साथी हाथ बढ़ाना Ch. 03

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साले साहब ने सुषमा को अपनी बाँहों में वहीँ खड़े रह कर उठाये रखा ताकि मैं सुषमा के होँठों को प्यार से चुम सकूँ। मैंने सुषमा का सिर अपने हाथों में पकड़ कर मेरे होँठ सुषमा के होँठों पर चिपका दिए और एक प्रगाढ़ चुम्बन करते हुए मैंने सुषमा के मुंहमें अपनी जीभ दे दी जिसे वह चूसे। सुषमा ने मेरी जीभ को चूसना शुरू किया और मेरे मुंह में से निकल रही सारी लार पिने लगी। साथ साथ में सुषमा मेरी जीभ को चाटती रही। मैंने मेरी जीभ सुषमा के मुँह में से अंदर बाहर करते हुए जैसे मैं सुषमा का मुंह चोद रहा हूँ ऐसा किया जिसे सुषमा एक बच्ची की तरह खिलखिलाती हंसती हुई अपने मुंह को मेरी जीभ से चुदवाती रही।

कुछ देर बाद जब मैंने अपना मुँह सुषमा के मुंह से हटाया तो सुषमा के मुंह पर उसके होँठों पर लाल निशान पड़ गए थे। सुषमा उन्हें देख नहीं सकती थी पर साले साहब ने उसे देख कर मुझे एक मुस्कान दे कर वाहवाही दी। साले साहब ने फिर सुषमा को बैडरूम में ले जाकर हलके से पलंग पर लिटा दिया। सुषमा के एक तरफ मैं लेट गया और दूसरी तरफ साले साहब। जैसे ही सुषमा को साले साहब ने पलंग पर लिटाया की सुषमा ने अपनी बाँहें फैला कर मुझे अपने ऊपर सवार हो कर अपनी बाँहों में लेने का इशारा किया। मैंने सुषमा की टाँगे चौड़ी कर सुषमा के ऊपर सवार हो कर सुषमा के होंठों से अपने होँठ चिपका कर दुबारा सुषमा को प्रगाढ़ चुम्बन करने में व्यस्त हो गया। मेरे पाजामें में मेरा खड़ा लण्ड सुषमा की टांगों के बिच उसकी पतलून में छिपी उसकी चूत पर निशाना लगाए हुए था। मुझे सुषमा के होंठों का रस बड़ा ही स्वादिष्ट लग रहा था।

सुषमा ने मेरे कान में मुंह लगा कर कहा, "राज, तुम तुम्हारे साले साहब के आने से नाराज तो नहीं ना?"

मैंने कहा, "नहीं सुषमा, तुम्हारी यह इच्छा थी तुम दो मर्दों से चुदाई को एन्जॉय करो। तो आज ऊपर वाले ने यह मौक़ा भी दे दिया। भला इसके लिए साले साहब से बढ़िया कौन मिल सकता था? मैं तुम्हारी पसंद की दाद देता हूँ। मैं शुरू में थोड़ा चिंतित था क्यूंकि वह मेरे रिश्ते में हैं।"

शायद सुषमा मेरे जवाब से कुछ हद तक सतुष्ट दिखी। सुषमा ने कहा, "यह शेर तुमने शायद सूना नहीं। सुनो:

जब हवस दिमाग पे हावी हो रिश्तों का जोर नहीं होता,

बस लण्ड और चूत ही होती है, बाकी कुछ और नहीं होता।

लण्ड तगड़ा हो चूत हो राजी दिन रात चुदाई होती है,

चूत सूज जाए चलते ना बने उस पर कोई गौर नहीं होता।

जनाब जब चुदाई का हवस दिमाग पर हावी होता है तो रिश्ते पीछे रह जाते हैं। वैसे भी साले साहब से तुम्हारा कोई खून का रिश्ता तो है नहीं। तो इतनी चिंता मत करो। मैंने भी यही सब सोच कर साले साहब को पसंद किया था।"

मैंने कहा, "सुषमा, तुम्हारे ही शेर की आखिरी लाइन तुमको याद दिलाता हूँ। चूत सूज जाए, चलते ना बने इस पर कोई गौर नहीं होता। अगर तुम्हारा वही हाल हुआ जो सेठी साहब करते हैं तो तुम शिकायत मत करना।"

