश की की भाभी सेठी साहब से चुदवाये पर भाभी इसी जिद पर अड़ी थी की जैसे ही मैं सेठी साहब से गर्भवती होने का पक्का पुष्टिकरण कर दूंगी फिर भाभी सेठी साहब से इतना चुदवाएगी की मेरा नंबर भी नहीं लगने देगी। भाभी ने सेठी साहब से भी इसके लिए समर्थन पा लिया। मैंने भी भाभी को सेठी साहब से चुदाई करवाते हुए बहुत प्यार किया। सेठी साहब बेचारे को हम लोगों के स्तनोँ को सहलाने का बहुत कम मौक़ा मिला क्यूंकि या तो मैं भाभी के स्तनों को चूस, सेहला, मसल और काट रही थी या तो भाभी मेरे। भाभी को भले ही सेठी साहब ने उस रात बादमें चोदा ना हो, पर मैंने भाभी की चूत में उंगलियां डालकर उनको कई बार झड़ने का मौक़ा दिया।

मेरी उंगली चोदन से भाभी कई बार झड़ गयी। मैं एक औरत होने के नाते जानती हूँ की जब मैं भाभी की चूत को मेरी उँगलियों से चोद रही थी तब भाभी को सेठी साहब के तगड़े लण्ड से चुदवाने का कितना ज्यादा मन हुआ होगा। पर उन्होंने गज़ब का संयम रखा और ना सिर्फ एक बार भी मुंह से बोला की वह चुदवाना चाहती है बल्कि जब भी मैंने या सेठी साहब ने इच्छा जताई की भाभी की बारी है सेठी साहब से चुदवाने की तो भाभी एकदम गुस्सा करती हुई उन्होंने उस रात सेठी साहब को मजबूर किया की वह ना सिर्फ मुझे तगड़े से चोदे बल्कि बार बार अपना माल मेरी चूत में उंडेलते रहें। मेरी भाभी का यह एहसान मैं जिंदगी भर भूल नहीं सकती।

तीन बजे सोने के बाद भी भाभी सुबह छे बजे अपना काम करने के लिए तैयार हो कर निचे पहुँच गयी। मुझे उन्होंने कहा की मैं तभी नीच उतरूं जब वह बुलाये। भाभी पुरे दिन घर के काम में लगी रही और मुझे निचे नहीं बुलाया। मैं दिन में काफी सोती रही। दो तीन बार मेरे पति राज का फ़ोन आया तो मैंने उन्हें सब बात संक्षिप्त में समझाई। पता नहीं कैसे पर मुझे पिछली रात यह तसल्ली हो चुकी थी की सेठी साहब ने मुझे गर्भवती बना दिया था। मैंने तय किया था की आखरी रात मैं भाभी को सेठी साहब से खूब चुदवाउंगी और मैं उन दोनों के बिच में नहीं आउंगी।

तीसरी और आखिरी रात में जब भाभी सारा काम निपटा कर ऊपर आयी तब मैंने भाभी की एक ना सुनी और जिद पकड़ी की आज की रात भाभी को ही सेठी साहब से चुदवाना है। इस मामले पर काफी झंझट हुई। काफी कश्मकश और गरमागरम बहस के बाद यह तय हुआ की सेठी साहब पहले भाभी को चोदेंगे और फिर बादमें मुझे चोदेंगे। सेठी साहब ने यह वचन दिया की वह अपना वीर्य सिर्फ मेरी चूत में ही डालेंगे। उस रात सेठी साहब काफी फॉर्म में थे। उस रात उन्होंने मुझे और भाभी को चार चार बार लम्बे अरसे तक चोदा। मुझे समझ में नहीं आया की सेठी साहब इतने लम्बे अरसे तक बिना वीर्य छोड़े भाभी को करीब एक घंटे तक अलग अलग पोजीशन में कैसे चोदते रहे। उसके बाद जब उन्होंने मुझे चोदना शुरू किया तो उनका लण्ड पहले की ही तरह तगड़ा, कड़क, सख्त लोहे के छड़ की तरह खड़ा हुआ था। उसके बाद मुझे भी सेठी साहब चोदते रहे। सेठी साहब ने भाभी की तरह मुझे भी ऊपर से, पीछे से, साइड में से और ऊपर चढ़ा कर चोदा। आखिर में जब मैंने सेठी साहब से कहा की मेरी चूत में सूजन हो सकती है, तब कहीं जा कर सेठी साहब ने अपना वीर्य मेरी चूत में छोड़ा।

