हँसी तो फँसी

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मेरी बीबी ने हम सब को कैसे हताशा के अँधेरे कुँए से निकाला।
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मेरा नाम दीपक है। यह वाक्या कुछ सालों पहले का है। मैं उन दिनों लखनऊ में रहता था।

एक प्राइवेट कंपनी ने में सेल्स डिपार्टमेंट में मार्किट डेवलपमेंट मैनेजर था। मेरा परफॉरमेंस अच्छा था और सेल्स में मैं हमारी कंपनी में अक्सर अव्वल या पुरे इंडिया में पहले पांच में रहता था। मेरे बॉस मिस्टर सोमेन सोमेंद्र मल्होत्रा मुझसे बहुत खुश थे। मेरी प्रमोशन के चाँस अच्छे थे। बॉस एक मध्यम साइज की कंपनी के सीईओ और डाइरेक्टर थे। बॉस का नाम 'सोमेंद्र' था। करीबी लोग उन्हें 'सोम' कह कर बुलाते थे। बॉस बड़े ही गतिशील, कार्यक्षम, तेजस्वी, युवा मुझसे चार पांच साल बड़े थे। हमारी कंपनी नयी स्टार्टअप थी पर पुरे भारत में काफी अच्छा काम कर रही थी। हमारी कंपनी पर कर्जा था पर जिस तरह से हम काम कर रहे थे तो लगता था की जल्द ही हम कर्जे को चुकता कर हम प्रॉफिट करना शुरू कर देंगे। बॉस मुझे बहोत सपोर्ट करते थे।

मेरे अव्वल रहने के एक ख़ास कारण था। वह था मेरे और मेरे बॉस के बिच का सटीक तालमेल। मुझे मेरे बॉस में अद्भुत विश्वास था। या यूँ कहिये की मैं मेरे बॉस में अंधविश्वास रखता था। और इसका ख़ास कारण था की मेरे बॉस एक असामान्य सेल्समैन थे। हमारी कंपनी एक ख़ास एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर बनाती थी।

मेरे बॉस ना सिर्फ हमारी ऍप्लिकेशन्स बेचने में माहिर थे बल्कि वह खुद भी एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर होने के कारण हमारे ग्राहकों की जरुरियातों को कैसे समझना, ग्राहकों को हमारे डिज़ाइन स्ट्रक्चर के कान्सेप्ट के बारे में कैसे समझाना और हमारी प्रोडक्ट को ग्राहक के बिज़नेस में कैसे लागू कर उसे कैसे बेचना वह उनके बाँये हाथ का खेल था। बॉस की सफलता का एक और भी कारण था। वह ग्राहकों की दिक्कत और परेशानियों को फ़ौरन भाँप लेते थे और ग्राहक कुछ विस्तार से समझाए उसके पहले ही उस दिक्कत का निदान कर देते थे। यह कहना गलत नहीं होगा की एक बार जो हमारा ग्राहक हो गया उनके वहाँ प्रतिस्पर्धी का दाखिला करीब नामुमकिन था। हमारी कंपनी धीरे धीरे बड़ी बड़ी अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों में अपनी पकड़ जमा रही थी। कंपनी की सालाना आय बढ़ती जा रही थी।

साथ ही साथ में बॉस हमारी टीम की जान थे। कर्मचारियों का कैसे ध्यान रखना, उनकी मुश्किलों में उनकी कैसे सहायता करना और उनके हौसले को कैसे बढ़ाना उसकी उनको गजब की समझ थी। सारे कर्मचारी दिन रात मेहनत कर के समय पर काम ख़तम कर देते थे। इसी लिए हमारी कंपनी को कभी भी प्रोडक्ट को डिलीवर करने में देरी नहीं होती थी। हमारे ग्राहक को किसी और कंपनी के पास जाने का वह कोई कारण ही नहीं देते थे।

मैं उनकी हर बात मानता और उनके बताये रस्ते पर ही चलता था। मेरी और मेरे बॉस की जोड़ी हमारी पूरी कंपनी में करन अर्जुन की जोड़ी के नाम से जानी जाती थी। मुझे उनमें और उनको मुझमें पूरा विश्वास था। जिससे ग्राहक बहुत संतुष्ट रहते थे और हमारे प्रोडक्ट मार्किट में दिन दुगुने रात चौगुने बिक रहे थे।

