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अनु ने उस को सांत्वना दी और कहा कि अब जो हो गया सो हो गया हमें इन्हें सही करना है डॉक्टर के अनुसार इन के आस-पास के वातावरण को सही रखना पड़ेगा तभी ये सही हो पायेगे। उस ने कुछ दवाईयां बदल दी है वो मैं ले आयी हूँ। पत्नी ने अनु से पुछा कि वह इतना सब क्यों कर रही है तो अनु ने उसे बताया कि जब वह परेशानी में थी तब मैंने उस की सहायता की थी, अब उस की बारी है। यह सुन कर पत्नी चुप हो गयी। उस दिन अनु चली गयी।

मुझे कुछ पता नहीं था कि क्या हो रहा है। मैं अपने आस-पास से बिल्कुल कटा हुआ था। एक दिन मेरी इन्ही हरकतों को देख कर पत्नी बहुत डर गयी और उस ने अनु को फोन किया और बताया कि मैं कोई रिस्पोन्स नही कर रहा हूँ। अनु के पैरों के नीचे से जमीन खिसख गयी, वो तुरंत ही मेरे घर की तरफ भागी वहाँ आ कर उस ने मेरी हालत देख कर डॉक्टर को फोन किया तो उस ने कहा कि कोई चिन्ता की बात नहीं है सही हो जायेगे। हो सके तो आप इन्हें इस जगह से कहीं और ले जाओ।

दोनों को कुछ समझ नहीं आ रहा था। पत्नी मेरे किसी रिस्तेदार के यहाँ नहीं जाना चाहती थी ना ही अपने किसी रिस्तेदार को मेरी हालत के बारें में बताना चाहती थी। फिर अनु ने कहा कि मेरे यहाँ चलते है। वहाँ जा कर शायद कुछ असर पड़े, पत्नी को उलझन में पड़ा देख कर अनु ने अपने और मेरे बीच के संबंध के बारें में उसे बता दिया। पत्नी ने कहा कि मुझे कुछ समझ नही आ रहा है लेकिन एक तुम ही हो जो इस समय मेरे साथ खड़ी हो, जो तुम कह रही हो वही करते है।

अनु ने कहा कि बच्चों की कुछ दिनों के लिये छुट्टी करवा देते है। वहाँ सब एक साथ रहेगें तो शायद इन का मन संभल जाये। हम सब अनु के घर चले गये। शायद वहाँ जा कर मेरे मन पर कुछ अच्छा असर पड़ा कि मेरी हालत सुधरने लगी। दिन में तो अनु जॉब पर चली जाती थी और शाम को सब मिल कर घर में धमाल करते थे। समय बीत रहा था। मैंने अपने पर पुरा कंटोल पा लिया था। अपनी बुरी यादों से मैं उबर गया था।

मेरी दवाईयां अभी चल रही थी। अभी तो कोई आर्थिक परेशानी नही थी लेकिन खर्चे बढ़ गये थे डॉक्टर की फीस, दवाईयां और कई खर्चे बचत को कम कर रहे थे। एक दिन शाम को अनु, पत्नी एक साथ मेरे पास बैठे थे तो पत्नी बोली कि अब क्या करें? वापस घर चलते है। इनकी तबीयत तो सही हो गयी है। लंबा इलाज है तुम्हारें पास कब तक रुकेगें?

अनु बोली कि मेरा सब कुछ भी तो इनका ही है सो आप इस बात की चिन्ता ना किया करो। सब मिल कर हालात का सामना कर लेगें। यह सही रहनें चाहिये। पत्नी चुप हो गयी। मैं अब हर समय यही सोचता था कि मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ? मैंने तो कभी किसी के साथ बुरा नहीं किया। लेकिन इस बात का मुझे कोई जवाब नहीं मिलता था।

मेरी यह सोच मुझे बहुत परेशान करती थी, इस बात को मैंने अपने डॉक्टर से भी बताया तो वह बोला कि हम सब के साथ जब भी ऐसा होता है तो हमे लगता है कि मैं ही क्यूं? लेकिन दूसरों के बारें में पता चलता है तो समझ में आता है कि आस-पास में कोई ना कोई इसी तरह से परेशान है, इस पर ध्यान देना छोड़ दे। अगर धार्मिक है तो पूजा पाठ में मन लगाये शान्ति मिलेगी। आध्यात्म का सहारा ले। मन को संबल मिलेगा। धार्मिक तो मैं था ही फिर से पूजा-पाठ की तरफ मुड़ गया। इस से मुझे बड़ा सहारा मिला और मेरे मन को चैन मिला। मेरे को सही होता देख कर मेरी पत्नी, बच्चे, और अनु भी खुश थे।

