दो सहेलियों की विकृत और वहशी हवस

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"ऊऊऊऊहहहह" शाज़िया ने रोमाँच में गहरी साँस ली।

शाज़िया बेइंतेहा चुड़क्कड़ थी। उसकी चूत चाहे कितनी बर भी चुद ले, चुदास हमेशा बरकरार रहती ही रहती थी। हालांकि वो अभी ही दोनों कुत्तों के लौड़ों पर जम कर झड़ी थी, लेकिन अब वो फिर अपने अरदली के मांसल लंड से अपनी चूत भरने को बेक़रार हो रही थी।

दोनों कुत्ते हल्के से भौंके। उन मूक जानवरों को भी आभास हो गया था कि उस कमरे में अभी और चुदाई होने वाली है। बिरजू की तरह उन दोनों को भी अपनी मालकिन की चूत किसी से बाँटने में दिक्कत नहीं थी।

हालांकि बिरजू को शाज़िया के कुत्तों से चुदाई करने से कोई दिक्कत नहीं थी पर वो शाज़िया को खुद चोदते हुए कुत्तों की मौजूदगी नहीं चाहता था। उसे पता था कि कुत्ते कितने उत्तेजित हो सकते थे उसे डर था कि कहीं गल्ती से उनमें से कोई कुत्ता अपना लंड उसकी गाँड में ना पेल दे।

बिरजू ने कुत्तों को बाहर जाने का आदेश दिया। दोनों कुत्ते बेमन से बेडरूम के बाहर जाने लगे। उनके आधे-सख्त लंड अभी भी उनके नीचे झूल रहे थे। शाज़िया उम्मीद कर रही थी कि बिरजू कुत्तों के लंड के हालत देखकर कहीं जाहिर मतलब ना समझ जाये। लेकिन बिरजू की नज़रें कुत्तों की बजाये शाज़िया पर थीं। फिर शाज़िया को लगा कि कहीं मनी से चिपचिपी जँघों और चूत को देखकर उसे शक ना हो जाये। उसने अपने गाऊन में हाथ डाल कर एक बार फिर अपनी चूत ओर जाँघों पर फिराया। फिर उसने अपना गाऊन ज़मीन पर गिरा दिया और अपना एक हाथ अपने पेट पर फिराती हुई दूसरे हाथ से अपनी अंदरूनी जाँघों को सहलाने लगी। उसकी चूत का रस उसके जिस्म पर चमक रहा था और शाज़िया की वाहियात विकृत करतूत का सुराग, कुत्तों के लंड की मनी, उस चूत रस में छिपी हुई थी शाज़िया बिस्तर पर अपनी कुहनियों के सहारे पीछे को झुक कर अपनी टाँगें फैला कर बैठ गयी।

बिरजू भी शाज़िया के पास आ गया और अपनी मुट्ठी अपने लंड की जड़ में कस दी जिससे उसके लंड का सुपाड़ा आलूबुखारे की तरह दमकने लगा। शाज़िया के लिए यह मुँह में पानी लाने वाला नज़ारा था। वो आगे झुकी तो उसके लंबे बाल बिरजू के पेट और जाँघों पर गिर गये। शाज़िया ने अपनी ज़ुबान लंड के सुपाड़े पर फिरायी।

"उम्म्म... यम्मी", वो बिल्ली की तरह घुरगुरायी।

"हाँ... चूसो मैडम... उम्म... मेरा मतलब चूस साली कुत्तिया", बिरजू सिसका। शाज़िया उसका आलूबुखारे जैसा पूरा सुपाड़ा मुँह में ले कर चूसने लगी। शाज़िया की चुस्त और फुर्तीली ज़ुबान बिरजू के फूले हुए सुपाड़े पर फिसलने और सुड़कने लगी। उसकी ज़ुबान बीच में कभी सुपाड़े की नोक पर फिरती और कभी उसके मूतने वाले छेद को टटोलती। अपने मुँह में मज़ी (प्री-कम) का ज़ायका महसूस होते ही शाज़िया की भूख और बढ़ गयी। जब वो उसके सुपाड़े के इर्द-गिर्द बहुत सारी राल निकालने लगी तो उसका थूक लंड की छड़ पे नीचे को बहने लगा। शाज़िया का सिर किसी लट्टू की तरह बिरजू के लंड पर घूम रहा था।

