Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.
You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.
Click hereस्नेहा अपने सहेली के पति अशोक से चुदवाती है।
-x-x-x-x-x-
स्नेहा ने अपनी सहेली सरोज की दरवाजा कट कटाई तो दरवाजा उसका पती अशोक ने खोली। स्नेहा उसे देखकर मुस्कुरायी और "हेलो भैय्या" कही फिर 'सरोज' कहते अंदर की ओर चली।
"सरोज नहीं है स्नेहा.. वह अपने एक सहेली के शादी में गयी है... शाम तक आने की कहकर गयी है" पीछे आ रहा अशोक ने बोला।
"ओह..." वह कही और कुछ क्षण बाद "अच्छा मैं चलती हूँ.." कहते उठने लगी।
"अरे इतनी जल्दी भी क्या है.. सरोज नहीं है तो क्या हुआ मैं हूँ ना; मुझसे भी कुछ बातें किया करो ..." अशोक ने कहा।
वह कुछ देर सोफे पर बैठी और अशोक से इधर उधर की बातें करने लगी। कुछ देर बाद "स्नेहा तुम बैठो मैं चाय बनाता हूँ.." अशोक ने कहा।
"नहीं भैया.. (स्नेहा अपनी सहेली सरोज के पति को भैय्या कहकर बुलाती है) तुम कष्ट क्यों करते हो.. चाय मैं बना देति हुँ..." कहते स्नेहा सोफा के ऊपर से उठी और किचन की ओर बढ़ी। वह स्टोव चालू कर पानी चढ़ाई थि की अशोक आकर उसके एकदम पीछे उससे सटकर खड़ा हो गया। वह इतना समीप था की स्नेहा अपने गाल पर उसके साँस के गरम हवा महसूस लगने लगी।
"भैय्या.. पीछे हटो... चाय बन गयी ला रहि हूँ" वह कही और दो ग्लासों में चाय डालकर बाहर को चली। अशोक भी उसके पीछे बाहर आया और, सोफे पर बैठकर चाय चुसकने लगा। चाय पीते पीते वह स्नेहा को ही घूर रहा था।
"अशोक भैय्या .. ऐसे क्या देख रहे हो...?" स्नेहा विचलित होकर पूछी।
"स्नेहा तुम बहुत सुन्दर हो.. यह बात तुमसे किसी ने नहीं कहीं...?"
"हा हा..हां.. मैं और सुन्दर.. क्या बात कर रहे हो भैय्या ... तुम किसी और के सामने बोलोगे तो वेह तुम्हे पागल समझेंगे ..." वह हँसते बोली।
"नहीं स्नेहा तुम सच में ही बहुत सुन्दर हो.." कहते उसने चाय खतम किया और स्नेहा के समीप आकर, अचानक उसे अपने बाँहों में जकड़ा और एक गाल को चूम लिया।
"अशोक भैय्या.. यह क्या कर रहे है तुम.. छोड़ो मुझे..." वह उससे छुडाने की कोशिश करने लगी।
लेकिन नाकाम रही।
"अशोक भैय्या.. छोड़ो मुझे नहीं तो मैं सरोज को बोलूंगी" वह अशोक के पकड़ से छूटने की कोशिश करती बोली।
"बोलो, मैं परवाह नहीं करता..."अशोक ढीट के साथ बोला।
"भैय्या ऐसे क्यों कर रहे हो... क्या चाहिए तुम्हे...?" स्नेहा पूछी।
"और क्या तुम्हारी जवानी, और सुंदरता.. प्लीज स्नेहा एक बार... मेरा कहना मनो..."
"लेकिन भैय्या... मैं तुम्हे भैय्या बोलती हूँ..."
"मैं थोड़ी ही तुम्हरा सगा भाई हूँ... वैसे भी आजकल की मॉडर्न ज़माने में सगे भाई बहन भी रतिसुख पा रहे है। ...."
"लेकिन....."
