मेरी बड़ी बहन

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तभी दीदी बोली- उमेश, जल्दी करो ना, तुम दोनों के नीचे मैं पिसती जा रही हूं। बाबू कैसा लग रहा है? ज्यादा दर्द नहीं हो रहा ना?

मैं कसमसाते हुए बोला- दर्द तो हो रहा है लेकिन अच्छा लग रहा है मेरी नूनी को। उमेश का लंड बहुत बड़ा है, इसको बोलो पूरा नहीं घुसाएगा।

उमेश बोला- आज आधे लंड से ही करूंगा, दो तीन बार और गांड मराओगे तब पूरा लंड घुसा कर मारूंगा। प्रभा, अब बाबू को छोड़ देते हैं, फिर कल और थोड़ा सा ज्यादा डालूंगा। क्या बोलती हो? दीदी बोली- हां, छोड़ दो अब बाबू को! अपना लंड अब मेरी गांड में या चूत में डाल लो लेकिन चूत में धीरे धीरे करना, सुबह से जल रही है।

"चूत चुदवाने से ही जलन खत्म होगी ना जान!" बोलते हुए उमेश ने मेरी गांड में से लंड निकाल लिया, मुझे बीच से हटा दिया और अपने लंड को फिर थूक से गीला करके दीदी की चूत में धीरे धीरे डालने लगा।

मैं दीदी की चूत के पास चेहरा करके देख रहा था. उमेश अपना पूरा लंड दीदी के चूत में घुसा दिया था लेकिन अंदर बाहर नहीं कर रहा था।

फिर मैंने उठकर दीदी को देखा तो वो उमेश की छाती को दोनों हाथों से धक्का दे रही थी और उसकी आंखें फैल गयीं थी। वो बोल रही थी- हटो हटो ... मैं बोली थी नहीं करने को! तुमको तो बस अपने मजे से मतलब है दूसरे को दर्द हो तो हो। मत करो ना ... और लंड का पानी तो अंदर बिल्कुल मत डालना नहीं तो बच्चा ठहर जाएगा।

उमेश बोला- पानी तो अंदर ही गिराऊंगा, चल पलटी हो जा ... गांड में गिराता हूं। बोलकर उमेश ने तीन चार बार दीदी की चूत में ही लंड अंदर बाहर किया फिर निकाल लिया।

उसने दीदी को पेट के बल लिटा दिया और उसकी गांड में थूक लगाया, अपने लंड पर भी थूक लगाया और मेरी तरफ देखकर बोला- देखो बाबू, जैसे प्रभा की गांड में जा रहा है ना वैसे ही तुम्हारी गांड में भी चला जाएगा। इसकी गांड में भी चार बार किया तब पूरा घुसा। अब इसको दर्द नहीं होता, चूत भी फैल जाएगी तो खूब चुदाएगी।

मैं देख रहा था, उमेश ने बड़े आराम से दीदी की गांड में अपना पूरा लंड डाल दिया और फिर नीचे हाथ घुसा कर दीदी की चूचियों को मसलने लगा।

फिर तो इतनी तेजी से अपनी कमर आगे पीछे करके दीदी की गांड मारी कि दीदी चिल्ला पड़ी- अरे साले, धीरे कर ना, मैं भाग रही हूं क्या? हमेशा ऐसे ही करता है जानवर की तरह!

"ऐसे ही मज़ा आता है रानी! और तुम थोड़ी देर के लिए तो मिलती हो तो आराम से कैसे होगा!" बोलकर उमेश ने दीदी की चूचियों को दबा कर पकड़ लिया और आंखें बन्द करके अपनी कमर बिल्कुल धीरे धीरे चलाने लगा। फिर दीदी के ऊपर ही चुपचाप लेट गया।

दीदी की भी आंखें बन्द हो गयीं थी। फिर उमेश ने अपना लंड दीदी की गांड से निकाल लिया, देसी गांड चुदाई के बाद दीदी की गांड से सफेद पानी निकल रहा था।

दीदी पलट कर फिर उमेश को अपने उपर खींच ली और बोली- समय ज्यादा मिलेगा तो आराम से चूत चोदोगे ना? उमेश दीदी की चूत में उंगली डालते हुए बोला- कम से कम तीन चार घंटे लगेंगे आराम से चोदने के लिए। कैसे होगा? "कल इतवार है, पापा बाहर गए हैं. मैं बाबू के साथ आ जाऊंगी चार घंटे के लिए ... लेकिन कहां चोदोगे? दीदी ने पूछा.

