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Click hereकहानी के Ch. 04 से आगे की कथा
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दोस्त की मासुम फरमाईश
शाम को डॉक्टर आशा अपनी कार ले कर घर पर आ गई। उस के हाथ में एक बड़ा बैग था। बैग मेरे को दे कर बोली कि दो दिन के कपड़ें लाई हूँ तथा इस में माधवी के भी कपड़ें है। बुटीक वाली दोपहर में आ कर दे गयी थी। मैं बैग ले कर अन्दर चला आया, वह माधवी से बातें करने लगी। माधवी ने अन्दर आ कर कहा कि आप चाय लेगी या कॉफी? आशा बोली की कॉफी पीते है। माधवी कॉफी बनाने किचन में चली गयी और मैं बैग कमरे में रख कर आशा के पास आ कर बैठ गया। उस के चेहरे पर खुशी नजर आ रही थी। मैंने कहा कि सब कुछ सही है तो उस ने कहा कि नहीं सही नही है। मैं समझ नही पा रही की क्या करुँ?
मैंने कहा कि दो दिन के लिए उन को भुल जाओ। आशा ने मुझ से पुछा कि तुम्हारी प्रोब्लम सोल्व हुई या नही? मैंने कहा कि जैल ने काम कर दिया है। यह सुन कर उस के चेहरे पर सन्तोष के भाव आये। तब तक माधवी कॉफी ले कर आ गयी, सब मिल कर कॉफी पीने लगे। माधवी ने पुछा कि आप रात के खाने में क्या लेगी? तो आशा ने कहा कि खाने की छोड़ो अपने कपड़ें पहन कर देखो कि सही सिले है या नही?
माधवी बोली कि मुझें तो साड़ी पहननी नही आती लेकिन महेश को साड़ी बहुत पसन्द है इस लिए मैंने ब्लाउज सिलवाये है। आशा बोली कि मैं किस दिन काम आऊँगी? आयो यह कह कर वह माधवी का हाथ पकड़ कर ले कर चली गयी। थोड़ी देर बाद वह माधवी को साथ लेकर आयी तो मैं माधवी को देखता रह गया साड़ी में वह गजब ढ़ा रही थी, उस की सुन्दरता साड़ी में निखर कर आ गई थी। आशा ने यह देख कर कहा कि नजर मत लगा देना। मैं ने झेप कर नजरें घुमा ली तो माधवी ने आगे बढ़ कर मेरे चेहरे को पकड़ कर घुमा कर कहा कि सही तरह से देखों आप के लिए ही तो पहनी है, अपनों की नजर नहीं लगती।
मैं हँस पड़ा, और कहा कि लगता है कि मेरे घर में कोई अप्सरा उतर आयी है मुझें तो औरतें साड़ी में सबसे सुन्दर लगती है। दोनों औरतें मुझें देख रही थी क्योकि दोनों ने ही साड़ी पहन रखी थी। माधवी बोली कि आशा जी ने पहनायी है मुझें तो बाँधनी आती नही है। मैंने पुछा कि ब्लाउज सही सिला है तो आशा बोली कि हाँ पहली बार में ही बढ़िया सिला है। बाकि तो माधवी बतायेगी। माधवी ने एक मॉडल की तरह घुम कर साड़ी का पल्लू लहरा कर दिखा दिया। आशा हँस कर बोली कि रेम्प पर कैटवॉक भी हो गयी। मैंने कहा कि बुटीक वाली का हाथ बढ़िया है कुशल है। उस को कुछ सुट भी सिलने को देते है। तीनों लोग सोफे पर बैठ गये। मैंने आशा से पुछा कि तुम तो साड़ी के सिवा कुछ पहनती नही हूँ तो वह बोली कि तुम ने देखा नही है आगे देखना कि मैं क्या-क्या पहनती हूँ।
