साथी हाथ बढ़ाना Ch. 03

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सुषमा की बात सुनकर मेरा माथा ठनक गया। इन औरतों का दिमाग तो भगवान ही जाने उन्होंने कैसा बनाया है। सेठी साहब की चुदाई बहुत ज्यादा तगड़ी लगती है। मेरी चुदाई उतनी तगड़ी नहीं लगी सुषमा को शायद। अब वह शायद सोच रही है दो मर्दों से चुदवाए। अब यह दुसरा मर्द कहाँ से लाऊँ?

खैर, रात क करीब एक बजे मैं सुषमा से इजाजत ले कर अपने घर चला गया।

मुझे पक्का भरोसा था की दो दिन की चुदाई से सुषमा की मेरे वीर्य माँ बनने की प्रमुख जरुरत तो पक्की पूरी होगी। पर अब माँ बनने से भी आगे सुषमा को कुछ नयापन लाना था चुदाई में।

मुझे भरोसा था की मैं जिस किसी मर्द को पसंद कर लूंगा तो शायद सुषमा उससे चुदवा लेगी। सुषमा को मुझे पर इस बात के लिए तो पूरा यकीन था। पर ऐसे वैसे इंसान को ऐसे निजी मामले में कैसे पसंद किया जाए? इंसान भरोसे का होना चाहिए। ऐसा भी ना हो जो बाद में वह आदमी सुषमा को चुदाई के लिए या फिर पैसों के लिए परेशान करता रहे। उसे ब्लैक मेल करे।

आखिर में सुषमा से अलग होते हुए मैंने सुषमा को जब पूछा, "क्या तुम्हें सिर्फ नयापन ही चाहिए या मैं रात को आऊं?"

तब सुषमा ने नाराज होते हुए कहा, "अरे नयापन की बात तो मैंने वैसे ही कह दी थी। सेठी साहब और टीना ने हमें तीन दिन दिए हैं। तीन दिन तो हम मिल कर तगड़ी चुदाई करेंगे यह तो पक्की बात है। इसमें नयेपन की बात कहाँ से आयी? कहीं तुम मुझसे बोर तो नहीं हो गए?"

मैंने कुछ रक्षात्मक ढंग में कहा, "नहीं यह बात नहीं। मुझे लगा तुम नयेपन पर कुछ ज्यादा ही जोर दे रही थी।"

सुषमा ने मेरे गाल पर हलकी सी टपली मार कर कहा, "अरे नहीं, मेरे भोले राजा। शामको आ जाना मैं तुम्हारा इंतजार करुँगी।"

सुषमा की यह बात सुनकर मैंने राहत की साँस ली। दो मर्दों से चुदवाना सुषमा के लिए भी मुश्किल होगा और किसी और अनजान पराये मर्द के सामने अपने आप को नंगा करना मेरे लिए भी अजीब होगा। आखिर समाज में मेरा अपना भी एक स्टेटस था। सुषमा और मेरे पास बस एक ही शाम तो बची थी। अगले दिन टीना और सेठी साहब वापस आ जायेंगे। एक शाम तो हम चुदाई में निकाल देंगे। फिर देखते हैं क्या कुछ हो सकता है।

हालांकि मैं ऑफिस में काफी काम में उलझा हुआ था पर बार बार मेरे मन में सुषमा की वह नएपन की बात जाती नहीं थी। खैर जैसे तैसे मैंने वह दिन निकाला और शाम को मैं पहले अपने घर जाकर जो कुछ काम घरमें करना था किया और फ्रेश हो कर मैं सुषमा के घर पहुंचा। मैंने दरवाजे की घंटी बजायी। जब दरवाजा खुला तो मुझे लगा जैसे मेरे पाँव के निचे से जमीन खिसकने लगी थी। मेरी आँखें शायद ठीक से देख नहीं पा रहीं थीं। क्यूंकि मेरे सामने मेरे साले साहब खड़े थे। मुझे यह समझ में नहीं आया की साले साहब कब आये और सुषमा के घर कैसे पहुंचे? कुछ झिझकती हुई आवाज में मैंने पूछा, "साले साहब, आप यहां? आप तो कहीं टूर पर गए थे ना?"

