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Click hereतरुण को और क्या चाहिए था? उसने वही कहानी अब खुल्लमखुल्ला भाषा में कहना शुरू किया।
तरुण ने कहा, "ठीक है, देखो भाई, मैं तो बस भाभी का लिहाज कर रहा था। अगर दीपा भाभी को एतराज नहीं है और तुम सुनना चाहते हो तो उनकी सारी आपबीती मैं अब खुल्लम्खुल्ले शब्दों में सुनाता हूँ।"
ऐसा कह कर तरुण ने वह कहानी का सेक्स... मेरा मतलब है चुदाई वाला हिस्सा दुबारा खोल कर सुनाया। तरुण ने कहा, "दीपक, जब रमेश उस कपल के बैडरूम में दाखिल हुआ तो उसने देखा की बीबी अपने पति की गोद में बैठी पति के होँठों से अपने होँठ मिलाकर उनके होंठ चूस रही थी। दोनों पति पत्नी प्यार में इतने मशगूल थे की उन्हें ध्यान भी नहीं था की उन्होंने दरवाजा बंद नहीं किया था। या हो सकता है उन्होंने जानबूझ कर दरवाजा खुला छोड़ रखा हो।
सच तो यह था की रमेश का दोस्त, रमेश की बात सुनकर इतना प्रभावित हो गया था की अपनी बीबी को रमेश से चुदवाते हुए देखना चाहता था और वह भी रमेश के साथ मिलकर अपनी बीबी को चोदना चाहता था। शायद उसकी बीबी भी अपने पुराने दोस्त से बहोत आकर्षित थी और रमेश से वह कॉलेज में पढ़ते हुए चुदाई ना करवा सकी, शायद उसके मन में यह कसक कहीं ना कहीं रह गयी थी। तो तब वह शादी के इतने सालों के बाद रमेश से चुदाई करवाने के लिए तैयार हुई।
रमेश के कमरे में आते ही रमेश ने देखा की दोस्त की बीबी के ब्लाउज के बटन खुले हुए थे और ब्रा भी खुली हुई थी। दोस्त की बीबी के आकर्षक और सेक्सी बॉल रमेश की नज़रों को उकसाने के लिये काफी थे। बीबी के स्तनों की निप्पलेँ उसकी उत्तेजना के कारण ऐसी फूली हुई और कड़क थीं की जैसी एक औरत की प्यार भरी चुदाई से हो जातीं हैं।"
जब दीपा ने यह सूना तो मैंने महसूस किया की दीपा के पुरे बदन में सिहरन फ़ैल गयी। उस शाम तक दीपा ने पहले कभी किसी गैर मर्द से ऐसी खुली सेक्सी भाषा नहीं सुनी थी। तरुण के मुंह से ऐसी बातें सुनकर उसने अपना एक हाथ अपनी चूँचियों पर रखा और दूसरे हाथ से मेरी जांघ को दबाया। जैसे वह चेक कर रही थी की कहीं उसकी अपनीं निप्पलेँ भी तो सख्त नहीं हो गयीं।
शायद तरुण ने भी यह देखा। वह मन ही मन मुस्कराता हुआ बोला, "रमेश के दोस्त के हाथ अपनी बीबी के बब्ले दबाने में और उनको मसलने में व्यस्त थे। शायद मैंने नहीं देखा... मेरा मतलब है, रमेश ने नहीं देखा पर उस समय मेरे दोस्त का... मेरा मतलब है रमेश के दोस्त का लण्ड भी उसकी धोती में खड़ा हो गया होगा और बीबी की सुडौल गाँड़ को निचे से टॉच रहा होगा।"
जब तरुण गलती से यह बोल पड़ा तो इसका मतलब मुझे साफ़ दिखा। मैंने तरुण को बीचमें टोकते हुए कहा, "तरुण, झूठ मत बोलना। कहीं तुम अपनी ही सच्ची कहानी अपना नाम छुपाकर तुम्हारे दोस्त रमेश का नाम लेकर तो नहीं सूना रहे हो? कहीं वह रमेश तुम ही तो नहीं हो?"