बिरजू की गाँड अकड़ गयी और धक्के लगाती हुई लंड को शाज़िया के मुँह में भोंकने लगी। शाज़िया जब चूसती तो उसके गाल अंदर को पिचक जाते और जब वो उसके लंड पर फूँकती तो गाल फूल जाते। शाज़िया लंड के सुपाड़े पर पर बहुत ज़्यादा मिक़दार में राल निकाल रही थी और बिरजू के मज़ी से मिला हुआ शाज़िया का बहुत सारा थूक नीचे बह रहा था। बिरजू के मज़ी की खुशबू कुत्तों की मनी जैसी तेज और भारी नहीं थी लेकिन शाज़िया को वो ही लज़ीज़ लग रही थी।

बिरजू के लंड को चूसते हुए शाज़िया के काले बालों का पर्दा बिरजू के लंड और टट्टों पर पड़ा हुआ था। लंड के ज़ायके का मज़ा लेते वक्त शाज़िया के मुँह से रिरियाने की आवाज़ निकल रई थी। बिरजू के दाँत आपस में रगड़ रहे थे और उसका चेहरा उत्तेजना से ऐंठा हुआ था। शाज़िया का सिर तेजी से लंड पर ऊपर-नीचे डोलने लगा और वो और ज़्यादा लंड की छड़ अपने मुँह में लेने लगी। उस मोटे और रसीले लंड पर ऊपर नीचे होती हुई शाज़िया लंड पर अपने होंठ जकड़ कर चूस रही थी। जब वो अपना सिर ऊपर लेती तो उस लंड पर अपना मुँह लपेट कर अपने होंठ कस कर पेंचकस की तरह मरोड़ती।

बिरजू सुअर की तरह घुरघुराता हुआ और अपना लंड ऊपर को ठेलता हुआ शाज़िया के मुँह को ऐसे चोदने लगा जैसे कि कोई चूत हो।

"ऊम्मफ्फ", जब लंड का फूला हुआ सुपाड़ा शाज़िया के गले में अटका तो वो गोंगियाने लगी। शाज़िया ने बिरजू का लंबा लंड तक़रीबन पूरा अपने मुँह में भर लिया था। बिरजू के टट्टे शाज़िया की ठुड्डी पर रगड़ रहे थे और शाज़िया की नाक बिरजू की झाँटों में घुसी हुई थी। शाज़िया की साँस घुट रही थी लेकिन फिर भी उसने कुछ लम्हों के लिए लंड के सुपाड़े को अपने गले में अटकाये रखा और फिर उसने लंड को चुसते हुए बाहर को निकाला।

"ऊँम्म्म", शाज़िया बिल्ली की तरह घुरगुराई और फिर से उस लंड पे अपने होंठ लपेट कर सुड़कने लगी।

बिरजू ने अपना लंड शाज़िया के मुँह में लगातार चोदते हुए अपना वजन एक टाँग से दूसरी टाँग पर लिया। बिरजू ने अपना एक हाथ शाज़िया की गर्दन के पीछे रखा और उसका मुँह अपने लंड पर थाम कर अंदर-बाहर चोदने लगा। उसके टट्टे ऊपर उछल-उछल कर शाज़िया की ठुड्डी के नीचे थपेड़े मार रहे थे।

बिरजू के मूत वाले छेद से और भी ज़ायकेदार मज़ी चूने लगी और शाज़िया की ज़ुबान पर बह कर शाज़िया की प्यास और भड़काने लगी। शाज़िया और भी जोर से लंड चूसने लगी और अपने मुँह में बिरजू को अपने टट्टे खाली करने को आमादा करने लगी। वो उसकी गर्म मनी पीने के लिए बेक़रार हो रही थी।

चुदक्कड़ शाज़िया को मनी भरी चूत के बाद मुँह भर कर मनी बहुत पसंद थी। उसकी चूत और उसका मुँह आपस में एक दूसरे की नकल थे। उसकी ज़ुबान भी उसकी क्लिट की तरह ही गर्म थी। सिसकती हुई वो अपना मुँह बिरजू के लंबे-मोटे लंड पर ऊपर-नीचे डोलने लगी।

लेकिन तभी बिरजू ने अपना लंड शाज़िया के होंठों से बाहर खींच लिया। उसका सुपाड़ा एक डाट की तरह बाहर निकला। शाज़िया के होंठ चपत कर बंद हो गये पर वो फिर से अपने होंठ खोल कर अपनी ज़ुबान बाहर निकाले, पीछे हटते लंड पर फिराने लगी।

