वन नाइट स्टैंड

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मैंने कहा कि इतना सब कुछ सोच रखा है तो मेरे लिये भी कुछ जरुर सोच रखा होगा सुनु तो सही क्या सोचा है? मेरी बात सुन कर वह बोली कि यही तो नहीं सोचा और जो सोचा है वो मैंने सोचा है जरुरी तो नही कि वह सच भी हो। मैंने जोर दिया तो वह बोली कि आप कभी-कभी मेरे साथ कुछ समय बिताऐ, ऐसा मैंने सोचा था। लेकिन यह तो आप पर और परिस्थितियों पर निर्भर करता है। मैंने कहा की कुछ गलत नहीं सोचा है। यह हो सकता है। मेरा साथ तो तुम्हारें साथ हमेशा रहेगा। यह पक्का है। इस को लेकर निश्चित रहो।

वह बोली कि उस दिन जब आप रात को मुझे घर छोड़ने आये थे तभी पता चल गया था कि आप कैसे है? जो व्यक्ति एक रात पहले किसी के साथ रात बिता चुका हो और घर पर अकेले मौका मिलने पर भी कुछ ना करें उस पर विश्वास किया जा सकता है। आगे भी आप ने उस घटना का कभी उल्लेख मेरे सामने नहीं किया। यह सब देख कर मुझे विश्वास हो गया था कि मुझे सही आदमी से प्यार हुआ है। जो मुझे बचाने के लिये बिजली, तुफान के आगे आ जाये वह कैसा होगा यह पता चल गया था।

ऑफिस में आप की कठोर छवि के विपरीत आप के व्यवहार ने मेरी चाहत को और दृढ़ कर दिया। मुझे पता चला कि इस कठोर आवरण के अंदर एक बहुत ही कोमल ह्रदय है जो किसी का बुरा नही सोच सकता है। मैनें उन की बात सुन कर कह कर कहा कि अब मुझे इतना ऊँचा मत बनाओं, मैं भी एक साधारण आदमी हुँ जिस में गुण-अवगुण सब है। हाँ एक बात है मैं मखौटा पहन कर नहीं रहता। मेरी बात पर वह मुस्करा कर बोली कि कॉफी तो ठंडी हो गयी है उसे गरम कर के लाती हूँ वह उसे गरम करने चली गयी। मैं पीछे अकेला बैठा सोचता रहा कि आगे क्या होगा। कुछ-कुछ तो अंदाजा था लेकिन कुछ तय नही था।

वह जब काफी ले कर आयी तो हम दोनों कॉफी पीने लगे। मैंने पुछा कि जीवन में अकेले रहने का निर्णय बहुत कठोर है। तुम्हें देख कर नही लगता कि इतनी नाजुक सी महिला ऐसा निर्णय ले सकती है। वह बोली कि शरीर से इसका कोई संबंध नही है मन में दृढ़ता होनी चाहिये जो मेरे में है।

कॉफी पीने के बाद उन्होंने पुछा कि मेरी इस बात से आप को धक्का लगा है? मैंने कहा कि धक्का नहीं लगा है, कुछ-कुछ अंदाजा था कि कुछ तो तुम्हारें दिमाग में चल रहा है लेकिन मैं उस रात की घटना को ज्यादा महत्व नहीं देना चाहता था। दो लोग मिले कुछ उन दोनों के बीच हुआ, बात खत्म। लेकिन फिर लगा कि नहीं बात खत्म नहीं हुई है अभी तो शुरुआत है। शायद आने वाले घटनाक्रम का सकेंत है। इसी लिये चुप था तुम अपना काम कर रही थी मैं अपना। लेकिन तुम ने इतना कठोर निर्णय लिया तो मुझे लगा कि जरुर कोई बड़ी बात है जो मुझे पता नही है। पुछने की हिम्मत नही हूई। तुम ने आज बता कर अच्छा किया। सब कुछ स्पष्ट हो गया। कोई गलतफहमी नही रह गयी है।

