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Click hereभाभी का हसीन धोखा-1
ये कहानी सच्चाई पर आधारित है. इसमें हुई सारी घटनायें सच्ची हैं, लेकिन पात्रों के नाम बदल दिए गायें हैं.
ये कहानी उस वक़्त की है जब मैं स्कूल ख़त्म करके आगे इंजिनियरिंग की तय्यरी कर रहा था. मैं अपने घर में सबसे छोटा हूँ. मेरे दो बड़े भाई हैं जिनमें से एक की शादी हो चुकी है और दूसरा बंगलोर में जॉब कर रहा था. कुछ महीने बाद मैने एंट्रेन्स एग्ज़ॅम दिए जिसमे मेरे अच्छे अंक आए और मेरा दाखिला चंडीगड़ के एक कॉलेज में हो गया.
चंडीगड़ में मेरे चाचा का परिवार रहता था. चाचा की कई साल पहले मौत हो चुकी थी. घर में चाची, उनका बेटा और बहू रहते थे. उनकी बेटी भी थी जिसकी अब शादी हो चुकी थी. तय यह हुआ की मैं होस्टल में न रहकर चाचा के घर में रहकर इंजिनियरिंग के चार साल बिताऊँगा. पहले मैं इस बात से बहुत नाराज़ हुआ. मुझे लगा की कॉलेज का मज़ा तो होस्टल में ही आता है, लेकिन मुझे क्या पता था की वो चार साल मेरी ज़िंदगी के सबसे खूबसूरत चार साल होंगे.
कुछ महीने बाद मैं निकल पड़ा चंडीगड़ के लिए. रास्ते भर मैं खुश था की कई साल बाद मैं अपनी भाभी से मिलूँगा. सुमन मेरे चचेरे भाई रवि की बीवी का नाम है. रवि भैया मुझसे उम्र में आठ साल बड़े हैं. उन्होने कॉलेज ख़त्म करने के कुछ महीने बाद ही सुमन भाभी से शादी कर ली थी. मैं न जाने कितनी बार सुमन भाभी के नाम की मुट्ठी मारी थी. और थी भी वो तगड़ा माल. शादी के वक़्त जब भाभी को दुल्हन के कपड़ो में देखा था, तब लंड पर काबू पाना मुश्किल था. मैने बस यही सोचा था की रवि भैया कितने खुशकिस्मत हैं जो इस बला की खूबसूरत लड़की को चोदने को मिल रहा है उन्हे.
खैर मैं अगले दिन चंडीगड़ पहुँचा और चाची और भाभी ने मेरा स्वागत किया. चाची बोली, "अब तू आ गया है, चलो कोई तो मर्द होगा घर में, नही तो तेरा भाई हर समय इधर-उधर भागता रहता है बस". भैया की सेल्स की जॉब थी जिस वजह से वो हर वक्त बाहर रहते थे. सुमन भाभी मेरे लिए पानी लेकर आई. क्या ज़बरदस्त माल लग रही थीं वो. गुलाबी साड़ी में किसी स्वर्ग की अप्सरा जैसी खूबसूरत, गोरा सुडौल बदन जो किसी नामर्द के लंड में जान डाल दे. पर जो सबसे खूबसूरत था वो था उनके पल्लू से उनका आधा ढका पेट और उसमे से आधी झाँकती हुई ठुण्डी. मैने उनके हाथ से पानी लिया पर मेरी नज़र उनके पेट से हट नही पा रही थी. दिल करता था की बस पल्लू हटा के उनके पेट और ठुण्डी को चूम लू.
तभी अचानक भाभी बोल पड़ी "क्या देख रहे हो देवर जी".
मैं तोड़ा झेप गया. सोचने लगा कहीं भाभी कुछ ग़लत ना सोचे या चाची को ये न लगे कि मैं उनकी बहू को ताड़ रहा हूँ.
मेरी नज़र भाभी के चेहरे पर पड़ी. इतनी खूबसूरत थी वो जैसे मानो भगवान ने फ़ुर्सत में पूरा वक्त देकर उन्हे बनाया हो.
"क्क्क-कुछ नही भाभी" मैं कुछ भी बोल पाने में असमर्थ था.
"राजेश, तुझे सबसे उपर दूसरी मंज़िल पर कमरा दिया है. अपना सामान लगा ले और नहा-धो कर नीचे आजा खाने के लिए." चाची बोली.
मैं अपना सामान उपर ले जाने लगा. मेरी नज़र भाभी पर पड़ी, तो वो मेरी तरफ मुस्कुराकर कर देखी और अपना पल्लू हल्का सा खोलकर अपनी नाभि के दर्शन कराकर चिढ़ा रही थी.