मेरे बॉस एकदम जिवंत प्रतिभावान, मनमोहक व्यक्तित्व वाले, उमंगी, रंगीले स्वभाव के और अपने काम में पूरी क्षमता रखते थे। वह लोगों का दिल चुटकियों में जित लेते थे और ख़ास कर महिलाएं उनकी दीवानी होती थीं। उनकी पत्नी जो की बहोत बड़े रईस बिज़नेस मैन की बेटी थी वह बॉस से पहली मुलाक़ात में ही अपना दिल दे बैठी और अपने पिता को आग्रह किया वह उसकी शादी सोमेन (बॉस) से करवाए। शादी जल्दबाजी में हो भी गयी।

मैं उस समय की बात कर रहा हूँ जब मुझे कंपनी ज्वाइन किये हुए करीब एक साल होने के आया था। तब तक ऐसा कोई मौक़ा ही नहीं मिला था की मैं बॉस का मेरी पत्नी से परिचय करवा सकूँ।

एक बार नए साल की एक बड़ी पार्टी में जहां मैं मेरी पत्नी दीपा के साथ गया हुआ था। मैं मेरी पत्नी दीपा के साथ उस पार्टी में कुछ जल्दी ही पहुँच गया था। तब तक पार्टी शुरू होने में कुछ समय था। मैंने देखा तो मेरे बॉस भी वहाँ जल्दी ही पहुँच गए थे। वहाँ मैंने बॉस को मेरी पत्नी से मिलाया। शायद उनकी पत्नी उस समय अपने मायके गयी हुई थी। जैसे ही दीपा मेरे बॉस से मिली और उनसे हाथ मिलाया तो दीपा एकदम खिलखिला कर हँस पड़ी। मैं और बॉस सब हैरान हो कर दीपा को देखते ही रहे की इसमें हँसने वाली बात क्या थी? जब दीपा ने हमें उसकी और आश्चर्य से ताकते हुए देखा तो दीपा हँसते हँसते बोल पड़ी, "दीपक, लोगों के मन में बॉस की क्या इमेज होती है? तुम्हारे बॉस तो इतने हैंडसम, सॉलिड और पिक्चर के हीरो जैसे यंग हैं यार! मैं उम्मीद कर रही थी, मतलब मैंने सोचा था की वह कोई सफ़ेद बाल वाले खड्डूस बुड्ढे होंगे।"

दीपा की बात सुन कर मैं एकदम स्तब्ध हो गया। सोचा कहीं बॉस बुरा ना मानलें। पर बॉस दीपा के इस तरह खिलखिला कर हँसने से खुद भी हँस पड़े। वह दीपा का हाथ पकड़ कर हँसते हुए बोले, "मैं आपका शुक्रिया करता हूँ की आपने मुझे इतने विशेषणों से नवाजा। मैं अभी तो जवान हूँ, पर एक ना एक दिन आपकी तमन्ना जरूर पूरी हो जायेगी।"

बॉस की बात सुन कर दीपा और जोर से हंस पड़ी और बोली, "ना ना मैं चाहती हूँ की आप सदा जवान ही रहें।"

दीपा की बात सुन कर और उसे देख कर मेरे बॉस काफी प्रभावित हुए। दीपा भी मेरे बॉस की प्रतिभा और व्यक्तित्व की कायल हो गयी। बॉस ने पहली मुलाक़ात में ही मेरी बीबी का दिल जित लिया। बॉस मेरी पत्नी से इतने प्रभावित हुए की काफी देर तक वह दीपा से बातें करते रहे। मैं देख रहा था की जैसे जैसे बॉस मेरी पत्नी से बात करते रहे वैसे वैसे मेरे बॉस के चेहरे पर कुछ अजीब से भाव मुझे नजर आये। जाहिर था मेरे बॉस मेरी पत्नी की खूबसूरती और कामुकता के अलावा और कई खूबियों से बड़े ही प्रभावित हुए थे।

जब मेरे साथ बॉस ने बात की तो उन्होंने मेरी बीबी के पति होने के लिए मुझे बहोत बधाई दी और कहा की मैं दुनिया का एक बहोत ही भाग्यशाली पति हूँ। बॉस ने दीपा में एक सक्षम प्रशासक, कारगर प्रेरक, निष्णात प्लानर और अद्भुत व्यवस्थापक देखा। वह मुझे कहने लगे की काश मेरी पत्नी दीपा कॉर्पोरेट दुनिया में होती तो पता नहीं कहाँ से कहाँ पहुंची होती। बॉस मुझे मेरी पत्नी की एक एक खूबियां जो उन्होंने दीपा में देखि थीं वह मुझे गिना रहे थे और मेरी बीबी की बड़ी तारीफ़ कर रहे थे। तब तक मुझे भी नहीं पता था की मेरी पत्नी में इतनी सारी खूबियां थीं।