उस ने माधवी से पुछा कि अब तो चक्कर नही आये, माधवी ने ना में सर हिलाया। आशा बोली कि तुम कुछ ऐनिमिक हो इस लिए दवाई और हरी-साग सब्जियाँ ज्यादा खायो इस से हिमोग्लोविन बढ़ जायेगा। मैंने कहा कि ये जिम्मेदारी मैंने ले ली है। माधवी ने मेरी तरफ आँख तरेरी तो आशा बोली कि खाने से दुश्मनी अच्छी नही है। सुना है तुम तो खाना बढ़िया बनाती हो। माधवी मेरी तरफ देख कर बोली कि यह बात कब बता दी आप ने। मैंने कहा कि आशा ने कहा कि उसे लग रहा है कि मेरा वजन बढ़ गया है तो बताना पड़ा।
हम तीनों दरवाजे की दहलीज पर बैठ कर पहाड़ पर उतरती शाम का मजा लेने लगे। आशा बोली कि इतने सालों से यहां रहने के बावजुद मैंने ऐसी शाम का आनंद नही लिया। मैंने कहा कि तुम्हें अपने क्लीनिक से फुरसत नही मिलती तो यह कब देखोगी? वह चुप रही। रात घिर आयी थी केवल नदी की कलकल की आवाज आ रही थी। हवा में ठन्ड़क बढ़ गयी थी इस लिए उठ कर अन्दर आ गये। माधवी बोली कि मैं खाना बनाने जा रही हूँ यह कह कर वह किचन में चली गयी। आशा ने मेरे को देखा और आखों में कुछ पुछा मैंने कोई जबाव नही दिया। वह बोली कि मैं भी कपड़ें बदल कर आती हूँ। यह कह कर वह भी चली गयी। मैं अकेला बैठा सोच रहा था कि रात को आशा को कैसा लगेगा लेकिन यह यकीन था कि उसे सब पता है और वह इसे समझ पायेगी। मैं वही बैठा रहा।
थोड़ी देर बाद आशा ट्रेकसुट पहन कर आ गयी। उसे देख कर मैंने हाथ से बढि़या का साईन बनाया तो वह बोली कि किस को दिखाने के लिए कपड़ें पहने? मैंने कहा कि इस में भी जँच रही हो। वो बोली कि घर में आरामदायक कपड़ें पहनने चाहिए। फिर वह बोली कि किचन कहाँ है? मैं उसे ले कर किचन में चला गया। माधवी खाना बनाने की तैयारी कर रही थी हमें देख कर बोली कि यहाँ क्या करोगें। आशा बोली कि तुम्हारी हैल्प करने का विचार है, शायद कुछ मदद कर पाऊँ। माधवी बोली कि आप मेहमान है आराम करे। आशा बोली कि मैं कोई मेहमान नही हूँ अपने दोस्त के घर पर हूँ तो घर जैसे ही करुगी यानि काम।
यह सुन कर माधवी हँसने लगी और बोली कि आप पर भी महेश का असर हो गया है हर बात को घुमा कर कहना, आशा बोली कि हो सकता है ऐसा हो। दोस्ती तो हमारी काफी पुरानी है। लेकिन तुम ने इस को इस की बनायी कैद से निकाला है, यह तो अपने आप को पता नही क्यों सजा दे रहा था। मैंने बहुत पुछा लेकिन इस ने बताया नही है, माधवी बोली कि मुझें भी नही बताया है। मैंने कहा कि जब समय आऐगा तब सब को बताऊँगा। इस को ले कर परेशान नही होओं। मैं यह कह कर किचन से निकल गया।