मेरी बात पर वह बोली कि मिठाई चलेगी, मैंने कहा कि दौड़ेगी। मेरी बात सुन कर वह दौड़ कर मिठाई का डिब्बा ले आयी। उस ने एक टुकड़ा निकाल कर मेरे को खिलाना चाहा तो मैंने उस का हाथ पकड़ कर कहा कि इस की हकदान तो तुम हो और यह कह कर टुकड़ा उस के मुँह में डाल दिया। वह चुपचाप उसे खा गयी। फिर एक और टुकड़ा उठा कर बोली कि अब तो खा लो। मैंने उसे मुँह में ले लिया। मुझे मिठाई खिलाते में वह लड़खड़ाई तो मैंने उसे संभाल लिया। अब वह मेरी बांहों में थी मैंने उस के होंठों को चुम कर कहा कि असली मिठाई तो यह है, इन की मिठास का कोई जबाव नहीं। वह शर्मा कर मेरी बगल में बैठ गयी।

मैंने घड़ी देखी और कहा कि अभी तो चलता हूँ फिर किसी दिन आराम से बैठते है खुब बातें करेंगें। उन्होंनें मेरी तरफ बेचारगी से देखा तो मैंने उन्हें उठा कर गले से लगाया और कहा कि यही समस्या है हमारे रिस्ते की, कि समय निकालना बहुत मुश्किल होगा। लेकिन इसका भी समाधान निकलेगा। तुम मन छोटा मत करों, फोन पर तो मैं हमेशा तुम्हारें साथ हूँ। यह सुन कर उन के चेहरे पर चमक वापस आयी। मैं उन से विदा लेकर वापस चल दिया। रास्तें भर यही विचार रहा कि वन नाइट स्टेंड कैसे हो सकता है, हर स्टेंड़ के बाद के परिणामों को भोगना ही पड़ता है, चाहे वह अच्छे हो या बुरें।

अनु के साथ समय बिताना

शनिवार को कुछ काम नहीं था सो ऑफिस से आधा दिन की छुट्टी ले कर अनु को फोन किया तो पता चला कि वह भी घर जा रही है मैंने कहा कि मैं उस के पास आ रहा हूँ तो वह खुश हो गयी। उस के घर पहुँचा तो वह भी घर आ चुकी थी। कपड़ें बदलने ही जा रही थी मेरा इंतजार कर रही थी। मेरे घर में आते है दरवाजा बंद करके मुझ से लिपट गयी और बोली कि मैं मन ही मन सोच रही थी कि आज तुम से मिलना हो जाये और तुम्हारा फोन आ गया। मैंने कहा कि मैं नहाना चाहता हूँ पोसिवल है? वह बोली इस में परेशानी क्या है? मैंने शैतानी से कहा कि अब अकेले थोड़े ना नहाऊँगा। कोई तो साथ होना चाहिये तो जवाब मिला की साथ नहाने वाला तैयार है। कपड़ें तो उतार दो। मैंने अपने कपड़ें उतार कर एक तरफ रख दिये। फिर उस की तरफ देखा तो वह बोली कि तुम चलो मैं आती हूँ।

मैं उस के बाथरुम में घुसा तो देखा कि बाथटब भी था तथा अलग से शॉवर भी था। सोच ही रहा था कि क्या करुँ तभी अनु टॉवल ले कर गयी। उस ने भी टॉवल ही बाधी हुई थी। मैंने पुछा कि कहाँ तो वह बोली की शॉवर में। मैं ब्रीफ उतार कर शॉवर के नीचे खड़ा हो गया, वह भी अपनी टॉवल उतार कर मेरे पास आ गयी। दोनों ने शायद एक-दूसरे को पहली बार रोशनी में बिना कपड़ों के देखा था।

वह कुछ झेप सी रही थी। मैंने उसे अपने करीब करके कहा कि शर्मा क्यों रही है? उस ने जबाव नहीं दिया लेकिन उस ने हाथ बढ़ा कर शॉवर खोल दिया। पानी की महीन बौछारें हम दोनों के शरीर पर पड़ने लगी। ठंड़े पानी ने शरीर की गर्मी कम करने की बजाए और बढ़ा दी थी। उस के बदन की मादक सुगंध मुझे मदहोश कर रही थी। कुछ देर पानी में भीगने के बाद मैंने उस के बदन पर अपने हाथ फिराने शुरु कर दिये।