उस रात सेठी साहब के साथ हमारी चुदाई करीब करीब पूरी रात चली। सुबह के चार बजे तक सेठी साहब हमें बारी बारी चोदते रहे। पर मैं अगर यह कहूं की हम तीनों में से कोई भी एक मिनट के लिए थका या बोर नहीं हुआ। हालांकि मुझे मेरी चूत में सूजन महसूस हो रही थी और जब सेठी साहब ने कहा की चार बजने वाले हैं और उन्हें काम पर जा कर मीटिंग अटेंड करनी है तब जा कर मैंने सेठी साहब से कहा की मेरी चूतमें भी सूजन महसूस हो रही थी और वह अपना वीर्य मेरी चूत में डालकर उस रात की चुदाई को संपन्न करें, तब सेठी साहब ने अपनी मर्जी से उनका वीर्य मेरी चूत की सुरंगों में छोड़ा।

जब सब काम हो चुका तब भाभी ने मेरे कान पर एक बात आ कर कही जिससे मैं चौक गयी। भाभी ने कहा, "ननद सा, मैं क्या कहुँ, मुझसे एक भारी गलती हुई गयी।"

मैंने भाभी का हाथ थाम कर कहा, "भाभी सा, एक तो क्या, आज के दिन आपकी सौ गलतियां माफ़ हैं, चाहे वह कितनी ही बड़ी क्यों ना हो।"

फिर भाभी ने मेरे कान में जो कहा, उसे सुन कर मैं पूरी की पूरी सुन्न रह गयी। मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे पाँव के निचे से जमीन फट गयी। ऊपर से आसमान टूट पड़ा। मैंने भाभी से कहा, "भाभी सा, आपने यह क्या किया? अरे मुझ से तो पूछ लिया होता।"

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अब आगे दिल्ली में राज और सुषमा जी की कहानी राज की जुबानी

यहां मैं पाठकगण से यह पूछना चाहता हूँ की क्या उनको यह कहानी पसंद आ रही है, या नहीं? अगर आ रही हो तो अपने कमैंट्स लिखें। कुछ कमैंट्स जरूर लिखे जा रहे हैं पर ज्यादातर जो कमैंट्स जो मैं देखता हूँ वह किसी लड़की की कमैंट्स के पीछे लिखे हुए ही होते हैं। जिसमें दूसरे लड़के लड़की को ललचा ने की, पटाने की और अपनी और आकर्षित करने की कोशिश में ही लगे रहते हैं, उनके होते हैं। मेरे लिखने के लिए प्रोत्साहन या प्रेरणा आप लोगों के कमैंट्स से ही मिलती है। वरना क्यों मैं अपना समय बर्बाद कर यह सब लिखूं? करने को मेरे पास बहुतेरे काम है जो ज्याद लाभकर हैं। तो अगर आपको कहानी पसंद आये तो कमैंट्स लिखिए त्या मुझे iloveall1944@gmail.com पर मेल कीजिये। मेरा ईमेल आईडी पहले कहानी में देते थे। पर अब इन्होने शायद बंद कर दिया है। यह दुःख की बात है। मेरा इनसे अनुरोध है की उसे दुबारा शुरू करें।

