साथी हाथ बढ़ाना Ch. 04

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मेरी बात सुन कर माया घबरा गयी। उसने कभी सोचा भी नहीं था की बात कभी यहां तक आ सकती थी। माया ने उलझन में मेरी और देखा और कुछ झिझकते हुए बोली, "दीदी, मुझसे यह सब कैसे होगा? काम तो मुश्किल है, पर उनके लिए मैं अपनी जान तक दे सकती हूँ।" फिर कुछ शर्माती हुई बोली, "दीदी, सच कहूं? आप मुझे गलत मत समझना। सपने में तो मैं कई बार आपके जेठजी से चुदवा चुकी हूँ। उनके लिए मैं कुछ भी कर सकती हूँ।"

मैंने माया की और शरारत भरी मुस्कान करते हुए माया की पीठ थपथपाते हुए कहा, "अरे वाह रे मेरी होने वाली जेठानी! अब तक तो तू मेरे जेठजी को बड़े भैया, बड़े भैया कहने से नहीं थकती थी। पर जैसे ही उनसे चुदवाने की बात आयी तो तू मेरे जेठजी को भैया कहने से ही कतराने लगी? ठीक है, तू जा अब और मेरे जेठजी को अपने वश में कर ले। अगर तूने आज रात मेरे जेठजी को अपने वश में कर लिया तो मैं तुझे मेरी जेठानी मान लुंगी।"

मेरे कहने पर माया ने चाय की केतली और कप बगैरह उठाये पर वह तब भी ऊपर सुदर्शन भाई साहब के कमरे की और जाने से हिचकिचा रही थी। मैंने माया को लगभग धक्के मारते हुए ऊपर भैया के कमरे में भेजा और मैं निचे क्या होता है उसका इंतजार करने लगी। बार बार मेरी और देखती हुई घबराती शर्माती माया आखिरकार सुदर्शन भाई साहब के कमरे में जा पहुंची। मुझे इंतजार करते हुए काफी समय बीत गया।

माया का आधा घंटा इंतजार करने के बाद भी जब वह वापस नहीं आयी तो मैं समझ गयी की शायद मेरा तीर निशाने पर लग चुका था। मैं अपने कमरे में जाने के लिए उठ खड़ी हो ही रही थी की मैंने अचानक जेठजी के ऊपर के कमरे में से माया की दबी हुई चीख सुनी। मैं ठिठक कर खड़ी हो गयी। तब मुझे भरोसा हो गया की माया ने अपने स्त्री चरित्र द्वारा जेठजी को उसकी चुदाई करने के लिए राजी कर लिया था। जेठजी उसी समय माया की चुदाई करना शुरू कर रहे थे। मैं जानती थी की मेरे जेठजी का लण्ड कितना जबरदस्त तगड़ा था।

जेठजी हमेशा सुबह सुबह बाहर पार्क में सैर करने चले जाया करती थे। एक दिन मैं उसी समय यह सोच कर की जेठजी बाहर घूमने गए होंगे, उनके कमरे में कुछ काम के सिलसिले में गयी। मैंने देखा की जेठजी उस दिन सैर करने गए नहीं थे और पलंग पर धोती पहने सोये हुए थे। अचानक मेरी नजर पड़ी तो मैंने देखा की उनकी धोती इधरउधर हो जाने से उनका लण्ड उनकी धोती के बाहर निकल गया था। मैंने उनके उस महाकाय लण्ड को जब देखा तो मेरे होश उड़ गए। मेरी उस उम्र में भी मैंने कई अच्छेखासे तगड़े लण्ड देखे थे और कुछ लण्डों से चुदवाया भी था। पर जेठजी का लण्ड जैसे कोई इंसान का नहीं घोड़े का हो ऐसा लंबा और वाकई में बड़े टोपे वाला बहुत ज्यादा मोटा था। हालांकि उस समय वह ढीला शुषुप्त अवस्था में था फिर भी ऐसा महाकाय लग रहा था। कहीं मुझे ऐसे लण्ड से चुदवाना पड़ा तो मेरी तो चूत ही फट जायेगी।