सुषमा शरारत भरी हंसी दे कर बोली, "कर देना मेरा वही हाल। मैं भी देखूं की मेरे दो मर्दों में कितना दम है। मैं फिर मेरे पति को कह तो सकती हूँ ना की देखो तुम्हारी बीबी का दो मर्दों ने मिल कर चोद चोद कर क्या हाल कर दिया है। पर राज एकबात कहूं? मेरी तगड़ी चुदाई तो सेठी साहब करते ही रहते हैं। उनसे हलकी फुलकी चुदाई नहीं होती। मेरी तगड़ी चुदाई तो तुम करना ही, पर मुझे सच्चा एम.एम.एफ. का आनंद देने के लिए क्या करोगे? मुझे इतने बढ़िया प्यार करने वाले साथीदार मिले हैं तो क्यों ना हम आज वास्तव में जिसे एम.एम.एफ. कहते हैं वह एन्जॉय करें?"

मैं कुछ देर सुषमा की तरफ देखता ही रहा। मेरी समझ में नहीं आ रहा था की सुषमा क्या कह रही थी। मैंने कुछ आश्चर्य से सुषमा की और देखा और पूछा, "वास्तव में एम.एम.एफ. से तुम्हारा क्या मतलब है? कहीं तुम वही तो नहीं सोच रही हो जो मैं सोच रहा हूँ?"

सुषमा ने मेरी और शरारत भरी नज़रों से दखा और पूछा, "तुम क्या सोच रहे हो?"

मैंने कहा, "ठीक है, जो मैं सोच रहा हूँ वह हम करेंगे, अगर तुम्हारी वही इच्छा है तो।"

सुषमा ने कहा, "तुम ठीक समझे हो। ओके।"

फिर मेरा और साले साहब का हाथ थाम कर सुषमा बोली, "पर देखो मैं एक बात और कहना चाहती हूँ। मेरे माताजी और पिताजी संगीत के बड़े शौक़ीन थे। वह बड़े ही इमोशनल भी थे। मैंने बचपन से ही देखा था की कई बार संगीत सुनते, बजाते या गाते दोनों बड़े ही भावावेश में आ जाते और उनकी आँखों में से आंसूं बहने लगते। वह दोनों एक दूसरे को गले लगाते हुए संगीत की लय में डूब जाते और मैं अगर साथ में बैठी होती थी तो मुझे अपनी बाँहों में ले कर कहते, संगीत में डूब जाने में जो आनंद है वह अद्भुत है। संगीत, प्रेम और भक्ति यह हमें इस दुनिया से किसी और दुनिया में ले जाते हैं। मेरे पिताजी मेरी माँ से बहुत प्यार करते थे। मैंने बचपन में मेरी माँ को मेरे पिताजी से संगीत सुनते हुए चुदवाते हुए देखा था। शादी से पहले मेरी माताजी को जिन्होंने पहली बार संगीत की शिक्षा दी थी उस शिक्षक से माताजी प्यार करने लगी थी और कुछ ऐसा हुआ की उनके साथ माँ के शारीरिक सम्बन्ध हो गए। शायद शादी से पहले माँ ने कई बार उनसे चुदवाया भी था।"

सुषमा की इस तरह अपनी माँ के बारे में बात सुन कर हम दोनों हतप्रभ रह गए। सुषमा ने हमारी और देखा। वह समझ गयी की हम इस बात को हजम नहीं कर पा रहे थे। सुषमा ने हमें दिलासा देते हुए कहा, "माँ उनसे शादी करना चाहती थी। पर उस शिक्षक की माली हालत और उनका सामजिक स्तर भी हमारे से निचा था इस कारण मेरे नाना और नानी उस शादी के लिए बिलकुल तैयार नहीं थे। माँ की शादी मेरे पिताजी से हो गयी। बाद में पिताजी को माँ से ही सारी बात का पता चला और यह भी पता चला की वह शिक्षक का तबादला संजोग से मेरे पिता के गाँव में ही हुआ था। जब पिताजी को यह सब पता चला तो नाराज होने की बजाय पिताजी ने उस शिक्षक को हमारे घर बुलाया। उस समय मैं छोटी थी पर मैंने उन को देखा है। पिताजी ने उनके साथ अपने रिश्तेदार की तरह सम्बन्ध रखे, उनको बड़े सम्मान पूर्वक हमारे घर बुलाया और माँ को आग्रह कर कहा की माँ उनसे शारीरिक सम्बन्ध तोड़े नहीं बल्कि जारी रखे। पहले माँ ने साफ मना किया पर पिताजी के आग्रह के आगे माँ को झुकना पड़ा। मैंने कई बार उन शिक्षक को प्यार से माँ की चुदाई करते हुए छिप कर देखा था। पिता जी ने मुझसे भी उन शिक्षक से अपने पिता की तरह ही प्यार भरा व्यवहार करने का आग्रह किया था जो मैंने किया भी। अफ़सोस वह शिक्षक का कम उम्र में ही देहांत हो गया।" यह कहते हुए सुषमा की आँखें नम हो गयीं।