मेरा और सुषमा का रिश्ता कुछ अलग ही था। मैं यह कहूं की हम दोनों एक दूसरे की मन की बात बिना कहे समझ जाते थे तो गलत नहीं होगा। सुषमा मेरी और मैं सुषमा की बातें एक दूसरे के चेहरे के भाव देख कर ही समझने लगे थे। मेरी और सुषमा की चुदाई भी सेठी साहब के चुदाई से काफी अलग होती थी। सेठी साहब के जैसी चुदाई तो बहुत कम ही लोग कर पाते होंगे। जिस तरह सुषमा ने टीना को बताया था सेठी साहब के लण्ड के जैसा लण्ड बहुत ही कम इंसानों का होगा। हालांकि सेठी साहब अच्छी अच्छी औरतों को अपने चोदने की क्षमता की वजह से संतुष्ट कर देते थे। पर कहते हैं ना की दिया तले अन्धेरा। उनकी अपनी बीबी ही उनकी चुदाई से संतुष्ट नहीं थी।

ऐसा नहीं की सुषमा को तगड़ी चुदाई पसंद नहीं थी। किस औरत को तगड़ी चुदाई पसंद नहीं होगी भला? पर सेठी साहब की चुदाई उससे कहीं ज्यादा तगड़ी हुआ करती थी। कोई भी औरत कभी भी सौतन होना या सौतन उसकी जिंदगी में आना स्वीकार नहीं करेगी। पर कई बार सुषमा सोचती थी की काश उनकी कोई सौतन होती। अगर सौतन होती तो सेठी साहब की चुदाई दो औरतें मिलकर झेलतीं। सेठी साहब का जोश तब सुषमा को आधा ही झेलना पड़ता। इस तरह हर चुदाई के बाद उसे अपने पाँव चौड़े कर चलना नहीं पड़ता। जब भी सुषमा को इस तरह चलती हुई लोग देखते तब सब देखने वाले अपने मन ही मन में हँसते की देखो इसकी कितनी तगड़ी चुदाई हुई होगी। सुषमा को उनकी नज़रों से ही पता चल जाता।

सुषमा मुझे कहती थी की उसे प्यार भरी धीमी चुदाई पसंद थी जब की सेठी साहब जब तैयार हो जाते थे तब उनका अपने लण्ड पर नियत्रण रखना अति कठिन हो जाता था और वह अपनी प्रेमिका पर लगभग टूट ही पड़ते थे। हालांकि इसका यह कतई मतलब नहीं की वह किसी भी औरत के ऊपर जबरदस्ती करते थे। पर एक बार औरत ने अपनी मर्जी दिखाई और अपने आपको नंग्न किया तो फिर सेठी साहब का लण्ड सेठी साहब पर हावी हो जाता था और सेठी साहब के लिए उसे काबू में रखना लगभग नामुमकिन सा हो जाता था। इसके परिणाम स्वरूप सेठी साहब की चुदाई अक्सर काफी आक्रमक होती थी जिसको ज्यादातर औरतें काफी पसंद करती होंगी। पर सुषमा के अनुसार शायद सुषमाजी उनमें अपवाद थीं।

पर मैं जानता और समझता था की सुषमा कोई अपवाद नहीं थी। शादी से पहले सुषमा ने सेठी साहब की चुदाई देख कर ही उन्हें पसंद किया था। पर कहते हैं ना की घरकी मुर्गी दाल बराबर। हर शादीशुदा औरत की तरह शायद सुषमा भी चुदाई में कुछ नयापन चाहती थी। सुषमा किसी भी चीज़ से जल्दी ऊब जाती थी यह मैंने महसूस किया था।

टीना और सेठी साहब के जाने के दूसरी शाम मैं जल्दी ही सेठी साहब के घर पहुँच गया था। मुझसे सुषमा से दुरी बर्दाश्त नहीं हो रही थी। शाम को छे बजे ही मैं पहुँच गया। मैंने देखा की सुषमा भी तैयार हो कर मेरे इंतजार में बैठी थी। इस बार सुषमा जैसे एक नयी नवेली दुल्हन सुहाग रात को सजधज कर अपने पति का इंतजार सुहागरात की शैय्या में करती है ऐसे ही सुषमा भी सजधज कर चूड़े, लाल रंग की साड़ी और सोलह श्रृंगार कर मेरे इंतजार अपने ड्राइंग रूम में बैठ कर कर रही थी। मेरे आने का समय हमने सात बजे का तय किया था। पर पता नहीं कैसे वह छे बजे ही तैयार हो गयी थी, जैसे उसे पता हो की मैं भी छे बजे उसके घर पहुँच जाऊंगा।

