दो सहेलियों की विकृत और वहशी हवस

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Two women enjoy sex with servant during reunion after years.
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दो सहेलियों की विकृत और वहशी हवस

लेखिका: रीना कँवर

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ये कहानी मैंने २००७ में पहले पोस्ट करी थी और अब रीडर्स के फीडबैक के हिसाब से थोड़ा रद्दोबदल करके रिपोस्ट कर रही हूँ |

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सिम्बा उस आलिशान कमरे के एक कोने में, कालीन बिछे फर्श पर सिकुड़ कर बैठा हाँफ रहा था और उसकी लंबी लाल ज़ुबान उसके जबड़े के किनारे से बाहर लटक रही थी। ये काले रंग का विशाल डोबरमैन कुत्ता थका हुआ लग रहा था और ये थकान बाहर फार्म में खरगोशों के पीछे भागने से नहीं थी बल्कि इसलिये थी क्योंकि उसके लंड और टट्टे ज़ाहिर रुप से अभी-अभी ही निचोड़ कर खाली किये गये थे। उसके टट्टे उसकी टाँगों के बीच में सिकुड़े हुए थे और उसका लंबा लंड फर्श पर लटका हुआ था। उसके लाल लंड का आगे का हिस्सा अभी भी उसके बालों से ढके खोल में से बाहर झाँक रहा था और उसका नंगा लाल लंड उसकी मनी से सना हुआ था। उसकी चमचमाती मनी की एक नाज़ुक सी डोरी उसके लंड की नोक से कालीन पर गिरी उसकी मनी के ढेर से मिल रही थी। ये विशाल कुत्ता थक कर चूर था पर अभी सो नहीं रहा था। उसकी आँखें खुली हुई थी और उसका एक कान चौकन्ना होकर खड़ा था और उसकी काली नाक उत्तेजना से हल्की सी फड़क रही थी। सिम्बा खुद तो खाली हो गया था पर उसका ध्यान अभी भी कमरे के बीच में बिस्तर पर चल रही हरकतों पर था, जहाँ शेरू अपनी बारी आने पर उसकी मालकिन को चोद रहा था।

कमरे के बिल्कुल पीछे बने छप्पर से कुल्हाड़ी चलने की आवाज़ लगातार आ रही थी और शाज़िया अब्बास जानती थी कि कुल्हाड़ी की आवाज़ के आते रहने का मतलब था कि उसका अरदली अभी भी लकड़ियाँ चीर रहा था और इस बात का खतरा नहीं था कि वो घर के अंदर आ कर बेडरूम के दरवाजे के बाहर से उसे वो करते हुए सुन या देख लेगा जो शाज़िया को बेहद अज़ीज़ था -- "कुत्तों से अपनी चूत चुदवाना और गाँड मरवाना!"

शाज़िया का शौहर भारतीय वायू सेना में विंग कमाँडर था और आजकल उसकी पोस्टिंग पूर्वी सीमा पर थी। हिमाचल में शिवालिक की पहाड़ियों में कसौली के पास उनका पुश्तैनी फार्म हाउज़ था और शाज़िया ज्यादातर यहीं अकेली रहती थी क्योंकि यहाँ तन्हाई मे वो ख़ुफ़िया तौर से कुत्तों से चुदवा सकती थी। पहले जब वो शहर में अपने शौहर के साथ रहती थी तो कई मर्दों से उसके नाजायज़ संबंध थे क्योंकि फितरत से ही वो चुदक्कड़ थी लेकिन पिछले दो साल से उसे कुत्तों के लंड ज्यादा भाते थे। वैसे भी उसे वायूसेना की कई सहुलियतें जैसे कि सरकारी जीप, अरदली वगैरह मुहैया थीं। कुत्तों के अलावा उसने अरदली और दूसरे मुलाज़िमों से भी जिस्मानी रिश्ते बना लिये थे पर कोई नहीं जानता था कि शाज़िया कुत्तों से चुदवाती है। शाज़िया को यक़ीन था की फार्म पर उसके साथ चौबीसों घंटे रहने वाला उसका अरदली, बिरजू भी इस बात से नावाक़िफ था।

