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Click hereपिताजी पुलिस की नौकरी में थे और तब एक गांव में तैनात थे. थाने के बगल में ही हमारा खपरैल का क्वार्टर था। घर में संडास था लेकिन अक्सर मैं लोटा लेकर खेतों में ही जाता था।
हम दोनों भाई-बहन रात को एक साथ ही सोते थे और कुछ दिनों से दीदी मुझसे बहुत लाड़ जताने लगी थी. इतना दुलार कि रात को मेरी नींद खुल जाती थी उसकी आगोश में कस जाने से! यह तो मुझे बाद में समझ आया कि वो अपनी अन्तर्वासना से परेशान थी।
ऐसे कभी-कभी दीदी मुझे साथ लेकर खेतों में घूमने जाती थी. लेकिन एक दिन शाम को जब मैं लोटा लेकर शौच के लिए जाने लगा तो वो भी मां से पूछकर लोटा लेकर मेरे साथ निकल पड़ी।
घर के पीछे ही खेत थे और मैं ज्यादा दूर नहीं जाता था. लेकिन उस दिन दीदी मुझे गन्ने के खेतों की ओर लेकर गयी जो थोड़ी दूरी पर था।
दीदी ने कहा- लड़कियां खुले में शौच के लिए नहीं बैठतीं. और गन्ने के खेत के पास पहुंच कर मुझे शौच करने बोलकर खुद लोटा लेकर गन्ने के खेत के अंदर चली गई।
मैंने शौच से निपटकर दीदी को आवाज लगाई तो उसने मुझे मेड़ पर बैठने को कहा कि वो थोड़ी देर में बस आ ही रही है। सचमुच थोड़ी ही देर में वो तेजी से चलते हुए आ गई, हांफ रही थी और उसके पसीने छूट रहे थे।
मैंने पूछा- क्या हुआ दीदी? पसीने क्यों आ रहे हैं?
दीदी ने कहा- अरे पागल! गन्ने के बीच में हवा नहीं लगती ना इसीलिए पसीना आ गया है। मैंने मान ली उसकी बात!
हमने घर आ कर हाथ पैर धोए और लालटेन लेकर पढ़ने बैठ गये।
रात का खाना खाकर हम दोनों भाई-बहन एक ही बिस्तर पर सो गए।
उस दिन बीच रात को मेरी नींद खुली तो मैंने पाया कि मेरी पैंट खुली हुई है और मेरी नूनी को दीदी सहला रही है।
मैं अचकचा कर बैठ गया और पूछा- दीदी, क्या कर रही है? दीदी ने कहा- कुछ नहीं, आ सो जा! कहकर मुझे फिर अपने साथ लिटा लिया और मेरे चूतड़ों को पकड़ के अपने साथ सटा लिया।
उसके शरीर में सटते ही मुझे पता चल गया कि उसकी सलवार खुली हुई थी मेरी नूनी उसकी नूनी से टकरा रही है।
मेरे दोनों चूतड़ों को पकड़ कर दीदी ने मुझे अपने उपर खींच लिया और मुझे ऊपर नीचे हिलाने लगी।
दीदी के सहलाने से मेरी नूनी में तनाव तो था ही, वो तनाव दीदी की नूनी से रगड़ने के कारण और भी बढ़ गया था।
तब दीदी ने पूछा- कैसा लग रहा है भाई? मैंने कहा- मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा, मुझे सोने दो। "ठीक है, चल दूद्दू पीकर सो जा!" दीदी बोली और अपनी कमीज ऊपर करके अपनी चूची मेरे मुंह में सटा दी।
मैंने मां का दूध पिया था तो बस वैसे ही दीदी की चूची को चूसने लगा। फिर दीदी ने मेरा हाथ अपनी दूसरी चूची पर रखा और उसे मसलवाने लगी।
थोड़ी देर बाद मेरे मुंह में दूसरी चूची डाल दी और पहले को मसलवाने लगी। मैं भी मज़े से दीदी की चूचियों को बारी-बारी से चूसने लगा और मसलने लगा।
अब दीदी ने अपना एक हाथ मेरे चूतड़ों पर रखा हुआ था और दूसरे हाथ से मेरी नूनी को सहला रही थी।
सचमुच अब मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था और जब दीदी ने दुबारा पूछा- अब कैसा लग रहा है भाई? तब मैंने ज़बाब देने की बजाय उसकी चूची को थोड़ा जोर से मसल दिया।
तब दीदी ने अपने पैरों को फैला लिया और मुझे अपने ऊपर इस तरह लिटा लिया कि मेरी नूनी दीदी की नूनी के ऊपर टकरा रही थी। मेरी नूनी पूरे तनाव में थी।