मैं जब सुषमा और सेठी साहब के घर पहुंचा तो दरवाजा खुला था। मेरे दाखिल होते ही मुझे बिना देखे ही सुषमा ने अंदर से आवाज दी, "दरवाजा अंदर से बंद कर देना।" जैसे सुषमा को पता हो की मैं ही आया था। मैंने सुषमा को नईनवेली वधु के रूप में सजी हुई देखा तो मेर लण्ड में अजीब सी हलचल मच गयी। उस भेष में सुषमा इतनी खूबसूरत और कामुक लग रही थी। मैंने सुषमा को अपनी बाँहों में भर कर उसके गाल पर चुम्बन किया। और फिर सुषमा को अपनी बाँहों में उठा कर मैं उसे बैडरूम में ले गया।

मैंने जैसे सुषमा को अपनी बाँहों में उठाया तो सुषमा ने शर्म के मारे अपनी आँखें बंद कर दीं। मैंने सुषमा की पलकों को चूमा तब सुषमा ने आँख खोलीं और मेरी नज़रों से नजरें मिलाकर उसने मुझे एक शर्म भरी मुस्कान दी और फिर अपना सर मेरी छाती पर रख कर उसने आँखें मुंद लीं। मैंने सुषमा को धीरे से पलंग पर लिटाया और उसके होँठों के पास अपने होँठ ले जा कर धीमी आवाज में बोला, "आँखें तो खोलो मेरी जान। आज तुम नयी नवेली दुल्हन के भेष में बड़ी ही खूबसूरत लग रही हो।"

सुषमा ने पूछा, "सच में? या कहीं तुम मेरी झूठी तारीफ़ तो नहीं कर रहे?"

मैंने अपना गला पकड़ कर कहा, "मेरी कसम। आज तुम गजब की खूबसूरत और सेक्सी लग रही हो। मन करता है की काश मैं तुम्हें अपनी बना सकता।"

सुषमा ने मुझे अपने ऊपर खिंच लिया और मेरी बाँहों में आती हुई बोली, "आज तुम मुझे ऐसा चोदोगे जैसा तुमने कभी किसीको नहीं चोदा। अपनी पत्नी टीना को भी नहीं।"

मैंने कुछ खिसियाने से स्वर में कहा, "सुषमा, देखो हम दोनों जानते हैं की मैं कोई सेठी साहब नहीं हूँ। तुम्हें सेठी साहब से तगड़े से चुदने की आदत है। भला सेठी साहब से मैं मुकाबला कैसे कर सकता हूँ?"

सुषमा ने कुछ रिसाई हुई आवाज में कहा, "यह मैं नहीं जानती। पर आज मैं तुम्हारी रंडी बनकर तगड़े से चुदना चाहती हूँ। यह सच है की मुझे सेठी साहब बड़ा तगड़ा चोदते हैं। पर मैं उस चुदाई से बोर हो गयी हूँ। तुम मुझे अच्छी तरह से चोदते हो। मुझे तुम्हारा चोदना अच्छा लगता है। पर मैं आज चुदाई में कुछ और नयापन चाहती हूँ।"

सुषमा ने लेटे हुए अपनी बाँहें फैलायीं। मैं लेटी हुई सुषमा के ऊपर सवार हो कर सुषमा की करारी बाँहों में समा गया। साडी ब्लाउज सब पहनी हुई सुषमा भी इतनी ज्यादा सेक्सी लग रही थी। मैं चिंता में पड़ गया। मैं चुदाई में नयापन कैसे लाऊँ? मैंने पूछा, "कैसा नयापन? तुम्हारे दिल में क्या है?"