बाहर आ कर चाँदनी रात में चमकते सितारों को देखने लगा, इस दृश्य की कल्पना शहर में रह कर नही हो सकती। थोड़ी देर के बाद आशा भी मेरे साथ आ कर खड़ी हो गई वह बोली की ऐसा आकाश शहर में तो दिखता नही है। यह दृश्य अनमोल है। आकाश ऐसा लगता है मानों किसी ने तारों से भरा हुआ कटोरा उल्टा रख दिया हो। हम दोनो चुपचाप इस दृश्य को देखते रहे। आशा बोली कि माधवी ने तुम पर एक दम से कब्जा कर लिया है। मैंने उस की तरफ घुम कर देखा और कहा कि उसे क्यों लगा कि मैं उस के कब्जे में हूँ? आशा हँसी और बोली कि तुम अपने विचार व्यक्त करने में डर रहे हो ऐसा मुझें लग रहा है। तुम्हें मैं काफी समय से जानती हूँ, इस लिए मुझें जैसा लगा मैंने कह दिया। तुम्हारें कुछ कहने से पहले वह उस बात को पुरा कर देती है। मैंने कहा कि यह तो है कि उस को मेरे मन की बात पहले से पता चल जाती है, तुम औरतों को तो भगवान ने छठी इन्द्रिय दी है वैसे ही सामने वाले के मन की बात जान लेती हों।
एक बात तो है कि माधवी ने मेरे को एक तरह से नया जीवन दिया है, इस लिए मैं उस का शुक्रगुजार हूँ। उस में कुछ ऐसा है जो उस ने मुझें मेरे अंधकार से बाहर जबरदस्ती निकाला है। मेरे का घसीट कर अन्धे कुऐ से बाहर निकाल दिया है यह जो नया महेश दिखाई दे रहा है वह उसी के प्रयास का फल है। मुझें तो तुम बेहतर जानती हो कि कैसा था लेकिन उस ने मेरे चारों तरफ जो आवरण था उसे फाड़ दिया। उस के व्यक्तित्व में ऐसा कुछ है जो शायद तुम्हारे व्यक्तित्व में नही है, तुम ने भी बहुत कोशिश की थी कि मैं इस से बाहर निकलु लेकिन ऐसा सम्भव नही हो पाया लेकिन उस ने थोड़े समय में ही कर दिया। इस लिए मैं उस का अहंसान मंद हूँ। वह जो कहेगी मैं मानुँगा। मेरी बात सुन कर आशा बोली कि मैं तो अपनी हार पर भी खुश हूँ क्योकि मैं तुम्हारी दोस्त हूँ, चाहे तुम किसी और के पास चले गये है लेकिन उस अंधकार से निकल गये हो यह बात ही मेरे लिये काफी है, कसक तो दिल में है लेकिन एक संतोष भी है की मेरा दोस्त अब सही है।
एक ही चीज चाहती हूँ कि तुम मुझें भुल मत जाना, मेरा भी तुम्हारे सिवा कोई नही है, तुम ने मुझें मेरे कठिन समय में बड़ा सहारा दिया है। तुम्हारा सहारा मेरी बड़ी बैशाखी है। मैं ने उस का हाथ दबा कर उसे आश्वस्त करने की कोशिश की, मैंने कहा कि मैं अभी भी वही महेश हूँ हाँ कुछ चीजों में बदल गया हूँ लेकिन बदला नहीं हूँ। अधेरे के कारण आशा के चेहरे पर आने वाले भाव मैं नही देख सका। आशा ने मुझ से कहा कि मैंने तो कुछ ज्यादा नहीं माँगा था, लेकिन तुम ने वो भी मेरी झोली में नही डाला तुम ने तो अपनी सहायता भी नही करने दी। तभी पीछे से माधवी की आवाज आयी कि बातें खत्म हो गयी हो तो खाना खाये। मैंने कहा कि तुम भी यहाँ आयो और इस दृश्य को देखो, कभी नही देखा होगा, वह जब बाहर आई और आकाश को देखा तो आश्चर्यचकित हो गयी। बोली कि ऐसा तो पहले कभी नही देखा मैंने कहा कि शहरों में यह नही दिखाई देता। हम तीनों कुछ समय तक खड़े रहे फिर अन्दर आ गये। आशा और माधवी किचन में खाना लेने चली गयी। मैं कमरे में बैठ कर इन्तजार करने लगा।
दोनों खाना ले कर आ गयी। सब लोग खाना खाने लगे। आशा ने पुछा कि माधवी खाना बढ़िया बना है कहाँ से सिखा है?
