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Click hereअनजाहे संबंध Ch. 05 से आगे की कथा
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सुबह जब मैं जागा तो यह देखने के लिए आशा के कमरे में गया कि वह जग गयी है या नहीं? वह मेरे कमरे में आते ही बिस्तर से उठ कर बैठ गयी और बोली कि इतनी जल्दी क्यों उठ गये हो? मैंने कहा कि मैं तो इस समय ही जग जाता हूँ। आशा बोली कि माधवी तो नही उठी होगी? मैंने कहा नही। आशा बोली की मेरे पास तो बैठ सकते हो या इस की भी मनाही है? मैं हँसा और उस के पास बैठ कर बोला कि कल की बात से अब तक नाराज हो? उस ने कहा कि नाराज होने की तो कोई बात है लेकिन कल तुम्हारे मुँह से सुन कर मुझें एक बार तो झटका लगा था। लेकिन मैं तुम्हारी दशा समझ सकती हूँ इस लिए कल की बात से नाराज नही हुई लेकिन हैरान तो अब तक हूँ मुझें बताओ कि मेरी किस बात से माधवी को ऐसा लगा कि मैं तुम को मजबुर कर रही हूँ।
मैंने कहा कि कोई बात नहीं थी उस की असुरक्षा की भावना न बढ़े इस लिए कल मुझें वह सब बोलना पड़ा, तुम्हें पता नही है कि उस की क्या मानसिक दशा है, उस ने आत्महत्या करने के लिए नदी में छलाग लगा दी थी और वह मुझें नदी में तैरती हूई मिली थी। वो तो मेरा भाग्य अच्छा था कि मैं शाम को नदी पर घुमने चला गया था और यह मुझें नदी में बहती दिख गयी, नहीं तो इस का जाने क्या हाल होता। उस दिन बड़ी मुश्किल से इस की जान बची थी। इस लिए मैं कुछ भी ऐसा नही करना चाहता जिस से वह फिर से डर जाये, इस के डर की वजह के कारण मैं हर समय इस के साथ रहता हूँ।
आशा मेरी बात सुन कर बड़ी हैरान हुई और बोली कि तुम ने तो मुझें कुछ बताया नही। मैंने कहा कि मैं इस बात को यही खत्म करना चाहता था, लेकिन कल माधवी की आंखों में झाँकती असुरक्षा को देख कर मुझ से रहा नही गया और मुझें वह सब कहना पड़ा जो ना तो तुम्हे अच्छा लगा होगा ना मुझें कहने में अच्छा लगा था। कल की बात के लिए मैं तुम से भी क्षमा मांगता हुँ। आशा ने मेरे हाथ पकड़ कर कहा कि एक तरफ तो दोस्त कहते हो दूसरी तरफ माफी माँगते हो। मुझें अच्छा लगा कि कल तुमने साफ शब्दों में सारी बात हम दोनों के सामने स्पष्ट कर दी। पहले तो मुझें अजीब लगा, फिर समझ आया कि इस बात के पीछे तुम्हारी कुछ मजबुरी होगी। मेरी तुम्हारी दोस्ती पर इस से कोई प्रभाव नही पड़ेगा।
मैंने उस से पुछा कि चाय पीओगी तो वह बोली कि मैं बना कर लाती हूँ इस पर मैंने कहा कि वह मेरी मेहमान है मेजवान नही है इस पर वह हँस पड़ी, मैं किचन में चला आया, थोड़ी देर के बाद आशा भी किचन में आ गयी और बोली कि पहले अलग बात थी तुम्हारे पास कोई औरत नही थी अब तो हम दो लोग है इस लिए अब तो हमें बनाने दो। मैंने कहा कि अभी तो चाय बन गयी है। नाश्ते में तुम लोग बना लेना। मैंने उसे चाय का कप दिया और एक प्लेट में अपनी और माधवी की चाय ले कर कमरे के लिए चल दिया, कमरे में जा कर देखा तो माधवी उठ कर बैठी हुई थी मेरे को देख कर बोली कि मुझें क्यो नही उठाया? मैंने कहा कि तुम्हे पता तो है मैं कितनी जल्दी उठ जाता हूँ इस लिए नही उठाया। यह कह कर मैंने चाय का कप उसे दे दिया तभी आशा ने कमरे में प्रवेश किया, आशा को देख कर माधवी बोली कि आशा को लगेगा कि तुम मेरी कितनी सेवा कर रहे हो? मैंने हँस कर कहा कि इस ने तो मुझें हैन्डपिक्ड़ हसबैन्ड की उपाधि दी हूई है।