सुषमा ने कुछ शर्माते हुए कहा, "पता नहीं, मैं कैसे बताऊँ? कुछ नया, जो आज तक नहीं किया। जिसके बारे में सुनते हैं पर किया नहीं।"

मैंने कहा, "ऐसा तो कोई कालिये के बड़े लण्ड से चुदना, या दो मर्दों से माने एम एम ऍफ़, यानी दो मर्द और एक औरत। कहीं तुम यह तो नहीं चाहती की तुम्हें दो मर्द मिलकर चोदे? उधर तुम्हारे पति आज दो औरतों को चोदेंगे और यहां तुम दो मर्दों से चुदना चाहती हो?"

सुषमा यह सुन कर एकदम उत्तेजित हो गयी और उसने पूछा, "क्या यह हो सकता है?"

मैंने सबसे पहले सुषमा के पाँव का तलवा चाटते हुए कहा, "कहाँ से लाऊँ वह दुसरा मर्द इस टाइम? क्या तुम सेठी साहब और मेरे साथ एम एम ऍफ़ करना चाहती हो? अगर ऐसा है तो वह तो सेठी साहब के आने के बाद ही हो सकता है।"

सुषमा ने अपने कान पकड़ कर कहा, "नारे बाबा ना! सेठी साहब अकेले ही तीन मर्दों के बराबर हैं।" फिर सुषमा हँस कर बोली, "और अगर तुम जोर लगाओ तो तुम एक मर्द के बराबर तो हो ही सकते हो। तो चार मर्द हुए। हम तो सिर्फ दो मर्दों की बात कर रहे हैं।"

मर्दों और औरतों में अपनी अपनी कमजोरियां है। सब से बड़ी कमजोरी यह होती है की औरत की तुलना उससे पतली सी सुन्दर और कम उम्र की लड़की से की जाए और मर्दों की तुलना अगर किसी और तगड़े और तगड़ी चुदाई करने वाले मर्द से की जाए तो उनके स्वाभिमान पर उसका घातक असर पड़ता है।

मैंने फ़ौरन सुषमा से कहा, " सुषमा यह गलत बात है। तुम मुझे इस तरह भिगो बिगो के मत मारो। तुम सेठी साहब की पत्नी हो और राजदार हो। किसी भी साधारण मर्द के लिए सेठी साहब की चुदाई की क्षमता से मुकाबला करना नामुमकिन है। यार एक बात बताओ। ऐसी क्या बात है सेठी साहब में की वह बिना झड़े इतने लम्बे समय तक एक औरत की चुदाई कर सकते हैं जब तक औरत ना कहे की बस करो। क्या सेठी साहब कोई स्टेरॉइड्स या ऐसी ड्रग्स लेते हैं जिससे उनके चोदने की क्षमता इतनी बढ़ जाती है?"

सुषमा ने कुछ गंभीरता दिखाए हुए कहा, "नहीं सेठी साहब कोई ऐसी दवाई या स्टेरॉइड्स नहीं लेते हैं। राज यह एक लम्बी कहानी है। अगर मैं कहने बैठूंगी तो काफी समय लग जाएगा और फिर तुम शिकायत करोगे की मैंने तुम्हें पूरा वक्त नहीं दिया।"

मैने कहा, "नहीं मैं शिकायत नहीं करूंगा। मैं जानने के लिए बहुत ही ज्यादा अधीर हूँ। तुम मुझे कहो। हमारे पास पूरी रात है।"

मैं यहां पाठकगण से प्रार्थना करता हूँ की अब जो आगे मैं लिखूंगा वह शायद आप में से कुछ लोगों को ना भाये। जो लोग कहानी में सिर्फ चुदाई चुदाई और चुदाई चाहते हैं वह नाराज हों। उनसे आग्रह है की वह अगले कुछ पन्नों को छोड़ दें।