उमेश ने दीदी के गाल पर चुम्मा लिया और बोला- अपने स्कूल में ही आ जाना, कल तो कोई रहेगा नहीं। आ सकोगी स्कूल में? "स्कूल नहीं, दूर है ... और मम्मी को क्या बोलूंगी? और कहीं नहीं है जगह?" दीदी बोली.

तब उमेश सोचता हुआ बोला- गांव के किनारे मेरे दोस्त का घर है, उसके यहां अभी सिर्फ उसके पापा हैं। उसके पापा तो सुबह खाकर खेत पर चले जाते हैं। उसके यहां हो सकता है लेकिन वो भी चोदने बोलेगा तब? "उसी के यहां मिलते हैं दस बजे, चोदने बोलेगा तो बाबू भी तो रहेगा।" और दीदी हंसने लगी।

तब उमेश बोला- बाबू को उसी के यहां से गुड़ का रावा दिला देंगे ढेर सारा। कल खूब देर तक चोदूंगा धीरे धीरे! पहले बाबू चोदेगा फिर मैं चोदूंगा आज ही की तरह! बस प्रोग्राम बन गया। हमने कपड़े पहने और फिर वहीं बैठ गये।

दीदी बोली- छुट्टी की घंटी बजेगी तो आवाज आएगी यहां, तब घर जाएंगे। नहीं तो मम्मी पूछेगी तो क्या बोलेंगे?

तभी तीसरी घंटी बज गयी स्कूल में!

उमेश बोला- चल ना नहाते हैं नदी में, तब तक छुट्टी की घंटी बज जाएगी। दीदी बोली- हम लोग नहा कर आए हैं, तुम नहाओ। बाबू जाएगा तो ले जाओ।

उमेश मेरा हाथ पकड़ कर बोला- चल बाबू, आज नदी का भी मजा ले ले। मैं उठ कर खड़ा हो गया.

उमेश ने अपने सारे कपड़े खोल दिए और मुझे भी खोलने बोला। मैंने भी अपने कपड़े उतार दिए। उमेश मेरी उंगली पकड़कर नदी के अंदर ले गया। इतनी दूर ले गया कि मेरा पेट पानी में डूब गया था.

वहां मुझे डुबकी लगवाई फिर खुद भी खुद भी डुबकी लगाई। तब वो हंसते हुए बोला- प्रभा तो मेरे साथ गर्दन तक पानी में खड़े होकर गांड मराती है।

मैंने आश्चर्य से पूछा- खड़े खड़े? "हां, कल देखना, तेरी दीदी कैसे कैसे चुदाएगी। मेरे दोस्त का लंड छोटा-सा है, अगर वो तेरी गांड मारेगा तो मारने देना। तुम्हें दर्द नहीं होगा, उतना रास्ता तो बन गया है कि उसके लंड से तुम आराम से कर लोगे। आओ थोड़ा-सा और रास्ता बना दूं कि तुम्हें फिर दर्द नहीं होगा।" उमेश ने पानी में झुक कर मेरे चूतड़ों को पकड़ कर कहा।

मैंने एक बार दीदी की तरफ देखा तो वो अपने घुटनों पर ठुड्डी रखे हम दोनों को ही देख रही थी।

उमेश ने पानी के अंदर ही मेरी गांड में दो उंगलियां घुसा दी। अभी मेरी गांड तुरंत पहले मारी थी तो उमेश की उंगलियों आसानी से घुस गई और मुझे दर्द भी नहीं हुआ.

उमेश पानी में बैठ गया था और मेरे गालों पर चुम्मा ले लेकर गांड में उंगली चलाने लगा था। फिर वो मेरे हाथ पकड़ कर अपने लंड पर ले गया और लंड को आगे पीछे करने बोला। मैं करने लगा.

और वो मेरी गांड में उंगली गोल गोल घुमाने लगा।

उसका ढीला लंड मेरे हाथ में धीरे धीरे बड़ा होने लगा और मेरी मुट्ठी के बाहर होने लगा। मैं बोला- मेरी नूनी भी तुम्हारे लंड जैसा हो जाएगा तो मैं भी गांड मारूंगा ना? तेरा बहुत बड़ा है, तुम्हारे दोस्त का छोटा है ना?