अगर जेठजी ने उस लण्ड से माया को चोदना शुरू किया होगा तो माया की चीख तो निकलनी ही थी। खैर माया को तो उस रात जेठजी के उस लण्ड से चुदना ही था। माया की चीखें और कराहटें सुनते हुए खुश होती हुई मैं अपने बैडरूम की और चल पड़ी। मुझे पक्का भरोसा हो गया की माया की चूत तो उस रात फट कर ही रहेगी। मैं चुपचाप माया के लिए अपने मन में उपरवाले से प्रार्थना करती हुई अपने बिस्तर में मेरे पतिदेव संजूजी के बगल में जा कर सो गयी।

मेरे ख़याल से शायद दो घंटे से तो ज्यादा ही हो गए होंगे जब मैंने अपने बैडरूम के दरवाजे पर हलकी सी दस्तख सुनी। मैं फ़ौरन चौकन्ना हो कर उठी और माया को देख उसे ले कर बाहर आँगन में आयी। मैं संजूजी को जगाना नहीं चाहती थी। उस समय माया का हाल देख कर मेरे मन में बचाखुचा शक भी गायब हो गया। माया बड़ी मुश्किल से चल पा रही थी। यह साफ़ दिख रहा था की मेरे जेठजी ने उस रात माया की इतनी तगड़ी चुदाई की थी जैसी शायद माया ने अपनी पूरी जिंदगी में नहीं करवाई होगी। मैंने जब माया को गौर से देखा तो माया के गाल पर भी निशान थे। माया बड़ी मुश्किल से खड़ी हो पा रही थी। माया मुझे देख कर शर्म के मारे लाल लाल हो रही थी। मैं समझ गयी की मेरा तीर बिलकुल निशाने पर लगा था।

मैंने माया का हाथ थाम कर उसे आँगन में एक चौखट पर बैठाया और उसे बड़े प्यार से पूछा, "क्या हुआ माया? तू इतनी शर्मा क्यों रही है? कुछ हुआ जेठजी के साथ?"

माया ने अपनी नजरें जमीन में गाड़े रखते हुए कहा, "अंजुजी, सब कुछ हो गया। यह पूछो की क्या नहीं हुआ।"

मैंने पूछा, "क्या मतलब सब कुछ हो गया? क्या हुआ यह तो बताओ?"

माया ने कहा, "अंजू जी क्या बताऊँ? जो एक मर्द और औरत के बिच जो कुछ भी हो सकता है वह सब कुछ हो गया।"

मैं माया का जवाब सुनकर झुंझला उठी। पर फिर भी संयम रखते हुए पूछा, "माया, मैं समझ सकती हूँ की क्या हुआ होगा। पर अब मुझे विस्तार से बताओ की एक्ज़ेक्टली क्या हुआ? देखो मुझ से शर्म मत करो। हम दो औरतें हैं। तुम्हें मुझसे शर्मा ने की जरुरत नहीं है। साफ़ साफ़ शब्दों में बताओ। मुझे घुमा फिरा के बात करना या सुनना पसंद नहीं है। क्या सुदर्शन भाई साहब ने तुम्हें चोदा?"

माया ने मेरी और अपनी आँखें बड़ी चौड़ी कर कुछ भयावह दृष्टि से देखा और बोली, "अंजू जी आप भी ऐसे बोल रहे हो?"

मैंने माया के कान पकड़ कर बोला, "वाह रे मेरी जेठानी! तू जेठजी से चुदवा कर आ गयी और मैंने चोदना शब्द बोला तो तुझे बुरा लग गया? अरे भोली बहन, चुदाई करना या उसके बारे में बोलना कोई गंदा नहीं होता। जो हम करते हैं उससे मुंह क्या छुपाना? देखो हमारा जनम ही हमारे माँ बाप के चुदाई करने से हुआ है ना? तो उसमें गंदा क्या है? तू मुझे स्पष्ट रूप से बता की क्या हुआ? मैं और तुम दोनों औरतें हैं। मुझसे शर्म मत कर। देखो मेरे से अगर तूने गोल गोल बात की तो मेरी तेरे से नहीं बनेगी। इस लिए जो हुआ उसे साफ़ साफ़ बता। लण्ड चूत यह मर्द और औरत के अंग हैं। इस का नाम लेने में शर्म काहे की? जब तेरी शादी हुई तब तूने भी तेरे पति से चुदवाया ही था ना? और अब तू अभी अभी जेठजी से चुदवा कर ही आयी है ना? तो फिर मुझसे क्या छुपाना?"