मैंने सुषमा को बाँहों में भर लिया और कहा, "सुषमा यह जिंदगी बड़ी ही विचित्र है। जिंदगी कई बार कहानियों से भी ज्यादा रोमांचक और अजीब मोड़ लेती हैं। जीवन में कई अजीबोगरीब मोड़ और घुमाव आते हैं। हमें चाहिए की उन मोड़ों से हम बड़ी ही संवेदनशीलता से और समझदारी से गुजरें और गुजरते हुए हमें या किसी और को किसी तरह की चोट या वेदना ना पहुंचे और कोई हमारे वर्तन के कारण आहत ना हो। हो सके तो हम हमारे और दूसरों के जीवन में मिठास और खुशियां बांटने की कोशिश करें। यही आपके पिताजी ने किया। यह आपके लिए गर्व का विषय है।"

मेरी बात सुन कर सुषमा और भी भावुक हो गयी और बोली, "राजजी, आप सच कह रहे हैं। इसका परिणाम यह हुआ की मेरी माँ की नजर में मेरे पिताजी के लिए इतना सम्मान बढ़ गया की माँ पिताजी को अनहद प्यार करने लगी और दोनों आज भी एक दूसरे के बगैर पल भर रह नहीं सकते। हालांकि मैंने देखा नहीं पर मुझे पूरा यकीन है की पिताजी और उस शिक्षकजी ने मिल कर माँ को कई बार साथ में चोदा होगा। मुझे लगता है मेरे पिताजी ने उस जमाने में भी उन शिक्षकजी से मिल कर माँ की एम.एम.एफ. चुदाई की होगी।"

मैंने गंभीर माहौल को हल्का करने की कोशिश करते हुए मुस्कुराते हुए कहा, "ओह... अच्छा। इसी लिए आज मोहतरमा का एम.एम.एफ. चुदाई करने का मूड हुआ है!"

सुषमा ने मुझे कोहनी से धक्का मारते हुए कहा, "अरे छोडो, अब वह ज़माना गुजर गया। अब मेरी बारी है। मुझे यकीन है की उन्होंने एम.एम.एफ. चुदाई जरूर की होगी क्यूंकि हालांकि मैंने उसे अपनी नज़रों से नहीं देखा पर जल्दी सुबह कई बार शिक्षक अंकल को पिताजी और माँ के बैडरूम से कपडे पहनते हुए निकलते मैंने देखा था जब पिता जी भी उसी बैडरूम में सोये हुए थे। मेरे पिताजी माँ को इतना चाहते थे, और मैं जानती हूँ की वह जब भी मौक़ा मिले माँ को चोदने के लिए इतने पागल रहते थे और उनकी चुदाई करने में हमेशा तैयार रहते थे की अगर शिक्षक अंकल माँ को पिताजी के सामने चोद रहे हों तो मेरे पापा के लिए यह नामुमकिन था की वह भी माँ को चोदे बगैर रह सकें।"

मैंने कभी सोचा नहीं था की कोई हिंदुस्तानी महिला चुदाई के बारे में इस तरह खुल कर बिंदास बात कर सकती है। ख़ास कर सुषमा को तो कतई नहीं। सुषमा मुझसे इतनी बेबाकी से बात करती देख मुझे बहुत अच्छा लगा। अक्सर दो तरह के मर्द होते हैं। एक टाइप के मर्दों को शर्मीली, अपने कपडे उतार ने में हिचकिचाती हुई, चुदवाते हुए भी नजरें नीची रखे, जो चुदवाते हुए कुछ ना बोलें ऐसी औरतें पसंद होतीं हैं। पर दूसरी टाइप के मर्दों को वह औरतें पसंद हैं जो नंगी होकर बड़े प्यार से अपनी चूत चुसवाएं, बेझिझक मर्दों का लण्ड चूसें, मर्दों के साथ खुल्लम खुल्ला लण्ड, चूत, चुदाई ऐसे शब्द बोलें ऐसी औरतें पसंद होतीं हैं जो शर्माती नहीं और सामने चल कर मर्दों को चोदने के लिए उकसातीं हैं।