मेरी बात सुनकर तरुण खिसियाना सा कुछ देर तक सुन्न सा मेरी और देखता रहा। उसने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया। फिर अपनी कहानी जारी रखते हुए कहा, "पहले पूरी बात सुनलो।"
उसके बाद तरुण स्पष्ट रूप से रमेश के मित्र और उसकी पर्त्नी की चुदाई के बारे में विस्तार से बताने लगा। सबसे पहले रमेश ने उसके दोस्त की पत्नी के बूब्स को खोल कर पुरे आवेश के साथ चूसा। रमेश के चूसने से रमेश के दोस्त की पत्नी मचल उठी। उसकी निप्प्लें एकदम सख्त हो गयी। रमेश ने तरुण को बताया की उसने कैसे उसके मित्र की पत्नी की चूत को चाटा और कैसे उसकी चूत के झरते हुए पानी को चूसने लगा।
रमेश के मित्र की पत्नी ने अपने पति और रमेश दोनों के लण्ड अपने दोनों हाथोंमे लिए और उन्हें धीरे धीरे सहलाने और मालिश करने लगी। जैसे जैसे उसने दोनों मर्दों के लण्ड को थोड़ी देर हिलाया तो तरुण के दोस्त रमेश और उसके दोस्त के लण्ड लोहे की छड़ की तरह खड़े हो गए।"
जब तरुण थड़ी साँस लेने के लिए रुका तो मैंने तरुण से कहा, "यार तुझे तो कोई लेखक होना चाहिए था। तू सारी बातें इतनी बारीकी से बता रहा है, जैसे तू खुद ही वहाँ था। मुझे लग रहा है कही तू ही तो वह रमेश की जगह नहीं था? अगर ऐसा है तो तू साफ़ साफ़ क्यों नहीं बता रहा की तू ही वह रमेश है?, क्यों दीपा मैंने कुछ गलत कहा?"
दीपा ने कुछ हिचकिचाते हुए, कुछ शर्मा कर कहा, "हाँ, दीपक मुझे भी कुछ कुछ ऐसा ही लग रहा है।" फिर तरुण की और मुड़कर दीपा ने कहा, "देखो तरुण, अगर तुम्ही थे जिसका नाम तुम रमेश बता रहे हो तो उसमें मुझे या मेरे पति दीपक को कोई आपत्ति नहीं है। मियाँ बीबी राजी तो क्या करेगा काजी? जब तुम्हारा दोस्त और उसकी बीबी को ही कोईआपत्ति नहीं है तो हमें क्या लेनादेना? पर जब हम खुल्लमखुल्ला बात कर रहे हैं तब तुम हम से छुपाछुप्पी मत खेलो। पर खैर छोडो इस बातको। हम तुम्हें कटघरे में खड़े करना नहीं चाहते।"
मैंने भी दीपा की बात में सहमति जताते हुए अपना सर हिला दिया। तरुण की खुल्लम खुली कहानी जिसमें तरुण के दोस्त की बीबी ने बारी बारी से दोनों मर्दों के लण्ड को चूसा यह सुन कर मैं तो उत्तेजित हो ही गया पर मैंने अनुभव किया की दीपा भी काफी गरम हो रही थी। मैं उसके हांथों में हो रहे कम्पन महसूस कर रहा था। तरुण की आवाज में भी रोमांच की थरथराहट महसूस हो रही थी। हम तीनों ही उत्तेजित हो उठे थे।
दीपा ने तरुण की और देख कर कहा, "तरुण, यार तुम बड़े ही चालु निकले। इधर किसी से प्यार तो उधर किसी और से? तुम एक साथ कितने चक्कर चलाते हो यार? मैं जानती हूँ की वह रमेश कोई और नहीं, वह तुम्ही थे और तुमने ही वह, क्या कहते हैं? हाँ एम.एम.एफ़. थ्रीसम बगैरह भी तुम्हारे दोस्त और उसकी बीबी के साथ किया। एक साथ इतने चक्कर चलाना, यह ठीक बात नहीं।" बात करते करते बिच बिच में दीपा की जबान थोड़ी सी लहरा जाती थी लड़खड़ा जाती थी।
जब तरुण ने यह सूना तो उसकी बोलती बंद हो गयी। उसने दीपा का हाथ पकड़ा और बोला, "भाभी, मैं आपकी कसम खा कर कहता हूँ की जो हो गया वह हो गया। अब मैं वह नहीं हूँ जो कभी हुआ करता था। मेरा यकीन करो। हाँ, आपको जब भी देखता हूँ तब मेरा मन मचल जाता है यह सच बात है। आज मैं भाई के सामने यह बात कह रहा हूँ की आप इतनी सभ्य, सुशिल, संस्कारी होते हुए भी आज आप इस ड्रेस में तो रम्भा, रति या मेनका से भी ज्यादा सेक्सी लग रही हो। आपको जब देखता हूँ तो पता नहीं मुझे क्या हो जाता है। वरना भाभी मानिये की मैं अब किसी और औरत की तरफ गलत नजर से देखता नहीं हूँ। भाई बहोत बहोत तकदीर वाले हैं की उन्हें आप जैसी बीबी मिली जो हमेशा उनकी मन की इच्छा पूरी करती है।"
दीपा तरुण की बात सुनकर हँस पड़ी और बोली, "अच्छा? तो क्या? तुम चाहते हो की मैं तुम्हारे मन की भी इच्छा पूरी करूँ? क्या बात करते हो? तुम भी ना तुम्हारे भाई की तरह कभी कभी बहकी बहकी बातें करते हो। तुम कहते हो तुमने किसी और औरत को गलत नज़रों से नहीं देखा। मतलब क्या है? इसका मतलब तुमने मुझे गलत नज़रों से देखा है। है की नहीं? बोलो?"