"हां बाबू, देख लेना कल! लेकिन वो तेरी दीदी को चोदेगा जरुर, गांड तो लड़कों से मिल जाती है लेकिन लड़की की चूत मुश्किल से मिलती है। कितना मनाया तेरी दीदी को ... तीन महीने से! अब जाकर चूत दी है। अब चुदाती रहेगी लंड खोज खोज कर! चूत चुदाने में लड़कियों को भी मज़ा आता है. बस एक बार मज़ा मिलने की देर है कि फिर बिना चुदाए रह नहीं पाती। समझा? चलो अब बाहर, एक बार और गांड मारने दो!" बोलते हुए उमेश मेरा हाथ पकड़ कर नदी से निकाला और घास पर साथ में लिटा लिया।

दीदी टुकुर टुकुर हमें देख रही थी।

उमेश ने मुझे करवट करके मेरी गांड में अपना लंड सटा दिया; फिर थूक लगा कर धीरे-धीरे अपने लंड को मेरी गांड में घुसा दिया। आधा लंड तो आराम से घुस गया. उमेश उतने से ही अंदर बाहर करने लगा और थोड़ी देर बाद जोर लगा कर थोड़ा सा और घुसा दिया।

देसी गांड चुदाई में दर्द से मैं ऊपर की तरफ उचका लेकिन उमेश ने मुझे कस के पकड़ रखा था। कुछ देर तक लंड घुसाए चुपचाप लेटा रहा, फिर धीरे धीरे करने लगा।

दीदी पास में बैठी मेरा सिर सहला रही थी, बोली- छोड़ दो न उमेश, कितना मन करता है तेरा! "बस हो गया, आज बाबू की गांड भी साफ हो गई, कल पूरा लंड घुस जाएगा।" बोलते हुए उमेश ने फिर एक बार जोर से अपना लंड घुसाया.

और मुझे अपनी गांड में पिचकारी जैसे पानी गिरता महसूस हुआ। चार पांच पिचकारी के बाद उमेश ने अपना लंड निकाल लिया।

दीदी ने मेरी गांड हाथ से पौंछते हुए कहा- नदी में धो ले बाबू और कपड़े पहन कर घर चल। ये तो दिन भर करता रहेगा। इसको खाली यही सूझता है।

मैंने नदी के पानी से गांड धोई और कपड़े पहन लिए।

तभी चौथी घंटी बजी स्कूल की। दीदी बोली- चलो, मम्मी को बोल देंगे कि एक घंटी पहले ही छुट्टी हो गई।

हमने अपने-अपने बस्ते उठाए और घर चल दिए।

ये तो मेरा पहला दिन था गांड मरवाने का! और मैं समझ गया था कि दीदी ने अपनी चूत चुदाने के लिए मेरी भी गांड मरवा दी।

नदी किनारे गांड मरवा कर दोनों भाई-बहन घर पहुंचे तो बाहर का दरवाजा बंद था। ऐसा कभी कभी ही होता था कि दरवाजा बंद मिले।

दीदी हंस कर बोली- मम्मी ज़रूर चुदवा रही हैं। दरवाजा मत खटखटाइओ ... फिर देखना अंकल निकलेंगे। ‌‌ मैंने कहा- सच में! तो मत खटखटाओ। चलो यहीं दरवाजे के पास बैठ जाते हैं।

और हम दोनों भाई-बहन दरवाजे से सटकर बैठ गये।

लगभग आधा घंटे के बाद मम्मी ने दरवाजा खोला। हमें देखते ही बोली- तुम लोग आज पहले आ गये? दरवाजा क्यों नहीं खटखटाया?

दीदी बोली- आज एक घंटी पहले ही छुट्टी हो गई। तुम क्या कर रही थी? मैंने सोचा अंकल से काम करवा कर खोल ही दोगी ... तो नहीं खटखटाया।

तभी मूंछों वाले सिपाही अंकल लुंगी लपेटते हुए अंदर से आए और बोले- मैं न कहता था मालकिन कि प्रभा अब सयानी हो गई है; सब समझने लगी है। और दीदी की गाल पर सिपाही अंकल ने अपने हाथ से सहला दिया। फिर वो बाहर चले गए।

मम्मी बोली- चलो अंदर दोनों ... कपड़े बदलकर खाना खाओ और घर में ही खेलो, पढ़ो या थोड़ा सो जाओ। ज्यादा सयानी मत बनो।

हम दोनों भाई-बहन अंदर आ गये, कपड़े बदले.