बीमारी के दौरान मैं अकेला सोता था, बाद में कुछ सही होने के बाद पत्नी के साथ सोना शुरु कर दिया, लेकिन किसी तरह के शारिरिक संबंधों से दूर था। मन में कोई विचार ही नहीं आता था। पत्नी इस बात को लेकर अनु से बातचीत कर रही थी। वह बोली कि सेक्स की तरफ कोई ध्यान नहीं रह गया है। मैं कुछ करुँ भी तो हाथ झटक देते है। क्या करुँ?

अनु ने उस की तरफ देख कर कहा कि मैं कुछ कोशिश करुँ? पत्नी ने अनु को देखा और कहा कि तुम भी कोशिश कर लो शायद प्रेमिका के प्रति प्रेम जग जाये पत्नी के प्रति तो लगाव नहीं दिखा रहे है। अनु ने कहा कि हो सकता है मन अभी स्थिर नहीं हुआ हो। कुछ और समय देते है नहीं तो डॉक्टर से बात करेंगे। पत्नी बोली की इस में डॉक्टर क्या करेगा।

अनु ने कहा कि हो सकता है मन में कोई विचार फंस गया हो जो इस तरफ जाने से रोक रहा हो? पत्नी ने कहा कि हो सकता है तुम्हारी बात सही हो। यह मुझे हर बात बतातें थे लेकिन तुम्हारें विषय में इंहोंने कभी कुछ नहीं बताया, अगर तुम नही आती तो पता नहीं क्या होता। अनु बोली कि मैं इन के बिना नही रह सकती इसलिये मेरा तो आना पक्का था हम दोनों को समझ नहीं आ रहा था कि आप को यह सब कैसे बताऐं? और यह भी पता नहीं था कि आप कैसे रियेक्ट करेगी।

यह आप की बहुत इज्जत करते है आप को किसी बात से दूख पहुँचे यह सोच भी नहीं सकते इसी वजह से चुप रहे होगे। इस के बाद दोनों चुप हो गयी। एक अपने अधिकार के छिनने के डर से और दूसरी जो मिला है उस के छिन जाने के डर से।

एक दिन पत्नी बच्चों को लेकर बाहर घुमने गयी थी मैं और अनु घर में अकेले थे। अनु मेरे पास आ कर बोली कि सुनते हो, मैंने उस की तरफ मुँह उठा कर देखा तो वह बोली कि मेरे को भुख लगी है मेरी भुख मिटा दो। मैं उस की तरफ देखता रहा तो वह मुझे पकड़ कर बोली कि आज कितने महीनें हो गये तुमने मेरे साथ प्यार नहीं किया है। आज मौका है प्यार कर लो। मैंने कहा कि मैंने कब मना किया है। यह सुन कर अनु ने मुझे बेतहासा चुमना शुरु कर दिया। उस के चुमने से कुछ हुआ तो लेकिन मेरी समझ में नहीं आया। वो मेरे बदन को चुमती रही और मेरे कपड़ें उतारती रही। फिर उस के कपड़ें भी उतर गये।

मैं भी उस का साथ देने लगा और अनु मेरे ऊपर आ कर मेरे लिंग को योनि में डालने की कोशिश करने लगी। लिंग में तनाव तो था लेकिन वह इतना नहीं था कि योनि में जा सके। उस ने लिंग को मुँह में लिया और उस को लॉलीपॉप की तरह चुसना आरंभ कर दिया। कुछ देर बाद लिंग में तनाव आ गया। उस ने फिर मेरे ऊपर आ कर लिंग को योनि में डाला तो इस बार वह अंदर चला गया।