उस के चेहरे से होकर गरदन, छातियां, कमर, कुल्हें, पीठ हर जगह मेरे हाथों ने सहला ली। उस ने भी मेरा सारा शरीर सहला मारा। शॉवर से गिरते ठंड़े पानी ने काम की अग्नि हमारे शरीरों में जला दी थी। मैंने देखा की एक तरफ टाईल लगे थे। सो उस तरफ उस की पीठ करके हाथों से उस के कुल्हें उठा कर लिंग को उस की योनि में डाल दिया। उस ने अपने पांव मेरी कमर के चारों तरफ लपेट लिये। बढ़िया पोजिशन थी लिंग आराम से अंदर बाहर हो रहा था।

महीनों की प्रतिक्षा खत्म हो गयी थी। दस मिनट तक संभोग चलता रहा। सर पर शॉवर का पानी गिरता रहा और नीचे हम दोनों संभोग करते रहे। जब स्खलित हुये तो कुछ देर तक हांफते रहे फिर मैंने उसे नीचे खड़ा कर के उस के सारे शरीर पर साबुन लगा कर उसे रगड़ना शुरु कर दिया उस ने भी ऐसा ही मेरे साथ किया। दोनों खुब मल-मल कर नहाये। बाथरुम से निकल कर मैंने कपड़ें पहन लिये तथा वह कपड़ें पहनने दूसरे कमरे में चली गयी।

जब कपड़ें पहन कर वापस आयी तो सुन्दर लग रही थी गीले बालों पर तोलिया बाँध रखा था तथा टॉप और स्कर्ट पहन रखी थी जिस में वह और जवान दिख रही थी। मैं उसे देखता रहा, यह देख कर उस ने मुझे झकझोरा की कहाँ हो?

तुम्हारी सुंन्दरता में खोया हुआ हूँ

अब इतनी भी मख्खनबाजी सही नही है। बदले में कुछ मिलेगा नहीं

मैंने कहा कि भक्त कुछ चाहता ही नहीं है केवल रुप के रस का पान करना चाहता है। मेरी बात सुन कर वह बोली कि यह तो नया ही रुप सामने आया है आपका। कितने बहुरुपिये हो? मैंने कहा कि तुम्हें देख कर कुछ भी बन सकता हूँ। वह मुझ से लिपट कर बोली कि बहुरुपिया तो तुम हो ही। किसी का भी मन हर लेते हो। पता नहीं कितनों के दिल पर बाणों के घाव लगें होगे। मैंने कहा कि घायल की गति घायल जाने। फिर वह हँस कर बोली कि पेट पूजा करनी है या चाय पीनी है? मैंने कहा कि चाय पिलाओ देवी। वह मेरे सिर पर हल्की सी चपत लगा कर चली गयी।

चाय बना कर लायी तो देखा कि साथ में समोसे भी है तो पुछा कि यह कब ले आयी तो बोली कि तुम से बात होनें के बाद रास्तें में बनते दिखे तो ले आयी तुम्हारें साथ खाये हुऐं समोसों की याद आ गयी थी। मैंने एक समोसा उठा कर कहा कि तुम्हें याद होगा कि मैं समोसे खाते-खाते यह भी कहता था कि मुझे समोसे पसन्द नही है लेकिन फिर भी खा जाता था। वह बोली कि मुझे सब याद है।

चाय खत्म होने के बाद ऐसे ही बातें करते रहे। उस ने पुछा की जॉब के क्या हाल है? मैंने बताया कि हमारे यहाँ भी कुछ अच्छा नही चल रहा है कभी भी छुट्टी करी जा सकती है। उस ने कहा कि मेरे सामने भी तुम्हारी बहुत बुराई होती थी लेकिन टॉप को पता था कि तुम्हारें बिना काम नहीं चल सकता है। इसी लिये तुम बचे रहे। अब कुछ और इंतजाम कर लिया होगा। मैंने कहा कि अपने रिस्तेदार को आगे कर रहे है। हमने जो इतनी मेहनत करी इस कंपनी को उस की कोई कीमत नही है। अनु बोली कि कंपनी किसी की कीमत नहीं देखती। वह केवल अपने काम से मतलब रखती है। अब कंपनी चल गयी है तो तुम्हें हटा सकती है।

मैंने कहा देखते है जो होगा देखा जायेगा। वह बोली कि मैं कहीं और जॉब ढुढ़ कर रखती हूँ, वो तुम्हें निकाले इस से पहले तुम ही उन्हें छोड़ देना। मैंने कहा कि सोचा तो कुछ ऐसा ही है। वह चाय के बरतन रख कर आयी तो बोली कि

मेरा मन तो नहीं भरा है

मेरा भी कहाँ भरा है वो तो उसी समय मन में जो आया तो कर लिया।

सही लगा?

