बीबी की चाहत 03

PUBLIC BETA

Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.

You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.

Click here

मेरी प्यारी बीबी गहरे सोच में डूबी हुई मेरी बात बड़े ध्यान से सुन रही थी और बार बार अपना सर हिला अपनी सहमति जता रही थी। दीपा की सकारत्मक प्रक्रिया देख कर मैं रुकने वाला कहाँ था? मैंने कहा, "मैं तो यहां हूँ ना? फिर तुम्हें डर कैसा? तुम खुद ही तो कह रही थी की तरुण एक बड़ा ही सभ्य व्यक्ति है? वह तुम्हें इतना प्यार करता है, वह तुम्हारा इतना सम्मान जो करता है? तुम्हारे पीछे पागल है और एक देवी की तरह तुम्हें पूजता है। तो फिर अगर तुम नहीं चाहोगी तो वह तुम्हारे साथ असभ्य वर्तन क्यों करेगा? और अगर वह तुम्हें चोदेगा तो वह कभी भी तुम्हारी बदनामी नहीं करेगा। इसका तुम्हें पूरा भरोसा है या नहीं?"

दीपा ने कहा, "हाँ डार्लिंग, उसका तो मुझे पूरा भरोसा है, वरना मैं तरुण को क्या आगे बढ़ने देती? पर यह वक्त बहोत नाजुक है। तरुण बड़ी ही संवेदनशील अवस्था में है। मुझे उसे ढाढस देने के लिए उसके काफी करीब जाना पडेगा। उसको गले लगाना पडेगा। मैंने जो पहना है वह तो तुम देख ही रहे हो। ऐसे हालात में तरुण जैसे एक वीर्यवान मर्द को मैं कैसे रोक पाउंगी? वैसे ही वह मुझ पर पागल है और ऐसी हालत में और भी पगला जाएगा। खैर यह ठीक है की वह जबरदस्ती नहीं करेगा। मेरे साफ़ मना करने पर वह आगे नहीं बढ़ सकता। पर अगर उसने जिद की तो मैं इस हालात में उसको रोक भी कैसे सकती हूँ? मैं उसको और दुखी करना नहीं चाहती। और अगर बात कुछ आगे बढ़ी तो फिर उसके बाद हमारा कोई कण्ट्रोल नहीं रह जाएगा। यह तो बड़ी गड़बड़ बात हो गयी। काश टीना यहाँ होती।"

दीपा की बात सुनकर मैं तो मन ही मन दुखी हो गया। मेरे इतना कहने पर मेरी पत्नी इधर उधर की बात कर रही थी पर सीधी चुदवाने की बात पर आ नहीं रही थी। मुझे इतना तो यकीन हो गया था की मेरी बीबी अपने आप को तरुण से चुदवाने के लिए मानसिक रूप से तैयार कर रही थी। वह रात को ही शायद हमारा ध्येय सिद्ध होने वाला था। मेरा दिल तेजी से धड़क धड़क कर रहा था। जल्द ही मेरी बीबी तरुण से चुदने वाली थी उसकी मुझे काफी उम्मीद लग रही थी। बस अब मुझे आखिरी चाल चलनी थी।

मैंने मेरी स्वीटी को मेरी बाँहों में ले लिया और उसे कहा, "डार्लिंग, देखो, टीना होती तो क्या होता यह कौन जानता है? पर आज तुम तो टीना की जगह हो ना? इस समय जरुरी क्या है? जरुरी है अपने दोस्त को ढाढस देना। वह जैसा भी है, हमारा हमदर्द है। देखो तरुण ने तुमसे इतनी बदतमीजी या छेड़छाड़ की पर आखिर में जा कर तुमने क्यों माफ़ कर दिया? क्या कोई और होता तो तुम माफ़ करती? नहीं करती। तुमने माफ़ किया क्यूंकि तुम सच्चे दिल से उसे चाहती हो। हम दोनों तरुण को चाहते हैं। उसे प्यार करते हैं। यह हकीकत है की तुम भी तरुण को चाहती हो, उसे अपना मानती हो। सच सच बोलो तुम तरुण को चाहती हो की नहीं?" मैंने दीपा को जवाब देने पर मजबूर किया। यह एक कांटे की बात थी और मुझे दीपा से कबुल करवाना ही था।