माधवी बोली कि आशा महेश अच्छा पति तो हो ही सकता है। इस में तो कोई शक नही है। आशा बोली कि इस का किचन में जाना दो दिन के लिए बन्द है हम दोनों ही किचन में जा सकती है। माधवी बोली कि आशा नाश्ते में क्या पसन्द करोगी। आशा बोली जो तुम खिलाओ वही चलेगा। मेरी कोई खास पसन्द नहीं है। सब कुछ खा लेती हूँ। आशा ने कहा कि आज हम दोनों साड़ी की जगह कुछ अलग पहनेगी, माधवी बोली कि यह अच्छा रहेगा, इस पर मैंने कहा कि कहीं घुमने चलना हो तो बताओ। माधवी बोली कि मुझें तो कुछ पता नही है तुम जहाँ चलना चाहो चलेगे। मैंने कहा कि कुछ दूरी पर शिव का प्राचीन मन्दिर है तथा पहाड़ी से हिमालय का दृश्य अच्छा दिखाई देता है नाश्ता करके वही चलते है चाहो तो दोपहर का खाना वही पर खा लेगे। दोनो ने इस बात पर सहमति में गरदन हिलायी। मैं नहाने के लिए चला गया, मुझें पता था कि आशा को भी नहाने जाना होगा। माधवी मेरे पीछे-पीछे आई और बोली कि आज क्या पहनुँ? मैंने कहा कि जो तुम दोनों को अच्छा लगे वो पहन लो।
माधवी कपड़ें देखने के लिए चली गयी। नहा के आया तो पता चला कि दोनों ने तय किया की जींस और टॉप पहनेगी। आशा को मैंने पहले जींस में नही देखा था सो देखने की इच्छा थी। दोनों ने नहाने के बाद कपड़ें पहन कर मेरे सामने आई तो मेरी सीटी निकल गई मैंने कहा कि आज तो कही पर हमला होने वाला है। तुम दोनों तो धमाकेदार लग रही हो। आशा ने पुछा कि यह कैसा कॉमेंट है, मैंने कहा कि तुम दोनों तो बिजलियां गिराने को तैयार लग रही हो। इस कॉमेंट का बुरा मत मानों तो दोनों देवियाँ मान गयी। कसी जींस और कसे टॉप में दोनों के बदन उभर आये थे, माधवी को तो मैंने पहले देखा था लेकिन आशा को देख कर सुखद अनुभव हुआ कि वह जितनी उम्र की लगती है उतने की नहीं है।
नाश्ते के बाद तीनों जीप में बैठ कर शिव मन्दिर के लिए चल पड़े। आधे घन्टे के बाद वहाँ पर पहुंचे तो मौसम साफ था दूर के पर्वत शिखर साफ दिखाई दे रहे थे। शिव मन्दिर के दर्शन करने के बाद पहाड़ी की चोटी पर पहुँचे जहां से हिमालय के दर्शन हो रहे थे बर्फ से ढ़की हूई चोटियाँ धुप में चमक रही थी। मैं उन की फोटो लेने लगा तो पहले आशा ने कहा कि यहाँ हम भी है हमारी भी फोटो लो तो जब उस की फोटो खिचँनी शुरु की तो माधवी भी आगे आयी कि उस की भी फोटो होनी चाहिए। सब की लेने के बाद मैंने कहा कि कोई मेरी भी ले लो तो आशा ने कहा कि मुझें केमरा दो मैं तुम्हारी फोटो खिचंती हुं। यह कह कर उस ने केमरा मेरे हाथ से लेकर मेरी फोटो खिची और मुझें दिखायी की सही आयी है या नही। आशा ने अच्छी फोटो खिचीं थी मैंने पुछा कि तुम तो अच्छी फोटो खिचती हो तो वो बोली कि अब सब कुछ छुट गया है। उस के स्वर में उदासी थी जो मैं नही चाहता था कि हो।