दीदी बोली- भाई, मेरी नूनी में अपनी नूनी डाल दे। और मेरी नूनी को पकड़ कर अपनी नूनी में डाल लिया।
मुझे अचानक अपनी नूनी गर्म लगने लगी और अच्छा भी महसूस होने लगा।
दीदी ने मेरे दोनों चूतड़ों को पकड़ कर थोड़ी देर हिलाया जिससे मेरी नूनी दीदी की नूनी के अंदर बाहर होती रही। फिर दीदी ने अपने दोनों हाथों में मेरा चेहरा पकड़ कर मेरे गाल पर कसकर चूम लिया और हांफने लगी।
मेरी नूनी गीली हो गई थी। दीदी ने अपनी सलवार से मेरी नूनी पोंछ दी और पैंट पहनने को कहा। फिर मुझे अपनी बाहों में भर लिया और किसी को भी ये बताने के लिए मना किया।
अगली सुबह जब नींद खुली तो देखा दीदी सामने ही बैठी थी और मुझे बड़े प्यार से निहार रही थी।
मैं भी उठकर सीधे उसके गोद में सर रखकर लेट गया और आंखें बंद कर ली। लग रहा था जैसे रात को जो भी हुआ था, एक सपना था।
मां की आवाज़ ने आंख खोल दी- आज स्कूल नहीं जाएगा क्या? प्रभा, इसे तैयार कर दे और खुद भी तैयार हो जा।
प्रभा मेरी दीदी का नाम है।
दीदी ने मुझे तुरंत उठा दिया और मां से बोली- मैं बाबू को शौच करवा के लाती हूं, उधर से ही दातुन करते आएंगे और नहाकर तैयार हो जाएंगे। मां बोली- जल्दी जल्दी करो, मैं नाश्ता और टिफिन तैयार करती हूं।
दीदी और मैं लोटा लेकर फिर वहीं गन्ने के खेत के पास गये।
कल रात में दीदी के साथ नूनी नूनी खेलकर मैंने स्त्री-पुरूष संबंध की प्रथम जानकारी पा ली थी. और सुबह सुबह दोनों भाई बहन फिर लोटा लेकर गन्ने के खेत पर थे।
दीदी ने मुझे गन्ने के किनारे पर ही शौच करने को कहा और खुद खेत के अंदर चली गई।
मैं शौच के लिए बैठा ही था कि अंदर खेत में गन्ने की डंडों के टूटने जैसी आवाज आई।
मैंने जोर से कहा- दीदी, गन्ना मत तोड़ो ... खेत वाला आ जाएगा। अंदर से दीदी की आवाज़ आई- तू देखता रह, कोई आएगा तो बताना! मैं शौच पर बैठे बैठे इधर उधर देखता रहा।
थोड़ी देर बाद दीदी के रोने की धीमी आवाज आई और वो बोल रही थी- छोड़ दो ... छोड़ दो ... निकाल लो ... निकाल लो ... मैं मर जाऊंगी। मैं घबरा गया, अपनी पैंट पकड़े पकड़े खेत के अंदर चला गया।
अंदर जाने के बाद मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा. दीदी के ऊपर एक काला लड़का अपनी बड़ी सी नूनी दीदी की खून से सनी नूनी से सटाये हुए था। मेरी दीदी रो रही थी और वो काला लड़का दीदी की नंगी चूचियों को दोनों हाथों से मसल रहा था।
मैंने उस लड़के को उसके बालों से पकड़ लिया और पीछे अपनी तरफ खींच लिया. जब मैंने उसका चेहरा देखा तो दंग रह गया. यह तो दीदी का सहपाठी उमेश था और कभी कभी क़िताब कापी देने लेने हमारे घर भी आता था; मुझे चाकलेट, खिलौने भी खूब देते रहता था।
"ये क्या कर दिया उमेश तूने दीदी की नूनी को!" मैं चिल्ला पड़ा. उमेश ने मेरा मुंह अपनी हथेली से बंद कर दिया और हंसते हुए बोला- अरे साले, ये नूनी नहीं चूत है तेरी दीदी की और तेरी दीदी ने ही मुझे इस खेत में बुलाया था चूत चुदवाने के लिए मेरे लंड से! देखो ये मेरा लंड है, जब नूनी बड़ी हो जाती है तो लंड या लौड़ा हो जाता है। उमेश ने अपने लंड को दिखाते हुए मुझे समझाया।
दीदी के फैले पैरों के नीचे से उमेश के पैर दीदी के कंधों को छू रहे थे. अपनी चूत से बहते हुए खून को दीदी ने हाथ से पौंछ दिया और अब उसकी दोनों हथेलियों पर खून लगा था. दीदी की आंखों में आंसू थे.
