मेरी बड़ी बहन

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उधर से मम्मी बाहर का दरवाजा बंद करके आ रही थी, बरामदे में मम्मी और दीदी आमने-सामने हुईं तो मम्मी ने कहा- सलवार तो पहन ले, गंदी हो गई क्या? ला मुझे दे। और मम्मी हंसने लगी- चल मैं भी सोऊंगी अभी तेरे साथ!

दीदी ने सलवार मम्मी को पकड़ा दी और अपने बिस्तर पर रजाई में घुस गई।

मम्मी सलवार को बाथरूम में रख आई और दीदी के कमरे में घुसते हुए बोली- बाबू, बाहर वाले रूम में पढ़ाई करो। बाहर नहीं जाना। मैं प्रभा के साथ थोड़ी देर सोऊंगी।

मैं किताब लेकर बाहर वाले कमरे में आ गया।

मेरा मन तो पढ़ाई में लग ही नहीं रहा था। मेरे दिमाग में तो सिर्फ चुदाई भर चुकी थी, मैं सोच रहा था कि उमेश और धीरज गन्ने के खेत पर आकर लौट गए होंगे. दीदी तो सुबह से घर में ही चुदवा रही थी, मैं भी नहीं जा पाया। अभी जरूर मम्मी दीदी से चुदाई की बातें कर रही होंगी, आखिर मम्मी भी चुदाई का खूब मज़ा लेती थी पापा और अंकल के साथ और उमेश के बड़े लंड के बारे में जानकार उसे घर लाने बोली थी दीदी को! आज सुबह सुबह मम्मी ने दीदी को अपने सामने अंकल से चुदवाया, फिर खुद चुदी। अगर मैं बड़ा होता तो शायद मुझे भी ग्रुप में शामिल कर लिया जाता! यहीं सब आ रहा था दिमाग में।

थोड़ी देर बाद मैं दबे पैर उनके कमरे के दरवाजे के पास चला गया और ध्यान से कान लगाकर उनकी बातें सुनने की कोशिश करने लगा। मम्मी बोल रही थी- ज्यादा मत चुदा! अभी से ऐसी चालू हो गई तू! देखना जरूर बोलेगा वो तेरा दोस्त तेरे को अपने किसी दोस्त से चुदवाने को! बिल्कुल मत करना। उसको घर पर ही बुला, मैं भी उसके बड़े लंड से मज़ा लूंगी। और अंकल तो हैं ही, जब मन करे तब चुदा लेना पापा और बाबू से छुप कर!

फिर दीदी की आवाज़ आई- मम्मी, दोनों छेद में एक साथ करने से तो दर्द होता होगा ना? तुम तो हमेशा ऐसे ही करती हो।

"वाह रे लड़की! अब दोनों छेद में तुमको लंड चाहिए? कुछ ज्यादा दर्द नहीं होगा। और मज़ा लेना है तो थोड़ा सा बर्दाश्त करना ही पड़ता है। जब पहली बार गांड मरवाई तो कैसा लगा था? बुर फटी तो कैसा लगा? अब तो कुछ फटना बाकी नहीं है तो दर्द होगा कितना? लेकिन देख घर से बाहर बिल्कुल मत करना ये सब, लोगों में बात फैलेगी तो दो का चार लगा कर बदनाम कर देंगे।" मम्मी ने दीदी को समझाया।

"अब नहीं करूंगी मम्मी बाहर! ठीक बोल रही हो। लेकिन उमेश को तो रोज चाहिए, एक दिन नहीं मिलता है तो अगले दिन जानवर बन जाता है। चूतड़ पर और गाल पर चांटा मारता है।" "तुम दोनों की उम्र तो ऐसी है कि रोज क्या, दिन-रात यही चाहिए। सुबह शाम खेत में ही करती है या स्कूल से भी भागती है?"

