बीबी की चाहत 03

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दीपा मेरी गोद मैं मेरी टाँगों के ऊपर बैठी हुई थी। उसका मुंह मेरी और था और पीठ तरुण की और। दीपा थोड़ी घूमी और उसने अपना एक हाथ तरुण की और लम्बाया और बोली, "अरे तुम मेरे दीपक पर क्यों जल रहे हो? अगर मैं दीपक की साथीदार हूँ तो क्या मैं तुम्हारी साथीदार नहीं हूँ? अगर टीना नहीं है तो दुखी मत होना। मैं तो हूँ ना?" ऐसा कह कर दीपा ने तरुण को अपनी दाँहिनी बाँह में लिया। कुछ पलों के लिए दीपा को ध्यान नहीं रहा की उसका ब्लाउज और ब्रा खुले हुए थे। अगर तरुण उसकी बाँहों में आया तो तरुण का हाथ और अगर वह झुक गया तो उसका मुंह दीपा की चूँचियों को जरूर छुएगा।

तरुण ने मौक़ा पाकर दीपा के एक बॉल को एक हाथ में पकड़ा और उसे सहलाने और मसलने लगा। तरुण का हाथ उसके स्तन को छूते ही दीपा मचल उठी।दीपा के पुरे बदन में एक झनझनाहट फ़ैल गयी जैसे उसे बिजली का करंट लगा हो। वह एकदम भड़क गयी जब उसे ध्यान आया की उसकी चोली और ब्रा खुले हुए थे। दीपा सावधान हो गयी। दीपा ने तरुण को एक हाथ से धक्का मारकर हटाया और अपनी ब्रा और ब्लाउज ठीक करने में जुट गयी।

दीपा ने तरुण पर दहाड़ते हुए कहा, "तुम अपनी हरकतों से बाज नहीं आओगे। मैं आप लोगों के साथ इतना कोआपरेट कर रही हूँ फिर भी तुम मुझे सताने पर क्यों तुले हुए हो?"

दीपा की जब तगड़ी डाँट पड़ी तब घबड़ा कर तरुण फ़ौरन दरवाजा खोल कर कार से बाहर निकला। वह घूम कर मैं जिस तरफ बैठा था उस दरवाजे के पास आ गया। कार का मेरी तरफ वाला दरवाजा खोलते ही मैं तरुण की सीट (ड्राइवर सीट की ) और थोड़ा सरक गया। दीपा ने तब कुछ राहत अनुभव करते हुए अपनी टांगें सीट पर लम्बी कर दीं। दीपा की टाँगें दरवाजे के बाहर निकल पड़ीं। उस समय दीपा मेरी गोद में मेरी पतलून में छिपे हुए मेरे लण्ड से उसकी साडी, घाघरा और पैंटी में छिपी हुई अपनी चूत सटाकर मेरी जाँघों पर अपने कूल्हों को टिका कर बैठी थी। मेरी कमर की दोनों और उसकी टाँगें फैली हुई थीं। मैं दीपा की और घुमा हुआ था। दीपा का घाघरा उसकी जाँघों को नंगा करता हुआ काफी ऊपर लगभग दीपा की पैंटी तक चढ़ा हुआ था।

कार के दरवाजे को खोलते ही जब तरुण की आँखो को मेरी बीबी की नंगीं जाँघों के दर्शन हुए तो वह पागल सा होगया। वह झुक कर दीपा के पाँव के तलेटी के सोल को चूमने और चाटने लगा। तरुण दीपा के पाँव पकड़ कर बोला, "भाभीजी मुझे माफ़ कीजिये। मैंने कहा नहीं, की मैं एक बन्दर हूँ। भाभी सच मानिये मैं आपकी बहोत रीस्पेक्ट करता हूँ। पर मैं जब आपका सेक्सी बदन देखता हूँ ना, तो पता नहीं मुझे क्या हो जाता है। मैं अपने आपको कण्ट्रोल ही नहीं कर पाता हूँ। आप तो जानते ही हो।" फिर अपने दोनों अंगूठों को दोनों कान पर रख कर तरुण उठक बैठक करने लगा।