लेकिन वेकिन कुछ भी नहीं... जब से तुम्हे स्विम सूट में देखा हूँ मेरा दिल धड़कने लगी देखो मेरा क्या हाल है..." कहते उसने स्नेहा का हाथ अपने उभार पर रखा।
"लेकिन भैय्या.. यह गलत है.. अगर सरोज को मालूम पड़ गयी तो...?" ऐसे पूछकर स्नेहा ने अनजाने में ही अपना रजामंदी देदी है।
"कैसा मालूम होगी तुम क्या बोलने जाओगी उस से"
"छी... छी"
यह सब बातें हो ही रही थी, फिर भी अशोक के हाथ स्नेहा के शारीर पर रेंग रहे थे। जिसकी असर उसके शरीर पर पड़ने लगी। वह धीरे धीरे गर्माने लगी। उसका शरीर अशोक के हरकतों के रिस्पांस देने लगी। उसका शरीर अशोक के जिस्म से लिपटने लगी। अशोक यह बात समझते ही उसमे जोश आगया और और जोरसे उसके उरोजों को मसलते निप्पल पिंच करने लगा।
"ससससस..... भैया.. अहह। धीरेसे.... इतना जोर से नहीं...ससस...आअह्ह्ह्ह" वह दर्द से तिलमिलाई।
"तो बोलो मंजूर..." उसके चूची को टीपते पुछा...
अशोक भैया.. मुझे ढर लग रहा है..." स्नेहा मन्द्र स्वर में बोली।
"क्यों...?"
कही किसी को पता चले तो... या सरोज को मालूम होगया तो..." वह ढरने का नाटक करती बोली।
"स्नेहा मुझ पर भरोसा रखो.. मैं किसी को बोलने वाला नहीं हूँ... प्रॉमिस... आखिर तुम भी जवान हो.. देखो तुम्हारे में भी जवानी की आग धधकती होगी.. उसे शांत करो...बोलो तुम्हारे में आग धधक रही है की नहीं...?"
"स्नेहा सिर झुककर धीरेसे बोली "haaaaaaan"
"तो मौज करना... वैसे तुम गंगाराम से चुदाई हो क्या....?"
"छी..कैसे बातें कर रहे हो भैय्या.. तुम्हरी बात क्या मानली मैं तुम्हे छिनाल दिख रही हूँ.. चलो छोड़ो मुझे..." वह गुस्सा होते हुए जबरदस्ती अशोक छुडाली।
अशोक समझ गया की बनता खेल बिगड़ रहा है... तो वह बोला.. "सॉरी स्नेहा.. मेरा वह मतलब नहीं है.. मैं तो सिर्फ इसीलिए पुछा हूँ की उन्होंने हम लोगों को इतना कॉस्टली गिफ्ट्स दी है..."
"तो क्या मैं उसकी रंडी बनगयी या रखैल..."
"सॉरी बोला ना.. मुझे माफ़ करदो .. देखो मैं तुम्हे बहुत दिनों से चाह रहा हु... लेकिन अपनी बात करने का मुझे चांस ही नहीं मिला..."
स्नेहा कुछ शांत होती और पूछती है "भैय्या ऐसा क्या है मुझमे जो तुम मरमिट रहे हो.. सरोज का फिगर तो मुझसे अच्छी है...|
"मानता हूँ.. लेकिन जो आकर्षण तुम मे है.. वह सरोज में नहीं है..."
"अच्छा.. क्या आकर्षण है मुझमे.. बोलो तो.." वह मुस्कुराती पूछी। अशोक के हाथ अभी भी उसके शरीर पर रेंग रहे हे। जिस से स्नेहा के शरीर में सुर सूरी सी होने लगी।
"सबसे पहले तो तुम्हारी आँखे... उसमे आकाश के सितारों जैसे चमक है"
स्नेहा खिल खिलाकर हंसती है। उसके हंसने से उसके कमीज के निचे के छोटे छोटे चूची मादक ढंग से हिलते हैं।
उसकी हंसी देख कर अशोक समझ जाता है कि पंछी फंसी।
यह सतुवा नाक, उसके निचे पतले होंठ... मोती जैसे चमकते दांत, और यह गुलाबी गाल..." स्नेहा के गाल पर अपने हथेली चलाता बोला।
"गलत.. मेरे गाल गुलाबी नहीं है.. तुम झूट बोलकर मुझे बहला रहे हो..."