तब साले साहब ने मुझे कहा, "जी हाँ, मैं अलवर टूर पर गया था। मेरा तीन दिन का काम था। पर दो ही दिन में खतम हो गया। मैं वापस जा ही रहा था की उसी समय मुझे अंजू का फ़ोन आया और उसने मुझे सेठी साहब और टीना के बारे में और आप और सुषमाजी के बारे में काफी विस्तार से बताया। मुझे सारे समाचार सुन कर बड़ी ख़ुशी हुई। अंजू ने मुझे कहा की बेहतर होगा की मैं दिल्ली आपके पास पहुंचूं। सुषमाजी से तो मेरी बात होती ही रहती है। टीना कल आ जायेगी तो मैं उससे भी कल मिल लूंगा। जब मैं यहां यहां पहुंचा तो आप का घर बंद पाया। मैंने फिर सुषमा जी के घर का दरवाजा खटखटाया। सुबह से मैं यहीं हूँ। मैंने सोचा की आपको फ़ोन करूँ। पर सुषमा जी ने मना किया। उन्होंने कहा की शामको आपको सरप्राइज देंगे।"

मेरे साले साहब सरकारी दफ्तर में अच्छी खासी पोजीशन पर थे। दिखने में बड़े ही हैंडसम वह काफी फिट थे। वह हमारे घर जब भी आते थे सेठी साहब को मिलने जरूर जाया करते थे। सेठी साहब के घरमें सुषमा जी से तो उनकी मुलाक़ात हुआ ही करती थी। जो भला सुषमाजी को एक बार मिल जाए उनको कैसे नजरअंदाज कर सकता है? साले साहब भी सुषमाजी से बड़े ही प्रभावित थे और वापस जाने पर भी फ़ोन से उनके संपर्क में रहते थे। हालांकि मामूली छेड़छाड़ और कभी कभी एक दूसरे की टांग खींचने को छोड़ उनकी बातचीत ज्यादातर औपचारिकता की सीमा में ही होती थी। एक दूसरे की सकुशलता और जन्म दिवस पर बधाई इत्यादि तक सिमित रहती थी।

वाकई में साले साहब का आना मेरे लिए एक सरप्राइज़ नहीं शॉक था। आश्चर्य नहीं एक झटका था जिसे मैं झेल ने की कोशिश कर रहा था। मेरे चेहरे के भाव देख कर साले साहब बोल पड़े, "लगता है जीजूजी मेरे आने से ज्यादा खुश नहीं लग रहे। जिजुजी अगर आपको मेरा आना ठीक नहीं लगा तो मैं वापस चला जाता हूँ।"

उतनी ही देर में सुषमा पीछे से दिखाई दीं। सुषमा ने मेरा बचाव करते हुए कहा, "संजू जी (मेरे साले साहब का नाम संजय था उसे प्यार से सब संजू कह कर बुलाते थे) राजजी आपके आने से बड़े ही खुश हैं। साले साहब के आने से कोई नाखुश हो सकता है भला? दरअसल राजजी हमारे सरप्राइज को हजम करने की कोशिश कर रहे हैं।"

सुषमा फिर आ कर ड्राइंग रूम में सोफे पर बैठी और मुझे और साले साहब को अपने दोनों तरफ बैठने को कहा। सुषमा के दायीं तरफ मैं और बांयी तरफ साले साहब बैठे। सुषमा ने जब कहा की "हमारा सरप्राइज" तब मैं समझ गया की सुषमा को साले साहब के आने से कोई ख़ास शिकायत नहीं थी। यह मेरे लिए बड़े ही आश्चर्य की बात थी। आजकी रात हमारी आखरी और चरम रात थी। और अब यह तय था की साले साहब हमारे रंग में भंग जरूर करेंगे। खैर जैसा भी हो मुझे अब इस बारे में कुछ भी नकारात्मक प्रक्रिया देना कोई फायदेमंद नहीं लगा। मैं चुपचाप रहा और सुषमा क्या कहेगी यह सुनने के लिए अपने आप को तैयार करने लगा। सुषमा ने मेरी और और संजू की और बारी बारी से देखते हुए जो बातें कहीं वह मेरे लिए आजतक एक अँधेरे में दिप जलाने के बराबर थीं।