दीपा कुछ देर तक मुझे अजीब सी नज़रों से देखती रही। फीर धीरे से उसने अपनी मुंडी हिलाकर "हाँ, हम दोनों तरुण को चाहते हैं। तुम मुझसे कहलवाना चाहते हो तो मैं कहती हूँ की मैं भी तरुण को चाहती हूँ तभी तो ऐसे यहां तक तुम दोनों के साथ आयी हूँ।"

मेरे लिए यह आखरी तीर था जो अब दीपा के जिगर के पार हो चुका था। अब तो बस फ़तेह करनी थी।

मैंने कहा, "तो फिर सोचती क्या हो? जिसे हम चाहते हैं उसे बचाने के लिए हम कुछ भी कर सकते हैं। मैं तुम्हारे साथ हूँ ना? और क्या तुम्हें तरुण पर भरोसा है या नहीं की वह तुम पर जबरदस्ती नहीं करेगा?"

दीपा ने बेझिझक कहा, "खैर तरुण जबरदस्ती तो नहीं करेगा। पर ऐसे हालात में तो मुझे अपने आप पर ही भरोसा नहीं है। अगर तरुण ने कुछ ऐसा वैसा किया और मैं उसे रोक नहीं पायी तो? फिर तो तुम्हें आकर मुझे उस झंझट में से निकालना पडेगा।"

मैंने आखिर वाला तीर मार कर कहा, "जब मैं हूँ तो फिर तुम्हें चिंता किस बात की? जाओ और आगे बढ़ो। सोचना क्या है? क्या होगा? जो होगा वह देखा जाएगा। ज्यादा से ज्यादा तुम यही सोच रही हो ना की कहीं वह तुम्हें चोदने के लिए जिद करेगा और तुम उसे मना नहीं कर पाओगी? जब मैं खुद तुम्हें आगे बढ़ने के लिए कह रहा हूँ की उसके लिए मैं जिम्मेवार होऊंगा, तुम नहीं। तरुण एक अच्छा इंसान है और तुम्हारी इज्जत करता है। ज्यादा सोचा मत करो। मैं तुम्हारा पति तुम्हे कह रहा हूँ। जो थ्रीसम एम.एम.एफ. मैं करना चाहता था वह अगर होगा हम तीनों की मर्जी से होगा। हम सब साथ हैं। अगर हम सब की मर्जी से कुछ भी होता है तो डार्लिंग तुम खुद ही कह रही थी ना की वह ठीक ही है? यह पीछे हटने का वक्त नहीं है। तुम मेरे साथ चलो और उसका सर अपने सीने से लगा कर वह तुम्हारे बूब्स को चूसता है तो चूसने दो पर उसे अपने आँचल में लेकर शांत करो। और साथ साथ अपना वचन भी पूरा करो।"

मैंने देखा की मेरी बात सुनने के बावजूद भी मेरी प्यारी बीबी वहीँ मंत्रमुग्ध सी बैठी रही। उसकी समझ में नहीं आ रहा था की वह क्या करे। उसके दिल और दिमाग के बिच का यह बड़ा जंग चल रहा था। मैं परेशान हो गया। अगर यह मौक़ा चूक गए तो फिर गड़बड़ हो जायेगी।

मैंने फिर मेरा ब्रह्मास्त्र छोड़ा। मैंने कहा, "देखो, तरुण बेचारा पागल हुआ जा रहा है। अगर इस वक्त उसे सम्हाला नहीं गया तो कहीं वह कुछ उलटा पुल्टा कर ना बैठे। एक तुम ही हो जिस के प्यार करने से और प्यार से कहने से वह फिर से अपने आप पर काबू पा सकता है। वह जब तुम्हारे करीब होता है तो अपना सारा गम भूल जाता है और तुम्हारा पागलपन उस पर सवार होजाता है। अगर तुम उसे अपनी बाँहों में ले कर प्यार करती हो तो वह तुम्हारे साथ पागलपन जरूर करेगा। वह उसका पागलपन नहीं, प्यार करने का एक तरिका है। अपना प्यार जताते हुए जरूर वह तुम्हें चोदने के लिए तैयार हो जाएगा। अगर इसमें तुम्हें और मुझे कोई आपत्ति नहीं है तो फिर उसमें क्या बुराई है? आज तक कभी कोई मर्द ने किसी और की बीबी को पहले कभी चोदा नहीं क्या? क्या तुम पहली बीबी हो जिसे किसी गैर मर्द ने चोदा होगा? अरे मैं समझता हूँ शायद ही कोई पत्नी ऐसी होगी जिसको किसी गैर मर्द ने चोदा ना हो। आज की तारीख में शायद तुम ही अकेली ऐसी औरत होगी जिसको उसके पति के अलावा किसी गैर मर्द ने चोदा ना हो।"