"अरे भाई. में तो एक कहावत की तौर पर बोला हूँ... मैं मानता हूँ तुम fair नहीं हो.. लेकिन तुम्हारी गालों की स्मूथनेस या यह कहो की चिकना पन... इतना स्मूथ जो सरोज के गाल भी नहीं है..."
यह तुम्हारे नन्ही चूचियां तो मेरी दिल की हालत ख़राब करदी है... वैसे तुम में क्या कमी है... तुम गोरी नहीं हो और दुबली पतली दिखती हो... यहि न.. लेकिन तुम में वो आकर्षण है जो बहुत से लड़कियों में नहीं है.. यह सफाट पेट, पतली कमर.. उसके निचे छोटे मगर गद्देदार (fleshy) पेंदा ... तौबा" अशोक रुका...
"waaaaaah ...मान गयी .. सच में तुम में एक कवी भी छुपा है..."
"तो बोलो स्नेहा.. मेरा प्रस्ताव मंजूर..." वह पुछा..
"ओह भैय्या ... अभी तक नहीं समझे.. जैसे तुम बोले हो मैं जवानी के आग में झुलस रही हूँ... मंजूर ही मंजूर अगर मंजूर नहीं होती तो इतनी देर तुम्हारे सामने बैठ कर तुम्हारी बातें सुन रही होती क्या....?"
"थैंक्यू....स्नेहा थैंक्यू.." कहते अशोक ने स्नेहा के सारे शरीर पर चुम्बनों का भौचार कर रहा था..."
"ओह भैय्या ... अब बस भी करो.. सिर्फ चूमते ही रहोगे या कुछ और करोगे...?"
"क्या.. करूँ ...?"
"मुझे क्या पता तुम क्या करोगे.. कुछ करने ही तो तुम मुझे रोक के रखेहो है न....?"
"हाँ वो तो है..."
"क्या करोगे...?"
अशोक अपने मुहं को स्नेहा के कान के पास ले आया और धीरेसे फूस फुसाया... "में तुम्हे चोदुँगा ..."
"छी..तम कितने गंदे हो भैय्या.. कोई अपने बहन से ऐसी बातें करते है क्या...?"
"स्नेहा अब मैं क्या कहूँ; साली.. मेरी मुहँ बोली बहन है ही इतनी सेक्सी..."
उसके बातें सुनकर स्नेहा खिल खिलाकर हंसी। उसे ऐसा फील होरहा था की उसके सारे बदन पर हजारों चींटिया रेंग रहे हो.. सारे बदन में एक अजीब सी सुर सुराहट होने लगी।
अशोक उसे एक गुड़िया की तरह उठाकर उसे अपने बैडरूम में लाया और उसे बिस्तर पर बिठाकर उसे ही देखने लगा...
"ऐसी क्या दीख रहे हो भैय्या....?"
"स्नेहा एक बार दिखादो...प्लीज...."
"क्या दिखावूं...?"
"अपनी सहेली को..." स्नेहा समझ गयी अशोक क्या पूछ रहा है.. फिर भी नखरे करते बोली... "मेरी सहेली... भैय्या तुम्ही तो कह रहे थे की वह शादी में गयी है... तो मैं कैसे दिखावूं..."
"अरे बाबा.. वह सहेली नहीं...."
"तो कौनसी सहेली दिखावूं...?"
"तुम्हारी सलवार के निचे तुहारी जांघों में छुपी है उस सहेली को ...उसे दिखावो..."
छी... तुम कितने गंदे हो भइया..."
"प्लीज स्नेहा... बस एक बार..."
"एक बार देखलोगे तो संतृप्त हो जावोगे...?"
अशोक कुछ बोला नहीं है बस स्नेहा जांघों में देखता रहा...
"सिर्फ देखोगे..कुछ करोगे नहीं न..." स्नेहा बोली।
"ऐसे कैसे हो सकता है..."