सुषमा ने कहा, "राजजी, आप संजयजी के आने का ओछा मत लिजीयेगा। आज पुरे दिन मैंने और संजयजी ने बैठ कर उनके जीवन का वह अजीबोगरीब पन्ना खोला और समझा है जिसे सुन कर आपभी करुणा, उत्साह और उत्तेजना से अभिभूत हो जाएंगे। विधाता हमारी जिंदगी में कैसे कैसे मोड़ लाती है और हम इंसान उन मोड़ों और घुमावों को किस नजरिये से देखते हैं और उन्हें कैसे पार करते हैं उससे यह तय होता है की हम जिंदगी में खुश रहेंगे या फिर जिंदगी से शिकायत ही करते रहेंगे। संजयजी ने वह मोड़ और घुमाव पार किये हैं और आज उनका आना इस लिए है की जब मैं और सेठी साहब इस अजीबोगरीब मोड़ पर खड़े थे तब संजयजी ही थे जिन्होंने हमें अपने ही अनुभव से मार्गदर्शन दिया और अँधेरे में एक दिप जलाकर आगे का रास्ता दिखाया।"

सुषमा की बात मेरे लिए कोई पहेली से कम नहीं थी। मैं सुषमा से कुछ पूछने ने के बजाय सुषमा की और जिज्ञासापूर्ण नजरों से आगे बोल कर बात को समझाने के इंतजार में चुप रहा।

सुषमा ने कहा, "जब हम बच्चे के बारे में बड़ी ही जद्दोजहद में उलझे हुए थे उसी अर्से में एक दिन मुझे संजयजी का फ़ोन आया। बातों बातों में संजयजी ने ताड़ लिया की मैं कुछ चिंतित थी। उनके बार बार पूछने पर भी जब मैं टालती रही तब उन्होंने मुझे सीधा पूछ लिया की क्या बात आपको बच्चा नहीं हो रहा उसको ले कर तो नहीं है? जब मैं उनकी बात का प्रत्युत्तर नहीं दे पायी तब वह समझ गए की वही बात थी। उन्होंने मुझे साफ़ साफ़ अपनी समस्या बिना छिपाए बता ने के लिए कहा। उन्होंने बिना कोई लागलपेट के कहा की उनके जीवन में भी बिलकुल ऐसा ही मोड़ आया था और फिर उन्होंने मुझे बताया की उसे उन्होंने कैसे सुलझाया। मतलब, पहले उन्होंने अपनी लम्बी कहानी कही जिसमें उन्होंने अपनी ही यह समस्या कैसे सुलझायी वह बताया। जब मैंने संजयजी को अपनी समस्या के बारे में बताया तब वह सोच में पड़ गए। उसके बाद उन्होंने कहा की वह सोच कर मुझे बताएँगे की उनका इस मामले में क्या सोचना है।"

अब मेरी जिज्ञासा हद के बाहर हो रही थी। मुझसे सुषमा से पूछे बिना रहा नहीं गया, "फिर उन्होंने क्या बताया?"

सुषमा ने कहा, "उन्होंने वही बताया जो हमने अमल किया है। आप और टीना के साथ मेरे और सेठी साहब के कितने अच्छे नजदीकी सम्बन्ध हैं वह तो संजयजी जानते ही थे। उन्होंने मुझसे पूछा की अगर हम दोनों कपल के एक दूसरे की पति अथवा पत्नि के साथ सेक्सुअल सम्बन्ध हों तो इससे क्या किसीको कोई तकलीफ होगी? तब मैं उनकी बात सुनकर चौंक गयी। मेरा माथा ठनक गया। यह संजयजी क्या बात कर रहे थे? मेरी समझ में नहीं आ रहा था। पहले तो मैं उनकी बात सुनकर काफी नाराज हुई की ऐसी उलटपुलट बात संजयजी क्यों कह रहे थे? पर फिर उनकी बातों में गंभीरता देखते हुए उसके बारे में सोचने लगी।"

सुषमा ने फिर मेरी और मुड़ कर मुझे देखा और बोली, "यह तब की बात है जब सेठी साहब टीना को हंसी मजाक में छेड़ते रहते थे पर तुम वहाँ होने के बावजूद भी उसे बुरा नहीं मानते थे। मैंने सोचा की शायद कहीं ना कहीं तुम सेठी साहब को टीना को और छेड़ने के लिए प्रोत्साहन दे रहे थे। तुम उसी समय मुझ पर लाइन मार रहे थे यह तो हम दोनों जानते ही हैं। मैंने एक और एक दो किये और मैं समझ गयी की तुम टीना को सेठी साहब के करीब जाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हो ताकि सेठी साहब तुम्हें मेरे करीब आने से ना रोकें। मेरे दिमाग में यह आया की अगर ऐसा कुछ है तो जो संजयजी कह रहे थे वह हो सकता था। मैंने संजयजी को कहा की इस बारे में हमने सोचा नहीं है। मैं तो सेठी साहब के टीना से सेक्सुअल सम्बन्ध को स्वीकार कर सकती हूँ। सेठी साहब भी शायद मेरे और राज के सेक्सुअल सम्बन्ध स्वीकार कर सकते हैं। पर यह बात हम दोनों को आपस में बैठ कर करनी पड़ेगी।"