बिरजू को शाज़िया से लंड चुसवाना अच्छा लग रहा था पर आज वो चूत चोदने के मूड में था। शाज़िया ने नज़रें उठा कर अपनी नशे में डूबी आँखों से बिरजू के चेहरे को देखा। वो हैरान थी कि उसने अपना स्वादिष्ट लंड उसके मुँह से खींच लिया था। ऐसा कभी नहीं हुआ था कि किसी आदमी ने शाज़िया के मुँह में झड़ने से पहले लंड बाहर निकाला हो। उसने अपने होंठ अण्डे की तरह गोल खोल कर उन्हें चूत की शक़ल में फैला दिया और अपनी ज़ुबान कामुक्ता से फड़फड़ाती हुई उसे फिर उसके लंड को फिर अपने मुंह में डालने के लिए बुलाने लगी।

नशे में चूर अपनी मैडम को बिरजू ने उसके कंधे से पकड़ कर धीरे से बिस्तर पर पीछे ढकेल दिया। अगर वो उसके मुँह की जगह उसकी चूत चोदना चहता था तो शाज़िया को कोई ऐतराज़ नहीं था क्योंकि उसे तो दोनों ही जगह से चुदवाने में बराबर मज़ा आता था। जब तक उसे भरपूर मनी मिल रही थी उसे इसकी कोई परवाह नहीं थी कि किस छेद से मिल रहा थी।

अपने घुटने मोड़ कर और अपनी जाँघें फैला कर शाज़िया पसर गयी। उसने अपनी कमर उचका कर अपनी रसीली चूत चुदाई के एंगल में मोड़ दी। बिरजू उसकी टाँगों के बीच में झुक गया। वो अपनी मालकिन के कामुक जिस्म से परिचित था। अपने हाथों और घुटनों पर वजन डाल कर बिरजू ने अपने चूत्तड़ अंदर ढकेले और उसके लंड का फूला हुआ सुपाड़ा शाज़िया की चूत के अंदर फिसल गया।

शाज़िया मस्ती से कलकलाने लगी। अपने लंड का सिर्फ सुपाड़ा शाज़िया की चूत में रोक कर बिरजू लंड कि मांस-पेशियों को धड़काने लगा। उसका सूजा हुआ सुपाड़ा चूत में धड़कता हुआ हिलकोरे मार रहा था।

पहले शाज़िया का मुँह, चूत की तरह था और अब उसकी चूत, मुँह की तरह थी। उसकी चूत के होंठ लंड के सुपाड़े को चूसने लगे और उसकी कड़क क्लिट उसकी जुबान की तरह लंड पर रगड़ने लगी। बिरजू घुरघुराते हुए स्थिर हो गया। शाज़िया की चूत उसके लंड को सक्शन पंप की तरह अपनी गहराइयों में खींच रही थी। बिरजू ठेल नहीं रहा था लेकिन शाज़िया की चूत खुद से उसके लंड को अंदर घसीट रही थी।

बिरजू उत्तेजना से गुर्राया। उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसका लंड उसके शरीर से खींच कर उखाड़ा जा रहा था और शाज़िया की चूत के शिकंजे में अंदर खिंचा जा रहा है। अपनी चूत में आखिर तक उस जसीम लौड़े की ठोकर महसूस करती हुई शाज़िया सिसकने लगी। उसकी चूत फड़कते लंड से कोर तक भरी हुई थी। उसका अरदली, चोदू कुत्ते जैसे वहशी जोश से तो उसे नहीं चोद सकता था लेकिन ये कमी उसके लंड की लंबाई से पूरी हो गयी थी, जोकि शाज़िया की चूत को उन गहराइयों तक भरे हुए था जहाँ कुत्तों का लंड नहीं पहुँच सकता था।

बिरजू का लंड शाज़िया की चूत में धड़कने लगा तो शाज़िया की चूत की दीवारें भी उसके लंड की रॉड पर हिलोरे मारने लगी। शाज़िया की चूत के होंठ लंड की जड़ पे चिपके हुए थे और लंड को ऐसे खींच रहे थे जैसे कि उस कड़क लंड को बिरजू के जिस्म से उखाड़ कर सोंखते हुए चूत की गहराइयों में और अंदर समा लेने की कोशिश कर रहे हों।