सुषमा ने मुझे सेठी साहब की चुदाई करने की क्षमता के बारे में जो कहा उसे सुनकर मेरी सिट्टीपिट्टी गुम हो गयी। सुषमा ने जो कहा उसे मैं उन्हीं के शब्दों में निचे लिख रहा हूँ।

सेठी साहब ने मुझे यह सारी बातें शादी के बाद शुरू शुरू में खूब एन्जॉय करने के बाद जब मैं खुद एक हद से ज्यादा सेठी साहब की चुदाई की क्षमता से परेशान हो रही थी बतायीं थीं।

सेठी साहब कॉलेज में काफी हैंडसम थे। पर पता नहीं क्यों वह हमेशा लड़कियों के साथ कुछ सहमें सहमे से रहते थे। कॉलेज में कई लडकियां उनकी दीवानी थीं। पर सेठी साहब ज्यादातर लड़कियों से दूर ही रहते थे। वैसा नहीं की उनका दिल नहीं कर रहा था। वैसे सेठी साहब का दिल एक लड़की पर आया था और उससे उनको एक तरफ़ा ही प्यार हो गया था। सेठी साहब उस लड़की से शादी कर घर बसाना चाहते थे। लड़की भी सेठी साहब पर फ़िदा थी। पर सेठी साहब की उससे जब भी मुलाक़ात होती थी तो सेठी साहब की जुबान पर जैसे ताला लग जाता था। वाक्या उस समय का है जब फाइनल एग्जाम का परिणाम आ चुका था और परीक्षा के परिणाम को सेलिब्रेट करने के लिए कॉलेज के लड़के लड़कियों ने एक पिकनिक का प्रोग्राम बनाया। उस पिकनिक में सेठी साहब को अपनी चहेती लड़की से अकेले मिलने का मौक़ा मिला। बल्कि यूँ कहिये की उस लड़की ने सेठी साहब से अकेले में मिलने का मौका ढूंढ ही लिया।

लड़की बड़ी ही चुदासी थी। उसने सेठी साहब से चुदवाने का मन बना लिया था। सेठी साहब उस समय चुदाई के मामले में बड़े ही अनाड़ी थे। शुरू शुरू की फोरप्ले चली उसके बाद सेठी साहब समझ गए थे की वह लड़की उनसे चुदवाना चाहती थी। सेठी साहब के मन में भी चुदाई के बड़े सपने थे। पर सेठी साहब की झिझक या हिचकिचाहट के कारण बात आगे नहीं बढ़ सकती थी। जब मौका मिला तो एकांत में लड़की ने सेठी साहब की पतलून के ऊपर से ही सेठी साहब के लण्ड के ऊपर हाथ फिरा कर इशारों इशारों में ही अपनी इच्छा प्रकट की।

सेठी साहब के काफी रोकने पर भी लड़की ने जब सेठी साहब के पतलून की ज़िप खोली और निक्कर में से उनका लण्ड बाहर निकाला तो लड़की उसे देख हैरान रह गयी। सेठी साहब का लण्ड ठीकठाक ही था। पर चोदने के हालात होते हुए भी वह लण्ड एकदम ढीलाढाला मरे हुए साँप की तरह बेजान चोदने के नाकाबिल सा उनकी टांगों के बिच लटक रहा था। लड़की के चेहरे पर यह देख निराशा छा गयी। अक्सर चुदाई की बात के नाम पर ही लड़कों के लण्ड उनकी निक्कर में फुंफकार ने लगते हैं। पर फिर भी लड़की ने उसे अपने हांथों में ले कर काफी सहलाया, उसे मुंह में लेकर चूसा और उसे सख्त करने के लिए, खड़ा करने के लिए जो कुछ हो सकता है किया। पर सेठी साहब के लण्ड के ऊपर उसका कोई भी असर ही नहीं हुआ।