इस के बाद पास के रेस्टोरेंट में खाने के लिए चले गये, वहाँ का खाना पसन्द आया तो मैंने रात के लिऐ भी खाना पैक करवा लिया, इतना घुमने के बाद घर जा कर खाना बनाना कठिन काम है। घर लौटते समय मौसम बिगड़ गया और बुदाबांदी शुरु हो गयी। घर पहुंचते-पहुँचते तेज बारिश शुरु हो गयी थी।
पानी में भीगते हुए घर में घुसे। सब को गीले कपड़ें बदलने पड़े। दोनों ने स्कर्ट और टीशर्ट पहन ली थी। आज दोनों एक जैसा बर्ताव कर रही थी, अच्छा था नहीं तो कल तो लगा था कि दोनों के बीच में पीस जाऊँगा। आशा ने कॉफी बनाई और माधवी उसे ले कर आयी। कॉफी पीते में आशा ने कहा कि उसे आज की फोटो देखनी है तो मैंने कहा कि कॉफी खत्म करने के बाद में कंप्यूटर पर दिखाता हूँ। केमरे से मैमोरी कार्ड निकाल कर उस से फोटो कंपयूटर में कॉपी करी और इस के बाद उन्हें देखना शुरु किया सारी फोटो अच्छी आयी थी जो आशा ने खीची थी वह भी काफी अच्छी थी मैंने कहा कि आशा ये भी तुम्हारा छुपा हुआ गुण है जो आज पता चला है। माधवी बोली की मैं आशा से फोटो खीचना सीख लुँगी। मैंने कहा कि बढि़या बात है मैं तो अच्छा गुरु नही हूँ। दोनो फोटो में बिल्कुल मॉडल लग रही थी। मैंने कहा कि आज मैंने दोनों का फोटोशुट करा है तो मेहनताना तो बनता है। इस पर माधवी ने मेरा गाल चुम कर कहा कि मैंने तो मेहनताना दे दिया है। आशा चुप रही फिर कुछ सोच कर बोली कि बाद में चुकाऊगी। मैं चुप रहा।
बाहर बारिश जम कर हो रही थी, तीनों बरामदे में खड़े बारिश का मजा ले रहे थे तो आशा बोली कि गाने चला लेते है इस मौसम में गाने और पकोडियाँ बड़ी अच्छी लगती है तो मैंने कहा कि कहो तो बना कर खिलाऊ तो दोनों बोली कि तुम्हें तो मना करा है किचन में जाने से, तो मैंने कहा कि किस को आलु प्याज के पकोड़े बनाना आता है, दोनों चुप रही तो मैंने कहा कि मैं बेसन घोल देता हूँ तुम आलु और प्याज के टुकड़े कर लो फिर बेसन में घोल कर तेल में तल लेना, यह सुन का आशा बोली कि इतना तो मैं कर सकती हूँ, मैंने उसे बताया कि बेसन कहाँ पर रखा है और कितना लाना है, पानी भी लाने को बोला, जब वह दोनों चीजे ले कर आई तो मैंने बरतन में बेसन में पानी डाल कर घोल बना दिया और उसे धोट दिया।
फिर आशा से कहा कि आलु और प्याज ले कर आये। माधवी हमे देखती रही। आशा आलु और प्याज ले कर लोटी, मैंने तीन आलु छील कर उन को गोल-गोल काट लिया तथा प्याज को भी छील कर उस के छल्ले काट लिये फिर उन को बेसन में घोल कर आशा को कड़ाही में तेल डाल कर गर्म करने को कहा। आशा ने जब तेल गर्म कर लिया तो उसे बेसन में आलु और प्याज सान कर दिखाया कि कैसे पकोडों को बेसन में लपेट कर तेल में डाले। माधवी बोली की पकोड़ों को मैं तलती हूँ यह तो मैं कर ही लुगी।