मम्मी खिचड़ी ले आई खाने को ... तो खाकर हम दोनों बिस्तर पर सो गए।

जब मेरी नींद खुली तो बाहर बरामदे से होकर संडास में पेशाब करने जाने लगा।

मम्मी के रूम में दीदी के पैर की मालिश कर रही थी मम्मी!

मैं बोला- मम्मी मेरी भी मालिश कर दो, आता हूं। मम्मी बोली- तुम रात को कराना, तेरी दीदी मेड़ पर फिसल गई थी तुमने बताया नहीं?

मैं पेशाब कर के मम्मी के पास ही चला गया। मम्मी दीदी के पैर में तेल लगा कर मालिश कर रही थी और पूछ रही थी- कहां दर्द है?

मैं मुस्कुरा कर दीदी को छेड़ने लगा- दीदी बताती क्यों नहीं, कहां दर्द है? दीदी ने मुझे अपनी तरफ खींच लिया और हंसती हुई बोली- तुमको तो मालूम ही है कि कहां दर्द है, तेरे सामने ही तो सब हुआ। मेरा पैर नहीं फिसला था मेड़ पर?

"फिसली तो थी दीदी ... अभी भी दर्द है?" मैंने गवाही दे दी। मम्मी को क्या पता कि दीदी फिसल गई थी चुदवाने में और दर्द उसकी बुर के अंदर था।

आज दिन भर में मैं लन्ड, बुर और गांड के मजे का विद्वान बन गया था और हम दोनों भाई-बहन सोए ही इसलिए कि रात को जाग कर मम्मी की चुदाई देख सकें।

मैंने मम्मी से कहा- आज खाना जल्दी बना लो और मेरी मालिश कर दो। मम्मी बोली- आज सिपाही अंकल लिट्टी बनाएंगे और यहीं सोएंगे। पापा उनको बोलकर जाते हैं। तुम्हारी मालिश भी अभी कर देती हूं। जल्दी पढ़ाई-लिखाई कर लो तुम लोग, लिट्टी तो तुरंत बन जाएगी और गर्म लिट्टी ही खानी चाहिए।

मम्मी अब मेरे पैरों में मालिश करने लगी।

दीदी उठकर संडास चली गई. तब मम्मी पूछने लगी- तुम लोग आज जल्दी आ गये थे स्कूल से ... दोनों की छुट्टी एक ही साथ हो गई थी क्या? मैं चुप रहा, सोचने लगा कि क्या बताऊं ... पता नहीं दीदी क्या बोली है।

मम्मी ने फिर पूछा- बोलते क्यों नहीं? तुम लोग कुछ छिपा तो नहीं रहे? तब मैं बोला- स्कूल तो चल ही रहा था, दीदी मुझे लेने आई तो मैं आ गया बस ... इसमें छिपाने को क्या है?

तभी दीदी आ गई और बोली- क्या मम्मी! मेरी बात का विश्वास नहीं हुआ तुमको! इसीलिए तुम पर गुस्सा आता है; हर बात को खोदती रहती हो। मम्मी बोली- अरे प्रभा, दुनिया रंग रंगीली है, आदमी को बिगाड़ने के लिए हमेशा तैयार रहती है। तू जवान होने लगी है और दुनिया को नहीं समझती।

दीदी मुंह बिचकाकर बोली- तुम तो खूब समझती हो ना? मुझे गुस्सा मत दिलाओ।

मम्मी चुप हो गई और बाहर चली गई; बरामदे में बैठकर आटा निकालने लगी रात के लिए।

मैंने दीदी से पूछा धीरे से- चलेगी खेत में? दीदी मुस्कुराते हुए बोली- कल दस बजे।

मैं कमरे से बाहर आया, लोटे में पानी भरा और चल दिया। मम्मी ने पीछे से कहा- दूर मत जाना, अंधेरा होने वाला है, जल्दी आना।

मैं जल्दी जल्दी गन्ने के खेत के पास गया तो देखा कि उमेश और एक दुबला सा लड़का मेड़ पर बैठे थे।

उमेश ने पूछा- दीदी नहीं आई? ये उसको देखने आया था। इसको विश्वास ही नहीं हो रहा कि दारोगा की लड़की मुझसे चुदाने आती है। मैं हंसते हुए दीदी की तरह बोला- कल दस बजे।