माया मेरी बात सुन कर नजरें निचीं कर के स्तब्ध सी मुझे देखती रही। फिर कुछ हिचकिचाती हुई बोली, "दीदी, आपकी बात तो सही है। मेरे पति भी मुझे यही कहते थे जो आप कह रही हो। आपके जेठजी ने भी इसके लिए मुझे अच्छीखासी नसीहत दे डाली है। कमरे में घुसते ही मुझे आपके जेठजी से बड़ी तगड़ी डाँट पड़ गयी। आप के कहने से मैं आपके जेठजी के पास गयी। और फिर जो आप चाह रहे थे वह हो ही गया। दीदी मेरे शरीर के इस हाल पर मत जाइये। जो हुआ इससे मैं बहुत खुश हूँ। मैं आपका बहुत बहुत शुक्रिया अदा करती हूँ की आपने मुझे सही रास्ता दिखाया। आज आपने मुझे जबरदस्ती उनके कमरे में भेजा और मेरी जिंदगी बन गयी। अगर मैं आज नहीं जाती तो पता नहीं मैं जीवन में यह सुख दे पाती या नहीं। अब आप को मैं बिना कुछ भी छिपाये सब बताती हूँ।"

मैंने माया को मेरे एकदम करीब बिठाया और उसकी पीठ पर प्यार से हाथ फेरते हुए उसे पूछा, "अब तुम बिलकुल निश्चिन्त हो कर खुले दिल से मुझे साफ़ साफ़ बताओ की क्या हुआ। कुछ भी छोड़ना मत।"

माया ने अपनी मुंडी हिला कर अपना बयान शुरू किया। जो माया ने कहा उसे मैं अपने शब्दों में कह रही हूँ। मेरे धक्के मार कर माया को बड़ी मुश्किल के साथ जेठजी के ऊपर वाले कमरे में भेजने के बाद माया जब कमरे के दरवाजे पर पहुंची तो मैने नीचे से देखा की वह दरवाजे पर ही कुछ देर खड़ी रही और ऊपर से मुझे देखती रही। निचे से मैंने उसे बार बार इशारा किया की धक्का मार और दरवाजा खोल कर अंदर चली जा। आखिर में माया घबराती हुई दरवाजे को धक्का मार कर कमरे में दाखिल हुई। जेठजी अपने कमरे का दरवाजा अक्सर अंदर से बंद नहीं करते थे। उनको दरवाजा बंद करने की जरुरत ही नहीं पड़ती थी क्यूंकि हम में से किसी की हिम्मत नहीं होती थी की कोई भाई साहब के कमरे में बिना बुलाये जाए। सिर्फ माया ही थी जो साफ़ सफाई बगैरह करने के लिए दिन के समय में जेठजी के कमरे में जाती थी।

जब माया कमरे में दाखिल हुई तो जेठजी बिकुल नंगे पलंग पर बैठे हुए थे। उनके पलंग पर उनके बाजू में एक किताब पड़ी थी। ऊपर पंखे के चलते हुए किताब के पन्ने फरफरा रहे थे। माया ने देखा की उसमें कई युवा सुन्दर लड़कियों के नग्न चित्र और नग्न पुरुष और स्त्रियों के मैथुन के दृश्य दिख रहे थे। जेठजी की आँखें बंद थीं और वह एक हाथ में अपना लण्ड रखे हुए मुठ मार रहे थे। माया झिझकती हिचकिचाती हुई आगे बढ़ी। माया के क़दमों की आहट सुन कर जेठजी ने आँखें खोली और माया को कमरे में आते हुए देखा। माया को देखते ही वह एकदम सकपका गए। हड़बड़ाहट में अपने बदन को चद्दर में ढकते हुए उन्हों बड़े ही आश्चर्य के साथ माया की और देखा। माया डरी हुई आतंकित नजरों से जेठजी के पलंग के पास आ कर कुछ समझ ना आने पर की वह क्या बोले, बोल उठी, "क्या मैं अंदर आऊं?"

जेठजी को समझ नहीं आया की माया का सवाल सुनकर क्या कहे। पर उनका गुस्सा अब उनके चेहरे पर साफ़ दिख रहा था। जेठजी ने तीखी आवाज में कहा, "आ तो तुम गयी ही हो, कमरे में। अब क्यों पूछ रही हो? क्या तुम्हें पता नहीं की कमरे में बेवक्त आने पर दरवाजे पर दस्तक देते हैं? तुम इस वक्त मेरे कमरे में क्यों आयी?"