अनु धीरे-धीरे धक्के लगाने लगी। अब मुझे भी इस में मजा आने लगा। मैं भी नीचे से कुल्हें उछालने लगा। दोनों इस में लगे रहे। काफी देर हो गयी लेकिन मैं डिस्चार्ज नही हो पा रहा था। आधा घंटे बाद अनु थक गयी और मेरे नीचे आ गयी मैं फिर से धक्के लगाने लगा। डिस्चार्ज ना होने के कारण मैं भी परेशान था, इस दौरान अनु कई बार डिस्चार्ज हो गयी थी। हार कर वह बोली की तुम डिस्चार्ज नही हो रहे हो। मेरी तो जान निकल जायेगी।

यह सुन कर मैं उस के ऊपर से उतर गया। लिंग तो तना हुआ था लेकिन स्खलन नही हो रहा था। इस से मुझें भी बहुत परेशानी हो रही थी। मेरी हालत खराब हो रही थी। मैं इस से छुटकारा पाने के लिये बाथरुम गया लेकिन पेशाब नहीं आ रहा था। उत्तेजना के बावजूद स्खलन नहीं हो रहा था। अनु नें दोबारा संभोग करने को कहा तो मैंने कहा कि तुम्हारी तबीयत खराब हो जायेगी तो वह बोली कि देखा जायेगा।

फिर उसे कुछ याद आया तो वह मुझे बेड़ पर बिठा कर मेरे सामने बैठ गयी और मेरे लिंग को मुख में ले कर चुसने लगी। फिर लिंग को मुख में अंदर बाहर करने लगी। मुझे पता था वो क्या करने की कोशिश कर रही थी लेकिन काफी देर करने के बाद भी जब मैं स्खलित नहीं हुआ तो मैंने उसे रोका और कहा कि जाओ मुँह धो कर आयों बच्चें आ रहे होगें। रात को बच्चों के सो जाने के बाद कुछ करेंगें वह बोली कि तब तक क्या करोगें? मैंने कहा कि तब तक यह अपने आप सही हो जायेगा। वह मेरा कहना मान कर मुँह धोने चली गयी।

मैं आराम के लिये लेट गया और ध्यान हटाने के लिये कोई किताब पढ़ने लगा, ध्यान सेक्स से हट जाने के कारण तनाव चला गया और मुझे चैन पड़ गया। पत्नी जब वापस आयी तो शायद अनु ने सारा वाकया उसे बताया तो उस ने कहा कि शायद यह जो दवाई खा रहे है उस की वजह से ऐसा हो रहा है। पहले जब यह ऐन्टी डिपरेशन की दवायी ले रहे थे तब भी हम दोनों ने महसुस किया था कि डिस्चार्ज बहुत देर में होता था। इन्होनें नेट पर पढ़ कर बताया था कि कुछ दवाइयों के कारण ऐसा होता है इस का कोई ईलाज नहीं है। अनु यह जान कर चुप हो गयी।

रात को बच्चों के सो जाने के बाद दोनों मेरे पास आयी और बोली कि हम ने यह सोचा है कि एक के बाद एक हम दोनों संभोग करेगी तो शायद तुम डिस्चार्ज हो जाओगें। यह सुन कर मैंने कहा कि इस पर इतना जोर मत दो, कुछ दिनों बाद सही हो जायेगा। लेकिन दोनों ने नहीं सुना।

पहले अनु ने संभोग शुरु किया जब वह थक गयी तो पत्नी ने संभोग शुरु कर दिया। पत्नी के बाद मुझे लगा कि अब तो डिस्चार्ज हो जाऊँगा लेकिन नही हुआ फिर से अनु ने संभोग करना शुरु किया। इस बार मैंने उसे नीचे किया और ऊपर आ कर धक्कें लगाने शुरु किये कोई दस मिनट बाद बहुत जोर से मेरा डिस्चार्ज हुआ कि अनु को भी अनुभव हुआ वह बोली कि इतना जोर से और गर्म है कि मैं जल सी रही हूँ। डिस्चार्ज के बाद मैंने दोनों को चुमा और आराम मिलने से मैं नींद में डुब गया। सुबह उठा तो पत्नी साथ में सो रही थी।

