बीबी की चाहत 03

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तरुण ने मुस्काने की कोशिश की पर उसकी मुस्कान में भी ग़म की छाया थी। तरुण ने दीपा की और दुःख भरी नज़रों से देखा पर कुछ ना बोला।

तरुण को तो उस समय बड़ा खुश होना चाहिए था। पर तरुण की शक्ल रोनी सी हो रही थी। दीपा बड़ी उलझन में थी। तरुण के मूड में यह परिवर्तन दीपा की समझ में नहीं आया। दीपा ने तब मुझे इशारा किया की मैं सब के लिए एकएक पेग बना के लाऊं।

तरुण ने मेरी पत्नी का इशारा देख लिया था। तरुण ने तुरंत फुर्ती से उठकर अपने बार से एक व्हिस्की और एक जीन की बोतल निकाली और दो गिलास में व्हिस्की और एक गिलास में जीन डालने लगा तो दीपा ने जोर से कहा, "तरुण, रुको, मेरे गिलास में भी व्हिस्की डालो। आज मैं अपने पति को दिखाना चाहती हूँ की एक स्त्री भी पुरुष का मुकाबला कर सकती है। "

दीपा ने तरुण के हाथ से व्हिस्की की बोतल ले कर अपने गिलास में भी व्हिस्की डाली। तरुण भौंचक्का सा देखता ही रह गया। मेरे भी आश्चर्य का ठिकाना नहीं था। मैंने देखा तो दीपा ने व्हिस्की के साथ कुछ भी मिलाया नहीं और वह गिलास को देखते ही देखते साफ़ कर गयी। व्हिस्की अंदर जाने से दीपा ने कुछ देर के लिए अपनी आँखें मूंद लीं। उसे व्हिस्की का टेस्ट जमा नहीं पर दीपा कैसे भी व्हिस्की को गटागट पी गयी। मैंने सोचा हाय, आज तो जीन और व्हिस्की का खतरनाक मिलन हो गया था। आज तो क़यामत आने वाली है।

मैंने और तरुण ने भी अपने गिलास खाली किये। तरुण ने फिर अपनी गंभीर आवाज में कहा, "देखो हमारे पास पूरी रात पड़ी है। आप जो सुनना चाहते हो वह एक लम्बी कहानी है। आज हमें बहु बात करनी है। बातें करने से पहले क्यों न हम अपने कपडे बदलें और फिर आराम से बात करें। बात कर के हम चाहें तो सुबह थोड़ी देर के लिए सो सकते हैं। दीपक, तुम मेरे नाईट सूट को पहनलो। दीपा भाभी क्या मैं आप को टीना की कोई नाईटी दूँ?"

मैंने दीपा की और इशारा करते हुए तरुण को बोला, " लाओ भाई। मैं तो एक मर्द हूँ। मुझे खुले में कपडे बदलने में कोई झिझक नहीं है। तुम इस मैडम को पूछो, क्या इसे कोई एतराज है?"

तरुण ने अपना एक नाईट सूट मेरी तरफ बढ़ाया। मैंने उसे अपने हाथों में लिया और दीपा और तरुण के सामने अपने कपडे उतारे ओर सिर्फ जांघिया पहने हुए तरुण का कुर्ता पहना और फिर जांघिया भी निकाल दिया और पजामा पहना। ऐसा करते हुए, मेरा आधा खड़ा लण्ड सब को दिख गया। मैंने उसे छुपाने की कोशिश नहीं की। मैं मेरी बीबी को दिखाना चाहता था की मर्द को औरत की तरह फ़ालतू की शर्म नहीं होती। दीपा मेरे लण्ड का तरुण के सामने मुझे प्रदर्शन करते हुए देख कर चौंक गयी और कुछ सहम भी गयी। दीपा और मैं वैसे भी रात को अंदर के कपडे नहीं पहनते थे।

दीपा ने तरुण की और मुड़ते हुए लहजे में कहा, "सुना और देखा तुमने तरुण? मेरे पति कितने बेशर्म और निर्लज्ज हैं? खुद को नंगा होने में शर्म नहीं पर क्या वह अपनी पत्नी को भी दूसरे के सामने नंगी करवाना चाहते हैं?"