मैंने प्यार से दीपा का हाथ थामा और धीरे से दबाया और दीपा के कानों के पास मेरे होँठ ले जाकर उसके कानों में प्यार भरी आवाज में धीरे से बोला, "यार डार्लिंग, गुस्सा क्यों करती हो? तुम्ही ने कहा था की आज तुम गुस्सा नहीं करोगी और हमारा साथ दोगी। फिर गुस्सा क्यों? तुम्हारे इतने खूबसूरत बूब्स खुले देख कर तरुण से रहा नहीं गया और उसने उन्हें मसल दिए, तो कौनसा आसमान टूट पड़ा यार? तुम ही सोचो अगर तुम उसकी जगह होती तो क्या तुम्हारा मन नहीं करता? उसने तुम्हारे बूब्स ही दबाये है ना? तो क्या हुआ? पहले नहीं दबाये क्या? डार्लिंग गुस्सा मत करो। मैंने कहा ना था की वह तुम्हें छेड़ेगा? बेचारा क्या करे? वह टीना के बगैर तड़प रहा है। जब से तुम उसके पास बैठी हो ना, तबसे उसका लण्ड उसकी पतलून में बड़ा टेंट बना रहा है। तुमने देखा नहीं? मुझे तो डर था की कहीं अँधेरे में उसने अपना लण्ड तुम्हारे हाथ में पकड़ा कर अपना माल निकलवाने के लिए उसने तुम्हें मजबूर ना किया हो। क्यूंकि तुम्ही देखो ना अभी भी वह अपना लण्ड कण्ट्रोल नहीं कर पा रहा है। जानेमन तुम समझो। प्लीज अब तुम शांत हो जाओ और एन्जॉय करो। प्लीज?"

मेरे इतना कहने पर दीपा मेरी और बड़ी तिरस्कार भरी आँखों से देखने लगी और चुप हो गयी। फिर कुछ देर बाद कुछ सहम कर थोड़ी शर्माती हुई अपने आप पर कुछ नियंत्रण रखते हुए मेरे कानों में फुसफुसाती हुई बोली, " क्या तुमने देख लिया था? दीपक मुझे माफ़ करना। मैं कबुल करती हूँ की उसने कार में जब हम कवितायें सुन रहे थे तब मेरा हाथ उसकी टाँगों के बिच में उसके पतलून की जीप पर रख दिया था और ऊपर से मेरे हाथ को दबा रहा था। तुम सही कह रहे थे। बापरे! उसका लण्ड उसकी पतलून में लोहे की तरह खड़ा होगया था। हालांकि उसका लण्ड उसकी पतलून में ही था, मुझे ऐसा फील हुआ जैसे उसका लण्ड उसकी पतलून फाड़ कर बाहर आ जाएगा। पतलून के ऊपर से ही मुझे लग रहा था जैसे वह बड़ा मोटा और लंबा है। तरुण वाकई चाहता था की मैं उसकी जीप खोल कर उसके लण्ड को पकड़ कर सेहलाऊं। उसने मेरा हाथ भी उसकी जीप पर दबा कर रख दिया था। पर मैंने उसकी जीप नहीं खोली और कुछ देर बाद मेरा हाथ वहाँ से हटा दिया। मैंने उसका माल वाल नहीं निकाला।" मेरी बीबी के यह स्वीकार करने से मेरा लण्ड भी मेरी पतलून में खड़ा हो कर फुंफकारने लगा।

दीपा फिर तरुण की और पीछे मुड़ कर तरुण को थोड़ी दूर उठक बैठक करते हुए देख कर हंस कर मेरे कानों में फुसफुसाती हुई मुझसे बोली, "करने दो उसको कुछ देर कसरत। उसकी सेहत के लिए अच्छा है। साले का लण्ड मुझे देखता है तब खड़ा हो जाता है और कुदने लगता है।"

मैंने कहा, "डार्लिंग तो कभी कबार बेचारे पर दया खा कर उसे शांत कर दिया करो ना?"

फिर वापस मेरी और मुड़कर थोड़ी झल्ला कर बोली, "दीपक, यार तुम भी ना कभी कभी बड़ी ऊलजलूल बात करते हो। तुम्हारा दोस्त तरुण सिर्फ बन्दर ही नहीं, बहुत बड़ा लम्पट बन्दर है। पता नहीं मुझे देख कर ही इसकी जीभ लपलपाने लगती है। यह मुझे बहोत ज्यादा फ़्लर्ट करता और छेड़ता रहता है और मैं सच बताती हूँ की जब वह मुझे छेड़ता है तो मुझे अंदर से पता नहीं क्या हो जाता है? मैं भी पागल सी हो जाती हूँ। यह तो सुधरेगा नहीं। अब तो मैं वाकई तंग आ गयी हूँ। तुम भी हमेशा उसको ही सपोर्ट करते रहते हो। बोलो ना, आखिर तुम दोनों मुझसे क्या चाहते हो? बोलो तो सही। मुझसे क्या हिचकिचाना? मैं तुम्हारी बीबी हूँ। क्या आज तक मैंने कभी तुम्हारी कोई बात नकारी है? एक बार बोलो तो सही तुम दोनों मुझसे क्या चाहते हो? यार बर्दाश्त की भी कोई हद होती है। इतना घुट घुट के बार बार मरने से तो एक बार मर जाना ही अच्छा है।"