मैंने मेरी बीबी के होँठ पर हलकी सी चुम्मी करते हुए हँसते हुए मजाक में कहा, "मैं मेरी बीबी के माथे पर लगे हुए उस कलंक को मिटाना चाहता हूँ।"

मेरी बात सुन कर दीपा को भी हंसी आ गयी। मुझे नकली घूंसा मारते हुए वह बोली, "मेरा पति महान है जो अपनी बीबी को किसी गैर मर्द से चुदवाने के लिए इतना उकसा रहा है।"

मैंने उसकी बात पर ध्यान ना देते हुए कहा, "जैसा वक्त हो ऐसे चलना चाहिए। तुम उसे रोकोगी नहीं और उसे पूरा प्यार करने दोगी तो वह तुम्हारे प्यार करने से मुसीबतों के समंदर को पार कर सकता है। तुम उसे अपना प्यार देकर समझाओगी की जिंदगी की लड़ाई लड़ने के लिए है, भागने के लिए या हार मानने के लिए नहीं है; तो वह जरूर समझेगा।

तरुण तुमसे प्यार करता है और तुम्हारी अक्ल और सूझबूझ की वह बड़ी इज्जत भी करता है। शायद यह अच्छा है की आज टीना यहां नहीं है, क्यूंकि वह तरुण को प्यार तो कर सकती है पर शायद ऐसे नहीं समझा पाती जैसे तुम उसे अपनी सूझ बुझ और प्यार से समझा सकती हो। अब यह तुम पर निर्भर है की तुम उसे प्यार देती हो या दुत्कार। तुम तो जानती हो तरुण तुम्हें बेतहाशा प्यार करता है। और तुम भी तो उसे प्यार करती हो।"

दीपा हैरानगी से मेरी और देखती रही। यह उसके लिए कांटे की बात थी। उसने कुछ झिझकते स्वर में कहा, "हाँ ठीक है, मैं भी उसे प्यार करती हूँ पर डार्लिंग, यह प्यार से कहीं आगे की बात है।"

मैंने दीपा का हाथ थाम कर उसे दबा कर कहा, "डार्लिंग, जब सच्चा और बेतहाशा प्यार होता है तो फिर उस प्यार से आगे कुछ नहीं होता। कहते हैं ना की जंग और प्यार में सब कुछ जायज है। प्यार का मतलब है एक दूसरे के गम को दूर करना और एक दूसरे को आनंद देना और लेना। जिस किसी भी तरीके से प्यार करने वाले आनंद लेना चाहें। मैं तुम्हारा पति हूँ और उस अधिकार से मैं कह रहा हूँ की अगर तुम्हें कोई एतराज नहीं है तो मैं तुम्हें कहता हूँ की तुम्हें उसे आनंद देना है और उससे आनंद लेना है। सबसे ज्यादा जरुरी प्यार है। चुदाई उत्कट प्यार का इजहार है, प्यार की अभिव्यक्ति है। वह उन्मत्त प्यार का परिणाम है। चुदाई प्यार से ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है। जब किसी से दिलो जान से प्यार होता है ना, तो आवेश के लम्हों में एक जवान वीर्यवान मर्द और एक खूबसूरत सेक्सी औरत में चुदाई का होना लाज़मी है। चुदाई हो ही जाती है। चुदाई होनी ही चाहिए, तभी तो प्यार की सच्ची ऊंचाई सामने आती है। चुदाई तो प्यार जताने का एक तरिका है। जब तुम उसे दिल खोल कर प्यार दोगी तो चुदाई तो होगी ही। जब चुदाई होगी तभी तो वह न सिर्फ तुम्हारे प्यार में खो जाएगा और शांत होगा, बल्कि वह अपने गम बिलकुल भूल जाएगा और एक बार फिर से हमारे कहने पर जिंदगी की लड़ाई लड़ने के लिए तैयार हो जाएगा। अगर प्यार करने वाले मर्द और औरत चुदाई के डर से दूर भागेंगे तो फिर प्यार कैसे होगा? चुदाई से प्यार की इज्जत बढ़ती है, कम नहीं होती।"