शाम को भैया वापस आए. हम सब ने खाना खाया और रात को सोने चले गये. रात को मेरी नींद अचानक खुली. मुझे प्यास लगी थी. मैं पानी पीने के लिए नीचे गया. सबसे नीचे वाली मंज़िल पर चाची सो रही थी. मैं पानी पी कर उपर आ रहा था कि तभी पहली मंज़िल पर मुझे कुछ आवाज़ें सुनाई दी. इस मंज़िल पर भैया-भाभी का कमरा था. उनके कमरे से एक औरत की मधुर कामुक आवाज़ें आ रही थी. मैने सोचा की कान लगा के सुने क्या चल रहा है अंदर. थोड़ा इंतज़ार करने के बाद मैने दरवाज़े पर अपना कान लगा दिया. अंदर से भैया बोल रहे थे, "सुम्मी, चूस... हाँ..और ज़ोर से चूस. मुझे मालूम है तू कितनी इस लंड की दीवानी है. चूस... चूस साली रांड़... चूस". और तभी भाभी के लंड चूसने की आवाज़ और तेज़ हो गयी.
मेरा लंड फनफना उठा. मुझसे रहा नही गया. मैने अपने पयज़ामे में से अपना लंड निकाला और और धीरे-धीरे उसे हिलने लगा.
"आह... आह...आह.... क्या मस्त चूस्ती है तू, साली मादरचोद"
भाभी भैया के लंड को ३ मिनिट से चूस रही थी.
"सुम्मी.... अब रुक जा... नही तो मैं तेरे मूँह में ही छूट जाऊँगा."
अंदर से भाभी की लंड चूसने की आवाज़ें बंद हो गयी.
"अब बता... मेरा लंड तुझे कितना पसंद है?"
भाभी बोली, "आप जानते हैं, फिर भी मुझसे बुलवाना चाहते हैं."
"बता ना मेरी जान"
अचानक मेरी नज़र चाबी के छेद पर पड़ी. मैने अपनी आँख लगाकर देखा क्या हो रहा है अंदर.
भैया बिस्तर पर बैठे थे और भाभी ज़मीन पर अपने घुटनो पर. दोनो नंगे थे. भाभी को नंगा देख कर मेरी आँखें फटी रह गयी. गोरा शरीर, सुंदर चूचियाँ देख कर मैं अपने लंड को और तेज़ी से हिलाने लगा. हाथ में उनके भैया का लंड था जिसे वो हल्के-हल्के हिला रही थी.
"आपका लंड मुझे पागल कर देता है. रोज़ रात को ये कमीनी चूत मेरी, बहुत परेशन करती है. आपके लंड के लिए तरसती है. रोज़ रात को एक योद्धा की तरह आपके लंड से युद्ध करना चाहती है और उस युद्ध में आपसे हारना चाहती है. आपका अमृत पा कर ही इसे ठंडक मिलती है."
भाभी जीभ निकाल कर भैया के पेशाब वाले छेद को चाटने लगी.
"क्या सही में?.... आह!!!"
"हाँ... औरत की संभोग की प्यास मर्द से कई गुना ज़्यादा होती है. लेकिन आप आधे वक्त घर पर ही नही होते. ऐसी रातों में बस अपनी उंगली से ही इस कमीनी को शांत करती हूँ. बहुत अकेली हो जाती हूँ आपके बिना. दिल नही लगता मेरा."
"सुम्मी, उठ फर्श से..... "
भाभी फर्श से उठ कर भैया के सामने खड़ी हो गयी. मेरा लंड उनके नंगे बदन को और बढ़कर सलामी देने लगा. भैया ने भाभी की कमर को दोनो हाथों से पकड़ा और उनका पेट चूम लिया.
"सुम्मी, अगर ऐसी बात है तो क्यूँ ना मैं तेरे इस प्यारे से पेट में एक बच्चा दे दूँ?" यह कहके एक बार फिर उन्होने भाभी का पेट चूम लिया.
भाभी ने एक कातिल मुस्कान देकर कहा "हाँ, दे दीजिए मुझे एक प्यारा सा बच्चा. बना दीजिए मुझे माँ. बो दीजिए अपना बीज मेरी इस कोख में". भाभी अपना हाथ अपने पेट पर रखते हुए बोली.
"चल आजा बिस्तर पे. आज तेरी कोख हरी कर देता हूँ. बच्चेदानी हिला कर चोदून्गा, साली, एक साथ चार बच्चे पैदा करेगी तू." भैया बोले.
"रुकिये... पहले मेरी बुर चाट के इसे गीला कर दीजिए ना एक बार" भाभी बोली.
"मेरी जान, तुझे कितनी बार बोलू, मेरी चूत चाटना पसंद नही. बहुत ही कसैला सा स्वाद होता है."