वह बोली कि अनु को बहुत दर्द हो रहा है वह सो रही है शायद आज ऑफिस भी नहीं जा सकेगी। मैं उठ कर उस के कमरें में गया तो वह उठ गयी थी लेकिन लेटी हुई थी मैं उस के पास लेट गया और उस से लिपट कर रोने लगा वह बोली कि यह क्या कर रहे हो? मैंने उस से कहा कि मेरे लिये इतने कष्ट मत सहो। वह बोली कि तुम्हारें लिये नही, अपने लिये सह रही हूँ। मैं तुम्हें जल्दी सही देखना चाहती हूँ यह दर्द तो कुछ भी नहीं है। मैं उस से लिपट कर रोता रहा। वह भी रोने लगी, मैंने कभी उसे रोते नहीं देखा था। वह बोली कि तुम्हें कष्ट में देखना मेरे लिये बहुत मुश्किल है इस लिये मुझ से जो भी होगा मैं करुँगी।

मैं शान्त हो गया। वह उठी और बोली कि दर्द की तो आदत है महीने में एक बार तो होता ही है। यह तो मजेदार दर्द है तुम इस की चिन्ता मत करों। कोशिश करो कि सेक्स को इंजाय करों। अब की बार जब डॉक्टर के पास जायेगें तो इस का भी इलाज पुछेंगें। मैं हँस पड़ा। वह बोली की हँसते हुये सही लग रहे हो। तभी पत्नी वहाँ आ गयी और बोली कि उसे पड़े रहने दो तुम नहाने चले जाओ। मैं उस की बात मान कर नहाने चला गया। नहा कर आया तो देखा कि अनु अभी भी लेटी हुई थी और पत्नी उस के पास बैठी थी।

दोनों मुझे देख कर बोली कि अब तुम्हारा क्या हाल है? मैंने कहा कि मेरा हाल भी तुम्हारें से अलग नहीं है। इतनी देर करने के बाद लिंग छिल गया है। पत्नी बोली कि नारियल का तेल लिंग पर लगा लो आराम पड़ जायेगा। मैं तेल ले कर वापस चला गया। मैंने निर्णय किया की अभी कुछ समय तक किसी के साथ शारीरिक संबंध नही बनाऊँगा। इतना कष्ट अपने को देना और अपनी दोनों पत्नियों को देना मुझे मंजुर नही था। मैंने अपना विचार आ कर दोनों को बता दिया।

दोनों मेरे निर्णय से संतुष्ट नहीं थी लेकिन उस समय कुछ नही बोली। मैं फिर से जा कर लेट गया। अनु उठ गयी थी, मेरे पास आ कर बैठ गयी और बोली कि लेटने क्यों आ गये कमरें में जा कर बैठों। मैंने कहा कि मेरी कमर में बहुत दर्द हो रहा है इस लिये बैठना मुश्किल है। तुम दोनों जैसी ही हालत मेरी भी हो गयी है। इस लिये आराम कर रहा हूँ। जब दर्द कम हो जायेगा तो उठ जाऊँगा। अनु ने कुछ नही कहा और कमरे से चली गयी।

मुझे पता नही चला मैं कब सो गया, चेहरे पर कुछ पानी सा पड़ा तो नींद खुली, देखा तो अनु मेरा सर अपनी गोद में ले कर बैठी थी। उस के आँसु मेरे चेहरे पर गिर रहे थे। उन्ही की वजह से मेरी नींद खुली थी। मैंने पुछा कि मेरी शेरनी क्यों रो रही है, तो वह बोली कि मुझे समझ नहीं आ रहा है कि जब भी मैं खुश होती हुँ तो ना जाने किस की नजर लग जाती है। अब तुम बीमार पड़ गये हो। मैंने कहा कि मैं सही हो जाऊँगा, चिन्ता मत करों, तुम्हें तो मैंने कभी भी रोता नहीं देखा है अब मत रोओ मुझे दुख होता है और लगता है कि तुम सब के दूखों का कारण मैं ही हूँ।

वह बोली कि मुझे लगता है कि इस का कारण मैं हुँ। मैंने कहा की कोई कारण नहीं है हम सब पर कष्ट आया है तो हम सब को इस का सामना करना पड़ेगा। मैंने उस के आँसु हाथ से पोछ दिये और कहा कि अगर हम बड़ें कमजोर हो जायेगें तो हमारे बच्चों को कौन सहारा देगा सो आँसुओं को मत बहने दो। वह चुप हो गयी, तभी पत्नी आयी और बोली कि अगर तुम दोनों का प्रेम खत्म हो गया हो तो नाश्ता कर लो, भुखे पेट तो कुछ सही नहीं होगा। मैं उस की बात सुन कर उठ कर बैठ गया, अनु भी शर्माती हुई पत्नी के साथ चली गयी।