अपने आप सीखा है कुछ आवश्यकता के कारण और कुछ रुचि के चलते।
बचपन में अकेले होने पर भुखे होने के कारण किचन में जो भी मिला उसे खाना सिखा फिर उस को बनाना सिखा इसी के कारण खाना बनाना आ पाया इस में किसी की सहायता नही मिली।
आशा बोली कि मैं भी होस्टल में रही हूँ लेकिन खाना बनाने में रुचि ना होने के कारण खाना बनाना नही सिख पायी इस का मुझें अफसोस है, महेश भी कामचलाऊ खाना बनाना जानता है लेकिन मुझें तो उतना भी नही आता है। शायद तुम मुझें कुछ सिखा पायो।
मैंने कहा कि मैंने भी मजबुरी में अकेले होने पर उल्टा-सीधा बनाना सीखा फिर उस को सुधारा तब जा कर कामचलाऊ खाना बनाना सीखा।
माधवी मुझें आखे तरेर कर देख रही थी मैंने देखा कि मेरी कोहनियां आशा को छु रही थी यह माधवी को अच्छा नही लग रहा था मैं सोफे पर थोड़ा सा किनारे को खिसक गया ताकि आशा से दूर हो जाऊं। पहले ऐसा नही होता था हम दोनों एक-दुसरे के करीब बैठते थे मैं कोई ऐसा काम नही करना चाहता था जिस से माधवी के दिल को ठेस पहुंचे। माधवी को तो अच्छा लगा लेकिन आशा को धक्का लगा। कोई कुछ बोला नही। चुपचाप खाना खाते रहें।
खाने के बाद खाने के बर्तन लेकर मैं और माधवी किचन में चले गये। किचन में पहुँच कर बरतन रखने के बाद मैं लौटने लगा तो माधवी ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझें वापस खींच लिया। मेरे को आलिगंन में ले कर बोली कि उस से दूर रहो, मेरे को डर लगता है। मैंने उस की पीठ थपथपाकर आश्वस्त किया। मेरे लिए उस की दशा का ध्यान रखना पहला कर्तव्य है।
उस ने मेरे को और कस के जकड़ लिया। मैंने उस के कान में कहा कि मेरे पर भरोसा नही है? उस ने कहा की तुम पर तो है लेकिन किसी और पर नही है।
मैंने उस के गाल पर हल्का सा चुम्बन दिया और किचन से निकल गया।
आशा कमरे में मेरा इन्तजार कर रही थी मेरे को देख कर उस के चेहरे पर जो भाव थे वह बेचारगी के थे। बोली कि महेश तुम तो हैन्डपिक्ड हंसबैड़ लग रहे हो। मैं जोर से हँसा और कहा कि जिसका हंसबैड था उस को लगता था कि मैं बेकार हूँ अब तुम को लगता है कि हैडपिक्ड हूँ चलो कुछ तो उन्नति हुई है इतने सालों में।
अब मैं तुम्हें छु भी नही सकती?
मैं चुप रहा, चाहता था कि यह बात यही खत्म हो जाये नही तो आशा का वीकएंड़ बेकार हो जायेगा। मैंने कहा कि तुम जाने कहाँ की ले कर बैठ गयी। बताओ क्या बात है जिस से परेशान हो, अगर बताना चाहो?