मुझे दोनों की मिक्स टाइप की औरतें पसंद हैं। ऐसी औरतें जो शर्मीली हैं, पर एक बार शर्म का पर्दा हट जाए फिर एक मर्द दोस्त की तरह खुल्लमखुल्ला बात करे। फिर चुदाई के बारे में बोलने में परहेज ना करे। और जो फिर बड़े प्यार से अपनी चूत चूसवाये लण्ड चूसे, और चुदाई में जो कुछ भी होता है वह खुले दिल से करे और करने दे। सुषमा बिलकुल जैसी मेरी पसंद थी वैसी ही थी। जब तक एक औपचारिक सम्बन्ध होता है तब तक वह बड़ी ही शालीनता, गंभीरता और मर्यादा का परिचय देती है। पर जैसे उसके ऊपर से मर्यादा और लज्जा का पर्दा हट गया फिर वह बेबाक बिंदास चुदासी हो जाती है और बड़े प्यार से चुदवाती भी है और चोदने वाले मर्द को पूरा सपोर्ट करती है।

मैंने सुषमा के होँठों से अपने होंठ हटाते हुए साले साहब की और देखा। साले साहब ने सुषमा के सर को चूमना शुरू किया। उन्होंने मुझे इशारा किया की मैं सुषमा के पाँव से शुरुआत करूँ। सुषमा ने जीन्स की पतलून पहन रखी थी जिसमें उसके कूल्हे बड़े ही आकर्षक दिख रहे थे। पर वह सुषमा के पाँव को पूरा ढके हुए थी। मैंने सुषमा के पतलून के बेल्ट के हूकों को खोला। सुषमा की पतलून कमर से ढीली हो गयी। सुषमा ने पाँव मार कर उसे टांगों से निचे की और खिसका कर निकाल दिया। अब सुषमा निचे सिर्फ पैंटी पहने हुए थी। सुषमा की करारी जांघें बड़ी ही आकर्षक लग रहीं थीं।

साले साहब ने पहली बार सुषमा की नंगी जाँघों का दर्शन किया था। वह तो उन्हें दखते ही रह गए। साले साहब ने जरूर कई लड़कियों की नंगी जांघें देखीं होंगीं। मुझे यकीन था की अंजू भाभी की जांघें भी बड़ी ही आकर्षक होंगीं, पर सुषमा की जांघें ऐसी लगतीं थीं जैसे कोई सोलह साल की कँवारी एकदम फिट लड़की की पतली सुआकार नंगी जांघें जैसे उन्हें कोई इंजीनियर ने या कलाकार ने फुट रूल से खींच कर सीधी बनायीं हो। उनमें कहीं भी कोई बल या दाग नहीं था। सीधी जाँघों के मिलन स्थान से निकली हुई जाँघे जैसे कोई एथलीट या दौड़ने वाले की होतीं हैं। पर अक्सर एथलीट की जाँघों में उनके स्नायु बाहर सख्त निकले हुए दीखते हैं। सुषमा की जाँघों में एकदम सीधा चिकना आकार था जो मर्दों के दिल को छुरी से काटने की क्षमता रखता था। भला साले साहब का क्या दोष की वह सुषमा के पतलून निकाल फेंकने पर सुषमा को चूमना भूल कर सुषमा की पैंटी के निचे छिपी हुई चूत की मात्र कल्पना करते हुए उसकी जाँघों को देखते ही रह गए।

उन्हें तब अपने काम का ध्यान आया जब मैंने सुषमा के तलवों से शुरुआत कर सुषमा की टांगों की पिण्डियों को बारी बारी चूमना और चाटना शुरू किया। सुषमा की टांगों पर एक भी बाल का निशान तक नहीं था। जैसे ही मैं सुषमा की जाँघों को चूमता गया वैसे वैसे साले साहब भी सुषमा के सर, उसकी गर्दन, उसके कंधे, फिर घुमा कर वह सुषमा के होँठों के पास पहुंचे। सुषमा ने अपने होँठ साले साहब की गर्दन पकड़ कर उनको अपने ऊपर खिंच कर उनके होँठों से अपने होंठ मिलाकर प्रस्तुत किये।