दोनों किचन में चली गयी। थोड़ी देर बाद मैंने पुछा कि कैसे बने है तो आवाज आयी कि जब खाऔगे तभी पता चलेगा। मैंने कहा कि चाय भी बना तो माधवी की आवाज आयी कि इतनी अक्ल है। थोड़ी देर में दोनों प्लेटों में पकोड़े और चाय ले कर आ गयी। पकोड़े सही बने थे चाय के साथ बारिश में तीनों ने पकोड़ो का आनंद लिया। मैं पकोड़े खाते हुए आशा से कहा कि अब तुम यह तो कह सकती हो कि तुम्हे पकोड़ें बनाने आते है। आशा ने कहा कि हाँ बेसन धोलना ही नही आता बस मैंने कहा कि वो भी सीख लोगी। इस पर बोली कि तुम दोनों जब मेरे घर पर आयोंगे तो पकोड़े बना कर खीलाऊगी। मैं हंसने लगा, माधवी की भी हंसी इस में शामिल हो गयी।
आशा ने पुछा कि महेश तुम ने किस से पकोड़े बनाना सीखा मैंने कहा कि बचपन में मैं अपनी मां के साथ किचन में खड़ा रहता था तभी ये सब देखा था वैसे किसी से नही सीखा, और मजे की बात यह है कि मैंने आज तक पकोड़े बनाये भी नही है। यह कह कर मैं मुस्करा दिया, माधवी बोली कि अगर देख कर पकोड़े बनवा सकते हो तो अच्छी बात है। मैंने कहा कि वह भी बना सकती है केवल ध्यान देने की आवश्यकता है। शाम घिरने लगी थी, बारिश के कारण अंधेरा जल्दी हो गया, हम लोग भी घर में चले आये। गाने तो चल ही रहे थे। माधवी बोली कि तुम इतनी दूर पहाड़ों पर क्या कर रही हो? आशा ने उत्तर दिया कि वही कर रही हूँ जो तुम दोनों कर रहे हो।
मेरी भी कहानी तुम्हारी कहानी जैसी ही है, सबंधों में धोखा खाने के बाद शहर से घृणा सी हो गयी। उस से दूर भागने के लिए पहाड़ की नौकरी कर ली। यहाँ भी मेरे अकेलेपन ने पीछा नहीं छोड़ा, जब महेश से परिचय हुआ तो थोड़ा साथ मिला। लेकिन महेश भी अपने अकेलेपन को किसी के साथ शेयर नही करता है। हाँ उस से बात कर के जीने के लिये थोड़ी सी उम्मीद मिल जाती थी, मैंने कहा कि थी क्यों कहा तो उस ने कोई जबाव नही दीया। मैंने भी बात आगे नही बढ़ाई। काफी देर तक सन्नाटा पसरा रहा, उसे माधवी की आवाज ने तोड़ा कि रात को ड्रिक्स ले सकते है, आशा ने कहा कि इन्तजाम है तो माधवी ने मेरी तरफ देखा मैंने कहा कि व्हीस्की तो है उस से काम चला लेगे। आशा मुस्करायी और बोली कि मैं तुम्हे स्काच पिलाती हूँ। अपने साथ ले कर आई थी। मैंने कहा कि अपनी तो निकल पड़ी।
दोनों रात की पार्टी का इन्तजाम करने लगी। मैं गाने सुनता रहा। लग रहा था कि रात काफी धमाकेदार होने वाली थी।
दोनों ने स्काच और व्हीस्की की बोतल मेज पर रख दी आशा नमकीन भी लाई थी सोड़े का इन्तजाम पहले ही था। माधवी ने तीन पैग बनाये और हम ने चियर्स किया और नमकीन के साथ सिप लेने लगे। स्काच की खासियत है कि वह मखमल की तरह से जबान पर लगती है और नशा भी धीरे-धीरे चड़ता है। बाते करते करते दो-दो पैग हो गये, अब आशा ने व्हीस्की के पैग बनाये और सबको दे दिये, फिर से दौर शुरु हो गया। चौथे पैग के खत्म होने तक सब टुन्न हो गये थे। मैंने दोनों बोतलों को मेज से हटा दिया। माधवी ने किचन में लाया हुआ खाना गरम कर दिया और ला कर मेज पर लगा दिया, नशे में सब में पेट भर कर खाना खाया। खाने के बाद नशा और बड़ गया। खड़ा रहना भी मुश्किल हो रहा था मैंने मेज से सामान हटा कर किचन में रख दिया।