धीरे धीरे पार्टी में लोग आना शुरू हुए। पार्टी में थ्री डी (डान्स, ड्रिंक और डिनर) का प्रोग्राम था।

उस पार्टी में बॉस ने दीपा से काफी इधर उधर की बातें की। पर मुख्यतः उनकी बातें बिज़नेस डेवलपमेंट और कर्मचारियों के योगदान और कुशल मंगल पर केंद्रित थीं। बॉस ने दीपा से इतने खुले दिल से बात की थी उतनी शायद मेरे साथ भी कभी नहीं की। बॉस मेरी पत्नी के बात करने मात्र की दक्षता से ही नहीं, पर उसकी निखालिस हँसी, उसके व्यक्तित्व, उसकी प्रतिभा, दीपा की परिपक्वता (मेच्योरिटी) और ख़ास कर उसकी कामुकता भरी सुंदरता पर तो जैसे कुर्बान ही हो गए। पार्टी में और भी कई महिलाएं थीं जो बॉस से मिलना और बात करना चाहती थीं। पर बॉस और लोगों से कुछ हलकी फुलकी औपचारिक बात कर उनसे अलग हो जाते थे और दीपा को ही ताकते रहते थे या उससे मिलने अथवा बात करने का मौक़ा ढूंढते मुझे दिख रहे थे।

मेरी पत्नी दीपा भी तो कोई कम नहीं थी। उसकी पुर बहार जवानी उस शाम और भी खिली हुयी लगती थी। वह उस समय कोई २८ साल की होगी। करीब तीन या चार साल पहले ही हमारी शादी हुई थी। दीपा ना सिर्फ अत्यन्त सुन्दर थी, वह अपनी चाल, ढाल, बातें करने की स्टाइल, अपनी अदा और अपने मृदुल व्यक्तित्व के कारण बेहद सेक्सी भी लग रही थी। दीपा का चेहरा लंबा सा था। उसकी आँखें धारदार थीं और पलकें घनी, पतली और काली थीं। दीपा नाक नुकीली सीधी सुआकार थी।

दीपा के गाल गुलाब की तरह खिले हुए थे। वह बिलकुल सही मात्रा में भरे हुए थे। दीपा के कान के इर्दगिर्द उसके बालों की जुल्फ घूमती हुई देखने वाले मर्दों का जिगर काट कर रख देती थीं। घने और काले बाल दीपा की कमर तक लम्बे थे जिन्हें वह अक्सर बाँध कर रखती थी जिससे उसके सौन्दर्य में चार चाँद लग जाते थे। देखने में मेरी पत्नी कुछ हद तक हिंदी फिल्मों की पुराने जमाने की अभिनेत्री राखी की तरह दिखती थी, पर राखी से कहीं लम्बी थी। आजकल फिल्मों में उसे परिणीति चोपड़ा से कुछ हद तक तुलना कर सकते हैं।

दीपा कमर से तो पतली थी पर उसके उरोज (मम्मे) पूरे भरे भरे और तने हुए थे। दीपा की पतली फ्रेम पर उसके दो गुम्बज को देखने से कोई भी मर्द अपने आप को रोक ही नहीं पाये ऐसे उसके भरे हुए सुडोल स्तन थे। देखने वाले की नजर दीपा के चेहरे के बाद सबसे पहले उसके दो फुले हुए गुम्बजों (मम्मों) पर मजबूरन चली ही जाती थी। उसके तने हुए ब्लाउज में से वह इतने उभरते थे, की मेरी बीबी के लिए उन्हें छिपा के रखना असंभव था। सबकी नजर से उन्हें उतना उभरे हुए दिखाने से वह बचना चाहती थी। मैंने उसे कहा की वह कुदरत की देन है, उन्हें छुपा ने की कोई जरुरत नहीं है। इसी लिए काफी गेहमागहमी करने के बाद आखिर में तंग आकर उसने अपने बूब्स छुपाने का विचार छोड़ दिया।