परिवार के साथ पहाड़ों पर जाना

मैंने यह सोचा कि मेरी वजह से पुरा परिवार परेशान है सो मुझे अपनी परेशानी से बाहर निकलना पड़ेगा। मैं अपने दुख में डुबा रह कर अपने परिवार को दुख में नहीं देख सकता हूँ। मुझे कोई रास्ता नहीं दिख रहा था लेकिन मैं ऐसे पड़ा नहीं रह सकता था सो मैंने तय किया कि सब लोग कहीं बाहर घुमने चलते है। अनु से पुछना पड़ेगा कि वह छुट्टी ले सकती है या नहीं। उस को अपना आयडिया बताया तो वह बोली कि चलों कही चलते है मैंने पुछा कि तुम्हारी छुट्टीयों का क्या होगा तो वह बोली कि मिल जायेगी, तुम प्रोग्राम बनाओ। मैंने पहाड़ में कही दूर कोई जगह देखनी शुरु की तो पता चला कि चंबा से 10 किलोमीटर दूर एक गांव में एक घर महीने के लिये 6000 में मिल जायेगा। राशन वगैरहा अपना लाना होगा।

आस-पास मन को लुभाने वाले पहाड़ है मुझे ऐसी जगह की ही तलाश थी। मैंने दोनों से सलाह-मश्वरा किया तो दोनों राजी थी। राशन वगैरहा को मिला कर भी कोई ज्यादा खर्च नहीं होगा ऐसा मेरा मानना था। गाड़ी तो हमारे पास थी। गांव तक गाड़ी जाती थी। मैंने फोन पर बात करके यह भी पक्का किया कि बाथरुम वगैरहा सही है या नहीं? उन्होंने मुझे फोटो खींच कर भेज दी। मैंने एक महीने के लिये ले लिया और कुछ रकम एडवांस भेज दी। दो दिन बाद हम सब कार में सवार हो कर चंबा के लिये निकल गये। वहाँ से पतली सड़क पर हो कर गांव में पहुँच गये।

ऑफसीजन होने के कारण घर सही कीमत पर मिल गया था। रास्ते से कुछ तो राशन ले कर गये थे जो भुल गये थे वह था गैस के बारे में पुछना वहाँ जा कर पता चला कि गैस भी किराये पर मिल जायेगी तो पहले उस का इंतजाम किया फिर जा कर घर में सामान लगा दिया। तीन कमरे थे सो हमारे लिये काफी थे। घर के बाहर से बर्फ से ढ़की चोटियां दिख रही थी। उन्हें देख कर मन को चैन मिल गया। बच्चे भी यहाँ आ कर खुश हो गये। बिजली भी आती रहती थी लेकिन कभी भी जा भी सकती थी। सामान लगा लेने के बाद हम तीनों एक साथ बैठे तो मैंने पुछा कि काम चल जायेगा तो दोनों बोली कि बढ़िया है काम तो चला लेगी। इस के बाद वह खाने का इंतजाम करने चली गयी।

मैं घर को पुरा देखने के लिये उस के चारों ओर चक्कर लगा आया। बच्चों के खेलने के लिये भी खाली स्थान था। खाना खाने के बाद सारा परिवार बाहर खुले में बैठ कर सूर्यास्त का दृश्य देखने लगा। शहर के दम घोटु माहौल से यहाँ का खुला माहौल बढ़िया लग रहा था। सब इस का आनंद लेते रहे। रात को ठंड होने के कारण सब को गर्म कपड़े पहनने पड़े। रात को आकाश में तारें देख कर बच्चें आश्चर्यचकित थे।

मैं और अनु तो इसे पहले ही देख चुके थे। मैंने अनु को छेड़ने के लिये कहा कि तुम तो यह देख चुकी हो, तो वह मुस्कराती हूँई बोली कि मैं इस आकाश को कैसे भुल सकती हूँ। इस ने तो मेरा जीवन बदल दिया था। पत्नी हम दोनों को हैरानी से देख रही थी तो मैंने उसे बताया कि पुराने ऑफिस में लड़कों के साथ ऋषिकेश गये थे तब अनु तो रात में ऐसा आकाश दिखाया था। तब जा कर उस को चैन आया।

