साथी हाथ बढ़ाना Ch. 03

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जब सेठी साहब ने उसे चुदाई से फारिग किया तब उस लड़की ने सेठी साहब के पाँव छू कर दुबारा माफ़ी मांगी। उस लड़की ने ना सिर्फ माफ़ी मांग कर शादी करने की इच्छा जताई, बल्कि उसने कहा की उसने अपने माता और पिताजी से भी बात कर ली थी और वह भी इस शादी हो सके तो खुश हैं। सेठी साहब ने फ़ौरन शादी के लिए हाँ कह दी। सुषमा ने जब मुझे कहा, "वह लड़की मैं ही हूँ।" तब मैं भौंचक्का सा सुषमा जी को देखता ही रह गया।

सुषमा और सेठी साहब की यह कहानी सुन कर मेरा सर चकरा गया। मैंने सुषमाजी से कुछ दुरी बनाते हुए उनको प्रणाम करते हुए कहा, "सुषमाजी, तुम्हारी और सेठी साहब की यह कहानी सुनकर मैं अपने आपको दोषी महसूस कर रहा हूँ। तुम्हारा और सेठी साहब का संबंध अटूट और अनूठा है। यह माँ के आशीर्वाद से बना है। मरे मन में इस को लेकर दो बातें उठ रहीं हैं। पहली बात तो यह है की मुझे लगता है जैसे मैं इसमें कहीं ना कहीं विलेन का पात्र निभा रहा हूँ। मैं कबाब में हड्डी नहीं बनना चाहता। मेरा दूसरा सवाल यह है की जब तुम्हारा और सेठी साहब का मिलन माँ की दैवी शक्ति से हुआ है तो फिर यह बच्चे की समस्या क्यों?"

सुषमा ने मुझे अपने करीब खींचा और वह मेरी बाँहों में आ गयी और मेरी नज़रों से नजरें मिलाकर एक प्यार भरी मुस्कान दी और बोली, "तुम्हारे सवाल में ही तुम्हारा जवाब है। तुम मेरे और सेठी साहब के संबंधों में कबाब में हड्डी नहीं तुम्हीं हमारे लिए कबाब हो। तुम हमारे बिच विलेन नहीं हीरो बन कर आये हो। तुम हमारे बच्चे की समस्या का समाधान हो। भला यह नारायणी माँ की इच्छा के बगैर कैसे हो सकता है की तुम हमारी जिंदगी में ऐसे आये जैसे तुम्हें माँ ने हमारी समस्या का समाधान करने के लिए ही भेजा हो? और दूसरी बात कोई भी औरत या मर्द, क्या अपने बच्चे को किसी और को देने के लिए कभी राजी हो सकता है क्या भला? टीना ने तो मुझे बगैर मांगे ही वचन दे दिया की चाहे सेठी साहब से टीना को बच्चा हो या आपसे मुझे बच्चा हो, वह एक बच्चा मुझे देगी। विधाता का लिखा हुआ माँ नारायणी भले ही खारिज नहीं करती पर अपने भक्तों के लिए उसका समाधान जरूर करती है। हमने जो चुदाई की या जो चुदाई हम करने जा रहे हैं वह यह समझो की माँ की मर्जी से ही हो रही है। इसमें माँ का दैवी संकेत है।"

मैं यहां पाठकों को और ख़ास कर महिला पाठकों को यह सन्देश देना चाहता हूँ की चुदाई को पाप के रूप में ना लें। अगर चुदाई किसी का दिल दुखा कर नहीं हो रही और स्त्री और पुरुष की सहमति और प्यार से हो रही है तो वह पवित्र है। एक पति अपनी पत्नी को किसी और मर्द से चुदवाना चाहता है और अगर पत्नी को पति पर भरोसा है और वह दुसरा मर्द पत्नी को स्वीकार्य है तो पत्नी को उसका विरोध नहीं करना चाहिए। पति चाहता है की पत्नी भी दूसरे मर्द से चुदाई करवा कर दूसरे लण्ड का आनंद ले। पर हाँ, यह ध्यान रहे की इस चक्कर में पति पत्नी एक दूसरे से दूर ना हों। यह हो सकता है की पहले सम्भोग के बाद पत्नी किसी और मर्द से भी चुदवाना चाहे। या यह भी हो सकता है की पत्नी उसी मर्द से दुबारा तिबारा चुदवाना चाहे। अगर पति को उसमें कोई जबरदस्त आपत्ति ना हो तो पत्नी को दूसरे मर्द से भी चुदवाने देना चाहिए। अक्सर ऐसी चुदाई करने से पति और पत्नी में प्यार बढ़ता ही है। पर यह जरुरी भी नहीं। यह पति, पत्नी और तीसरे मर्द की मानसिकता पर आधारित है।