मैं हैरान रह गया की मेरे पीछे इतनी बड़ी योजना बन रही थी और मैं उसमें सिर्फ एक मोहरा बन कर अपना रोल निभा रहा था। खैर मेरी जिज्ञासा मेरी इस शिकायत से ज्यादा मजबूत थी। मैंने सुषमा से ऐसे कहा जैसे एक बच्चा माँ से बड़ी ही रसीली कहानी सुन कर पूछता है। मैंने पूछा, "फिर क्या हुआ?"

सुषमा से अपनी मुस्कान छिपाई नहीं गयी। सुषमा ने मंद मुस्कान के साथ अपनी बात जारी रखते हुए कहा, "उसी समय टीना मेरे पास आयी सेठी साहब की शिकायत ले कर। उसी समय आपने सेठी साहब को बिना कपडे पहने हुए देखा और उसके बारे में आपने टीना से भी बात की।"

साले साहब ने बिच में दखल देते हुए सुषमा से कहा, "सुषमाजी अब हम आपस में एक हो गए हैं। हमें अब एक दूसरे से कुछ भी छिपाना नहीं है। हमें एक दूसरे से साफ़ साफ़ बात करनी चाहिए। अब आप को जो भी कहना है खुल कर कहिये। यह बिना कपडे की बजाय नंगे देखा यह कहोगे तो बेहतर रहेगा। और सेठी साहब का तगड़ा लण्ड देख कर उसके बारे में जीजू ने टीना दी से बात की यह बोलिये प्लीज।"

सुषमा ने मेरी तरफ देखा और साले साहब से कहा, "हाँ जरूर मैं साफ़ साफ़ बात करुँगी, अगर आप मुझे सुषमाजी कह कर ना बुलाएं।"

साले साहब ने मेरी और देख कर कहा, "ठीक है।"

सुषमा ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, "हाँ तो मैं कह रही थी की उसी टाइम राज ने सेठी साहब का तगड़ा लण्ड अकस्मात ही देख लिया था और टीना को उसके बारे में बता कर टीना की भी उसे देखने की स्त्री सहज लोलुपता को जागृत कर दिया था। जब टीना ने कहा की मसाज करवाते हुए सेठी साहब का लण्ड टीना के बदन को छू रहा था और मसाज करते हुए सेठी साहब के हाथ टीना के स्तनोँ को छू रहे थे तब टीना को उसकी चूत में बड़ी ही अजीब सी हलचल महसूस हो रही थी तब राज ने टीना को यह कह दिया की अगर मसाज करते हुए सेठी साहब कोई सेक्सुअल हरकत करते हैं तो वह उन्हें ना रोके। बल्कि अगर सेठी साहब टीना को चोदना भी चाहें तो टीना अगर उनसे चुदवा भी लेती है तो राज को कोई आपत्ति नहीं होगी बल्कि ख़ुशी होगी। टीना के लिए तो यह बात आग में घी डालने जैसी थी। यह सब बातें टीना ने मुझे बतायीं।"