जब घर में आये तो मैंने सब को कहा कि रात को कोई बाहर नहीं जायेगा। जगंली जानवर रात को घर के बाहर आ सकते है। पत्नी बच्चों के साथ सो गयी और अनु मेरे साथ सोने आ गयी। दोनों एक ही रजाई में घुस गये। उस ने मुझ से लिपट कर कहा कि तुम्हारे दिमाग का जबाव नहीं यह आयडिया कहाँ से आया? मैंने कहा कि मुझे लगा कि पुरा परिवार मेरे कारण से परेशान हो रहा है उस को इस से निकालना मेरी जिम्मेदारी है इस लिये यह बात सुझी की यहाँ से कुछ दिनों के लिये बाहर चलते है मन को कुछ चैन मिलेगा और आउटिग भी हो जायेगी।

कई महिनों सें बहुत तनाव का सामना कर रहे है। वह मुझे चुम कर बोली कि प्यार मत करों लेकिन मुझे तो करने से मत रोकों। मैंने कहा कि बदमाशी मत करों। उस दिन के एडंवेन्चर का फल देखना है तो नीचे की हालत देख लो। उस ने मेरे लिंग को रोशनी में कपड़े हटा कर देखा तो बोली कि यह तो बहुत बुरी तरह से छीला हुआ है।

मैंने कहा कि मुझे भी उस समय नहीं पता चला था दूसरे दिन नहाने पर पता चला कि घर्षण और गर्मी से इतनी बुरी हालत हो गयी है। पत्नी को मत बतलाना, बिना मतलब के परेशान होगी। इस लिये तुम्हें मना किया था, नहीं तो कोई अपनी जान को मना कर सकता है। वह मेरी बात सुन कर मेरे सीनें में दुबक कर बोली कि जैसा कहोगे वैसा ही करुँगी। मैंने उस के होंठ चुम कर कहा कि मन को रोकना मुश्किल है लेकिन और कोई चारा नहीं है।

हम दोनों एक दूसरे से चिपट कर सो गये। रात को गहरी नींद आ गयी थी। रात में बीच में उठना नहीं पड़ा। सुबह जल्दी उठ कर बाहर आ कर देखा तो सूर्योदय होने वाला था सो पत्नी और अनु को उठा कर उसे दिखाने लाया। दोनों इसे देख कर बहुत खुशा थी। फिर दोनों चाय बनाने चली गयी। नाश्ता करके गांव वालों से पुछ कर गांव के पास घुमने चले गये। वहाँ से आये तो जोर से भुख लग रही थी दोनों खाना बनाने में लग गयी। ऐसे ही सारा दिन गुजर गया।

तीन चार दिन बाद मुझे लगा कि मेरा मन अब बदल गया है। रात को अनु के साथ सोया तो मन में कामना जाग गयी। वह तो अपना मन मार कर सोने जा रही थी तो मैंने उसे चुम कर कहा कि आज तो प्यार करने का मन हो रहा है वह बोली कि देख लो। मैंने उस से कहा कि अंदर से कामना जागी है तो वह कुछ नहीं बोली मैं और वह दोनों कपड़ों में ही एक दूसरे के शरीरों को सहलाने लगे फिर जब काम अग्नि जल गयी तो संभोग में लग गये। तुफान तो आना ही था अपने समय पर आया और जब वह उतर गया तो दोनों पुर्णरुपेण संतुष्ट हो कर अगल-बगल लेट गये।

कुछ देर बाद अनु मेरे से बोली कि आज जो ज्यादा देर नहीं लगी। मजा भी आया है। तुम अपनी बताओ तो मैं बोला कि आज तो सही लगा है। वह बोली कि लगता है यहाँ के माहौल ने तुम्हारे मन पर असर डाला है। मैंने कहा हाँ ऐसा लगता है। हम दोनों सेक्स करके थक गये थे सो नींद में डुब गये। सुबह उठे तो मन और तन प्रभुल्लित थे, पत्नी ने यह महसुस कर लिया मैंने तो उसे कुछ नही बताया लेकिन अनु ने बता दिया उस के चेहरे पर रौनक आ गयी। आज लगा कि यहाँ आना सही निर्णय था। यहाँ आ कर मन का सारा तनाव चला गया था। इसी लिये डिपरेशन की दवाईयों का असर कम हो गया था।