इस बार सुषमा के रसीले होँठों को चूमने, चूसने और काटने की साले साहब की बारी थी। मुझे लगा की मेरे साले साहब इस कला में काफी निपुण लग रहे थे। सुषमा के होँठों उन्होंने अलग अलग कोनों से अपने होंठों को घुमाते हुए और अपनी जीभ से सुषमा के होँठ, जीभ और मुंह को अंदर बाहर से चाटते हुए वह ऐसे व्यस्त हो गए की उन्हें बाहर की दुनिया का जैसे ध्यान ही नहीं रहा। इस बिच उनका एक हाथ और मेरा एक हाथ सुषमा के दोनों अल्लड़ स्तनोँ को उसके टॉप के ऊपर से ही बारी बारी से मसलने में व्यस्त हो गए।

सुषमा का टॉप और ब्रा हमारे मसलने से वैसे ही इतने अस्तव्यस्त हो गए की सुषमा के स्तनोँ की निप्पलेँ बाहर निकल आयीं। पर बटन नहीं खोलने से वह कभी दर्शन देतीं तो कभी ब्लाउज और ब्रा के अंदर छिप जातीं। मैंने सुषमा के टॉप को निचे से ऊपर की और खींचने की कोशिश की तब सुषमा ने मेरी जांघों के बिच में हाथ डालकर मुझे इशारा किया की मैं भी अपने कपडे उतार कर मेर लण्ड के दर्शन दूँ। सुषमा का दुसरा हाथ साले साहब की जाँघों के बिच था। हम दोनों को हमारी रानी का बिना कुछ बोले अपने हाथों की हरकतों से आदेश हुआ की हम भी हमारे कपड़ों को उतार कर नंगे हो जाएँ।

हमारे द्वारा सुषमा के ब्लाउज को ऊपर सरका ने पर सुषमा ने अपने हाँथों को ऊपर कर अपना टॉप ऊपर की और खिसका कर निकाल दिया। सुषमा अब सिर्फ ब्रा और छोटी सी पैंटी में थी। तो हमारे साले साहब कौनसे कम थे? उन्होंने भी अपना कुर्ता उतार फेंका। मैं उनका सपाट पेट, उसके ऊपर पड़े हुए बल और सख्त स्नायु देख कर काफी प्रभावित हुआ तो साफ़ बात है सुषमा तो हमारी उस रातकी शय्या भागिनी थी। वह साले साहब के इस तरह के बदन के प्रदर्शन से प्रभावित क्यों नहीं होगी? सुषमा ने साले साहब के पेट पर जो बल पड़े थे उन पर हाथ फिरते हुए कहा, "संजू जी भाई वाह मानना पडेगा। आपने आपका शरीर अच्छा खासा फिट रखा है। कोई भी औरत आप पर आसानी से अपना दिल और बदन दे सकती है। यह विधाता का अन्याय है की आप के साथ यह अनुपजाउता या इनफर्टिलिटी का अभिशाप लगा है।"

साले साहब ने सुषमा की और देख कर मुस्कुराते हुए कहा, "सुषमा यह अभिशाप नहीं वरदान है। हाँ यह ठीक है की मेरी स्वयं की पत्नी के लिए यह अभिशाप है, पर मेरी और महिला शैय्या भागिनीओं के लिए तो यह वरदान है। उनको मुझसे बच्चा होने का कोई डर ही नहीं। वह मुक्त मन से मेरे साथ बिना कंडोम अभिसार मतलब चुदाई कर सकती है। अक्सर मर्दों को और औरतों को भी अगर मर्द कंडोम पहनते हैं तो वह आनंद नहीं आता जो नंगे लण्ड से मिलता है। मुझे भी कंडोम पहन कर चोदने में मजा नहीं आता। आज आप के साथ भी मेरा जो मिलन होगा वह बिना कंडोम के अवरोध से इसी कारण हो सकता है, क्यों की मैं शतप्रतिशत इनफर्टाइल हूँ। और शायद इसी लिए आपने भी मुझे आपकी शैया का साथीदार बनाने की अनुमति दी है।"

मैं साले साहब की व्याख्या से बड़ा ही प्रभावित हुआ। उनकी बात सच थी। अक्सर यह होता है की जिस मर्द को इनफर्टिलिटी होती है वह इस के कारण बड़े ही मानसिक तनाव में होते हैं। शायद इसकी वजह से उनका लिंग माने लण्ड भी खड़ा नहीं रह पाता। पर मेरे साले साहब को ऐसी कोई समस्या नहीं थी। वह बड़ी आसानी से यह इजहार कर रहे थे की वह इनफर्टाइल थे। और इसी के कारण उनके लण्ड पर इस बात का कोई भी असर नहीं होता था। वह चोदते हुए अपनी महिला साथीदार को चुदाई का आनंद दे सकने में पूरी तरह सक्षम थे। मेरी भाभी का हमेशा मुस्कुराते रहना इसका सुबूत था।