मैं मेरी बीबी के दिमाग में यह बात बार बार ठोकना चाहता था की वह चुदाई के डर से भागे नहीं। बल्कि वह चुदाई के लिए तैयार रहे। चुदाई को हँस कर स्वीकार करे। मैंने मेरी बात जारी रखते हुए कहा, "वह बिना किसी से शेयर किये पिछले पद्रह दिनसे यह भ्रह्म्चर्य का दर्द झेल रहा है। इसी लिए तरुण तुम्हारे प्रेम के लिए तड़पता रहता था और अभी भी तड़प रहा है। उस तड़प में वह तुम्हें चोदना जरूर चाहेगा। और मैं पक्का मानता हूँ की तुम्हें भी बड़े प्यार से तरुण से चुदवाना ही चाहिए। अगर मैं और तुम दोनों को इससे कोई एतराज नहीं हो तो फिर चुदवाने में गलत क्या है? बल्कि मैं भी तुम्हें तरुण के साथ और तरुण के सामने उसे देखते हुए चोदुँगा।"

मैं देख रहा था की दीपा मेरी बात ध्यान से सुन रही थी। उसने एक बार भी मेरी बात का विरोध नहीं किया जो दर्शाता था की वह भी मेरी बात से सहमत थी।

मैंने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा, "वह आज तक सिर्फ जब तक तुम्हारे साथ होता है तब तक सब कुछ भूल जाता है और ठीक रहता है। अगर उसे अभी तुम्हारा पूरा सहारा मिला और अगर तुमने उसे प्यार से चोदने दिया तो वह तुम्हारी सब बात मानेगा और सब ठीक हो जाएगा। वह तुमसे बहुत प्यार करता है। अगर तुमने उसे अपना प्यार देकर नहीं समझाया और अगर तुमने उसे प्यार से तुम्हें चोदने से रोका तो वह जरूर अपने आप पर कुछ पागलपन कर बैठेगा। कहीं वह पागलपन में अपनी जान ही ना खो बैठे। कहीं पागलपन में वह खुदकुशी ना कर बैठे। वह खतम हो जाएगा। और अगर ऐसा कुछ हुआ तो तुम अपने आप को कभी माफ़ नहीं कर पाओगी।"

जब मैंने कहा की कहीं तरुण अपनी जान ही ना देदे या कहीं वह ख़ुदकुशी ही ना कर ले तो दीपा के चेहरे पर आतंक सा छा गया। वह बेचैन हो उठी। उसने कहा, "दीपक, क्या कह रहे हो? क्या तरुण इतना ज्यादा परेशान है? ख़ुदकुशी तक की नौबत आ गयी? "

फिर कुछ रुक कर बोली, "अब बात मेरी समझ में आयी। वह खुद बार बार कह रहा था की वह बहोत परेशान है और अपनी जान की भी उसे परवाह नहीं है; पर वह जब मेरे साथ रहता है तभी उसे सकून मिलता है। बापरे मुझे पता ही नहीं चला की बात यहाँ तक पहुँच गयी है।"

मैं समझ गया की अब तो समझो अपना काम हो गया। मैंने कहा, "दीपा पता नहीं तुम कैसे नहीं समझ पायी। वह पिछले पंद्रह दिनसे हमेशा कह रहा है की वह परेशान है। तुमने उसे लताड़ दिया था तो वह तुमसे मिल नहीं पा रहा था। उसीके कारण शायद उसका यह हाल हुआ है। कहीं तरुण ने कुछ ऐसा वैसा कर दिया तो गजब हो जाएगा।"

दीपा बड़ी उलझन में पड़ गयी और बोली, "फिर दीपक तुम ही बताओ ना की मैं क्या करूँ?"

मैंने कहा, "अब झिझकने से या हिचकिचाने से या फालतू का पर्दा रखने से काम नहीं चलेगा। अब तो हम दोनों को एकदम बेशर्म होना पडेगा। तुम्हें कुछ नहीं करना है। तुम जाओ उसको गले मिलो और पकड़ कर मेरे पास ले आओ। फिर मैं तरुण के देखते हुए ही में तुम्हारे बूब्स दबाऊंगा, तुम्हें किस करूंगा और तुम्हारे गाउन को ऊपर उठाऊंगा और मेरा लण्ड तुम्हारे हाथ में दूंगा। मैं जानता हूँ की तुम्हारे पास होते ही वह अपने आप को सम्हाल नहीं पायेगा। वह एकदम गरम हो जाएगा और एकदम गरम हो कर तुम्हारे साथ छेड़खानी शुरू कर देगा। अगर तुम भी उसे खूब प्यार करोगी और उसे बिना रोकटोक प्यार करने दोगी तो जरूर वह तुम्हें चोदने के लिए तैयार हो जाएगा। फिर हम दोनों मिलकर तुम्हें चोदेंगे और थ्रीसम एम.एम.एफ मनाएंगे। बोलो क्या कहती हो?"