वहाँ रह कर हम तीनों से भरपूर सेक्स का भरपूर आनंद लिया। यहाँ आ कर हम अपनी सारी परेशानियों को भुल गये थे। एक दिन अनु बोली कि तम्हारें लिये एक जॉब देखी है एप्लाई कर देते है देखते है क्या होता है। इस के बाद मेरे भुतपुर्व बॉस का फोन आया वह मुझे वापस आने के लिये बोल रहे थे। मैं अपने परिवार के ऊपर गुजरे समय को देख कर उन्हें माफ करने के लिये तैयार नहीं था।

मैंने यह बात पत्नी और अनु को बतायी तथा उन से उन की राय पुछी, तो दोनों ने कहा कि दुबारा जाने का सवाल ही नहीं उठता उनकी वजह से हम ने जो भोगा है हम वह भुल नहीं सकते तुम्हारी हालत के लिये भी वही जिम्मेदार है। नौकरी तो आज या कल मिल ही जायेगी। मैं भी उन के साथ पुरी तरह से सहमत था। वहाँ पर हुये अपने अपमान को याद करके मुझे बहुत दर्द होता था। मैं उस में से दुबारा गुजरना नहीं चाहता था। मैं उन्हें मना कर दिया।

पुरा महीना पहाड़ पर बिता कर जब हम सब वापस लौटे तो एक परिवार के तौर पर हम ज्यादा एक-दूसरे के करीब थे सबसे बड़ी बात थी कि जिस तनाव से तीनों गुजर रहे थे वह खत्म हो गया था। वापस आ कर मैंने इंटरव्यू दिया और मैं सलैक्ट हो गया। नयी कंपनी में मेरा पद बड़ा था तथा वेतन भी अधिक था। कुछ दिनों के बाद मेरी दवाई बंद हो गयी।

अनु के साथ रहने जाना

एक दिन अनु मुझ से बोली कि क्यों ना तुम यहाँ मेरे पास आ जाओ, तुम्हारा ऑफिस भी नजदीक है बच्चों का ऐडमीशन यही पर करवा देते है। अभी रोज इतनी लंबी ड्राइव करते हो वह समय भी बचेगा। मुझे उस की यह बात सही लगी तो वह बोली कि दीदी से मैंने बात कर ली है। तुम से पुछना ही रह गया था। मैंने कहा कि जब तुम दोनों ने तय कर ही लिया था तो मुझे केवल बता देती तो वह बोली कि दीदी का कहना है कि वह अलग मकान किराये पर लेगी।

मैंने कहा कि वह सही कह रही है अलग रहना ही सही रहेगा ताकि सब को अपनी आजादी मिलती रहे। अनु बोली कि मेरे साथ वाला फ्लैट खाली है सो मैंने उसे किराये पर ले लिया है, दीदी को भी मंजुर है, तुम बताओ, मैंने हँस कर कहा कि मुझे बता देना कि मुझे किस के साथ रहना है, तो वह बोली कि यह भी डिसाइड कर लिया है। मैं बोला कि यार कुछ तो मेरे लिये भी छोड़ दो तो वह बोली कि दो बीवीयां मिल रही है तब भी चैन नही है।

मैंने उस से पुछा कि उस ने अपनी बेटी के बारे में क्या सोचा है तो वह बोली कि क्या सोचुँ वह तो नानी के पास ही रहेगी। मैंने कहा कि नहीं अब वह अपनी माँ के पास रहेगी तो वह मुझे देख कर बोली कि तुम्हें पता तो है मेरे नौकरी पर जाने के बाद उस की कौन देखभाल करेगा।

मैंने कहा कि उस की दूसरी माँ उसकी देखभाल कर लेगी अगर तुम्हें कोई आपत्ति ना हो तो। वह यह बात सुन कर बोली कि क्या ऐसा संभव है? तो मैंने कहा कि हम दोनों ने पहले ही सोच लिया था कि वह अब हमारे साथ ही रहेगी अगर हम उस की माँ की देखभाल कर सकते है तो उसकी क्यों नहीं कर सकते। वह भी मेरी बेटी है।