जेठजी का ग़ुस्सेलि डाँट सुनकर माया की सूरत रोनी सी हो गयी। वह डरी हुई बोली, "जी, आपकी तबियत ठीक नहीं थी तो मैं आपको चाय देने के लिए आयी थी और आपके हाल पूछने के लिए आयी थी।"

जेठजी का पारा यह सुनकर और ऊपर चढ़ गया। उन्होंने दहाड़ते हुए पूछा, "तो तुम्हें यही वक्त मिला था चाय के लिए और खबर पूछने के लिए? दिन में नहीं आ सकती थी क्या?"

जेठजी की ऊँची गरजती हुई आवाज सुनकर माया आतंकित सी हो कर डर गयी और अचानक से फफक फफक कर रोने लगी। उसने रोते हुए कहा, " आज जल्दी सुबह यहां से कमरा साफसूफ करने के बाद जब मैं निचे गयी तब अंजू दीदी ने मुझे बताया की आपकी तबियत ठीक नहीं है। उन्होंने आज मुझे दिनमें कई बार कहा की मैं आपके हाल पूछूं और चाय दे कर आऊं। पर दिन में आप कमरे में कुछ काम कर रहे थे तो मेरी हिम्मत नहीं हुई आपके कमरे में आने की। अब जब मैं रात की रसोई के काम से फारिग हुई तो दीदी ने मुझे जबरदस्ती आपके पास भेजा तो मैं आयी। मुझे देर हो गयी, तो आप ने मुझे इतनी डाँट लगा दी।" यह कह कर माया फर्श पर बैठ कर रोने लगी।

माया को रोते हुए देख जेठजी का दिल कुछ पसीजा। वह तो बिलकुल नंगे पलंग पर बैठे थे, जल्दी से आननफानन में उन्होंने एक चद्दर अपनी कमर पर लपेटी और उठ कर खड़े हुए और माया के पास जा कर उसके हाथ थाम कर उसे खड़ा किया और उसे अपने पास खींच कर ढाढस देते हुए माया की पीठ पर हाथ फिराते हुए बोले, "माया, ठीक है, कोई बात नहीं। पर अब रोना बंद कर। चुप हो जा। मुझे कोई महिला दुखी हो या रोये यह बिलकुल पसंद नहीं। यह ध्यान रहे की हमेशा जब भी आना हो पहले दस्तक दे कर जब इजाजत मिले तब कमरे में आते हैं। देख तूने आज इस तरह अचानक आकर मुझे कितना जलील महसूस कराया। अब तू चाय यहां छोड़ दे और यहां से जा। बहु को कह देना मेरी तबियत अब ठीक है।" फिर अपनी नग्नता और चद्दर की और इशारा करते हुए बोले, "पर खबरदार, जो इस सब के बारे में किसीको कुछ बताया तो।"

माया ने रोते हुए ऊपर नजरें उठा कर जेठजी की आँखों से आँखें मिलायीं और अपनी मुंडी हिला कर बोली, "जी, मुझे माफ़ कर दीजिये। आगे से ध्यान रखूंगी और ऐसी गलती कभी नहीं करुँगी। पर मुझे डाँटिए मत। मुझे डर लगता है।"

माया की भोली सरल बात सुन कर जेठजी का गुस्सा गायब हो गया। उनसे अपनी मुस्कुराहट रोकी नहीं गयी। उन्होंने कुछ मुस्काते हुए माया की और देखा। जब माया ने देखा की मेरे जेठजी गुस्से में नहीं थे तब उसकी हिम्मत बढ़ गयी। जब माया ने जेठजी से आँखें मिलायीं तो उसके स्त्री सहज स्वभाव ने जेठजी की आँखों में स्त्री के सहवास की अतृप्त छिपी हुई वासना देखि। हरेक स्त्री को भगवान ने यह जन्मजात क्षमता दी है की वह पुरुष की आँखों में झाँक कर कह सकती है की पुरुष की नजर में कामना या लोलुपता है या नहीं।