तरुण उस समय कार के बाहर निकल कर कुछ दूर धीरे धीरे दीपा को दिखाने के लिए दण्डबैठक लगाने का ढोंग कर रहा था। वह हमारी बात नहीं सुन सकता था। मैंने दीपा के कान में अपने होंठ रखे और उसे एकदम धीरे से फुसफुसाते हुए पूछा, "डार्लिंग एक बात बताओ। हम तरुण को कह रहे हैं की उसी ने उस पति पत्नी के साथ मिल कर थ्रीसम एम.एम.एफ. किया था। शायद ऐसा ही हुआ भी होगा।

इसका मतलब तो तरुण को थ्रीसम का अच्छा खासा अनुभव है। तो फिर क्यों ना हम भी उसके अनुभव का फायदा उठायें, और उससे एम.एम.एफ. थ्रीसम करें? तुमने खुद कहा की अगर सेक्स में नीरसता आगयी हो और अगर सब की मर्जी से होता है तो एम्.एम्.एफ. थ्रीसम कोई बुरी बात नहीं है। तुम्हें नहीं लगता की वह हम पर भी लागू होता है? हमारी शादी को भी कई साल हो गए हैं? क्या तुम मानती हो की नहीं की हमारी सेक्स लाइफ में भी कुछ हद तक नीरसता आ गयी है?"

यह बात कह कर मैंने मेरी बीबी को घुमा फिरा कर यह इशारा कर ही दिया की मैं चाहता था की मेरी बीबी उस रात मुझसे और तरुण से चुदवाये। दीपा ने मेरी और टेढ़ी नजर कर के मेरे कान में पूछा, "क्या तुम मुझसे ऊब गए हो?"

मैंने कहा, "नहीं ऊबने वाली बात नहीं है। मैं तो तुमसे नहीं उबा हूँ पर शायद कुछ हद तक तुम मुझसे ऊब गयी हो। चलो, इस तूतू मैंमैं की बहस को छोड़ दो पर अगर हम हमारे जीवन में कुछ नयापन लाना चाहें तो क्या बुरी बात है?"

दीपा ने अपने कन्धों को उठा कर कहा, "क्या पता भाई। जब से तरुण ने हमारी जिंदगी में कदम रखा है तब से मुझे तो नयेपन की कोई कमी नहीं खल रही। रोज ही तुम्हारा यह बन्दर नयापन ला रहा है। कभी वह पिकनिक में मुझे अपनी बाँहों में लेकर मेरे बूब्स दबाता है, कभी वह मुझे बाथरूम में दबाकर किस करता है, कभी वह होली में मुझे ब्लाउज के अंदर हाथ डाल कर मेरे बूब्स को भी रंगता और बिंदास मेरी चूँचियों को दबाता और मसलता है, कभी मेरा घाघरा उठा कर मेरी जाँघों को सेहलता है, कभी घर आ कर तुम्हें अपनी बीबी की आधी नंगी तस्वीरें दिखाता है। कभी वह पतलून में छिपे हुए उसके खड़े मोटे और लम्बे लण्ड को मेरे हाथ में पकड़ाने की कोशिश करता है, कभी वह अँधेरे का फायदा उठा कर मुझे खुले में कार के पीछे खड़ी कर अपनी बाँहों में जकड कर कपडे पहने हुए ही चोदने की कोशिश करता है, और मेरे पति उसमें उसका साथ देते हैं। जब मेरे पति ही चाहते हैं की तरुण मुझे और छेड़े तो मैं लाचार हो जाती हूँ क्यूंकि मैं मानती हूँ की पति पत्नी के बिच में विचार मतभेद हो सकते हैं, पर उन को हमेशा साथमें चलना चाहिए। हो सकता है मैं आपसे सहमत न होऊं, पर अगर आपकी प्रखर इच्छा हो या ज़िद हो तो मुझे भी उसके आगे झुकना पडेगा। तभी तो हम साथ साथ चल सकते हैं। पति को पत्नी पर पूरा भरोसा होना चाहिए और पत्नी को पति की बात माननी चाहिए। मैं कभी आपसे असहमत हो सकती हूँ पर कभी ऐसा नहीं होगा की मैं आपके विरुद्ध जाउंगी। मैं हमारे बिच में कभी भी कोई घर्षण नहीं होने दूंगी। और जहां तक नयेपन का सवाल है तो आजकल तरुण के कारण मेरी जिंदगी में नयापन ही नयापन है।"