साले साहब की बात सुनकर सुषमा भी काफी खुश हुई। जो मर्द या औरत अपनी कमजोरी को आसानी से स्वीकार कर लेते हैं वह मानसिक तनाव से मुक्त रहते हैं।

सुषमा ने साले साहब की बात सुन कर एक प्रश्न किया, "संजयजी फिर यह बताइये की भाभी जी को बच्चा कैसे हुआ? इसका मतलब की या तो उन्होंने जो आजकल की नयी तकनीक आई वी ऍफ़ है उसका सहारा लिया या फिर किसी गैर मर्द से चुदवाया। जाहिर है आपने आ वी ऍफ़ का सहारा नहीं लिया। क्यूंकि ऐसा होता तो सबको पता लग जाता। तो फिर भाभीजी को किस गैर मर्द से चुदवाया? मैं जानती हूँ की किसी गैर मर्द से चुदवाना किसी भी औरत और उसके पति के लिए भी आसान नहीं है। फिर यह कैसे हो पाया?"

सुषमा का प्रश्न सुन कर साले साहब कुछ देर गंभीर हो गए। साले साहब के चेहरे के भाव देख कर मैं भी सकपका गया। फिर हमारी और देख कर हल्का सा मुस्कुराये और फिर बड़े ही शरारती अंदाज में वह बोले, "सुषमा यह एक लम्बी कहानी है। बच्चा पाने के लिए हमें कितने पापड़ बेलने पड़े। हमारी जिंदगी हमारे बच्चे ने बदल डाली। पर वह कुछ भी आज नहीं। फिर कभी मौक़ा मिला तो बताऊंगा।"

मैं मन ही मन मेरे साले साहब को कोसने लगा। मैं जानता था की साधारणतः महिलायें अत्यंत जिज्ञासु होती हैं। ख़ास कर ऐसे मामले में। सुषमा भी कोई कम जिज्ञासु नहीं थी। साले साहब सुषमा को दुबारा चोदने का मौक़ा ढूंढ रहे थे। सुषमा इस कहानी का रहस्य जानने के लिए हो सकता है की साले साहब से दुबारा चुदवाने के लिए राजी हो जाए। शायद यही साले साहब का भी ध्येय था।

सुषमा ने साले साहब की निप्पलों पर हाथ फिराकर एक निप्पल को उंगलियों के बिच ले कर दबाते हुए कहा, "अब बता ही दो ना संजूजी।"

साले साहब ने मुस्कुराते हुए कहा, "सुषमा, मुझे बताने में कोई एतराज नहीं, पर मैं उस कहानी को बताने में सारी रात बर्बाद नहीं करना चाहता।" हालांकि सुषमा ने आगे फिर इस बात को नहीं छेड़ा पर शायद वह साले साहब से कुछ नाराज जरूर हुई। मैंने समय की नजाकत को पहचानते हुए अपना कुर्ता निकालते हुए साले साहब से कहा, "ठीक है, आप अभी नहीं बताओगे पर आज सुबह से पहले बताना तो पडेगा। चलो अगर आप अभी अपना राज़ नहीं बताना चाहते हो तो कोई बात नहीं बाद में बताना, पर अभी अपना लण्ड तो निकाल कर दिखा दो साले साहब।"

साले साहब ने मेरी और देखते हुए कहा, "पहले आप।" मैंने सोचा पहले आप के चक्कर में कहीं गाडी ही न छूट जाए, मैंने अपना पतलून भी निकाल फेंका। मुझे देख साले साहब ने भी अपना पतलून निकाल दिया। अब हम दोनों मर्द अपनी निक्कर में ही थे। हमारे लण्ड हमारी कामुकता भरी हरकतों से उत्तेजित अवस्था में तन कर कसे हुए अपनी निक्करों में बड़ा सा तम्बू बनाये खड़े हुए थे। यह पूरी बातचीत के दरम्यान मैं और साले साहब सुषमा की ब्रा के अंदर अपना हाथ डाल कर सुषमा की चूँचियाँ बराबर मसलते रहते थे।