तब दीदी ने कहा- मैं चोदने बोली थी कि फाड़ने को? इतना बड़ा लंड है तेरा! जानती तो नहीं चुदाती तेरे लंड से उमेश! उमेश बोला- पहली चुदाई में तो खून निकलता ही है, फिर मज़ा ही मज़ा।
दीदी लोटे की तरफ इशारा करती मुझसे बोली- बाबू, गांड तो धो ले और मेरे हाथ धुला दे. कुछ नहीं हुआ है मुझे, आ तू भी खेल ले! उमेश का लंड बहुत बड़ा है, इसने मेरी चूत फाड़ दी आज! अब चूत फट गई तो चुदवाने दे मुझे! तुम भी चोद लेना ... लेकिन देर होने पर मां बोलेगी, तुम रात को चोदना।
मैंने दीदी के लोटे से गांड धोई, पैंट पहनी और उन दोनों को खेत में चुदाई करते देखने लगा।
उमेश अपना लंड दीदी की चूत में धीरे धीरे अंदर बाहर कर रहा था. दीदी ने दोनों हाथों से उमेश की गर्दन पकड़ ली थी. उमेश के दोनों हाथों में दीदी की चूचियां थी जिन्हें कभी कभी उमेश चूस लेता था, कभी रुककर दीदी के होठों को चूसने लगता था.
दीदी भी अपनी गर्दन ऊपर कर उमेश के गाल पर, होंठ पर खूब चूस रही थी।
तब दीदी ने हाथ के इशारे से मुझे पास बुलाया और उमेश से बोली- देखो मेरा बाबू कितना अच्छा है, मुझे तेरे लंड से चुदाने को अपने साथ लेकर आया। इसे हम हमेशा साथ रखेंगे।
मैं उनके बिल्कुल पास चला गया, दीदी अब अपनी गांड उठा उठा कर उमेश के लंड को अपनी चूत में पूरा अन्दर ले रही थी। दीदी ने अब मेरा हाथ पकड़ रखा था और उमेश से बोली- जल्दी करो, देर हो रही है। मां समझ गई तो फिर दिक्कत हो जाएगी। शाम को देर तक चोद लेना लेकिन अंधेरे के पहले ही। आह आह, ऊंह ऊंह, और जोर से करो ना ... मज़ा आ रहा है।
उमेश जल्दी जल्दी अपने लंड को दीदी की चूत में पूरा जड़ तक पेलने लगा और मुझे दीदी की चूची पकड़ा दी। दीदी ने मेरा मुंह अपनी चूची से सटा दिया, मैं चूची चूसने लगा.
उमेश मेरे चूतड़ों को पैंट के उपर से ही मसलने लगा और बोला- शाम में बाबू ही चुदाई करवा देगा प्रभा, इसके साथ ही आना। इसके लिये गुड़ का रावा लाऊंगा कल घर पर! मुझे रावा बहुत पसंद था, मैं चूची छोड़ कर बोला- मुझे रावा ढेर सारा देना. और अब जाने दो हमें, मां डांटेगी।
"हो गया बाबू, देखो!" कहकर उमेश ने अपना लंड दीदी की चूत से निकाला और दीदी की चूत के ऊपर अपने लंड से उजला गाढ़ा पानी निकालने लगा।
दीदी बोली- बाबू, अपना लोटा ला ... उमेश ने गंदा कर दिया. और देर हो रही हैं।
मैं तेजी से खेत के बाहर आया, अपने लोटे का पानी लेकर लौटा तो देखा दीदी उमेश के लंड को चाट चाट कर साफ़ कर रही थी और उमेश खड़ा था।
दीदी ने अपने हाथ धोए, अपनी चूत को धोया फिर अपना चेहरा भीगे हाथ से पौंछ लिया। वो पूरी नंगी थी, उसने ब्रा पहनी और उमेश से हुक लगवाया, सलवार पहनी, फ्राक पहनी फिर बोली- उमेश, आज और नहीं चुदा सकती, बहुत जलन हो रही है।
"ठीक है, आना तो बाबू के साथ ... चूत नहीं चोदूंगा, पहले की तरह सिर्फ गांड में रगड़ने देना. बाबू भी ये काम कर सकता है।" "हां, बाबू की गांड भी रगड़ सकते हो!" बोलकर दीदी हंसने लगी.