मैंने कहा, "डार्लिंग क्यों ना आज रात हम सब मिल कर इस नयेपन को पूरी तरह एन्जॉय करें?"

दीपा ने मेरी और कुछ देर तक एकटकी लगाकर देखते हुए कहा,"तुम क्यों पूछ रहे हो? मैंने अभी अभी क्या कहा? आज तक ऐसा कभी हुआ है की मैंने ना नुक्कड़ भले ही की हो, पर तुम्हें कहीं भी किसी भी मामले में साथ ना दिया हो? चाहे मैं राजी हूँ या नहीं पर मैंने आखिर में जा कर तुम्हारी बात मानी है की नहीं?" फिर क्यों पूछ रहे हो? बोलो तुम मुझसे क्या चाहते हो?"

मैं क्या बोलता? यदि मैं उस समय दीपा को अचानक यह साफ़ साफ़ कह देता की मुझे उसको तरुण से चुदवाना है, तो पता नहीं क्या होता? शायद दीपा मेरी बात पर सोचती और शायद मान भी जाती, पर ज्यादातर मुझे यही लगा की वह मुझे वहीँ की वहीँ ऐसा लताड़ती की सब कुछ गड़बड़ हो जाता। और तरुण की भी शायद ऐसी की तैसी कर देती। मैंने उस समय इस बात को आगे बढ़ाना ठीक नहीं समझा और चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी। पर हाँ, मुझे तब यकीन हो गया की अब कहीं ना कहीं दीपा भी शायद समझ गयी थी की हम दोनों उसे चोदने का प्लान कर रहे थे और उसे चोद कर ही छोड़ेंगे। पर तब भी शायद वह यह बात हम से सुन कर उसे पचा ना पाती और हमारे प्लान पर पानी फेर देती।

मुझे मेरी प्यारी बीबी को खुद ही चुदाई करवाने के लिए राजी हो जाए ऐसी स्थिति में लाना था। हालांकि शायद वह मानसिक रूप से चुदवाने के लिए तैयार हो चुकी थी पर उस समय दीपा काफी उत्तेजक स्थिति में थी और तरुण की हरकतों से तंग आ चुकी थी। मैं मेरी प्यारी बीबी को तंग होकर चुदवाने के लिए तैयार नहीं करना चाहता था। लोहा गरम हो चुका था। मौक़ा देख कर अब हथोड़ा ही मारना था। तो अब फ़ौरन बिना समय गँवाये सही समय और माहौल बनाना पडेगा जिससे की दीपा खुद ही अपनी मर्जी से मेरे सामने ही तरुण से चुदवाने के लिए तैयार हो जाए। और मुझे काफी हद तक यह भरोसा हो गया की दीपा शायद तैयार हो ही जाए। हमारा प्लान तैयार था। बस मौके का इंतजार था।

मैंने कहा, "तुम पूछती हो हम क्या चाहते हैं? आजकी रात हम दोनों को बस दीपा चाहिए। आज तुम हमारे साथ बेझिझक मौज करो यही हम चाहते हैं। जानेमन, हम तो आज होली के मजे लेने के लिए आये हैं। तरुण ने थोड़ी सी छूट लेली तो इतना क्यों तिलमिलाती हो डार्लिंग? मैं तो तुम्हारे पीछे पागल हूँ ही। वैसे ही तरुण भी तुम्हारे सामने आते ही लम्पट बन्दर की तरह पागल सा हो जाता है और तुम्हारे तलवे चाटने लगता है। अब शांत हो जाओ और देखो यह तुम्हारा पागल बन्दर अब तक उठक बैठक कर रहा है। उसे मनाओ।"