मैंने पट से कहा, "अरे भाई तरुण कोई दुसरा या बाहर का थोड़े ही है? अभी अभी तो तुम कह रही थी की हम तरुण के करीबी हैं और तरुण हमारा अपना करीबी है और हमको एक दूसरे से कुछ भी छुपाना नहीं चाहिए?"

दीपा ने कहा, "बात अगर जिद की है, तो मैं भी पीछे हटनेवालों में से नहीं हूँ। अगर मेरे पति ही मुझे नंगी करना चाहते हैं तो भला मैं क्यों पीछे हटूंगी? बात आज इज्जत की है। अगर वह जिद्दी हैं तो मैं डबल जिद्दी हूँ। मुझे तुम्हारे या टीना के कपडे यहीं पर पहनने में कोई एतराज नहीं है। लाओ, कहाँ है टीना का नाईट गाउन?" दीपा की आवाज में साफ़ थरथर्राहट थी। मैं समझ गया की दीपा को अच्छी खासी चढ़ गयी है।

तरुण ने जल्दी से चुन कर टीना का वह नाईट गाउन निकाला जो एकदम पतला और लगभग पारदर्शी सा था। तरुण ने अपने हनीमून पर टीना के लीये वह ख़रीदा था।

तरुण ने आगे से थोड़ा झुक कर बड़े अदब से कहा, "भाभीजी, भले ही मैं आपके खूबसूरत बदन को सेक्सी नजर से देखता हूँ और उसे चाहता हूँ, पर इसका मतलब यह नहीं है की आप मेरे लिए बड़े सम्मान के पात्र नहीं हो। दीपक तो पागल हो गया है। अरे उसे शिष्टता का भी ध्यान है के नहीं?"

फिर मेरी और मुड़ कर बोला, "भाई आप का दिमाग ठिकाने नहीं है। आप को मुझे सम्हालना चाहिए। उसकी जगह आप तो मेरी भाभी को ही परेशान कर रहे हो। मैं अकेला ही काफी हूँ भाभी को परेशान करने के लिए। मेरा दिमाग वैसे ही बिगड़ा हुआ है, उसे और मत बिगाड़ो।"

तरुण ने दीपा से कहा, "भाभी, भाई का भी दिमाग खराब है। उनकी मत सुनो। स्त्रियों का पुरुषों से कोई मुकाबला ही नहीं है। स्त्रियाँ पुरुषों से कहीं ज्यादा ऊँची और कई गुना ज्यादा महत्वपूर्ण है। जो काम स्त्रियां कर सकती हैं क्या वह पुरुष कर सकता है? क्या पुरुष बच्चों को जनम दे सकता है?"

फिर तरुण ने मुझे कहा, "भाई फ़ालतू की बातें मत करो यार! क्या मेरी भाभी मेरे सामने अपने कपडे बदलेगी? आप को शिष्टता का ध्यान ना हो पर मुझे तो है ना?"

और फिर दीपा को कहा, "भाभीजी आप रुक जाओ। मैं यहां से चला जाता हूँ। आप आराम से अपने कपडे बदलो तब तक मैं भी अपना नाईट गाउन पहनकर आता हूँ।"

दीपा को वह गाउन पकड़ा कर तरुण वहाँ से गायब हो गया। तरुण का सभ्यता पूर्ण व्यवहार देख कर दीपा हैरान रह गयी। उसे डर था की कहीं तरुण वहां खड़े रहने की जिद ना करे। तरुण यदि जिद करता तो दीपा को शायद उसके सामने मजबूर हो कर कपडे बदलने पड़ते। तब तरुण मेरी बीबी को ब्रा और पैंटी में देख लेता। दीपा की नंगी जाँघों की झलक ही तरुण ने पहले देखीं थीं। अगर तरुण की हाजरी में कपडे बदलती तो दीपा की सुआकार नंगी जांघें भी तरुण दुबारा देख लेता। मेरी बीबी रात को अंडरवियर पहनना पसंद नहीं करती थी। अगर तरुण देखता तो मजबूरन उसे पैंटी और ब्रा पहननी पड़तीं। पर तरुण ने ऐसा कुछ नहीं किया। उसने दीपा को अकेले में (उसके पति के सामने ही) कपडे बदलने का मौक़ा दिया। इस बात से दीपा तरुण की एक तरह से ऋणी बन चुकी थी।