उमेश ने फिर दीदी को अपनी बाहों में ले लिया और दीदी के होठों को चूमने लगा। जब छोड़ दिया तब मैं और दीदी अपना अपना लोटा पकड़कर घर चल दिए।
रास्ते में दीदी थोड़ा-सा लंगड़ा कर चल रही थी। मैंने दीदी से पूछा- दीदी, चूत फटने से लंगड़ा रही हो ना? क्या जरूरत थी उमेश से चुदाने की?
"बहुत मजा आया बाबू, शाम को फिर आया जाएगा। मां पूछेगी तो बोलना कि मैं मेड़ से फिसल गई थी। मैं भी यही कहूंगी। आज तो तुमने सब कुछ साथ में कर लिया, शाम को तेरी नूनी ही घुसाऊंगी। किसी को कुछ बताना नहीं, नहीं तो दोनों को मार पड़ेगी।"
"मैं किसी को कुछ नहीं बताऊंगा लेकिन तुम पढ़ाने में मारोगी तो मां को बता दूंगा।" मैंने अपनी पहली शर्त दीदी को बताई। "नहीं मारूंगी रे, और तुझे अपनी चूची पीने दूंगी और चूत भी चोदने दूंगी। तुमसे हमेशा प्यार करती रहूंगी।" दीदी मेरे सर पर अपनी हथेली से सहलाते हुए बोली।
हम घर में आए तो आंगन में चूल्हे पर पतीले में पानी गर्म हो रहा था और मां चूल्हे के पास नहीं थी।
दीदी ने चिल्ला कर मां से पूछा- मम्मी, चूल्हे पर से पानी ले लूं नहाने के लिए? "तुम दोनों का पानी रखा है बाथरूम में, जल्दी नहाओ दोनों! स्कूल जाना है ना! चूल्हे पर तो तुम्हारे पापा का पानी रखा है। मां ने कमरे के अंदर से कहा.
और माँ पापा को उठाने लगी- उठिए न जी, साढ़े आठ बजने वाले हैं। दोनों नहाने जा रहे हैं, आप भी नहा लीजिए। दोनों को स्कूल छोड़ दीजिएगा। प्रभा का स्कूल दूर है, बाबू का भी दूर ही है ... डर लगा रहता है। आज शनिवार को तो दोपहर में ही छुट्टी हो जाएगी, उधर से प्रभा बाबू को लेकर आ जाएगी।
पापा बोले- आज दोनों पैदल चले जाएंगे, मुझे कहीं जरूरी जाना है, देर हो जायेगी। थोड़ा-सा बदन दबाओ, फिर उठ कर तैयार हो जाएंगे।
हम दोनों भाई-बहन एक दूसरे को देखते हुए मुस्कुराने लगे क्योंकि पापा का बदन दबाने में मां ही कराहती थी। पापा हम दोनों को भगाकर बदन दबवाते थे।
एक बार मां से पूछा था मैंने- मम्मी, तुम ही बदन दबाती हो और तुम ही चिल्लाती हो। ऐसा तो मेरी मालिश करने से नहीं होता! तब मां ने कहा था- तेरे पापा को बहुत जोर से दबाना पड़ता है इसलिए दम लगाना पड़ता है तो आवाज निकल जाती है। मैंने मान लिया था.