माया ने पहले भी कई बार जेठजी के कमरे में काम करते हुए उसकी पीठ के पीछे जेठजी की कामुक नज़रों को महसूस किया था। पर जैसे माया की नजर जेठजी पर पड़तीं, जेठजी फ़ौरन अपनी नजरें माया के बदन से हटा लेते। कई बार अचानक जब माया जेठजी को अपने बदन को झाँकते हुए देख लेती तो आँखें मिलने पर जेठजी खिसिया जाते और अपनी नजरें फेर लेते। माया का बदन जवानी में पुरबहार खिला हुआ था। माया की बिना कपड़ों से ढकी हुई पतली कमर और माया के ब्लाउज और ब्रा के बाहर उसके भरे हुए स्तनोँ का कामुक उभार जो माया के काम करते हुए झुकने से और भी फुला हुआ नजर आता था, उसकी गाँड़ का उसकी कमर के निचे फैलाव, जब कमरे में घुटनों के बल बैठ कर अपनी साड़ी उठा कर कमरे में झाड़ू लगाती या पोछा करती तो माया की लम्बी सुआकार जांघें, यह सब जेठजी की नज़रों से माया छिपा नहीं पाती थी। शायद कहीं ना कहीं माया यह छिपाना भी नहीं चाहती थी या यूँ कहिये की माया उन्हें जेठजी को शातिर तरीके से दिखाना चाहती थी पर वह इस तरह की किसीको ऐसा भी ना लगे की वह दिखा रही थी।

जैसे जेठजी ने माया को अपने पास लिया और माया की पीठ पर ढाढस देते हुए हाथ फिराने लगे तो माया को मेरी कही हुई बात याद आयी। जेठजी का उसकी पीठ पर हाथ फिराने से माया की कामुकता भी जागृत हो उठी थी। माया ने जेठजी की आँखों में भी वही कामुकता का भाव देखा था। अब अगर यह मौक़ा गँवा दिया तो ऐसा मौक़ा दुबारा पता नहीं कब मिले। माया को यह भी पता था की अगर उसने कुछ नहीं किया और वैसे ही वापस आ गयी तो मैं उसे जबरदस्त डाँटूंगी और शायद मैं माया से बोलचाल भी बंद करदूँ वह भी माया जानती थी। बिना कुछ सोचे समझे माया तब जेठजी से लिपट गयी और रोते हुए बोली, "देखिये जी, मैं आपको ऐसे हाल में देख नहीं सकती। यह ठीक नहीं।"

माया को अपने से इस तरह सख्ती से लिपटते हुए देख जेठजी के होशोहवास उड़ गए। वह हैरान होते हुए बोले, "तुम क्या नहीं देख सकती? क्या ठीक नहीं? यह तुम क्या कर रही हो, माया?"

माया ने जेठजी के सवाल का कोई जवाब ना देते हुए चद्दर में छिपाए हुए जेठजी के लण्ड को चद्दर के ऊपर से ही अपनी हथेली में पकड़ कर कहा, "देखिये जी, मेरे होते हुए आपको अपने हाथ से इस तरह इसे सहलाने की क्या जरुरत पड़ गयी? क्या मैं मर गयी थी? मैं आपकी दासी हूँ। आप ने मुझ पर इतने एहसान किये हैं की आज मेरी यह जिंदगी, मेरा वजूद, मेरी इज्जत सब आपकी ही बदौलत है। आप मुझे जैसे चाहें इस्तेमाल करें। ना तो मैं आपको मना करुँगी, ना मैं ज़रा सा भी बुरा मानूंगी और ना तो मैं आप के ऊपर कोई भी हक़ जताऊँगी। आपने मुझे नया जीवन दिया है। आपने मुझे बिना मोल खरीद लिया है। मुझे आप से कोई पद या अधिकार नहीं चाहिए। मैं अपना बचा खुचा जीवन आपके चरणों में आपकी रखैल बनकर गुजारना चाहती हूँ। आपको नजरें छिपा कर मुझे देखते रहने की क्या जरुरत है? आप मुझे पुरे अधिकार से मेरे कपडे निकाल कर या जैसे चाहे मुझे देखिये। आप मुझे कहिये मैं आपके लिए क्या करूँ? मैं आपको मेरे पुरे बदन पर सम्पूर्ण अधिकार देती हूँ। बस मुझे आप अपनी सेवा का मौक़ा दीजिये। और आप यह विश्वास रखिये की मैं हमारे बिच की बात किसीको भी नहीं जाहिर करुँगी। जैसे मैं अब तक आपकी नौकरानी बन कर रह रही हूँ ऐसे ही रहूंगी।"