काफी मशक्क्त के बाद भी जब सेठी साहब का लण्ड खड़ा नहीं हो पाया तब लड़की बड़ी ही हैरान परेशान हो कर उसने सेठी साहब की और देख कर बड़े ही कड़वे शब्दों में कहा, "अरे यार अगर तुम नपुंशक हो, नामर्द हो, अगर तुम्हारा लण्ड खड़ा ही नहीं होता तो तुम लड़कियों के पास ही क्यों जाते हो? शादी करने के सपने क्यों देखते हो? मेरे पीछे इतने सारे लड़के पड़े हुए थे। मैंने एक तुम्हें ही आज तक लिफ्ट दी थी, और तुम ऐसे नामर्द निकले। तुम्हारी जिंदगी बेकार है। तुम्हारे माँ बाप कितना भी जोर लगाएं तुम शादी मत करना, किसी भोली भाली लड़की की जिंदगी खराब मत करना। हो सके तो चुल्लू भर पानी में डूब मरो। अब आज के बाद ना तो तुम मुझसे बात करना और ना ही किसी और लड़की से। अगर मैंने तुम्हें किसी लड़की के पास भी देखा तो मैं तुम्हारा भाँडा फोड़ कर तुम्हारी जिंदगी बर्बाद कर दूंगी। चले जाओ मेरे सामने से।"

उस युवा अवस्था में किसी सुन्दर चुदासी लड़की द्वारा इस तरह इतने कड़े शब्दों में इस कदर अपमानित होने की वारदात ने सेठी साहब के पुरे अस्तित्व को हिला कर रख दिया। उन्हें अपने आप पर एक तरह से नफरत सी हो गयी। दाम्पत्य जीवन के जो सपने उन्होंने युवावस्था में देखे थे वह उन शब्दों से चकनाचूर हो गए। युवा अपरिपक्वता से प्रेरित उसी समय उन्होंने ठान लिया की उनकी जिंदगी जीने के लायक नहीं है। उनको आत्महत्या कर लेनी चाहिए।

सेठी साहब के माँ बाप और बचपन से सेठी साहब भी देवी माँ में बड़ा विश्वास रखते थे। घर जा कर माँ बाप के पाँव छूकर उनको यह कह कर की वह माँ के मदिर जा रहे हैं सेठी साहब घर के नजदीक ही देवी माँ के मंदिर के पास से रेल गाडी की पटरी गुजरती थी वहाँ आत्महत्या करने पहुंचे। उसी समय एक मालगाड़ी वहाँ से गुजर रही थी। सेठी साहब जैसे ही पटरी पर कूदने वाले थे की पीछे से मंदिर के पुजारी ने उन्हें देखा तो सेठी साहब के कपड़ों को पकड़ कर एक तगड़ा धक्का मार कर पीछे की और खींचा। दोनों गिर पड़े और माल गाडी गुजर गयी।

पुजारी सेठी साहब को मंदिर में ले गया और सेठी साहब को कुछ भी उलाहना ना देते हुए बड़ी शान्ति और सौम्यता से सेठी साहब के हाथ में माँ का प्रसाद देकर उनसे सिर्फ एक ही बात कही। पुजारी ने कहा, "तुम्हारी जिंदगी अनमोल है। उसे इस तरह नष्ट मत करो। उसे समाज की और माँ की सेवा में लगाओ। तुम्हारी सारी समस्या माँ सुलझा देगी। तुम माँ की शरण में जाओ। यहां से पूरब दिशा में गंजाम जिले में चिलिका और बालुगाओं गाँव के नजदीक एक नारायणी माँ की शक्ति पीठ है। वहाँ के गुरुदेव की सेवा करो और कुछ समय वहाँ रह कर माँ का भजन करो। गुरुदेव बड़े ही कृपालु हैं। उनसे कुछ भी मत मांगो। वह अन्तर्यामी हैं। उनकी कृपा अपने आप ही हो जायेगी। तुम्हारे सारे प्रश्नों के उत्तर मिल जाएंगे।"

