साथी हाथ बढ़ाना Ch. 02

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सेठी साहब के चेहरे पर मेरी बात सुनकर जो आनद के भाव मैंने देखे उसको मैं कभी नहीं भूल सकती। शायद मेरे और सेठी साहब के मिलन की वह सबसे बड़ी विशिष्टता थी। मैं ना सिर्फ सेठी साहब को मेरे बदन को सम्भोग और आनंद के लिए अर्पण कर रही थी पर साथ साथ में शायद उनकी वैवाहिक जीवन में फँसी हुई गाँठ को भी सुलझा ने की कोशिश कर रही थी। सेठी साहब के चमक उठे चेहरे से उनकी अपनी मनोदशा का अंदाज मुझे लग सकता था। सेठी साहब ने झुक कर मेरे होंठों से अपने होंठ मिलाये और मुझे चूमते हुए बोले, "टीना, मेरा तुम पर कोई क़र्ज़ नहीं। बल्की अब मैं तुम्हारा कर्ज़दार बन गया हूँ। मैं तुम्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करता हूँ, बशर्ते की सुषमा भी राजी हो। और मैं जानता हूँ की सुषमा ना सिर्फ राजी होगी, बल्कि यह बात सुनकर झूम उठेगी।"

हालांकि सेठी साहब ने मेरे मना करने पर कंडोम नहीं निकाला पर अपनी सूटकेस में से एक छोटी सी बोतल जरूर निकाली जिसमें शायद कोई जेल या ऐसा ही स्निग्ध पदार्थ होगा। क्यूंकि उन्होंने वह जेल या ऑइंटमेंट या कुछ हद तक तेल जैसा चिकना पदार्थ अपने लण्ड के चारों और अच्छी तरह से लगा कर उस बोतल में अपनी दो उंगलियां डुबो कर निकाल कर उन्होंने मेरी चूत को भी अंदर से काफी अच्छी तरह से चिकनाहट से लथपथ किया। उस अनुभव को याद करते समय आज भी मैं रोमांचित हो जाती हूँ की उनका ऐसा करने से उन्होंने मेरी कितनी यातनाएँ कम कीं।

मेरे बिस्तरे पर नग्न लेटे हुए सेठी साहब ने वह सब कार्यक्रम किया और फिर सेठी साहब आगे बढे और मेरे लेटे हुए बदन को अपनी टाँगों के बिच में रख कर मुझ पर सवार हुए। मैंने अपनी टाँगें ऊपर कर सेठी साहब के कंधे पर रख कर उन्हें अपने लण्ड को मेरी चूत के केंद्र पर रखने के लिए इशारा किया। सेठी साहब का लण्ड जैसे ही मेरी चूत की सतह को छुआ तो मेरे पुरे बदन में एक सिहरन सी दौड़ पड़ी। मेरे रोंगटे सेठी साहब के लण्ड के मेरी चूत को छूने से खड़े हो उठे। मैंने मेरे एक हाथ की उँगलियों में सेठी साहब का वह विशाल लगता हुआ लण्ड पकड़ा। यह लण्ड मेरी चूत में कैसे और कितना घुसेगा यह सोच कर ही मैं कांपने लगी। सेठी साहब के लण्ड को देखते हुए मुझे ऐसा लगता था की मेरी पूरी चूत की नाली को पूरी तरह से अंदर तक भर जाने के बाद भी वह शायद आधा बाहर ही रह पायेगा। पूरा मेरी चूत में जा नहीं पायेगा। मुझे मेरे पति ने ऐसे वीडियो दिखाए थे जिसमें मर्द का लण्ड इतना लंबा होता था की औरत की चूत भर जाने के बाद भी आधा बाहर रह जाता था।