जैसे ही माया ने जेठजी के लण्ड को हाथ में लेने के लिए चद्दर पकड़ी तो बदन के ऊपर आननफानन में लपेटी हुई चद्दर खिसक कर निचे गिर पड़ी और जेठजी माया के सामने बिलकुल नंगे हो गए। जेठजी का कसरती सख्त बदन और लंबा कद माया के पतले कमसिन बदन के सामने एक छोटे से पतले पेड़ के सामने जैसे पहाड़ खड़ा हो ऐसा लग रहा था। जेठजी का तगड़ा मोटा लंबा लण्ड माया की नजर के सामने सख्ती से खड़ा हो गया। माया ने जेठजी का लण्ड इतने करीब से पहली बार साक्षात रूप में जब देखा तो उसके होश ही उड़ गए। पहली बार उसने देखा था वह दूर से और साफ़ नहीं देखा था। नजदीक से देख कर माया को चक्कर आने लगे। माया ने कभी इतना बड़ा और इतना मोटा लण्ड देखा नहीं था। वैसे माया ने अपने पति के आलावा किसी और का लण्ड ही नहीं देखा था। माया ने बिना कुछ सोचे समझे जेठजी के लण्ड को अपनी हथेली में लिया और उसे प्यार से सहलाने लगी। जेठजी की सख्ती और गुस्सा पल भर में गायब हो गया। माया के छूते ही जेठजी का लण्ड फुंफकारने लगा। जेठजी अपने आप पर काबू नहीं पा रहे थे।

जेठजी का बुरा हाल हो रहा था। जब माया जेठजी के कमरे में दाखिल हुई थी उस समय जेठजी किसी पोर्न किताब पढ़ रहे थे और पढ़ कर आँखें मूँद कर उसे याद कर अपना लण्ड सेहला रहे थे। उस उत्तेजना से वैसे ही जेठजी का लण्ड पुर बहार था। जैसे जेठजी का लण्ड काफी लंबा और मोटा था वैसे ही उनके लण्ड के मूल पर स्थित लण्ड का अण्डकोष भी बड़ा मोटा, फुला हुआ, गोरा और गोलाकार था। जेठजी के ब्रह्मचर्य का पालन करने के कारण जेठजी के लण्ड का अण्डकोष वीर्य से लबालब भरा हुआ था। जेठजी का लण्ड कम से कम आठ इंच लंबा तो होगा ही और गोलाई में छः इंच से ज्यादा ही होगा। माया के पति के लण्ड के मुकाबले तो जेठजी का लण्ड राक्षसी लण्ड ही कहा जा सकता था। जेठजी के लण्ड पर कई रक्तपेशियाँ कुछ गोरी और कुछ थोड़ी सी नीली लण्ड की गोलाई पर फैली हुईं दिख रहीं थीं।

माया जेठजी का गोरा, चिकना लण्ड देख कर मोहित सी कुछ देर तक टकटकी लगाए हुए उसे देखती ही रही। अचानक माया फर्श पर जेठजी की टाँगों के बिच अपने घुटनों के बल, निचे गिरी हुई चद्दर पर आधी बैठी और आधी खड़ी हुई। उसके पहले की माया को ढाढस देने के लिए आये हुए जेठजी कुछ समझ सकें, माया ने जेठजी की दोनों टाँगों को अलग किया और उनके बिच में अपने लिए जगह बनाने के लिए उनको अपने हाथों से खिसका दिया। जेठजी को अपनी टाँगें फैला कर खड़ा कर माया उनके लण्ड के पास अपना मुंह ला कर अपनी जीभ से माया जेठजी के लण्ड का टोपा चाटने लगी। जब जेठजी ने माया को अपना लण्ड चाटते हुए पाया तो उनकी सिट्टीपिट्टी गुम हो गयी। उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था की माया ऐसा कुछ करेगी।