बिरजू के लंड का गर्म सुपाड़ा शाज़िया को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे कि उसकी चूत में गरमागरम लोहे का ढेला ठूँसा हो। उसके फड़कते लंड की रॉड ऐसे महसूस हो रही थी जैसे लोहे की गरम छड़ चूत की दीवरों को खोद रही हो। उसका लंड इतना ज़्यादा गरम था कि शाज़िया को लगा कि वो जरूर उसकी चूत को अंदर से जला रहा होगा पर उसकी खुद की चूत भी कम गरम नहीं थी। शाज़िया की चूत भी भट्टी की तरह उस लंड पर जल रही थी जैसे कि बिरजू का लंड तंदूर में सिक रहा हो।

शाज़िया ने पहले हिलना शुरू किया। बिरजू तो स्थिर था और शाज़िया ने अपनी चूत उसके लंड पर दो-तीन इंच पीछे खींची और फिर वापिस लंड की जड़ तक ठाँस दी। "चोद मुझे... चोद मुझे!" शाज़िया मतवाली हो कर कराहने लगी।

बिरजू ने अपने घुटनों पर जोर दे कर अपना लंड इतना बाहर खींचा कि सिर्फ उसका सुपाड़ा चूत के अंदर था। शाज़िया की क्लिट उसके लंड पर धड़कने लगी। बिरजू ऐसे ही कुछ पल रुका तो शाज़िया की चूत के होंठ फिर से उसके लंड को अंदर खींचने के लिए जकड़ने लगे। शाज़िया के भरे-भरे चूत्तड़ पिस्टन की तरह हिल रहे थे उसकी ठोस गाँड बिस्तर पे मथ रही थी।

"पेल इसे मेरे अंदर... बिरजू!" शाज़िया चिल्लायी। वो अपनी चूत को लंड से भरने को बेक़रार हो रही थी। उसे अपनी चूत अचानक खोखली लग रही थी। "ठेल दे अपना पूरा मूसल अंदर तक!"

बिरजू ने हुँकार कर अपनी गाँड खिसकायी और शाज़िया को एक धीरे पर लंबा सा झटका खिलाया। उसका लंड चीरता हुआ उसकी धधकती चूत में अंदर तक धंस गया। चूत के अंदर धंसी उसके लंड की रॉड ने शाज़िया की गाँड को बिस्तर से ऊपर उठा दिया। बिरजू ने एक बार फिर बाहर खींच कर इस तरह अपना लंड अंदर पेल दिया कि शाज़िया की गाँड और ऊपर उठ गयी और उसका लंड इस तरह नीचे की तरफ चूत पेल रहा था कि अंदर-बाहर होते हुए गरम लंड का हर हिस्सा शाज़िया की चूत पर रगड़ खा रहा था।

शाज़िया भी उतने ही जोश और ताकत से अपनी आगबबुला चूत ऊपर-नीचे चलाती हुई बिरजू के जंगली झटकों का जवाब दे रही थी। उसकी चूत इतनी शिद्दत से लंड पर चिपक रही थी कि बिरजू को लंड बाहर खींचने के लिए हकीकत में जोर लगाना पड़ रहा था।

बिरजू का लंड शाज़िया के चूत-रस से भीगा और चिपचिपाता और दहकता हुआ बाहर निकलता और फिर चूत में अंदर चोट मारता हुआ घुस जाता जिससे शाज़िया के चूत-रस का फुव्वारा बाहर छूट जाता। बिरजू के टट्टे भी चूत-रस से तरबतर थे। शाज़िया का पेट भी चूत के झाग से भर गया था और गरम चूत-रस उसकी जाँघों के नीचे और उसकी गाँड की दरार में बह रहा था। जब भी उसकी चूत से रस का फव्वारा फूटता तो मोतियों जैसी बड़ी-बड़ी बूँदें उसकी चूत और दोनों टाँगों के बीच के तिकोण पर छपाक से गिरतीं।

चुदाई की लज़्ज़त और शराब के नशे से शाज़िया मतवाली हुई जा रही थी। उसने बिरजू से चिपकते हुए अपनी जाँघें बिरजू के चूत्तड़ों पर कस दीं। शाज़िया के सैंडलों की ऊँची ऐड़ियाँ बिरजू की गाँड पर ढोल सा बजाने लगीं।

बिरजू लगातार चोद रहा था और जब भी उसका लंड चूत में ठँसता तो उसके टट्टे झूलते हुए शाज़िया की झटकती गाँड पे टकराते। साथ ही शाज़िया की चूत से और रस बाहर चू जाता। "आआआईईईऽऽऽ याल्लाऽऽहऽऽऽऽ आँआँहहह मैं... मैं झड़ी!" शाज़िया हाँफी, "ओह... चूतिये... मैं झड़ने वाली हूँ... तू भी झड़ जाऽऽऽ मादरचोदऽऽऽ भर दे मेरी चूत अपने गरम, चोदू-रस सेऽऽऽ!"