अब दीपा के मनमें तरुण के प्रति बेहद सौहार्दपूर्ण भाव हो गया था। उसके लिए तरुण एक शिष्ट, सभ्य और अत्यन्त संवेदनशील आदमी था जिसको महिलाओं का सम्मान करना भली भांति आता था। अगर तरुण ने पहले दीपा से कुछ ज्यादा ही छूट ली थी तो वह एक वीर्यवान मर्द का एक सेक्सी स्त्री को देख कर होने वाली स्वाभाविक प्रतिक्रया मात्र थी ("क्या करें? ऐसा हो जाता है") ऐसा दीपा मानने लगी थी। सुबह और अभी कुछ देर पहले वाली तरुण की शरारत को वह ना सिर्फ माफ़ कर चुकी थी बल्कि भूल चुकी थी।

दीपा ने टीना का गाउन हाथ में लिया, तब मैंने उसे कहा, "अब इसे पहनलो और अपने अंदर के कपड़ों को निकाल कर अलग से रखना ताकि कल सुबह हम उसे फिर से पहन सकें। दीपा ने इधर उधर देखा। तरुण जा चूका था। तब उसने मेरे सामने ही अपने कपडे उतारे और ब्लाउज पैंटी , ब्रा इत्यादि तह करके बैडरूम के कोने में रख दिए। वैसे तो मेरी बीबी मेरे सामने नंगी होने में हमेशा सकुचाती थी, पर उस रात को उसने मेरे सामने बेधड़क नंगी हो कर अपने कपडे बदले। वह साबित करना चाहती थी की वह भी मुझसे कुछ कम नहीं थी। मुझे डर था की कहीं तरुण दरवाजे के पीछे से छुपकर ना देख रहा हो। पर तरुण ने जाते हुए दरवाजा बंद कर दिया था।

मैंने दीपा को कई बार नंगे देखा था। पर उस रातकी बात ही कुछ और थी। दीपा की आँखों में वह सुरूर मैंने पहली बार देखा। वह शराब से नहीं था। उसकी तरुण द्वारा की गयी भूरी भूरी प्रशंशा से दीपा को अपने स्त्री होने का गर्व महसूस हो रहाथा। तरुण दीपा को स्त्री होना एक गर्व की बात थी यह अहसास दिलाने में कामयाब हुआ था।

मैंने मेरी पत्नी को उस गाउन में जब देखा तो मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं। ऊपर से वह गाउन काफी खुला हुआ था। उसमें से दीपा के दोनों मस्त स्तन आधे दिख रहे थे। बस निप्प्लें छिपी हुई थीं। वह गाउन इतना पारदर्शी सा था की उसके पिछे की रौशनी में उसकी जांघें, दीपा की नुकीली और सुआकार गाँड़, उसके गुब्बारे जैसे भरे हुए करारे तने हुए स्तन, चॉकलेटी एरोला के बिलकुल बिच में कड़क गाढ़ी निप्पलेँ बल्कि उसकी चूत की गहराई तक नजर आ रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे उसने कपडे पहने ही नहीं थे। मेरा माथा यह सोचकर ठनक गया की जब तरुण उसे इस हाल में देखेगा तो उसके ऊपर क्या बीतेगी।

मुझे डर था की कहीं दीपा को ऐसी ड्रेस पहनी हुई देख कर वह अपना आपा ना खो बैठे और दीपा को बाँहों में पकड़ा कर वह गाउन को उतार कर उसे चोदने के लिये आमादा ना हो जाए।

तभी मैंने तरुण को अपने हाथों से तालियां बजाते हुए सूना। उसने दीपा को उस गाउन में देख लिया था। वह दीपा के पास आया और जैसे दीपा के कानों में फुसफुसाता हुआ बोला, "भाभी आप इस गाउन मैं मेनका से भी अधिक सुन्दर लग रही हो। मैं भगवान की सौगंध खा कर कहता हूँ की मैंने आज तक आप जितनी सुन्दर स्त्री को नहीं देखा।"

तरुण ने आगे बढ़कर दीपा से पूछा, "क्या मैं आप को छू सकता हूँ?"