जब टीना ने मुझे वह सारी बातें बतायीं तब मैंने भी टीना को कहा की अगर टीना सेठी साहब से चुदवा भी लेती है तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है। बल्कि मैंने भी टीना को सेठी साहब से चुदवाने के लिए उकसाया। सेठी साहब का लण्ड कैसा तगड़ा है वह तो तुमने टीना को बता ही दिया था मैंने उसकी आग में यह कह कर घी डाला की सेठी साहब ऐसी तगड़ी चुदाई करते हैं की उसके बाद मेरा हाल ऐसा हो जाता है और मेरी चूत ऐसी सूज जाती है की मैं एक दो दिनों तक चुदवाने के और चलने के काबिल भी नहीं रहती। मैंने टीना से यह भी कह डाला की एक बार जिस औरत ने सेठी साहब से चुदवा लिया तो फिर उस औरत को किसी और से चुदवाने में मजा ही नहीं आता। पहले तो टीना मेरी बात को सुन कर दंग रह गयी। मैंने टीना को मेरी बच्चे को लेकर समस्या को विस्तार से बताया। जब संजू ने मुझे हम दो कपल के बिच में सेक्सुअल संबंधो के बारे में सुझाव दिए तब मुझे लगा की जिस तरह हमारे सम्बन्ध विकसित हो रहे थे तो यह मुमकिन था। टीना से मैंने सारी बातें खुल कर की। मैंने कुछ भी नहीं छिपाया। टीना ने मेरी बात को बड़ी ही सकारात्मक रूप में लिया। इसके बाद तुमने टीना को सेठी साहब से चुदवाने के लिए काफी उकसाया। शायद उसी समय में टीना सेठी साहब से चुदाई करवाने के लिए मानसिक रूप से तैयार हो गयी। मैंने जब उसे मेरी समस्या की याद दिलाई तब उसने मुझे वचन दिया की अगर उसे सेठी साहब से बच्चा हुआ और अगर मुझे राज से बच्चा ना हुआ तो वह अपना बच्चा मुझे गोद में दे देगी।"

"आज मैं जब टीना के उस वचन को याद करती हूँ तो मेरी आँखें नम हो जाती हैं। टीना अपने कहे को निभाएगी उस पर मेरा पूरा विश्वास है क्यूंकि उसका सेठी साहब से चुदवाने का मुख्य कारण भी यही है की उसे सेठी साहब से बच्चा हो जिसे वह जनम दे कर मुझे दे सके।" यह कहते हुए सुषमा का गला भर आया। सुषमा की आँखों में पानी छलकने लगा। सुषमा ने संजू से लिपट कर कहा, "यह सब तुम्हारे कहने से हुआ की हम आज एक दूसरे से चुदाई करके इतने खुश हैं। सेठी साहब और टीना की चुदाई भी इन्हीं के सुझाव से प्रेरित है। मुझे या टीना को या हम दोनों को अगर बच्चा होगा तो यह संजू के सुझाव के कारण ही होगा। मैं संजू का जितना भी एहसान मानु कम है।"

सुषमा की बात सुन कर हम तीनों की आँखें नम हो गयीं। सुषमा को बच्चे की ललक कितनी तगड़ी थी वह मैं जानता था। साले साहब के कारण ही आज हम आगे चल कर बच्चों को पा सकेंगे यह सोच कर मेर मन में भी साले साहब के लिए जो कड़वाहट थी उसकी जगह एक अजीब से अपनेपन ने ले ली। अब मेरे साले साहब सिर्फ मेरे लिए ही नहीं हम दोनों के लिए बल्कि अगर टीना और सेठी साहब को भी शामिल करें तो हम चारों के लिए एक आशीर्वाद के समान थे।

मैं साले साहब को धन्यवाद देने की बात सोच रहा था पर सुषमा ने मुझे रोकते हुए कहा, "राज, अभी मेरी बात पूरी नहीं हुई है। आज जब संजू मेरे घर आये तो मेर मन में जो तुमने एम.एम.ऍफ़. की बात डाली थी वह उजागर हो गयी। पर मेरी उलझन यह थी की मैं सिर्फ तुम्हारे वीर्य से ही अपना बच्चा चाहती थी। और किसी के वीर्य से नहीं। संजू मेरा बहुत अच्छा दोस्त है पर मैं उसके वीर्य को भी शामिल नहीं करना चाहती थी। आज वह प्रश्न भी संजू ने हल कर दिया। संजू ने मुझे कहा की उसके वीर्य में बच्चे पैदा करने वाले शुक्राणु है ही नहीं। इसी के कारण तो उनको सारे हथकंडे अपनाने पड़े। उन्होंने वह हथकंडे अपनाये जिसको वह जिंदगी के मोड़ और घुमाव कह रहे हैं।"

सुषमा की बात सुन कर मैंने सुषमा से पूछा, "तो फिर आज रात संजू क्या करेंगे?"

सुषमा ने कहा, "क्या करेंगे मतलब? संजू वह सब करेंगे जो तुम करोगे। मतलब वह मुझे चोदेंगे। संजू कहते हैं बच्चे पैदा नहीं कर सकते इसका मतलब यह नहीं है की वह किसी औरत को संतुष्टि नहीं दे सकते।"

मैंने पूछा, "क्या मतलब? ऐसा कभी होता है क्या?"