अभी कुछ देर पहले ही पास की छावनी के क्लब में एक पार्टी से नशे में शाज़िया लौटी थी। एक ऑफिसर का ड्राइवर, शाज़िया को और उसकी जीप को फार्म तक छोड़ गया था। अपने आलिशान बेडरूम में पहुँच कर उसने अरदली बिरजू को बेडरूम के फॉयर-प्लेस में लकड़ी डाल कर आग जलाने को कहा था। उस वक़्त कुछ ही लकड़ियाँ कटी हुई थी जिनसे बिरजू ने आग शुरू की। चूंकि इतनी लकड़ियाँ ज़्यादा वक़्त नहीं चल सकती थी, इसलिए बिरजू घर के पीछे बने छप्पर में लकड़ियाँ काटने चला गया।

शाज़िया की चूत में तो आग लगी ही हुई थी और ये मौका भी मुनासिब था। बिरजू के बाहर जाते ही शाज़िया ने सिम्बा को पहले बुलाया और कपड़े उतार कर वहीं कालीन पर अपने हाथों और घुटनों के बल झुक गयी थी। फिर उसने सिम्बा को अपनी पीठ और चूत्तड़ों पर चढ़ा कर अपनी चूत में उसे धुँआधार चुदाई के लिए फुसला लिया था। जब तक सिम्बा शाज़िया की चूत में अपना लंड पेलता रहा तब तक शेरू भी भौंकता हुआ, अपना सख़्त लंड झुलाता उनके इर्द-गिर्द उछलता हुआ बेसब्री से अपने मौके का इंतज़ार करने लगा। बीच-बीच में शेरू कभी शाज़िया का मुँह चाटता और कभी शाज़िया के पीछे जा कर उसके सैंडलों और पैरों को चाटने लगता। शाज़िया के पैर और हाई-हील वाले सैंडल, शेरू के थूक से सराबोर हो गये थे।

जैसे ही सिम्बा ने अपने टट्टों का सारा माल शाज़िया की चूत में खाली किया था, शाज़िया उसका लंड अपनी चूत में से निकाल कर खड़ी हो गयी थी। फिर शेरू के थूक से भीगे सैंडल पहने हुए ही बिस्तर पर आ गयी थी जहाँ वो इस वक़्त शेरू से दूसरे अंदाज़ में अपनी पीठ के बल लेट कर चुदवा रही थी। शेरू भी सिम्बा जैसा ही काफी बड़ा और काले रंग का था और वैसा ही जोशीला और ताकतवर था।

शाज़िया का खूबसूरत और सुडौल जिस्म बिस्तर पर पसरा हुआ था, उसकी कमर कमान की तरह मुड़ी थी और उसके घुटने मुड़े हुए थे। शाज़िया की लजीज़ जाँघें, चोदते हुए कुत्ते के दोनों तरफ फैली हुई थीं और उसने अपने कुल्हे ऊपर को ठेले हुए थे जिससे कि उस चुदक्कड़ कुत्ते का लंड पूरी तरह उसकी चूत मे समा सके। शाज़िया के काले, लंबे घने बाल बिस्तर पर फैल गये थे और उसके मादक रसीले होठों पर मस्ती भरी मुस्कान और सिसकारियाँ थी।

शेरू की चुदाई की ताल बाहर कुल्हाड़ी की आवाज़ के साथ सध गयी लगती थी। "खाट... खाट... खाट" कुल्हाड़ी की आवाज़ आती जब कुल्हाड़ी की तेज़ धार लकड़ी के लट्ठों को टुकड़ों में चीरती और जब भी बाहर यह लकड़ी चीरने की आवाज़ ठंडी और तेज़ हवा को चीरती, तो शेरू अपना लंड नशे और वासना में चूर शाज़िया की चूत में इतनी ताकत से ठेलता कि उसका लंड भी शाज़िया की चूत को दो हिस्सों में चीरता हुआ महसूस होता।

लेकिन शाज़िया की लचीली चूत भी उस चीते के आकार के कुत्ते का पूरा लंड लेने के काबिल थी, जितना भी वो उसकी चूत में ठेल सकता था। शाज़िया को तो बस चूत मे विशाल वहशी लौड़े की चाह थी।

खुद भी किसी जानवर की तरह ही सिसकती और रिरियाती हुई शाज़िया उस कुत्ते के धक्कों का उतने ही जोश और ताकत से जवाब दे रही थी। जैसे ही वो कुत्ता अपना लंड उसकी चूत में कूटता, शाज़िया भी अपनी सैंडलों की ऐड़ियाँ बिस्तर में गड़ाकर अपनी चूत आगे ढकेल देती और जब वो अपना लंड बाहर खींचता तो शाज़िया भी अपने भारी चूत्तड़ घुमा-घुमाकर अपनी चूत उस खिसकते हुए लंड पर मरोड़ते हुए अंदर-बाहर की रगड़ में और भी इज़ाफ़ा देती।