"अभी गांड देगा बाबू?" उमेश ने पूछा. "अभी तो हगने दे पहले, फिर ले लेना!" बोलकर मैं उनके सामने ही बैठ गया।

वे दोनों मेड़ पर ही अपना अपना लन्ड निकाल कर हिलाने लगे।

फिर उमेश ने उसका और उसने उमेश का लन्ड पकड़ लिया। दोनों एक-दूसरे का लन्ड हिलाने लगे।

मैंने हगने के बाद गांड धो ली और पैंट पहन ली।

उमेश ने खेत के अंदर चलने को कहा तो तीनों खेत में भीतर वहीं पर आ गए जहां दीदी ने सुबह-सुबह अपनी चूत चुदवायी थी। गन्ने को तोड़ कर वहां लेटने लायक जगह बन गई थी।

उमेश ने मेरी पैंट खोलते हुए कहा- पहले धीरज करेगा, फिर मैं ... ठीक है ना? मैंने सिर हिला कर सहमति दे दी।

मेरी पैंट खुल कर घुटनों पर रूकी थी। धीरज ने मेरी चूतड़ों को मसलना शुरू कर दिया, फिर मुझे करवट लिटाकर मेरी गांड में थूक लगाया और अपना लन्ड मेरी गांड में घुसाने लगा।

मुझे सचमुच कोई दर्द नहीं हुआ और धीरज का लन्ड पूरा जड़ तक मेरी गांड में घुस गया।

फिर धीरज तेजी से मेरी गांड मारने लगा और थोड़ा सा करने के बाद मेरी गांड में ही पिचकारी मारी थी।

धीरज के लन्ड के निकलते ही उमेश ने अपना लन्ड डाल दिया. लेकिन उमेश का लन्ड पूरा नहीं घुसा, उतना ही घुसा जितना नदी पर घुसा था।

उमेश बोला- धीरज का लन्ड तो पूरा खा लिया, मेरा कब खाएगा? बोला था ना धीरज के बारे में? मैं बोला- कल करना पूरा। अभी जल्दी पानी गिराओ और छोड़ दो। मम्मी अंधेरे से पहले आने बोली है।

"ठीक है साले, जाओ लेकिन कल पूरा लन्ड खिलाऊंगा।" बोलकर उमेश जल्दी जल्दी कमर हिलाने लगा और गांड में पिचकारी मार कर लन्ड निकाल लिया। मैंने पैंट पहनी और घर चल दिया।

पीछे से उमेश बोला- दस बजे यहीं आना, यहां से धीरज के यहां ले चलूंगा। मैंने बिना मुड़े कहा- ठीक है, दीदी को बता दूंगा।

घर आकर हाथ पैर धोए। अंधेरा होने ही वाला था, दीदी किताब लेकर बैठ गई थी. मैं भी दीदी के पास बैठ गया।

मम्मी आंगन में लिट्टी-चोखा की तैयारी कर रही थी।

दीदी ने बैठते ही पूछा- उमेश था क्या? मैंने कहा- धीरज भी था, दोनों ने गांड मारी।

दीदी सर हिलाने लगी- अच्छा धीरज! दुबला पतला? मैंने हां में सर हिलाया।

दीदी ने मेरे गले में अपना हाथ लपेट लिया और फुसफुसाते हुए पूछ- दोनों ने गांड मारी? मैंने फिर मुंडी हिलाई।

दीदी बोली- किताब लेकर तो बैठ! मत पढ़ना।

मैं मुस्कुराया, दीदी को मेरी बात याद थी चुदाई छिपाने के लिए पढ़ाना बंद। तब मैं भी किताब खोलकर बैठ गया।

फिर दीदी पूछने लगी- कैसा था धीरज का? मैंने कहा- उमेश का आधा। तुम पढ़ो, मैं मम्मी के पास जाकर आता हूं।

मैं मम्मी के पास जाकर बैठ गया। मम्मी बोली- पढ़ना नहीं है आज? मम्मी के पास क्यों आया है राजा बेटा? "आज पढ़ने का मन नहीं कर रहा मम्मी, आज अपने साथ सुलाओ न मुझे!" बोलकर मैं मम्मी की बांह पर सिर रखकर बैठ गया।

मम्मी आटे में सत्तू भर कर लिट्टी की लोई बना रही थी। मुझे बांह पर से हटा कर बोली- जा, सिपाही अंकल को बुला ला, लिट्टी वहीं अच्छा सेंक देंगे।

मैं उठ कर पहले दीदी के पास गया। दीदी तो पढ़ने की जगह अपनी चूची खुद मसल रही थी। मुझे देख कर वह बोली- आ थोड़ा-सा दबा दे ना ... फिर चले जाना।

मैंने पीछे से दीदी की कोली भर ली और दोनों हाथों से दीदी की चूचियों को मसलने लगा। थोड़ी ही देर में दीदी छोड़ देने बोली.