लौटा तो आशा बोली कि तुम्हे तो सजा मिलेगी किचन में जाने की, मैंने कहा कि मैं सजा भुगतने को तैयार हूँ तो माधवी बोली कि इस को क्या सजा दे? दोनों सोचने लगी। फिर शरारत से बोली कि तुम्हे आज हम दोनों के साथ सोना पड़ेगा। मैंने कहाँ कि ये तो सजा नही है। दोनों बोली कि जब सोओगे तो पता चलेगा। दोनों से मेरे चेहरे को चुमना शुरु कर दिया। मैं भी नशे के कारण उन का विरोध करने की अवस्था में नही था। दोनों मुझें बेतहासा चुम रही थी मैं भी उन दोनों को चुमने लगा। कब मेरे हाथ उन के शरीर पर पहुँच गये पता नहीं चला। आशा ने मेरी कमीज उतार कर फेक दी माधवी ने बनियान उतार दी। अब दोनों मेरी छाती को चुम रही थी। मेरे होश खो रहे थे और उन दोनों की मस्ती बढ़ती जा रही थी। माधवी की टीशर्ट उतरी फिर आशा कि टीशर्ट की बारी आई मैं दोनों के स्तनों को ब्रा के ऊपर से ही मसल रहा था।
मैंने दोनों की ब्रा भी उतार दी माधवी ने मेरे निप्पलों पर मुँह डाला तो मैंने उस के निप्पल चबा लिये। उस की सिसकियां मुझें और उत्तेजित कर रही थी, आशा के नंगे उरोज भरे हुए थे उन को मसलने में मजा आ रहा था उस के मुँह से भी आहहहहहहहहहहह उहहहहहहहहहहहहहह निकल रही थी। मैंने उस के भरे कठोर उरोज मुँह में भर लिये तथा उन्हें निगलने की कोशिश की। माधवी ने बैठ कर मेरी जींस की जिप खोल कर लिंग को ब्रीफ से बाहर निकाल लिया और उस को मुँह में डाल लिया। मेरे से खड़ा रहना मुश्किल हो रहा था, मैंने भी पहले माधवी की स्कर्ट उतारी उसके बाद आशा का नम्बर आया अब दोनों पेंटी में खड़ी थी। माधवी ने मुझें धकेल कर बिस्तर पर गिरा दिया और मेरे ऊपर चढ़ गयी। आशा भी मेरे मुँह को चुम रही थी मैंने उसकी पेंटी में हाथ डाल कर योनि के उपर हाथ लगाया, बड़ी गरम थी उसकी योनि। मेरी ऊंगली उस में घुस गयी, अन्दर गिलापन भरपुर था मेरी ऊंगली उस की योनि का अन्वेषण करने में जुट गयी। ऊंगली को जी-स्पाट मिल गया और मैं उसे सहलाने लगा।
आशा का शरीर हिल रहा था उस ने मेरी होंठ को जोर से काट खाया शायद खुन निकल आया। माधवी लिंग को चुस रही थी। मैंने आशा की पेंटी उतार कर उसे अपने मुँह पर कर लिया और अपने होंठों से उस की योनि चाटनी शुरु कर दी। आशा के कुल्हे कांप रहे थे। मेरी जीभ उस की योनि की गहराईयों में उतर चुकी थी उस को यह आनंद बहुत समय बाद मिला था वह उसे भोग रही थी। मुझें लगा कि कही मैं माधवी के मुँह में ही ना डिस्चार्ज ना हो जाऊ इस लिए मैंने उसे अपने पर बैठने को कहा, उस ने मेरे लिंग को अपनी योनि में डाल लिया और मेरे उपर आ गयी। उस की योनि पानी से भरी हुई थी लिंग को भीतर जाने में परेशानी नही हुई। उस के कुल्हों ने अपना काम करना शुरु कर दिया था पुरे लिंग को समाने के लिए प्रयास कर रहे थे। जोर से धक्के लग रहे थे। आशा के उरोजो को मेरे हाथ मसल रहे थे उन को इस का आनंद काफी लम्बे समय के बाद मिला था। मसले जाने से उन का साईज बड़ गया था तथा वे कठोर हो गये थे। माधवी ने अपने होंठ आशा की गरदन पर रख कर उसे चुमना शुरु कर दिया। आशा नीचे से ऊपर से और पीछे से हो रहे प्रहारों से उत्तेजना से भर रही थी।