सेठी साहब ने तय कर लिया की वह घर नहीं जाएंगे। घर जाएंगे तो माँ बाप उनकी शादी की बात करने लगेंगे और सेठी साहब को उन्हें बताना पडेगा की वह नपुंशक हैं। आत्महत्या नहीं की तो अब दुसरा रास्ता वही है जो पुजारीजी ने उन्हें बताया। और कुछ नहीं हुआ तो वह लोगों की सेवा करने में ही अपना जीवन बिता देंगे। सेठी साहब ने पुजारी को दंडवत प्रणाम किया और वहाँ से निकल पड़े। जाते जाते उन्होंने पुजारी से कहा, "माँ पिताजी को कहना की मैं कुछ देर के लिए माँ की शरण में जा रहा हूँ और कुछ ही समय में वापस आ जाऊंगा। मेरी चिंता ना करें।"

यह कह कर सेठी साहब माँ नारायणी दुर्गा देवी के मंदिर जाने के लिए पैदल ही निकल पड़े। करीब २०० किलोमीटर का रास्ता उन्होंने चल कर तय किया। रास्ते में जहां मौक़ा मिला सो जाते। कुआं, नलका या नदी देखि तो नहा लेते और गीले कपड़ों में ही चल देते। जो कुछ रास्ते में मिला खा लेते। अक्सर उन्हें भूखों रहना पड़ता। वह रास्ते में कोई भी मंदिर या गुरुद्वारा होता वहाँ जा कर किसी ना किसी तरह एक जून खाना जुटा लेते। एक हफ्ते के सफर के बाद वह अपने गंतव्य स्थान नारायणी मंदिर पहुंचे। वहाँ पहुँच कर वह बाबा से मिले। वहाँ जा कर सेठी साहब ने बाबा से कहा उन्हें कुछ सेवा देदो। ना सेठी साहब ने अपनी समस्या बतायी ना बाबा ने कुछ पूछा। बाबा के कहने पर सेठी साहब वहाँ के रसोई घर में अपनी सेवा देते रहे। करीब एक महीना गुजर ने के बाद बाबा ने सेठी साहब को बुलाया। बाबा सेठी साहब को माँ के मंदिर में ले गए, माँ को दण्डवत प्रणाम करने को कहा और खुद माँ के दर्शन करते हुए कुछ आँखें मूँद कर देर मौन ध्यान करते हुए खड़े रहे। उसके बाद उन्होंने सेठी साहब के हाथ में कुछ रुपये दिए और माँ का प्रसाद दिया। फिर उन्होंने सेठी साहब को आशीर्वाद देते हुए घर वापस जाने को और कोई अच्छी लड़की देख कर शादी करने को कहा और आदेश दिया की जिंदगी भर माँ की पूजा सेवा करना और जितना हो सके लोगों का और समाज का भला करने की कोशिश करना। किसी का बुरा मत करना।

सेठी साहब के वापस आने पर तो उनका का सितारा बुलंद होने लगा। उनको एक से बढ़ कर एक कम्पनियों से जॉब के ऑफर आने लगे। कई कंपनियों में तो उनको बहुत अच्छी पोजीशन पर नौकरी का ऑफर हुआ। सेठी साहब के आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब जो लड़की ने उन्हें इतना जबरदस्त ताना मारा था की वह नपुंशक है, वह नामर्द है वही लड़की उन्हें मिलने आयी। वह लड़की सेठी साहब से हाथ जोड़ कर बड़ी ही विनम्रता से माफ़ी मांगने लगी और बोली की उससे बड़ी भारी गलती हो गयी की सेठी साहब को उसने उतने कड़वे शब्द बोले। उसने कहा की सेठी साहब जैसे भी हैं वह उनसे शादी करना चाहती है। जब सेठी साहब ने उस लड़की से चुदाई करने के बारे में पूछा तो वह सोच में पड़ गयी, पर उसने हाँ कह दी। सेठी साहब ने उस लड़की को वहीँ पर पलंग पर लिटा कर इतना चोदा की वह लड़की सेठी साहब को चुदाई ख़त्म करने के लिए मिन्नतें करने लगी।