"ओहहह!" शाज़िया चींखी और उसने अपने चूत्तड़ हवा में उठा दिये जब शेरू ने एक ख़ास मख़सूस धक्का लगाकर अपना लंड उसकी चूत की गहराइयों में ठेला।

शाज़िया की चूत के आसपास का हिस्सा उसकी चूत से बाहर बह रहे चूत-रस के झाग से भीग गया था। जब भी वो कुत्ता अपना लंड शाज़िया की चूत में ठाँसता, तो और भी ज्यादा चूत-रस बह कर बाहर निकल आता। चूत से निकला वो चिकना रस शाज़िया की झटकती जाँघों से बहता हुआ उसकी गाँड के छेद में रिस रहा था।

शाज़िया ने अपनी कमर उठा कर अपनी चिकनी जाँघें कुत्ते की झबरी पिंडुलियों पर जकड़ लीं और फिर से अपनी टाँगें चौड़ी खोल कर अपनी चूत में लंड ठेलते हुए उस जोशीले कुत्ते को खुली छूट दे दी। कुत्ते का लाल रंग का भारी लंड जड़ तक शाज़िया की चूत में गायब हो गया। ढेर सारी मनी से लबालब भरे हुए उस कुत्ते के ठोस और बड़े टट्टे शाज़िया की गाँड पे टकराने लगे।

फिर उसने अपना लंड इतना बाहर खींचा कि सिर्फ उसके लंड का दहकता, गर्म, आगे का हिस्सा ही शाज़िया की चूत में घुसा था। उसके लंड की डाली चूत-रस से भीगी हुई थी और वो चूत-रस लंड की डाली पर मोतियों की डोरी जैसा जगमगा रहा था। शेरू ने फिर अपना लंड अंदर ठेला तो शाज़िया की चूत से गाढ़ा सा मलाईदार रस निकला और उसके झटकते कुल्हों पे फैल गया और उस गाढ़े रस की धार उसकी चिकनी जँघों से नीचे बहने लगी।

शाज़िया की ठोस गाँड दाँय-बाँय झूलने लगी और उसका सपाट चिकना पेट ऊपर-नीचे उठने लगा। उसकी चूत तो जैसे कुत्ते के ज़बरदस्त चोदू लंड पर पिघलने लगी थी। शाज़िया अभी एक बार पहले झड़ चुखी थी जब सुल्तन ने फर्श पर उसकी पीठ पर चढ़ कर कुत्तिया बना के चोदा था और अब वो फिर से शेरू के हैवानी लंड पर झड़ने को तैयार थी।

शाज़िया उन खुशकिस्मत औरतों में से थी जो बार-बार बिना रुके सिलसिलेवार झड़ सकती थी, जब तक कि उसकी चूत में एक कड़क लंड धड़कता और चोदता रहे - फिर वो लंड चाहे इंसान का हो या किसी जानवर का।

शेरू के पाशविक अंगों में रोमँच और जोश बढ़ने लगा तो वो और भी फुर्ती से शाज़िया को चोदने लगा। वो भौंकते हुए बीच-बीच में कराह रहा था। उसके बड़े-बड़े चमकते हुए सफ़ेद दाँत नुमाया हो रहे थे और उसके जबड़ों से उसकी राल टपक कर शाज़िया की चूचियों और पेट पर गिर रही थी।

शाज़िया के कानों में खून तेजी से दौड़ने लगा और उसका दिल बेहद ज़ोरों से धड़कने लगा जब हवस और मस्ती की लहरें उसके जिस्म में से दौड़ती हुई उसकी थरथराती जाँघों और फिर उसकी चूत में बिजली के करंट की तरह बहने लगी।

मगर शाज़िया का कुछ ध्यान बाहर लकड़ियों को चीरती कुल्हाड़ी की आवाज़ पर भी था। वो अपनी चुदाई पर पूरी तरह से तवज्जह नहीं दे पा रही थी क्योंकि वो अपनी चुदने की बेकरारी में दरवाजे की चिटकनी बंद करना भूल गयी थी। दरवाजा सिर्फ ऐसे ही ढका हुआ था और वो जानती थी कि बहुत ही शर्मनाक हालत होगी अगर उसका अरदली, बिरजू, फॉयर-प्लेस में डालने के लिये लकड़ियाँ ले कर दरवाजा खोलकर अंदर आ गया और शाज़िया को अपनी चूत में कुत्ते का लंड लिये हुए चुदवाते हुए देख लिया। वो शायद समझ नहीं पायेगा और अगर उसने शाज़िया के इस नापाक शौक का पर्दाफाश कर दिया तो उसकी ज़िंदगी ज़हन्नुम बन जायेगी।