मेरी बीबी की साफ़ साफ़ बात सुन कर मैं भी हैरान रह गया। मैंने भी तरुण से पूछा, "बोलो तरुण, दीपा की बात का जवाब दो?"
तरुण ने अपनी नजरें झुका कर कहा, "भाई और भाभी, आप ने जब मुझे साफ़ साफ़ पूछा है तो मैं झूठ नहीं बोलूंगा। आज मैं आप दोनों के सामने कबुल करता हूँ की मैंने भाभी को गलत नजर मतलब सेक्स की नजर से देखा है, यह हकीकत है। ना सिर्फ गलत नजर से देखा है बल्कि मैंने मेरी भाभी को हर जगह छुआ भी है और उनका बदन पाने की लालसा भी रखी है। भाई, मैंने यह बात आपसे छुपा कर नहीं रक्खी। मैंआपको बताता रहा हूँ की भाभी ऐसी सेक्सी हैं की मैं जब उन्हें देखता हूँ तो अपने आप को रोक नहीं पाता हूँ। भाभी आप इसकी मुझे जो चाहो सजा दो वह मुझे मंजूर है। आप कहोगे तो मैं अभी इसी वक्त यहां से चला जाऊंगा। पर भाभी मैं आपसे और एक बात जरूर कहूंगा की मैं जब से आप के करीब आया हूँ तब से मैंने आप और टीना के अलावा किसी और औरत की तरफ गलत नज़रों से नहीं देखा।"
दीपा तरुण की बात सुनकर ठिठक गयी। मेरी और देख कर बोली, "अरे सूना तुमने? तुम क्या कहते हो? तरुण कह रहा है वह मुझे गलत नजर से देखता है। मैं तो तुम्हें पहले से कहती थी। पर तुम मेरी बात मानते ही नहीं थे।"
मैंने कहा, "दीपा यह तो कमाल है? मैं तुम्हें कहता था की तरुण तुम्हें लाइन मार रहा है तो तुम कहती थी ऐसा नहीं है तरुण शरीफ लगता है?"
तरुण ने देखा की हम मियाँ बीबी एक दूसरे से लड़ने लगे तब तरुण ने कहा, "भाई, हम यहां मजे करने के लिए आये हैं, लड़ने के लिए नहीं। अगर आप दोनों को लगता है की मेरा भाभी की और गलत नजर से देखना सही नहीं है तो मैं अभी आप दोनों को आपके घर पर छोड़ कर चला जाता हूँ। आगे से मैं आपको ना ही मिलूंगा नाही फ़ोन करूंगा। मैंने जो बोला वह सच बोला और आप से भी छुपाया नहीं। बोलो, भाई और भाभी, आप का क्या निर्णय है? क्या आप मुझ से सम्बन्ध रखेंगे या नहीं?"