उसका बदन लचीला और उसकी कमर से उसके उरोज का घुमाव और उसके नितम्ब का घुमाव को देख कर पुरुषों के मुंह में बरबस पानी आ जाना स्वाभाविक था। ज्यादातर दीपा साडी पहनकर ही बाहर निकलती थी। वह जीन्स पहनना टालती थी क्यूंकि उसकी लचिली जाँघें, गाँड़ और चूत का उभार देख कर मर्दों की नजर उसीके ऊपर लगी रहती थी। जब कभी दीपा जीन्स या लेग्गीन पहनती थी तो दीपा बड़ी ही अजीब महसूस करती थी क्यूंकि सब मर्द और कई औरतें भी दीपा की दोनों जाँघों के बिच में ही देखते रहते थे।

मेरी पत्नी को टी शर्ट, स्लैक्स, जीन्स पहनने का शौक था पर चूँकि उसकी फिगर को ही लोग ताकते रहते थे तो दीपा उन्हें कम पहनती थी। मैं उसे बार बार आग्रह करता था की वह ऐसे ड्रेस को पहने, भले ही लोग ताकते रहे। मैंने एक दाखिला देते हुए कहा, "अगर किसी का घर दूसरों के घर से बहोत अच्छा हो तो क्या लोग उसे ताकेंगे नहीं? किसी की कार अगर दुसरी कारों से ज्यादा खूब सूरत और अच्छी हो तो भी लोग उसे देखेंगे। वैसे ही तुम दूसरी औरतों से अच्छी होगी तो लोग जरूर तुम्हें ताकेंगे। दूसरों के ताकने की चिंता किये बिना बिंदास रहो और जो चाहो वह पहनो।"

तब से दीपा ने जीन्स, स्लैक्स, टी शर्ट पहनना शुरू किया। मेरा "बिंदास" शब्द दीपा को बड़ा जँच गया। मेरी बीबी की पर्सनालिटी से वह बड़ा मैच भी करता था। मुझसे शादी होने तक स्कूल में, कॉलेज में और उसके बाद भी वह बड़ी बिंदास रहती थी। शादी के बाद मेरी माँ के नियंत्रण में रह कर उसे अपने आप को कण्ट्रोल करना पड़ा। फिर भी वह अकेले में या जब बाहर जाती थी तब उसका "बिंदासपन" साफ़ दिखता था।

शादी के पहले दीपा एक मैनेजमेंट कंपनी में सेक्रेटेरियल जॉब कर रही थी। उसने तीन साल जॉब की पर उन तीन सालों में वह सेक्रेटरी से मैनेजर बन गयी। शादी के बाद उसे लखनऊ शिफ्ट करना पड़ा तो उसने तय किया की वह मेरे साथ घर गृहिणी बन कर रहेगी। उसने कहीं जॉब के लिए अर्जी ही नहीं डाली।

जब मुझे अच्छी जॉब मिली और घर और माँ बाप को छोड़ कर लखनऊ आना पड़ा उसके बाद मेरी बीबी का "बिंदासपन" पूरा उभर कर सामने आया। मुझे सहगल के गाने और पुराने जमाने के गानों का बड़ा शौक था। मैं जब उन्हें बजाता तो दीपा गुस्सा हो जाती। वह मुझे ताने मारती और कहती, "पता नहीं तुम भरी जवानी में भी ऐसे रोते हुए गाने क्यों बजाते रहते हो? जिंदगी नाचने, गाने और मौज करने के लिए है। रोने के लिए तो पूरी जिंदगी पड़ी है।"

मेरी बीबी को नाचना, कूदना, घूमना बहोत पसंद था। कभी कभी तो वह सहगल के गाने पर भी नाचने लगती थी।

दीपा बातूनी भी बड़ी थी। बचपन से ही उसे काफी बात करने की आदत थी। उसे पुरुषों से बात करने में कोई झिझक नहीं होती थी। उसकी इसी आदत के कारण कई बार मैं मजाक में ताने मार कर उसे "बसंती" (शोले पिक्चर वाली हेमामालिनी) कहकर बुलाता था। बात करते करते वह अक्सर खिल खिलाकर हँस भी पड़ती थी। दीपा की इसी मस्ती भरी बात करने की आदत और हँसी के कारण मैं दीपा से आकर्षित हुआ था। साथ साथ में वह काफी संवेदनशील (इमोशनल) भी थी।