आजकल यह आम हो गया है की पत्नियां पति के अलावा दूसरे मर्दों से चुदवातीं हैं। ज्यादा तर मामलों में यह चोरी छुपी होता है। कई मामलों में यह पति की इच्छा से होता है और कई मामलों में पति की परोक्ष रूप से इजाजत होती है। मतलब पति इजाजत नहीं देता पर उसे पता होता है की पत्नी दूसरे मर्द से चुदवा रही है पर वह इस बात का बतंगड़ नहीं बनाता।

सुषमा की कहानी सुन कर मैं सेठी साहब के कमरे में रखी माँ की तस्वीर को सिर झुकाये बगैर रह नहीं पाया। सुषमा ने मेरी और सुषमा की चुदाई को पवित्र करार दिया यह सुन कर मुझे अच्छा लगा। आखिर चुदाई हम सब करते ही हैं। माँ बाप की चुदाई के बगैर हम थोड़े ही पैदा होते? हर रात हर घर में चुदाई होती है। चुदाई का सामाजिक अधिकार पाने के लिए ही स्त्री और पुरुष शादी करते हैं। तो फिर चुदाई को ऐसे हीन दृष्टि से क्यों देखना चाहिए? चुदाई भी हमारे जीवन का एक आम हिस्सा है, जैसे खाना, सोना, पैसे कमाना इत्यादि।

दूसरी बात यह है की जब स्त्री और पुरुष चुदाई करते हैं तब ख़ास कर स्त्रियां चोदना, चुदाई, लण्ड, चूत ऐसे शब्द बोलने से कतराती हैं। कई महिलायें अगर बोलती भी हैं तो फ़क, कॉक, कंट ऐसे इंग्लिश शब्दों का प्रयोग करती हैं। ऐसा क्यों? अपने देसी शब्दों का उपयोग करने में हीनता का भाव क्यों? हम लण्ड, चूत, चोदना आदि शब्दों को गंदा क्यों गिनते हैं? हमें हमारी भाषा का भी सम्मान करना चाहिए और ख़ास कर हम जब चुदाई कर रहे हों या चुदाई की बात कर रहे हों तो इन शब्दों के उपयोग को असभ्य नहीं मानना चाहिए।

सुषमा के कहने पर सुषमा के पाँव को छोड़ सुषमा के हाथों को मैंने चूमना शुरू किया। सुषमा की कलाइयां एकदम चिकनी गोरी चिट्टी थीं। हाथों में शादी का चूड़ा पहने हुए सुषमा की कलाइयां बड़ी ही सेक्सी लग रहीं थीं। मैं सुषमा की कलाइयां चूमते हुए ऊपर की और खिसक ने लगा। जैसे जैसे मैं आगे बढ़ता गया सुषमा के बदन में वैसे वैसे ही कम्पन बढ़ता ही चला गया। सुषमा नयी नवेली दुल्हन की सुहाग रात मेरे साथ मना रही थी। उस के जहन में था की वह मुझे सुहागरात का तोहफा पेश करेगी। हालांकि पिछली रात को मैं सहमा को चोद चुका था पर वह सब एक़दम बिना कोई तैयारी के सुनियोजित तरीके से नहीं हुआ था। जैसे अनाड़ी लड़के किसी लड़की के साथ मौक़ा पाते ही कोई देख ना ले उस डर के साथ आधे कपडे निकाले आधे बदन पर ही रह गए ऐसे अकेले में आननफानन में चुदाई करते हैं वैसे ही कुछ हद तक हुआ था।

हमने यह तय नहीं किया था की हम कैसे एन्जॉय करेंगे, कैसे प्यार करेंगे। पर उस दूसरी शाम को तो सुषमा ने बड़े ही सुनियोजित तरीके से बढ़िया सा शादी का जोड़ा और शादी का चूड़ा पहन कर शादी के बाद सुहागरात में जैसे नईनवेली दुल्हन सोने की जरी वाली भारी साडी पहन कर पति का इंतजार कर रही हो वैसे मेरे आने का इंतजार कर रही थी। जब मैंने उसकी कलाइयों से चूमने शुरुआत की तब सुषमा के पुरे बदन कम्पन आना स्वाभाविक था।