अपनी इतनी ज्यादा तारीफ़ सुनकर दीपा तो जैसे बौखला ही गयी। मेरी प्यारी बीबी के गाल तरुण की भूरी भूरी प्रशंषा के कारण शर्म के मारे लाल लाल हो रहे थे। वह यह समझ नहीं पायी की वह उस गाउन में पूरी नंगी सी दिख रही थी। पर उसके चेहरे की लालिमा से यह तो लगता ही था की उसे शायद आईडिया हो गया था की उस गाउन में उसके अंग काफी साफ़ दिख रहे थे। पर उसने उस गाउन को पहनने में एतराज नहीं किया क्यूंकि कहीं मैं उसे यह कह कर ना चिढाऊँ की मेरी बीबी एक औरत होने के कारण वह ऐसे कपडे पहनने से डरतीं थीं। जिन और व्हिस्की का जो मिश्रण उसके दिमाग को घुमा रहा था और उद्दंड बना रहा था उससे वह ऐसी छोटीमोटी चिंताओं से ऊपर जा चुकी थी।

बल्कि वह तो तरुण की प्रशंषा के पूल बाँधने से इतनी खुश हुयी की वह अनायास ही तरुण के पास आई और तरुण ने जब अपने हाथ फैलाए तो वह मुस्कुराती हुयी उसमें समा गयी। मेरी बीबी के फुले हुए गुम्बज के सामान दो गोरे गोरे अल्लड स्तन और उनकी चोटी सम हलकी चॉकलेटी रंग की निप्पलँे जो पतले गाउन में साफ़ दिख रहीं थीं वह सुनील के बाजुओं को छू रहीं थीं। इस बात से दीपा या तो बेखबर थी या उसको उस बात की चिंता नहीं थी। मैं अपनी भोली और सरल पत्नी के कारनामे देख कर दंग रह गया। दीपा ने मेरी और देखा और ऐसे मुंह बनाया जैसे मैं उसका कोई प्रतिद्वंदी हूँ।

वह तरुण के बाँहों में से बाहर आकर तरुण के ही बगल मैं बैठ गयी। दीपा ने मुझे भी अपने पास बुलाया और अपने दूसरी और बिठाया। दीपा मेरे और तरुण के बीचमें बैठी हुयी थी। दीपा ने अपना एक हाथ मेरे और एक हाथ तरुण के हाथ में दे रखा था। हम तीनों एक अजीब से बंधन मैं बंधे हुए लग रहे थे।

दीपा ने तरुण का हाथ थाम कर कुछ हलके से लहजे में पूछा, "तरुण यार मेरी तारीफों के पुल बाँधना छोडो और अब यह बताओ की वह कौनसी ऐसी समस्या है जिस के कारण तुम इतने ज्यादा परेशान हो। तुम आज निस्संकोच हमें बताओ।"

तरुण ने दीपा का हाथ अपने हाथ में लेकर उसे सेहलना शुरू किया और बोला, "दीपक और दीपा, आप दोनों मेरे लिए एक बहुत बड़े सहारे हो। मैं आज अकेला हूँ पर आप दोनों के कारण मैं अकेला नहीं फील कर रहा हूँ। मैं तुम्हें अब एक बड़ी गम्भीर बात कहने वाला हूँ। कुछ ख़ास कारण से मैंने सबसे यह बात छुपाके रखी है। यहां तक की मैंने अपने माता और पिता तक को नहीं बताया।"

अचानक हम सब गम्भीर हो गए।

तरुण ने कहा, "मुझे मेरी कंपनी की और से निकासी का आर्डर मिल गया है। मुझे एक महीने का नोटिस मिला है। दर असल मेरी कंपनी के बड़े बॉस से कोई बात को लेकर मेरी कुछ बहस हो गयी थी जिसके अंत में बॉस ने मुझे नोटिस दे दिया है। उसी कारण से टीना और मेरे बिच में भी तनाव हो गया है। मेरे बॉस से झगडे से टीना खुश नहीं है। ऊपर से उसे मुझ पर एक मेरी पुरानी दोस्त के साथ रिश्ते के बारे में भी कुछ जबरदस्त गलत फहमी हुई है। मुझसे झगड़ कर टीना पिछले १५ दिनसे मायके चली गयी है। मैंने उसे समझाने की और मनाने की लाख कोशिश की पर वह मुझ पर इतनी नाराज है की वापस आने का नाम ही नहीं लेती। अब मेरे पास कोई जॉब नहीं है, बीबी मुझे छोड़ कर चली गयी है। अगर मैं १५ दिन में कोई और जॉब नहीं ढूंढ पाया तो मुझे घर बैठना पड़ेगा। भाभी, बात यहां तक बिगड़ चुकी है की मुझे समझ नहीं आता की मैं घर का इन्सटॉलमेंट कैसे भर पाउँगा और मैं करूँ तो क्या करूँ? मुझे अपने से और अपनी खुदकी जिंदगी से नफरत हो गयी है।" कमरे में जैसे एक मायूस सा वातावरण फ़ैल गया।

