दो सहेलियों की विकृत और वहशी हवस

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"पी तो हमने भी रखी थी..."

"सिर्फ शराब ही नहीं पी रखी थी.... उस दिन तो हम सीनियर लड़कियों ने गाँजे की सिगरेट भी पी थीं... वो आलिया कहीं से सब को सपलाई करती थी!"

शाज़िया ने दोनों के ग्लास में व्हिस्की और वोडका मिला कर कुछ तगड़ा कॉकटेल बनाया।

"हाँ यार हमें भी कहाँ होश था... तभी तो रैगिंग इस हद तक पहुँच गयी थी कि हमने उन फ्रेशर लड़कियों कि चूतें मोटी-मोटी मोमबत्तियों से चोदी थीं और बाद में उनसे अपनी चूतें चटवायी थीं!"

"और तूने तो हद ही कर दी थी जब तूने एक लड़की के मुँह में मूत ही दिया था!"

दोनों जोर से खिलखिला कर हंस पड़ी। यास्मिन सोच रही थी कि उसे बाद में बेडरूम में जाकर अपने हाथ से अपनी चूत की प्यास बुझानी पड़ेगी। शाज़िया भी सोच रही थी कि यास्मिन के सोने के बाद अपने कमरे में जाकर आज तो शेरू और सिम्बा से जी भर कर रात भर चुदवायेगी। शाज़िया ये सोच कर मुस्कुरा दी कि यास्मिन का क्या रद्दे अमल होगा अगर उसे पता चल गया कि वो चुदवाने में आज भी पीछे नहीं है बल्कि उसकी चुदाई की भूख इस कद्र बढ़ चुकी है कि वो अपने कुत्तों से बाकायदा चुदवाती है।

यास्मिन भी सोच रही थी कि शाज़िया को बताये कि नहीं कि वो आज भी गैर-मर्दों से चुदवाती है क्योंकि उसके इंडस्ट्रियलिस्ट शौहर को उससे ज्यादा अपने बिज़नेस में दिलचस्पी थी। यास्मिन तो कॉलेज के वक़्त से ही चुदासी थी इसलिए उसे अपनी चूत की प्यास बुझाने के लिये दूसरे मर्दों से चुदवाने में कोई एतराज़ नहीं था। यास्मीन अब तक न जाने कितने ही लौडो से चुदवा चुकी थी। सुबह जब वो यहाँ शाज़िया से मिलने आयी थी तब से ही उसकी नज़र बिरजू पर भी थी।

तभी वहाँ एक गधा दिखायी दिया। यास्मिन तो अचानक गधे को देख कर डर गयी और चींख पड़ी।

"अरे यार! डरने की कोई बात नहीं है... ये हमारे धोबी का गधा है... वो पास के गाँव में रहता है और आजकल बिहार में कहीं अपने घर गया हुआ है। इसलिए अपना गधा हमारे फार्म पर छोड़ गया... बिरजू इसे चारा-पानी वगैरह दे देता है। वैसे तो ये ऊधर छप्पर (बार्न) में बंधा रहता है पर शायद बिरजू इसे बाँधना भूल गया", शाज़िया ने कहा पर ये नहीं बताया कि उस धोबी से भी वो चुदवा चुकी है।

शाज़िया ने दोनों के लिए नया ड्रिंक बनाया और दोनों फिर बतियाने लगीं।

उस गधे को भी शायद उन दोनों की चूत की महक आ गयी थी। वो उनकी कुर्सियों के पीछे बिल्कुल पास आकर खड़ा हो गया। शाज़िया ने हाथ बढ़ा कर उसकी गर्दन पर हल्के से मारते हुए उसे भगाने की कोशिश की। पर गधा कहाँ इतनी आसानी हटने वाला था।

"ये गधे बहुत अड़ियल होते हैं... शाज़िया इतनी आसानी से नहीं हटेगा ये", यास्मिन ने हँसते हुए कहा।

शाज़िया भी अब नशे में थी और वो भी जोर से अपनी हर्कत पर खिलखिला कर हँस पड़ी। "छोड़ यार... खड़ा रहने दे... खुद से ही ये छप्पर में चला जायेगा!"

