सिहरन का गणिका वसुधा से संभोग करना

Story Info
गुप्तचर सिहरन का पाटलिपुत्र में आगमन और वसुधा के साथ मिलन
2.4k words
3.75
11
00
Share this Story

Font Size

Default Font Size

Font Spacing

Default Font Spacing

Font Face

Default Font Face

Reading Theme

Default Theme (White)
You need to Log In or Sign Up to have your customization saved in your Literotica profile.
PUBLIC BETA

Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.

You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.

Click here

आज की कहानी बहुत प्राचीन काल की है। मगध में नंद का शासन था और आचार्य चाणक्य उसे हटाने का प्रयास कर रहे थे। इसी कालखंड़ में हमारी आज की कहानी शुरु होती है। चाणक्य के जासुस मगध में प्रवेश करके सुचनायें एकत्र करने का प्रयास कर रहे हैं। हमारा नायक एक ऐसा ही गुप्तचर है। पाटलिपुत्र के नगर द्वार पर नगर में प्रवेश करने वाले लोगों की प्रहरी जाँच कर रहे थे। शाम हो चुकी थी और सीमा द्वार बंद किया जाने वाला था।

सीमा पार करते हुए एक श्रेष्टी को नगर प्रेहरी नें पुछताछ के लिये रोका तो उस ने अपने आप को तक्षशिला का अश्व व्यापारी बताया जो कलिंग जाते के मार्ग में पाटलिपुत्र का भ्रमण करना चाहता है। नगर प्रवेश अधिकारी नें उस के आज्ञापत्र को देख कर उस पर मुहर लगा दी।

इस के बाद यह श्रेष्ठी नगर में प्रवेश कर गया। नगर की सीमा पर स्थित एक सराय में ठहरने के लिये उस ने सराय की मातिृका (मालकिन) को अपना परिचय दिया और कुछ दिवस रुकने के लिये कक्ष की माँग की।

मातिृका श्रेष्ठी के परिचय और उसकी वेशभुषा से प्रभावित हो गयी थी। उस ने एक दासी को बुला कर प्रथम तल पर स्थित कक्ष तक श्रेष्ठी को पहुँचाने को कहा। हमारे इस श्रेष्ठी का नाम सिहरन है जो चन्द्रगुप्त मौर्य का गुप्तचर प्रमुख है जो एक अभियान पर मगध की राजधानी पाटलिपुत्र पहुँचा है।

दासी सिहरन को उसके कक्ष में पहुँचा कर वापिस चली गयी। सिहरन ने पुरे कक्ष का सुक्ष्म निरिक्षण किया और निश्चित होने के बाद शय्या पर लेट गया।

सिहरन को पता है कि सराय में हर ठहरने वाले का हिसाब मगध की गुप्तचर सेवा के गुप्तचर रखते है। उस का यहाँ आ कर ठहरना देर तक गुप्तचरों से छिपा नहीं रह सकता। वैसे तो उस ने अपने को अश्वों का व्यापारी बताया था। लेकिन इस के बावजूद वह निस्कंटक नहीं रह सकता है। उस को कभी भी पकड़ा जा सकता है।

वह कुछ देर पर शय्या पर लेटा रहा और फिर उठ कर कक्ष का दरवाजा बंद करके नीचे के भुतल के लिये चल दिया। भुतल पर आते ही उस से एक व्यक्ति टकरा गया। उस ने सिहरन के हाथ में कुछ थमाया और झुमता हुआ आगे चल दिया। सिहरन नें पुरजा कमर में खोंस लिया और भोजनालय में घुस गया।

वहाँ बहुत भीड़-भाड़ थी। उस ने एक परिचारिका से भोजन के लिये पुछा तो वह बोली कि आप आसन ग्रहण करें, मैं भोजन की व्यवस्था करती हूँ। वह कोने में खाली पड़ें आसन पर जा कर बैठ गया। इस कोने में प्रकाश कम था जो उस के लिये अच्छा था।