तब मैं बाहर निकल गया सिपाही अंकल को बुलाने! जैसे ही मैं घर से बाहर निकला, मूंछों वाले सिपाही अंकल आते दीख पड़े।

मैंने कहा- चलिए अंकल, मम्मी बुला रही है। "चलो चलो ... अभी तो शाम हुई है. खाने का भी समय होगा तब न! आपकी मम्मी को भी पता नहीं क्या हो जाता है साहब के नहीं रहने पर!" अंकल बोले. "आज जल्दी खा कर सोना है सबको ना ... इसीलिए।" मैंने ज्ञान बघारा. "क्यों?" "दीदी के पैर में दर्द है तो वो सोएगी, पढ़ाएगी नहीं तो मैं भी सो जाऊंगा। फिर मम्मी अकेले क्यों जागेगी!"

अंकल बोले- दीदी के पैर की मैं मालिश कर दूंगा ना तो दर्द भाग जाएगा। तेरी मम्मी भी तो मुझसे कराती है मालिश! चलो पहले लिट्टी सेंक लिया जाए।

हम आ गए आंगन में मम्मी के पास। अंकल को देखते ही मम्मी बोली- कहां रह जाते हो देवर जी! चलो कंडे जलाओ और लिट्टी सेंक लो, बाकी सब काम हो गया हैं। मैं थोड़ा प्रभा के पास बैठती हूं।

"बाबू बोल रहा था कि प्रभा के पैर में दर्द है, आज मालिश कर देता हूं। बड़ी हो गई है तो मालिश भी जोर लगा कर करनी पड़ेगी।" "नहीं नहीं, मैंने मालिश कर दी है।"

"आपको तो खुद ही दर्द रहता है, आप क्या मालिश करेंगी। मैं अच्छे से कर दूंगा।" "बोली न प्रभा की मालिश नहीं करोगे तुम! मेरी कर देते हो वही काफी है। साहब ने ही कहा था तुमसे कराने को ... नहीं तो वैसी कोई ज्यादा जरूरत नहीं।" मम्मी थोड़ा बिगड़ कर बोली। तब अंकल चुप हो गये।

मैं समझ गया कि अंकल दीदी को भी चोदना चाहते हैं इसीलिए मम्मी गुस्सा कर रही हैं।

लेकिन मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा कि पापा ही बोले हैं मम्मी को चुदवाने को! पता नहीं क्या बात थी।

मम्मी दीदी के पास चली गई।

थोड़ी देर बाद ही लिट्टी बन गई तो अंकल सब लेकर हमारे कमरे में ही आ गये। वहीं सब लोगों ने खाना खाया, फिर मम्मी बर्तन उठा कर धोने चली गई।

मम्मी के जाने के बाद दीदी अंकल से बोली- अंकल, मम्मी की बात सुनी मैंने, मम्मी सो जाएगी तो मालिश कर दीजिएगा मेरी मम्मी के जैसी। मैं दीदी को देखने लगा कि दीदी भी चुदवाना चाहती है अंकल से!

अंकल ने कहा- ठीक है, लेकिन बाबू बोल देगा तब? "बाबू कुछ नहीं बोलेगा। मेरा प्यारा भाई है।" दीदी हंस कर बोली।

तब अंकल ने मुझे गाल पर धीरे से सहलाया फिर दीदी के गाल को सहलाते हुए अपना हाथ नीचे ले जाकर दीदी की चूची भी सहला दी। अंकल ने मेरी तरफ मुस्कुरा कर देखा और बोला- बाबू को कल बाजार में मिठाई खिलाकर लायेंगे भी! बताना नहीं किसी को कि मैंने दीदी की मालिश की है। ठीक है न? मैंने सहमति में सिर हिला दिया। अंकल बाहर वाले कमरे में चले गए।

मम्मी बर्तन धोकर आई, हम दोनों को रजाई ओढ़ाई फिर बोली- चलो सो जाओ अब, कोई बात नहीं करेगा। मैं थोड़ा मालिश करवाऊंगी फिर सो जाऊंगी। ऐसा बोलकर रुम की लाईट बंद कर दी और दरवाजा भिड़ा कर अपने रूम में चली गई।

मम्मी ने अपने कमरे से ही कहा- देवरजी, आओ न मालिश कर दो थोड़ी। और अपना दूध ले लो चूल्हे पर से!