तरुण की बात सुनकर मैं और मेरी बीबी दीपा हम दोनों भौंचक्के से एक दूसरे को देखते ही रहे। दीपा का तो हाल ही खराब लग रहा था। वह जो अब तक सुरूर और जोश में थी, तरुण की बात सुनकर उसे जबरदस्त झटका लगा।

अब तरुण वह तरुण नहीं लग रहा था। हम जानते थे की तरुण का पूरा घर उसीकी आमदनी से चलता था। अगर आमदनी रुक गयी तो सब की हालत क्या होगी यह सोचना भी मुश्किल था। कमरे में जैसे समशान सी शान्ति छा गयी। दीपा ने तरुण का हाथ थामा तो तरुण की आँखों में आंसू भर आये। वह अपने आप को सम्हाल नहीं पा रहा था। मैंने और दीपा ने तरुण को थामा और उसको ढाढस देने की कोशिश करने लगे। पर तरुण के आंसू थम ने का नाम नहीं ले रहे थे।

दीपा तरुण के एकदम करीब जा बैठी और उसका हाथ अपने हाथ में लेकर उसे दबा कर सहलाने लगी। इससे तो तरुण के आंसूं की धार बहने लगी। तरुण अपने जज्बात पर कण्ट्रोल करने की कोशिश कर रहा था। वह दीपा के हाथों को चूमते हुए बोलने लगा, "भाभी जी कोई क्या कर सकता है? आप भी क्या कर सकती हैं? जब टीना ही मुझे छोड़ कर चली गयी तो और क्या हो सकता है? जब अपने ही अपने नहीं रहे तो मैं आपसे क्या उम्मीद रखूं? आप बहुत अच्छीं है। आप मुझे अपना समझती हैं यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात है। मैं आपको इतना परेशान कर रहा हूँ फिर भी आप मुझे झेल रहे हो इससे मुझे कितना सकून मिलता है यह आप नहीं जानतीं। पर आखिर में आपकी भी तो मजबूरियां है ना? इसमें आपका क्या दोष है? मेरा तो जो होगा देखा जाएगा। मैं जानता हूँ की आप पर भाई काअधिकार है मेरा नहीं। भाभी मैं तो आपको छेड़ कर अपना दिल बहला लेता हूँ, थोड़ी देर के लिए एक खूबसूरत सपना देख लेता हूँ बस। मैं आपसे मेरी हरकतों के लिए माफ़ी माँगता हूँ। आप मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिये। जब मेरे अपने ही मुझे छोड़ कर चले गए तो मेरे रहने ना रहने से क्या फर्क पड़ता है?" ऐसा कहता हुआ तरुण एकदम उठ खड़ा हुआ और अपने आँसूं पोंछता हुआ बैडरूम से निकल कर ड्राइंग रूम को पार कर हमसे दूर बाहर बरामदे में जा कर बाहर सोफे पर बैठ कर दूर दूर अँधेरे में सुनी सड़क को सुनी आँखों से ताकने लगा। मैं उसे बैडरूम और ड्राइंग रूम के खुले दवाजे में से देख सकता था, हालांकि हमारी आवाज तरुण तक नहीं पहुँच सकती थी। उस समय उसके जहन में क्या उथल पुथल हो रही थी वह किसी को नहीं पता।

दीपा भी भावुक हो रही थी। वैसे ही मेरी संवेदनशील बीबी से किसीकी परेशानी देखि नहीं जाती। उपर से उस रात को इतनी अठखेलियां मजाक और छेड़खानी करने के बाद अचानक ही तरुण का ऐसा हाल देख कर दीपा घबड़ा गयी। तरुण की ऐसी हालत उससे देखी नहीं जा रही थी। दीपा उठकर मेरे पास आई। उसकी आँखों में आंसू थे। वह बोली, "अरे देखो तो, तरुण का कैसा हाल हो रहा है। उसे क्या हो गया? इतना जाबांज और नटखट छैले की तरह बात कर रहा था वह, अब क्या हो गया? यार तुम उसके दोस्त हो। जाओ और उसे सम्हालो। टीना को इस वक्त तरुण के पास होना चाहिए था। वह पगली तरुण को ऐसे वक्त में क्यों छोड़ कर चली गयी? तुम क्या कर रहे हो? जाओ अपने दोस्त को सांत्वना दो। उसके पास बैठो, उसको गले लगाओ।"