किसी अपाहिज को अथवा गरीब भिखारी को देख कर उसकी आँखों में आँसूं भर आते थे। हम जब कोई हिंदी मूवी देखने जाते तो करुणता भरा दृश्य देख कर वह रोने लगती थी। मैं जितना मेरे बॉस से प्रभावित था शायद उतना ही मेरी बीबी से था। यह कहना गलत नहीं होगा की मुझे मेरी बीबी में भी अंध विश्वास था। और वह इस काबिल थी भी। वह मुझे बहोत प्यार करती थी और कभी मेरे कहने के विरुद्ध नहीं जाती थी। यह बात और है की मुझे कभी कुछ कहने का मौक़ा ही नहीं मिलता था। मैं मेरी बीबी की हर बात मानता था और मेरी बीबी की हर बात मान कर मुझे खशी मिलती थी। मैं उसके अनुसार ही काम करता था जिसके कारण हमारा जीवन बड़ी सरलता से चल रहा था।

मेरी बीबी की एक और खासियत थी। वह सफाई और सजावट की बड़ी ही हिमायती थी। उसे थोड़ी भी अव्यवस्था और गन्दगी बिलकुल पसंद नहीं थी। इसी कारण हमारा घर हमेशा चकाचौंध रहता था। अगर किसी ने उसे गंदा या अव्यवस्थित किया तो वह गरज पड़ती थी। वह बोलने में कुछ हद तक मुंहफट थी। कई बार वह जो मनमें आये वह बोल देती थी।

उस नए साल के अवसर पर की गयी की पार्टी में में एक प्रख्यात बैंड था और साथ में डान्स का कार्यक्रम था। पार्टी काफी बड़े फार्म हाउस में की जा रही थी। मेरे बॉस दिल फेंक और जानदार मर्द के उपरान्त एक माहिर डान्सर भी थे। उस पार्टी में इधर उधर घूमते फिरते डान्स करते हुए जब बॉस मेरी बीबी दीपा के करीब पहुंचे तो उन्होंने उसे बाँहें फैला कर डान्स के लिए आमंत्रित किया। दीपा ने मुस्करा मेरी और देख कर एक आँख मटका कर बॉस के आमंत्रण को स्वीकार किया और ज़रा सा भी समय ना गँवाते हुए वह मेरे बॉस की बाँहों में चली गयी।

उसने बॉस से कहा की उसे डान्स करना नहीं आता। बॉस ने उसे कहा की कुछ ही देरमें वह दीपा को डान्स के स्टेप्स सीखा देंगे। जैसे जैसे बॉस उसे एक के बाद एक स्टेप्स सीखा रहे थे वैसे दीपा भी बॉस के साथ डान्स करने लगी। बॉस दीपा को डान्स स्टेप सिखाते हुए दीपा के कान के एकदम करीब जाकर उसके कानों में बातें करते रहते थे। दीपा को मैंने बार बार जोरसे वैसे ही खिलखिला कर हँसते हुए और अक्सर अपना सर हिला कर सहमति जताते हुए देखा।

वैसे भी दीपा ने स्कूल और कॉलेज में पढ़ाई के साथ साथ हिंदुस्तानी डान्स और थोड़ा पाश्चात्य नृत्य भी तो सीखा ही था। उसे डान्स के स्टेप्स समझने में वक्त नहीं लगा। आश्चर्य तो यह था की जब सालसा की धुन पर बॉस और दीपा तेजी से नाचने लगे तो सारे देखने वाले दाँतों तले उंगलियां दबा कर देखने लगे। देखते ही देखते वह सारी पार्टी की लोकप्रिय डान्सर बन गयी। बॉस ने दीपा के साथ करीब एक घंटे से भी ज्यादा वक्त डान्स किया।

जब संगीत एकदम मंद लय में बज रहा था तब बॉस ने दीपा के अंग से अंग सटा कर बड़ा ही कामुक मुद्राएं करते हुए डान्स किया। मैं कहीं जा कर उन दोनों की नज़रों से ओझल हो गया ताकि दीपा और बॉस मुझे देख कर नर्वस ना हो जाए। मुझे बड़ा ही आश्चर्य हुआ की उस समय मेरी बीबी ने कोई विरोध नहीं किया और बॉस को पूरा सहयोग देते हुए गजब का डान्स किया।