सुषमा को उसकी टाइट ब्रा में हमारे हाथ घुसने के कारण बड़ी बेचैनी सी हो रही थी। सुषमा ने अपने हाथ पीछे कर अपनी ब्रा के हुक खोल दिए। मैंने सुषमा की ब्रा को एक हाथ में पकड़ा तो सुषमा ने उसको अपने बाजुओं से निकाल कर अपने दूसरे कपड़ों के ढेर के ऊपर फेंक दिया। अब वह ऊपर से टॉपलेस थी। हमें अब सुषमा की मदमस्त चूँचियाँ जो उस हाल में भी निचे लटकती हुई झूली नहीं थी उन्हें अच्छी तरह से मसलने, चूमने और चूसने की पूरी आजादी मिल गयी थी। सुषमा की चूँचियाँ अपने भराव से और सख्त हुई अपनी निप्पलों और थोड़ी सी श्यामल एरोला की गोलाइयों को कामुकता से दिखाती हुई अल्लड़ और उद्दंड सी तन कर बिना झुके सर उठाकर खड़ी हुई थीं। लेटी हुई सुषमा की उन सख्त चूँचियाँ गजब की कामुक दिख रहीं थीं।

मुझे लगा की मेरी हाजरी में शायद मेरे साले साहब सुषमा से आगे बढ़ने में कुछ कतरा रहे थे। मैंने सोचा उन्हें कुछ मौक़ा देना चाहिए। मैं सुषमा और साले साहब को वाशरूम जाने का बहाना कर वहाँ से उठकर वाशरूम गया। वहाँ टॉयलेट की सीट पर बैठ कर मैंने उन्हें थोड़ा समय दिया। करीब पांच मिनट के बाद मैं जब वापस बैडरूम में आया तब देखा की दोनों के बदन से कपडे निकल चुके थे। सुषमा पूरी नंगी हमेशा की तरह परी जैसी खूबसूरत लग रही थी। साले साहब सुषमा के ऊपर सवार हो कर उसके होँठों से अपने होँठ कस कर चिपका कर सुषमा के होंठ और मुंह चुम रहे थे।

मेरे सुषमा की दूसरी तरफ अपनी पोजीशन लेते ही सुषमा ने साले साहब से चुम्मा ख़तम किया और सुषमा मेरी और घूम गयी। सुषमा ने मुझे हलके से आँख मार कर कहा, "तुम्हारे साले साहब बडा अच्छा चुम्बन करते हैं। लगता है काफी अनुभव हैं उनको।"

मैंने कहा, "अगर वह फर्टाइल होते तो पता नहीं गाँव में कितनी आबादी और बढ़ जाती।"

सुषमा ने मेरा कच्छा निचे की और खिसकाते हुए कहा, "गाँव को छोडो, अपने घर की आबादी तो बढ़ाओ तुम।" मैंने भी अपना कच्छा निकाल फेंका।

मैंने सुषमा की चूँचियों पर मुंह रख कर उनको चूसते हुए कुछ मुस्कुरा कर कहा, "तुम्हारी चूँचियाँ कह रहीं है की वह काम तो कल ही होगया। देखो अब इनमें दूध भरने की शुरुआत हो चुकी है।"

सुषमा ने अपनी आँखें बंद करते हुए कुछ शरारत भरी मुस्कान देते हुए कहा, "चलो झूठे कहीं के। इनमें इतनी जल्दी थोड़े ही दूध भर जाता है? पर हाँ, हालांकि यह मेरे मन का वहम हो सकता है पर यह तुम्हारी बात मुझे सही लगती है। मेरा दिल यह बार बार कह रहा है जैसे मेरे पेट में तुम्हारा बीज पनपने लगा है।" सुषमा की एक चूँची मेरे मुंह में थी और दूसरी साले साहब के। साले साहब बड़ी शिद्द्त के साथ सुषमा की चूँची को चूस रहे थे जैसे उनमे दूध आ ही गया हो।

साले साहब के दोनों हाथ सुषमा के गोरे चिकने बदन को ऊपर से नीची तक संवार रहे थे। जब उनका हाथ सुषमा की जाँघों के बिच उसकी चूत पर पहुंचता तो वहीँ थम जाता। वह अपने हाथ की उँगलियों से कुछ देर सुषमा की एक भी बाल से रहित साफ़ चूत की पंखुड़ियों से खेलते और फिर वहाँ से हट कर ऊपर की तरफ सुषमा के बदन के उतार चढ़ाव महसूस करने में खो जाते।