दीपा ने थोड़ा मुस्कराते हुए कहा, "अरे मैं शांत ही हूँ। और तुम्हारी दीपा कहाँ भागी जा रही है? मैं तुम दोनों के साथ ही हूँ ना, और एन्जॉय भी कर रही हूँ। तुमने मुझे ऐसा सेक्सी ड्रेस पहनने को कहा और मंब बेवकूफ तुम्हारी बातों में आ गयी और मैंने पहन भी लिया। अब देखो क्या हो रहा है? तुम्हारे बन्दर ने और तुमने मिल कर मेरे ड्रेस की ऐसी की तैसी कर दी। मुझे तुम लोगों ने आधी नंगी ही कर दिया। तुम कहीं सचमुच मुझे तरुण के सामने पूरी नंगी तो नहीं करना चाहते हो? लगता है, मुझे तो तुम्हारे इस बन्दर के सामने बुरखा पहन कर ही आना चाहिए था। तब अगर उसे मेरी शकल ना दिखे तो हो सकता है वह मेरे से कुछ सभ्यता से पेश आये।"

मैं दीपा से कहा, "डार्लिंग, आज की रात तो सभ्यता की बात ना करो प्लीज?"

तरुण कार के बाहर उठक बैठक लगा रहा था उसे देख कर दीपा हँस पड़ी और बोली, "बस करो बन्दर। अब तुम ज़रा दूसरी तरफ घूम जाओ। तुमने मेरे कपड़ों की ऐसी की तैसी कर दी है, उसे ठीक करने दो। भाई अगर तुम बन्दर हो तो मैं बंदरिया ही हुई ना? तुम्हारी इस बंदरिया को मतलब मुझे साडी बगैरह कपडे ठीक तरह से पहनने दो।" आखिर में दीपा ने अपने आप ही खुद को तरुण की बंदरिया बता दिया ताकि तरुण बन्दर कहे जाने पर बुरा ना मान जाए।

तरुण ने भाभी को हाथ जोड़ कर कहा, "भाभीजी अब माफ़ भी करदो। आप ने मुझे बन्दर तो करार कर ही दिया है तो मेरी हरकतों का बुरा मत मानना, प्लीज। अब तो हम बन्दर बंदरिया का खेल खेल सकते हैं ना?"

दीपा ने थोड़ा मुस्करा कर एक हाथ ऊपर कर कहा, "ठीक है भाई, इस बंदरिया ने तुम बन्दर को माफ़ कर दिया। पता नहीं तुम दोनों भाई मिल कर मेरे साथ क्या क्या खेल खेलोगे? तुम दोनों ने मिलकर तो मुझे करीब करीब नंगी ही कर दिया है। मैं ऐसे कपड़ों में तो प्रोग्राम में जा नहीं सकती। अब तुम मुझे मेरे कपडे ठीक से पहनने दो। यार अब थोड़ा सीरियस हो जाओ।"

तरुण कार से थोड़ी दूर अँधेरे में घूम कर जा खड़ा हुआ। दीपा ने अपनी साडी फिर ठीक तरह से बाँध ली और ब्रा और ब्लाउज ठीक किये। मेरी बात सुनकर दीपा थोड़ी सी रिलैक्स लग रही थी। अपने आप को सम्हाल कर बोली, "देखो, छेड़ाछाड़ी ठीक है, पर एक लिमिट होनी चाहिए। यह बन्दा कभी सीरियस भी होगा की नहीं?"

मैंने कहा, " मैंने कहा, "मेरी बात मानो, वह बहुत ज्यादा सीरियस है। उसे सीरियस होने के लिए मत कहो। बस वह तुन्हें देखता है और तुम्हारे साथ मस्ती करता है तभी वह कुछ देर के लिए अपना दर्द भूल जाता है। आज टीना नहीं है तो वह और भी परेशान है। उसके सर पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है। क्या तुम्हें पता है, उस बेचारे के साथ क्या हुआ है?"

दीपा मेरी बात सुन कर चौंक सी गयी। तरुण ने कई बार कुछ सीरियस बात है उसका जिक्र किया तो था पर तब तक दीपा सोच रही थी की कोई मामूली सी बात होगी। पर मामला कुछ ज्यादा ही सीरियस लग रहा था। दीपा ने मेरी और चिंता भरी नजरों से देखा और बोली, " हुआ क्या?"