मैंने सुषमा की कलाइयों से एक के बाद एक भारी भरखम चूड़ा निकाला। पता नहीं औरतें इतना भारी चूड़ा शादी के समय और उसके फ़ौरन बाद क्यों पहनतीं हैं? इसका जरूर कोई सामाजिक महत्व होगा। सुषमा की गोरी गोरी कलाइयों से बढ़ता हुआ मैं उसकी बगल में जा कर उसकी गर्दन को चूमने लगा। मेरे हाथ सुषमा की पीठ पर सुषमा के ब्लाउज के बटन पर मंडरा रहे थे। गालों को चूमते हुए नाक और कान को भी चूमता गया। मैंने जान बुझ कर होठों को नहीं छेड़ा। पिछली रात के अनुभव से मैं जानता था की सुषमा को होंठों पर प्रगाढ़ चुम्बन कितना प्यारा था और उसे चूमते ही सुषमा की टांगें अपने आप खुल जातीं थीं।

सुषमा मेरे होँठों से होंठ मिलाने की प्रतीक्षा में बैठी रही पर जब मैंने ऐसा कुछ नहीं किया तब सुषमा ने घूम कर मुझे पकड़ कर मेरे होंठ अपने होँठों पर चिपकाते हुए बोलने लगी, "राज, मेरे होंठ चूमो। मुझे तगड़ी किस करो।" और उसके फ़ौरन बाद सुषमा के मुंह में से सिर्फ, "उम्.... ऍम....." के अलावा कुछ भी आवाज नहीं निकल रही थी। निकलती भी कैसे? उसके होंठ मेरे होठ से कस कर चिपके हुए थे और मेरी जीभ उसके मुंह में उसके रस का पान कर रही थी। सुषमा मेरे मुंह से लार चूस रही थी और मैं उसके मुंह से लार निगल रहा था।

सुषमा को किस करने का मतलब था उसकी चुदाई का दरवाजा खोल देना। मेरे हाथ जो सुषमा के ब्लाउज के बटन पर मंडरा रहे था जिन्हे अपना बदन इधर उधर हिला कर सुषमा खोलने की इजाजत नहीं दे रही थी अब सुषमा चाहती थी की मैं उन्हें खोलूं और सुषमा के अल्लड़ स्तनोँ को ब्लाउज और ब्रा के बंधन से आजाद करूँ। मैंने बिना समय गँवाए सुषमा के ब्लाउज़ के बटनों को एक के बाद एक खोल दिए और ब्रा के हुक को भी खोल कर सुषमा के फूल रहे मस्त स्तनोँ को बंधन से मुक्ति दिलाई।

जैसे ही मैंने सुषमा के अल्लड़ स्तनोँ को अपने हाथों में लिए तो मैंने सुषमा की निप्पलों को फूल कर एकदम सख्त आकर लेकर सुषमा के एरोला के बिच में शिखर की तरह उन्नत मस्तक रखे हुए पाया जो सुषमा की चुदाई करवाने की इच्छा प्रगट कर रहा था। स्त्रियों के स्तनोँ के हालात से उसकी चुदाई करवाने के इच्छा का अनुमान लगाया जा सकता है। अगर आपने स्त्रियों की चूँचियों पर कब्जा कर लिया और उसे दक्षता से सहलाने और मसलने की कला का इस्तेमाल किया तो समझो आपने उस स्त्रीको चुदाई के लिए आधी तो राजी कर लिया। होंठों पर चुम्बन स्त्रियों की कामुकता की सीढ़ी का पहला सोपान है। स्त्रियों को कामुक करने की सीढ़ी का दुसरा सोपान है स्त्रियों के स्तनोँ को काबिलियत से मसलना, चूमना काटना इत्यादि।