चाहे वो यहाँ अलग-थलग फार्म में रहती थी मगर फिर भी सामाजिक तौर पर काफी एक्टिव थी। पास की छावनी में आर्मी से मुताल्लिक, अफवा जैसी कई कल्याण संगठनों की वो एक्टिव मेम्बर थी। कई आर्मी अफसरों की बीवियों से उसका मेल जोल था और छावनी में आयोजित पार्टियों और दूसरे आयोजनों में उसका हर रोज़ का आना जाना था। कुत्तों से उसके जिस्मानी रिश्ते अगर उसके जानने वाले लोगों पर उजागर हो गये तो उसकी बहुत बदनामी होगी और वो कानूनी शिकंजे में भी फंस सकती थी।

शेरू का लंड उसकी रसीली चूत में फुंफकार रहा था और दलदल में फिसलती पनडुब्बी कि तरह शाज़िया की चूत की चिकनी सुरंग में सरक रहा था। उसके लंड का मोटा सुपाड़ा शाज़िया की चूत के मलाईदार गाढ़े रस में गोते से लगा रहा था। जब शेरू पीछे की तरफ झटका लेता तो उसके लंड पे जकड़े शाज़िया की चूत के होंठ लंड के साथ खिंच जाते और ऐसा लगता जैसे कि चूत पलट कर उल्टी हो गयी हो।

कुल्हाड़ी लकड़ी के लट्ठे पर ढक से पड़ी और कुत्ते का लट्ठे जैसा लंड शाज़िया की चूत में ढक से पड़ा। शेरू ऐसे हाँफ रहा था जैसे कि भाप का इंजन धड़क रहा हो और शाज़िया उससे भी जोर से हाँफ रही थी। शाज़िया के फेफड़ों के फैलने से उसकी भारी और ठोस चूचियाँ ऊपर ऊठ कर फूल गयी थीं और उसके कडक़ गुलाबी निप्पल बाहर तन कर किसी वॉल्व की तरह ऐसे खड़े थे जैसे कि उनके ज़रिये चूचियों में हवा भरी गयी हो। शेरू भौंक रहा था और शाज़िया भी जोर-जोर से सिसक रही थी। शेरू अब शाज़िया को इतनी तेजी से चोद रहा था कि कुल्हाड़ी की हर आवाज़ के बीच में उसका लंड कम-से-कम दो बार शाज़िया की चूत में ठूंस रहा था।

शाज़िया को लगा कि अब जल्दी ही कुत्ते की मनी अपनी चूत में निचोड़ लेनी चाहिए क्योंकि बिरजू का लकड़ियाँ चीरने का काम कहीं पूरा ना होने वाला हो। वो अपने तजुर्बों से जानती थी कि एक बार कुत्ते के लंड की गाँठ उसकी चूत में खिंच कर अटक गयी तो उसे पूरा झड़ने के पहले चूत से निकालना नामुमकिन होगा। वैसे उसे अपनी चूत में उन कुत्तों के लंड की गाँठ के फँसने में बहुत मज़ा आता था क्योंकि उसे कुत्ते की मनी से भरी चूत बहुत पसंद थी।

शेरू इतनी जोर-जोर से अपना लंड पेल रहा था कि बालों से ढके उसके पुट्ठे काला धब्बा-सा लग रहे थे। जब वो वो अपना लंड अंदर को ठाँसता तो उसकी रीड़ ऐंठ कर मूड़ सी जाती। शाज़िया को इस चुदाइ में बहुत ही मज़ा आ रहा था और वो इसे जारी रखना चाहती थी लेकिन वो जानती थी कि इस चुदाई को खुशगवारी से मज़ेदार अंजाम देना ज्यादा बेहतर होगा, क्योंकि बिरजू के अचानक लौट कर दरवाजा खटखटाने या सीधे अंदर ही आ जाने से झड़ने की लुत्फ़ अन्दोज़ी में दखल पड़ता।

शाज़िया पूरी महारत से कुत्ते के लंड को चोदने लगी। उसकी चूत की भीगी दीवारें कुत्ते के लंड के सुपाड़े और डंडे के हर बेशक़ीमती हिस्से पर जकड़ कर चिपक गयीं। उसकी चूत की पेशियाँ कुत्ते के लंड को कस के जकड़ के दुहने लगीं।