कुछ देर बाद परिचारिका ने भोजन की थाली उस के आगे रख दी और चली गयी। सिहरन बहुत देर से भुखा था इस लिये वह भोजन पर टुट पड़ा लेकिन भोजन करते समय भी उस का ध्यान आसपास हो रही गतिविधियों पर ही लगा रहा।

ज्यादातर आवाजें सुरा से मद-मस्त लोगों की थी जो व्यर्थ ही बातें किये जा रहे थे। भोजन करने के बाद सिहरन अपने कक्ष में लौट आया। यह सराय सिहरन के लिये नई नहीं थी। वह पहले ही यहाँ पर आ चुका था और यहाँ की एक गणिका से उस की गहरी जान पहचान थी। वह उसी को ढुढ़ रहा था। लेकिन रात में उस के बारे में पुछताछ करना उसे उचित नहीं लग रहा था।

रात में सोते समय भी वह सजग रहा, इसी कारण से वह शय्या पर ना सो कर नीचे भूमि पर सोया ताकि अगर कोई उस पर आक्रमण करे तो वह उस से अपना बचाव कर सके। रात्रि बिना किसी घटनाक्रम के बीत गयी। प्रातः काल उठ कर वह कलेवा कर के नगर के भ्रमण के लिये निकल गया। छद्म वेश में पुरे नगर का भ्रमण करके वह शाम को सराय में वापिस लौट आया।

सराय में आ कर भोजन करते समय उस ने आस-पास दृष्टि डाली और किसी सदिग्ध व्यक्ति की तलाश की लेकिन ऐसा कोई व्यक्ति उस की नजर में नहीं आया। निश्चित होकर वह भोजन करता रहा। भोजन के पश्चात वह सुरापान में लग गया। मदिरापान करते में उस ने मदिरा पिला रही सेविका से वसुधे के बारे में पुछा तो पता चला कि वह ऊपर अपने कक्ष में है।

गणिका वसुधे का मिलना

सिहरन मदिरा से ग्रस्त होने का नाटक करता हुया झुलता हुया वसुधे की खोज में चल पड़ा। वसुधे के कक्ष का द्वार जब खटखटाया तो उस ने अंदर आने को कहा। दरवाजा खोल कर जब कक्ष में प्रवेश किया तो उसे देख कर वसुधे उस के गले लग गयी। उसे देख कर वसुधे बहुत प्रसन्न थी। सिहरन नें उसे बाहुपाश में लेकर कहा कि मैं कल से तुम्हें ढुढ़ रहा था, तुम कहाँ थी?

वसुधे ने कहा कि कल रात को वह किसी वणिक के साथ थी। सिहरन जानता था कि किसी भी गणिका का उस के ग्राहक के साथ होना सामान्य बात है। वह बोला कि तुम से मिल कर मैं बहुत प्रसन्न हूँ अब से तुम मेरे साथ ही रहो। वसुधे ने भी सहमति में सर हिलाया।

दोनों वसुधे के कक्ष से निकल कर सिहरन के कक्ष के लिये चल दिये। दोनों काम के सताये हुये थे। पुर्व में दोनों के मध्य बने संबंधों की यादें दोनों के मन में उमड़ रही थी। अब उन का उफान पर आना आवश्यक था। सिहरन के कक्ष में पहुँच कर दरवाजा बंद करने के बाद दोनों आलिंगन में बंध गये।

कुछ देर तक दोनों एक-दूसरे के शरीर की गंध और उर्जा को महसुस करते रहे, फिर दोनों के अधर एक-दूसरे के अधरों का रस का पान करने लग गये। इन का यह गहन चुम्बन काफी लम्बा चला। जब दोनों की सांसें फुल गयी तब जा कर दोनों के अधर अलग हुये।

वसुधे के शरीर की मादक सुगंध सिहरन के नथुनों में भरी जा रही थी। इस कारण से वह चेतना शुन्य सा अनुभव कर रहा था। वसुधे सिहरन की पुरुषोचित गंध से मोहित थी। नित्य नये पुरुष के साथ रात्रि बिताने वाली वह, इस सुगंध की मादकता के आगे अपने आप को विवश पा रही थी। सिहरन के हाथ वसुधे के शरीर का अन्वेषण करने लगे। उस के हाथ सिहरन के शरीर से लिपट गये।