अब सुषमा के लिए चुदाई के लिए मुझे पूरी तरह स्वीकार करने के अलावा कोई चारा नहीं था। अब सुषमा मुझे रंग में लाना चाहती थी। मैथुन या सम्भोग या चुदाई कहो यह स्त्री पुरुषों का एक दूर को तैयार कर उनको ज्यादा से ज्यादा आनंद देने का खेल है। इस खेल में अगर पुरुष या स्त्री सिर्फ अपने ही आनंद को अनुभव कर दूसरे की कामुकता को नजरअंदाज करते हैं तो वह चुदाई अधूरी है या यूँ कहिये की एक तरफा है। उसे स्वार्थपूर्ण भी कह सकते हैं। अक्सर इस बात को पुरुष नहीं समझते। खुद झड़ जाने के बाद पुरुष लोग चुदाई को समाप्त कर देते हैं। यह आपके पार्टनर के प्रति अन्याय है। पुरुष को चाहिए की स्त्री भी सम्भोग की क्रिया का पूरा आनंद उठाये। स्त्रियों के झड़ने प्रक्रिया अत्यंत ही जटिल अथवा पेचीदा है। कई बार जब मन चाहे पुरुष से वह चुदवातीं हैं तो उस सम्भोग में वह बार बार झड़ती रहतीं हैं। पर अपने पति से अथवा कोई ज्यादा पसंद ना हो ऐसे पुरुष से चुदवाते समय वह आसानी से झड़ती नहीं।

सुषमा ने मेरी टांगों के बिच में हाथ डाल कर मुझे इंगित किया की मैं भी खुद को निर्वस्त्र करूँ। सुषमा ने मेरे पाजामे के नाड़े को खोलने की कोशिश की। मैंने फ़ौरन नाड़े का छोर खिंच गाँठ खोल दी। सुषमा ने खुद निक्कर को निचे धकेल कर मेरे लण्ड को आजाद किया। सुषमा के इंतजार में मेरा लण्ड पहले से ही सख्त और खड़ा तैयार था। सुषमा ने उसे हाथ में लेकर प्यार से मेरी और देखा। मेरा लण्ड काफी मोटा है। खैर उसका मुकाबला सेठी साहब के लण्ड से ना किया जाए। सेठी साहब का लण्ड एक अलग ही बात है। सुषमा ने कुछ देर मेरे लण्ड को अपने हथेलियों में प्यार से सहलाया और फिर फर्श पर बैठ कर उसे अपने मुंह में लिया।

सुषमा लण्ड चूसने की कला में बड़ी ही माहिर है। अगर चुसवाने वाला ध्यान ना रखे तो लंड चुसवाते हुए वह सुषमा के मुंह में ही झड़ सकता है। मुझे इस बात का भलीभांति पता था। मैं जानता था की सुषमा को कहाँ रोकना है। सुषमा की एक खासियत थी। वह लण्ड को भी मुंह से इतना बढ़िया तरीके से प्यार देती थी की अच्छे से अच्छा लण्ड चुसवाते हुए अपने आपको झड़ ने से रोक नहीं पाए। मैंने सुषमा को पीछे हटाया और अपना लण्ड सुषमा के मुंह से निकाला। मैंने सुषमा को गोल गोल घुमाते हुए उस की भारीभरखम साडी को कुछ मशक्क्त के बाद निकाला। सुषमा घाघरे में इतनी खूबसूरत लग रही थी। पर मैं भी कोई चित्रकार तो था नहीं जो सुषमा का चित्र बना रहा हो। मुझे तो सुषमा को नंगी कर उसे खूब चोदना था।

घाघरा भी मेरे लक्ष्य में बाधा रूप था। घाघरे का नाडा खोल मैंने सुषमा को घाघरे के आवरण से भी मुक्त किया। मेरी रानी सुषमा मेरे हर क्रिया कलाप को बिना कुछ बोले मुस्कुराती हुई कुछ लज्जा से देखती ही रही। अब एक छोटी पैंटी ही सुषमा के प्यार के छिद्र को ढके हुए थी। उसे सुषमा ने ही मीचे खिसका कर हटा दिया और मेरी प्यारी मेरी नज़रों के सामने ही नंगी खड़ी हो गयी। जब एक औरत एकदम फिट रहते हुए अपनी कमर और पेट को नियंत्रण में रखती है तो उसका नग्न रूप देखते ही बनता है।