जब शाज़िया की चूत उसके लंड को कस कर निचोड़ने लगी तो शेरू मस्ती में भौंकने और गुर्राने लगा। वो जोर-जोर से लंबे झटकों के साथ अपना लंड शाज़िया की चूत में हाँकने लगा और उसके टट्टे, हवा भरे गुब्बारों की तरह झूल रहे थे। उसका लंड चूत के अंदर फूलने लगा तो शाज़िया समझ गयी कि अब किसी भी लम्हे वो कुत्ता अपनी मनी उसकी चूत में इख़राज कर सकता है। शाज़िया ने अपने कुल्हों को झटक कर अपनी चूत में लंड के दाखिल होने का ऐंगल बदला ताकि अंदर बाहर होते हुए उस लोहे जैसे सख्त लंड की डाली का हर हिस्सा उसकी दहकती क्लिट पर रगड़े। वो खुद भी झड़ने की कगार पर थी लेकिन उसने खुद को रोका हुआ था क्योंकि वो झड़ने से पहले कुत्ते की मनी अपनी चूत में छूटता हुआ महसूस करना चाहती थी।

शाज़िया का चेहरा बेहद जोश और मस्ती से ऐंठा हुआ था, आँखें सिकुड़ गयी थीं और उसके होंठ ढीले पड़ कर काँप रहे थे। उसकी पलकें फड़फड़ाने लगी और उसकी ज़ुबान की नोक उसके खुले होंठों के बीच से बाहर सरक आयी। वो कुत्ता-चोद औरत इस वक़्त जन्नत में थी।

"कम ऑन", शाज़िया सिसकी, "दाग दे अपने लंड का माल मेरी चूत में.... साले... कुत्तिया की बेवकूफ औलाद!"

शेरू भी आज्ञाकारी कुत्ता था। वो भेड़िये की तरह चींखा और उसके भारी टट्टे जैसे फट पड़े हों। उबलती हुई गाढ़ी मनी उसके लंड में से ज़ोर से दौड़ती हुई उसके मूतने वाले छेद से मलाईदार सैलाब की तरह छुटने लगी और शाज़िया की चूत कुत्ते की गरम मनी से लबालब भरने लगी।

"आआआंआंआंईईईईईईंईंईंईं" शाज़िया मस्ती और लज़्ज़त में जोर से चींखने लगी। अपनी दहकती चूत मे गिरते हुए कुत्ते के लंड की मनी शाज़िया को इतनी गर्म और गाढ़ी लग रही थी जैसे पिघला हुआ सीसा हो। शाजिया की चूत भी कुत्ते के लंड पर ऐसे पिघलने लगी जैसे कि जलती हुई बाती पर मोमबत्ती का मोम पिघलता है।

शेरू उसे निरंतर चोदता रहा और हर धक्के के साथ और मनी अंदर छोड़ देता। शाज़िया के जिस्म में भी जब ऑर्गैज़म की लहर दौड़ने लगी तो वो भी कुत्ते के नीचे झटके खाने लगी और उसकी गाँड और चूतड़ बेहद ज़ोर-ज़ोर से थिरकते हुए नाचने करने लगे। बेइंतेहा लुत्फ़-अन्दोज़ मस्ती भरी कई सारी ऊँची लहरें तेज़ी से शाज़िया के जिस्म में दौड़ने लगीं और फिर जैसे आपस में मिल कर एक ठोस रस्सी में बदल गयी और उसकी चूत को चीरने लगी।

ऐसा महसूस हो रहा था कि वो कुत्ता शाज़िया की चूत में झड़ना बंद ही नहीं करेगा। उसके टट्टे जैसे अथाह थे और उसकी मनी बेहिसाब।

शेरू जोर से भौंका और अपनी ताल खो दी। उसकी पिछली टाँगें डगमगाने लगीं और शाज़िया की चूत में उसके धक्के भी रह-रहकर डावांडोल होने लगे। उसका एक झटका चूकता, फिर वो दो झटके लगाता और फिर अगला चूक जाता। उसके टट्टे अब नीचे लटकने लगे थे जैसे कि पिचकी हुई थैलियाँ हों जो अभी-अभी शाज़िया की चूत में खाली हुई थीं। शाज़िया की उठी हुई गाँड पर पहले की तरह चोट मारने की जगह अब वो टट्टे झूल रहे थे।