मेरे यह सवाल पूछते ही सुषमा ने संजू को इशारा किया। संजू ने फ़ौरन अपना पजामा उतारा और निक्कर हटा कर उसके लण्ड को हमारे सामने प्रस्तुत किया। संजू का लण्ड देखते ही मेरी बोलती बंद हो गयी। संजू का लण्ड मेरे लण्ड से लंबा और मोटा था.उसके लण्ड पर उसका वीर्य उसकी धमनियों में दौड़ रहा था। सारी चुदाई की बातें सुन कर उसका लण्ड लोहे की छड़ के जैसे सख्त हो गया था। सुषमा ने संजू के लण्ड को अपने हाथ की हथेली में लिया और उसे सहलाते हुए बोली, "हो गयी संतुष्टि? संजू का लण्ड काटने पर जहर भले ही उगलता ना हो (मतलब बच्चा भले ही पैदा कर पाता ना हो) पर काटने में किसी से भी कम नहीं (मतलब चोदने में ज़रा भी कम नहीं)।"

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मैंने सुषमा से जब यह सुना तब मेरी सारी चिंता गायब हो गयी। साले साहब के रूप में हमें एक बड़ा ही संजीदा अपना चुदाई का साथीदार मिल गया था जिस पर हम ना सिर्फ भरोसा कर सकते थे बल्कि जो आगे चलकर हमारे सुखदुख में भी भागीदार बन सकता था। एक बात और साबित हो गयी। सुषमा जी के लिए संजू मतलब मेरे साले साहब एक सच्चे साथी और चुदाई के पार्टनर के अलावा ज्यादा कुछ नहीं थे। मेरा और सुषमा का जो आत्मा का मिलन हुआ था उसमें उनका कोई रोल नहीं था। यह मेरे लिए एक अच्छी बात थी क्यूंकि हालांकि सुषमा सेठी साहब की पत्नी थी और टीना से मेरी शादी हुई थी, पर फिर भी मैं कहीं ना कहीं सुषमा को दिलसे चाहने लगा था। इसका एक कारण शायद यह भी था की सुषमा बार बार यह कहने से न चुकती थी की वह सिर्फ मुझसे बच्चा चाहती थी किसी और से नहीं।

अब मुझे साले साहब के साथ मिलकर सुषमा की चुदाई करने में कोई परहेज नहीं था। मुझे यकीन हो गया की अब सुषमा की जम कर चुदाई होगी और सुषमा भी एम.एम.एफ. का आनंद ले पाएगी। सेक्स, मैथुन या चुदाई का मजा तब तक नहीं आता जब तक उसमें महिला और पुरुष दोनों एक दूसरे को सुख देने का प्रयास ना करें। स्त्री और पुरुष में विजातीय प्यार होना यह ऊपर वाले की देन है। बड़े बड़े ऋषि मुनि भी इस कुदरती स्वभाव पर नियंत्रण करने में नाकाम रहे हैं। चुदाई दीर्घ कालीन हो या अथवा तात्कालीन हो, चुदाई हमेशा शारीरिक आकर्षण भरे प्यार की स्वर्णिम मिसाल है। चुदाई शारीरिक प्यार का एक अप्रतिम नमूना है। दीर्घ कालीन से मेरा मतलब है जो लम्बे समय का है। जैसे पति पत्नी का प्यार। तत्कालीन शारीरिक आकर्षण भरा प्यार से मेरा मतलब है जो हमेशा के लिए ना भी हो। जो तात्कालीन मतलब कुछ ही समय की; कुछ ही दिनों या घंटों की पहचान और पसंदगी होने पर भी चुदाई आनंद दायी हो सकती है। आकर्षण में स्त्री की सुंदरता, आकार, या सेक्सीपना और पुरुष की आकर्षकता मतलब लम्बाई, बॉडी, लण्ड बातचीत करने का लहजा इत्यादि कारण हो सकते हैं। दोनों ही अवस्था में चुदाई तभी आनंददायी होती है जब कोशिश दूसरे को आनंद देने की हो।

मैं और साले साहब दोनों ही चाहते थे की चुदाई के दरम्यान सुषमा को जितना ज्यादा आनंद दे सकें उतना देने की कोशिश करें। वैसे ही सुषमा की भी मनोइच्छा यही होगी की चुदाई के दरम्यान वह हम दोनों को जितना ज्यादा आनंद दे सके उतना ज्यादा आनंद देने की कोशिश करे। जब ऐसा समीकरण हो तो चुदाई का आनंद तो बढ़िया होगा ही।