दीदी ने जबाव दिया- चार-पांच बार भागी हूं स्कूल से टिफिन के बाद नदी किनारे। वहां कोई नहीं रहता है। "यहीं करो ... पढ़ने जाती है या गांड मराने? फ्री में सब दे दिया तूने तो! मुझे बता देती पहले तो उसको फ्री में थोड़ी मिलता। मर्द लोग तो बुर चोदने के लिए बहुत कुछ लुटा देते हैं। आज तो तुम गई नहीं उससे चुदाने, अब जाना भी नहीं कहीं। कल स्कूल से छुट्टी होगी तो उसको साथ लेकर आना। मैं सब सेट कर दूंगी। समझी?" मम्मी बोली।

तभी दर्द से चिल्ला पड़ी दीदी- आह, बाप रे ... छोड़ न मम्मी, ऐसे मत कर। अब वैसे ही करुंगी जैसे तुम कहोगी। ऐसे काटेगी तो घाव हो जाएगा। मम्मी ने कहीं काट लिया था दीदी को! मम्मी दीदी को सजा भी दे रही थी और मज़ा भी।

तभी मम्मी ने पूछा- अभी आएगा शाम को वो खेत में? "वो तो दस बजे ही अपने दोस्त के घर ले जाने वाला था, पता नहीं शाम को आएगा या नहीं!" दीदी बोली।

तब मम्मी ने कहा- अपने दोस्त से भी चुदवाता तुझे? उसको पता कैसे चलता है कि तू खेत में जा रही है या खेत के पास ही बैठा रहता है? "हां, वो कहीं बैठ कर देखते रहता है। जैसे ही मैं खेत में घुसती हूं वो आ जाता है।" दीदी बोली.

तब मम्मी ने पूछा- जाएगी क्या? जाएगी तो जा और उसे घर लेकर आ ... बात कर लूंगी मैं! "अभी तो चलने का मन भी नहीं कर रहा मम्मी! अंकल ने बहुत चोदा है आज ... कल बुला कर ले आऊंगी। सोने दो मुझे, नींद आ रही है।" दीदी बोली.

तो मैं धीरे से बाहर वाले कमरे में आ गया। सोचा कि मैं ही बुला लाता हूं उमेश को ... और फिर अपने रूम में गया।

मम्मी और दीदी रजाई में थी और दोनो के चेहरे आमने-सामने थे। दोनों ने मेरी तरफ देखा।

मैंने कहा- मम्मी मैं खेलने जा रहा हूं, दरवाजा बंद कर लो। मम्मी बोली- खाली खेल पर ही ध्यान रहता है, रुक जा भात खाकर जा, दो बज गए, खाएगा कब? चलो खाते हैं पहले ... फिर जाकर जल्दी आ जाना। अंधेरा करेगा तो बहुत मारूंगी। और रजाई से निकल आई।

मैंने कहा- दे खाना। मम्मी थाली में दाल-भात दी।

फिर और एक थाली में खाना लाई और दीदी को बिस्तर पर ही देकर बोली- खा कर सो!

मैंने खाना खाकर बाहर का दरवाजा खोला और निकल पड़ा गांव की तरफ! मुझे पता था कि गांव के दूसरी तरफ बड़े छोटे सभी लड़के खेलते रहते थे। मैं वहां जाता रहता था। उमेश वहां मिल जाता था कभी कभी!

जब मैं पहुंचा तो देखा क्रिकेट चल रहा है बड़े लड़कों का और मेरे जैसे कई छोटे लड़के देख रहे हैं। उमेश भी खेल रहा था।

जब उमेश ने मुझे देखा तो खेल छोड़ कर मेरे पास आ गया और मुझे साथ लेकर गांव की तरफ चल पड़ा।

रास्ते में उमेश ने पूछा- तुम लोग आज आए नहीं दस बजे! क्या हुआ था? मैंने कहा- बहुत कुछ हुआ। तुझे करना है तो जल्दी से गुड़ का रावा लेकर आ जा मेरे घर! ये मत बोलना कि मैंने बुलाया था तुमको!

"कुछ बताएगा? घर में कैसे होगा?" उमेश ने फिर पूछा। "तू आ ना पहले घर ... सब समझ जाएगा वहीं। मैं जा रहा हूं, जल्दी आना। फिर पापा आ जायेंगे शाम को कभी भी।" मैं बोला और चल दिया।

घर पहुंचकर देखा तो दरवाजा खुला था, सिपाही अंकल बाहर वाले कमरे में ही खा रहे थे और मम्मी वहीं बैठी थी।

मेरे पहुंचते ही मम्मी पूछी- बड़ी जल्दी आ गया! तुझे खिलाया नहीं लड़कों ने? "नहीं मम्मी, बड़े बड़े भैया लोग क्रिकेट खेल रहे थे तो मैं आ गया। मेरे दोस्त लोग थे ही नहीं वहां!" मैं बोला. तो मम्मी बोली- सब तेरी तरह दिन भर थोड़े न खेलते हैं। अच्छा हुआ। चल दीदी के पास जा, पढ़ वहीं बैठकर!