आशा थोड़ी देर चुप रही फिर बोली कि मेरी वही पुरानी प्रोब्लम अभी तक सोल्व नही हो रही है, क्या करुँ, समझ में नही आ रहा।
मैंने कहा कि अभी कुछ समय के लिए उस पर सोचना छोड़ दो, आसपास का मजा लो फिर कुछ समय के बाद इस पर सोचना तो शायद तुम्हें इस का हल मिल जायेगा।
आशा ने सर उठा कर देखा और कहाँ कि लगता है तुम सही कह रहे हो, मैंने कहा कि मैं तो हमेशा सही कहने की कोशिश करता हूँ। तुम जानती हो।
गाने सुनने है,
हाँ,
क्या सुनोगी, गजल या फिल्मी गीत
मैंने जगजीत सिंह की गजल लगा दी दोनों गजल का आनंद लेने लगे।
माधवी किचन से नही लौटी थी मैं उसे देखने किचन में गया तो वह किचन में रो रही थी। मैं ने जा कर उस को गले से लगाया और कहा कि अब रोने की क्य बात है। उस ने कुछ नही कहा तो मैंने कहा कि मेरे पर विश्वास नही है या कोई और बात है।
मेरे को जो भी चीज पसन्द आती है उसे कोई और ले जाता है।
मेरे का कोई नही ले जा रहा है, मैं तो तुम से बंधा हूँ। कही नही जा रहा। मेरा भरोसा करो। वह मेरे बुरे समय की साथी है उस की परेशानी जानना जरुरी है इस से ज्यादा कुछ नही है चल कर उस के मुँह से ही कहलवाता हूँ तब तो तुम्हें यकीन आयेगा। यह कह कर मैं माधवी का हाथ पकड़ कर कमरे में चला आया।
कमरे में जा कर आशा के सामने के सामने बैठ कर मैंने आशा से पुछा कि आशा तुम्हारें मेरे बीच कभी शारीरिक संबंध बने या हमने इस की कोशिश की थी? आशा मेरा सवाल सुन कर हैरान हो गयी उस ने मेरे चेहरे को देखा तो मैंने कहा कि जो भी सच है बताओ। आशा ने माधवी के देख कर कहा कि मेरे और महेश के बीच ऐसा कुछ कभी हुआ नही है और हम दोनों ने ऐसा कुछ करने का प्रयास भी नही किया है महेश और मैं अच्छे दोस्त इसलिये है कि उस के और मेरे शौक एक जैसे है, उसे गजल पसन्द है मुझें भी है, उसे घुमना पसन्द है मुझें भी है हम दोनों किताबे पढ़ने के भी शौकिन है, दोनों ने जीवन में बड़ा धोखा खाया है इन्ही सब कारणों से दोस्ती है, सेक्स उस के बीच में कभी भी नही आया। हम दोनों इतने परेशान थे कि कुछ और सोचने का समय ही नही मिलता था। यह कह कर आशा चुप हो गयी।
मैंने माधवी की तरफ देख कर कहा कि मेरी सेक्स लाईफ माधवी की वजह से दुबारा शुरु हुई है। कम से कम पांच सालों से मैंने कोई भी सेक्सुयल एक्टिविटी नही की है। इस लिए मेरा माधवी के साथ पहला अनुभव बड़ा मुश्किल था, इस सब में माधवी बड़ी बैचेनी से मेरे को देख रही थी, मैंने कहा कि मेरी इस हालत के बारे में मैं कभी तुम्हे बताऊंगा लेकिन अभी मेरे में हिम्मत नही है। इस से ज्यादा साफ मैं नही बता सकता तुम दोनों मेरी दोस्त हो और माधवी तो मेरी दोस्त से ज्यादा है इस लिए तुम दोनों के सामने स्पष्ट कह दिया है। मेरी हालत को तुम दोनों समझ सकती हो। इस से ज्यादा मैं कुछ नही कहुँगा चाहुँगा कि हम इस से आगे की सोचे और जो सामने से उस समय का आनंद ले। सेक्स के बिना मैं पांच साल से जीवित रहा हूँ। सेक्स जरुरी है लेकिन पहले जीवन के और पहलु सही होने जरुरी है खासकर हमारी मानसिक अवस्था उस का सही रहना जरुरी है। यह कह कर मैं चुप हो गया।