"आप मुझसे तो अपना लंड चुसवा लेते हैं, मेरी चूत क्या इस काबिल नही की उसे थोड़ा प्यार मिले."
"तू चूस्ती भी तो मज़े से है, चल अब देर मत कर, लेट जा और टांगे खोल दे"
भाभी ने वैसा ही किया. भैया अपने लंड पर थूक मल रहे थे.
भैया ने भाभी की टाँगों को खोल कर, अपना लंड हाथ में लेकर उसे भाभी की चूत पर रखकर एक झटका मारा.
"आह" भाभी के मूँह से निकला. भाभी का ख़याल ना रखते हुए, वो झटके पे झटके मार मार के अपना पूरा छेह इंच का लंड भाभी की चूत में जड़ दिया.
"साली, तेरी कमीनी चूत तो बेशर्मी से गीली हो रही है."
दोनो ने दो मिनिट साँस ली. फिर भैया बोले "छिनाल, तैयार हो जा... माँ बनने वाली है तू... इसी कोख से दर्जनों बच्चे जनेगी तू."
और फिर तीव्र गति से भाभी की चुदाई शुरू हो गई. भाभी भैया के नीचे लेटी हुई थी और चेहरे पे चुदाई के भाव थे.
"ओह... ओह... ओह... सस्स्स्सस्स... आह" भाभी के मुख से कामुक आवाज़ें सुन कर मैं अपना लंड और तेज़ी से हिलने लगा.
"ले चुद साली... और चुद...." भाभी का हाथ लेकर भैया ने उसे अपने टट्टो पर रख दिया.
"ले सहला मेरे टटटे... और ज़्यादा बीज दूँगा तुझे" भाभी भैया के टॅटन को सहलाने लगी.
भैया ने भाभी के कंधों पर हाथ रखकर उन्हे कसकर पकड़ लिया और कसकर चोद्ने लगे.
"ले, मालिश कर मेरे लंड की अपनी चूत से.... साली, क्या लील रही है तेरी चूत मेरे लंड को... लगता है बड़ी उतावली है तू मेरे बीज के लिए"
और भाभी चीख पड़ी...
"चोद मुझे साले भड़वे... दे दे मुझे अपना बच्चा.... हरी कर दे मेरी कोख". भैया ने चुदाई और तेज़ कर दी. अब तो पूरा बिस्तर बुरी तरह से हिल रहा था.
भाभी ने अपनी उंगली अपने मूँह में डालकर गीली की और उससे भैया के पिछवाड़े वाले छेद को रगड़ने लगी.
"आह... सुम्मी.. मैं छूटने वाला हूँ." भैया बोले.
"नही.. थोड़ा रूको... मैं भी छूटने वाली हूँ" भाभी बोली
"नही... और नही रुक सकता, सुम्मी..... आह... मैं छूट रहा हूँ... ये ले मेरा बीज... आह".
भैया ने सारा माल भाभी की चूत में डाल दिया.
फिर भैया एक तरफ करवट लेकर सो गये. मुझसे भी रहा नही गया. मैं भी छूट गया और मेरा सारा माल फर्श पर गिर गया.
थोड़ी देर बाद मैने च्छेद से झाँक कर देखा तो भैया सो गये थे, ख़र्राटों की आवाज़ आ रही थी. भाभी अभी भी जागी हुई थी और हाँफ रही थी. वो गुस्से में थी.
भैया की तरफ मुँह करके भाभी बोली "अपनी हवस मेरी चूत पर निकाल कर... करवट लेकर सो गया, मादरचोद!"
अचानक भाभी उठी तो मुझे लगा वो दरवाज़े पर आ रही हैं. इसलिए मैं वहाँ से भाग कर अपने कमरे में आ गया.
कुछ देर रुकने के बाद मैने सोचा एक आख़िरी बार भाभी के नंगे बदन के दर्शन कर लूँ. मैं ध्यान से नीचे उतरा और फिर से छेद से झाँका.
नज़ारा देख के मेरा लंड फिर से जाग उठा. मेरी नंगी भाभी ने अपनी दो उंगलियाँ चूत में डाली थी. और दूसरे हाथ से वो अपना दाना रगड़ रही थी.
मैने फिर से लंड हिलना शुरू कर दिया. भाभी अपनी उंगलियों से अपनी ही चूत चोद रही थी और कामुक आवाज़ें निकल रही थी. कुछ देर बाद उनके अंदर से एक आवाज़ आई जो सिर्फ़ एक तृप्त औरत छूटते समय निकलती है. उसके बाद भाभी की चूत से फवररा सा निकला. मुझे लगा वो मूत रही थी.
खैर, उसके बाद भाभी लाइट बंद करके सो गयी और मैं भी अपने कमरे में आ के सो गया.