सिहरन के अधर वसुधे की सुराही समान गरदन पर अपनी छाप छोड़ने लगे। इसके बाद वह उस के वश्रस्थल पर आ गये। कंचुकी में कसे कठोर उरोजों के मध्य चुम्बन ले कर वह के कंचुकी के ऊपर से ही कुंचाग्रों को चुमने लगे। सिहरन का हाथ वसुधे की सपाट कमर को सहला रहा था। वह उस की नाभी की गहराई के बाद नीचे की पतली केश रेखा के सहारे नीचे जाने का प्रयत्न कर रहा था लेकिन जा नहीं पा रहा था।

वसुधे के हाथ सिहरन की छाती को सहला रहे थे फिर वह भी उस के कुंचाग्रों को नाखुनों से नोचने लगी। इस कारण से सिहरन के शरीर में विधुत धारा दौड़ गयी। सिहरन ने उस के अधोवस्त्रों को धीला कर के उस की केले के तनों के समान जाँघों के मध्य का अन्वेषण करना शुरु किया। वसुधे की योनि को सहला कर सिहरन ने उसे उत्तेजित करने का प्रयास किया।

सिहरन की उंगली वसुधे की योनि के अंदर प्रवेश कर गयी। अंदर की नमी के कारण उंगली का अंदर बाहर होना बिना किसी घर्षण के हो रहा था। सिहरन की इस क्रिया के कारण वसुधे के शरीर में उत्तेजना की लहरें दौड़ रही थी। वह उत्तेजना वश सिहरन को दांतों से काट रही थी।

सिहरन का मुँह अब उस की योनि की तरफ झुक गया और वह योनि का स्वाद लेने लगा। योनि की मादक सुगंध और कसैले स्वाद ने उसे अपनी जिव्हा के द्वारा योनि के भीतर का स्वाद लेने को मजबुर कर दिया। उस की जिव्हा वसुधे की योनि का भ्रमण करने लग गयी। उत्तेजना के कारण वसुधे के पैर उस के सिर पर कस गये।

वसुधे ने भी उस के अतःवस्त्रों को खोल दिया था और उस की लंगोट को धीला कर के उस के उत्तेजित लिंग को लंगोट से बाहर कर के उसे सहलाना शुरु कर दिया। इस के बाद लिंग उस के मुँह में चला गया और वह उसे अंदर बाहर करके चुसने लगी।

वसुधे के इस कार्य के कारण कुछ देर बाद सिहरन उस के मुँह में ही स्खलित हो गया। वसुधे ने भी चरमोत्कर्ष को प्राप्त किया और उस का योनि रस सिहरन के मुँह में भर गया। वह उसे सम्पुर्ण गटक गया। स्खलित होने के कारण दोनों शिथिल हो कर अगल-बगल में लेट गये।

वसुधे के साथ रमण

कुछ समय पश्चात् दोनों फिर से काम क्रीडा में लग गये। कामाग्नि दोनों के शरीर में पुनः प्रजव्लित हो गयी थी। अब उस का शमन करना जरुरी था। चुम्बनों का दौर फिर से शुरु हो गया। मर्दन, काटने, चाटने के बाद दोनों के शरीर में दाह रुप में काम बहने लगा।

सिहरन के अधर वसुधे के सारे शरीर का स्पर्श कर रहे थे। उस के पांवों का चुम्बन करके वह उस के उरोजों का हाथों द्वारा मर्दन करने लगा और कुंचाग्रों का रस पान कर वसुधे की जाँघों के मध्य बैठ गया और वसुधे की टांगों को दोनों तरफ फैला दिया।