उस समय मुझे सेठी साहब के सामने नंगे अपनी दोनों टांगें सेठी साहब के कंधे पर रखी हुई चुदवाने के लिए तैयार होते हुए भी कोई शर्म का एहसास नहीं हो रहा था क्यों की मैं अपने मन कर्म और वचन से सेठी साहब को अपना सर्वस्व मान चुकी थी और उन्हें अपना सर्वस्व अर्पण करने के लिए बेताब थी। मैंने सेठी साहब के मोटे लण्ड को अपनी उँगलियों में मेरी चूत के केंद्र बिंदु पर सेट किया और सेठी साहब ने भी मेरी उँगलियों के पीछे ही अपने लण्ड को अपनी उँगलियों में पकडे हुए थोड़ा सा मेरी चूत की पंखुड़ियों की सतह पर चिकनाहट बढ़ाने के लिए रगड़ते हुए धीरे से अंदर घुसेड़ा। मैं भली भाँती जानती थी की यह मेरे लिए बड़ी ही नाजुक संकट की घडी थी। सेठी साहब के उस तगड़े लण्ड के दाखिल होने से मेरी चूत की त्वचा के पूरी तरह खींचने और चौड़ा होने की क्रिया में मुझे असह्य दर्द का सामना करना पडेगा। शायद मेरी चूतमें से खून का भी कुछ स्राव हो। पर हर औरत को पहली बार चुदवाते हुए यह दर्द झेलना ही पड़ता है। मैं भी इतने बड़े तगड़े लण्ड से पहली बार ही चुदवा रही थी तो मेरे लिए भी यह दर्द झेलना अनिवार्य था।

सेठी साहब ने अपने लण्ड को मेरी चूत में दाखिल कराने के लिए दिया वह पहला धक्का मैं जिंदगी भर कभी नहीं भूल पाउंगी। वह धक्के के चलते हुए सेठी साहब के उस विशालकाय लण्ड के मेरी चूत में दाखिल होने के कारण मेरी चूत की नाली की त्वचा शायद कहीं ना कहीं से थोड़ी जरूर फट गयी होगी। क्यूंकि लण्ड के मेरी चूत में दाखिल होते ही मेरे पुरे बदन में इतने जबरदस्त दर्द की एक लहर दौड़ उठी की ना चाहते हुए भी मेरे मुंह से तीखी चीख निकल गयी। मेरी चीख इतनी तेज थी की पास वाले दूसरे कमरे में लेटा हुआ मेरा बच्चा कुछ पल के लिए जाग उठा और रोने लगा। निचे सोये हुए सब लोग मेरी चीख सुन कर भाग कर ऊपर ना आ पहुंचे इस डर से मेरी जान निकल रही थी। मेरी चूत से शायद थोड़ा सा खून रिस रहा होगा, क्यूंकि सेठी साहब ने अपना लण्ड मेरी चूत में ही रखते हुए टेबल पर रखे हुए टिश्यू बॉक्स से एक टिश्यू निकाल कर मेरी चूत की पंखुड़ियों को पोंछा।

अगर सेठी साहब ने कुछ समय पहले जो क्रीम की बोतल में से वह जो चिकनाहट देने वाला पदार्थ अपने लण्ड की सतह पर और मेरी चूत की अंदरूनी दीवारों पर अच्छी तरह से ना लगाया होता तो मैं उस समय जब सेठी साहब का लण्ड मेरी चूत में पहली बार घुसा तो चीख तो निकल ही जाती पर उस भयानक दर्द से शायद मैं बेहोश भी हो जाती।

शायद मेरी चीख हमारे कमरे के बंद दरवाजे के बाहर नहीं गयी। बच्चे का ध्यान रखने के लिए मैंने हमारे दो कमरों के बिच का दरवाजा खुला रखा था इसी लिए बच्चा कुछ पलों के लिए जाग उठा पर गहरी नींद में सोये होने कारण वापस फ़ौरन सो भी गया। सेठी साहब का तगड़ा लण्ड मेरी चूत में दाखिल हो चुका था। मैं उसे भली भाँती मेरी चूत की नाली में महसूस कर रही थी। वह दर्द और उस तगड़े लण्ड की चमड़ी का मेरी चूत में इतनी तगड़ी तरहसे जकड़े होने का अद्भुत मज़े का अनुभव अकल्पनीय और ना भूलने वाला था। मैंने सेठी साहब को उसी पोजीशन में अपना लण्ड मेरी चूत में जकड़े हुए रखने के लिए कुछ देर के लिए आगे चुदाई करने से रोक दिया। मैं उस पल का पूरी तरह आस्वादन करना चाहती थी। मैं जानती थी की आगे चल कर सेठी साहब मुझे महीनों तक चोदेंगे और मुझे सेठी साहब से कई बार चुदना है। पर यह पहली बार का उस तगड़े लण्ड का मेरी छोटी सी चूतमें जकड़े रहने के एहसास का अवर्णनीय मजे का वह पल मैं पूरा अनुभव करना चाहती थी।