तरुण की बात सुन कर दीपा कुछ हड़बड़ाई सी हो गयी और मेरी और देखने लगी। मैंने देखा की उसकी आँखें कह रहीं थीं की तरुण को जाने ना दूँ, उसको रोकूं।
मैंने तरुण से कहा, "मैं भी आज तुम्हारे सामने एक सच बोलता हूँ और मैं कबुल करता हूँ की मैंने भी तुम्हारी बीबी टीना को गलत नज़रों से देखा है। देखो अभी अभी दीपा ने खुद ही कहा की अगर पति और पत्नी दोनों ही किसी बात पर सहमत हों तो उसमें कोई भी बात गलत नहीं होती। तुम मेरी बीबी को सेक्स की नजर से देखते हो या छेड़ते हो या मुझे संज्ञान में रखते हुए उससे और भी आगे बढ़ते हुए सेक्स भी करते हो तो उसमें मुझे कोई आपत्ति नहीं है। बाकी दीपा क्या चाहती है वह दीपा जाने।" यह कह कर मैंने सारा ठीकरा दीपा के सर पर ही फोड़ दिया।
तरुण ने फ़ौरन दीपा की और देखा और दोनों हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया। दीपा ने तरुण का हाथ थाम कर कहा, "तरुण, आज तो कमाल हो गया। मेरा पति तुम्हारी पत्नी को लाइन मार रहा है और तुम तुम्हारे दोस्त की बीबी मतलब मुझ पर लाइन मार रहे हो। तुम दोनों ने मिलकर तो सारा हिसाब बराबर ही कर दिया। अब और क्या कहना बाकी रह गया है?"
दीपा की बात सुन कर तरुण चुपचाप एक गुनहगार की तरह दीपा की और देखता रहा। मेरा भी हाल कुछ ऐसा ही था। हमें ऐसे हाल में देख कर दीपा की हंसी फुट पड़ी। वह तरुण के हाथ थाम कर बोली, "तुम्हें कहीं नहीं जाना। चलो तुमने यह सच तो बोला और कबुल किया की तुम मुझ पर लाइन मार रहे थे यह ही बड़ी बात है। मैं कोई इतनी ज्यादा रूढ़िवादी नहीं हूँ जितना मेरे पति मुझे मानते हैं। सच तो यह है की तुम अकेले ही नहीं हो जो मुझ पर लाइन मार रहे हो। मुझ पर लाइन मारने वाले पता नहीं कितने हैं। यह तो अच्छा हुआ की हम उस महामूर्ख सम्मलेन में कार से बाहर नहीं निकले, वरना इस ड्रेस में मुझे देख कर आज वहाँ लाइन लगाने वालों की लाइन लग जाती।
मेरे पति और मैं हम दोनों तुम्हें पसंद करते हैं। तुम में सच्चाई है यह तुम्हारी खूबी है। मुझे तो आईडिया हो ही गया था की तुम मुझ पर लाइन मार रहे हो और हाथ धो कर मेरे पीछे पड़े हो। देखो उस दिन पार्क में टीना भी थी, फिर भी तुमने मुझे छेड़ दिया और मुझे इधर उधर छू लिया था। और फिर उस सुबह जब तुम मेरी मदद करने रसोई में आये थे तब तुमने मुझे बाथरूम में सब जगह छू ही नहीं लिया था और भी बहुत कुछ किया था। आज होली के दिन भी तुमने मेरे साथ क्या क्या नहीं किया? ... "
ऐसा कह कर दीपा तरुण को उसकी हरकतों के बारे में बोलती गयी और विस्तार से बताने लगी। मैं तो जानता ही था की दीपा एक बार शुरू हो गयी तो उसे रोकना मुश्किल था। मेरी बीबी वैसे ही बातूनी है और शराब का तड़का जब लगा तो वह कहाँ रुकने वाली थी? धीरे धीरे सारी बातें साफ़ हो रहीं थीं और सब के मन की बात बाहर आने लगी थीं।
दीपा तरुण से बातें करने में और तरुण की बातें सुनने में इतनी मग्न थी तब मैंने देखा की तरुण ने अपना बाँया हाथ धीरे से दीपा के बदन के पीछे दीपा की पीठ और कार की सीट की बैक के बिच में घुसेड़ दिया। पीछे मेरी बीबी का ब्लाउज सिर्फ दो डोर के सहारे टिका हुआ था। तरुण ने हलके से बड़ी चतुराई से दीपा को अपनी बातों में उलझाए रखते हुए पता नहीं कब वह दोनों डोर एक के बाद एक करके खोल दिए। मुझे भी पता नहीं चलता पर मैंने देखा की दीपा का ब्लाउज ढीला सा आगे की तरफ झुका हुआ था। दीपा को पता नहीं चला की कब उसके ब्लाउज को तरुण ने खोल दिया।
उसी दरम्यान जब मैंने दीपा को अपने कूल्हे बार बार सीट पर खिसकाते हुए देखा तो मैंने दीपा की पीठ पीछे देखा तो पाया की तरुण अपना हाथ दीपा के कूल्हे के निचे तक ले जाकर शायद दीपा की गाँड़ में साडी के तले से उंगली कर रहा था। पता नहीं क्यों मेरी बुद्धू बीबी अपने कूल्हे इधर उधर खिसका ने के अलावा इस का कोई प्रत्युत्तर नहीं दे रही थी। क्या उस को तरुण क्या कर रहा था यह समझ नहीं आ रहा था या फिर वह तरुण की शरारत को जानबूझ कर झेल रही थी, या क्या वह तरुण की शरारत को एन्जॉय कर रही थी?