दीपा नजरें निचीं कर बोली, "मैं क्या बोलूं? मैं तुम से अलग थोड़े ही हूँ? मैं तो तुम्हारे साथ हूँ। तुम्हें ठीक लगे वह मेरे लिए भी ठीक है। मैं कोई अवरोध नहीं करुँगी। तुम मुझे सम्हाल लेना। वैसे ही तरुण महीनों से मेरे पीछे पड़ा हुआ था। तुम कहते हो तो चलो आज मैं उसके मन की और तुम्हारे मन की थ्रीसम की इच्छा भी पूरी कर दूंगी।"

मैंने कहा, "तो फिर जाओ और अपना कर्तव्य पूरा करो। तुम यह चिंता मत करो की वह तुम्हारे साथ क्या करेगा। तुम उसे यह कहो की पहले तो उसकी जॉब जायेगी ही नहीं, क्यूंकि उसके जैसा मेहनती एम्प्लोयी उसकी कंपनी को कहाँ मिलेगा? और अगर उसकी नौकरी गयी भी तो मैं मेरे बॉस से बात कर उसको जॉब दिलवा सकता हूँ। बस उसे चिंता नहीं करनी है। जरुरत पड़ी तो वह और टीना हमारे साथ रह सकते हैं जब तक उसे दुसरा जॉब ना मिले। तुम उसे पटा कर मेरे पास ले आओ, फिर हम दोनों मिलकर उसे गरम करेंगे। और अगर एक बार तरुण गरम हो गया तो फिर तो तुम भी जानती हो की उसको रोकना नामुमकिन है। वह अपने सब ग़म भूल जाएगा मैं और तरुण हम दोनों मिलकर तुम्हें चोदेंगे और मुझे यकीन है की तरुण तुम्हारी बात मान कर फिर से काम पर लग जाएगा।"

मेरी बात सुन कर मेरी और आशंका से देखती हुई अपने ही अंदर की उधेड़बुन में खोई दीपा घबड़ाई हुई हड़बड़ा कर उठ खड़ी हुई। हलकी सी लड़खड़ाती हुई वह तरुण जहां बाहर बरामदे में बैठा था उसके पास गयी। मेरी बीबी की चाल में कुछ अस्थिरता थी। मेरी बीबी को देख कर मुझे उसका अभिसारिका का रूप दिखा। मुझे ऐसा महसूस हुआ की अपने मन में उसने यह तय कर लिया था की उस रात वह तरुण से चुदवायेगी। वह तरुण को उसे चोदने से नहीं रोकेगी। वह मुझसे और तरुण से चुदवायेगी।

मैं खुले हुए दरवाजे से देख रहा था की मेरी बीबी तरुण के पास पहुँच कर तरुण को खड़ा कर उसका हाथ पकड़ कर उसे घर के अंदर ले आयी। घर का दरवाजा अंदर से बंद कर वह खड़ी खड़ी तरुण से लिपट गयी। दीपा जब तरुण से ऐसे बेझिझक लिपट गयी जैसे एक बेल कोई पेड़ के साथ लिपट जाती है तो तरुण के चेहरे पर अजीब से भाव दिख रहे थे। उसे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था। जब तरुण वैसे ही खड़ा हुआ दीपा के बदन को फील करता रहा तब दीपा ने तरुण का हाथ पकड़ा और उसे खीच कर बैडरूम में जहां मैं बैठा था वहाँ ले आई। तरुण की आँखों के आंसूं तब तक सूखे नहीं थे। पलंग पर तरुण को बिठा कर दीपा ने तरुण के आंसूं अपने गाउन के छोर को ऊपर उठाकर पोंछे। दीपा को यह चिंता नहीं थी की ऐसा करने पर दीपा का गाउन उसके घुटनों से भी काफी ऊपर तक उठ गया था और दीपा की करारी जाँघें नंगी दिख रहीं थीं। आंसूं पोंछ कर वह मेरे और तरुण के बिच बैठी। उसने तरुण को लिटा कर उस का सर अपनी गोद में लिया और उसके काले घने बालों में अपनी उंगलियां ऐसे फेरने लगी जैसे माँ अपने छोटे बेटे को अपनी उँगलियों से कंघा कर रही हो।