उसका लंड अभी भी सख्त था और शाज़िया की चूत में चुदाई जारी रखे हुए था लेकिन उस की मनी अब खत्म हो चुकी थी। हाँफता और राल टपकाता हुआ वो सुस्त पड़ने लगा।

शाज़िया अपनी चूत को उसके लंड पर चोदना जारी रखती हुई अपनी चूत की मस्ती भरी बची हुई ऐंठन मिटा रही थी और मनी के मोतियों की चंद आखिरी बूँदें निचोड़ रही थी। जब शेरू बिल्कुल रुक गया तो शाज़िया ने अपने सैंडल की ऊँची ऐड़ी बिस्तर में गड़ाकर उसके सहारे अपनी चूत कुत्ते के लंड की जड़ तक ठोक दी और चूत की दीवारों को लंड पर जकड़-जकड़ कर मनी के बचे हुए कतरे दुहने लगी और अपनी क्लिट की आखिरी मीठी-सी सनसनाहट मिटाने लगी।

शाज़िया ने वापस खुद को बिस्तर पर पीठ के बल गिरा दिया और अपनी बाँहें और टाँगें फैला कर पसर गयी। उसकी आँखें फड़फड़ा रही थीं और वो जन्नती सुकून से मुस्कुरा रही थी।

कुत्ते ने अपना ज़ाया हुआ लंड शाज़िया की चूत से धीरे से बाहर खींचा। एक आखिरी लंबे लम्हे के लिये उसके लंड को चूत मे पकड़ कर निचोड़ते हुए शाज़िया की चूत की फाँकों ने उसके लंड को नंगी गाँठ के बिल्कुल पीछे से गिरफ्तार कर लिया। फिर उसने वो लंड रिहा कर दिया। कुत्ते के लंड की मोटी-सी गाँठ तड़ाक करके चूत में से बाहर निकली जैसे शैंपेन की बोतल से डाट छूटती है। शेरू धीरे से कराह कर बिस्तर से नीचे कूद गया। उसका लंड अभी भी ऊपर-नीचे हिचकोले खा रहा था और अभी भी आधा-सख्त था लेकिन उसके टट्टे बिल्कुल मुर्झा गये थे। लंड के छोर से उसकी मनी और शाज़िया की चूत का रस कालीन पर टपक रहा था।

शाज़िया लालसा से टकटकी लगाये उसे घूरती हुई मुस्कुराने लगी। वो अच्छी तरह जानती थी कि ज़रा सा चूस कर वो उस भयानक लंड को वापिस दनदनाता छड़ बना सकती थी। फिर उसने कमरे के कोने में सिम्बा की तरफ नज़र घुमायी और देखा कि कुछ देर पहले निचुड़ा हुआ उसका लंड नये जोश और ताकत का पुर-उम्मीद इशारा दे रहा था।

शाज़िया की इच्छा हुई कि काश उसके पास इन दोनों कुत्तों को फिर से चोदने का वक़्त होता। लेकिन तभी कुल्हाड़ी के आखिरी वार की आवाज़ आयी और उसके बाद बाहर सन्नाटा हो गया। शाज़िया ने खुद को समझाय़ा कि उसे कुत्तों से चुदवाने के लिये अगले मौके का इंतज़ार करना पड़ेगा।

अपनी इस खूफिया और वाहियात चुदाई के मलाईदार सबूत को छिपाने के लिये शाज़िया ने बिस्तर से उतर कर अपने नंगे सुडौल जिस्म पर छोटा सा रेश्मी गाऊन डाल लिया। कुत्तों की गाढ़ी मनी और उसकी खुद की चूत के रस के मिश्रण ने उसकी चूत पर झाग सा फैला रखा था और उसकी अंदरूनी जँघों को भी भिगो रखा था। इसे छिपाने के लिए शाज़िया ने गाऊन के फ्लैप अपने चारों ओर खींच लिए। उसे महसूस हो रहा था जैसे कि उसका जिस्म गाऊन के नीचे दमक रहा था। जब वो चली तो उसे लगा कि वो अपनी चूत में कुत्तों की मनी की 'पिच पिच' सुन सकती थी।

"चूतिये साले!" शाज़िया ने मन में कहा। "इन चोदू कुत्तों ने कमज़-कम एक बाल्टी मनी तो मेरी चूत में आज डाल ही दी होगी। अगर कुत्ते की मनी हवा से हल्की होती तो मैं अभी बादलों में उड़ रही होती!" इसी लिए तो कुत्तों की खुराक का खास ख्याल रखा जाता था। दूध, मीट, अंडों के अलावा बादाम, काजू, अखरोट वगैरह सूखे मेवे हर रोज़ कुत्तों की खुराक में शमिल थे।