यह सुन कर वह कुछ देर चुप रही फिर मुझे किस कर के बोली कि तुम्हें उस की इतनी चिन्ता है। मैंने कहा कि अनु अगर तुम मेरी चिन्ता कर सकती हो तो मैं तुम्हारी चिन्ता नहीं कर सकता। वह बोली कि मुझे लगा कि किसी और की बेटी को कौन अपनाता है? मैंने कहा कि यह बात आज के बाद दुबारा नहीं कहना। वह जैसी तुम्हारी बेटी है वैसे ही हम दोनों की भी है। अभी तक हम इस लिये चुप थे कि यहाँ की आफतें ही कम नहीं हो रही थी। लेकिन अब सही समय है उसे वापस बुला लो। वह बोली कि माँ को क्या कहुँगी मैंने कहा कि कहना की अब उस की देखभाल का इंतजाम हो गया है।

वैसे भी तो कभी ना कभी तुम्हें उन को मेरे बारे में बताना पड़ेगा। वह बोली कि तुम्हारें बारें में उन्हें पता है। तलाक से पहले ही बता दिया था। बेटी को मेरा परिचय क्या कह कर करायोगी? वह बोली कि कुछ सोचा नहीं है, अंकल तो नहीं कहेगी तुम्हें यह तो श्योर है। मैं हँस दिया। वह बोली कि मेरी परेशानी का मजा ले रहे हो। मैंने कहा कि मैं तो उसे डेडी कहने को कहुँगा तुम सोच लो। वह बोली कि मेरी हर समस्या का तुम्हारें पास समाधान है तो मुझे परेशान क्यों करते हो। मैंने कहा कि मजा आता है तो उस के नकली मुक्कें मेरी पीठ पर पड़ने लगे। मैंने उन से बचने के लिये उसे अपने से चिपका लिया।

अनु की बेटी को अपनाना

हम दिल्ली छोड़ कर गुडगांवा आ गये। एक साथ रहने का यह फायदा था कि एक दूसरे की देखभाल करना आसान था मेरा दो घंटे से अधिक का समय बचता था जो मैं परिवार के साथ व्यतीत कर सकता था। कुछ दिनों के बाद अनु की मां बेटी को लेकर आयी। मैं पत्नी के साथ उन से मिलने गया, मैंने जब जा कर उन के पांव छुये तो वह बोली कि यह ना करे। अनु ने बेटी को आवाज दे कर पुकारा तो वह नानी के पास आ कर खड़ी हो गयी मैं उसे देख कर खुश था बड़ी प्यारी सी गुडिया जैसी थी।

पत्नी ने उसे नाम लेकर पुकारा तो वह चुपचाप उस के पास चली गयी। थोड़ी देर में देखा कि उस की दोस्ती पत्नी के साथ हो गयी और वह उस के साथ हमारे वाले फ्लैट में चली गयी। उस के जाने के बाद अनु की मां ने मेरी तरफ देख कर कहा कि आप ने बड़ा अच्छा किया की इसे अपने पास बुला लिया मैं अब बुढ़ी हो गयी हुँ इस की देखभाल नही कर पाती थी। यह कुछ बोलती नहीं थी। मैंने कहा कि अब आप उस की तरफ से निश्चितं रहिये। वह यहाँ पर और बच्चों के साथ खुश रहेगी। मेरी यह बात सुन कर अनु के मां के चेहरे पर शान्ति छा गयी।

मैं उठ कर घर आ गया तो देखा कि वह पत्नी के साथ खेल रही थी। मैनें सोचा कि इस ने भी अपना बचपन बिना माँ के बिताया है क्या भाग्य है। रात को पत्नी ने बताया कि यह तो बच्चों के साथ आराम से घुलमिल गयी है। मुझे नहीं लगता कि परेशान करेगी। मैंने कहा कि तुम्हारी एक और जिम्मेदारी बढ़ गयी है तो वह बोली कि एक से क्या बढ़ जायेगी? कुछ दिन रह कर अनु की मां वापस चली गयी।