दीपा ने तरुण के सर के बालों में अपनी उंगलियां फिराते हुए प्यार भरी धीमी आवाज में पर शुरू में थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए कहा, "तरुण बाहर जाने से पहले तुमने क्या कहा था? टीना तुम्हारी हैं। और मैं? मैं परायी हूँ? क्या मैं तुम्हारी अपनी नहीं हूँ? मैं तुम्हारी पत्नी नहीं हूँ तो क्या हुआ? क्या मैं तुम्हारी पत्नी से गयी बीती हूँ? तुम मुझ पर अपना अधिकार नहीं मानते? क्या हम तुम्हारे अपने नहीं हैं? देखो तरुण, हम तुम्हारे ही हैं। तुम्हारे साथ हैं। मुझे लगता है तुम्हारा बॉस सिर्फ तुम्हें डरा रहा है। तुम्हारी कंपनी तुम्हें निकालेगी नहीं। भला तुम्हारी कंपनी को तुम्हारे जैसे मेहनत से काम करने वाले कहाँ मिलेंगे? फिर भी अगर मानलो की तुम्हें निकाल देते हैं तो तुम्हें दीपक अपनी कंपनी में रखने की शिफारिश कर देगा। दीपक का बॉस तुम्हारे बारे में भी जानता है।"

दीपा की बात सुनकर तरुण ने दीपा की गोद में लेटे हुए दीपा की आँखों से आँखें मिलायीं और बड़े प्यार से दीपा का सर अपने हाथोँ के बिच में पकड़ कर बोला, "भाभी क्या ऐसा हो सकता है?"

दीपा ने बड़े ही आत्मविश्वास और गौरव के साथ कहा, "तुम बिलकुल फ़िक्र ना करो और अपना मूड खराब मत करो। दीपक की कंपनी में अच्छी चलती है। दीपक की बात दीपक के बॉस नकार नहीं देंगे। जरुरत पड़ी तो मैं भी दीपक के बोस से बात कर सकती हूँ। तुम्हारे लिए मैं दीपक के बॉस से ख़ास रिक्वेस्ट करुँगी। वह मेरी बात टाल नहीं पाएंगे। तुम्हें याद है, उस पार्टी में दीपक का बॉस भी आया था और उसने मुझे डान्स के लिए भी आमंत्रित किया था? दीपक मुझे कह रहा था की वह मुझ से बड़ा इम्प्रेस्सेड है या साफ़ साफ़ कहूं तो वह भी तुम्हारी तरह मुझ पर फ़िदा है। यार दुखी मत हो। मैं तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकती हूँ।" मेरी बीबी ने कुछ शर्म से नजरें झुका कर और कुछ गर्व से अपना सर उठा कर कहा।

दीपा की बात से मैं हैरान था की मेरी रूढ़िवादी बीबी कैसी बातें कर रही थी। ऐसा कह कर मेरी बीबी शायद तरुण को यह सन्देश देना चाहती थी की अगर जरुरत पड़ी तो वह तरुण के जॉब के लिए मेरे बॉस से चुदवाने के लिए भी तैयार थी।

तरुण ने दीपा की और प्यार भरी नज़रों से देखा और दीपा के हाथ पर चुम्मी करते हुए बोला, "क्या आप मेरे लिए इतना सब कुछ कर सकती हो? क्या मेरी जॉब के लिए आप दीपक के बॉस से भी अपने आप के ऊपर समझौता करने के लिए तैयार हो?

दीपा ने कहा, "तरुण, बात तुम्हारे और तुम्हारे परिवार के भले की है। मैं उसके लिए कोई भी समझौता कर सकती हूँ। वैसे तो मैं किसी के लिए कुछ नहीं करती। पर जिनको मैं अपना समझती हूँ उनके लिए सब कुछ कुर्बान कर सकती हूँ। मैं ही नहीं मैं और दीपक दोनों ही तुम्हें अपना मानते हैं।"