"तो क्या करोगे...?"
"कुछ देर पहले तो कहा था.. मुझे तुम्हे चोदना है...."
"किस से....?"
"मेरे हथियार से I mean.. मेरे लंड से..."
"भैय्या मुझे लंड देखनि है.. तुम्हारा लंड दिखादो.."
"क्या तुमने लंड नहीं देखि....?"
नहीं भैय्या। .."
क्या सच में...?"
"हाँ भैय्या....किसीका नहीं देखि.. सिर्फ मेरे भाई गोपि का देखि हूँ.. लेकिन वह तो छोटी है..."
उसके बात सुनकर अशोक गदगद होअय.. स्नेहा होगी लग भाग अपनी पत्नी की उमर के ही.. और वह अभी तक लावड़ा यहीं नखी.. वह उत्सुक हो उठा और "ठीक है.. स्नेहा.. अभी दिखाता हूँ; देखो.. यह दुन्या सबसे अनोखी चीज है..." कहते उसने अपनी पैंट और under wear उतार फेंका। स्नेहा देखि कि उसका लगभग 6 इंच लम्बा और 2 1/2 इंच मोटा लंड कड़क खड़ा है..." उसे देख कर यह तो गंगाराम अंकल के सामने बौना है' सोची पीर बोली.. है भैय्या कितना बड़ा है यह; तुम इस से, मुझे चोदोगे.. नहीं यह तो बहुत बड़ा है.. यह मेरे में नहीं जाएगी.. नहीं भैय्या प्लीज..."
"आरी पगली.. यह तो कुछ भी नहीं है... इस से भी बड़े बड़े होते है..." अशोक उसके भोलेपन पे हँसते बोला।
"क्या इसे से भी बड़े... इतने बड़े इतनी सी छेद में कैसे घुसेंगे..." नहीं भैय्या नहीं.. मैंने तो एक दो बार मेरी ऊंगली डालने की कोशिश की है.. बहुत दर्द हुआ..."
"गभराओ नहीं स्नेहा.. में तुम्हे आराम से करूंगा..."
"नहीं भैय्या मेरी बहुत छोटी है..."
पहले अपना दिखावो तो सही..देखते है कितनी छोटी है..."
"भैय्या... मुझे लज्जा आ रही है..."
"स्नेहा यह तो न इंसाफ़ी है.. तुमने मेरी देखली है...प्लीज.. दिखादो..." अशोक मिन्नत करने लगा।
स्नेहा लजाते पहले उसने अपनी सलवार की नाडा खोली तो सलवार उसके टकणों के पास गिरी.. फिर वह और लजाते अपनी कमीज ऊपर उठाने लगी। वह धीरे धीरे अपना कमीज उठा रही थी.. वह कमीज को अपने घुटनों के कुछ ऊपर तक खींचती है और शर्मा कर.. नहीं भैय्या मुझे लाज आरही है..." कहते कमीज छोड़ देती है।
वह उसके पिंडलियों तक गिरती है...
"ओह स्नेहा.. प्लीज..."
स्नेहा फिर से अपना कमीज ऊपर उठाने लगती है..अबकी बार वह जांघों के कुछ ऊपर तक उठती है। अशोक दिल थाम के उसके पतले जांघों को ही देख रहा था। उसे ऐसे देखते देख कर स्नेहा फिर से लजायी और कमीज छोड़ कर.. नहीं भैया.. मुझसे यहीं होता.. तुम्ही देखलो.." कहती और पलंग पर औंधे गिरती है।
"ओह स्नेहा.." कहकर अशोक जाकर उसके ऊपर गिरता है और उसकी कमीज को एक झटके में उसके सिर के ऊपर से निकल फेंकता है।
अब स्नेहा के बदन पर एक पैंटी और ब्रा ही रह गए है।
अशोक उसके छोटे छोटे कूल्हों पर पैंटी के ऊपर से ही हाथ फेरता है।
"सससससस...हहहहहहह..." स्नेहा सिसकारी लेती है...