दीपा की पतली महिम ब्रा ब्लाउज के खुल जाने से साफ़ दिख रही थी। वह ब्रा भी जाली वाली पार दर्शक सी ही थी। उस ब्रा के अंदर से मेरी बीबी की दूधिया सफ़ेद चूँचियों के बिच में कामुकता भरा चक्कर बनाये हुए चॉकलेटी एरोला के शिखर पर अपना सर खड़ा रखती हुई दीपा के स्तनोँ की निप्पलेँ अल्लड खड़ी हुई नजर आ रही थी। शायद तरुण की आँखें भी उस नज़ारे का रसास्वादन कर रही थीं।
उस समय तरुण रमेश और उसका दोस्त उस दोस्त की पत्नी की टांगें खोल कर उसका घाघरा चोली निकाल कर बीबी की चूत को बारी बारी से कैसे चाटने लगे थे उसका विवरण कर रहा था। हालांकि दीपा तरुण की कहानी पुरे ध्यान से सुन रही थी, पर ऐसे दिखावा कर रही थी जैसे वह कार के बाहर कही दूर अँधेरे में कुछ देख रही हो और जैसे उसे कहानी में कोई ज्यादा दिलचस्पी ही ना हो।
दीपा को तरुण की हरकतों के बारे में शायद आइडिया हो की तरुण कुछ शरारत कर रहा था पर उसे टोक नहीं रही थी क्यूंकि एक तो वह थोड़ी उन्माद की स्थिति में थी और शायद वह दिखाना चाहती थी की वह तरुण की ऐसी वैसी हरकतों से पीछे हटने वाली नहीं थी। या फिर गुस्सा करके वह माहौल बिगाड़ना नहीं चाहती थी। मैं अपने मन में मेरी बीबी के मन में क्या चल रहा होगा उसकी कल्पना मात्र ही कर सकता था।
तरुण की उत्तेजना भरी कहानी सुनकर मैं तो पागल सा हो रहा था। शायद दीपा का भी वही हाल था। तब मैंने साफ़ देखा की तरुण ने मेरी बीबी के पीछे ब्रा के पट्टे का एक ही हल्का सा हुक था उसे खोल दिया। दीपा की ब्रा की पट्टी पीछे से खुल गयी। दीपा की ब्रा दीपा के कंधे पर लटक गयी और उसके अल्लड और उन्मत्त खड़े दोनों स्तन आधे खुले हुए दिखने लगे।
तरुण ने जैसे ही दीपा के स्तनों को आधे अधूरे खुले हुए देखा तो उसकी आँखें फटीं की फटीं रह गयीं। उस समय वह रमेश के दोस्त की बीबी रमेश और उसके दोस्त के लण्ड बारी बारी से हाथ में पकड़ कर कैसे चूस रही थी उसका वर्णन कर रहा था। पर तरुण ने जब दीपा के उद्दंड स्तनोँ को अधखुली दशा में देखा तो उसके होश उड़ गए। उसकी सिट्टीपिट्टी गुम हो गयी। उसके मुंह से आवाज निकलनी बंद हो गयी।
दीपा ने जब तरुण की और देखा और तरुण को अपने स्तनोँ की और एकटक देखते हुए पाया तो उसे समझ आया की उसके ब्लाउज के डोरे और ब्रा की पट्टी खुली हुई थीं। तब मैंने महसूस किया की दीपा के गुस्से का पारा चढ़ रहा था और जल्दी ही कुछ ना किया गया तो वह एक़दम सातवें आसमान को छू सकता था और वह तरुण की ऐसी की तैसी कर सकती थी। अगर ऐसा हुआ तो सारी शाम का मजा किरकिरा हो जाएगा और दीपा एकदम वापस घर जाने की जिद पर उतर आएगी तो हमें मजबूरी में यह सारा प्रोग्राम कैंसिल करना पडेगा।
यह सोच कर मैं मेरी बीबी की और घूम गया। मैंने मेरी बीबी दीपा को ऊपर उठाया, अपनी और खींचा, सीट पर अपनी टाँगे लम्बीं कीं, और उसे अपनी बाहों में समेट मैंने दीपा की टांगें फैला कर उसको उठा कर मेरी गोद में ले लिया। उसे मेरी तरफ घुमा कर मेरी टांगों के ऊपर मेरी गोद में बैठना पड़ा।