मजा आ गया मुझे समझ नही आया कि तुम्हारें दिमाग में कब आया?

मैंने कहा कि घर में घुसते में मन में आया था लगा कि पता नहीं तुम क्या कहोगी। फिर सोचा कि चलों पुछ लेते है। तुम्हें देख कर रुका नहीं गया। वह बोली की जब साथ में काम करती थी तब क्या करते थे। मैंने कहा कि तब तुम्हें देख कर कोई ख्याल ही नहीं आता था। शायद दिमाग काम करना बंद कर देता था। वह बोली की हाँ ऐसा मुझे भी लगा था कि यह आदमी मेरे साथ सो चुका है फिर भी ना तो मुझे घुरता है ना कुछ इशारे करता है ना कुछ कहता है।

क्या इसे उस रात का कुछ भी याद नही है? सब कुछ नशे की हालत में हुआ था। शायद यही वजह रही होगी। आज तुम्हारा व्यवहार देख कर लग रहा है कि तुम्हारा अपने आप पर बहुत नियंत्रण है। मैंने कहा कि कुछ ऐसी ही बात है उस समय कुछ भी हल्का करना या बोलना तुम्हारी इज्जत को खतरें में डालता। यह मैं कभी नही कर सकता जिन्हें मैं चाहता हूँ उन की हानि के बारे में सोचना भी मेरी आदत में नहीं है।

मैं कपड़ें उतारनें लगा तो अनु ने आगे बढ़ कर मेरी कमीज उतारनी शुरु कर दी और बोली कि मुझे उतारने दो। उस ने कमीज उतार कर एक तरफ रख दी फिर बनियान भी उतार दी। अब नंगी छाती पर चुंबन दे कर बोली कि यहाँ पर मेरा अधिकार है। मैंने यह देख कर उस की टीशर्ट उतार कर दी, इस के बाद उस की स्कर्ट को भी नीचे खिसका दिया इन दो कपड़ों के अलावा उस ने कुछ नहीं पहना था। वह मेरे सामने बिना वस्त्रों के खड़ी थी।

मैं अपनी नजरों में उस के बिना वस्त्रों की छवि को समा लेना चाहता था सो उसे ध्यान से घुर रहा था वह यह देख कर बोली कि ऐसे ना देखों मुझे शर्म आ रही है। यह कह कर वह मेरे बचें हुयें कपड़ें उतारने लग गयी। पेंट उतार कर उस ने ब्रीफ भी उतार दी। अब हम दोनों बिना कपड़ों के एक-दूसरे के सामने खड़े थे। कोई शर्म नही थी। होनी भी क्यों चाहिये थी? मैंने उस की ढोड़ी पकड़ कर उस का चेहरा ऊपर उठा कर उस के लबों पर एक बोसा दे दिया। वह कस कर मुझ से लिपट गयी।

अब मैं कुछ नहीं कर सकता था केवल उस के बदन को सहला सकता था। सो करना मैंने शुरु कर दिया। उस की बांहें भी मेरी पीठ पर ऊपर नीचे हो रही थी। फिर मेरे कुल्हों पर आ कर उन्होनें उन्हें कस कर अपने शरीर से चिपका लिया। मेरे और उस के शरीर के बीच खाली स्थान खत्म हो गया। मेरा लिंग जो ठंड़ा पड़ा था उस की योनि के सम्पर्क में आ कर तनने लग गया।

मैंने उस की गरदन पर किस किया और मेरे होंठ उस की गरदन को चुसने लगे। मेरी इस हरकत से वहाँ लव वाईट बन गया। मैंने अनु से कहा कि उसे बताना पड़ेगा कि क्या हुआ है? वह बोली कि यह तो साड़ी पहनने के बाद किसी को दिखायी नही देगा। लेकिन तुम ऐसा क्यों कर रहे हो? मैंने कहा कि रुका ही नहीं जा रहा है लगता है कि जैसे जवानी के दिन वापस आ गये है।