दीदी ने मुझे अपने दोनों हाथों के बीच भर लिया था और हम दोनों आमने-सामने करवट ले कर लेटे हुए थे रजाई के अंदर! हमारे चेहरे बिल्कुल पास पास थे।

दीदी फुसफुसाती हुई बोली- बाबू जागे रहना मम्मी को देखना है तो! देखना कितना प्यार से चोदते हैं अंकल मम्मी को! उमेश तो साला जानवर है लेकिन उसका पापा के जैसा ही तगड़ा है। मैं दीदी की चूची दबा कर फुसफुसाया- पापा का भी देखा है, पापा से भी चुदाएगी क्या? "धत् ... अपने पापा के साथ कोई नहीं करता। पागल है क्या! पापा के लिए तो मम्मी है ही और पापा अंकल की गांड भी मारते हैं। पापा, मम्मी और अंकल एक साथ ही करते हैं जैसे आज नदी पर हुआ था।" दीदी बोली.

दीदी फिर बोली- थोड़ी देर बाद चुपचाप उठना, फिर दिखाऊंगी। आज तुम्हीं देखना, मैंने बहुत बार देखा है। फिर दीदी पूछने लगी- धीरज के लंड से तो दर्द नहीं हुआ ना? आज खूब गांड मराई तूने, मालिश कर देती हूं। और धीरे धीरे मेरे चूतड़ों को पकड़ कर दबाने लगी।

मैंने बताया- धीरज का लंड तो पतला सा है, कुछ पता नहीं चला। उमेश बोल रहा था कि धीरज भी चोदेगा तुमको! दीदी मेरे गाल पर चुम्मा लेकर बोली- कल चोदेगा ना! अभी तो अंकल से चुदवाऊंगी, इनका लंड भी पतला है लेकिन लंबा है। आराम से चूत में घुस जाएगा। लंड तो उमेश का ही मज़ा देता है लेकिन जानवर की तरह करता है। उसका अलग मजा है। देख अंकल यहां आयेंगे तो तुम अपनी आंखें मत खोलना नहीं तो फिर तेरी गांड भी मारेंगे।

मैंने पूछा- अलग-अलग लंड का मजा अलग-अलग हैं न दीदी? इतने लोगों से क्यों चुदवाना? "हां रे, सबका मज़ा अलग मिलेगा। अंकल प्यार से धीरे धीरे चोदते हैं, उमेश जानवर की तरह जल्दी जल्दी चोदता है। धीरज कैसा चोदेगा?" मैं तुरंत बोला- कुत्ते की तरह! और दीदी की चूची मसलने लगा।

दीदी मुंह दबा कर हंसने लगी।

फिर दीदी सलवार का नाड़ा खोल कर मेरा हाथ अपनी चूत पर रख कर रगड़ने लगी। मैंने अपनी दो उंगलियों को दीदी की चूत में घुसा दिया और अंदर बाहर करने लगा.

दिन भर में मैंने सीख लिया था कि क्या करना है।

थोड़ी देर बाद दीदी ने अपने पैरों को इतनी जोर से कस लिया कि मेरा हाथ जैसे शिकंजे में फंसे गया था। दीदी ने मेरा हाथ छोड़ा तो मेरी हथेली पूरी तरह गीली हो गई थी, मैंने दीदी की सलवार में ही हथेली पौंछ दी।

तब दीदी ने नाड़ा बांधा और रजाई हटाई धीरे से, मुझे हाथ पकड़ कर उठाया और फुसफुसाई- एकदम धीरे, आवाज मत करना। देख दरवाजे की कुंडी के पास छोटा सा छेद है जहां से लाईट आ रही है, वहां आंख सटा कर देख।