शायद सेठी साहब भी उस आनंद का आस्वादन करना चाह रहे थे या फिर मेरी उस इच्छा का सम्मान करते हुए आगे मुझे चोदने से अपने आपको कुछ समय के लिए रोके हुए थे। मैंने कुछ समय उस लण्ड की सख्ताई को मेरी चूत में महसूस करने के बाद सेठी साहब को आगे चुदाई जारी रखने का इशारा किया। सेठी साहब से मेरी पहली बार की चुदाई बड़ी दर्दनाक होते हुए भी गजब की आनंद दायक थी। उस मोटे तगड़े लण्ड का मेरी चूत की नाली में रगड़ रगड़ कर अंदर बाहर जाने के मुकाबले में मेरी आजतक मेरे पति के द्वारा हुई चुदाई कुछ भी नहीं थी। मुझे पहली बार मेरे पति की बारबार कही हुई बात याद आयी की एक शादीशुदा औरत के लिए गैर मर्द के तगड़े लण्ड से चुदाई करवाने का आनंद अद्भुत होता है। मैं मेरे पति की उस बात का उस वक्त कोई तबज्जोह नहीं दे रही थी। पर सेठी साहब से चुदवा कर मुझे मेरे पति की बात का तथ्य समझमें आया। और यहां तो कोई ऐरागैरा गैर मर्द नहीं, मैं अपने चहिते मर्द सेठी साहब से चुदवा रही थी जो खुद भी गजब के इंसान थे और उनका लण्ड तो कमाल का था ही। तो उस चुदाई का आनंद तो गजब होना ही था।

सेठी साहब की इस पहली चुदाई और मेरे पति के चोदने के तरीके में एक बहुत बड़ा अंतर था। मेरे पति जब शुरू हो जाते थे तो एक तेज दौड़ती हुई रेलवे के स्टीम इंजन के पिस्टन की तरह चोदते ही रहते थे जब तक की वह फारिग नहीं हो जाते। पर सेठी साहब मुझे भी चुदाई का पूरा मजा दिलाना चाहते थे और खुद भी पूरा लुत्फ़ उठाना चाहते थे। इस लिए पहलीबार लण्ड घुसेड़ कर वह रुके, फिर उन्होंने लण्ड थोड़ा और घुसेड़ा और फिर धीरे धीरे धक्के मार कर अपने लण्ड को जैसे रेलवे का स्टीम इंजन स्टेशन से गाडी छूटने के समय धीरे धीरे अंदर बाहर अंदर बाहर होता है वैसे ही मेरी चूत में अंदर बाहर करते रहे और उसके साथ होते हुए घर्षण का पूरा आनंद वह खुद भी उठा रहे थे और मुझे भी दे रहे थे।

क्या यह उनका मेरे लिए स्पेशल उपहार था मुझे नहीं मालुम, पर चुदाई करते हुए वह कभी सर झुका कर मेरे मम्मों को चूमते तो कभी मुझे मेरी रानी, तुम कितनी टाइट हो, तो कभी मेरे होँठों पर अपने होँठ चिपका कर जैसे वह होँठों को चूस कर मुझे पूरा निगल ही जाएंगे उस आक्रामकता के साथ प्यार किया करते। इस कार्यकलाप में सेठी साहब का अजगर जैसा लंबा लण्ड मेरी चूत में पूरा का पूरा कब घुस गया मुझे पता ही नहीं चला नाही कोई ख़ास दर्द महसूस हुआ। मुझे बड़ा ताज्जुब हुआ जब सेठी साहब ने मुझे दिखाया की उनका पूरा लण्ड मेरी चूत में घुसा हुआ है और मुझे महसूस हुआ की वह मेरी बच्चे दानी को ठोकर मार रहा था।

मेरे प्यारे प्रेमी का लण्ड पूरा अंदर ले कर मुझे भी बड़े ही गर्व का अनुभव हुआ। मुझे उस वक्त पता चला की स्त्री के चूत की सुरंग कितनी लचीली हो सकती है की पहली बार तो लण्ड घुसाते हुए काफी दर्द होता है पर धीरे धीरे धीरे जैसे जरुरत पड़ती है, आने आप को फैला कर बड़े से बड़ा लण्ड भी ले लेती है। बल्कि जब बच्चा पैदा होता है तो उसे भी जन्म दे पाती है।