"क्या हुआ स्नेहा...?"
"हाय भैय्या कितना अच्छा है.. है तुम्हरे हाथ.. वैसे ही करो भैय्या...."
अशोक उसके कूल्हों पर कुछ देर हाथ फेरा और उसकी पैंटी भी खोल दिया।
जैसे उसके कूल्हे नंगे हुए स्नेहा अनजानेमें ही चित पलटती है और अशोक के आँखों के सामने स्नेहा के जांघों के बीच का गहना चमकता है..।
"आअह्ह्ह... स्नेहा क्या मस्त है तुम्हारी चूत ओफ्फो...:" अशोक कहा और अपना मुहं स्नेहा की जांघों में घुसा दिया। स्नेहा अपने जांघों को और चौड़ा किया और अशोक उसके बीच जम गया। वह अपने जीभ निकाल कर स्नेहा की बुर को चाटने लगा....
"आआह्ह....मममम.. अशोक भैय्या यह क्या कर रहे हो....?" वह मीठी सिसकार लेती बोली।
"तुम्हे प्यार कर रहा हूँ स्नेहा.. क्यों अच्छा नहीं लगा...?"
"बहुत अच्छा है भैय्या....ऐसे ही करो...मममम..." वह कुनमुनाई।
अशोक उसके बुर के फांकों को फैलाकर अपन जीभ उसके अंदर घुसेड़ दिया। जब तक स्नेहा की बुर अपना रास छोड़ने लगी जो नमकीन थी। अशोक उसे चूसता... जीभ से उसे कुरेदने लगा।
"ससससस...आआह्ह्ह्हह..." स्नेहा अपनी गांड उछालते हुये सिर घुमाकर खिड़की की ओर देखि। वहां सरोज अपने हाथ मे मोबाइल कैमरा के साथ दिखी। स्नेहा को अपने ओर देखता पाकर सरोज ने अपनी अंगूठा उठाकर OK का इशारा किया।
कुछ देर अशोक को अपने बुर को चाटने देकर स्नेहा बोली... "आअह्ह्ह.. अशोक भैय्या.. अब रहा नहीं जाता; मेरे में आग सुलग रही है.. चोदो मुझे.." अपने गांड उठाते बोली।
"लो स्नेहा... में भी बहुत excited हूँ.. कहते अशोक ने अपना लंड मुट्ठी में पकड़ा और स्नेहा की बुर पर रगड़ने लगा...
"ससससस....मममममआ.. अब मत तडपाओ.. जल्दी करो..." वह बोली।
"क्या करूं ...?" अशोक उसके चूची को दबाते पुछा।
"आआह्ह्हह... जैसे की तुमको मालूम नहीं.. करोना भैय्या" स्नेहा गिड़ गिड़ायी।
अशोक अपना औजार स्नेहा की फांकों के लगा कर एक्जोर का दक्का दिया..." उसके दो इंच मोटा लंड उसके चूत के दीवारों को चीरता अंदर घुस गयी।
"आअह्ह्ह्ह.. भैय्या धीरे से... दर्द हो रहा है.. वह तिलमिलाने का नाटक करती बोली। एक ही shot में अशोक का पूरा का पूरा स्नेहा मे समा गयी।
उसका स्नेहा की बुर घुसी लेकिन एक ही शॉट में पूरा चला गया तो अशोक शक हुआ...
"स्नेहा तुम किसी से करवाई हो...?" वह दक्का देते पुछा।
"छी... भैय्या किए बातें करते हो.. मैं क्या वैसी लड़की दिख रही हूँ...?" जाओ.. छोड़ो मुझे जाने दो.. गलती मेरी है की मैंने तुम्हारी बात मन ली..." वह लिटरली उसे अपने ऊपर से धकेली।
"ओह गॉड... यह तो बनता काम बिगड़ रहा है...' अशोक सोचा और स्नेहा को जकड कर दबाए रखा और बोला... "ओह स्नेहा गुसा मत करो .. प्लीज...." वह बोला।
"गुस्सा क्यों न करूँ.. में भी चुदास थी तो मैंने तुम्हारी बात मन ली तो तुमने..." वह बात को अधूरा छोड़ दी।
"ऐसी बात नहीं है डिअर.. मेरा सीधा एक ही बार में पूरा अंदर चलागया तो.. मैं समझा की..." वह भी बात को बीचमे छोड़ दिया।
"वह क्या है न भैय्या... कभी कभी मैं बहुत गर्म हो जाती हूँ और मेरे उसमे खूब ख्जलि होने लगती है तो उसे शांत करने के लिए मैं मेरी ऊँगली के साथ साथ उसमे गाजर या मूली से उसे शांत करती हूँ... इसीलिए..."