तभी अंकल बोले- आज बाबू को साथ में बाजार ले जाता हूं। क्या क्या लाना है बता दीजिए। कुछ मिठाई लेकर आऊंगा। और थोड़ा सा भात है तो दीजिए, आज भूख कुछ ज्यादा है। मम्मी बोली- मेहनत करोगे तो भूख तो लगेगी ही! लाती हूं। और हंसती हुई उठ गई।

उधर से मम्मी भात के साथ बड़े कटोरे में दूध भी लाई और बोली- दूध भी पी लो। अब दोनों टाईम दूध पियो। तब न मां बेटी की मालिश करोगे ठीक से! अंकल मुस्कुराने लगे, बोले- प्रभा नींद से सोई है क्या?

मम्मी बोली- और क्या! मालिश के बाद नींद आती ही है। सोने दो। तुम बाबू को लेकर बाजार जाओ। साहब तो आयेंगे नहीं आज ... तो रात को तो फिर यहीं सोना है तुमको! "हां, साहब खबर भेजे हैं कि अभी काम नहीं हुआ। कल भी आने का पक्का नहीं है। अंकल बोले.

तो मैं मन ही मन बड़ा खुश हुआ कि रात को फिर खूब चुदाएगी मम्मी और दीदी और मैं देखूंगा। अंकल भात खाकर दूध पीने लगे।

अभी अंकल हाथ धो ही रहे थे कि उमेश छोटी बाल्टी में गुड़ का रावा लेकर आया और दरवाजा पर खड़ा हो गया। अंकल ने खड़े होकर पूछा- क्या है? रावा कौन भेजा है? नाम क्या है तेरा? कहां घर है और तेरे बाप का नाम क्या है?

मम्मी बोली- धीरे धीरे ... सिपाही जी! पूरे सिपाही बन जाते हो। क्या है भई बताओ आराम से!

उमेश हकला कर डर डर कर बोला- जी, वो प्रभा मुझे जानती है, उसी के साथ पढ़ता हूं। इसी गांव का हूं। ये रावा तो घर का है, बाबू के लिए लाया हूं। आप लोग भी खाइए। सिपाही अंकल ने उमेश का हाथ पकड़ लिया था।

मम्मी बोली- अच्छा तो तुम हो। प्रभा ने तुम्हारे बारे में बताया है मुझे! नहीं मिली तो यहां आ गये! डर नहीं लगता? बाहर क्यों मिलते हो उससे, यहां घर पर ही आ जाया करो। आओ, अंदर आओ। लाओ ये बाल्टी अंदर रख दो। सिपाही जी छोड़िए, चोर थोड़ी न है ये!

अंकल ने उमेश का हाथ छोड़ दिया और उमेश मम्मी के पीछे पीछे घर के अंदर चला गया।

अब अंकल बोले- बाबू, यहीं पर रहना। अभी आता हूं। और अंकल भी अंदर चले गए।

मैं बाहर के कमरे से देख रहा था मम्मी आगे आगे, फिर उमेश बाल्टी लिए और अंकल उन दोनों के पीछे मम्मी के रूम में चले गए।

मम्मी की आवाज़ आई- गुड़ यहां रख दो ... बहुत अच्छा है तेरा तो! अरे आ ना ... तुम तो लड़की जैसे शर्माते हो। प्रभा के साथ तो नहीं शरमाते, मारते भी हो उसको! अंकल की आवाज़ आई- चल, जैसा बोल रही हैं ये ... वैसा ही करो. नहीं तो अभी डाल दूंगा जेल में। मैं बाहर जाता हूं।

तब अंकल मेरे पास आ गये और मेरा हाथ पकड़ कर घर से बाहर आ गए। वे मुझसे बोले- बाबू, चलो तुम्हारे स्कूल के पास कल्लू हलवाई से मिठाई लेकर आते हैं।

अंकल ने मोटरसाइकिल निकाली और हम चल दिए। हलवाई के यहां पहले अंकल ने बीस रसगुल्ले पैक करवा लिया फिर हलवाई से कहा- देखो, ये दरोगा साहब का लड़का है। ये जब भी आए आकर जो भी मांगे इसको दे देना और पैसे मेरे से लेना।