फिर बिरजू ने एक हैरत अंगेज़ काम किया। उसने अपना लंड चूत से बाहर निकाल लिया!

शाज़िया शद्दीद तड़पते हुए ज़ोर से चिल्लायी और यह सोच कर कि शायद गल्ती से निकल गया होगा, उसने अपना हाथ बढ़ा कर लंड पकड़ लिया और फिर से अपनी चूत में डालने की कोशिश करने लगी। वो गरम चुदक्कड़ औरत झड़ने के कगार पर थी और उसे डर था कि लंड के वापस चूत में घुसने के पहले ही वो कहीं झड़ ना जाये।

बिरजू कुटिलता से मुस्कुराया। बिरजू जानता था कि सिर्फ ऐसी ही हालत में वो हर वक़्त धौंस देने वाली अपनी अकड़ू मालकिन को अपने इशारे पर नचा सकता था। शराब और चुदाई के मिलेजुले नशे में वो कुछ भी खुशी से करने को फुसलायी जा सकती थी।

बिरजू ने शाज़िया के चूत्तड़ पकड़ कर उसे धीरे से पलट दिया। जब वो शाज़िया को बिस्तर पे पेट के बल पलट रहा था तो वो उसके हाथों में मछली की तरह फड़फड़ा रही थी। फिर उसने शाज़िया को जाँघों से पकड़ कर पीछे की ओर ऊपर खींचा जिससे शाज़िया अपने घुटनों पे उठ कर झुक गयी और उसकी गाँड बिरजू के लंड की ऊँचाई तक आ गयी। बिरजू भी ठीक शाज़िया के पीछे झुका हुआ था। बिरजू का लंड शाज़िया की गाँड के घुमाव के ऊपर मिनार की तरह उठा हुआ था। उसके लंड की रॉड शाज़िया के चूत-रस से भीगी हुई चिपचिपा रही थी और उसके लंड का सुपाड़ा ऐसे दमक रहा था जैसे कि रोशन मिनार (लाइट हाऊस) के ऊपर लगा चिरागे-राह हो और नीचे अपने टट्टों में छिपी पथरीली गोलियों से खबरदार कर रहा हो।

शाज़िया का सिर नीचे था और गाँड ऊपर हवा में थी। उसका एक गाल बिस्तर पे सटा हुआ था और उसके लंबे काले बाल बिस्तर पर फैले हुए थे। शाज़िया की ठोस, झटकती गाँड उसकी इस पोज़िशन की अधिकतम ऊँचाई तक उठी हुई थी। यह पोज़िशन शाज़िया के लिए नई नहीं थी। उसकी भारी चूचियाँ बिस्तर पर सपाट दबी हुई थीं और जब वो अपनी गाँड हिलाने लगी तो उसकी तराशी हुई जाँघें कसने और ढीली पड़ने लगीं और उसकी प्यारी गाँड कामुक्ता से ऊपर-नीचे होने लगी।

एक क्षण के लिए तो शाज़िया को लगा कि बिरजू उसकी गाँड मारने वाला है और शाज़िया को इसमें कोई ऐतराज़ भी नहीं था पर बिरजू का एक हाथ उसकी चूत पर फिसल कर चूत की फाँकों को फैलाते हुए उसकी फड़कती क्लिट को रगड़ने लगा।

"हाँआँआँ... हाँआँआँ... ऐसे ही कुत्तिया बना कर चोद मुझे!" अपनी चूत में बिरजू का हलब्बी लौड़ा पिलवाने की तड़प में शाज़िया गिड़गिड़ाने लगी। बिरजू के चोदू-झटके की उम्मीद में शाज़िया पीछे को झटकी।

"तुझे कुत्तिया बन कर चुदवाने में बहुत मज़ा आता है ना, राँड?" बिरजू उसके कुल्हों को हाथों में पकड़ते हुए फुसफुसाया। उसका लहज़ा व्यंगात्मक लग रहा था।