मैंने कहा, "चलो तरुण को ही पूछ लेते हैं।" हम ने तरुण को बुलाया।

तरुण मुझे और दीपा को फुस्फुस करते देख कर बोला, "क्या बात है? मियाँ बीबी क्या फुस्फुस कर रहे हो? भाभी, आज आपने मुझे काफी झाड़ लगा दी है। मुझे झाड़ने की कोई और बात तो नहीं है?"

दीपा ने कहा, "नहीं तरुण ऐसी कोई बात नहीं। पर तुम बताओ, तुम दीपक को कह रहे थे की तुम कोई ख़ास बात करना चाहते हो? क्या बात है?"

तरुण मेरी बात सुनकर तरुण थोड़ा सीरियस हो गया। उसने कहा, "भाभी, मैं बताऊंगा। आपको नहीं बताऊंगा तो किसको बताऊंगा? पर आज आपकी कंपनी में मैं बिलकुल सीरियस होना नहीं चाहता। मैं आज होली की मस्ती और पागलपन ही करना चाहता हूँ। रोने के लिए तो पूरी जिंदगी पड़ी है। अभी तो आप यह बताओ की अब वह कवी सम्मलेन में वापस जाना है क्या?"

मैंने कहा, "मुझे तो कवी सम्मलेन से तेरी बातों में ज्यादा रस आ रहा है। भाई अब तेरे मित्र की अधूरी बात तो पूरी कर।"

दीपा ने मेरी बात को बिच में काटते हुए कहा, "तरुण अब अपने दोस्त से पूछो की मैंने तुम्हारी सेक्स वाली बात पूरी सुनी के नहीं? अब तो वह मेरी बात को कबुल करें की स्त्रियां पुरुषों से बिल्कुल कम नहीं। "

मैंने कहा, "मैं अब भी नहीं मानता। तुमने बात जरूर सुनी, पर जैसे ही थोड़ा सा नाजुक वक्त आएगा तो तुम भाग खड़ी हो जाओगी।"

तरुण ने मेरी बात को सिरे से खारिज करते हुए कहा, "तू क्या बकवास कर रहा है दीपक? तुझे पता है तू कितना भाग्यशाली है दीपा को पाकर? दीपा भाभी जितनी अक्लमंद, सुन्दर, सयानी और इतनी हिम्मत वाली पत्नी बड़े भाग्य से मिलती है।"

मैंने तरुण को टोकते हुए कहा, "ऐसा मत बोल यार। टीना भी बहुत अच्छी हैं। तू भी बहोत तक़दीर वाला है।"

तरुण ने अपनी जिद पर अड़े रहते हुए कहा, "मैंने माना की टीना भी बहोत अच्छी है, पर भाभी से कोई मुकाबला नहीं। तूम तो यार सच में तक़दीर वाले हो। देखो मेरी बात को सीरियसली मत लेना पर मैं सच में कह रहा हूँ आज भी अगर तुम और भाभी तैयार हों तो मैं तो अदलाबदली के लिए तैयार हूँ। भाई आप भाभी मुझे देदो और टीना को आप रखलो। भाई मैं दीपा भाभी की पूजा करूंगा और उनपर कोई भी कष्ट का साया तक नहीं पड़ने दूंगा।"

तरुण की बात सुन कर मैं दंग रह गया। तरुण ने बीबियों की अदलाबदली करने वाली बात उस रात साफ़ साफ़ हम दोनों को कह दी। मैंने दीपा की और देखा। वह भी तरुण की बात सुन कर उसकी और अजीब सी नजरों से देखने लगी। तब तरुण ने बात को घुमाते हुए कहा, " यह तो खैर कहने वाली बात है। पर वाकई में दीपक भाई, मैंने आजतक दीपा भाभी के समान अक़्लमंद, सुन्दर, सेक्सी, हिम्मत वाली स्त्री कहीं नहीं देखि।"

मैंने देखा की दीपा ने अदला बदली वाली बात को अनसुना कर दिया। पर तरुण की तारीफ़ सुनकर दीपा को और जोश आया। वह मेरी तरफ देख के बोली, "तुम यह तो मानोगे की तरुण ने कई लड़कियों और औरतों को बहोत करीब से देखा है और समझा है। तुम मानते हो ना की वह स्त्रियों का एक्सपर्ट है? तो सुनो, तुम्हारा अपना दोस्त मेरे बारे में क्या कह रहा है? पर तुम्हे मेरी कद्र कहाँ? मैं तुम्हारी बीबी जो हूँ। सच कहा है, घर की मुर्गी दाल बराबर।"