उस का मुसल के समान तना लिंग वसुधे की योनि के मुँह को स्पर्श कर रहा था, वसुधे से अब रुका नहीं जा रहा था। वह चाहती थी कि शीघ्र ही सिहरन अपने लिंग को उस की योनि में डाल दे। सिहरन नें उस की मन की बात को समझ कर अपने लिंग को उस की योनि के मुँह पर रख कर दबाब डाला तो लिंग वसुधे की योनि में प्रवेश कर गया।

लिंग का मुँख योनि में चला गया था। वहाँ पर नमी के साथ गरमी भी थी। सिहरन नें दूबारा जोर लगाया तो आधे से ज्यादा लिंग वसुधे की योनि में समा गया। नीचे से वसुधे नें अपने कुल्हों को उछाल कर बचे लिंग को भी अपनी योनि में समा लिया। वसुधे के मुँह से आहहहहहहहहहहह........... उहहहहहहहहहहहह....... ध्वनि निकलने लगी।

सिहरन ने अपने कुल्हों का प्रहार तेज कर दिया। उस के कुल्हें वसुधे की योनि पर जोरदार प्रहार कर रहे थे। वसुधे नीचे से कुल्हों को उठा कर उस का इन प्रहारों में साथ दे रही थी। कुछ देर बार कक्ष में फचा-फच की ध्वनि भर गयी। आहों और कराहों की ध्वनि पुरे कक्ष में भर रही थी।

कुछ देर बाद सिहरन शय्या पर बैठ गया और उस ने वसुधे को अपनी गोद में बिठा लिया, उस का लिंग वसुधें की योनि में प्रवेश कर गया। सिहरन वसुधे के अधरों पर चुम्बन देने लगा और दोनों के कुल्हें एक-दूसरे में समाने लग गये। अधरों के बाद सिहरन नें वसुधे के स्तनों को अपने मुँह में ले कर चुसना शुरु किया। वसुधे के कुल्हें उछाल कर सिहरन के लिंग को अंदर बाहर कर रही थी और सिहरन उस के उरोजों का रसपान कर रहा था।

इस आसन में दोनों काफी समय तक संभोगरत रहे। फिर थक कर अगल-बगल लेट गये। इस के बाद सिहरन नें वसुधे के दोनों पांव अपने कंधों पर रखे और उस की कसी हुई योनि में अपना लोहे के मुसल के समान कठोर लिंग डाल दिया और संभोग करने लगा। योनि के कस जाने के कारण लिंग को बहुत घर्षण मिल रहा था। कुछ देर बाद सिहरन का आँखें मुद गयी और वह स्खलित हो गया।

उस ने वसुधे के पांव नीचे कर लिये और उस के ऊपर लेट गया। कुछ देर बाद चेतना आने के बाद वह वसुधे की बगल में लेट गया। वसुधे के दोनों उरोज उत्तेजना के कारण अभी भी ऊपर-नीचे हो रहे थे। दोनों के शरीर संभोग के कारण स्वेद कणों से आच्छादित थे। कुछ देर बाद पुर्ण चेतना पा कर दोनों निंद्रा देवी की अराधना में डुब गये।

दिन में मगध की स्थिति का पता लगाना

प्रातःकाल सूर्योदय से पहले ही सिहरन शैय्या से उठ गया। वसुधे अभी सो रही थी, उसे सोते छोड़ कर सिहरन नित्यकर्मों में लग गया। स्नान कर वह जलपान करके नगर भ्रमण पर निकल गया। नगर भ्रमण तो सिहरन का एक छद्द आवरण मात्र था, असल मकसद तो उसे घनानंद की सेना में चल रही घटनाओं का विश्लेष्ण करना था।

इसी लिये वह अपने सम्पर्क सुत्रों का उपयोग कर रहा था। श्रेष्ठी का आवरण उसे मदिरालयों और नृत्यशालाओं में प्रवेश में सहायता कर रहा था। उस के बाह्य आवरण से उसे इन स्थानों पर प्रवेश और वार्तालाप करने में सहायता मिल रही थी। वह अपने अभियान में पुरे जोर-शोर से लगा हुआ था।