फिर अंकल मुझसे बोले- मुझे एक जगह जाना है, तुम खाकर घर चले जाना। और कुछ लेना हो तो ले लेना! बोलकर मुझे बीस रूपए दिए और मोटरसाईकिल स्टार्ट कर चले गए।

मैंने दो रसगुल्ले और दो समोसे मंगाए और खाने लगा। मैं सोच रहा था कि अंकल घर ही गये हैं, और अपने ख्यालों में मैं मम्मी को उमेश से चुदाते देख रहा था।

फिर सोचा कि एक ही साथ मम्मी की चूत और गांड अंकल और उमेश चोद देंगे, अंकल जानबूझ कर मुझे इतनी दूर छोड़ कर चले गए हैं कि मैं जब तक लौटूं उनकी चुदाई हो जाए।

माँ बहन की लाइव चुदाई नहीं देख पाने का अफसोस हो रहा था लेकिन रसगुल्ले-समोसे का आनंद भी आ रहा था। मैंने जल्दी जल्दी रसगुल्ले खाएं, समोसे खाएं और लगभग दौड़ते हुए घर पहुंचा कि कुछ देखने मिल जाए।

लेकिन घर पहुंचा तो मम्मी को बाहर वाले कमरे में अकेली बैठे पाया। मैं मम्मी के पास ही बैठ गया।

मम्मी ने मुझे अपने हाथों के बीच घेरकर अपनी गोद में बिठा लिया, बोली- अभी अंदर मत जाओ, अंकल उमेश से बातें कर रहे हैं। देखो मुझे भी भगा दिया। अंकल को आने दो। थोड़ी देर बाद अंकल आए और बोले- मैंने समझा दिया है उसको! कल से शाम को अपने घर से दो किलो दूध ले आएगा और मन होगा तो यहीं पर पढ़ कर रात को घर चला जाएगा। ठीक है ना?

"ठीक ही तो है, दोनों साथ ही पढ़ते हैं तो साथ ही बैठकर पढ़ लेंगे। आज से ही पढ़ेगा। प्रभा और उमेश की किताबें एक सी ही हैं। प्रभा अब सो कर उठने ही वाली होगी। उठेगी तो दोनों को साथ में पढ़ने बोल दूंगी।" मम्मी ने कहा।

तभी उमेश मम्मी के कमरे से बाहर निकल कर हम लोगों के पास आ गया और मम्मी को बड़े प्यार से देखा, बोला- आंटी, बाल्टी दे दीजिए। उसी बाल्टी में दूध दुहता हूं, उसी में दूध ले भी आऊंगा और किताबें भी ले आऊंगा पढ़ने के लिए! मम्मी बोली- अभी तो साढ़े चार ही बजे हैं। इतनी जल्दी गाय दूहते हो? "नहीं, छः बजे के आस पास! साढ़े छः तक आऊंगा और नौ बजे चला जाऊंगा।

"देती हूं बाल्टी खाली करके। बाल्टी धोनी भी पड़ेगी। तब तक प्रभा को देखो तो ... उठाओ। बाबू, उठा दे दीदी को ... बोल शाम हो गई।" मुझे अपने हाथों से आजाद करके मम्मी उठकर चली गई।

अंकल भी बाहर चल दिए बोलकर कि सब्जी लाने जा रहे हैं। तब मैं और उमेश दीदी के पास चल दिए।

दीदी तो बेखबर रजाई में सो रही थी, उसका चेहरा रजाई के बाहर था। उमेश ने दीदी के होंठो पर उंगली चलाई।

दीदी ने आंखें खोली और उमेश को देखते ही हड़बड़ा कर बैठ गई, बाहर देखते हुए बोली- कैसे आ गया तू? मम्मी कहां है बाबू? मैंने कहा- उमेश रावा लेकर आया था बाल्टी में, वही धो रही हैं। उमेश अभी फिर दूध लेकर आएगा। रात को तेरे साथ यहीं पढ़ कर जाएगा।

उमेश ने बताया- तेरी मम्मी को भी रुला दिया मेरे लौड़े ने ... लेकिन सिपाही ने मेरी गांड मार ली। अब तुम लोग मेरी रंडी हो, रोज चोदूंगा। बोलते हुए उमेश रजाई में घुस गया, दीदी को लिटाकर चढ़ गया दीदी पर और बोला- साली नंगी है रे तू तो! बाबू, दरवाजा भिड़ा दे और बाहर बैठ। जरा चोद लूं एक बार!