उस गधे के टट्टे उसकी पिछली टाँगों के बीच खरबूजे की तरह फुलने लगे। भुरे रंग की बालों से भरी खाल धीरे से पीछे खिसकने लगी और उसका काला बड़ा सुपाड़ा खिसकता हुआ बाहर निकलने लगा। वो बेहद बड़ा मोटा सुपाड़ा काले ग्रेनाइट के पत्थर की तरह चमक रहा था। गधे का लंड पहले तो नीचे लटक गया और फिर दाँय-बाँय फड़फ़ड़ाने लगा। उसका लंड डगमगाता हुआ और बाहर निकल कर लंबा होने लगा और जल्दी ही लगभग ज़मीन तक पहुँचने लगा। फिर उसका वो लम्बा लंड फूल कर मोटा और कड़क होने गया और अंत में झटक कर उसके पेट के नीचे उसके बराबर सीधा तन कर उठ गया।

यास्मिन ने गधे के नथुने की घरघराहट सुनी तो उसने अपने पीछे तिरछी नज़र डाली और उसकी आँखें हैरत से फैल गयीं। वो इतने बड़े लंड को पहली बार इतनी करीब से देख रही थी। गधे के लंड का सुपाड़ा उसकी तगड़ी छाती तक पहुँच रहा था और उसका वो मोटा लंड खरबूजे जितने बड़े टट्टों से बाहर को निकल कर तना हुआ था।

यास्मिन के चेहरे पर सुर्खी आ गयी और उसने फटाफट अपने बराबर में बैठी शाज़िया की तरफ नज़र घुमा ली। शाज़िया अपने ड्रिंक की चुसकियाँ लेती हुई कोइ किस्सा बता कर हँस रही थी। यास्मिन ने अपने ड्रिंक का बड़ा घूँट पिया और उसकी नज़रें चुंबक की तरह उस जसीम लंड की तरफ खिंच गयीं। उसका ध्यान अब शाज़िया की बातों में बिल्कुल नहीं था। वो ऐसे ही उसकी बातों पे "हाँ... हुँ" कर रही थी। अचानक शाज़िया ने यास्मिन के हाथ से उसका खाली ग्लास लेना चाहा तो यास्मिन चौंक गयी और हड़बड़ाहट में उसका हाथ गधे की टाँगों को छू गया। उसे अपने हाथ के नीचे गधे का मजबूत शरीर धड़कता सा महसूस हुआ और उसने लंड को भी फड़फड़ाते हुए महसूस किया।

यास्मिन ने शाज़िया पर एक नज़र डाली कि शाज़िया उसे देख तो नहीं रही। शाज़िया तो नशे में डगमगाते हाथों से उन दोनों के लिये फिर से ड्रिंक बना रही थी। यास्मिन भी नशे में खुद पर काबू नहीं रख पा रही थी उसने धीरे से अपना हाथ गधे के पेट के नीचे खिसका दिया। उसकी अँगुलियाँ गधे के फड़कते लंड को छूने के लिये सनसना रही थीं। पर जैसे ही गधे को यास्मिन का हाथ अपने पेट के नीचे खिसक कर अपने लंड की तरफ बढ़ता महसूस हुआ तो वो उत्तेजना में जोर से रेंकने लगा। शाज़िया भी चौंक कर पीछे पलटी कि अचानक गधे को क्या हो गया!

यास्मिन ने अपना हाथ ठीक वक़्त पर फौरन हटा लिया और जितना हो सके उतनी सहजता से आगे देखते हुए अपना ड्रिंक पीने लगी। उसे थोड़ी शर्मिंदगी के साथ-साथ काफी बेक़रारी महसूस हो रही थी। हवस और बेक़रारी से उसका सिर घूम रहा था पर वो सोच रही थी कि सिर तो इतनी शराब पी लेने की वजह से घुम रहा है। शाज़िया ने वैसे भी यास्मिन के चेहरे के तअस्सुरातों पर ज्यादा तवज्जो नहीं दी।

शाज़िया तो खुद आँखें फाड़े और मुँह खोले हुए गधे के जसीम लंड को देख रही थी। गधे की टाँगें चौड़ी फैली हुई थीं और शाज़िया की नज़र ठीक उसके फूले हुए सुपाड़े पर थी। वो गहरे रंग का जसीम लंड गधे की छाती तक बढ़ा हुआ था और लगभग उसकी अगली टाँगों के आगे निकल रहा था। गधे का लंड ऐसे धड़क रहा था जैसे कि साँस लेते हुए फेफड़े और उसका मूतने वाला छेद भी फैला हुआ था और उसमें से मज़ी के कतरे बुदबुदा रहे थे। शाज़िया ने उसके लंड की हैरत अंगेज़ लंबी छड़ पर नज़र दौड़ायी जैसे कि तोप की नाल को देख रही हो और फिर उसे खरबूजे जितने बड़े और भरपूर मनी से से लबरेज़ टट्टे भी नज़र आये।