वैसे तो मैं मेरे पति से पचासों बार चुदी गयी हूँ। पर सेठी साहब के साथ का वह पहला अनुभव कुछ अजीब ही था। मैं बिस्तर पर निष्क्रिय लेटी हुई आँखें मूँद कर सेठी साहब के उस महाकाय लण्ड को मेरी चूत की सुरंगों में अंदर बाहर होते हुए जो उन्माद महसूस कर रही थी, कोई भी मर्द उसकी कल्पना तक नहीं कर सकता। अपने प्यारे प्रियतम से चुदवाते हुए और ख़ास कर जब वह अपना अति प्यारा कोई गैर मर्द (पति ना हो कर कोई अतिरिक्त व्यक्ति) हो, तो एक स्त्री कैसा अनुभव कर सकती है वह मैंने उस समय अनुभव किया। मैं शादीशुदा स्त्रियों से यह जरूर आग्रह करुँगी की अगर कोई स्त्री मेरे जैसी सदभागी हो जिसे सेठी साहब जैसे प्यारे प्रियतम से चुदवाने का मौक़ा मिले तो कम से कम एक बार तो उससे जरूर चुदवाये। यह मौक़ा गंवाने पर हम स्त्रियों को शायद यह ग़म रह जाए की जब मौक़ा मिला था तब चौका नहीं मारा, और सारी जिंदगी मन मसोस कर रहना पड़े। अगर वह प्रियतम कहीं सेठी साहब के जैसा तगड़े लण्ड वाला और तगड़ा चोदने वाला हो तो बात ही क्या।

सेठी साहब से चुदवाते हुए आँखें मूंदे हुए भी भी चोरी से पलकोँ के एक कोने से जब सेठी साहब मेरे अंदर अपना वह जबरदस्त लण्ड पेल रहे थे तब मैं सेठी साहब के चेहरे के भाव भाँपने की कोशिश कर रही थी। मुझे सेठी साहब के निचे लेटे हुए भी जब सेठी साहब अपना लण्ड सम्हाल कर घुसेड़ना निकालना यह कर रहे थे उनके चेहरे पर एक अजीब से उन्माद की छाया नजर आ रही थी। मेरे लिए उनके जहन में जो प्यार था वह उनके चेहरे के भाव से स्पष्ट दिख रहा था। पुरुष और स्त्री के बिच की यह चुदाई की प्रक्रिया भी भगवान ने अजीब पैदा की है। जब तक चुदाई ना हो तब तक पुरुष और स्त्री एक दूसरे को मिलने के लिए तिलमिलाते रहते हैं। जब चुदाई शुरू हो जाती है तो फिर चुदाई के अलावा कुछ भी नहीं दिखता।

मैंने पहली बार किसी गैर मर्द से चुदवाया था। गैर मर्द से चुदाई के बारे में ज्यादा अनुभवी ना होने के कारण मैं यह तो नहीं कह सकती की सेठी साहब की वह चुदाई दूसरे मर्दों के मुकाबले कैसी थी, पर जो कुछ भी मैंने महसूस किया मैं इतना जरूर कह सकती हूँ की शायद ही कोई मर्द मुझे इतना आत्मसंतोष दे पाता जितना सेठी साहब ने मुझे उस पहली चुदाई में और उसके बाद हुई अनेकानेक चुदाईयों में दिया।

सेठी साहब के लण्ड घुसाने के फ़ौरन बाद जब मैं उस शुरू के तीखे मीठे दर्द से उभरी, तो मैंने महसूस किया की मैं झड़ चुकी थी। उस चुदाई के दरम्यान मैं सेठी साहब के लण्ड को थोड़ा सा भी महसूस करती और मेरा छूट जाता। उस रात सेठी साहब ने पहले राउंड में मुझे बिना रुके शायद आधे घंटे तक चोदा होगा। उस बिच मैं कम से कम चार बार झड़ चुकी थी। पर सेठी साहब थे की थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे। मुझे सेठी साहब का यह टेम्पो बहुत ही भाया। मेरे पति तो एक बार शुरू करते तो फिर उन्हें खतम होने में समय नहीं लगता था। हर बार जब जब मैं झड़ती तो सेठी साहब रुक कर झुक कर अपना लण्ड मेरी चूत में से ना निकालते हुए मुझे खूब सारा लाड और प्यार करते। मुझे सेठी साहब से चुदवाने में जो गर्व और स्त्री होने का अभिमान महसूस हुआ मैं उसके लिए सेठी साहब की सदा सर्वदा ऋणी रहूंगी।