शाज़िया थोड़ी सी चौंक गयी। क्या मतलब था उसका? कहीं उसे शक तो नहीं हो गया था? क्या वो जान गया था कि शाज़िया कुत्तों से चुदवाती है। एक पल के लिए तो शाज़िया का जोश ठँडा पड़ गया और उसे डर लगने लगा। उसने अपने कंधे के ऊपर से पीछे निगाह डाली पर उसे बिरजू के चेहरे पर कोई गुस्सा नज़र नहीं आया और उसने बिरजू के लंड को अपनी गाँड के ऊपर लहराते हुए देखा। इस नज़ारे से शाज़िया की शहूत फिर से इस कदर बढ़ गयी कि किसी तरह की फ़िक्र या शर्मिंदगी के एहसास की कोई गुंजाईश बाकी नहीं रह गयी थी।

"हाँआँआँ! मुझे कुत्तिया बना कर चोद!" शाज़िया कराही।

बिरजू ने मुस्कुरा कर अपने लंड की नोक से उसकी दहकती चूत को छुआ और उसे शाज़िया की क्लिट पर रगड़ने लगा। शाज़िया दुगनी शहूत और मस्ती से कराहने लगी और उसने अपने चूत्तड़ बिरजू के लंड पर पीछे धकेल दिये।

बिरजू ने अपना भीमकाय, फड़कता हुआ लंड पूरी ताकत से एक ही झटके में शाज़िया की गाँड के नीचे उसकी पिघलती हुई चूत में ठाँस दिया। उसका लंड अंदर फिसल गया और उसका सपाट पेट शाज़िया के चूत्तड़ों से टकराया। अपनी झुकी हुई जाँघों के बीच में से अपना हाथ पीछे ले जाकर शाज़िया उसके टट्टे सहलाने लगी। बिरजू अपना लंड शाज़िया की चूत में अंदर तक पेल कर उसे घुमाता हुआ उसकी चूत को पीस रहा था।

फिर बिरजू ने पूरे जोश में अपना लंड शाज़िया की चूत में आगे-पीछे पेलना शुरू कर दिया। शाज़िया कसमसाती हुई अपने चूत्तड़ पीछे ठेल रही थी और उसकी चूचियाँ भी जोर-जोर से झूल रही थी। बिरजू कुत्ते की तरह वहशियाना जोश से शाज़िया की चूत चोद रहा था और कुत्ते की तरह ही हाँफ रहा था। शाज़िया भी मस्ती और बेखुदी में ज़ोर-ज़ोर से सिसक रही थी, "आँहह... ओहह मॉयऽऽ गॉऽऽड ऊँहह... याल्लाऽऽहऽऽऽऽ आँआँहहह...!"

बिरजू ने थोड़ा झुक कर जोर सा अपना लंड ऊपर की तरफ चूत में पेला जिससे शाज़िया की गाँड हवा में ऊँची उठ गयी और उसके घुटने भी बिस्तर उठ गये। फिर अगला झटका बिरजू ने ऊपर से नीचे की तरफ दिया और फिर से शाज़िया के घुटने और गाँड पहले वाली पोज़िशन में वापिस आ गये। शाज़िया का जिस्म स्प्रिंग की तरह बिरजू के नीचे कूद रहा था।

"ऊँऊँम्म्म.... मैंऽऽ झड़ीऽऽऽऽ!" शाज़िया चिल्लाई।

बिरजू भी पीछे नहीं था। उसका लंड फूल कर इतना बड़ा हो गया था कि शाज़िया को लगा जैसे कुल्हों की हड्डियाँ अपने सॉकेट में से निकल जायेंगी। शाज़िया ने अपनी झूलती चूचियों के कटाव में से पीछे बिरजू के बड़े लंड को अपनी चूत में अंदर-बाहर होते हुए देखने की कोशिश की।

बिरजू जोर-जोर से चोदते हुए शाज़िया की चूत को अपने लंड से भर रहा था और शाज़िया को शहूत और लज़्ज़त से। शाज़िया की चूत बिरजू के लंड पे पिघलती हुई इतना ज़्यादा रस बहा रही थी कि वो फुला हुआ लंड जब चूत की गहराइयों में धंसता तो छपाक-छपाक की आवाज़ आती थी।