नंद की सेना की अश्वशाला के मुख्य अधिकारी से उस का परिचय हो गया। अश्वशाला का प्रबंधक अच्छे किस्म के अश्वों की खोज में था। जब सिहरन नें उसे बताया कि उस के नगर के बाहर लगे शिविर में काफी मात्रा में उच्च श्रेृणी के अश्व है और वह उन की बिक्री कर सकता है। इस बात से वह अश्वशाला के कार्यपालक का विश्वसनीय बन पाने में सफल हो गया। उस का यह सम्पर्क ही उस के आगे के कार्य का वाहक बनना था।

उसे पता लगा कि मगध में सत्ता परिवर्तन होने का कयास जनसामान्य लगा रहा है। सम्राट ने अपने बड़े पुत्र को राजकुमार घोषित कर दिया है। लेकिन इस कारण से राजपरिवार में कुछ लोग अप्रसन्न है। व्यवस्था में भी सब कुछ सही नहीं था। असंतोष पनप रहा था। कारण क्या था कोई नहीं जानता था लेकिन सिहरन को पता था कि इस सब के पीछे उस के आचार्य विष्णुगुप्त के प्रयास ही थे।

वह उन की सहायता के लिये ही यहाँ आया था। लेकिन उस ने अपने आचार्य से मिलने का कोई प्रयास नहीं किया। उस का सारा दिन इन्ही कार्यों में बीत जाता था। संध्या होने पर ही वह सराय में लौट पाता था, जहाँ वसुधे उस की प्रतिक्षा करती थी।

रात में गणिका के मन का करना, वातसायन के कामसुत्र के आसनों का प्रयोग करना

सिहरन के प्रेम करने की शैली के कारण वसुधे उस के ऊपर मोहित थी। वसुधे की वासना को सिहरन पुरी तरह से संतुष्ट कर पाता था। रात्रि में दोनों के बीच होने वाला संभोग बहुत उर्जा से भरा होता था। सैनिक होने के कारण सिहरन का बल और गणिका होने के कारण वसुधे की काम कला में प्रविणता इस में सहयोग करते थे।

दोनों के बीच का सम्नवय संभोग को नई उर्जा से भर देता था। दोनों हर रात्रि को आचार्य वात्सायन के कामसुत्र के विभिन्न आसनों का प्रयोग किया करते थे। रात्रि को कक्ष आहों, कराहों से भर जाता था। शय्या की चरमराहट रात भर कमरे में होती रहती थी।

उछ्वासों, उखड़ी सांसों से ही पता चलता था कि सनातन खेल में खिलाड़ियों की हालत क्या हो रही है। जब उफान शीर्ष पर आ कर उतर जाता था तब जा कर कक्ष में शांति छा जाती थी। दोनों के मध्य काम क्रीड़ा नित्य प्रतिदिन होती थी।

कार्य होने के बाद सिहरन का नगर से प्रस्थान

कुछ दिवस बाद सिहरन अपने उद्देश्य में सफल हो गया और वह अपने अभियान के अगले चरण की पुर्ति के लिये पाटलिपुत्र से चला गया। उस ने इस के लिये वसुधे से औपचारिक विदा भी नहीं ली। उसे इस का अवसर ही नहीं मिला।

****समाप्त****

Please rate this story
The author would appreciate your feedback.
  • COMMENTS
Anonymous
Our Comments Policy is available in the Lit FAQ
Post as:
Anonymous
Share this Story

Similar Stories

देवाशीष और दीपा की दूबारा सुहागरात शादी के बाद पत्नी का पति के साथ संबंध बनाने से मना करना।in First Time
अनजाने संबंध Ch. 01 नदी से लड़की का बचाव और उस के बाद की घटनाएँ.in Group Sex
उस रात को क्या हुआ था ? रात में सोते में अपने साथ हुई घटना का रहस्यin Erotic Couplings
The Babysitter Leah's crush over a Dad finally becomes a reality.in Erotic Couplings
बरसात की रात बॉस के साथ बरसात की रात में बॉस के साथ प्यार करनाin Erotic Couplings
More Stories