माधवी ने मेरी बांह पकड़ कर कहा कि मैं तुम से कुछ नही चाहती हूँ तुम मेरे साथ हो तो किसी और चीज की जरुरत नहीं है।
आशा ने कहा कि मुझें तो तुम्हारी दोस्ती ही काफी है सेक्स तो उस में पहले भी नही था और ना अभी भी उस की आवश्यकता है मेरी तो अपनी हालत महेश जैसी है बहुत बुरा गुजरा है इस लिए उस के बारे में सोचना भी बन्द कर दिया है।
वातावरण को हल्का करने के लिए मैंने कहा कि तुम में से कोई नाचना जानता है तो नाच कर दिखाओ।
आशा ने ना मैं सर हिलाया, माधवी बोली कि मैं नाच कर दिखाती हूँ लेकिन वैस्ट्रन सॉगं लगाने पड़ेगे। है तुम्हारे पास मैंने कहा कि है। मैंने एक ऑल्ड नम्बर लगा दिया माधवी धीरे-धीरे थिरकने लगी उस ने पहले मेरे को उठा कर अपने साथ करा फिर आशा को भी उठा लिया। हम तीनों धीरे-धीरे गाने पर थिरकने लगे। मन के सारे तनाव नाचने से दुर होने लगे। काफी देर तक यो ही थिरकते रहे।
रात गहरा गयी थी, सोने का समय हो रहा था मैंने आशा से कहा कि चलो तुम्हारे सोने का इन्तजाम करते है, आशा मेरे साथ चली आई। उस के कमरे में बेड पर बिस्तर और रजाई सफाई से रखी हूई थी। मैंने कहा कि अकेले सोने में डर तो नही लगेगा तो वह बोली कि अकेले ही सोती हूँ। तुम मेरी चिन्ता नही करो। मैंने उस से कहा कि किसी चीज की जरुरत हो तो बता दे, इस पर वह बोली कि नही तुम जा कर आराम से सोओ। मैं कुछ जरुरत पड़ेगी तो आवाज दे दुंगी। मैं उसे कमरे में छोड़ कर अपने कमरे में आ गया। माधवी बिस्तर में घुसी हुई थी। मुझें देख कर बोली कि आशा को रात को दुध पीने की आदत तो नही है मैंने कहा कि मुझें तो कुछ पता नही है। माधवी बोली कि मैं पुछ लेती हूँ। यह कह कर वह बिस्तर से निकल कर खड़ी हो गयी। किचन में चली गयी हम दोनो तो रात को दुध पीते थे। आशा भी शायद दुध रात को लेती है इस लिए माधवी को आने में देर लगी, उस ने आ कर कहा कि आशा को दुध दे कर आयी हूँ।
हम दुध पी कर सोने को लेटे थे तो माधवी मेरी छाती में सर छुपा कर बोली की मेरी वजह से आज तुम को बहुत परेशान होना पड़ा। मैंने कहा कि तुम्हारे सामने सब कुछ साफ होना जरुरी था ताकि तुम्हारे मन में कोई शंका ना रहे। तुम मेरे लिए क्या हो यह भी बताना जरुरी था। वह मेरी दोस्त है और तुम प्रेमिका हो। मेरी बात सुन कर माधवी ने मेरा चुम्बन ले लिया। वह बोली कि इतना सब क्यों बोला, मैंने कहा कि तुम्हारी आँखों की बैचेनी मैंने महसुस कर ली थी और मैं नही चाहता था कि तुम इस बात से परेशान हो। आशा के मन में भी कोई गलतफहमी नही रहेगी। मैंने माधवी को अपने से चिपका लिया। रात प्यार करने के लिए है बातें करने के लिए नही। हम दोनों फिर एक जोरदार संभोग में लग गये। अब तो सेक्स का दोनों मजा लेने लगे थे।