मेरी पत्नी शादी के बाद मुझ से बड़ी परेशान रहती थी, पड़ोसनें इन्हें देख कर उस को बड़ा चिढ़ाती थी मुझे भी नहीं मालुम था कि इन्हें क्या कहते है? लेकिन यह हफ्ते पंद्रह दिन में बन ही जाते थे। लग रहा है कि आज वही समय दूबारा आ गया है। वह बोली कि अच्छी बात है इतने समय के बाद भी इतना बल है तुम में। मैंने कहा कि मुझे ध्यान रखना चाहिये नहीं तो तुम्हें बिना मतलब के परेशानी होगी। वह बोली कि जो कर रहे हो करते रहों, मुझे अच्छा लग रहा है। मैंने बहुत कुछ मिस किया है। इस लिये जो कुछ हो रहा है उसे रोकना नहीं होने दो। देख लेगे कि कैसे सामना करना है। मैंने उस से कुछ पुछना उचित नहीं समझा लेकिन समझ गया कि उस की कुछ खराब यादें है।

मैंने अब उस की छाती पर चुमना शुरु कर दिया, उस के उरोज ज्यादा बड़ें तो नही थे लेकिन उन में कठोरता बहुत थी। लगता था कि किसी कुंवारी लड़की के है। किसी ऐसी स्त्री जो एक बच्चें को जन्म दे चुकी है और उसे दूध पिला चुकी है इतनी कठोरता का होना आश्चर्यजनक था। लेकिन अभी तो उन के रस को पीने का समय था कभी बाद में इस रहस्य को बुझा जा सकता था। भुरे निप्पल कड़े हो कर खड़े थे और मैं अपने होंठों के बीच उन्हें लेकर उन का रस पी रहा था।

मेरे ऐसा करने से अनु के मुँह से सिसकियां निकलने लगी। उस से खड़ा नहीं हुआ जा रहा था सो हम दोनों बेड पर लेट गये। मैं अपने होंठो से उस के शरीर का निरिक्षण करता रहा। वह मेरी छाती पर गरम सांसें छोड़ती रही। उस के हाथ मेरे कुल्हों के बीच की दरार में घुस गये थे। वह दरार की गहराई को खंगाल रहे थे। मुझे समझ नही आ रहा था कि वह क्या करना चाहती है लेकिन फिर उस की एक उंगली मेरी गुदा के मुख को सहलाने लगी, मुझे अजीब लगा लेकिन मज़ा भी आ रहा था सो मैंने कुछ नहीं कहा फिर वह गुदा के अंदर घुस गयी दर्द तो हुआ लेकिन उस समय महसुस नही किया।

उस ने उंगुली ज्यादा अंदर नही की सिर्फ कुछ अंदर करके ऐसे ही रहने दी। मुझे यह अच्छा लग रहा था। कुछ देर बाद उस का हाथ मेरे लिंग पर पहुँच कर उसे सहलाने लगा। सहलाने से उस का तनाव एक दम बढ़ गया और वह तन कर कठोर हो गया। मैंने भी अपने हाथ से योनि को सहलाया और उस के होंठो को अलग करके एक उंगुली को अंदर बाहर करना शुरु कर दिया। समय कम था इस लिये लंबें फोरप्ले का समय नही था। इस लिये जब मैंने देखा कि अनु की योनि में बहुत नमी थी तो मुझे लगा कि सही समय है।

मैंने उसे पीठ के बल लिया कर उस की योनि में लिंग डाल दिया, अचानक ऐसा होने से वह कसमसायी लेकिन यह कसमसाहट दिखावटी थी लिंग के पुरा अंदर जाते ही वह नीचे से कुल्हों का उछालने लगी। नीचे का शरीर अपना काम कर रहा था और ऊपर का हिस्सा अपना। दोनों के होंठ एक-दूसरे से चुपक कर एक दूसरें का रस पी रहे थे जब इस से छुटे तो जीभ एक-दूसरें से द्वन्द युद्ध करने लगी। शरीर गर्मी के कारण पसीने से नहा गये लेकिन हम दोनों के शरीरों की गति कम नहीं हो रही थी। लगे रहे फिर चरम पर पहुँच कर ज्वालामुखी फट गया। दोनों पस्त हो कर अगल-बगल लेट गये।