सुषमा ने अपने आपको सुनियोजित तरीके से फिट रखा हुआ था। खाने पिने में संयम और शरीर की कैलोरीज को जलाते रहने से आप अपने बदन को फिट रख सकते हो। हालांकि यह मुश्किल है पर नामुमकिन नहीं। सुषमा यह जानती थी की शादी के बाद अक्सर औरतें मोटी हो जातीं हैं। सुषमा ने इसके लिए जो भी जरुरी नियम थे उनका सख्ती से पालन कर अपने आप को फिट रखा हुआ था।

हालांकि सुषमा उस समय चुदवाने के लिए शत प्रतिशत तैयार थी फिर भी मुझे सुषमा को चुदवाने के लिए मुझे मिन्नतें करे उस हाल में लाना था। मैंने पहले लिखा था की स्त्रियों को चुदवाने के लिए राजी करने के सौपान में दुसरा सौपान था उनकी चूँचियों को मसलना और चूमना काटना इत्यादि। स्त्रियों को चुदवाने के लिए तैयार करने का तीसरा सौपान है उनकी चूत को चुमना और चाटना। पुरुषों की जीभ का चूत के स्पर्श से अच्छी से अच्छी स्त्रियां मचल जातीं हैं। अगर पुरुष चूमने में माहिर हो तो फिर कहना ही क्या? स्त्रियां पुरुष की जीभ को चूमने से पागल सी हो जातीं हैं।

चौथा और आखिरी सौपान है स्त्रियों की चूत की पंखुड़ियों को सहलाते हुए उनकी चूत का उंगली चोदन। स्त्रियों की चूत को चाटने के बाद स्त्रियां जब चुदवाने के लिए बेताब हो जातीं हैं तब उनकी चुदासी के हालात को एक और ऊंचाई पर ले जाने का काम उंगली चोदन से होता है। जब पुरुष यहां तक पहुँच जाता है तब स्त्री अपने आप ही पुरुष को हाथ जोड़ कर चोदने के लिए बिनती करती है। पर यहां ध्यान रहे की यह काम अत्यंत नाजुक और कोमलता से करना चाहिए। हमारे हाथों के नाख़ून अक्सर स्त्रियों के चूत की कोमल त्वचा को आहत कर सकते हैं। उंगली चोदन के पहले अपने नाखूनों को काटकर ऐसा कर दीजिये की हमारे पार्टनर को कोई तकलीफ ना हो।

जब मैंने सुषमा को ऊपर बतायी ही सारी प्रक्रियाएं करने के बाद सुषमा को उँगलियों से चोदना शुरू किया तो वह मेरी मिन्नतें करने लगी की मैं फ़ौरन मेरा लण्ड उसकी चूत में डालकर उसे चोदूँ। मैं कौनसा औपचारिक आमंत्रण का इंतजार कर रहा था? मेरा लण्ड तो सुषमा की चूत में दाखिल हो कर उसे चोदने के लिए वैसे ही बेताब था। सुषमा के मिन्नतें करने पर मैंने सुषमा को पलंग पर ठीक से लिटाया और उसकी टांगों को कंधे पर चढ़ा कर मेरा लण्ड सुषमा की चूत पर रखा।

सुषमा की चूत वैसे ही अपने स्त्री रस से गीली हो चुकी थी। मेरा लण्ड भी कभी से सुषमा की चूत में जाने के इंतजार में अपना रस रिस रहा था। मेरे लण्ड के इर्दगिर्द काफी चिकनाहट जमा थी जिससे बाहर से कोई अतिरिक्त चिकनाहट से उसे चिकना करने की जरुरत नहीं थी। फिर भी सुषमा ने मेरे लण्ड को अपनी चूत की पंखुड़ियों की सतह पर कुछ देर रगड़ा ताकि वह उसकी चूत में प्रवेश करने में ज्यादा कष्टदायी ना हो। यह एक स्त्री सुलभ सावधानी के रूप में था। फिर जब सुषमा ने मेरे लण्ड को अपनी चूत में दाखिल करने का मुझे इशारा किया तब मैंने मेरे लण्ड को एक धक्का मार कर सुषमा की चूत में प्रवेश दिलाया। कुछ रुकावट जरूर हुई उसके कारण शायद सुषमा को कुछ परेशानी जरूर हुई होगी। पर सुषमा के मुंह से कोई आवाज नहीं निकली।