कुछ पलों के लिए तो शाज़िया की नज़रें उस जानवर के अज़ीम लंड पर चिपकी रहीं लेकिन फिर अपनी सहेली यास्मिन की मौजूदगी का एहसास होते ही उसने खुद को सामने देखने के लिए मजबूर किया। शाज़िया का चेहरा उत्तेजना से लाल हो रहा था और यास्मिन के गाल भी अभी तक सुर्ख थे। दोनों औरतें उस गधे के खड़े लंड की वजह से बेचैन थीं और दोनों खुद को ही इसकी जिम्मेदार मान रही थी कि उनकी खुद की गर्म चूत की खुशबू ही उस जानवर के लंड की सख्ती का सबब थी।

शाज़िया ने पलट कर एक ही घूँट में अपना भरा ग्लास खाली कर दिया। शाज़िया की चूत इतनी गर्म हो गयी थी कि उसे लग रह था कि कहीं चूत में से रस के साथ-साथ धुँआ ना निकलने लगे और वो उम्मीद कर रही थी कि यास्मिन ने गधे के लंड के जानिब उसके जज़्बातो को कहीं ताड़ ना लिया हो। लेकिन यास्मिन तो खुद उत्तेजना और चुदास से जली जा रही थी और अपने ही ख्यालों में थी। वो अपनी चूत की आग बुझाने के लिए बेकरार हो रही थी।

तभी अंदर से फोन घंटी बजी। शाज़िया ने पहले तो बिरजू को कॉर्डलेस फोन बाहर लाने के लिए आवाज़ दी पर फिर उसे ध्यान आया कि बिरजू तो घर में है ही नहीं। वो भुनभुनाती हुई खड़ी हुई पर नशे में इतनी चूर होने की वजह से बुरी तरह डगमगा रही थी। इसके अलावा ऊँची हील के सैंडल पहने होने की वजह से इतने नशे में दो कदम भी सीधे चल पाना मुश्किल था पर फिर भी किसी तरह लड़खड़ाती हुई वो फोन सुनने अंदर गयी।

जब वहाँ यास्मिन उस उत्तेजित गधे के साथ अकेली रह गयी तो उसने गधे के लंड को अपने हाथ से छूने की अपनी नापाक ख़्वाहिश को बड़ी मुश्किल से दबाया। यास्मिन को बहुत शदीद तमन्ना हुई कि अपनी सहेली के वापस आने के पहले जल्दी से उसे हाथ में लेकर महसूस कर ले लेकिन उसे डर था कि अगर एक बार उसने उस बेमिसाल औज़ार-ए -चुदाई को अपने हाथ में ले लिया तो शायद फिर उसे आसानी से छोड़ नहीं पायेगी।

तभी शाज़िया उसी तरह हाई हील पहने नशे में डगमगाती वापस लौटी। यास्मिन की तरह शाज़िया भी गधे के लंड को सहलाने की नापाक जलील ख्वाहिश पर काबू पाने की कोशिश कर रही थी। "सॉरी यार... रॉंग नंबर था... ऐसे ही रंग में भंग पड़ गया... कितना मज़ा आ रहा था... चल मैं नये पैग बनाती हूँ... फिर..." शाज़िया बोलने लगी पर यास्मिन ने बीच में ही उसकी बात काटकर हंसते हुए कहा, "काफी पी ली आज शाज़िया मेरी जान... इससे पहले कि मैं यहीं लुढ़क जाऊँ मेरा ख्याल है कि मुझे अब बेडरूम में जा कर सो जाना चाहिए...!" यास्मिन की आवाज़ नशे में बहक रही थी।

"ओके डियर... पर पहले हमारा गुड ओल्ड ट्रैडिशन...! एक-एक वोडका शॉट...!" शाज़िया बोली। फिर उसने फ़ौरन दो छोटे-छोटे शॉट ग्लासों में नीट वोडका भरी और दोनों ने एक-दूसरे के बांह में अपनी बांह डाल कर एक ही साँस में वो तगड़ा शॉट पिया। फिर जब यास्मिन अंदर जाने के लिये खड़ी हुई तो दूसरी कुर्सी पर गिरते-गिरते बची। शाज़िया की तरह ही वो भी नशे में बेहद बदमस्त थी।