मैं पीछे सरक कर कार के दरवाजे से अपनी पीठ टिका कर बैठ गया, जिससे मेरे पाँव सीट पर लम्बे हो सकें। पर ऐसा करने से दीपा के पाँव लम्बे नहीं हो सकते थे। दीपा को एक पाँव सीट के निचे लटकाना पड़ा और चूँकि मैं कार के दरवाजे से पीठ सटा कर बैठा हुआ था , दीपा का दुसरा पाँव घुटनों से मोड़ कर दीपा मेरी गोद में बैठी हुई थी। दीपा का घाघरा दीपा के घुटनों से भी ऊपर करीब करीब उसकी पैंटी के छोर तक चढ़ गया था। दीपा की करारी जाँघें लगभग नंगी हो चुकी थीं। हालांकि दीपा की पैंटी तरुण दीपा के पीछे होने से, और दीपा की चूत मेरे लण्ड से सटी होने के कारण तरुण को नहीं दिखाई पड़ती थी।
मेरी टांगें तरुण की जाँघों को छू रही थीं। दीपा की पीठ तरुण की तरफ थी। आगे की सीट की थोड़ी सी जगह में यह सब थोड़ा मुश्किल था। दीपा को मजबूरन अपना घाघरा फैलाकर मेरी कमर के दोनों तरफ अपनी दोनों टाँगों को करना पड़ा। दीपा का घाघरा (पेटीकोट) उसकी जाँघों के ऊपर तक चढ़ गया था। मैंने तरुण के हाथ दीपा के पीछे से हटा दिए और मैं ऐसे नाटक करने लगा जैसे मैंने ही उसके ब्लाउज की डोरी और ब्रा की पट्टी खोली हो। मेरी बीबी की गाँड़ तक अपने हाथ ले जा कर मैं उसकी गाँड़ के गालों को दबाने लगा।
बड़ी मुश्किल से मेरी पत्नी बोल पायी की "दीपक यह क्या कर रहे हो? क्यों मुझे परेशान कर रहे हो?"
मैंने कहा, "मैं तुम्हें प्यार कर रहा हूँ तो तुम्हें परेशानी लगती है?" मैं यह कह कर मैं फिर से मेरी बीबी को मेरे बदन से दबा कर उसे चूमने और उसकी पीठ को प्यार से सहलाने लगा। मेरी बात सुनकर दीपा चुपचाप मुझसे अपने होँठ और जीभ चुस्वाति रही।
बाहर से देखने वाले को तो शायद ऐसा ही लगता जैसे दीपा मेरी गोद में बैठ कर मुझे चोद रही थी। मैंने दीपा को उसकी बाँहें मेरे गले में डालकर मुझे चुम्बन करने के लिए बाध्य किया। दीपा भी उकसाई हुई थी। वह भी अपनी बाँहों में मुझे लपेट कर मेरे होँठों से अपने होँठ भींच कर मुझे गहरा चुम्बन करने में जुट गयी।
ऐसा करते हुए मैंने तरुण की और देख कर एक आँख मटक कर कहा, "यार तरुण, तुम्हारी कहानी तो अच्छे अच्छों का लण्ड खड़ा कर देने वाली है। मेरा लण्ड भी कितना गरम हो कर खड़ा हो गया और फुंफकार रहा है।" मैंने फिर दीपा की और घूम कर दीपा के होँठों पर अपने होँठ रख दिए और एक पागल की तरह मैं उन्हें चूमने और चूसने लगा।
दीपा भी तो उत्तेजित हो गयी थी। वह भी काफी गरम थी। वह अपनी खुली हुई चूँचियों भूल ही गयी। उसके गुस्से पर मैंने जैसे पानी फेर दिया। जब मैं दीपा को चुम रहा था तो दीपा मुझे रोक कर कुछ खिसियानी सी आवाज में बोल पड़ी, "अरे रुको। यह क्या कर रहे हो? कुछ शर्म है की नहीं? तरुण यहाँ बैठा हुआ है और सब देख रहा है।"
मैंने दीपा को कहा, "देखा? यही तो मैं कह रहा था की आज की रात जब मैं तुम्हें प्यार करूंगा तो तुम मुझे यह कह कर रोकेगी की तरुण है। तुमने मुझे वचन दिया था की तुम ऐसा नहीं कहोगी और मुझे प्यार करने दोगी। अब तुम वापस मुकर गयी ना? अरे तरुण की ऐसी की तैसी। मुझे प्यार करने दो ना यार!"