मैंने देखा की तरुण की आँखें नम हो रहीं थीं। दीपा की बात सुन कर वह भावुक हो रहा था। तरुण ने कहा, "भाभी पहले तो मैं आपसे माफ़ी माँगता हूँ। मैंने आपको बहुत परेशानं किया। मैं सच बताता हूँ, आप और दीपक मेरी जिंदगी का सहारा हो। मैंने आपको इतना छेड़ा फिर भी आपने मुझे हमेशा माफ़ किया। आपके मधुर शब्दों से आपने मुझे जो भरोसा दिलाया है उससे मुझे बड़ी ताकत और हौसला मिला है। मैं तो आपकी पूजा करता हूँ। मैं सच कहता हूँ, अगर मेरा बस चलता तो मैं आपको अपनी पलकों में बिठाये रखता। मैं आपकी कितनी इज्जत करता हूँ यह टीना भी जानती है। मैंने उसे भी कह दिया था की भले ही उसे बुरा लगे पर यह सच है की मैं दीपा भाभी पर कुर्बान हूँ।" बोलते बोलते तरुण की आँखों में से आंसू भर आये।

दीपा ने तरुण की आँखों में आंसूं देखे तो उसकी आँखें भी फिर से छलक उठीं। तरुण ने मेरी और घूम कर कहा, "भाई तुम बड़े लकी हो की तुम्हें दीपा भाभी जैसी बीबी मिली और तुम जब चाहो भाभी को प्यार कर सकते हो। मुझे तुमसे जलन हो रही है।"

दीपा ने छलकते हुए आँसुओं के साथ साथ मुस्कराने की कोशिश करते हुए कहा, "तरुण, तुम्हें तुम्हारे भाई की इर्षा करने की कोई जरूरत नहीं है। हम सब एक ही हैं ना? तुम्ही ने तो कहा था न की तरुण हो या दीपक मेरे लिए एक ही हैं? और टीना हो या मैं तुम्हारे लिए भी एक ही हैं? तुम तो यार बहुत ही चालु हो। पहले से ही मुझे फाँसने का प्रोग्राम बना लिया था तुमने। तो तुम मुझसे हिच किचाते क्यों हो? क्या तुम टीना से हिचकिचाते हो? यह क्यों कह रहे हो की यहाँ तुम्हारे पास तुम्हारे अपने नहीं हैं? देखो आज की रात होली की प्यार भरी रात है। और टीना नहीं है तो क्या हुआ? मैं तुम्हारे साथ हूँ। हम सब साथ है ना? तुम्हारे भाई मुझे प्यार कर सकते हैं तो तुम भी मुझे प्यार कर सकते हो। यह आंसूं हटाओ और खुल कर मुस्कुराओ। जॉब की चिंता मत करो। अगर वाकई मैं कुछ हुआ भी तो तुम हमारे साथ रहने के लिए आ जाना। जो हमें मिलता है उसमें हम सब मिल बाँट कर खा लेंगे।"

फिर मेरी प्यारी बीबी ने शर्माते हुए कहा, "तरुण जहां तक तुम्हारी छेड़खानी का सवाल है तो मैं यह कहूँगी की सच तो यह है की तुम्हारी छेड़खानी का मैंने कतई बुरा नहीं माना। बल्कि तुम्हारा छेड़ना मुझे अच्छा लगता था। मैं देखना चाहती थी की तुम मुझे कितना छेड़ते हो? उस समय अगर तुमने मुझ पर और ज्यादा दबाव डाला होता तो मैं तुम्हें रोकती नहीं। जो पीछे हटता नहीं है वही आदमी जो चाहता है वह पाता है। तुम तो मेरे पीछे ऐसे हाथ धो कर पड़े थे आखिर में तुमने मुझे जित ही लिया।"

मैं समझ गया की मेरी बीबी तरुण को यह कहने की कोशिश कर रही थी की अगर उसने जबरदस्ती की होती तो वह तरुण से चुदवाने के लिए मान जाती। "आखिर में तुमने मुझे जित ही लिया।" यह कह कर शायद जाने अनजाने में मेरी बीबी ने तरुण को हरी झंडी दिखा ही दी।

दीपा ने झुक कर तरुण के सर पर हलके से चुम्मा किया। दीपा के झुकते ही दीपा की गोद में सर रख कर बैठे हुए तरुण का नाक दीपा के पके हुए आम के समान स्तनों को छू रहा था। दीपा की तनी हुयी सख्त निप्पलोँ को वह महसूस कर रहा था। पतले से पारदर्शी गाउन में से उसे उनकी भली भाँती झांकी भी हो रही थी। तरुण का हाल देखने वाला था। दीपा जैसे ही थोड़ी झुकी की उसकी मद मस्त चूंचियां तरुण के नाक पर रगड़ने लगीं। दीपा सिहर उठी और सीधी बैठ गयी। तरुण भी दीपा की गोद में से सर हटा कर वापस अपनी जगह पर बैठ गया।