इस वक़्त तो बस वो किसी तरह कमरे में जाकर अपनी अँगुलियों से अपनी चूत को चोदकर धमाका ख़ेज़ झड़ने का ज़बरदस्त लुत्फ़ लेना चाह रही थी। वो उसी तरह डगमगाती हुई शाज़िया की तरफ बढ़ी और तकरीबन उस पर गिरते हुए उससे गले मिली। "चल यार! शब्बा खैर... तुझे भी बहुत चढ़ी हुई है... तू भी आराम कर... सुबह बात करेंगे..." कहते हुए यास्मिन ने धीरे से शाज़िया के गाल पर चुम्मा दिया और जैसे ही वो चलने के लिए पलटी तो नशे में से टकरा गयी। दोनों फिर खिलखिला कर हँस पड़ी।

यास्मिन ने गधे के लंड पर एक बार फिर हसरत भरी निगाह डाली और घर की तरफ झूमती हुई चल पड़ी। नशे की वजह से वो साढ़े चार-पाँच इंच ऊँची हील के सैंडलों में बैलेंस नहीं रख पा रही थी। शाज़िया ने उसे जाते हुए देखा और वो वहीं कुर्सी पर लुढ़कती हुई बैठ गयी। उसने नशे में थरथराते हाथों से अपने लिए एक और पैग बनाया। उसका एक हाथ ला-शुऊरी तौर पे खुद बखुद ही उसकी सलवार के ऊपर से ही चूत को सहलाने लगा।

उधर यास्मिन किसी तरह अपने बेडरूम में पहुँची। नशे और अपनी हवस में उसे दरवाजा बंद करने का भी होश नहीं था । खड़े-खड़े ही उसने फटाफट बेतरतीबी से अपनी पलाज़्ज़ो सलवार उतार फेंकी और आननफ़ानन कमीज़ भी उतार दी । पैंटी के ऊपर से उसने अपनी चूत पर अपना हाथ रखा तो चूत इतनी गर्म महसूस हुई कि यास्मिन को लगा कि उसकी हथेली पर छाले पड़ जायेंगे। साथ ही पैंटी इतनी तरबतर थी कि यास्मिन की हथेली भी भीग गयी। उसने अपनी अंगुलियाँ पैंटी के इलास्टिक में डाल कर पैंटी भी नीचे खिसकायी और निकाल कर एक तरफ उछाल दी। दीवार पर बारहसींगे का सिर लगा था और यास्मिन की चूत-रस से तरबतर पैंटी उछल कर बारहसींगे के सींगों में अटक गयी। कुछ पलों में उसकी ब्रा भी ऊपर पंखे पर लटकी हुई थी।

जितनी देर तक यास्मिन नंगी हो रही थी, वो नशे में ऊँची हील के सैंडल पहने खड़ी-खड़ी आगे पीछे गिरती हुई डगमगा रही थी। यास्मिन ने झुक कर अपनी चूत निहारी और उसे ताज्जुब हुआ कि वो कितनी मुश्त'इल और गरम थी। उसे ऐसा लगा जैसे ज़िंदगी में पहले उसकी शहूत इस कदर नहीं भड़की थी। उसकी चूत की गुलाबी फाँकें ऐसे खुली हुई थी जैसे कि मोतियों जैसी शबनम की बूँदों से भीगी हुई किसी गुलाब की कली की पँखुड़ियाँ खिल रही हों। उसकी चूत की दरार ने फैल कर अंडे की शक्ल इख़्तियार कर ली थी और चूत की अंदरूनी परतें चूत रस के झाग से भीगी हुई नज़र आ रही थीं। उसकी तनी हुई गुलाबी क्लिट भी बहर को खड़ी थी। चूत-रस की कईं धारें चू कर यास्मिन की अंदरूनी जाँघों से नीचे बह रही थीं।

यास्मिन ने अपनी अँगुलियों को अपनी चूत पे फिराया तो उसे अपनी सख्त क्लिट थिरकती हुई महसूस हुई। उसने धीरे से सहलाते हुए अपनी अँगुलियाँ चूत के अंदर खिसका दीं। उसकी चूत में लहरें उठने लगीं और उसके हाथ में और ज़्यादा चूत-रस बह निकला। वो दोनों हाथों से अपनी चूत रगड़ने लगी। वो वहीं फॉयर-प्लेस के पास खड़ी-खड़ी ही अपनी चूत की गर्मी कम कर लेना चाहती थी। लेकिन उसकी टाँगें बुरी तरह काँप रही थीं और नशे में उन हाई हील सैंडलों में वो टिक कर खड़ी नहीं हो पा रही थी। यास्मिन को लगा कि कहीं वो गिर ना पड़े।