आधे घंटे के बाद भी सेठी साहब ने अपना वीर्य जस के तस ही रखा हुआ था। मेरी नजर अनायास ही कमरे में दिवार पर टंगी घडी पर जा पहुंची। रात के बारह बज रहे थे। सेठी साहब ने मुझे घडी की और देखते हुए पकड़ लिया। उन्होंने ने मेरे चेहरे से देखा की मैं कुछ थक चुकी हूँ। सेठी साहब की पूरी चुदाई के दरम्यान जो एक बात हमेशा मौजूद थी वह थी उनकी आँखों में मेरे लिए अद्भुत प्यार के भाव। अक्सर जब औरत एक मर्द से चुदवाती है तो मर्द और औरत, दोनों का ध्यान अपने लिंगों पर होता है। दोनों अंगों के बिच में चमड़ी के घर्षण से पैदा होता हुआ उन्माद का अधिक से अधिक आनंद वह दोनों उठाना चाहते हैं। ऐसा होना भी चाहिए। हम दोनों के दरम्यान भी ऐसा ही था। पर सेठी साहब की प्यार भरी आँखें पूरी चुदाई के दरम्यान मेरी आँखों को बड़े प्यार से और अपनेपन से ताकती रहतीं थीं। उनकी आँखें मुझे पूरी चुदाई के दरम्यान शायद यह एहसास दिलाना चाहतीं थीं की वह सिर्फ मेरे बदन को नहीं पर मेरी पूरी हस्ती को बेतहाशा प्यार करते हैं।

मुझे थकी हुई महसूस कर वह बोले, "चलो थोड़ी देर आराम कर लो। चाय पीते हैं।"

मैंने यह दिखाने की कोशिश भी नहीं की की मैं थकी नहीं हूँ। मैंने कुछ बहादुरी का स्वांग करते हुए कहा, "सेठी साहब आज रात मुझे पूरी रात ही आपके साथ गुजारनी है। मैं एकदम तैयार हूँ। पर चलिए अगर आपकी चाय पिने की इच्छा है तो यह ही सही।"

मुझे बिना बताये मेरी भाभी ने पहले से ही सेठी साहब के कमरे के कोने में एक छोटे से प्लेटफार्म पर गैस स्टोव पर चाय का सारा सामान और कुछ बिस्कुट रखे हुए थे। मेरी भाभी बड़ी ही समझदार थी। पता नहीं पर शायद उसने ताड़ लिया होगा की सेठी साहब के साथ मेरी क्या सेटिंग थी। जब हम सब रात का खाना खा कर फारिग हुए तब भाभी ने मुझे बाजू में बुला कर मेरे कानों में कहा, "ननदजी, तुम्हारे सेठी साहब कुछ उखड़े उखड़े से लगते हैं। तुम ऊपर जाओ और उन्हें मनाओ, वरना सुबह उठते ही कहीं वह भागने का ड्रामा शुरू ना कर दें। मैंने सेठी साहब के कमरे में चाय नाश्ते का भी इंतजाम कर रखा है। क्या पता शायद रातमें तुम्हें उन्हें मनाते हुए चाय बनाकर पिलानी ही पड़ जाए।"

भाभी की यह बात सुन कर मुझे बड़ा ही झटका सा लगा। मैं डर गयी की कहीं मेरी भाभी को मेरे और सेठी साहब के सम्बन्ध के बारे में पता ना चल जाए। पर भाभी ने मेरे कन्धों पर हाथ रखते हुए मेरे कानों में कहा, "ननदजी, फ़िक्र ना करो। घर में किसी को कुछ भी पता नहीं है और ना ही पता चलेगा। मैं जो तुम्हारे साथ हूँ। अरे यही मौक़ा होता है हम वफादार बीबियों को मौके पे चौका लगानेका। वरना तो रोज वही मर्द, वही बिस्तर, दो धक्के मारे और सो गए। वही सब कुछ। समझ गयी ना? अभी आपको मौक़ा है, पूरी तीन रात। जाओ लगाओ मौके पे चौका। मैं जानती हूँ सब, तुम बिलकुल फ़िक्र ना करो। मैं भी तुम्हारी जात की ही हूँ। जब मौक़ा मिले तो चौका मारने से कतराती नहीं हूँ। अभी तुम्हारा मौका है, जाओ।"