मेरा मन किया की मैं अपनी बीबी को कहूं की, "दीपा डार्लिंग यह क्यों नहीं कहती हो की तरुण ने कई लड़कियों और औरतों को चोदा है? इसी लिए वह लड़कियों और औरतों का एक्सपर्ट है? पता नहीं अब तुम्हें उसमें शामिल करने के लिए तो कहीं वह तुम्हारी तारीफ़ नहीं कर रहा?" पर मैं चुप रहा क्यूंकि ऐसा कहने से दीपा एकदम बिदक जाती।

मैं अपने मन में तरुण की बड़ी तारीफ़ कर रहाथा। वह क्या एक के बाद एक तीर दाग रहा था और हर एक तीर उसके निशाने पर लग रहा था। उसने तो अदलाबदली वाली बात भी कह डाली। मुझे वाकई में उसकी अदलाबदली वाली बात सुन कर लगा की "अपना टाइम आएगा।" आश्चर्य की बात तो यह थी की इतना कुछ करने के बावजूद भी दीपा की समझ से तरुण जैसा सभ्य और समझदार इंसान और कोई नहीं था। मैं, भी नहीं।

मैंने तरुण से कहा, "भाई अपनी वह कहानी तो पूरी करो। और हाँ, तुम एक बात कहना चाहते न? फिर वह भी बता दो की क्या बात थी?"

मेरी बात सुनते ही जैसे अचानक तरुण के चेहरे पर जैसे काला साया छा गया। वह कुछ कहना चाहता था, पर कह नहीं पा रहाथा। जब मैंने उसे टोका तब तरुण ने बड़ी गंभीरता से दीपा को कहा, "दीपा भाभी, मैं आज इस रंगीली रात में वह सारी बातें भूलना चाहता हूँ। छोडो भाभी। आप सुनेंगे तो आप भी दुखी हो जाएंगे। मैं आपको दुखी देखना नहीं चाहता।"

दीपा ने तरुण का हाथ पकड़ा और बोली, "नहीं तरुण, तुम बताओ, क्या बात है। शायद हम तुम्हारी कुछ मदद कर पाएं। अगर मदद ना भी कर पाएं तो तुम उस बात को कह कर अपना बोझ तो जरूर हल्का महसूस कर पाओगे। अपनों से बात करने से हल निकलता है। देखो हम तुम्हारे अपने निजी हैं के नहीं? अगर तुम मुझे और दीपक को एकदम करीबी अपना समझते हो तो सारी बात खुल कर बताओ। जो वाकई में अपने हैं उनसे कुछभी छुपाते नहीं। हमें एक दूसरे से कितनी ही सीक्रेट बात क्यों ना हो कुछ भी नहीं छुपाना चाहिए। जहां तक दुःख की बात है, तो क्या हमें एक दूसरे से सुख और दुःख बांटना नहीं चाहिए? क्या तुम टीना से कुछ छुपाते हो? तो फिर हमसे क्यों?" मैंने भी तरुण को कहने का इशारा किया।

तरुण ने दीपा की और देखते हुए कहा, "भाभी, मैं आप को अपना नहीं समझता होता तो आप या भाई से इतनी छूट लेता क्या? आप लोगों से मुझे कोई भी झिझक नहीं है। आप इतना कहती हो तो मैं बताऊंगा। आप कहती हो ना की स्त्रियां पुरुष के बराबर होती हैं? मैं आप की बात करता हूँ। आप मुझ जैसे पुरुष से कहीं ज्यादा बुद्धिमान और अक्लमंद हो। मैं आपको मेरी दर्द भरी कहानी इस लिए भी कहूंगा क्यूंकि मैं समझता हूँ की आप सिर्फ मेरे अपने ही नहीं हैं, आप इतनी धीर गंभीर और समझदार हैं की शायद आप ही मुझे कुछ रास्ता बता सकते हो।" यह कह कर तरुण रुक गया।

मैंने देखा की अपनी ऐसी तारीफ़ सुन कर दीपा खिल उठी और उस ने मेरी तरफ कुछ तिरस्कार भरी नज़रों से देखा। फिर तरुण की और मुड़ कर बोली, "ठीक है बोलते जाओ।"

तरुण ने कहा, "मैं तो यह सब सोच कर थक हार चुका हूँ। आज मैं जबरदस्ती अपने आपको मजाकिया मूड में लाने की कोशिश कर रहा था शायद इसी लिए मैंने आपको इतना परेशान किया। मेरी समझ में तो कुछ नहीं आता। पर यह सब सुनने के लिए और मेरी मदद करने के लिए आपको मेरे घर चलना पड़ेगा। यहां बाहर कार में बैठे बैठे मैं कह नहीं पाउँगा।"