यास्मिन लड़खड़ाती हुई पास ही रखी चमड़े की कुर्सी पर जा का इस तरह बैठ गयी कि उसकी ठोस गाँड सीट के किनारे पर टिकी थी और उसकी लंबी टाँगें फैली हुई थीं। उसी पल उसकी चूत में से रस बह कर यास्मीन की गाँड के नीचे लैदर की सीट पर फैल गया। एक पल के लिए अपनी चूत को बगैर छुए यास्मिन ने सारस की तरह अपनी सुराहीदार गर्दन आगे को निकाल कर अपना सिर झुकाया। यास्मिन झड़ने के लिए तड़प रही थी लेकिन फिर भी वो उसे टाल रही थी। उसे एहसास था कि आज उसका झड़ना निहायत ही तूफानी और ज़बरदस्त होगा और वो चूदासी औरत इसी उम्मीद में हवस में मदमस्त हो रही थी।

थोड़ा और नीचे झुक कर यास्मिन ने अपनी टाँगों के बीच में फूँक मारी। उसकी क्लिट धधकने लगी और चूत जलती हुई मालूम हुई जैसे कि उसने सुलगती हुई लकड़ी में अपनी साँस फूँक कर उसमें आग भड़का दी हो। अपनी चूत की शदीद गर्मी का झोंका उसे अपने चेहरे पर महसूस हो रहा था। अपनी ही चूत की तेज़ खशबू से उसकी नाक फड़क उठी। खुशबू सूंघते हुए वो सोचने लगी कि इसमें ताज्जुब वाली कोई बात नहीं थी कि वो गधा इतना हवस ज़दा हो गया था।

यास्मिन अपनी गोद में आगे झुकी। उसकी ज़ुबान उसके निचले होंठ पर आगे-पीछे फिसलने लगी। उसके मुँह में उसके झागदार थूक के बुलबुले उठने लगे। यासमीन सोच रही थी कि काश वो इतनी लचकदार होती कि खुद अपनी चूत चाट सकती। उसे अपनी चूत इतनी ज़ायकेदार और दिल-फरेब लग रही थी कि उसे अपनी ज़ुबान भी अपनी क्लिट जितनी ही मुश्त'इल महसूस हो रही थी। कितना मज़ेदार होता अगर वो अपनी खुद की चूत खा सकती और अपनी फड़फड़ाती ज़ुबान पर झड़ सकती। कितना शहवत-अमेज़ और सनसनी-ख़ेज़ होता अगर वो अपनी खुद की ही चूत का गरमागरम रस अपने ही मुँह में बहा सकती। झड़ते हुए अपनी ही चूत से लेसदार चिपचिपा रस पीने की दोहरी लज़्ज़त कितनी बेमिसाल होती। ये ख़याल उसे और उत्तेजित कर रहे थे और साथ ही तड़पा भी रहे थे क्योंकि वो जानती थी कि ये उसके बस की बात नहीं है। उसने पहले भी कई बार कोशिश कर रखी थी।

हांफते हुए फिर से पीछे हो कर यास्मिन अपनी गर्म और गीली अंदरूनी जाँघों पर अपने हाथ फिराने लगी। उसकी गाँड लैदर की सीट पर मथ रही थी और उसका पेट ऊपर-नीचे हो रहा था। उसने अपना एक हाथ चूत की मेंड़ पर रखा और उसकी अँगुलियाँ फिसल कर क्लिट को आहिस्ता से सहलाने लगी।

यास्मिन ने अपने दूसरे हाथ की चार अंगुलियाँ आपस में जोड़कर लंड की शक्ल में इकट्ठी करीं और धीरे से बाक़ायदगी से चूत में अंदर घुसा दीं। उसकी क्लिट निहायत हिलकोरे मारने लगी और चूत से बहुत सारा झाग निकलने लगा।

यास्मिन थरथराते हुए सिसकने लगी। वो एक हाथ की अंगुलियों से अपनी चूत को चोद रही थी और दूसरे हाथ से अपनी क्लिट सहला रही थी। उसकी जाँघें हिलोरे मारते हुए झटक रही थीं। वो जानती थी कि आज तस्कीन के लिए उसे एक से ज़्यादा बार झड़ना पड़ेगा।