एक घंटे के दौरान दूसरी बार संभोग किया था सो थकान तो होनी ही थी। मैं उस की तरफ पलटा तो वह भी मेरी तरफ पलट रही थी मुझे देख कर बोली कि कहीं ज्यादा तो नहीं कर रहे? ऐसा ना हो कि तुम्हें परेशानी हो। मैंने कहा कैसी परेशानी तो वह बोली कि रात को पत्नी को संतुंष्ट कैसे करोगे? मैंने कहा कि पहले तो ऐसा मौका आयेगा ही नही, और अगर आया तो तब तक ताकत वापस आ चुकी होगी। वह बोली कि ऐसा क्यों कह रहे हो? मैंने कहा कि मेरी शादी को लंबा समय हो गया है सो उस में गर्मजोशी कम हो गयी है।

कभी-कभी तो कई हफ्तें बीत जाते है संबंध बनाये हुये। वह बोली कि पता नहीं शादी के कुछ सालों बाद ऐसा क्या हो जाता है कि पति-पत्नी एक दूसरे से बोर हो जाते है या एक दूसरे का ध्यान रखना कम कर देते है। मैंने कहा कि कुछ ना कुछ तो है लेकिन सच वही है जो मैंने तुम्हे बताया है। काम में और अन्य बातों में डुब जाने से जीवन के एक बड़े आनंद से लोग मरहुम रह जाते है। शायद इसी कारण से बाद के सालों में लड़ाई झगड़ें भी बढ़ जाते है। वह चुप रही। कुछ देर बाद उस ने कहा कि मैं तुम से कुछ ज्यादा तो नहीं माँग रही हूँ? मैंने कहा नहीं ऐसा तो नहीं है लेकिन कई बातों का ध्यान रखना पड़ेगा।

हमें वैसे भी अवसर कम ही मिलेगे। सो ऐसे ही मन मार कर काम चलाना पड़ेगा। वह बोली कि यह तो पता है कि सब कुछ नहीं मिलेगा लेकिन जो भी है उसी में मैं तो खुश हुँ। कुछ देर ऐसे ही पड़े रहने के बाद मैं बेड से उठ गया और बाथरुम में जा कर अपने लिंग को पानी ने धो कर आ गया, अनु भी बाथरुम चली गयी। मैंने कपड़ें पहनने शुरु कर दिये थे। जब वह बाहर आयी तो बोली कि मुझे तो बहुत जोर का पेशाब आ रहा था। मैंने कहा सही है होता है।

मुझे कपड़ें पहनते देख कर बोली कि इस समस्या का भी कोई निदान ढुढ़ना पड़ेगा कि तुम जब भी आओं तो तुम्हें कपड़ों की परेशानी ना हो। मैंने कहा कि जो अच्छा लगे कर लेना। अब मैं चलता हूँ । यह कह कर मैंने उस को किस किया और जुतें पहन कर उस के घर से निकल गया। नीचे आ कर अपनी गाड़ी निकाल कर घर की तरफ चल दिया,अभी मुझे आधा घंटे से अधिक की ड्राइविग करनी थी, थकान बहुत हो रही थी लेकिन उस को अपने पर हावी नहीं होने देना था।

आराम से गाड़ी चला कर मैं घर पहुँचा, पत्नी बोली कि देर कैसे हो गयी? मैंने कहा कि कुछ काम पड़ गया था। उसे पता था कि मैं शनिवार को भी जल्दी नहीं आ पाता था। सावधानी के कारण मैं नहाने चला गया, मैं नहीं चाहता था कि रात में कहीं पत्नी को किसी की गंध आये या कुछ और पता चले सो नहाना ही बेहतर उपाय था, सामान्य तौर पर शाम को नहाते समय सिर नही धोता था लेकिन आज ऊपर से नीचे तक साबुन लगा कर मल-मल कर नहाया। नहानें से थकान दूर हो गयी थी अच्छा महसुस हो रहा था। रात को पत्नी के साथ लेटा तो आज वह भी रोमांटिक मूड में थी सो दोनों के बीच जम कर धमाल हुआ और जोरदार संभोग के बाद दोनों एक-दूसरे की बांहों में सो गये।