साले साहब भी हमारे सर्किल में शामिल हो चुके थे। यह मुझे भी यकीन हो चुका था की साले साहब के साथ सुषमा से चुदाई में हमें कोई झिझक या किसी तरह की अजीबोगरीब फीलिंग नहीं होगी जो की साधारणतः किसी भी रिश्तेदार के ऐसे गोपनीय कामों में शामिल होने से होती है। मुझे यहां सुषमा की समझ की दाद देनी होगी की सुषमा ने साले साहब को एम.एम.एफ़. के लिए पसंद किया हालांकि मैं शायद साले साहब को इस तरह ऐसे काम के लिए पसंद करने में झिझकता। मुझे अब उसमें कोई आपत्ति नहीं थी।

मैंने उस शाम पहली बार साले साहब से सच्चे प्यार भरे दिल से हाथ मिलाया। बिन बोले मैं साले साहब की आँखों में आँखें मिला कर बड़ा ही निजीपन का एहसास कर रहा था। साले साहब की आँखों में भी मेरे लिए वह प्यार की झलक थी जो साधारणतः औपचारिक रिश्तों में नहीं होती। पहले जब भी मैं साले साहब को मिलता था तब वही औपचारिकता और ऊपरी प्रेम का ही प्रदर्शन करता था। पर आज मैं साले साहब की आँखों में आँखें डालकर जैसे कह रहा था, "साले साहब, आज हम अपनी जीजा साले की रिश्तेदारी छोड़ कर अंत्यंत निजी दोस्त या यूँ कहिये की अंतरंग भागीदार बन गए हैं। कभी साले जीजा ने एक दूसरे को अपना लण्ड दिखाया होगा? पर आज वह हम दिखाएँगे। कभी साले जीजा ने मिलकर किसी औरत को चोदा होगा? पर आज हम सुषमा को चोदने वाले थे। तो आज हम हमारी प्यारी सुषमा को मिल कर चोदेंगे और हम सुषमा की ऐसी चुदाई करेंगे की वह इससे पहले हुई उसकी सारी चुदाई भूल जाए। हम दोनों मिलकर उसे ऐसा चोदें की वह कुछ समय के लिए ही सही, पर सुषमा अपने तगड़े लण्ड वाले पति सेठी साहब की चुदाई को भी भूल जाए।"

मेरी आँखों का इशारा शायद साले साहब समझ गए थे। अपना सर हिला कर जैसे मेरे इशारे का समर्थन करते हुए साले साहब ने सुषमा को बड़े ही प्यार से पलभर में जैसे सुषमा कोई हल्काफुल्का बच्चा हो, अपनी बाँहों में उठा लिया और मुझे इशारा किया की मैं आगे आ कर सुषमा के होंठों को चूमूँ। सुषमा ने आजकल जो फैशन चला है ऐसी स्टोन वाश जीन्स की फटी पतलून पहन रखी थी और ऊपर हल्का सा कॉटन का टॉप डाल रखा था जो सुषमा के स्तनोँ के ऊपर से उनको ढक ही रखता था। पर उसमें सुषमा स्तनोँ का क्लीवेज काफी हद तक दिख रहा था। सुषमा ने साले साहब और मेरी और मुस्कुराते हुए देखा और बड़े ही हलके और मीठे स्वर में बोली, "मुझे पता नहीं था की मेरी दो मर्दों से चुदने की ख्वाहिश इतनी जल्दी और इतनी बढ़िया तरीके से पूरी हो जायेगी। अगर मेरे पति वहाँ आप दोनों की पत्नियों को चोद रहे हैं तो मैं भी कोई कम नहीं हूँ। मैं भी यहां उन दोनों पत्नियों के पति से आज चुदवाउंगी।"

फिर सुषमा ने साले साहब की और देख कर पूछा, "संजु मैं अगर आपसे एक बात पूछूं तो तुम कहीं बुरा तो नहीं मान जाओगे?"