तरुण दीपा के एकदम करीब खिसका और उसने अपना हाथ दीपा के गाउन के ऊपर रखा और वह दीपा की जाँघों को अपनी हथेली से दबाने और सेहलाने लगा। दीपा ने देखा पर तरुण को रोकने के बजाये दीपा ने भी तरुण की जाँघ पर अपना हाथ रखा और वह भी तरुण की शशक्त करारी जाँघों को पाजामे के ऊपर से सहलाने लगी।

मेरा लण्ड यह देख कर मेरे पाजामे में खड़ा हो गया। मैं भी दीपा की दूसरी जाँघ पर हाथ रख कर उसे सहलाने लगा और धीरे धीरे दीपा का गाउन ऊपर की और खींचने लगा। मेरी हरकत से दीपा थोड़ी सावधान सी हो गयी और उसने अपने दोनों पाँव सख्ती से कस कर भींच लिए। मैंने फिर दीपा की जाँघ पर चूँटी भरकर उसे याद दिलाया की उस रात उसे कोई विरोध नहीं करना है। दीपा ने मेरी तरफ देखा तो मैंने अपनी पलकों से इशारा किया की उसे शांत रहना है। मेरा इशारा पाकर दीपा ने अपनी टाँगें खोल दीं और मैंने मेरा हाथ उसकी जाँघों के बिच में डाल दिया और दीपा की चूत को उसके गाउन के ऊपर से ही धीरे धीरे प्यार से सहलाने लगा।

दीपा ने अपनी बाँहें फैलायीं और तरुण को बाहुपाश में आने आह्वान करते हुए कहा, "तरुण, तुम कह रहे थे ना, की आज की रात खुशियां मनाने की है? तो फिर यह सब गम छोडो। आओ हम से गले मिल जाओ और हम सब मिलकर आज होली की रात को बस खुशियां मनाये। अब तुम्हारे ग़म हमारे ग़म और तुम्हारी ख़ुशी हमारी ख़ुशी। तुम्हारी जो भी परेशानी है हम सब मिलकर झेलेंगे और उसका हल भी हम सब मिलकर निकालेंगे।"

तरुण ने मेरी बीबी की फैली हुई बाँहें देखि तो उसे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ। तरुण फ़ौरन दीपा की फैली हुई बांहो में समा गया। दीपा ने तरुण को अपने आहोश में लेते हुए कहा, "तुम मुझसे प्यार करना चाहते थे ना? मैं आज तुम्हें कह रही हूँ की, मैं ना रोकूंगी, ना टोकूँगी।आज मैं तुमको तुम्हारे भाई और मेरे पति के सामने कह रही हूँ की आज रात तुम मुझसे दिल्लगी नहीं, दिलकी लगी करो, आज की रात तुम मुझे चाहे जितना प्यार करो। पर मेरी प्यार भरी बिनती है की मुसीबतों से हार मत मानो। हम सब मिलकर जिंदगी की लड़ाई लड़ेंगे और जीतेंगे। बोलो, हँसते हँसते लड़ोगे और जीतोगे ना?"

तरुण ने अपने आँसूं पोंछते हुए मुस्काने की कोशिश करते हुए कहा, "भाभी, अगर आप मेरे साथ हो तो मुझे कुछ भी नहीं हो सकता। अब मुझे किसी बात की फ़िक्र नहीं है।"

दीपा ने मेरी और मूड़ कर देखा और बोली, "तो फिर आओ, आप दोनों और मैं हम तीनों मिलकर सही मायने में होली मनाएं। तुम तो एम.एम.एफ. थ्रीसम के एक्सपर्ट हो ना? तो आज तुम दो मर्दों के साथ मैं एक बेचारी अकेली औरत हूँ। चलो हम वही थ्रीसम मनाएं। हम अपने ग़म भूल जाएँ और एक दूसरे को पूरा आनंद दें और एक दूसरे से पूरा आनंद लें।" ऐसा कह कर मेरी बीबी ने मुझे भी अपनी बाँहों में लिया और अपने रसीले होँठ मुझे चूमने के लिए प्रस्तुत किये।