सुबह जब मैं उठा तो पत्नी सो रही थी, कुछ देर बाद वह उठी तो बोली कि आज तो सारा शरीर दुख रहा है, रात को ऐसा क्या किया की ऐसा हुआ है। मैंने कहा कि जब काफी समय के बाद ऐसा करेंगें तो थकान तो होगी है। तुम जा कर नहा लो सही हो जायेगा। वह कुछ नहीं बोली और चाय बनाने चली गयी। रात को हम दोनों ने कुछ आनंद उठाया था, यह उस का ही असर था। मेरा तो नीचे का हिस्सा और लिंग का मुँह दर्द कर रहा था उस ने कल तीन बार लड़ाई लड़ी थी सो उसे तो सुजना ही था।

जब मैं नहाने गया तब लिंग को ध्यान से देखा तो वह सुजा सा लग रहा था सुपारे पर दर्द तो था ही। सरसों का तेल ले कर उस की लिंग पर मालिश करी इस से नसों का दर्द कम हुआ। नहाने के बाद जब कपड़ें पहन रहा था तो पत्नी ने पुछा कि कोई दवा तो नहीं खायी थी कल रात को। मैंने पुछा कि नहीं तो तुम्हें ऐसा क्यों लगा तो वह बोली कि कल तुम डिस्चार्ज ही नहीं हो रहे थे, अच्छा तो लग रहा था लेकिन मेरी तो जान निकल रही थी।

मैंने कहा कि बिना कुछ खाये ही जब देर तक टिक रहे है तो किसी दवाई को खाने की आवश्यकता क्या है। वह भी बोली कि हाँ कोई जरुरत नही हैं। लेकिन पहले तो इतनी देर नहीं होता था? मैंने कहा हो सकता है कि कल हम दोनों तनाव मुक्त हो। वह बोली की हाँ यह हो सकता है। पहले तो दिमाग सही ही नहीं रहता था। मैंने कहा कि चलों आज फिर करके देखेगें क्या होता है तो वह आँखे तरेर कर बोली कि तुम्हें तो हर समय शैतानी सुझती है। मैंने कहा कि यार समय नही मिलता जब मिलता है तब तुम्हारा मूड सही नहीं होता मैं बिचारा क्या करुँ, मेरी बात सुन कर वह हँस दी और बोली कि इंतजार।

यह कह कर वह नाश्ता बनाने चली गयी। मैंने अनु को फोन किया तो वह उनिंदीं सी आवाज में बोली कि तुम उठ गये? मैंने कहा हाँ नहा लिया हूँ, चाय भी पी ली है सोचा तुम्हारें हाल-चाल पुछ लूँ तो वह बोली कि हालात खराब है नीचे बहुत दर्द हो रहा है लगता है कि उठा भी नहीं जायेगा। मैंने कहा की मेरी पत्नी भी यही कुछ कह रही है। वह बोली की उस की हालत भी ऐसी कर दी तुम ने। मैंने कहा कि तुम दोनों मुझे क्यों दोष दे रही हो? अकेला मैं ही जिम्मेदार हूँ तुम दोनों नहीं तो वह बोली कि तुम्हें कौन दोष दे रहा है, मैं तो अपनी हालत बयान कर रही थी।

मैंने कहा कि मेरे महाराज की हालत तो खराब है उन्हें मालिश कर के आराम दिलाया है। लेकिन लगता नहीं की आराम मिलेगा। वह बोली की बढ़िया है तुम्हारी तो मौज है मज़ा करो। मैंने कहा, हाँ भई उड़ा लो मजाक। वह बोली कि मैं भी उठती हूँ सारा काम करना है। फिर आराम करुँगी, सही हो जायेगा नहीं तो तुम से कोई दवा पुछुगी। तुम तो खायों पियों ताकि रात के दौर के लिये बलवान बन सको। यह कह कर वह हँस दी। मैं भी हँस दिया। फिर मैंने फोन काट दिया।

पत्नी नाश्ता बना कर लायी तो मैंने देखा कि आलु के पराठें थे वह बोली कि तुम्हारें मन पसन्द है मन भर के खाओ, आज कही जाना तो नही है मैंने सर हिलाया तो वह बोली कि शाम के मेरे साथ मॉल चलना, घर के लिये सामान खरीदना है। मैंने भी हाँ में सर हिला दिया। शाम को पत्नी के साथ मॉल चला गया। रात बिना किसी हंगामें के बीत गयी। सुबह से फिर वही रुटिन चालु हो गया जो कई सालों से चला आ रहा था।