डान्स खतम होने के बाद जब बॉस मेरी पत्नी का हाथ थाम कर मेरे सामने आये तब उन्होंने कहा, "दीपक, तुम बड़े लकी हो की तुम्हें दीपा जैसी पत्नी मिली है। वह एक गजब की डान्सर ही नहीं, एक सच्चे दिल की खूबसूरत इंसान भी है।" फिर मुड़ कर दीपा की और देख कर बोले, "दीपा, आज तुमने मुझ में जान डाल दी। मैंने सोचा भी नहीं था की मैं ऐसे डान्स कर सकता हूँ। मैंने तुम्हें नहीं, आज तुमने मुझे डान्स करना सीखा दिया। बल्कि अगर मैं कहूं की तुमने मुझे जीना सीखा दिया तो गलत नहीं होगा।"

बॉस की प्रशंसा सुन कर दीपा शर्मा गयी। उसने अपनी नजरें झुकाते हुए बॉस से कहा, "सर आप इतने अच्छे डान्सर हो। आपने मुझ जैसी अनाड़ी को भी डान्स करना सीखा दिया। इसके पहले मैंने कभी किसी के साथ डान्स नहीं किया।"

मेरे बॉस भी बेचारे सोच रहे होंगे की यह कैसी औरत है जो कभी खिलखिला कर हँसती है तो कभी शर्म के मारे लाल हो जाती है और अपनी नजरें झुका लेती है तो कभी पूरी गंभीरता से बिज़नेस के बारे में ऐसी सटीक बातें बताती है की उनके जैसे बिज़नेस के महारथी को भी अपने दांतों तले उंगलिया दबा कर दीपा की बातें बड़े ध्यान से सुननी पड़ती है।

बॉस हर रोज कम से कम तीन चार बार दीपा के बारे में जरूर पूछते और मौक़ा मिलने पर दीपा की तारीफ करते हुए न थकते।

बॉस ने एक बार मुझे और दीपा को घर पर डिनर के लिए आमंत्रित किया। उन के घर में उनकी पत्नी से हमारी मुलाक़ात हुई। बॉस का घर काफी बड़ा था और उसमें कई कमरे थे और आगे एक बढ़िया सा बगीचा भी था। बॉस की बीबी कुछ रिजर्व्ड नेचर की थी और बहुत कम बोलती थी। बॉस स्मार्ट और हैंडसम थे।

हमारे आते ही हमें बॉस ने हमें चाय और कुछ नाश्ता लेने को कहा। बॉस की बीबी तो हमारे आते ही हमारी औपचारिक मुलाक़ात करने के तुरंत बाद अपने कमरे में गायब हो गयी। मैं थोड़ा अचरज में पड़ गया जब मैंने बॉस की बीबी को देखा। बॉस की पत्नी की शकल दीपा से मिलती जुलती थी या वह मेरे मन का वहम था, कह नहीं सकता। पर काफी कुछ फर्क भी था दोनों में। दीपा के स्तन भरे हुए मस्त थे और उसके चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती थी। बॉस की बीबी पतली, गहनों में सजी, महंगे कपडे पहनी हुई, छोटी छोटी चूँचियों वाली और मेरे ख़याल में निहायत ही अरसिक अभद्र स्वभाव की थी। मुझे लगा की उसे हमारे आनेसे उन्हें कोई ख़ास ख़ुशी नहीं हुई थी, और उसे वह जाहिर करने में कोई झिझक नहीं दिखा रही थी।

जब बॉस खड़े हो कर हमें चाय देने लगे तो दीपा ने उन्हें बिठा दिया और खुद चाय देने के लिए खड़ी हुई। दीपा ने भी बॉस की बीबी का रवैया महसूस किया। उस दिन दीपा ने अनजाने में ही गले से काफी निचे तक जाता हुआ लौ कट ब्लाउज पहना था। दीपा के उदार स्तन ब्लाउज में से उभर कर बाहर निकल ने को जैसे तड़प रहे थे। जब दीपा ने झुक कर बॉस को चाय दी तो बॉस की आँखें दीपा के ब्लाउज के अंदर उसके उदार स्तन मंडल के दर्शन करने में ही जड़ सी गयी। जब दीपा ने बॉस की नजर की दिशा देखि तो आननफानन में चुन्नी ओढ़ कर उन्हें छुपाने की नाकाम कोशिश की।