माया ने धीरे धीरे फर्श पर अपनी टाँगों के बल आधे खड़े हुए जेठजी का जितना लण्ड मुंह में जा सकता था मुंह में लिया और उसे काफी शिद्दत से चूसने लगी। जेठजी अपने ऊपर का सारा नियंत्रण खो चुके थे। अब उनका सारा ध्यान उनके लण्ड पर था जो माया के मुंह में वी.आई.पी ट्रीटमेंट पा रहा था। जेठजी ने बगैर प्रयास किये अनायास ही माया के मुंह को अपने लण्ड से चोदना शरू किया। उन्होंने यह सब कहानियों में जरूर पढ़ा था और वीडियो में देखा था। उससे पहले उनको ऐसा कोई अनुभव था ही नहीं। कुछ देर तक माया जेठजी का लण्ड उसी पोजीशन में चूसती रही। माया ने देखा की जेठजी खड़े खड़े लण्ड चुसवाने में कुछ दिक्कत महसूस कर रहे थे तब उसने अपने मुंह से जेठजी का लण्ड निकाला और जेठजी को साथ में ले कर उन्हें पलंग के किनारे पर बिठा दिया और खुद बिलकुल उसी तरह घुटनों के बल जेठजी की दोनों टांगों के बिच में बैठ कर दुबारा जेठजी का लण्ड मुंह में लेकर इस बार बड़ी ही मशक्क्त से चाटने और चूसने लगी। चूसते हुए वह अपने मुंह की चिकनी चिकनी लार को निकाल कर जेठजी के लण्ड पर चुपड़ती रही। वह लार जिसमें से धागे जैसे चिकनाहट निकलती है जिसे वह जेठजी के लण्ड के ऊपर चुपड़ रही थी। जेठजी का इतना तगड़ा लण्ड देख कर माया बहुत ज्यादा डरी हुई थी। वही लण्ड उसे अपनी चूत में डालना होगा यह एक भयावह प्रस्ताव था जिससे वह पीछे नहीं हट सकती थी और हटना भी नहीं चाहती थी।

माया इतनी दक्षता से जेठजी का लण्ड चूसने लगी की जेठजी अपने होशोहवास खो बैठे। उन्हें अब यह ध्यान ही नहीं रहा की क्या सही था और क्या गलत। जेठजी माया का सर अपने हाथों में पकड़ कर वह माया का मुंह आगे पीछे करवा कर अपने लण्ड से माया का मुंह चोद रहे थे। माया बार बार ऊपर जेठजी की और देख कर खुश हो रही थी की जेठजी उसके लण्ड चूसने से बड़े ही उत्तेजक स्थिति में खो गए थे।

कुछ देर बाद जब माया ने देखा की जेठजी कहीं उसके मुंह में अपना वीर्य ना छोड़ दें, माया ने जेठजी का लण्ड अपने मुंह से निकाला। माया जेठजी का हाथ थाम कर खुद पहले पलंग पर लेट गयी। जेठजी बेचारे नंगधडंग, चुपचाप माया के पास पलंग पर जब जा पहुंचे तब माया ने उनको अपने ऊपर खींचा और संकेत दिया की वह उसके ऊपर चढ़ जाएँ। जेठजी अब पूरी तरह माया के वश में आ चुके थे। माया ने जेठजी को अपनी बाँहों में लिया और उनके होंठ से अपने होंठ चिपका दिए। अब जेठजी पूरी तरह से माया की माया में खो चुके थे। अब उनमें अपनी कोई समझ या विवेक बचा नहीं था। उनका पूरा ध्यान उस वक्त सिर्फ और सिर्फ अपने लण्ड के अलावा कहीं और नहीं था।

जैसे माया ने अपने रसीले होँठों को जेठजी के होँठों से चिपका दिए, जेठजी बेतहाशा माया के होँठों को पागल की तरह चूमने, चूसने और काटने लगे। अब उनके हाथ भी माया के पुरे बदन को खंगालना चाहते थे। वह माया के बदन के एक एक घुमाव, मोड़, उभार और दरार को महसूस करना चाहते थे। उन्होंने उसके पहले माया को जरूर कुछ हद तक कामुकता की दृष्टि से देखा होगा, पर उस रात माया पूरी तरह से उनके कब्जे में थी और उन्हें कोई रोक या बंदिश नहीं थी। वह माया के साथ जो चाहे कर सकते थे। माया ने अपने आप को सौ फीसदी जेठजी के हाथों में सुपुर्द कर दिया था।

जेठजी बिना कुछ सोचे, माया के ब्लाउज के ऊपर से ही उसके फुले हुए मदमस्त स्तनोँ को सेहलाने और मसलने लगे। माया ने जेठजी की और देखा और हल्का सा मुस्कुरा कर बोली, "देखिये जी, आप मेरे मालिक हैं। आप ज़रा भी झिझकिये मत। आप मुझे जो चाहे कर सकते हैं। मैं आपकी रखैल हूँ और अबसे जीवन भर रहूंगी। आप अपने बदन की सारी भूख मिटा दीजिये। आज के बाद आपको अपना यह (माया ने जेठजी के लण्ड की और इशारा करते हुए कहा) अपने हाथ से हिलाने की जरुरत नहीं पड़ेगी। मैं उसे अपने मुंह से चूसूंगी और आप उसे मेरे यहां (माया ने अपनी चूत की और इशारा कर कहा) इसमें डाल कर अपनी सारी हवस पूरी कर सकते हैं। यह आज से आपकी ही है। आज से मेरा सब कुछ आपका ही है।" यह कह कर माया ने जेठजी के हाथ उस के ब्लाउज के बटनों के ऊपर रख दिए।