लेकिन आज तो मैं खेत से प्रकांड विद्वान बनकर लौटा था तो हंसी आ गई। मैं आज जान गया था कि पापा अपने लंड से मम्मी की चूत चोदते हैं तभी मम्मी कराहती है जैसे प्रभा दीदी आज गन्ने के खेत में कराह रही थी। और दीदी तो जानती थी, आज मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी कि अब बाबू भी समझ गया है।
दोनों भाई-बहन बाथरूम में आ गए और अपने अपने कपड़े उतार दिए। आज दीदी ने भी अपने सारे कपड़े उतार दिए थे, कल तक पहले मुझे नहला कर भगा देती थी। दीदी आज एकदम नंगी हो गई थी।
मुझे सिर्फ पानी से नहलाया और ख़ुद साबुन से अपने को खूब रगड़ कर नहाई।
हम दोनों नहाकर नंगे ही निकले, मम्मी के कराहने की आवाज़ आ रही थी। दीदी ने अपने होंठों पर उंगली रखकर चुप रहने को कहा और पैर दबाकर अपने कमरे की तरफ चलने लगी।
आंगन पार करने के बाद दीदी नंगी ही झुक कर चलने लगी और पापा मम्मी के रूम की खिड़की बरामदे से पार कर गयी।
हालांकि खिड़की बंद थी लेकिन थोड़ी सी झिर्री थी और मुझे दिखाई पड़ गया कि पापा मम्मी की साड़ी उतारे बिना ठीक वैसे ही चोद रहे थे जैसे उमेश दीदी को चोद रहा था। मैं देखने के बाद तुरंत दौड़ पड़ा और दीदी के पास रूम में पहुंच गया।
दीदी ने अपनी सलवार उठा ली थी पहनने के लिए, मुस्कुराते हुए बोली- देखा क्या? मैंने अपनी मुंडी सहमति में हिलाई और अपने कपड़े पहनने लगा।
हम दोनों भाई-बहन एक ही रूम में रहते थे, पापा मम्मी का एक कमरा था और एक कमरा घर से बाहर जाने के बीच था जिसमें दो दरवाजे थे - एक बाहर का दरवाजा और एक बरामदे का। छोटा-सा आंगन और आंगन के दूसरे तरफ संडास और बाथरूम था.
मम्मी बरामदे में या आंगन में खाना बनाती थी, कोयले का चूल्हा था जिसे उठाकर इधर उधर ले जाया जा सकता था।
हम दोनों भाई-बहन स्कूल ड्रेस पहन चुके थे, दीदी मेरे बाल बना रही थी.
तभी मम्मी एक ही थाली में दोनों के लिए रोटी सब्जी ले आई। हम खाने लगे.
तभी पापा भी आ गये ब्रश करते करते और दीदी से बोले- बाबू को स्कूल छोड़ देना और लेते भी आना। मैं आज जरूरी काम से जा रहा हूं, कल शाम को लौटूंगा. बाबू को पढ़ाना और मम्मी का भी कुछ काम करना।
नाश्ता करने के बाद दोनों भाई-बहन स्कूल के लिये चल पड़े।
रास्ते में दीदी ने हंसते हुए पूछा- बाबू समझ गया ना मम्मी क्यों कराहती है? और मेरे कंधे पर हाथ रखकर चलने लगी।
मैं भी हंस पड़ा और पूछा- तुमको तो सब पता रहता है, कहां से इतना जान गई तुम? उमेश ने सिखाया तुमको ना? "नहीं रे, मम्मी को चुदवाते देखकर ही सीखी हूं। वो मूंछों वाले सिपाही अंकल भी मम्मी को चोदते हैं। देखना आज रात को वो जरूर आएंगे।" दीदी ने बताया।
मुझे भी लगा कि दीदी ठीक ही बोल रही है क्योंकि वो मूंछों वाला सिपाही पापा के नहीं रहने पर रात में बाहर वाले रूम में ही होता था। ऐसे भी हमारे घर के काम में मम्मी की मदद करता रहता था, सब्जी और दूध भी वही लाता था।
मैंने पूछा दीदी से- तुमने देखा है क्या? पापा जानते हैं क्या? "नहीं रे, चुदाई की बात दूसरे को थोड़ी बताई जाती है. पापा कैसे जानेंगे? मैंने बहुत बार देखा है मम्मी को चुदवाते, पापा के साथ और अंकल के साथ। अपने रूम के बीच वाले दरवाजे में छेद है जिससे मम्मी का बिस्तर बिल्कुल साफ नजर आता है." कह कर दीदी मुस्कुराने लगी।
हम दोनों भाई-बहन के रूम और पापा मम्मी के रूम के बीच एक दरवाजा था जो हमेशा बंद ही रहता था।
"आज तुझे दिखाऊंगी ... लेकिन रात में जागेगा तब ना, लेकिन किसी को बताना मत!" दीदी बोली.