चाय लेने के बाद बॉस और दीपा पहले घर के बारे में फिर मौसम के बारे में, बगीचे के बारे मैं उस समय की आर्थिक स्थिति और बिज़नेस के बारेमें और ऐसे कई विषय पर बातचीत में मशगूल हो गए। बॉस ने देखा की मैं कुछ बोर होने लगा था तब बॉस ने टीवी चालु किया और मैं अपना चाय का कप और कुछ बिस्कुट लेकर उस समय टीवी पर कोई अच्छा प्रोग्राम चल रहा था उसे देखने लगा।

बीबी के और मेरे वहाँ से हटते ही बॉस तो जैसे आझाद पंछी हो गए और दीपा से बिंदास बातें करने में लग गए। दीपा बातूनी तो थी ही। सही श्रोता मिल जाने पर उसे बोलने से रोकना बड़ा ही मुश्किल था। दीपा को मेरे बॉस के साथ खुले दिल से बात करने में कोई हिचकिचाहट नहीं महसूस हुई। बातें करते हुए अक्सर ही वह बॉस के कोई जोक पर अथवा किसी भी बात पर हँस पड़ती थी और बॉस उसे बड़ी प्रसन्नता से देखते ही रहते थे। मेरे बोस को दीपा की यह बात बड़ी पसंद आयी। बॉस और दीपा ने काफी इधर उधर की बातें की। वह तो वैसे ही सेल्स के आदमी थे, बातें बनाने में माहिर थे।

दीपा उनसे बातें करते हुए उतनी उत्साहित हो जाती की यह ख्याल किये बगैर की वह मेरे बॉस थे, दीपा कई बार बातों के जोश में बॉस का हाथ थाम लेती या उनकी जांघ के ऊपर या पीठ के ऊपर हलकी सी टपली लगा देती। दीपा के लिए वह आम बात थी पर शायद बॉस का इस के कारण क्या हाल हो रहा था वह मैं कुछ दूर बैठा उनकी नजर और उनके चेहरे के भाव देखा कर समझ सकता था। पर मेरी बीबी तो 'शौले' की बसंती की तरह बोले जा रही थी।

उसे अपनी बातों की व्यस्तता में बॉस की पैनी नजर, जो दीपा के ब्लाउज और ब्रा की सीमा को तोड़ते हुए स्तनों पर बार बार जाती रहती थी, उस की और देखने की शायद फुर्सत ही नहीं थी। बॉस भी बड़ी उत्सुकता से मेरी बीबी की बातों में बार बार हामी भरते हुए बड़ी उत्सुकता से सब कुछ देखते और सुनते जाते थे। बिच बिच में वह दीपा के विचारों की तारीफ़ करने लगते तो कई बार ऐसे सरल और पसंदीदा प्रश्न पूछते जिसका जवाब देने के लिए दीपा बड़ी ही उत्सुक और कई बार उत्तेजित भी हो जाती थी।

मुझे यह समझने में देर नहीं लगी की मेरे बॉस दीपा पर फ़िदा हो चुके थे और दीपा पर लाइन मार रहे थे। जब मैं टीवी देखने में उलझा हुआ लगता था तब मौका मिलते ही बातें करते हुए जैसे उत्सुकता से बॉस भी हलके से दीपा का हाथ थाम लेते थे। पर दीपा का बॉस का हाथ थामना और बॉस का दीपा का हाथ थामने में फर्क था। दीपा तो हाथ पकड़ कर छोड़ देती थी। पर बॉस दीपा का हाथ थामे रखते थे जब तक दीपा उसे अपने हाथों से छुड़ा ना लेती थी। मुझे लगा की शायद दीपा ने भी यह महसूस किया था। पर उसने उसको नजर अंदाज कर दिया। बॉस की नजरें दीपा के सुआकार कूल्हों पर और दीपा की उभरी हुई छाती पर अक्सर टिकी रहती थीं।

दीपा कुछ भी ना समझते हुए हँसती रहती थी और बातों पर बातें करे जा रही थी। कुछ देर बाद जब बॉस की बीबी आयी और उसने देखा की उस के पति दीपा से कुछ ज्यादा ही बात करने में जुटे हुए थे तब उसने सब को खाने के लिए डाइनिंगरूम में आने को कहा। तब कहीं जा कर उनकी बातों का दौर खत्म हुआ।

खैर दीपा के बातूनीपन से मुझे यह फायदा हुआ की मैं बॉस का और भी पसंदीदा बन गया। मुझे बॉस से कुछ ज्यादा ही मदद मिलने लगी। बॉस जब भी मुझे मिलते दीपा के बारे में जरूर पूछते।