मेरी नौकरी जाना

दो महीने बाद ऑफिस में परिस्थितियाँ खराब होने लगी। मुझे लगा कि अब मैनेजमेंट मुझ से छुटकारा चाहता है मैंने प्रयास किया कि मुझें कहीं और जॉब मिल जाये लेकिन ऐसा हो नहीं पाया, इस तनाव के कारण मैं डिपरेशन में चला गया। लक्षणों को देख कर मैं खुद ही डॉक्टर के पास गया उस ने भी रॉय दी की मुझे यह कंपनी छोड़ देनी चाहिये लेकिन पहले दूसरी नौकरी ढुढ़ कर। अनु भी मेरे लिये नौकरी तलाश रही थी लेकिन उसे भी सफलता नहीं मिल रही थी। दवाईयां भी असर नहीं कर रही थी। एक दिन ऑफिस में बहुत अपमानित होने के बाद जब मैं घर लौटा तो रात को मुझे नर्वस ब्रेकडाउन हो गया, मेरी हालत बहुत खराब हो गयी, मुझे समझ ही नही आ रहा था कि मैं अब क्या करुँ।

मैंने किसी से भी बात करना बंद कर दिया और खाना पीना भी छोड़ दिया। सारा समय सोया रहता था। ऑफिस से फोन आया तो ऐसी हालत में ही उन्हें इस्तीफा लिख कर ईमेल कर दिया। अनु को मेरे बारें में कोई सूचना नहीं मिल रही थी। मैं फोन नहीं उठा रहा था। उस के पास पत्नी का फोन नंबर था सो उसने हार कर पत्नी को फोन किया, तब जा कर उसे मेरी हालत के बारें में पता चला।

अब उस से रुका नहीं जा रहा था उस ने कुछ नहीं सोचा और मुझ से मिलने मेरे घर आ गयी। वहाँ आ कर पत्नी ने मेरा हाल बताया तो वह बहुत घबरा गई। पत्नी को हमारे संबंध के बारें में कुछ नहीं पता था। अब अनु को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें उस ने पत्नी से पुछा कि किसी डॉक्टर को दिखाया है तो पत्नी ने कहा, नहीं।

अनु बोली कि जिस डॉक्टर के पास जा रहे थे उस के पास लेकर चलते है। पत्नी बोली कि यही सही रहेगा, अनु ने कहा कि आप मुझे पता बता दे मैं इन्हें ले कर जाती हूँ पत्नी थोड़ी सकुचाई तो अनु ने कहा कि मैं इनकी पुरानी मित्र हुँ आप मुझ पर विश्वास कर सकती है। पत्नी बोली पेपर तो इन के पास ही थे, मैं ढुढ़ती हूँ उस ने मेरे कागज खंगालें तो डॉक्टर की पर्जी मिल गयी।

अनु मुझे ले कर डॉक्टर के पास पहुँची तो डॉक्टर ने पुछा कि कब ने ऐसी हालत है? अनु ने पुरी बात बताई तो वह बोले की मैंने तो इन्हें पहले ही बताया था लेकिन यह इस से बच नही सके, चिन्ता की कोई बात नहीं है दवाई ले ही रहे थे इस लिये कोई ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है लेकिन सामान्य होने में समय लगेगा।

मैं कुछ और दवाईयाँ लिख रहा हूँ उन्हें शुरु करा दे। इन के आस-पास सामान्य वातावरण बनाये रखे। इन का परिवार ही इन का इलाज है। इस बात का ध्यान रखे। अनु मुझे लेकर वापस आ गयी। उस ने पत्नी को डॉक्टर की कहीं बात बता दी। पत्नी बोली कि मुझे यह तो पता था कि ऑफिस में कुछ चल रहा है लेकिन इतना खतरनाक हो रहा था कि इन की जान पर बन आयेगी मुझे पता नहीं था। नहीं तो मैं इन्हें नहीं जाने देती। जब यह कंपनी शुरु हुई थी तो यह ही सब कुछ करते थे फिर जब चलने लग गयी तो इन को अपमानित किया जाने लगा। आर्थिक परेशानियों की वजह से यह अब तक यह सब बर्दाश्त कर रहे थे, मुझे पता होता तो मैं कब की यह नौकरी छुड़ा देती।