जेठजी अपनी हवस की ज्वाला में उन्मत्त, जल्दी से माया के ब्लाउज के बटनों को खोल कर माया के ब्लाउज को निकाल दिया। उसके फ़ौरन बाद उन्होंने ब्रा के हुक भी खोल दिए और माया की उद्दंड चूँचियों को ब्रा के बंधन से आझाद कर दिया।

शायद जेठजी ने उससे पहले किताबों, फोटो और वीडियो को छोड़ किसी भी औरत की नंगी चूँचियाँ प्रत्यक्ष नहीं देखीं होंगी। माया के उद्दंड स्तनों को देख कर जेठजी की आँखें फ़टी की फ़टी रह गयीं। ब्लाउज को पहने हुए माया की छाती का जो आकर्षक उभार जेठजी ने पहले देखा था वही स्तनोँ को उस रात नंगे देख कर जेठजी अपनी आँखों पर विश्वास नहीं कर पाए। माया के गोरे चिकने स्तन उसकी छाती के ऊपर गुरुत्वाकर्षण के नियम की खिल्ली उड़ाते हुए निचे सपाट होने के बजाये फुले हुए दो छोटे टीले जैसे श्यामल एरोला से घिरे हुए दो उद्दंड निप्पलों का शिखर बनाये हुए ऐसे कामुक लग रहे थे की जेठजी को अपने आप पर गर्व महसूस हुआ की माया अब उनकी प्रेमिका बन चुकी थी। अब वही उद्दंड स्तन उनकी अपनी माशूका के थे जिन्हें वह जब चाहें उन्हें सेहला सकते थे, मसल सकते थे।

माया के दोनों स्तनोँ को अपने हाथों में पकड़ते हुए उनकी निप्पलोँ को पिचकते हुए जेठजी ने माया को बड़े प्यार से कहा, "माया, आज के तुम्हारे इस प्यार भरे समर्पण से मैं इतना अभिभूत हो गया हूँ की मेरे पास तुम्हारे इस आत्मसमर्पण के लिए कहने के लिए कोई शब्द नहीं है। तुम मेरी रखैल नहीं मेरी अंतरआत्मा हो और रहोगी। तुम कोई नीच जाती की या कोई पतित नहीं हो। तुम मेरे दिवंगत जिगरी दोस्त की पत्नी थी। चूँकि तुम्हारे दिवंगत पति के स्वर्गवास के बाद तुम्हारा कोई ऐसा रिश्तेदार या समबन्धी नहीं था जो तुम्हें सहारा दे सके, मैंने उनके देहांत के बाद मेरा यह कर्तव्य समझा की उनकी पत्नी को मैं अनाथ ना होने दूँ। तुमने जब हमारे घर में काम करना शुरू किया तो हम सब आपको कोई नौकरानी नहीं, हम अपने घर का सदस्य ही मान कर उसी तरह का व्यवहार करते रहे हैं। तुम मेरी रखैल नहीं मेरी जीवन साथी बनोगी। तुमने मेरे जीवन का अधूरापन देखा और अपने आत्मसमर्पण से उसे पूर्ण करना चाहा। उसमें तुमने अपना कोई स्वार्थ भी नहीं खोजा। मैं भी उसी तरह तुम्हारे अधूरेपन को पूर्ण करना चाहता हूँ, पर तुम्हें रखैल बना कर नहीं, तुम्हें अपनी जीवन संगिनी बनाकर। और यह बात मैं कोई आवेश में अथवा उत्तेजना में आ कर नहीं, मैं अपने पुरे होशोहवास में पूरी गंभीरता से कह रहा हूँ। मैं तुझसे एक और बात कहना चाहता हूँ की अब तू मुझसे और ज़रा भी शर्म ना करके मुझसे अपने मन की सारी बात खुले शब्दों में बोल दे। मेरा मतलब है अब मुझसे तू चुदाई, लण्ड, चूत गाँड़ आदि शब्दों को बोलने में परहेज ना कर।"

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