तब मैंने अपनी पत्नी को अपनी बाँहों में लेते हुए कहा, "देखो आज होली है। आज आनंद का त्यौहार है। तुम क्यों परेशान हो रही हो? हाँ, यह सही है की हमें तरुण को अपने प्यार से शांत करना चाहिए। पर तरुण मेरे ढाढस देने से शांत नहीं होगा। वह तुम्हें इतना चाहता है तुम्हारी खूबसूरती, सेक्सीपन और अक्ल पर इतना फ़िदा है और तुम्हारी इतनी रेस्पेक्ट करता है पर वह तुम से भी नहीं माना तो मेरे कहने से वह थोड़े ही मानेगा? ऐसे वक्त में तो एक पत्नी ही पति को अपना शारीरिक प्रेम देकर शांत कर सकती है। मैं कुछ नहीं कर सकता। तुम्हारी टीना वाली बात बिलकुल सही है।"

दीपा ने मेरी और प्रश्नात्मक दृष्टि से देखा और पूछा, "कौनसी बात?"

मैंने कहा, "इस वक्त टीना को यहां तरुण के पास होना चाहिए था। अगर वह होती तो बेझिझक तरुण को अपनी बाँहों में ले लेती और उससे लिपट कर अपनी छाती में उसका सर छुपाकर अपने बूब्स तरुण के मुंह में दे देती, और उसे अपने बच्चे की तरह अपना दूध चूसने देती, खूब प्यार करती और उसे समझा बुझा कर शांत करती। पर अफ़सोस वह पिछले पंद्रह दिन से यहां नहीं है। तरुण बेचारा वैसे ही पंद्रह दिनों से टीना के बगैर और स्त्री के संग के बगैर ब्रह्मचर्य रख कर तड़प रहा है। उसके जैसे वीर्यवान पुरुष के लिए इतने दिनों तक ब्रह्मचर्य रखना बहुत मुश्किल है। शायद इसी लिए उसने तुमको आज ज्यादा परेशान किया।"

मेरी बात सुन कर दीपा ने सहमति में कुछ भी बोले बगैर अपना सर हिलाया। मेरी पत्नी सोच में पड़ गयी। मैंने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा, "देखो तरुण ने क्या कहा? उसने कहा की जब अपने, मतलब टीना, ही यहां नहीं है तो वह तुमसे क्या उम्मीद रखे? इसका मतलब है अभी तक तरुण तुम्हें अपनी नहीं समझता। क्या तुम तरुण को अपना समझती हो? तरुण शायद यही कहना चाह रहा था की अपने ही उसे शांत कर सकते हैं।"

मेरी बात सुन कर दीपा का चेहरा कुछ मुरझा सा गया। उसने कहा, "मैंने तरुण को हमेशा अपना समझा है। तभी तो उसकी इतनी सारी छेड़ने वाली हरकतों के बावजूद भी मैंने उसे ज्यादा कुछ नहीं कहा। क्या इतना कुछ करने पर भी तरुण मुझे अपनी नहीं समझता? यह तो गलत है ना?"

मैंने कहा, "वह शायद इस लिए तुम्हें अपनी नहीं समझता क्यों की तरुण जब जोश में आ कर तुम्हारे साथ कभी कुछ ज्यादा छूट ले लेता है तो तुम बिगड़ जाती हो। बात तो सही है। क्यूंकि तुम तरुण और मेरे बिच में फर्क समझती हो। तरुण अगर तुम्हें अपनी मान भी ले तो तुम उसे पत्नी की तरह प्यार थोड़े ही करने दोगी? मेरा यह मानना है की तरुण के इस हाल में औपचारिक ढाढस देने से कोई फर्क नहीं पडेगा। अभी तो प्यार से उसका दिमाग घुमाने की जरुरत है और वह एक पत्नी ही कर सकती है। हाँ अगर चाहो तो तुम जरूर कर सकती हो, क्यूंकि वह तो तुम्हें अपनी पत्नी की तरह ही मानने के और प्यार करने के सपने देखता है, पर वह जानता है की तुम उसे अपना नहीं मानती। क्या मैं गलत कह रहा हूँ?"