मैंने उसे पहले से हिदायत दी थी की तरुण आये या ना आये, मैं तो मेरी बीबी को प्यार करूंगा ही। तो दीपा मुझे मना नहीं कर सकती थी। उसने तो मुझे वचन जो दिया था। वैसे भी उसके लिए यह मुमकिन नहीं था की मेरे बाहुपाश से छूटकर अपनी चूँचियों को वह सम्हाल सके।
अपने वचन से बंधी हुई दीपा लाचारी में मुझे चूमने से रोक नहीं पायी और खुद भी इतनी गरम हो गयी थी की बिना तरुण की परवाह किये वह मेरे होंठों को चूसने लगी।
मैंने तरुण से कहा, "तरुण, सॉरी यार। मैं तुम्हारी गरमागरम कहानी सुनकर मेरी बीबी को प्यार किये बिना रह नहीं सकता। दीपा डार्लिंग, आज तुम्हें हमारे साथ बैठ कर खुल कर बातें करते हुए देख कर मुझे बहोत बहोत बहोत अच्छा लगा है। मजाक अलग है पर आज मुझे तुम पर वाकई में नाज है। आज मुझे ऐसा लगा है जैसे हम लोग हनीमून मना रहे हों।"
दीपा ने मेरी और मुस्करा कर देखा और कुछ दबी सी आवाज में मेरे कानों में बोली जिससे तरुण ना सुन सके, "अच्छा? हम क्या तरुण के साथ हनीमून मना रहे है?"
मैंने कहा, "तो क्या हुआ? तरुण अपना ही है, कोई पराया थोड़े ही है? पर फिलहाल तो तरुण की ऐसी की तैसी"
हम कभी हनीमून पर तो गए नहीं थे। पर मेरी हनीमून वाली बात सुनकर वह काफी खुश थी। उसका गुस्सा पिघल चुका था। मेरी बात सुनते ही बिना बोले दीपा मेरे साथ चुम्बन में जुट गयी। किस करते करते मैंने दीपा की साडी को उसकी जांघों से ऊपर खींचते हुए तरुण की और मुड़कर देखा और कहा, "तरुण, तुम्हारी कहानी ने मुझे इतना उत्तेजित कर दिया है की मैं अपने आप को कंट्रोल में रख नहीं पा रहा हूँ।"
दीपा भी उतनी उत्तेजित हो गयी थी की वह मुझसे लिपट कर जोश से चुम्बन करने लगी और मेरे मुंह में अपनी जीभ डाल कर मुझसे अपनी जीभ चुसवाती रही। दीपा ने पीछे मुड़ कर हमारी और हैरानगी से देख रहे तरुण को देखा। फिर उसे हलकी सी मुस्कराहट देकर फिर वह मुझे किस करने लग गयी। दीपा के मेरी गोद में आ जाने से मैं उसकी और घूम गया था और उसे मेरी और घूमना पड़ा था, जिसके कारण उसकी नंगी पीठ तरुण की तरफ हो गयी थी। दीपा की ब्रा की पट्टी का हुक तो तरुण ने पहले से ही खोल दिया था।
दीपा की साडी की गाँठ भी दीपा के अपनी सीट पर बार बार सरकने से खुल गयी थी। मतलब के दीपा की पीठ उसकी गाँड़ तक नंगी थी। तरुण को उस समय दीपा की गाँड़ का कट भी नजर आ रहा था। हालांकि दीपा का घाघरा जरूर था, पर वह भी दीपा ने काफी निचे पहना हुआ था जिसके कारण तरुण को दीपा की गाँड़ का कट अपनी नज़रों के सामने दिख रहा था। मैं तरुण की नजर देख रहा था जो दीपा की गाँड़ पर टिकी हुई थी।
दीपा को उठा कर मेरी गोद में बिठाते हुए मैंने पाया की दीपा की साडी की गाँठ खुलने के कारण दीपा की साडी एक कपडे का ढेर बनकर दीपा की कमर के इर्दगिर्द लिपटी हुई थी। दीपा ने भी यह महसूस किया। दीपा की साडी की गाँठ अपने आप खुल गयी थी या तरुण का भी उसमें कोई योगदान था मुझे नहीं पता।
दीपा ने तरुण ना सुने इतनी धीमी आवाज में मेरे कानों में फुसफुसाते हुए कहा, "मैंने तुम्हें बोला था ना की यह साडी वजन में एकदम हलकी और फिसलन वाली है? देखो अब इसकी गाँठ खुल गयी। तुम तो मुझे सेक्सी कपडे पहनने के लिए कह रहे थे पर यहां तो मैं नंगी ही हो गयी ना? तुमने मेरी इज्जत का तो फालूदा करवा ही दिया ना?"