मैं दरवाजा भिड़ा कर बाहर वाले कमरे में आकर बैठ गया।

बैठते ही दीदी के कराहने की आवाज़ सुनाई देने लगी- ऊंह ... ऊंह ... मम्मी ... बाप रे ... छोड़ दे ना ... छोड़ दे ... जा मम्मी के साथ कर ले ... आह आह ... कुत्ता है तू! लगातार दीदी आह ऊंह कर रही थी।

तभी मम्मी तेजी से आई, बाल्टी बरामदे में रखी जोर से और दीदी के कमरे में घुस गई। दीदी के रोने की आवाज आने लगी थी, मैं भी दौड़ कर दरवाजे पर खड़ा हो गया।

मैंने देखा कि उमेश ने दीदी को दबा के पकड़ा हुआ था और खून से भीगा लंड दीदी की चूत में आधा घुसा हुआ था. मम्मी उमेश की कमर पकड़ कर पीछे खींच रही थी और दीदी रोते हुए उमेश को अपने ऊपर से धकेल रही थी।

मैंने भी जाकर उमेश का हाथ दीदी की बगल से निकाल कर खींचा। तब मम्मी बोली- बाबू, जा भाग यहां से ... बाहर का दरवाज़ा बंद कर दे, वहीं बैठ!

मैं वहां से निकल गया और बाहर का दरवाजा बंद कर दिया बैठते हुए सुना, मम्मी बोल रही थी- ऐसे किया जाता है? देख तो कैसी फट गई! चल आ, मेरी में डाल लेकिन ऐसे करेगा तो देखना फिर मैं क्या करूंगी।

थोड़ी देर में मम्मी के भी कराहने की आवाज आने लगी। मम्मी भी लगातार ऐसे ऊंह ऊंह कर रही थी जैसे दर्द से बहुत परेशान थी।

दीदी की सिसकारियां भी सुनाई पड़ रही थी साथ में!

थोड़ी देर बाद शांति छा गई।

उमेश निकला और बाल्टी लेकर मेरे गाल पर चिकोटी काटकर दरवाजा खोल के बाहर चला गया।

मैंने फिर दरवाजा बंद कर दिया और अपने कमरे में लौटा तो देखा कि दीदी टांगें फैला कर लेटी थी, मम्मी बैठ कर दीदी की चूत पौंछ रही थी। मम्मी पौंछती थी लेकिन फिर चूत के अंदर से खून निकल आता था। बिस्तर की चादर खून से लाल हो गई थी; पौंछने वाला कपड़ा भी खून से गीला हो चुका था।

दीदी रो रही थी आंख बंद करके ... मम्मी भी रो रही थी। मुझे देख कर मम्मी बोली- किसी को कुछ मत कहना बेटा, ये सब नहीं बताया जाता किसी को! लगता है डाक्टर को बुलाना पड़ेगा। जा ज़रा अंकल को बुला, थाने में होंगे।

मैं अंकल को बुला लाया। अंकल के पीछे पीछे मैं भी फिर से वहीं चला गया।

दीदी वैसे ही नंगी लेटी थी टांगें फैला कर लेकिन अब खून नहीं बह रहा था। दीदी की आंखें बंद थीं और उनसे आंसू बह रहे थे।

अंकल सब देखते हुए बोले- क्या हुआ मलकिन? इतना खून? मम्मी रोते रोते बोली- उमेश ने प्रभा को चोदकर खून खून कर दिया। देख ही रहे हो। मैं तो डर ही गई थी कि डाक्टर को लाना पड़ेगा, खैर खून बंद हो गया है। सिंकाई करनी होगी दो तीन दिन! जाइए आप, अब डर नहीं है, थाने पर ही रहिएगा। सब्जी छोड़ दीजिए, सब कोई दूध रोटी खा लेंगे।

फिर मम्मी मुझे बोली- बाबू, दरवाजा बंद कर देना अंकल जाएंगे तो ... और दीदी के पास बैठो, मैं चूल्हा जलाती हूं।

मैंने मम्मी के कहे अनुसार ही किया और दीदी के आंसुओं को पौंछने लगा। दीदी ने आंखें खोली और दर्द भरी मुस्कान के साथ मुझे देखा- मैंने बहुत ग़लत लड़के से दोस्ती कर ली। जानवर है बहनचोद! फिर उसने आंखें बंद करके रजाई अपनी छाती तक ओढ़ ली।