उसकी पलकें बंद हो गयी और उसके हाथ शिद्दत से जुम्बिश देते हुए लुत्फ़-अंदोज़ी की पहली मलाईदार बुलंदी पर पहुँचने के लिए जुस्तुजू करने लगे। उसकी चूत जितनी गर्मी ही उसके दिमाग में भी चढ़ी हुई थी। कई तसव्वुर और तसवीरें उसके दिमाग में पुरजोश नाच रही थीं। बारबार उसके ख्यालों में गधे के जसीम लंड की तसवीर ही आ रही थी। उसे एहसास था कि अपनी चूत को अंगुलियों से चोदते हुए जानवरों के लौड़ों का तसव्वुर करना कितना वाहियात और ज़लील था, लेकिन ये ख्याल था कितना चुदास-खेज़ और बदमस्त।

ज़ोर से हिलकोरे मारती हुई एक लहर उसके पेट और चूत में दौड़ गयी। हांफते हुए यास्मिन ने अपनी चारों अंगुलियाँ पूरी की पूरी अपनी चूत में घुसा दीं। दूसरे हाथ से अपनी क्लिट को जोर से शदीद रगड़ते हुए यास्मिन अपनी तरबतर चूत के अंदर चारों अंगुलियाँ घुमाने लगी।

अचनक ही वो बा-शिद्दत झड़ने लगी। एक पल वो लुत्फ़-अंदोज़ी की बुलंदी पर मंडरा रही थी उर दूसरे ही पल उसकी चूत ज्वालमुखी की तरह फट पड़ी।

एक के बाद एक लहर उसके शरीर में हिलोरे मारती हुई दौड़ने लगी और एक के बाद एक ऐंठन उसकी चूत और जाँघों को झंझोड़ने लगी। यास्मिन को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसका पूरा जिस्म पिघल रहा है और रगों में चुदासी मस्ती की करोड़ों चिंगारियाँ फूट रही हैं और जैसे उसका दिमाग फट जायेगा और उसकी शिरयानें चूत के रस से भर गयी हैं।

यास्मिन आगे झुकी और फिर कमर पीछे मोड़कर अपनी चूत को अंगुलियों से लगातार चोदते हुए बदमस्त अपनी चूत का रस निकालने लगी और ऑर्गैज़्म की लहरें सिलसिला-वार फूटने लगी। उसकी चूत का रस उसके पेट के नीचे झाग बनाने लगा और उसकी धारायें टाँगों से नीचे बहने लगी। उसकी क्लिट में भी बार-बार धमाका होने लगा और हर धमाके के साथ उसकी चूत की गहराइयों से चूत-रस की धार फूट पड़ती।

चूत मे जुनूनी लज़्ज़त की एक जोरदार आखिरी लहर ने उसे झंझोड़ कर रख दिया और यास्मिन हाँफती हुई कुर्सी पर पीछे फिसल कर मुस्कुराने लगी। उसकी अंगुलियाँ अभी भी उसकी चूत में जुम्बिश कर रही थी कि कहीं कोई सनसनी ख़ेज़ लहर अंदर ना रह जाये। उसकी हवस कुछ कम हुई पर जैसे-जैसे उसने अपनी चूत को सहलाना जारी रखा, उसकी क्लिट फिर से तनने लगी। इतनी बार झड़ने के कुछ ही पलों के बाद वो चुदक्कड़ औरत फिर से हवसज़दा हो गयी थी।

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उधर शाज़िया ने भी अपना पैग खत्म किया और नशे में अपना ग्लास एक तरफ घास पर उछाल दिया। उसकी चूत भी भट्टी की तरह दहक रही थी। उसने अपनी कमीज़ के हुक खोलकर उतार दी। शाज़िया ने ब्रा नहीं पहनी हुई थी और उसकी भारी चूचियाँ बाहर उछल पड़ीं। शाम की पहाड़ी ठंडी हवा चल रही थी जिसके लम्स से उसके गुलाबी निप्पल तन कर सीधे खड़े थे। शाज़िया ने अपनी चुचियों को गूंधते हुए अपने सनसनाते निप्पलों को मरोड़ा। उसके निप्पल मानो उसकी अंगुलियों में तड़क-से उठे। उसने अपनी चूचियों को हाथों में भरकर ऊपर उठाया और साथ ही अपनी गर्दन झुका कर अपना सिर नीचे गिरा दिया। उसकी ज़ुबान चाबुक की तरह बाहर निकली और गरम शाज़िया अपनी ज़ुबान से अपने निप्पल चाटने लगी। पहले उसने अपने एक निप्पल को मुँह में लेकर चूसा और फिर दूसरे निप्पल को चूसने लगी।