साले साहब ने अपना सर हिला कर कहा, "नहीं। बिलकुल बुरा नहीं मानूंगा। पूछो।"

सुषमा ने साले साहब की और देख कर जो पूछा उसे सुन कर मैं स्तब्ध हो गया। सुषमा ने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया। मुझसे एक बच्चे की तरह सुषमा लिपट गयी। उसकी आँखों में वही बच्चे वाली सरलता और भोलापन नजर आ रहा था। मेरे हाथों को चूमते हुए सुषमा ने साले साहब से पूछा, "संजू, देखो यह तुम्हारे जिजु, मेरी जान हैं। मेरे पति के अलावा मैं इनसे सच्चे दिल से दिलोजान से प्यार करती हूँ। आज तुम्हारे जीजू ने तुम्हें मुझे चोदने की परमिशन दे दी है। तुम यह समझना की यह बहुत बड़ी बात है। किसी भी मर्द के लिए उसकी माशूका को किसी और से चुदवाना सहज नहीं होता। और तुम तो उनके साले, उनकी बीबी के सगे भाई हो। तुम को तो वह मुझे चोदने की इजाजत हरगिज़ नहीं देते। इस मामले में अगर वह ज़रा भी नाराजगी जताते या उनके मन में थोड़ी सी भी रंजिश होती तो मैं तुम्हें मुझे हाथ भी लगाने नहीं देती। सबसे पहले तो तुम उनका उसके लिए शुक्रिया अदा करो। फिर तुम मुझसे आज इसी वक्त यह वादा करो की जब भी मौक़ा मिलेगा, तुम जीजू से तुम्हारी पत्नी अंजू को चुदवाओगे।"

सुषमा की यह बात सुनकर मैं सकपकाया सा सुषमा की और देखता ही रहा। यह कैसी औरत है? वह मुझसे प्यार करते हुए भी मुझे दूसरी औरत को चोदने के लिए अपनी और से इंतजाम कर रही है। सुषमा की बात सुन कर साले साहब के चेहरे पर मैंने हलकी सी मुस्कुराहट की छाया देखि। शायद इस बात को ले कर उन्होंने पहले से ही कुछ सोच रखा होगा ऐसा मुझे लगा।

उन्होंने सुषमा की और मुस्कुराते हुए देख कर कहा, "सुषमा, अब मेरे जीजू से मेरा सम्बन्ध सिर्फ साले जिजु का ही नहीं। अब वह मेरे और अंजू के हमदम हो गए हैं। इस वक्त अंजू भले ही हम से दूर है, पर मैं मेरी अंजू को भली भाँती जानता हूँ। उसका दिल हमारे पास है। वह मुझसे अपने मन की हर बात बताती है। जब हमने तय किया की अंजू सेठी साहब से चुदवायेगी, तब हमारा वह निर्णय सिर्फ चुदवाने के लिए ही नहीं था। वह निर्णय मेरे और अंजू के आप सब से संवेदना पूर्ण सम्बन्ध बाँधने और जुड़ने के हेतु भी था। अंजू ने मुझे बताया भी की टीना और सेठी साहब ने मेरी अंजू को पहले मिलन में ही अपना लिया है। अंजू मेरी पत्नी मात्र नहीं है। वह मेरी अंतरंग मित्र और जीवन साथी है। इसी लिए हम दोनों एक दूसरे के आनंदित होने पर स्वयं बहुत आनंद पाते हैं। अंजू ने सेठी साहब से बड़े प्यार और बड़े जोश खरोश के साथ चुदवाया यह जान कर मुझे जो आनंद का अनुभव हुआ, उसे मैं कह नहीं सकता। वैसे ही जब मैं अंजू से कहूंगा की मैंने सुषमा को बड़े प्यार से चोदा है, तो उसकी ख़ुशी की कोई सीमा नहीं रहेगी। मैं समझता हूँ यह मेरे जीवन की उपलब्धि है और मैं बड़ा ही खुशनसीब हूँ की मुझे अंजू जैसी जीवनसाथी मिली। अब मैं, अंजू, सेठी साहब, जीजू और टीना सब तुम्हारे साथ एक अनूठे रिश्ते से जुड़ चुके हैं। इसमें दिक्कत सिर्फ टीना और मेरी है। टीना और मेरे बिच में खून का रिश्ता है। हम रिश्ते में सगे भाई बहन हैं। मैं इस रिश्ते को साफ़ रखना चाहता हूँ। इस लिए हम एक दूसरे से सेक्स नहीं करेंगे, पर एक दूसरे के लिए सेक्स का पूरा सपोर्ट करेंगे। हम एक दूसरे की चुदाई भी देख सकते हैं। मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है टीना कभी भी किसी से भी चुदवाये। और मुझे कोई आपत्ति नहीं है अगर अंजू भी जीजू से या सेठी साहब से जब चाहे, जितनी बार चाहे चुदवाये।"