मैंने माधवी को हटा कर आशा के नीचे लिटाया और उस की योनि में अपना लिंग डाल दिया उस के मुँह से आहहहहहहहहहहहहह उहहहहह उईईईईईईईईईईई की आवाज आई, योनि बड़ी कसी थी लिंग बड़े जोर लगाने पर अन्दर गया, एक बार अन्दर जाने पर तो रास्ता बन गया फिर तो वह अपनी पुरी गति से धक्कें पर धक्कें लगाने लगा। माधवी की योनि को आशा की जीभ चाट रही थी, आशा की जीभ को उस के स्वाद की आदत नही थी। मेरे हाथ माधवी के उरोजों को पीछे से मलवने लगे। वासना का बहाव हम तीनों के शरीर में बह रहा था। नशे ने उसे और बढ़ा दिया। आशा कि योनि ने मेरे लिंग को कस के जकड़ रखा था मेरे अन्दर बाहर होने में कठिनाई हो रही थी। मैं चरम की तरफ जा रहा था। आशा उत्तेजना में अपना चेहरा इधर-उधर कर रही थी। तभी मेरे लिंग से गरम वीर्य निकल गया। आशा ने भी उसी समय गरम पानी की बौछार उस पर कर दी। मेरी गति अभी कम नही हुई थी। मैंने माधवी को अपने नीचे कर के उस की योनि में लिंग को डाल दिया वह अभी भी कठोर था। उस ने वीर्य की बौछार का आनंद उठाया। आशा की वीर्य से भरी योनि मेरे मुँह पर थी और मैं उसके तथा अपने द्रव का रसास्वादन कर रहा था आशा के कुल्हे धीरे-धीरे हिल रहे थे।
इस सब में हम तीनों पसीने से तरबतर हो गये थे। तीनों एक-दूसरे की बगल में लेट गये। सब की सांसे जोर से चल रही थी। वासना की आधीं उतर गयी थी लेकिन उस का असर अभी बाकी था। आशा के चेहरे पर संतोष की छलक थी। माधवी को होश ही नही था। मेरा हाल तो बुरा था। दोनों योनियों ने मेरे लिंग को चुसा था और उस की कड़ी खिदमत करी थी। वह भी दर्द कर रहा था।
नशे के कारण कब हम सो गये पता नही चला, सबसे पहले मेरी नींद खुली तो मैंने देखा कि तीनों नंगे पड़े है। मैंने आशा को बाहों में उठाया और उस के कमरे में बिस्तर पर लिटा कर उस पर रजाई डाल दी। इस के बाद अपने कमरे में आ कर माधवी को रजाई से ढ़का और आशा के कपड़ें उस के कमरे में उस के बिस्तर पर रख आया। अपने कमरे में आ कर माधवी को स्कर्ट पहनायी और खुद भी कपडे पहने, तभी याद आया कि आशा को भी कपड़ें पहना देता हूँ। यह सोच कर उस के कमरे में गया और उस की स्कर्ट पहना कर टीशर्ट भी पहना दी। वह रजाई में सोयी हुई अच्छी लग रही थी उस के होंठों का चुम्बन ले कर मैं चला आया।
माधवी भी रजाई में पड़ी थी। उस की बगल मैं लेट गया। मुझें नींद नही आ रही थी, मैं सोच रहा था कि किस तरह आशा को उस की मन की मुराद मिल गयी। माधवी का इस पर क्या रियेक्शन होगा मुझें इस की ज्यादा चिन्ता नही थी। कुछ देर बाद मेरी भी आँख लग गयी।
रात के बाद
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सुबह मैं पहले उठ गया और सब के लिए चाय बनाने लगा। चाय बना कर एक कप आशा को देने उस के कमरे में गया तो वह मेरी आवाज सुन कर उठ कर बैठ गयी मैंने उस की चाय उस के हाथ में दी तो उस के हाथ मेरे हाथों पर जम गये। मैंने उन्हे थपथपाया तो उस ने मुझें बैठने का इशारा किया, मैं उस के बेड पर बैठ गया, उस ने मेरी तरफ देखा तो उस में आँसु थे मैंने उस के आँसु अपनी हथेली से पोछ दिये और उस के होंठों पर चुम्बन किया। वह चुप हो गयी। उस ने चाय का कप होंठों से लगा लिया।