तभी आगे उमेश दिखाई दिया, वो भी स्कूल ही जा रहा था। हम उसके नज़दीक पहुंचे तो वो हमारे साथ ही चलने लगा।
उमेश ने हम दोनों भाई-बहन को चाकलेट दी और मेरा हाथ पकड़ कर चलने लगा।
वो दीदी को बोला- प्रभा, छोड़ ना आज स्कूल, चल नदी किनारे चलते हैं वहीं पर - बाबू को भी ले चलते हैं। छुट्टी के समय घर लौट जायेंगे। "तुम न किसी दिन मार खिलाओगे मुझे, किसी ने देख लिया तो पापा मुझे मार ही डालेंगे। नदी पर नहीं, छुट्टी के बाद गन्ने के खेत में ही ठीक रहेगा।" दीदी बोली.
उमेश थोड़ा-सा बिगड़ते हुए बोला- कितनी बार तो गई हो, किसी को पता चला क्या? चलो न, पानी में कितना मज़ा आता है। कोई देखेगा तो समझेगा कि हम नहा रहे हैं। और आज तो बाबू भी रहेगा, देखता रहेगा आने वाले को! मैं समझ गया कि ये दोनों बहुत बार नदी में मिले हैं स्कूल से भाग कर!
उमेश ने मुझसे पूछा- बाबू चलेगा न नदी नहाने, बहुत मजा आएगा। मैंने दीदी की ओर देखा तो उसने आंखें बंद करके अपना सर ऊपर की ओर हिलाया और कहा- चलो।
बस हम बिल्कुल धीरे धीरे चलने लगे।
उमेश बोला- जब सड़क पर सभी स्कूली लड़के पार हो जाएंगे तब हम नदी की तरफ जायेंगे। ऐसा ही किया हमने!
सड़क जब सुनसान जैसी हो गई तो हम नदी की तरफ चल दिए, नदी सड़क से थोड़ी दूर थी।
जब नदी के पास पहुंचे तो देखा नदी का किनारा बहुत ऊंचा था और नदी में पानी बहुत नीचे था, नदी में उतर जाने के बाद दूर से भी कोई हमें नहीं देख पाता।
हम नीचे उतर कर नदी किनारे बैठ गये।
उमेश ने दीदी की चूची कपड़े के ऊपर से ही दबाना शुरू कर दिया और दीदी के होंठों को चूसने लगा। दीदी भी उमेश के होंठ चूस रही थी।
जब दोनों के होंठ हटे तब दीदी बोली- आज मुझे मत चोदो, सुबह इतनी जोर से चोदा कि अभी तक अंदर जलन है। मेरी सील तोड़ दी तुमने जानवर बन कर! "तुम्हीं ने तो कहा था चूत चोदने को ... और पहली बार ऐसा होता ही है, मैंने तो पहले ही कहा था। अभी बस तेरी गांड में लंड रगड़ लूंगा, कपड़े तो उतार!" उमेश बोला.
"नहीं, आज बाबू की गांड में ही रगड़ दो. मैं लंड को चिकना कर देती हूं।" ऐसा बोलकर दीदी ने मुझे पैंट खोलने को कहा और खुद उमेश की पैंट खोलने लगी।
उमेश की पैंट खुलते ही उसका लंड उछल कर सीधा खडा हो गया और दीदी ने उसके लंड को हाथ में पकड़ लिया, फिर अपने जीभ से लंड को चाटने लगी।
मैंने अपनी पैंट खोल कर एक तरफ़ रख दी. तब उमेश ने मुझे इशारे से अपने पास बुलाया और मेरे छोटे लंड को सहलाने लगा। दीदी अब उमेश के आधे लंड को अपने मुंह में घुसा कर अन्दर बाहर करने लगी थी।
उमेश मेरी नूनी सहला रहा था और बीच-बीच में मेरे चूतड़ों को भी धीरे धीरे दबा रहा था।
उमेश ने अपने लंड को दीदी के मुंह से निकाल लिया और मेरे मुंह के पास ले आया। मैंने उमेश की तरफ देखा तो वो बोला- अरे साले, चाट न अपने जीजा का लंड, तेरी दीदी चाटती है तू भी चाट!