दीपा की बात सुनकर मैं हैरान रह गया। मैंने तो दीपा से यह साडी पहनने के लिए नहीं कहा था। पर खैर, मैंने उसे समझाते हुए कहा, "कोई बात नहीं। तरुण ने तुमको पहले आधी नंगी नहीं देखा क्या? तुम्हारी जाँघों को नहीं देखा क्या? तुम कार में ऐसे ही बैठी रहो। तुम चिंता मत करो। मैं तरुण को कार से बाहर जाने ले लिए कहूंगा। तब तुम साडी दोबारा पहन लेना। पर अभी तो मुझे तुम्हारे रसीले होंठों का रस पान करने दो ना?"
दीपा के होँठों से रस टपक रहा था। मैंने अपनी जीभ उसके मुंह में डाली तो दीपा उसे चाटने लग गयी। मैं और मेरी बीबी दीपा एक उत्कट आलिंगन में जकड़े हुए थे तब तरुण ने मेरी एक बाँह पकड़ी और बोला, "भाई कमाल है। आप दोनों तो गरम हो कर एक दूसरे से लिपट कर अपने बदन की आग बुझा सकते ही पर मेरा क्या? तुम मियाँ बीबी मुझ पर बड़ा जुल्म ढा रहे हो। मेरा कसूर यही है ना की मेरी बीबी मेरे साथ नहीं है?"
मैंने देखा की तरुण मेरी बीबी की नंगी करारी जाँघों को दीपा के कंधे से ऊपर सर उठा कर देखने की कोशिश कर रहा था। मैंने उसे देखते हुए पकड़ लिया तब उसने अपनी नजरें घुमा दीं।
तब मैंने तरुण को तपाक से जवाब देते हुए कहा, "यह सच है की तेरी बीबी इस वक्त नहीं है। पर दीपा और टीना एक दूसरे को बहन मानते हैं। तो दीपा तेरी साली तो है ना? साली तो आधी घरवाली ही होती है ना? क्यों दीपा, बोलती क्यों नहीं?"
दीपा ने आँख टेढ़ी करके मेरी और देखा और कटाक्ष में बोल पड़ी, "क्यों नहीं? भड़काओ अपने दोस्त को। और दोनों मिल कर मेरी बैंड बजा दो। क्यों भाई? क्या मैं तरुण की साली हूँ? तरुण तो मुझे भाभी कह रहा है, तो तरुण मेरा देवर हुआ की नहीं? अब यह मत कहिये की देवर आधा घरवाला होता है, या भाभी भी आधी घरवाली होती है।"
तरुण और मैं दीपा की बात सुनकर हंस पड़े। तरुण ने कहा, "भाभी, मैं ऐसा कुछ नहीं कह रहा हूँ। बस मैं तो अपनी तक़दीर को कोस रहा था और भाई की तक़दीर की तारीफ़ कर रहा था की उन्हें आप जैसी कंधे से कंधा मिला कर पूरा साथ देने वाली अक्लमंद, हिम्मतवाली, खूबसूरत और सेक्सी साथीदार पत्नी के रूप में मिली है।"