मेरी भाभी की बात सुन कर मैं ठिठुर कर रह गयी। उस समय मुझे पता नहीं था की भाभी के कहने का क्या मतलब था। पर हाँ, मुझे यह यकीन तो हो गया की सब कुछ जानते हुए भी भाभी मेरे और सेठी साहब के बारे में कुछ नहीं बोलेगी। कहीं ना कहीं वह उलटा मुझे इशारा कर रही थी की मुझे क्या करना चाहिए। जब मैं चुप रही तो मुझे ऊपर भेजते हुए धक्का मारते हुए बोली, "हायरे! कितने हैंडसम हैं सेठी साहब! भाभी, आप कमालकी नजर रखती हो। मानना पडेगा! क्या हाथ मारा है!"

फिर भी मैं जब ना हिली तो कुछ तंग सी आकर भाभी झुंझलाहट में बोली, "आप जाती हो या आपकी जगह मैं चली जाऊं? आप के भाई को मैं समझा दूंगी। जरुरत पड़ी तो आजकी रात तुम्हारे भैया अकेले सो जाएंगे। फिर यह मत कहना की मैंने तुम्हारे मुंह से निवाला छीन लिया।" फिर मेरी और मुस्कुराती हुई नजर कर बोली, "अब ज्यादा ड्रामा मत करो, जाओ और फ़तेह करो। जाकर देखो कहीं मियाँ गुस्से में लाल पिले ना हो रहे हों की अब तक क्यों नहीं आयी?"

भाभी से बात करने के बाद मेरा इरादा और पक्का हो गया। भाभी ने मेरी हिम्मत बढ़ा दी थी। भाभी ने बातों ही बातों में इशारा कर ही दिया की शायद भाभी की भी कहीं ना कहीं अपनी सेटिंग चल रही थी। तब कहीं जा कर माँ और पापा से बात कर मैं मुन्ने को लेकर जब ऊपर की मंजिल की सीढ़ियाँ चढ़ने लगी तो मैं पूरी तरह से अभिसारिका बन चुकी थी। मैं अपने पीया से मिलने के लिए बेताब हो रही थी। मैं सेठी साहब से चुदवानेका पहला सोपान पार कर चुकी थी। भाभी की बात सुन कर मुझे लगा की मैं भी मेरी भाभी की टोली में शामिल होने जा रही थी। एक शादीशुदा औरत ही जान सकती है की ऐसा सपोर्ट मिलने पर एक औरत जो किसी और मर्द से चुदवाने के लिए अपना मन बना रही हो उसे कितनी तसल्ली मिलती है। दूसरे दिन सुबह जब मैं अपनी भाभी से मिलूंगी तो वह मुझे चोरीछुप्पी मेरी रात की चुदाई के बारे में जरूर पूछेगी तब मैं उनको क्या कहूँगी, यह सोच कर ही मैं परेशान हो रही थी। आधी रात को चाय बनाते हुए यह सब खयालात मेरे जहन में दौड़ रहे थे।

चाय बनाने के लिए मैं जब उठ खड़ी हुई तो मैंने बिस्तरे के कोने में रखी मेरी साड़ी खिंच ली और आननफानन में अपने नंगे बदन के इर्दगिर्द लपेट ली। सेठी साहब चाहते थे की मैं नंगी ही उनके लिए चाय बनाऊं। पर आखिर में उन्होंने मुझे साड़ी लपेटने दी। पर चाय बनाना और ऊलजलूल लिपटी हुई साड़ी को सम्हालना दोनों काम एकसाथ करने काफी मुश्किल होते हैं। मेरी साड़ी भी तो फिसलन वाली थी। कई बार मेरा पल्लू खिसक जाता और मेरे स्तन नंगे हो जाते। सेठी साहब पलंग के एक छोर पर बैठे बैठे मेरी यह जद्दोजहद मुस्कुराते हुए देखते ही रहे। एक बार तो मेरी साड़ी मेरी कमर से खिसक कर पूरी निचे गिर गयी और मैं नंगी सेठी साहब के सामने खड़ी हो गयी। सेठी साहब ने उठ कर मुझे अपनी बाँहों में जकड़ लिया और फिर से कुछ पलों के लिए प्यार करते रहे। पुरे नंगधंडंग सेठी साहब और उनका हवा में लहराता हुआ वह डरावना लण्ड जिसके ऊपर सेठी साहब ने मुझे अपनी गोद में बिठाया। यह सब मेरे लिए एक सपने के समान था। आज जब मुझे वह पल याद आते हैं तो मेरे रोंगटे रोमांच से खड़े हो जाते हैं।