"उमममम" वो मस्ती में बिल्ली जैसी घुरघुरायी। वो जल्दी ही अपने बेडरूम में जाकर शेरू और सिम्बा से चुदाई की आरज़ू कर रही थी। लेकिन वो चाहती थी कि पहले यास्मिन दूसरे बेडरूम में ठीक से गहरी नींद सो जाये, फिर वो अंदर अपने बेडरूम में बेफिक्र होकर कुत्तों के लौड़ों से अपनी चूत की आतिश बुझायेगी। उसे मालूम था कि यास्मिन भी अय्याश और चुदक्कड़ किस्म की औरत है पर उसे डर था कि कुत्तों से चुदाई की बात शायद यास्मिन आसानी से तस्लीम नहीं कर पायेगी। इसलिए शाज़िया ने कुछ देर तक वहीं बैठ कर अपने हाथों से मज़ा लेने का फैसला किया। उसने अपनी गर्दन घुमा कर देखा तो वो गधा नदारद था। शायद वो अपने छप्पर में चला गया था। उस गधे के जसीम लंड के नज़ारे ने उसे बेइंतेहा गरम कर दिया था।

उसने अपनी सलवार का नाड़ा खोला और टाँगों से सलवार नीचे खिसकाने लगी। सलवार के नीचे उसने काले रंग की बिकिनी पैंटी पहनी हुई थी जो महज एक सिल्क के बारीक पट्टे जितनी थी। चूत के ऊपर का पैंटी का पतला सा पट्टा शाज़िया की चूत के रस से तरबतर था और पैंटी के काले रेशमी कपड़े में से चूत के रस की सफ़ेद धारियाँ निकल रही थी। उसने पैंटी भी नीचे खींच कर एक तरफ घास पर उछाल दी। वो पैंटी जमीन पर ऐसे गिरी जैसे कि भीगे परों वाला काला पतंगा पड़ा हो। शाज़िया की चूत का रस उसकी चिकनी अंदरूनी जाँघों पर बह निकला।

छप्पर की तरफ से शाज़िया को गधे के रेंकने की हल्की सी आवाज़ आयी। उस गधे के हलब्बी लंड के तसव्वुर की वजह से ही शाज़िया की चूत का इस वक्त ये हाल था। शाज़िया ने झुक कर अपनी चूत को निहारा। यास्मिन की तरह उसने भी कई बार कोशिश की थी अपनी चूत खुद चाट सके पर कभी कामयाब नहीं हो पायी थी। चूत का रस उसे बेहद लज़ीज़ लगता था। कॉलेज के दिनों में हॉस्टल में वो दूसरी लड़कियों की चूत चाट कर उनके चूत-रस पिया करती थी और अपनी चूत भी दूसरी लड़कियों से चुसवाती थी। लेकिन पिछले कई सालों से वो किसी लड़की या औरत के साथ हम-बिस्तर नहीं हुई थी। शाज़िया को यास्मिन का ख्याल आया। दोनों ने हॉस्टल में कितनी ही बार एक दूसरे की चूत चाटी थी। यास्मिन आज भी उसे काफी सैक्सी लगी थी। शाज़िया ने सोचा कि यास्मिन के वापिस जाने के पहले एक बार उसे फुसला कर लेस्बियन चुदाई का मज़ा जरूर लेगी। पर इस वक़्त तो गधे के लंड का ख़याल उसके तसव्वुर में था और अपनी चूत में भड़कती चुदास को तस्कीन करने के लिए उसे अपने दोनों कुत्तों के लौड़ों की जरूरत थी।

वो अपनी चूत-रस से भीगी अंदरूनी जाँघें सहलाने लगी और बीच-बीच में चूत पर भी हाथ फेरने लगी। उसकी चूत के होंठ फड़कते हुए फैल गये और उसकी क्लिट किसी बंदूक की गोली की तरह छूट कर बाहर को निकली। शाज़िया की चूत में से नशीली खुशबू बाहर बह कर हल्की सी ठंडी सुहानी हवा में शुमार होने लगी।