मुझे मेरी बीबी का अभिप्राय जानना था। दीपा की आँखें भर आयी थीं। उसने मेरी और देखा और बोली, "दीपक मुझे तुमको एक बात बतानी है। तुम ठीक कह रहे हो। उस दिन जब वह आटे के डिब्बे वाला किस्सा हुआ था ना? याद है? उस दिन बाथरूम में तरुण ने मुझे बहुत परेशान किया था। उसने मेरी ब्रेअस्ट्स दबायी मसली और मुझे लिपट कर किस भी की। वह तो मैंने तुम्हें बताया पर एक बात मैंने तुमसे छुपाई वह यह थी की मैं जब निचे बैठकर उसके पतलून से आटा साफ़ कर रही थी तब उसने अपना लण्ड मेरे मुंह में घुसा दिया था। मतलब लण्ड पतलून के अंदर था पर उसने धक्का मार कर उसे मेरे मुंह में डाल दिया। मैं उसकी हरकतों से इतनी परेशान हो गयी थी की मैंने उसे हाथ जोड़कर मुझे छोड़ने के लिए यह कहा की मैं बाद में वह जो कहेगा वह करुँगी पर उस समय मुझे जाने दे।"

मैं मेरी बीबी की और खुले मुंह देखता ही रहा। मेरा चेहरा देख कर दीपा कुछ सहम गयी और बोली, "मुझे माफ़ कर देना पर मुझे अपने आप पर इतनी नफरत हो गयी थी की क्या बताऊं? तुम्हें यह बता नहीं सकी। मैं उसके चंगुल से भागना चाहती थी। और आज शामको जब हम बाहर निकले और तुम जब फ़ोन पर तुम्हारी बहन से बात कर रहे थे तब पता है उसने क्या किया?"

मैंने पूछा, "क्या किया?"

दीपा ने कहा, "उसने मुझसे वह वचन पूरा करने को कहा।""

मरे लिए तो मेरी भोली बीबी की यह बात एक बिजली गिरने जैसी थी। हालांकि मैं समझ गया था की तरुण ने क्या माँगा होगा, फिर भी मैंने पूछा, "क्या वचन माँगा उसने?"

दीपा ने मुरझाती हुई आवाज में नजरें झुकाते हुए कहा, "उसने मुझे उससे चुदवाने का वचन आज मांग लिया।"

मैंने जैसे बिजली गिरी हो ऐसे आश्चर्य दिखाते हुए पूछा, "क्या? दीपा तुम क्या कह रही हो? फिर तुमने क्या कहा?"

दीपा की आँखों में आँसूं भर आये। वह बोल नहीं पा रही थी। आखिर में उसने कहा, "मैं क्या कहती? मैंने उसे कहा, यह उसने गलत किया है। उसने मुझसे धोखाधड़ी की है। पर मैं करूँ तो क्या करूँ? मैंने उसे वचन जो दे दिया था?" उसने मेरी और प्रश्नात्मक दृष्टि से देखा।

मैंने मेरी बीबी को ढाढस दिलाते हुए कहा, "धोखे से दिया गया वचन पालने की तुम्हें कोई जरुरत नहीं है। वैसे मुझे लगता है की यह अच्छा ही हुआ की तुमने उसे ऐसा वचन दिया।"

दीपा ने मेरी और पैनी नजर से देखा और पूछा, "क्यों? तुम ऐसा क्यों कहते हो?"