चाय पिने के बाद सेठी साहब कुछ रोमांटिक मूड में दिखे। मैंने चाय बनाते हुए जो साडी आननफानन में मेरे नंगे बदन पर लपेटी हुई थी उस आधे नंगे बदन के हालात में मुझे अपनी लाज छिपाने की कोशिश करते हुए देख वह काफी उत्तेजित हो उठे। मुझे पलंग पर खिंच सेठी साहब ने मुझे अपनी गोद में बिठा दिया और मुझसे अठखेलियां करने लगे। मेरी लिपटी हुई साडी के अंदर हाथ डाल कर वह मेरे स्तनोँ को प्यार से सहलाने लगे। स्तनों को सहलाते हुए मेरी आँखों में आँखें डालकर बोले, "टीना, मैं सच कह रहा हूँ, मैं तुमसे कभी दूर नहीं रह पाउँगा। सुषमा मेरी जान है पर तुम ने मुझे ऐसा प्यार दिया है की मुझे तुमने अपना ग़ुलाम बना दिया है।"

मैंने सेठी साहब के लण्ड को अपने हाथों में सहलाते हुए उनके होठों पर एक हलकी सी चुम्मी देकर कहा, "सेठी साहब, मैं आपकी दूसरी बीबी हूँ। सुषमाजी का आप पर पहला हक़ है। मेरे लिए और मेरे पति के लिए भी आप और सुषमाजी दोनों हमारी जान हैं। अभी जब हम दोनों यहां एक दूसरे से प्यार कर रहे हैं तो क्या पता सुषमाजी और राज भी शायद यही कर रहे हों?"

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इधर सुषमाजी और राज की कहानी को भी पनपना ही था। चलिए सुनते हैं क्या हुआ सुषमाजी और मेरे पति के बिच।

सुषमा और राज की कहानी राज की जुबानी

जब सेठी साहब टीना को लेकर कार में निकले थे उस समय मैं ऑफिस में था। शाम को घर लौटते समय कुछ सब्जी फल इत्यादि सुषमाजी के लिए ले आया। जब तक टीना वापस नहीं लौटती, मेरा खाना अब उन्हीं के वहाँ होना था। पहुँचने के पहले ही मैंने फ़ोन कर बता दिया था तो सुषमाजी भी मेरा इंतजार कर रहीं थीं। मेरे पहुँचते ही मैंने पाया की सुषमाजी ने टेबल पर चाय नाश्ता तैयार रखा हुआ था।

सुषमाजी के बारे में एक बात कहनी पड़ेगी। हालांकि वह सेठी साहब के साथ रह कर बड़ी ही ज़मीनी बातें करतीं थीं, सुषमाजी का अंतर्मन बड़ा ही संवेदनशील था। मैंने उनके अंदर छिपा हुआ एक अत्यंत संवेदनशील इंसान, जो एक कलाकार या कला को समझने और सराहने वाला होता है, पाया। जब भी हम कोई कला या ऐसी ही कोई संवेदनशील बातें करते, सुषमाजी अक्सर भावुक हो जातीं। इसी कारण मेरा और सुषमाजी का स्वाभाविक तालमेल पहली ही मुलाक़ात से हो गया था। मैं संगीत और कला का दीवाना था। सुषमाजी संगीत और कला के संसार में पहले से ही डूबी हुई थीं।

सुषमाजी ने मुझे जल्दी फ्रेश होकर आने के लिए कहा। करीब आठ बजे फ्रेश होकर घर का कुछ काम निपटा कर मैं सुषमाजी के वहाँ जब पहुंचा तो सुषमाजी ने मेरे लिए ड्रिंक और कुछ नमकीन बगैरह रखे हुए थे। उन्हें मालुम था की सेठी साहब के साथ अक्सर मैं ड्रिंक करने का आदि था। सुषमाजी कभी एकाद ड्रिंक पी लेती थीं। मेरे आग्रह करने पर उन्होंने मेरा साथ देने के लिए अपना जाम भी थोड़ा सा भरा।