थोड़ी देर बाद मम्मी भगोने में गर्म पानी लेकर आई, नीचे रखी, फिर जाकर डिटोल लेकर आई।

रजाई हटा कर दीदी को मम्मी ने बिस्तर के किनारे बैठा दिया और पैरों को पूरा फैला कर चूत की सिंकाई करने लगी कपड़े को गर्म पानी में भिगो भिगो कर। मैं दीदी के पीछे बैठ कर उसके कंधों पर अपने हाथों से सहला रहा था।

सिंकाई करने के बाद मम्मी ने दीदी के पूरे कपड़े बदले, बिस्तर की चादर बदली, फिर दीदी को दर्द और नींद की दवा खिलाकर लिटा दी। फिर मम्मी मुझे बोली- यहीं दीदी के साथ रहो, मैं रोटी बना लेती हूं।

दीदी की सिंकाई करके मम्मी रोटी बनाने चली गई।

मैं दीदी के पास बैठा था रजाई में पैर घुसा कर और दीदी लेटी थी। अभी भी उसके चेहरे पर दर्द की झलक दिखाई दे रही थी।

रजाई के अंदर दीदी ने मेरा हाथ पकड़ रखा था। मैंने पूछा- दीदी, उमेश तो बोलता था कि सिर्फ पहली बार ही खून निकलता है तो आज तो कल से भी ज्यादा निकला. क्यों? और अंकल से तो तुम मजे से चुदाई। उनका पूरा लंड घुस जाता था। फिर उमेश ने कैसे खून निकाल दिया? दीदी बोली- कल तो वो अपने आधे लंड से ही चोदा था, लंड को मुट्ठी से पकड़ कर चोद रहा था तो आधा ही अंदर गया था फिर भी खून निकला। फिर उसने डर के मारे और घुसाया नहीं लेकिन उसके मोटे लंड ने इतनी जगह बना दी कि अंकल के पतले लंड से मुझे कोई परेशानी नहीं हुई। आज तो उसने पूरा लंड घुसा दिया ये कह कर कि अंकल ने उसकी गांड मारी है और इसके बदले वो हम मां-बेटी को रूलाएगा। मम्मी भी रो दी थी उमेश के लंड से दोनों बार लेकिन मजा भी ली थी थोड़ी थोड़ी देर!

"दर्द तो मुझे भी होता है उसके लंड से! पूरा डालेगा तो मेरी गांड भी फट जायेगी ना?" मैंने पूछा. तो दीदी ने ज्ञान बघारा- नहीं रे, सील सिर्फ लड़कियों की टूटती है लेकिन उमेश का इतना बड़ा और मोटा है कि थोड़ा सा खून निकल सकता है। मेरी गांड भी आज तक सिर्फ सुपारा घुसा कर मारी है, पहली बार उतने से ही किया था तो मैं बेहोश जैसी हो गई थी, हफ्ते भर दर्द रहा था। अब वो मेरी गांड में भी पूरा डालेगा। क्या करूंगी मैं? "मत करो उसके साथ ... सीधा-सीधा तो उपाय है।"

"अब तो मम्मी ही उससे मेरी गांड फड़वा देगी, देख लेना तुम! अभी आकर मम्मी की गांड मारेगा, बोल कर गया है। मम्मी को ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि पापा के मोटे लंड से मम्मी गांड मरवाती है।" दीदी ने कहा।

तभी मम्मी की आवाज़ आई- प्रभा, तेरी रोटी ले आऊं? खाकर सो जाना। दीदी बोली- अभी मन नहीं है मम्मी, बाद में खा लूंगी। मत लाओ।

लेकिन मम्मी कटोरे में गर्म दूध में रोटी डाल कर ले आई, बोली- खा कर सो जा। गर्म दूध से आराम मिलेगा। और फिर तुम उठेगी क्या! नींद की दवा खाई है। चल खा ले।

दीदी उठ कर बैठ गई और मम्मी उसे अपने हाथ से खिलाने लगी। दीदी को दो तीन कौर देकर एक कौर मुझे दे देती थी।

फिर जब रोटी हमें खिला दी तो बोली- बाबू, आज जो भी हुआ है और होगा ... किसी को भी मत बताना। तेरी मम्मी और दीदी बदनाम हो जाएगी। और पापा तो मार ही डालेंगे सबको! नहीं बताएगा न? मैंने ना में सिर हिलाया।