तरुण ने दीपा को इतनी महत्ता दे दी की उस की बात सुन कर दीपा का चौड़ा सीना (!!) और चौड़ा हो गया। दीपा खुश नजर आ रही थी। पर तरुण के चहरे पर मायूसी का साया देख कर मेरी पत्नी थोड़ी सकपका गयी ।

मैंने दीपा से कहा, "अब तो हमें सुबह ही घर लौटना है। फिर यहां बाहर देर रात सुनसान रास्ते पर कार खड़ी कर इस तरह बात करने से कुछ शकिया माहौल हो सकता है, कुछ अनहोनी हो सकती है। तरुण के घर में और कोई है भी नहीं। चलो तरुण के घर ही चलते हैं।" उस पर दीपा ने भी अपनी मुहर लगा दी और तरुण ने कार अपने घर की और मोड़ी।

पुरे रास्ते में तरुण के मुंह पर जैसे ताला लगा था। मैंने दीपा के कान में कहा, " मैंने कहा था ना की गंभीर बात है। अब तक जो फुदकता रहता था उसे एकदम यह क्या हो गया? हम तरुण के घर जा कर बात करते हैं। उसको थोड़ी पिलायेंगे और तुम थोड़ा उसको छेड़ना तो उसका मूड ठीक हो जाएगा।"

दीपा की नजर में तरुण एक निहायत शरीफ और सीधा सादा इंसान बन चुका था। उसकी छेड़ खानी और शरारत को भी दीपा तरुण की सरलता का ही नमूना मान रही थी। हम जैसे ही तरुण के घर पहुंचे तो दीपा ने तरुण की कमर पर हाथ रखा और बोली, "आज मैं तुम दोनों के साथ एक आझाद पंछी की तरह अनुभव कर रही हूँ। आप लोगों के साथ मुझे एक अनूठा अपनापन लग रहा है। मुझे आज मेरे पति और मेरे देवर के साथ बड़ा अच्छा लग रहा है। और देवरजी इसका श्रेय तुम्हे जाता है। मैं तुम्हें देवर कहूं या बहनोई?"

मैं जानता था की दीपा का आझाद पंछी की तरह अनुभव करने का कारण तो वह जीन से भरा हुआ गिलास और तरुण का तास के पत्तों से बना वह तारीफों का पूल था। पर यह देवर कहूं या बहनोई वाली बात कह कर कहीं मेरी बीबी तरुण को आधी घरवाली वाली बात पर तो नहीं लाना चाहती थी? मतलब कहीं तरुण को और छेड़ने के लिए तो नहीं उकसा नहीं रही थी? अगर ऐसा था तो जरूर वह चुदवाने के बारे में अपने आप को मानसिक रूप से तैयार कर रही थी। उसके मन में क्या था? यह जानना मेरे लिए जरुरी था।

दीपा सोचती थी की शायद तरुण कुछ जवाब देगा। पर तरुण ने तो जैसे मौन व्रत धारण किया हो ऐसे ही मुंह लटका कर चुप था।

मौक़ा देख कर मैंने कह दिया, "तुम तरुण को देवर समझो या बहनोई, या तरुण तुम्हें भाभी समझे या साली, क्या फर्क पड़ता है? छुरी पर खरबूजा गिरे या खरबूजे पर छुरी, कटना तो खरबूजा ही है।"

दीपा ने आँखें टेढ़ी करके पूछा, "आपका क्या मतलब है? मैं साली हूँ या भाभी, मैं आधी घरवाली तो रहूंगी ही, क्या तुम ऐसा कहना चाहते हो? या फिर तुम यह कहना चाहते हो की आज चाहे कुछ भी हो जाए आप लोगों से मुझे ही कटना है?"

मुझे मेरी बीबी की बात से ऐसा लगने लगा की कहीं ना कहीं उसके मन में यह साफ़ हो गया था की मैं और तरुण मिलकर मेरी प्यारी बीबी को चोदने का प्लान बना रहे थे। और अब तो वह तरुण को भी उसे छेड़ने के लिए उकसा रही थी। कहीं ऐसा तो नहीं की वह खुद तरुण से चुदवाना चाहती थी और हमें मोहरा बना रही थी?