"ओह...अब से ऐसा मत किया करो... मैं हूँ न.. जब भी दिल बोले मुझे फ़ोन करदो .. तुम्हारी बुर की गर्मी दूर कर दूंगा..." वह उसे दाना दन पेलने लगा। स्नेहा भी अपनी चूतङ उठाते..आआह्ह ... उहहहह.. ससस.... माँमाँ मम.." कहकर उसे और बढ़ावा दे रही थी। कोई पांच छह मिनिट की ऐसी चुदाई के बाद अशोक बोला "स्नेहा मेरी खतम हो रही है..."
"ओह... नो... भैय्या इतनी जल्द नहीं.. रुको.. कुछ देर और दकके मारो... मैं भी झड़ जावूँगी तब.. हम दोनों एक बार...आआह्ह्ह्हह... पेलो... और अंदर... मारो.. मुझे..." वह अपने कूल्हे उछाल रही थी।
लेकिन अशोक से अब रुका नहीं जा रहा था.. वह दो तीन दकके और दिया और उसका लैंड स्नेहा की बुर में फूलने लगी...
स्नेहा समझ गयी की अशोक अब रुकने वाला नहीं है.. तो वह उसे अपने ऊपर से धकेलते बोली... नहीं भैय्या अंदर नहीं.. कुछ होगया तो मैं आफत में पड़ूँगी.. बाहर निकालो..." वैसे वह पिल्स पर थी। लेकिन यह बात अशोक को मालूम नहीं था। उसने अपना डंडा जैसे ही बाहर खींचा वह उसके बुर के फांकों पर झड़ने लगा। उसका सफ़ेद घड़ा वीर्य कोई पांच छह बूँद उसके फांकों पर से निचे को रिस रही थी।
अशोक निढाल होकर स्नेहा के बगल में पड़ा था।
"ओह भैय्या इतनी जल्दी झड़ गए.. तुमने मुझे अपने climax नहीं पहुँचने दी है..." वह उसे कोसती बोली।
"सॉरी स्नेहा... में कुछ टेंशन में था.. इसीलिए.. अबकी बार.. तुम्हे संतुष्ट करूंगा.. प्रोमिए..."
"बड़ा आया प्रॉमिस बच्चा.." वह अपने आप में बुद बुदायी।
-x-x-x-x-
"यह क्या हो रहा है घर में..." कहते सरोज अंदर आई.. उसके हाथ में मोबाइल है।
कमरे मे अंदर स्नेहा और अशोक अभी भी नंगे ही एक के बगल में एक पड़े हुए हैं। सरोज की आवाज सुनते ही दोनों चौंके और दरजे की ओर देखे.. वहां सरोज कड़ी थी; और उसके आंखे से भाले बरस रहे थे। स्नेहा और अशोक झट कपडे उठाने को झुके तो सरोज ने उन्हें दूर को धकेली।
"सरोज.. तुम... तुम.. शदी में जाने वाली थी..." अशोक हकलाते बोला।
"गई थी.. लेकिन वहां से शादी होते ही निकल पड़ी.. अच्छा हुआ यहाँ आयी तुम्हरे राज खुल गए.... क्यों तुम मुझे बाहर भेज कर यह गुल खिला रहे ह..." सरोज रुकी और स्नेहा को देख कर फिर से बोली.. "स्नेहा तुम तो मेरी अच्छी सहेली थी... और तुमने यह सिला दिया सहेली होने का...."