मैं अपने ही लण्ड को सुषमा की चूत में दाखिल होने की प्रक्रिया देखना चाहता था। मैंने कभी एक लण्ड को चूत में दाखिल होते हुए और चूत को चोदते हुए नहीं देखा था। मेरा बड़ा मन कर रहा था की कभी मैं भी सुषमा को या टीना को किसी और लण्ड से चुद्ता हुआ देखूं। पता नहीं यह अजीबोगरीब ख़याल मेरे मन में क्यों आया। मेरे मन में ख़याल आया की कभी ना कभी मैं टीना या सुषमा को मेरे सामने किसी और मर्द या फिर सेठी साहब से ही चुदवा कर देखूं। पर सेठी साहब के साथ में ऐसा करना तो संभव ही नहीं था क्यूंकि एक बार जिसे सेठी साहब ने चोद दिया फिर वह औरत उस समय किसी और से चुदवाने के काबिल ही नहीं रहती। मैंने कुछ झुक कर मेरे ही लण्ड को सुषमा की चूत में चोदते हुए देखना चाहा। पर एकड़ झलक के सिवाय उसे साफ़ साफ़ देख नहीं पा रहा था।

सुषमा के बेड पर मचलने से मैं यह समझ पा रहा था की सुषमा मेरे लण्ड से चुदने से काफी उत्तेजित लग रही थी। मेरे चुदाई के धक्के से सुषमा का पूरा बदन हिलने लगा था। सुषमा की चूँचियाँ अपनी उद्दंडता को भूल कर इधर उधर फ़ैल कर जैसे उड़ रहीं थीं। मैंने मेरे हाथ से उनको पकड़ कर सम्भाला। मुझे चुदाई करते हुए मेरे पार्टनर की चूँचियाँ मसलने में बड़ा ही उत्तेजना का अनुभव होता है। मैंने भी जो मेरे निचे लेट कर चुद रहीं थीं उन महिलाओं से भी सूना था की उन्हें भी चुदाई होते समय अपनी चूँचियाँ सेहलवाने, मसलवाने में बड़ी ही उत्तेजना का अनुभव होता है। मैं सुषमा की चूत में एक के बाद एक धक्के मार कर अपना लण्ड पेले जा रहा था।

सुषमा इस लण्ड के धक्कों को खाने के लिए पता नहीं कितने महीनों से इंतजार में थी। कल की हमारी चुदाई से लगता था सुषमा को पूरी तरह संतुष्टि नहीं हुई थी। आज भी चुदाई में सुषमा उतनी ही या यूँ कहिये की और भी आक्रमक नजर आ रही थी। मेरे पुरे बदन में चुदाई करने के कारण जो वीर्य रस दौड़ रहा था उसका वर्णन करना मुश्किल था। मेरे बदन का एक एक स्नायु सख्ती से खींचा हुआ था। सुषमा की चूत हमारे रस से पूरी लबालब चिकनाहट से परिपूर्ण हो चुकी थी। मेरे लण्ड पेलने से "फच्च.... फच्च..." की आवाज हमारे दिमाग को घुमा रही थी।

मैंने सुषमा को चोदते हुए उसके गाँड़ के गालों को चूँटी भरना शुरू किया। सुषमा बार बार अपनी गाँड़ पलंग ऊपर से उत्तेजना की दशा में हिला रही थी। जब भी में एक तगड़ी तीखी चूँटी भरता तो सुषमा के मुंह से "आह..... " निकल जाती। वैसे भी सुषमा अपने मुंह से हर एक धक्के बाद "आह.... ओह..... है....." करती रहती थी। सुषमा को चोद ने की मेरी बहुत महीनों से छिपी हुई अभिलाषा था जिसके कारण उसको चोदते हुए मेरा पूरा बदन उत्तेजना से सख्त हो रहा था। मेरे अंडकोष में मेरा वीर्य फुंफकार रहा था।

मने अपने लण्ड को सुषमा की चूत में टेढ़ा मेढ़ा करना शुरू किया। इससे सुषमा को और तेज उत्तेजना का अनुभव होने लगा। साथ ही साथ में मैंने सहमा की चूँचियों को इतने जोर से दबाया की सुषमा कराहने लगी। मैंने फिर सुषमा की गाँड़ के गालों में भी फिर से जोर से तीखी चूँटी भरना शुरू किया। एक साथ यह तीनों काम से सुषमा काफी उन्मादक अवस्था में आ गयी। मैंने जब चुदाई की रफ़्तार और तेज कर दी तो सुषमा उसे झेल ना सकी और कुछ ही पलों में वह झड़ गयी। सुषमा के झड़ जाने पर मैंने उसको चोदने की रफ़्तार कम की।