"ले... साली कुत्तिया... मैं भी आया!" बिरजू हाँफते हुए बोला।

"हाँऽऽऽ हाँऽऽऽ डुबा दे मुझे अपने लंड की मलाईदार मनी में!" शाज़िया कराही।

जब बिरजू ने अपना लंड जड़ तक ठाँस दिया तो उसकी कमर आगे मुड़ गयी और उसका सिर और कंधे पीछे झुक गये। शाज़िया को जब उबलती हुई मनी अपनी चूत मे छूटती महसूस हुई तो वो और भी जोर से कराहने लगी। बिरजू का गाढ़ा वीर्य तेज सैलाब की तरह शाज़िया की चूत में बह रहा था।

बिरजू के टट्टों को फिर से हाथ में पकड़ कर शाज़िया निचोड़ने लगी जैसे कि उसके निचोड़ने से ज्यादा मनी निकलने की उम्मीद हो। जैसे ही बिरजू अपना लंड उसकी चूत में अंदर पेलता तो शाज़िया उसके टट्टे नीचे खींच देती और जब वो अपना लंड बाहर को खींचता तो शाज़िया उसके टट्टे सहलाने लगती। बिरजू की मनी किसी ज्वार-भाटे की तरह हिलोरे मारती हुई शाज़िया की चूत में बह रही थी।

हर बार जब भी शाज़िया को अपने अंदर, और मनी छूटती महसूस होती तो उसकी चुदक्कड़ चूत भी फिर से अपना रस छोड़ देती।

हाँफते हुए, बिरजू की रफ़्तार कम होने लगी।

शाज़िया ने उसके लंड पे अपनी चूत आगे-पीछे चोदनी जारी रखी और उसके लंड को दुहती हुई वो अपने ओर्गैज़म के बाकी बचे लम्हों की लज़्ज़त लेने लगी। शाज़िया को लग रहा था जैसे कि उसकी चूत लंड पर पिघल रही हो। खाली होने के बाद बिरजू ने कुछ पल अपना लंड चूत में ही रखा। उसकी मनी और शाज़िया के चूत-रस का गाढ़ा और झागदार दूधिया सफ़ेद मिश्रण बिरजू के धंसे हुए लंड की जड़ के आसपास बाहर चूने लगा। शाज़िया की चूत के बाहर का हिस्सा और उसकी जाँघें चुदाई के लिसलिसे दलदल से सनी हुई थी।

जब आखिर में बिरजू ने अपना लंड शाज़िया की चूत में से बाहर निकाला तो उसके लंड की छड़ इस तरह बाहर निकली जैसे तोप में गोला दागा हो। शाज़िया की चूत के होंठ फैल गये और उसकी चूत बाहर सरकते लंड पर सिकुड़ने लगी। जब उसके लंड का सुपाड़ा चूत में से बाहर निकला तो शाज़िया कि चूत में से मनी और चूत-रस का मिश्रण झागदर बाढ़ की तरह बह निकला।

तसल्ली बख्श शाज़िया मुस्कुराती हुई पेट के बल नीचे बिस्तर पर फिसल गयी। वो मुत्तमईन थी पर फिर भी उसने अपनी जाँघें फैला रखी थीं कि शायद बिरजू एक बार फिर चोदना चाहे। परन्तु बिरजू बिस्तर से पीछे हट गया। शाज़िया ने उसे पीछे हटते सुना और साथ ही उसे कमरे के बाहर से कुत्तों के भौंकने की आवाज़ भी सुनायी दी। शाज़िया ने पीछे मुड़ कर देखा कि बिरजू ने अपना मुर्झाया हुआ चोदू लंड अपनी पैंट में भर लिया था और उसे लंड के उभार के ऊपर ज़िप चढ़ाने में मुश्किल हो रही थी। शाज़िया अपना हाथ नीचे ले जाकर अपनी तरबतर चूत सहलाने लगी।

"मज़ा आया चोदने में?" शाज़िया बिल्ली जैसे घुरघुरायी।

बिरजू ने दाँत निकाल कर मुस्कुराते हुए रज़ामंदी में अपनी गर्दन हिलायी।

"मैं बाहर जा कर शेरू और सिम्बा को कुछ खाने को दे देता हूँ", बिरजू बोला। उसकी आँखें शाज़िया पर टिकी थीं। दोनों कुत्ते बाहर भौंक रहे थे। "काफी थके हुए लग रहे हैं..." बिरजू पैनी नज़रों से शाज़िया को ताकता हुआ एक पल रुका और फिर आगे बोला, "आज लगाता है दोनों ने काफी कसरत की है।"

शाज़िया के चेहरे पर हल्की सी लाली आ गयी और उसकी नज़रें झुक गयीं। शाज़िया फिर सोचने लगी कि कहीं बिरजू को शक तो नहीं हो गया है कि वो हर मुनासिब मौके पर कुत्तों से चुदवा रही थी। अगर बिरजू को शक हो गया था तो शायद उसे इस बात की परवाह नहीं थी और वो इस बात को नज़र-अंदाज़ कर रहा था। अगर बिरजू को परवाह नहीं तो वो खुद क्यों चिंता करे!