मम्मी बोल ही रही थी- तू और थोड़ा सा खा ले और दीदी के पास सो जा! दीदी के ऊपर हाथ पैर मत रखना।

तब मम्मी उठकर गयी और उसी कटोरे में फिर दूध-रोटी ले आई। मैं नीचे बैठकर खाने लगा।

मम्मी फिर जाकर आंवले का तेल ले आई और दीदी के बालों में लगाने लगी।

जबतक मैं खाता रहा, मम्मी दीदी के सिर की मालिश करती रही।

मैं कटोरा रखकर आ गया और दीदी के साथ लेट गया। मम्मी दीदी के पैर दबा रही थी सलवार के ऊपर से ऐसे ही! मम्मी बोली- प्रभा, सलवार खोल कर सो। एक बार और सिंकाई करनी पड़ेगी, नहीं उठेगी तो सिंकाई कैसे करूंगी। अभी नींद की एक और गोली खा ले नहीं तो दर्द से नींद नहीं आएगी। बाबू तो सब देख लिया है, अब इससे कितना छुपाया जाएगा। यह तो रहेगा घर में ही ना!

मैं तपाक से बोला- तब तो मैं कभी भी कहीं भी जा सकता हूं ना मम्मी? मम्मी हंसती हुई बोली- हां जाना ... लेकिन पापा रहेंगे तब नहीं! तू भी जल्दी सयाना हो जाएगा अब!

दीदी भी हंसने लगी और बोली- मम्मी, उमेश ने बाबू की भी गांड मारी है मेरे कारण परसों और कल ... ज्यादा नहीं घुसाया था। "अच्छा! दोनों भाई-बहन मिले हुए थे! मुझे बेवकूफ बना रखा था। तुम लोग आपस में कुछ करते हो क्या? भाई को भी पंडित बना दी प्रभा?"

दीदी ने मम्मी से आंखें चुराते हुए कहा- नहीं मम्मी, बाबू अभी किस लायक है? मुझसे सटकर सोता है बस! मम्मी बोली- गांड तो मरवा दी ना इसकी। बाप रे ... हद है तू ... चल सलवार खोल कर सो। बाबू, छूना नहीं दीदी को अभी जरा भी; मैं दवा लेकर आती हूं।

दीदी को मम्मी ने नींद की दवा खिलाई और दीदी की खुल चुकी सलवार खूंटी पर टांग दी। फिर दीदी को बाथरूम कराने ले गयी पकड़ कर! दीदी तो चल ही नहीं पा रही थी।

लौट कर मम्मी बोली- बेचैन थी, मिल गया ना जवानी का मज़ा? अब भुगतो। दीदी को लिटाकर, हम भाई-बहन के बीच में तकिया रख कर मम्मी बोली- अब सो जाओ तुम लोग! और मम्मी हमारे पास ही बैठ गई।

फिर मम्मी अधलेटी होकर दीदी के सिर पर थपकी देने लगी; मुझसे बोली- गांड मत मराओ बाबू ... नहीं तो अंकल की तरह हो जाओगे और मोटा लंड खोजते ही रहोगे।

मम्मी की ये बात बिल्कुल सही साबित हुई। आज तक गांड मरवा रहा हूं।

थोड़ी देर बाद दीदी गहरी नींद में सो गयी।

दीदी के सोते ही बाहरी दरवाजे की कुंडी खड़की तो मम्मी बोली- कमरे से निकलना नहीं! और चली गई।

दीदी गहरी नींद में सो गयी। दीदी के सोते ही बाहरी दरवाजे की कुंडी खड़की. तो मम्मी मुझसे बोली- कमरे से निकलना नहीं! और चली गई।

दरवाजा खुलने के बाद उमेश बाल्टी में दूध लेकर आया बरामदे में, बाल्टी रखी और हमारे दरवाजे के पास रुककर झांका। फिर उसने हमारे बिस्तर के पास आकर हाथ की किताब रखी, दीदी को देखा और बोला- अभी फिर सो रही है ये, पढ़ेगी नहीं? मैंने उमेश का बढ़ता हाथ पकड़ लिया।

तभी मम्मी आ गई और बोली- छोड़ दे उसको ... बहुत खून निकला है। ऐसे किया जाता है जानवर की तरह? अभी दवा खिलाकर सुलाया है कितनी मुश्किल से! तूने तो बाबू को भी नहीं छोड़ा। चल मेरे साथ! मम्मी उमेश को खींच कर अपने रूम में ले गयी।