अक्सर सुषमाजी दिन में साड़ी या लंबा गाउन पहनी हुई होती थीं पर उस शाम चेक्स वाला स्कर्ट और ऊपर एक हल्कासा टॉप पहने हुए वह जब मेरे सामने बैठीं तो बरबस मेरी नजर बार बार उनकी खुली हुई जाँघों और टॉप में से बड़े ही अच्छी तरह उभरे हुए उनके स्तन मंडल पर जाकर अटक जातीं थीं जिन्हें उन्होंने जरूर देखा। मेरी नजर को देख कर वह शर्मा कर हँस देतीं और अपनी जाँघें कुछ कस कर जोड़ती हुईं फिर से बातों में लग जातीं।

सुषमाजी और मेरे बिच में वह बात नहीं थी जो सेठी साहब और टीना के बिच में हो सकती है। सेठी साहब की तरह मैं सेक्स में आक्रामक नहीं हूँ। पुरुष और स्त्री के बिच का विजातीय आकर्षण मुझ पर भी हावी होता है पर सेठी साहब की तरह व्हिस्की की किक की तरह एकदम धमाके से नहीं, बल्कि हलकी वाइन की तरह होले होले। शायद मेरी यह बात सुषमाजी को काफी अच्छी लगी थी।

मैं यह बात कतई नहीं मना करूंगा की मेरे मन में सुषमाजी के हर एक अंग को करीब से देख कर उसे छूने और उन्हें बड़ी शिद्दत से प्यार करने की बड़ी तगड़ी इच्छा थी। बल्कि उनको पहली बार देखते ही उनके बदन की नंगी छबि देखने के लिए मैं दिन रात तडपता रहता था। पर मैंने कभी उस बात को ना ही उजागर किया ना ही मेरे दिमाग पाए हावी होने दिया। सही मौका मिलते ही सब कुछ होगा यह मैं जानता था और सही मौके की तलाश में ही रहता था। जल्द बाजी से मामला बिगड़ सकता है यह मैं भली भाँती समझता था।

सुषमाजी भी सेठी साहब की तरह ही एक अच्छी मेजबान थीं। अपने मेहमान को कैसे प्रसन्न करना वह भलीभांति समझती थीं। मुझे बातों में उलझाए वह अपना गिलास वैसे ही भरा हुआ रखे हुए मेरे गिलास में एक के बाद एक ड्रिंक भरती जाती थीं। मैंने एक दो बार यह महसूस भी किया पर सुषमाजी की बातें इतनी मधुर और आकर्षक होती थीं की समय और शराब का कोई ख्याल ही नहीं रहा। मैंने भी बातों बातों में सुषमाजी को उनका गिलास खाली करने पर मजबूर किया और एक और ड्रिंक उनके गिलास में भी डाली। शायद सुषमाजी मेरे आग्रह का इंतजार कर रहीं थीं। उस गिलास को खाली होने में पहले गिलास जितना समय नहीं लगा।

मैंने महसूस किया की माहौल काफी नाजुक सा हो रहा था पर वह बात नहीं बन पा रही थी जो मैं और शायद सुषमाजी भी चाहतीं थीं। कहीं ना कहीं कुछ कमी सी महसूस हो रही थी। अचानक मेरी नजर ड्राइंग रूम में दीवारों पर लगे बड़े शास्त्रीय संगीतकारों की तस्वीरों पर पड़ी। शायद सुषमाजी को खोलने की चाभी मुझे मिल गयी थी। मैंने सुषमाजी के करीब जा कर उनका हाथ थाम कर कहा, "सुषमाजी, इस मीठे वातावरण को अगर संगीतमय बना दिया जाए तो सोने में सुहागा लग जाए।"

मैंने देखा की मेरी बात सुन कर सुषमाजी के मुंह की रौनक बढ़ गयी। उन्होंने फ़ौरन अपना मोबाइल उठाया और मेरी और बड़ी ही प्यार भरी नज़रों से देखते हुए कहा, "अब मैं समझी की टीना जैसी कामिनी सुंदरी को तुमने अपने चंगुल में कैसे फसाया। तुम्हें स्त्रियों की नाजुक संवेदनाओं को जगाने में महारथ प्राप्त है। मैं तुम्हारी संगीत में रूचि देख कर कभी से सोच रही थी की एक दिन मैं तुम्हें अपने प्यारे संगीतकारों की कला से ना सिर्फ परिचित कराउंगी बल्कि उनमें से कुछ के घरानों से जो हमारे परिवार के निजी ताल्लुकात थे उसके बारे में बात भी करूंगी।"

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