झड़ ने के बाद भी सुषमा का चुदाई का जोश बिलकुल कम हुआ हो ऐसा लग नहीं रहा था। मैं जैसे सुषमा की चूत में दुबारा से अपना लण्ड पेल रहा था तो सुषमा उससे दुगुने जोश से मेरे पेलने के जवाब में अपनी कमर और उसके निचे का बदन उछाल कर उसी मात्रा में जवाब दे रही थी। हमारी जुगल बंदी कुछ समय चली। अब झड़ ने की बारी मेरी थी। पुरुष और स्त्री के झड़ ने में एक बहुत बड़ा फर्क है। पुरुष अगर झड़ जाए तो अंडकोष में भरा उसके वीर्य का भण्डार भी खाली हो जाता है। अक्सर पुरुष के लण्ड का जोश उसके वीर्य की मात्रा से ही होता है। हाँ कई पुरुष कम मात्रा में वीर्य होने के बावजूद भी काफी तगड़ा चोदने की क्षमता रखते हैं। बल्कि कई बार उनके चोदने की क्षमता झड़ने के बाद बढ़ जाती है। पर ज्यादातर मर्द लोग झड़ने के बाद ढेर हो कर गिर पड़ते हैं और फिर बाद में ना तो उनमें चोदने की क्षमता रहती है ना ही इच्छाशक्ति। मैं भी उनमें से एक था।

मैं जानता था की जैसे ही मैं झड़ गया, उसके बाद मैं सुषमा को चोदने की क्षमता नहीं जुटा पाउँगा। तो मुझे ब्रेक लगाना ही पडेगा ताकि मैं अभी ना झडूं, अगर मुझे सुषमा को ज्यादा देर चोदना है तो। शायद सुषमा को भी इस का अंदाज था। तो मैंने जैसे हीसुषमा को चोदना रोक दिया तो सुषमा समझ गयी की मैं झड़ ने के कगार पर हूँ और अभी झड़ना नहीं चाहता। सुषमा ने कहा, "चालु रखो राज साहब, झड़ना है तो झड़ जाओ मेरी चूतमें। रुको मत। बेशक दुसरा सेशन हो या ना हो पर मैं तो यही कहूँगी की हमारा पहला सेशन झकास रहा।"

सुषमा की बात सुन कर मैं ने अपने अंडकोष पर लगाया हुआ प्रतिबन्ध खोल दिया और मेरे वीर्य का नलका खुल गया। जैसे ही मैंने दो तीन धक्के पेले, मेरे लण्ड के छिद्र में से वीर्य का फव्वारा सुषमा की चूत में सब तरह फैलने लगा। मुझे और सुषमा को भी मेरे वीर्य का उष्ण तापमान सुषमा की चूत की सुरंगों में महसूस हुआ। सुषमा मेरे वीर्य को उसकी चूत के सुरंगों में बहता महसूस कर मुझसे लिपट गयी और मेरी आँखों में आँखें डालकर पूछने लगी, "सच बताओ राज, क्या तुम्हारे वीर्य के शुक्राणु मेरे अण्डों को फलीभूत कर पाएंगे? क्या मैं तुम्हारे वीर्य से माँ बन पाउंगी?"

मैंने सुषमा को दिलासा देते हुए उसके नंगे बदन पर हाथ फिराते हुए कहा, "सुषमा, टीना मुझे कभी कंडोम के बगैर चोदने नहीं देती। जब जब भी पहले हम ने टीना के पीरियड के टाइम टेबल के अनुसार सलामत समय देख कर बगैर कंडोम के चुदाई की तब तब टीना विपरीत टाइम होने पर भी फटाक से गर्भवती हो गयी और हमें फ़ौरन बिना देर लिए उसका गर्भ निवारण करना पड़ा। सुषमा यही कहती है की मेरा वीर्य फटाक से स्त्री के अण्डों को पकड़ लेता है। इसी लिए वह कई बार मुझे मजाक में कहती है की मैं अगर किसी और स्त्री को चोदूँ तो खबरदार, कंडोम लगा कर ही चोदूँ, वरना वह बेचारी के बारह बज जाएंगे और अगर वह शादीशुदा हुई तो अपने पति को और अगर कंवारी हुई तो अपने रिश्तेदारों को जवाब देने लायक नहीं रहेगी। तुम निश्चिन्त रहो तुम मुझ से माँ बनने वाली हो। यह हमारी चुदाई बेकार नहीं जायेगी।"