"सरोज..." स्नेहा बोलने लगी.. तो सरोज उसे रोका... और कहा... क्या सरोज ..सरोज लगा राखी है.. क्या बोलोगी तुम.. जो हो रहा है मेरे सामने ही तो है..." वह अपनी पति की ओर घृणा से देखते बोली।
"सॉरी... सरोज.. गलती हो गयी...मुझे माफ़ करदो ..."
नहीं.. हरगिज नहीं... यह देखो मेरे हाथ में क्या है.. तुम्हारा रासलीला का आधाघन्टे का रिकॉर्डिंग है इसमें.. इसे मैं तुम्हारे रिश्तेदारों को पर्टिक्यूलरली तुम्हारे बहनों को भेजूंगी.. साथ ही साथ तुम्हारे ऑफिस में भी... यह देख ते ही तुम्हरो नौकरी तो गयी..." वह अशोक को अपने हाथ का कैमरा दिखते बोली।
जैसे ही सरोज यह बात बोली... अशोक के पांव तले जमीन किसक गयी। उसे मालूम है उसके कंपनी में एक रूल जो है.. कोई भी औरत या मर्द किसी दूसरे से नाजायज समबन्ध नहीं बनाये। ऐसी कोई घटना सामने आयी तो वह अपने नौकरी से निकल दिए जायेगा..."
"नहीं सरोज नहीं ऐसा मत करो.. प्लीज.. यह मेरी नौकरी का सवाल है...मुझे माफ़ करदो मैं तुम्हारे पैर पकड़ता हूँ.." और वह सच में ही सरोज के पैरों पर गिरकर गिड गिडाने लगा..
"सरोज माफ़ करदे ना...." स्नेहा बोली।
"तू चुप रह साली.. सहेली कहती है और मेरे घर को उजाड़ने लगी है.. में इस वीडियो को तुम्हारे डॉक्टर के पास भी भेजूंगी और तो और तुम्हारे माँ को और तुम्हारी बहन पूजा को भी दिखावूंगी..." सरोज गुस्से में स्नेहा को देखता बोली।
स्नेहा सहम कर रह गयी।
"प्लीज सरोज माफ़ करदे..." गलती हो गयी... सच मनो आज पहली बार ऐसा हुआ है... पहली गलती समझ कर माफ़ करदो। ..
"सरोज बहुत देर तक कुछ बोली नहीं। दोनों स्नेहा और अशोक दिल थामे सरोज को ही देख रहे थे। अशोक का चेहरा सफ़ेद पड गया।
"ठीक है... लेकिन एक शर्त पर..." वह अपने पति अशोक को देख कर बोली।
"प्लीज सरोज.. मुझे हर शर्त मंजूर है..."
"देखो तुम मुझे; मै कहीं भी जावूं तो टोकोगे नहीं.. मुझे पर शक नहीं करोगे... मैं कहीं भी जावू 'कहां जारही हो..,जाना जरूरी है क्या.. क्या किसीके पास सोने जा रही हो काया...? ऐसे सवाल मुझसे नहीं पूछोगे.. वैसे मुझे तुम्हे धोका देनेका कोई इरादा नहीं है... यह बात स्पष्ट समझ लो... आगर यह सब मंजूर है तो मैं तुम्हे मफ करदूंगी..."
"मुझे तुम्हारी हर शर्त मंजूर है.. प्लीज.. मुझसे रूठो मत...." वह कहा और एक बार फिर निर्लज्ज होकर सरोज के पैरों पर गिरा..."