उन दिनों दो बड़ी ही परिवर्तनशील घटनाएं हुईं जिन्होंने हमारे जीवन को एक नया ही मोड़ दे दिया।

दीपा के पिता को अचानक ह्रदय की बिमारी के कारण हॉस्पिटल में दाखिला हुआ और उसके लिए दीपा की फॅमिली को अतिरिक्त पांच लाख रुपये की जरुरत पड़ी। जब मेरी दीपा से बातचीत हुई तो मैंने कहा एक ही आदमी हमारी मदद कर सकता है और वह है बॉस। पर मुझे बॉस से पैसे मांगने में हिचकिचाहट हो रही थी। दीपा ने कहा की वह मेरे बॉस से बातचीत करेगी।

दूसरे दिन दीपा मेरे ऑफिस में आयी और बॉस की केबिन में जा कर उसने बॉस से अपने पिताजी के हार्ट अटैक के बारेमें बात की। दीपा की बात सुन कर बॉस का दिल पसीज गया। उन्होंने कहा, "दीपाजी, आप मुझे एक दिन का समय दीजिये। कल आपको मेरे साथ चलना होगा।"

दूसरे दिन बॉस दीपा को लेकर उनके बैंक में गए। दीपा को बड़ा आश्चर्य हुआ जब बॉस ने अपनी पंद्रह लाख रुपये की फिक्स्ड डिपॉज़िट तुड़वाकर उसमें से सात लाख रुपये दीपा के भाई के नाम ट्रांसफर किये। दीपा ने कहा, "सर, मुझे सिर्फ पांच लाख चाहिए।"

बॉस ने कहा, "हॉस्पिटल में बड़े खर्चे होते हैं। पता नहीं शायद जरुरत पड़ जाए। आप दो लाख और रख लीजिये। जरुरत पड़े तो इस्तेमाल करना वरना वापस कर देना।"

बॉस की बात सच्ची साबित हुई। दीपा के भाई ने कहा की बिल कुछ ज्यादा हुआ और एक लाख रुपया और लग गया। ऑपरेशन के बाद पिताजी के ठीक हो जाने पर वापस आ कर दीपा एक लाख रुपये का चेक लेकर एक बार फिर बॉस का शुक्रिया अदा करने हमारे ऑफिस में आयी।

उस समय दीपा बॉस की इतनी ऋणी हो गयी थी की उस दिन मेरी बीबी के पास बॉस का शुक्रिया अदा करने के लिए शब्द नहीं थे। ऑफिस में बॉस की केबिन में मेरे सामने मेरी बीबी दीपा बॉस के कंधे पर सर रख कर फफक फफक कर रो पड़ी। बॉस दीपा की पीठ पर अपना हाथ सहलाते हुए उसे ढाढस देने की कोशिश कर रहे थे। थोड़ा सम्हल ने के बाद दीपा ने जब पूछा की उन्हें वह छह लाख रुपये वापस कैसे करने होंगें।

बॉस ने कहा, " दीपा, मैं एक बिजनेसमैन हूँ। मैं अपने पैसे कभी नहीं छोड़ता। अभी दीपक को और आपको इस के बारे में सोचने की कोई जरुरत नहीं है। जब आप लोगों के पास अतिरिक्त राशि हो तो धीरे धीरे देते रहना। वैसे भी मेरे ख़याल से आप लोगों को यह पैसे वापस देने की जरुरत नहीं होगी, क्यूंकि मुझे पूरा भरोसा है की दीपक ऐसा काम करेगा की मैं दीपक के परफॉरमेंस इन्सेंटिव (कार्यक्षमता आधारित अधिकृत बोनस) में से अगले दो तीन सालों में ही यह पैसे वसूल कर लूंगा। आप इत्मीनान रखिये की यह पैसे मैं आप से ऐसे निकलवा लूंगा की आपको कमी भी नहीं पड़ेगी और मैं अपने पैसे भी वसूल लूंगा। पर मैं आपको इस की वजह से आपकी रोजमर्रा की जिंदगी में कोई भी परेशानी नहीं होने दूंगा। यह मेरा वादा है। अगर दीपक से दो तीन सालों में वसूल नहीं कर पाया तो मेरे पास और भी कुछ आईडिया हैं की यह पैसों से कहीं ज्यादा मैं आप दोनों से कमा लूंगा।"

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