तभी बाहर के दरवाज़े की सांकल बजी। लगा कि अंकल उमेश को आते देख कर आ गये थे।

मम्मी ने जाकर दरवाजा खोला और फिर बंद करके आ गई, मम्मी के आगे आगे अंकल थे।

अंकल हमारे कमरे में आ गए और दीदी को देखने लगे। मम्मी साथ ही थी, अंकल को बोली- मेरे कमरे में बैठा है। नई जवानी है, इसका पूरा पानी निकाल देना है कल तक, फिर आराम से करने लगेगा। पहले तुम ही जाओ देवर जी, मैं आती हूं।

तब मम्मी हमारे बिस्तर पर ही बैठ गई और अंकल चले गए मम्मी के रूम में!

मैं लेटा हुआ मम्मी को देख रहा था, बोला- मत जा मम्मी तू, नहीं तो फिर रुलाएगा तुझे! मम्मी बोली- इसीलिए तो अंकल गये। जब उसका कम से कम तीन चार बार पानी निकलेगा तो ठंडा हो जाएगा। कल के बाद तो करेगा ही नहीं ऐसा! तू घबरा मत!

"मैं देख सकता हूं मम्मी उन दोनों को? लेकिन मैं गांड नहीं मराऊंगा, दर्द होता है। कैसे मराती हो तुम?" "मत जा वहां ... नहीं तो दोनों ही तेरी गांड चोद देंगे।" मम्मी ने मुझे समझाया. तो मैं बोला- यहीं से देख लूंगा, तुम बैठो।

बोलकर मैं बिस्तर से नीचे उतर गया और बीच वाले दरवाजे के छेद पर अपनी आंख लगा दी।

अंकल उमेश को गोद में बिठा कर उसके लंड को तेजी से आगे पीछे कर रहे थे हाथ से! दोनों कपड़े पहने ही हुए थे, उमेश की पैंट उसके पैरों में घुटने पर टंगी थी।

अंकल उमेश को गाल पर चुम्मा भी ले रहे थे।

तभी मम्मी के हाथ पड़े मेरे कंधे पर, मुझे हटा कर मम्मी झांकने लगी छेद से! मैं वहीं पर खड़ा रहा, मम्मी छेद से देखकर सीधी खड़ी हुई और मेरा हाथ पकड़ के बाहर वाले कमरे में ले आई।

मम्मी ने पूछ- कब से देख रहा है मेरा बिस्तर? मुझे और दीदी को भी देखा होगा तूने तो! पूरा पंडित हो गया है तू अब। केवल लंड तैयार नहीं हुआ है अभी तेरा! मैं बोला- मैं तो परसों से ही देख रहा हूं दीदी के बताने के बाद। दीदी ने ही इस छेद के बारे में बताया परसों जब तुम अंकल के साथ थी।

"हम्म, प्रभा ने अपना मतलब पूरा करने के लिए तुमको सब बता दिया। अभी कैसे रो रही थी? उम्र हुई नहीं चुदाने की और चुदाने लगी। तुमको भी बिगाड़ दिया। अब तो कुछ बचा नहीं कि तुम्हें बचाऊं। जैसे चले, चलने दो। किसी को कुछ बताना नहीं और पढ़ाई पर ध्यान दो नहीं तो जिंदगी नर्क हो जाएगी।"

मम्मी मुझे साथ लेकर बिस्तर पर लेट गई, मुझे अपने से सटा लिया।

मेरा चेहरा मम्मी के चेहरे के पास ही था। मम्मी पूछने लगी- उमेश से तो गांड मरा ली, प्रभा के साथ क्या क्या किया तूने? उसके दूध चूसे होंगे। उसके ऊपर चढ़ा भी था क्या? "हां मम्मी, दीदी खुद ही मेरी नूनी अपनी चूत में डलवाई और मुझे हिलाया था।" बोल कर मैंने अपना चेहरा मम्मी की चूचियों में छिपा लिया।

मम्मी हंसते हुए बोली- अच्छा! अब मम्मी के दूध पियेगा क्या? पी ले, इसी को तो पीकर बड़ा हुआ है। और मम्मी ने अपने ब्लाउज से चूची बाहर कर दी। मैं चुपचाप लेटा रहा।