फिर उसने अपने सुंदर चेहरे को ठीकठाक करके संजीदा और नरम भाव लाये और अपने अरदली बिरजू का कमरे में लकड़ियाँ ले कर आने का इंतज़ार करने लगी। वो बिरजू से कईं बार चुदवा चुकी थी पर चुदाई के अलावा बाकी वक़्त उनका रिश्ता बकायदा आम नौकर-मालकिन का ही था। जब शाज़िया का मन हो तभी वो उसके साथ चुदाई कर सकता था। बिरजू को खुद से चुदाई की पहल करने की छूट नहीं थी। शाज़िया उस पर अपना रौब और इख़्तियार बनाये रखती थी और उसके साथ नार्मल और संजीदा रहती थी। बिरजू को उसे 'मैडम' कह कर ही बुलाना पड़ता था लेकिन इसके बिल्कुल उल्टा, चुदाई के वक़्त शाज़िया का मुख्तलिफ अंदाज़ होता था। चुदाई के वक्त वो एक गर्म राँड की तरह पेश आती थी और उस वक़्त मैडम नहीं, बल्कि गंदी गंदी गालियाँ पसंद करती थी।

कुत्तों से चुदने के बावजूद इस वक्त शाज़िया का दिल और चूत दोनों कुछ ज्यादा दरियादिली महसूस कर रहे थे। शायद वो आज बिरजू को भी चुदाई का मौका दे दे। यही सोच कर शाज़िया ने अपनी टाँगों के बीच लगी कुत्तों की मनी और अपनी चूत रस की लिसलिसी आमेज़िश को अपने हाथ से पोंछा और फिर अपने हाथ पर से उस आमेज़िश को बड़े चाव से अपनी ज़ुबान से चाटने लगी।

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शाज़िया के बेडरूम के पीछे छप्पर में बिरजू ने कुल्हाड़ी नीचे करके ज़मीन पर रखी। लकडी के टुकड़े आसपास बिखरे पड़े थे। बिरजू सिर्फ दो दिन के लिये पर्याप्त लकड़ी चीरने के लिये आया था लेकिन उसने सप्ताह भर के लिये पर्याप्त लकड़ियाँ चीर ली थीं। वास्तव में लकड़ियाँ चीरते वक्त बीच में उसे शेरू के भौंकने और कराहने की आवाज़ आ गयी थी और वो समझ गया था कि शाज़िया मैडम फिर कुत्तों से चुदवा रही है। वो इस हकीकत से वाकिफ़ था कि उसकी मालकिन "कुत्ता-चोद" थी। बिरजू को इससे कोई तकलीफ़ नहीं थी बल्कि जब वो छिप कर शाज़िया को कुत्तों से चुदते देखता था तो बहुत उत्तेजित होता था। इसके अलावा शाज़िया उससे भी हफ्ते में चार-पाँच बार चुदवा लेती थी जिसके लिए वो शुक्रगुज़ार था।

बिरजू कुछ देर वहीं खड़ा रहा जिससे शाज़िया को कुत्तों को चुदाई के बाद व्यवस्थित होने का पर्याप्त वक़्त मिल जाये। बिरजू ऊँचे कद का हट्टा-कट्टा २२ वर्ष का जवान लड़का था और उसके पास दमदार बड़ा लंड था जो इस वक़्त उसकी पैंट में ठोकर मार कर बाहर आने के लिए उतावला हो रहा था। उसका लंड उसके हाथ में मौजूद कुल्हाड़ी की तरह सख्त था और बिरजू को लगा कि वो कुल्हाड़ी की जगह इतने सख्त लौड़े से भी लकड़ियाँ चीर सकता था। लेकिन उसे उम्मीद थी कि शाज़िया मैडम कुत्तों के साथ-साथ शायद उस पर भी मेहरबान हो जाये। बिरजू का तजुर्बा था कि जब भी शाज़िया शराब के नशे में होती थी तो उसकी चुदाई की भूख काफी बढ़ जाती थी और आज भी शाज़िया को नशे की हालत में ही किसी का ड्राइवर घर तक छोड़ कर गया था। इस वजह से उसे काफी उम्मीद थी कि उसे मुठ मार कर लंड को शांत नहीं करना पड़ेगा। बिरजू ने कुल्हाड़ी छोड़ी और लकड़ी के थोड़े से टुकड़े समेट कर शाज़िया के बेडरूम की तरफ बढ़ गया।