सुषमा एक हाथ से मेरा और दूसरे हाथ से साले साहब का लण्ड पकडे हुए हिलाती रहती थी। सुषमा के लिए एक साथ दो दो मर्द से प्यार पाना एक बड़ा ही रोमांचक अनुभव था। मैंने महसूस किया की सुषमा प्यार की भूखी थी और प्यार पाकर बड़े ही रोमांचक भावावेश में आ जाती थी। हम दो मर्द उसे इतना प्यार कर रहे थे यह महसूस कर वह बार बार भावावेश में आ कर हमें कहीं भी चूमने लगती थी।

मैंने सुषमा से इशारा कर साले साहब से प्यार करने को संकेत दिया। मैंने कहा, "मैं तो तुम्हारे साथ ही हूँ। पर साले साहब चले जाएंगे। साले साहब बेचारे तरस रहे हैं तुम्हारे प्यार के लिए।"

सुषमा ने मेरी आँखों में आँखें डालकर का, "राज साहब, मेरे जहन में इतना प्यार है की मेरे पति को मिला कर तुम तीनों मर्दों को मैं प्यार की कोई कमी नहीं महसूस होने दूंगी। तुम देखते जाओ।"

सुषमा ने फिर झुक कर साले साहब को अपनी और खिंचा और उनका लण्ड अपने मुंह के पास लिया। कुछ देर तक सुषमा साले साहब के लण्ड का गोरा गोरा टोपा चाटती रही और फिर अपनी जीभ लम्बी कर सुषमा पुरे लण्ड को प्यार से चाटने लगी। संजू सुषमा का इस तरह प्यार से लण्ड चाटने पर ख़ुशी से अभिभूत हो कर आँखें बंद कर वह पलों को अपने दिल में जैसे संजो रहा हो ऐसे चेहरे पर भाव लिए उन लम्हों को एन्जॉय करता रहा।

लण्ड चूसते हुए सुषमा ने नजरें उठा कर मेरी और देखा। उसे लगा की कहीं मुझे उसके कारण कोई जलन तो नहीं हो रही? मैं बड़े प्यार भरी नज़रों से सुषमा को देखता रहा। सुषमा को तसल्ली हो गयी की मैं बिलकुल सुषमा के साले साहब के लण्ड चूसने से नाराज नहीं हूँ। तब सुषमा ने साले साहब के लण्ड को जोश से चूसना शुरू किया।

साले साहब का लण्ड काफी तना हुआ सख्त और लंबा था जिसे सुषमा ने पूरा मुंह में भर लिया। साले साहब का लण्ड चूसते हुए सुषमा के गाल फूल जाते थे। फिर कभी धीरे धीरे तो कभी कुछ ज्यादा फुर्ती से सुषमा उसे अंदर बाहर करते हुए चुस्ती और चाटती रही। साले साहब सुषमा के इस कार्यकलाप से पलंग पर काफी मचल रहे थे। कुछ देर चूसने के बाद सुषमा ने उसे मुंह से निकाला और उस पर लगी चिकनी लार के साथ वह साले साहब के लण्ड को अपनी एक हाथ की हथेली में पकड़ उसे हथेली के अंदर बाहर करती हुई हिलाती रही।

सुषमा ने अपना मुंह फिर मेरे लण्ड की और घुमाया। मेरी और नजर कर सुषमा ने मेरे लण्ड का टोपा अपने मुंह में लिया और उसे बड़े प्यार से चाटने लगी। सुषमा की जीभ इतनी प्यारी और संवेदनशील थी की उसकी जीभ के मेरे लण्ड को छूते ही मेरा लण्ड फुंफकारने लगा। मेरे लण्ड की धमनियों में मेरा वीर्य दौड़ने लगा। सुषमा की जीभ के मेरे लण्ड के चूसने मात्र से ही मेरा पूरा बदन सख्त हो गया। मुझे दर लगा की कहीं मैं सुषमा के मुंह में ही अपना वीर्य छोड़ ना दूँ। सुषमा अपना सिर इतनी दक्षता और कलाकारी से हिला कर मेरे लण्ड से अपना मुंह चुदवा रही थी की मैं भी अनायास ही अपना पेंडू हिला कर सुषमा के मुंह की गति के अनुसार मेरे लण्ड को सुषमा के मुंह के अंदर बाहर करने लगा। वाकई में सुषमा लण्ड चूसने की कला में माहिर हो चुकी थी। पर मैं सुषमा से लण्ड चुसवाने के कारण उत्तेजना के मारे सिकारियाँ और आहटें भरता रहता था।