मैं नंगे पैर बिना आवाज किए दीदी की बताई जगह पर आंख सटा कर देखने लगा।

मम्मी के नंगे पैर मेरी तरफ थे, साड़ी कमर के ऊपर थी और अंकल खड़े हो कर मम्मी के दोनों पैरों पर एक एक हाथ से मालिश कर रहे थे। उनका हाथ मम्मी की कमर तक जा रहा था।

मम्मी के पैर तेल से चमक रहे थे, अभी तक मम्मी के पैर की ही मालिश हुई थी।

अंकल ने मम्मी को चुम्मा लिया पेट पर और दोनों हाथ पकड़ कर बैठा दिया।

तब अंकल ने मम्मी के पीछे हाथ कर ब्लाउज और ब्रा खोलकर मम्मी के हाथ से बाहर निकाल दिया।

मम्मी की बड़ी बड़ी चूचियां दिखने लगी बिल्कुल मेरे सामने! अंकल मम्मी की एक चूची पीने लगे और दूसरी मसलने लगे।

मम्मी अंकल के सिर को दोनों हाथ से पकड़ ली थी और अंकल के गर्दन एवं कंधे पर चुम्मा ले रही थी। फिर अंकल अलग हुए और मम्मी की साया साड़ी निकाल दिए। अब मम्मी पूरी नंगी हो गई।

मम्मी को अंकल ने पेट के बल लिटा कर पीठ और चूतड़ों की मालिश की, फिर सीधा कर चूचियों पर तेल लगा कर खूब मसला. बीच बीच में कंधे और पेट पर भी हाथ घुमा देते थे।

जब पेट पर हाथ लाते तो मम्मी की चूत को छूते थे. मम्मी ने पैर फैला दिए थे और मुझे चिकनी-चुपड़ी चूत दिख रही थी।

अब अंकल मम्मी के होठों को चूसने लगे और मम्मी की चूत में उंगली करने लगे।

थोड़ी देर में ही अंकल ने अपनी लुंगी खोल दी तो मम्मी उनका लंड पकड़ ली और खींची। अंकल का लंड धीरज जैसा ही था लेकिन लंबा था, दीदी ने ठीक बताया था।

तब अंकल ने लंड को मम्मी के मुंह के पास कर दिया और अपना मुंह मम्मी की चूत पर रख दिया।

अंकल चूत को चूस चाट रहे थे और मम्मी लंड चूस रही थी। ये कार्यक्रम बहुत देर तक चला।

फिर मम्मी की चूत में लंड डाल कर अंकल चुदाई करने लगे। मुझे अपने ठीक सामने चूत में लंड घुसते निकलते दिख रहा था।

फिर अंकल मम्मी के मुंह पर पिचकारी मारने लगे और मम्मी मुंह खोल कर सारा लंड का रस पी गई, फिर अंकल के लंड को चाट कर साफ़ कर दिया।

जब मम्मी ब्रा पहनने लगी तो मैं धीरे से दीदी के पास रजाई में आ गया।

दीदी मुझसे लिपट कर पूछने लगी- देख लिया ना? मैंने कहा- मम्मी तो लंड का पानी भी पीती है। दीदी बोली- हां रे, मैं भी पिऊंगी। चल सो जाते हैं, अंकल आयेंगे तो उठना मत!

और मैं तो सो गया.

दीदी जागती रही अंकल से चुदाने के लिए! जैसा उसने सुबह होने पर बताया।

मम्मी की चुदाई देखने के बाद मैं दीदी से लिपट कर सो गया।

अचानक मेरी आंख खुल गई और लगा कि मुझे कोई हिला कर जगा रहा है। मैं रजाई के अंदर सिर करके अकेले ही सो रहा था, दीदी नहीं थी।

लेकिन दीदी रजाई से बाहर बिस्तर पर ही थी और हिल रही थी। मैं समझ गया कि अंकल दीदी को चोद रहे हैं।

दीदी ने उठने को मना किया था तो मैंने अपने सिर को रजाई के अंदर ही रखा।

अंकल फुसफुसा रहे थे- बहुत दिनों से तुम्हारी सील तोड़नी चाह रहा था लेकिन तुम तो चुदा ली पहले ही। किसने चोदा? दीदी बोली- गप्प न मारो, जल्दी करो। मम्मी उठ जाएगी तो पकड़ लेगी। बाबू उठ जाएगा तो देख लेगा। "तेरी मम्मी चुदाई के बाद बेहोश सोती है, नहीं उठेगी। बाबू को पटा लेंगे, तेरा तो प्यारा-सा भाई है।"