जब बिरजू ने दरवाज़ा खटखटाया तो उस वक़्त शाज़िया बेडरूम में बने छोटे से बार के पास खड़ी एक ग्लास में वोडका उड़ेल रही थी। शाज़िया ने वहीं से उसे दरवाज़ा खोल कर अंदर आने के लिए आवाज़ दी। लकड़ियों के टुकड़ों का गट्ठा उठाये बिरजू अंदर आया और शाज़िया पर एक नज़र डाल कर फॉयर-प्लेस की तरफ बढ़ गया और उसमें कुछ लकड़ियाँ डाल कर आग ठीक करने लगा।

दोनों कुत्ते बिरजू को देख कर खड़े हो गये। बिरजू ने गर्दन घुमा कर उन पर नज़र डाली। उनके लंड के सिरे चिपचिपे दिख रहे थे और उनके लंड के बालों वाले बाहरी खोल भी चूत रस से लिसड़े हुए थे। वो जब खड़े हो कर उम्मीद भरे मन से शाज़िया की तरफ पीछे घूमा। शाज़िया ने दो घूँट में वोडका का आधा भरा ग्लास खाली किया और बिरजू को देख कर मुस्कुराई।

शाज़िया को बिरजू की पैंट में उसके लंड का उभार साफ नज़र आ रहा था। उसकी पैंट मे उसके हलब्बी लंड का उभार इतना बड़ा था कि उसका कठोर लंड जैसे पैंट के कपड़े को चीर कर बाहर निकलने की धमकी दे रहा था। शाज़िया मुस्कुराती हुई उसकी तरफ बढ़ी। उसकी चाल नशे के कारण डगमगा रही थी। बिरजू ने देखा कि शाज़िया ऊँची हील की सैंडल में थोड़ी लड़खड़ा रही थी और आँखें भी मदहोश लग रही थी। एक बार बिरजू को लगा कि कहीं शाज़िया उन सैंडलों में नशे के कारण अपना संतुलन न खो दे लेकिन वो अपनी जगह ही खड़ा रहा क्योंकि वो किसी प्रकार की पहल कर के शाज़िया को गुस्सा नहीं दिलाना चाहता था। इस वक़्त शाज़िया के रंग-ढंग देख कर उसकी उम्मीद विश्वास में बदलने लगी थी।

"क्यों साले! ये अपनी पैंट के सामने कुल्हाड़ी दबा रखी है क्या तूने?" शाज़िया कुटिल मुस्कान के साथ उसके उभार को घुरती हुई उसी बेशर्मी से बोली जैसे की वो हमेशा चुदाई के वक्त होती थी।

फिर शाज़िया ने उसके सामने आ कर उसके गले में एक बाँह डाली और दूसरे हाथ से उसके पैंट की ज़िप नीचे करने लगी लेकिन लंड के उभार के ऊपर से ज़िप खींचने में उसे थोड़ी दिक्कत हुई। ज़िप नीचे होते ही बिरजू की पैंट का आगे से चौड़ा मुँह खुल गया और उसका लंड ऐसे लपक कर बाहर निकला जैसे किसी राक्षस ने गुस्से में भाला फेंका हो। शाज़िया की आँखें चौड़ी हो गयीं। इस लंड से उसने कितनी ही बार चुदाई की थी लेकिन शाज़िया ने कभी भी इसे इतना फूला हुआ और इतना सख्त नहीं देखा था। उसे देख कर शाज़िया की चूत थरथराने लगी।

शाज़िया ने अंदर हाथ डाल कर बिरजू के टट्टे भी बाहर खींच लिए और अपनी चमकती आँखों के सामने उसके हलब्बी चुदाई-हथियार को पूरा नंगा कर दिया। यकीनन काफी हवस-अंगेज़ नज़ारा था। बिरजू के लंड का बड़ा सुपाड़ा फूल कर जामुनी रंग कुकुरमुत्ते के आकार का लग रहा था। उसके लंड की डाली भी खूब लंबी और मोटी थी और उस पर शाज़िया की अँगुलियों जितनी मोटी, धड़कती हुई काली नसें उभरी हुई थीं। उस मोटी-ताज़ी मांसल मिनार की जड़ में गुब्बारों की तरह फूले हुए उसके टट्टे थे।