सुषमा को हर हालात में माँ बनना था। और मेरे वीर्य से ही माँ बनना था। यह उसने अपने मन में तय कर रखा था। उसके लिए मुझसे उसको चाहे जितनी चुदाई करवानी पड़े वह तैयार थी। मुझे उससे कोई शिकायत नहीं थी। उस रात मैं दुसरा सेशन करने के मूड़ में या यूँ कहिये की जोश में नहीं था। एक बार मेरे वीर्य का भण्डार खाली होने के बाद मुझमें वह क्षमता नहीं रही थी की मैं दुसरा सेशन कर सकूँ। पर सुषमा थोड़ी ही मानने वाली थी? सुषमा ने मेरे लण्ड को मुंह में ले कर इतनी दक्षता और प्यार से इतना चूसा की मेरा लण्ड खड़ा हो गया। पाठक मानेंगे नहीं पर दूसरे सेशन में मैंने सुषमा को घोड़ी बनाकर इतना तगड़ा चोदा की शायद उसे उस बार सेठी साहब की याद आयी होगी। यह मेरा मानना है। सुषमा चुदवाते जिस तरह सिसकारियां मार रही थी, मुहे कोई शक नहीं था की वह मेरी चुदाई को पूरी तरह से एन्जॉय कर रही थी।

जब हम चुदाई से फारिग हुए तब सुषमा फ्रेश होने के लिए वाशरूम में गयी। कुछ देर सुषमा के निकलने का इंतजार कर सुषमा के निकलने के बाद मैं भी वाशरूम गया और कुछ स्वस्थ होकर पलंग के पास पहुंचा। मेरे पलंग पर पहुँच कर तकिये के सहारे बैठने पर सुषमा सिमट कर मेरी बाँहों में आ कर मुझसे छोटी बच्ची की तरह लिपट गयी और बोली, "कैसा रहा राज साहब? क्या मैं आपकी उम्मीद के मुकाबले ठीक रही की नहीं?"

मैंने कुछ खिसियाने स्वर में कहा, "यह सवाल तो मुझे तुमसे पूछना चाहिए।"

सुषमा ने कुछ शरारती अंदाज में जवाब देते हुए कहा, "अगर आप पूछ ही रहे हो तो मैं यह कहूँगी की सेशन ठीक ही रहा।अब देखिये मैं सेठी साहब की बीबी हूँ और उनकी चुदाई की आदि हो चुकी हूँ, तो जाहिर है की कुछ तो कमी महसूस होगी। पर खैर अगर मैं तुमसे माँ ही बन गयी तो मेरा मकसद पूरा हो जाएगा।"

मैंने जिद करते हुए पूछा, "खैर मैं मानता हूँ की मैं सेठी साहब के मुकाबले खरा नहीं उतर सकता। पर तुम्हें खुश होने के लिए मेरे जैसे आम आदमी से तुम्हें क्या चाहिए? यह तो बताओ?"

सुषमा ने कुछ झिझक के साथ कहा, "कैसे बताऊँ राजजी? मुझे चुदाई में कुछ नयापन चाहिए। ऐसा कुछ जो आजतक हमने किया ना हो।"

मैंने सर खुजलाते हुए पूछा, "चुदाई में हर तरह का नयापन तो हमने किया। और हम क्या कर सकते थे? कोई काले बड़े ही तगड़े लण्ड से चुदवाना चाहती हो? वह तो तुम्हारे घरमें ही है। और क्या कर सकते हैं? क्या दो मर्दों से चुदवाना है? यह हमने नहीं किया।"

सुषमा मेरी बात सुनकर एकदम खिल उठी और बोली, "क्या यह हो सकता है?"

मैंने कहा, "क्यों नहीं हो सकता? मैं और सेठी साहब तुम्हें चोद सकते हैं।"

सुषमा ने कहा, "बापरे बाप! सेठी साहब खुद तीन मर्दों के बराबर हैं। ऊपर से तुम। जब चार मर्दों से चुदवाना होगा तब सोचूंगी। अभी तो दो मर्द ही ठीक रहेंगे।"

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