मैं भी किचन में गया और दोनों कपों को लेकर अपने कमरे में आ गया माधवी अभी भी रजाई में दुबकी पड़ी थी मेरे आवाज देने पर बैठ गयी मैंने पुछा कि कब से जगी है? तो बोली कि अभी तुम्हारे आवाज देने पर उठी हूँ। उस ने चाय का कप ले कर चाय पीनी शुरु की और मुझ से बोली की तुम भी रजाई में आ जाओ, मैं भी उस के साथ रजाई में बैठ गया और चाय पीने लगा। उस ने अपने को देखा और कहा कि रात को कपड़ें तुम ने पहनाये है? मैंने कहा कि जो हाथ में लगा वो पहना दिया क्योंकि हम सब बिना कपड़ों के पड़ें थे, सुबह तक तो हमारी कुल्फी जम जानी थी। तुम्हे ठंड़ तो नही लग रही। वो बोली की नही ठंड़ तो नही लग रही है लेकिन सर घुम रहा है, मैंने कहा कि यह हैगओवर है उतर जायगा। वह बोली कि नशे में भी तुम्हें हम सब की चिन्ता थी कि कपड़ें पहना दिये। मैंने कहा कि नशे में नही, ऩशा उतरने के बाद जब रात में जागा तो देखा कि सब ऐसे ही पड़ें है। इस लिए तुम दोनों को कपड़ें पहना दिये।
अगर तुम पहले जाग जाती तो शायद ऐसा ही करती, वह बोली कि हाँ ये तो हम सब ही करते। आशा का क्या हाल है? उस का भी तुम्हारी तरह हाल है, उठ कर चाय पी रही है। तब तक आशा कमरे में आ चुकी थी और कुछ ढुढ़ने लगी। मैंने कहा कि क्या खो गया है तो उस के चेहरे पर लाली छा गयी। माधवी बोली कि ब्रा ढ़ुढ़ रही हो ना। महेश ने तो कपड़ें पहना दिये थे इसे ब्रा का ध्यान नही रहा था मैंने कहा कि मुझें मिली ही नही थी। उस का पहनाना जरुरी भी नही था तो दोनों ने मेरी तरफ खा जाने वाली नजरों से देखा तो मैंने कहा कि इस में इतना बुरा क्यो लग रहा है। सर्दी से बचाना था ना कि साईज देखना था।
मेरी बात सुन कर दोनों की हँसी निकल गयी। आशा बोली कि तुम तो कितनी भी कठिन बात हो उसे मिनट में हल कर देते हो। मैंने कहा कि मुझें इस में महारत है। ब्रा क्यों पेंटी भी ढुढ़ो वो भी तो नही पहन रखी है तुम ने, इस पर माधवी ने अपना तकिया उठा कर मारा, आशा भी खतरनाक तरीके से मेरी तरफ बढ़ी मैंने कहा कि एक तरफ तो इन की चिन्ता करो और दूसरी तरफ इन की डाट खाऔ। माधवी बोली कि तुम ने ही तो उतारी थी ढुढ़ो कहाँ फैकी थी। मैंने कहा कि उठ जाऔ वे भी मिल जायेगी। माधवी के बिस्तर के नीचे तो नही पड़ी थी पता चला कि आशा के रुम में पड़ी है तब मुझें याद आया कि रात को मैं ही आशा की समझ कर उस के बिस्तर पर डाल आया था मैंने अपने कानों को हाथ लगाया कि आईन्दा ऐसा नही होगा। अब से तुम्हारे साईज का पता रखुँगा।
आशा ने मेरी पीठ पर घुसा मारा कि दबाते में पता नही चला कि किस का क्या साईज है तो मैंने कहा कि तुम्हे पता है कि मैरा लिंग किस साईज का है तो दोनों के चेहरे लाल हो गये, मैंने कहा कि अब क्यो शर्म आ रही है दोनों ने मसला है और पीया भी है। आशा बोली कि गन्द बकना बन्द करो। नही तो अभी तुम्हे फिर से सजा देने का मन कर रहा है। माधवी बोली की सजा अभी पुरी कहाँ हुई है। अगली किस्त मिलनी बाकी है। मैं ने कानों को हाथ लगाया और बाथरुम में चला गया। मुझें लगा कि दोनों के बीच का शीत युद्ध अब खत्म हो गया है।