तब मैंने एक बार अपनी जीभ से उसके लंड को चाटा तो दीदी के थूक से मेरी जीभ लसलसा गई जो उस पर लगी थी। नाक में उमेश के लंड की एक अजीब सी गंध आई जो मुझे अच्छी लगी तो मैं आंख बंद कर उमेश के लंड को सूंघने लगा।
उमेश हंसने लगा और बोला- बाबू आ, थोड़ा-सा रगड़ने दे गांड में, तेरी दीदी आज नहीं चुदाएगी उसके बदले तू ही गांड मरा ले।
वह घास पर लेट गया, मुझे भी लिटा लिया और दीदी को भी मेरे साथ लेट जाने बोला।
अब हम तीनों घास पर लेटे थे, मैं बीच में था, एक तरफ़ दीदी और एक तरफ़ उमेश।
मेरी पैंट तो खुली ही थी, उमेश ने भी लेटे लेटे अपनी पैंट खोल दी और दीदी की चूची पकड़ कर बोला- कपड़े तो खोल दे रानी, तेरी चूची दबाते हुए बाबू की गांड मारने में मज़ा आएगा।
दीदी उठकर अपनी समीज खोल दी और ब्रा से चूची बाहर कर फिर मेरे साथ लेट गई।
तब दीदी ने मेरा चेहरा अपनी तरफ कर लिया और मेरे मुंह में अपनी एक चूची लगा दी. मैं तुरंत दीदी की चूची मुंह में लेकर चूसने लगा। दीदी की दूसरी चूची को उमेश चूसने लगा और उमेश का लंड मेरे चूतड़ों के बीच रगड़ खाने लगा।
थोड़ी देर के बाद उमेश ने अपने मुंह से ढेर सारा थूक निकाला और मेरे चूतड़ों के बीच हाथ से लगा दिया।
अब दीदी को उमेश ने छोड़ दिया था और मेरे कंधे के नीचे हाथ घुसा कर मेरी छाती पर दबाव देकर अपनी तरफ खींच लिया। मेरे चूतड़ों के बीच उसका लंड थूक में लिपट कर रगड़ खा रहा था.
मैं दीदी की चूची चूसते हुए दीदी की आंखों में देख रहा था, दीदी कभी मुझे देख रही थी कभी उमेश को!
दीदी मेरे सिर को सहला रही थी।
उमेश अब एक हाथ से दीदी की चूची मसल रहा था और मेरे चूतड़ों के बीच अपना लंड रगड़ रहा था। फिर दीदी की चूची से हाथ हटा कर उमेश ने एक बार और मेरे चूतड़ों में थूक लगाया।
अब उमेश अपने लंड को हाथ से पकड़ कर मेरे चूतड़ों में रगड़ने लगा, बीच बीच में मेरी गांड के छेद पर अपने लंड की नोक से ठोकर मारता था, फिर दीदी के होठों को चूसने लगता था। ऐसे ही चल रहा था.
तभी उमेश बोला- बाबू की गांड के अंदर डाल दूं क्या? मज़ा नहीं आ रहा। दीदी बोली- नहीं नहीं, बाबू की गांड बहुत छोटी है, अपना लंड नहीं देखते कितना बड़ा है! "बहुत धीरे धीरे डालूंगा, बाबू को पता भी नहीं चलेगा। तुम चुपचाप देखो।" उमेश बोला.