शाज़िया की चूत की मीठी खुशबू हवा के साथ बह कर पीछे छप्पर तक पहुँची जहाँ वो गधा खड़ा था और उसका लंड अभी भी उसकी टाँगों के बीच झूल रहा था। उसके मुलायम और गीले नथुने फड़कने लगे और चूत की खुशबू से उसका लंड हथौड़े की तरह हवा को कूटने लगा और उसके बड़े टट्टे उसकी पिछली टाँगों के बीच में झूलने लगे। वो लालसा से रेंकने लगा।

शाज़िया को उसकी फरियादी कराहें सुनायी दी और उसकी अंगुलियाँ चूत में धंस गयी। उसे ख्याल आया कि गधे का लंड कितना बड़ा सख्त और गरम था - और यकीनन ही इस वक़्त भी वो इसी हालत में होगा। इस ख्याल ने उसके अंदर एक नयी तमन्ना और जोश फूंक दिया और वो पूरे जोश में अपनी चूत में चार अँगुलियाँ डाल कर चोदने लगी। उसकी क्लिट जोर से फड़क रही थी और उसकी तंदूर जैसी दहकती चूत से उसका रस किसी छोटे-से दरिया कि तरह बाहर बहने लगा।

छप्पर में से फिर गधे की कराहें सुनायी दी और शाज़िया का हाथ एक बार फिर हल्का पड़ गया।

अगर गधे के लंड और टट्टों का तसव्वुर करके अपनी चूत को अंगुलियों से चोदने में इतना रोमाँच और मज़ा आ रहा था तो उसे असलन देखते हुए झड़ने में कितना मज़ा आयेगा। नशे में चूर उसके दिमाग में नयी हवसनाक हसरत छाने लगी थी। उसने अपना सिर झटका तो गधे के लंड की तस्वीर थोड़ी सी डाँवाडोल हुई पर मिटी नहीं। ऐसा लग रहा था जैसे उस बेवकूफ़ गधे के मूसल जैसे लंड की तस्वीर शाज़िया के ज़हन में छप गयी थी। उसे अपनी वाहियात हसरत पर हल्की सी शर्मिंदगी हुई पर ये शर्मिंदगी पल भर का एक हल्का सा जज़्बा था जो शहवत-परस्ती और हवस के शोलों की गरमी में आसानी से पिघल कर खाक हो गया। शाज़िया के होंठों पर एक मुस्कुराहट आयी और उसने फैसला कर लिया कि वो छप्पर में जायेगी और अपनी चूत को अंगुलियों से चोदते हुए जब तक जोर से झड़ कर लुत्फ़-अन्दोज़ नहीं हो जाती तब तक गधे के लंड और टट्टों पर अपनी नज़रें सेंकेगी।

ये इतना भी फ़ुजूर और वाहियात नहीं था, शाज़िया ने खुद को यकीन दिलाया। लंड को देखना उसका तसव्वुर करने के बराबर ही तो था -- और बेशक इतना सा ही तो उसका इरादा था। हालांकि उसने गधों और घोड़ों के लंड को चूसने और उनसे चुदने की का पहले भी कईं मर्तबा तसव्वुर किया था पर शाज़िया को अपने ऊपर भरोसा था और अगर उसके ज़हन में शक था भी तो ऐतबार के तौर पे नशे में वो जोर से चिल्लाते हुए बोली, "खुदा कसम! मैं उसके लंड को सिर्फ निहारूँगी... और कुछ नहीं!"

फिर उसने अपनी गर्दन हिलायी जैसे कि उसे खुद पे यकीन हो गया हो।

अपने फ़ुजूर इरादों से वो और भी हवस ज़दा हो गयी हालांकि उसे एहसास नहीं था कि उसकी करतूत कितनी फ़ासिक़-ओ-फ़ाजिर होने वाली थी। यास्मिन की नामौजूदगी की यक़ीन-दिहानी के लिए शाज़िया ने एक बार घर के दरवाजे की तरफ देखा। वो अपनी बदकार कमीनी हरकतों में यास्मिन के जानिब से कोई बखेड़ा नहीं चाहती थी लेकिन यास्मिन का वहाँ कोई नामोनिशान नहीं था।

असल में, यास्मिन जो खुद कुछ कम नहीं थी, घर के अंदर अपनी ही हरकतों में मशग़ूल थी - और जल्दी ही और भी ज्यादा मसरूफ़ होने वाली थी जिसका ना तो उसे और न ही शाज़िया को एहसास था।