शाज़िया ने अपनी नज़रें उठा कर ऊपर देखा और शोख़ मुस्कुराहट के साथ बोली, "ठीक है तू उन्हें खिला-पिला कर खुद भी खाना खाले... तुने भी काफी कसरत की है....!"

बिरजू ने फिर से गर्दन हिलायी। वो सोच रहा था कि उसकी मालकिन ने क्या अभी-अभी इशारे में ये कबूल कर लिया था कि वो कुत्तों से चुदवाती थी। जो भी हो उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था। बिरजू मुड़ा और कमरे के बाहर चला गया।

शाज़िया भी बिस्तर से उठी और बार के पास जा कर एक ड्रिंक बनाने लगी। उसके कदम अभी भी हाई-हील के सैंडलों में लड़खड़ा रहे थे।

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हफ़्ते भर बाद की बात है। शाम के छः बज रहे थे। चंडीगढ़ से शाज़िया की कॉलेज के दिनों की सहेली, यास्मिन, उसके साथ दो-तीन दिन रहने आयी हुई थी। मौसम बहुत ही सुहाना था। सुरज ढलने को था और मंद सी ठंडी हवा चल रही थी। दोनों घर के पीछे लॉन में बड़ी सी छतरी के नीचे कुर्सियों पर बैठी वोडका पी रही थीं और अपने कॉलेज के दिनों की अपनी शरारतों और साथ बिताये वक्त की बातें कर रही थीं। सामने पहाड़ों की चोटियों का नज़ारा बड़ा मनोहर था।

बिरजू पकौड़े तल कर उनकी टेबल पर रखने के बाद चार-पाँच घंटे की छुट्टी ले कर पास के गाँव में अपने किसी दोस्त की शादी में शामिल होने के लिये चला गया था। वो रात को देर से लौटने वाला था। जाने से पहले, शाज़िया के कहने पर उसने मूवेबल-बार भी बाहर ला कर उनके पास रख दिया था जिस पर बर्फ की बाल्टी, ग्लास और वोडका, व्हिस्की, जिन वगैरह की कईं बोतलें मौजूद थीं।

दोनों सहेलियों पर हल्का नशा छाया हुआ था और वो पुरानी बातें याद करती हुई कहकहे लगा रही थीं। दरअसल कई सालों के बाद दोनों की मुलाकात हो रही थी क्योंकि कॉलेज से पास होने के बाद यास्मिन शादी करके अपने शौहर के साथ इटली रहने के लिए चली गयी थी। अभी कुछ ही दिन पहले वो और उसका शौहर चंडीगढ़ रहने आ गए थे जहाँ उसके शौहर ने नया कारोबार शुरू किया था।

"याद है शाज़िया! किस तरह तू हॉस्टल से रात को भाग कर लड़कों के कमरों में चुदवाने जाती थी", यास्मिन ने हँसते हुए कहा।

"तू क्या कम थी... तू तो लड़कों को गर्ल्स हॉस्टल में ही छिपा कर ले आती थी!"

"मुझे तो आज भी याद है जब हम दोनों ने उस रिक्शा वाले को सुनसान जगह पर सिड्यूस था!"

"हाँ! बेचारा इक्साइट्मन्ट से काँपने लगा था!"

"और जब तूने उसकी धोती में हाथ डाल कर उसका लंड पकड़ा था तो बेचारा तेरे हाथ में फ़ारिग़ हो गया था और फिर बिना पैसे लिये ही भग गया था!"

दोनों इसी तरह अपनी ऐयाशियाँ याद करते हुए ड्रिंक पी रही थीं। दोनों की चूत गरमाने लगी थी।

"कितनी मज़े की ज़िंदगी थी... आखिरी साल में फ्रेशर लड़कियों कि रैगिंग में तो हमने हद कर दी थी.... जब हमने अपने रूम में उन्हें शराब पिला कर उन्हें नंगी नचाया था!"