"लगता है तुम बाबू की गांड भी फाड़ दोगे!" दीदी की आवाज़ में चिन्ता थी। "कुछ नहीं होगा, बाबू थोड़ा-सा दर्द होगा, बर्दाश्त कर लेना! मैं एकदम धीरे धीरे गांड में लंड पेलूंगा।"
इतना बोलकर उमेश ने फिर मेरी गांड में थूक लगाया और अपनी उंगली धीरे धीरे मेरी गांड में घुसा दी। कुछ देर उंगली मेरी गांड में डालता रहा निकालता रहा।
फिर वो दीदी को बोला- जरा सा लंड चूस ले रानी, तब तक बाबू की गांड लंड खाने लायक हो जाएगी। दीदी उमेश का लंड चूसने लगी और उमेश फिर मेरी गांड में थूक लगा कर उंगली डालने लगा।
मुझे शुरू में हल्का सा दर्द हुआ था जब उंगली घुसी थी, अब पता नहीं चल रहा था।
फिर उमेश ने धीरे धीरे दो उंगलियां मेरी गांड में घुसा दीं और गोल गोल घुमाने लगा। अब थोड़ा सा दर्द हो रहा था मुझे, मैं बोला- दीदी को ही चोद लो, मुझे दर्द हो रहा है।
दीदी तुरंत उमेश का लंड चूसना छोड़ उसका हाथ पकड़ कर मेरी गांड को मुक्त कराई और बोली- चुदवाने का मन तो मेरा भी हो रहा है लेकिन बाबू से चुदवाऊंगी। तुम हटो, मेरी गांड फाड़ दी चूत भी फाड़ दी, अब बाबू की गांड फाड़ने नहीं दूंगी। तुम देखो बैठकर!
तभी दीदी सलवार खोल दी और मुझे अपनी चूत दिखा कर बोली- आ बाबू, चूत चोद मेरी! इतने देर तक के खेल में मेरी नूनी पूरी तनाव में थी.
जैसे ही मैं दीदी के फैले पैरों के बीच बैठकर अपनी नूनी चूत के ऊपर ले गया, गच से मेरी नूनी चूत में घुस गई और मुझे बड़ा आराम लगा। चूत की गर्मी मुझे नुनी पर महसूस हो रही थी।
मैं दीदी की चूची पीने लगा और चूत में नूनी डाल कर चुपचाप दीदी के ऊपर लेट गया।
तभी दीदी ने अपने हाथ में थूक दे कर मेरी गांड में लगाया और अपनी एक उंगली मेरी गांड में डालकर अंदर बाहर करने लगी. उंगली के साथ मेरी नूनी भी दीदी की चूत में हिलने लगी और मैं आंख बंद करके मजा लेने लगा, एक अजीब सी मस्ती आ रही थी।
दीदी ने पूछा- बाबू, कैसा लग रहा है? दो उंगलियां डाल दूं? "डाल दो दीदी, मज़ा आ रहा है।" मैंने आंखें बंद किये हुए ही कहा।
दीदी ने अपनी दो उंगलियों में थूक लगा कर धीरे-धीरे मेरी गांड में डाल दी और अंदर-बाहर करने लगी। पता नहीं दीदी के चूत की गर्मी का अहसास था शायद कि दीदी अब अपनी उंगलियों को गोल गोल मेरी गांड में घुमा रही थी फिर भी मुझे अच्छा लग रहा था।
थोड़ी देर बाद दीदी बोली- अब उमेश का लंड आराम से घुस सकता है। बाबू लंड लेगा गांड में? तुम मेरी चूत चोदते रहो बाबू, उमेश तेरी गांड मार लेगा।
उमेश आ गया हमारे पास, दीदी की चूची मसलकर बोला- इसीलिए तो तू मेरी जान है, कितना ख्याल रखती है सबका! तू ही थूक लगा बाबू के गांड में, मैं लंड घुसाता हूं।
दीदी ने मेरी गांड के छेद पर थूक लगा दिया और उमेश के लंड को तो थूक से पूरा गीला कर दिया।
अब उमेश ने अपना लंड हाथ से पकड़ कर मेरी गांड के छेद पर जोर डाला, लंड का अगला हिस्सा मेरी गांड में घुसा तो मैं छटपटाया. लेकिन दीदी ने मुझे चूमना शुरू कर दिया और उमेश बस सुपारा घुसा कर रूक गया।
उसने थोड़ी देर बाद सुपारा निकाल के फिर घुसा दिया. ऐसे ही करते करते उमेश ने अपना आधा लंड मेरी गांड में घुसा दिया और दीदी की चूचियों को मसलते हुए मेरी गांड में अपना लंड अन्दर बाहर करने लगा।
दीदी मेरे होंठों को चूस रही थी, मैं दीदी की चूत में नूनी घुसाए दीदी के ऊपर लेटा था और उमेश ने अपने दोनों हाथों से मुझे जकड़ रखा था हथेलियों से दीदी की चूचियां मसल रहा था।