मैंने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ कहा, "यह तो बहुत ही अच्छा हुआ क्यूंकि अब तुम्हें अगर तरुण चोदता भी है तो तुम्हें कोई रंज नहीं होना चाहिए। वैसे भी तो तुम्हें उससे चुदवाना पडेगा ही क्यों की तुमने वचन जो दिया है? तो बेहतर ही की तुम तरुण को यह एहसास दिलाओ की टीना नहीं है तो क्या हुआ? तुम पत्नी भले ही नहीं हो पर तुम उसे पत्नी का प्यार क्यों नहीं दे सकती? तुम उसे यह एहसास दिलाओ की तरुण भी तुम्हारा अपना है। तरुण का भी तुम पर अधिकार है। तुम सिर्फ अपने पति की ही नहीं, तरुण की जरुरत का भी ध्यान तुम एक पत्नी की तरह रख सकती हो। जैसे टीना नहीं है तो तुम तरुण के खाने का ख्याल रख सकती हो वैसे ही आज जब टीना नहीं है तो क्या तुम तरुण की दूसरी जरूरतों का ध्यान नहीं रख सकती? क्या तुम तरुण को एक पत्नी का प्यार नहीं दे सकती? क्या तुम तरुण को नयी जिंदगी नहीं दे सकती? क्या प्यार का मतलब सिर्फ छेड़खानी करना या हंसी मजाक करना ही है?"

मेरी बात सुनकर दीपा सहम गयी और कुछ देर तक सोचने लग गयी। फिर बोली, "आप की बात तो सही है, पर अगर मैंने उसे अपने गले लगाकर शांत करने की कोशिश की और जो आपने कहा वह सब मैंने उसे कहा तो तरुण को तो आप जानते ही हो। वह तो अपने आप को रोकने से रहा। फिर तो मेरा सारा काम तमाम ही हो जाएगा ना?"

मैंने कहा, "तो क्या होगा? याद करो, जब मैंने तुम्हें तरुण को उकसाने के लिए कहा था तब तुमने मुझसे यही सवाल किया था की कुछ ऊपर निचे हो गया तो? तब मैंने क्या कहा था? मेरा आज भी वही जवाब है। अगर कुछ भी हो जाये तो मैं तुम्हें दोष नहीं दूंगा। तरुण तुम्हें क्या कर लेगा जो आज तक उसने नहीं किया। सुबह और अभी कुछ देर पहले ही उसने तुम्हारे बॉल दबाये तो क्या हुआ? कौन सा आसमान टूट पड़ा? वह उन्हें दुबारा दबाएगा और मलेगा? शायद वह तुम्हें मुंह पर चुम्बन कर सकता है। पहले भी तो तुम्हें मुंह में चूमा तो है ही ना? तुम तो कह रही थी की उसने तुम्हारे मुंह में अपना पतलून में ढका हुआ लण्ड भी डाल दिया है? तुम्हारे कूल्हे उसने दबाये है, उसने सब कुछ तो किया है। और क्या करेगा? हाँ उसने तुम्हें चोदा नहीं है। ज्यादा से ज्यादा वह क्या करेगा? उसका लण्ड तुमने पकड़ा या चूसा नहीं है। तो शायद वह तुम्हारे हाथ में उसका लण्ड पकड़ा देगा? तुम्हें चोदने की कोशिश करेगा ना? मानलो की अगर आवेश में उसने तुम्हें चोदने की जिद की और तुम अगर उसे मना नहीं कर पायी तो मैं तुम्हें दोषी नहीं ठहराऊंगा। और तुम्हारा दिया हुआ वचन भी पूरा हो जाएगा।"

मेरी बात सुनकर दीपा चौंक कर मेरी और देख कर बोली, "राज, आप क्या कह रहे हो? आपको कुछ ख्याल भी है की आप क्या कह रहे हो?"

मैंने बिना रुके कहा, "हाँ मैं जानता हूँ की मैं क्या कह रहा हूँ। देखो, अब बनने की क्या जरुरत है। उसने तुम्हें चुदवाने के लिए राजी कर ही लिया है ना? तरुण ऐसा कुछ नहीं कर सकता जो तुम उसे करने नहीं दोगी। जो तुम्हें अच्छा ना लगे वह बिलकुल मत करना। मैं तो तुम्हारे साथ हूँ ना? तुम्हें जो मंजूर है वह तुम्हें करने से मैं नहीं रोकूंगा और जो तुम्हें नामंजूर है वह मैं तरुण को करने नहीं दूंगा। वह क्या करेगा, क्या नहीं करेगा, तुमसे अच्छा कौन जानता है? तुम तरुण को भली भाँती जानती हो। देखो डार्लिंग, अगर उसने तुम्हें चोद दिया तो क्या होगा? आखिर बात तो अपनों की है। अगर अपने हमें कुछ कष्ट भी देते हैं तो हम झेलते हैं की नहीं?"