ठीक है.. कर दिया माफ़.. लेकिन मुगालता में नहीं रहना; यह वीडियो मैं बहतु सम्भला के रखूंगी.. जैसे ही तुमने मेरे शर्तों को मानने से मुकरोगा यह विडियो अबकी बार पुलिस को भी पहुंचेगी...अब जाओ.. मुझे स्नेहा से कुछ हिसाब ठीक करने का है ..." वह तीव्रता से बोली।
अशोक मुहं लटकाते बाहर निकल गया।
-x-x-x-x-
अशोक जैसे ही बहार गया और आँखों के सामने से ओझल हो गया सरोज स्नेहा से लिपट गयी और बोली "थैंक्स स्नेहा तुमने तो अपनी दोस्ती निभायी.. एक बार फिर थैंक्स..." वह स्नेहा गलों को जोर से चूमली।
"अरे सरोज छोड़ने यह बात.. तुमने मुझसे एक सहायता पोची और तुम मेरी अच्छी सहेली हो... एक सहेली होने के नाते मैं अपना धर्म निभ्या..." चलो अब बोलो तुम खुश हो..."
"हाँ... स्नेहा बहुत.. अब अशोक मुझे हर बात पर टोकने की कोशिश नहीं करेगा... और दूसरा उसका तम्हारे पर जो दिल tha वह भी पूरी होगई... अब वह नकरे नहीं करेगा..." सरोज बोली।
फिर दोनों सहेलियां इधर उधर की बातें करते रहे। "अच्छा स्नेहा... एक बात बता.. अशोक के साथ कैसा रहा...?"
"सरोज एक बात बता जब अशोक तुम्हे लेता है तो तुम्हे कैसा लगता...?" स्नेहा अपनी सहेली से पूछी।
"सच कहूँ तो मुझे अच्छा ही लगता है.. बस उसे मेरी बार बार टोकने की बात ही अच्छी नहीं लगती..." वह टोकता है.. लेकिन दिल का अच्छा है...." सरोज सोचते बोली।
"में भी वही सोची..." अशोक है तो अच्छा ही... अब टोकने की बात है तो वह हर मर्द की फितरत है.. छोड़ो वह बात.. सच पूछो तो मुझे भी अशोक के साथ मजा ही आया.. हाँ उसका गंगाराम अंकल के सामने बहुत छोटा और पतला है.. में मानती हूँ.. लेकिन अशोक... चाटने में और बुर को खाने में माहिर है..." स्नेहा कुछ देर पहले अशोक के साथ हुयी चुदाई को याद करते बोली।
"तू खुश है उस से...?" सरोज पूछी।
"यस..."
उसके बाद दोनों सहेलियां बहुत देर तक अपने आप में गप्पे मरते रहे और और जल्दी ही ोहिर मिलने का कहकर विदा हो गए..."
तप दोस्तों यह थी स्नेहा अपनी सहेली को हेल्प करने का अंदाज.. यह एपिसोड आपको कैसे लगी.. कमेंट करना न भूले। गंगाराम और स्नेह कि एक और एपिसोड के साथ फिर मिलेंगे। जिसमे गंगाराम सरोज के साथ क्या क्या किया उसका विवरण होगा।
तब तक केलिए स्वीटसुधा को इजाजत दीजिये।
Good Bye
-x-x-x-x-x-
ये कहानी काफी हद तक मेरी अपनी ज़िंदगी से मिलती । मेरी एक सहेली मेरी जान के पीछे के कैसे भी उसके पति से चुदवाऊँ । उनका हमारे घर भी आना जाना था और मौका देख के मेरी boobs खूब दबाता था और मेरी सहेली बस हँसती थी के जीजा साली का रिश्ता ही ऐसा । मेरे parents कोअंदाज़ा नहीं था के वो मुझे चोदने के फ़िराक़ में। मेरी सहेली कहती के क्यूँ इतना ना नुकूर करती उससे चुदवा लो तो भी क्या। और मैंने चुदवा भी लिया। मज़ा भी आया। दिक्कत तब जब मेरी शादी हुई। उसका कहना था के मौका मिलने पर मै तुमको ज़रूर चोदूँगा । मुझे डर था के मेरे पति को पता चला तो बवाल। मेरी शादी के चार साल बाद तक वो कभी कभार मौका देख के मुझे चोदता एण्ड चोदने के बाद खूब आराम से मेरे मिया से इधर उधर की बातें करता। उसके बाद जब मेरे मिया का वहाँ से transfer हुआ तब ये बंद हुआ.