साथी हाथ बढ़ाना Ch. 04

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माया की बात सुन कर नतमस्तक होती हुई मैं कुछ ना बोल सकी। माया की उस विनम्रता के आगे अपनी आंसू भरी आँखों के साथ माया को अपने गले लगा कर मैंने अपना प्यार जताया।

मैंने जब मेरे पति संजयजी से यह सारी बातें कहीं तो उन्हें सुन कर मेरे पति इतने खुश हुए और उन्होंने आंसूं भरी आँखों के साथ मुझे गले लगा कर इतना प्यार किया की मैं बता नहीं सकती। उसी सुबह उन्होंने अपने माता पिता (मेरे सांस ससुर) से बात कर माया और बड़े भैया का विवाह तय किया और जल्द ही उनकी शादी भी हो गयी। इस तरह माया ना सिर्फ हमारे घर की एक अग्रगण्य सदस्य हो गयी वह मेरी छोटी बहन से मेरी जेठानी बन गयी।

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यह चार साल पहले की बात है। टीना की शादी को करीब डेढ़ से दो साल हो चुके थे। हमारी शादी को तीन साल होने को थे। पहले दो सालों में तो मैंने और मेरे पति संजूजी ने फॅमिली प्लानिंग किया पर उस के बाद हम लोगों पर बच्चे के लिए सब का दबाव बढ़ने लगा। एक साल तक कोशिश करने पर भी जब मुझे गर्भ ना रुका तब हमने कई डॉक्टरों का संपर्क किया और कई परिक्षण भी हुए। सब में यही परिणाम आया की मुझ में कोई भी कमी नहीं थी पर मेरे पति संजूजी के शुक्राणुं में कुछ कमी होने के कारण उनसे कोई भी स्त्रीको गर्भ नहीं रुक सकता था। पहले तो मैं इस परिणाम को स्वीकार करने के लिए बिलकुल ही तैयार ही नहीं थी, क्यूंकि मरे पति संजूजी मेरी बड़ी तगड़ी चुदाई करते थे और चुदाई में वह काफी आक्रामक और शशक्त थे। मैं मेरे पति की चुदाई से पूरी तरह संतुष्ट थी। तो मैं कैसे मानती की मेरे पति में कोई कमी थी?

पर जैसे जैसे एक के बाद एक सभी परीक्षणों में जब एक से परिणाम आने लगे तब मुझे और संजूजी को यह स्वीकार करना ही पड़ा की मेरे पति संजूजी में कमी है और मुझे चुदाई का सुख भले ही मिल रहा हो, पर मैं मेरे पति से बच्चा नहीं पा सकती। अब हमारे लिए यह समस्या थी की या तो हम इस बात को सब के साथ साझा करें की कमी मेरे पति में थी और सब को यह कह दें की अब कुछ नहीं हो सकता। या फिर कोई इसका व्यावहारिक हल ढूंढे।

मैं इसके बिलकुल ख़िलाफ थी की मेरे पति में जो कमी है यह बात किसी भी कुटुंब के व्यक्ति को पता लगे; क्यूंकि मैं नहीं चाहती थी की कोई भी मेरे पति को हलकी नज़रों से देखे। किसी को भी यह कहने का मौक़ा ना मिले की मेरे पति नपुंशक हैं। मेरे पति नपुंशक नहीं थे। नपुंशक पुरुष वह होता है जिसका लण्ड खड़ा नहीं होता और जिसके लण्ड के अंडकोष में वीर्य नहीं होता। । मेरे पति का लण्ड थोड़ी सी भी उत्तेजना होते खड़ा हो जाता था। कहीं कोई सुन्दर लड़की देख ली या कोई लड़की का चित्र भी देख लिया तब। हाँ उसे शांत करने के लिए मुझे बड़ी मशक्क्त करनी पड़ती थी। और वीर्य की तो पूछो मत। हमारी शादी के बाद शुरू शुरू में तो मेरे पति से चुदवा कर मैं इतनी डरती रहती थी की कहीं मुझे गर्भ ना रुक जाए; क्यूंकि जब मेरे पति झड़ते थे तो इतना गरम, गाढ़ा और ज्यादा वीर्य छोड़ते थे की मेरी चूत भर कर छलक जाती थी और चद्दर, कपडे बगैरह खराब हो जाते थे।

मैं एकदम हताश और मानसिक रूप से टूटने लगी थी। मेरी समझ में नहीं आ रहा था की करें तो क्या करें। हमारे पास तीन विकल्प थे। पहला विकल्प था की हम कोई बच्चे को दत्तक लें, दुसरा विकल्प था की हम आई.वी.एफ. का सहारा लें मतलब किसी मर्द का वीर्य आधुनिक तकनीक द्वारा मेरे गर्भाशय में डाला जाए और मुझे गर्भवती बनाया जाए और तीसरा और आखिरी विकल्प जो सबसे ज्यादा विचित्र था, वह था की मैं किसी दूसरे मर्द से चुदवाऊं और गर्भ धारण करूँ।

मेरी सबसे बड़ी चिंता यह थी की मैं नहीं चाहती थी की हमारे परिवार में किसी को भी यह पता चले की मेरे पति अनुपजाऊ या बाँझ थे। मतलब वह किसी भी औरत को गर्भवती नहीं बना सकते थे। मुझे यह बिलकुल गँवारा नहीं था की कोई उन पर उंगली उठाये। पति की बदनामी मतलब पत्नी की भी बदनामी। हमने बच्चा दत्तक लिया अथवा आई.वी.एफ. कराया तो पूछा जाएगा की ऐसा करने की जरुरत क्यों पड़ गयी? जो तीसरा विकल्प था वह तो सब से कड़वा और मुश्किल विकल्प था।

तीसरा विकल्प था की मुझे किसी ऐसे आदमी से चुदवाना पडेगा जो हमारे परिवार को जानता ना हो या फिर ऐसा हो जो आगे चलकर कभी हमें ब्लैकमेल ना कर सके। जब मुझे उसके साथ में सो कर उससे चुदवाना ही था तो फिर वह आदमी मुझे भी तो पसंद होना चाहिए। हो सकता है एक ही चुदाई में गर्भ ना टिके। हो सकता है मुझे चार पांच दिन तक या एक हफ्ता या और ज्यादा बार चुदवाना पड़े। मतलब वह आदमी ऐसा हो जो ना सिर्फ मुझे बच्चा दे सके बल्कि जो मर्द ऐसा हो जिससे मुझे बार बार चुदवाने में कोई हर्ज ना हो और यह व्यावहारिक दृष्टि से भी मुमकिन हो की मैं उससे बार बार चुदवा सकूँ। किसी भी बाहर के मर्द को घर में और ख़ास कर हमारे बैडरूम में कई रातों तक रखना जबरदस्त शक पैदा कर सकता था। एक बात और भी थी की जो बच्चा हो वह तेजस्वी हो और अच्छा खासा तंदुरस्त और सुन्दर हो। उसके लिए मुझे चोदने वाला मर्द भी तो ऐसा ही होना चाहिए ताकि उसके वीर्य से पैदा होने वाला बच्चा भी ऐसा ही हो। अब ऐसा आदमी कहाँ से लाएं?

दूसरी बात यह भी थी की उसके लिए मेरे पति भी राजी होने चाहिए। खैर मेरे पति संजयजी ने खुद ही मुझे यह तीसरे विकल्प के बारे में बात की थी और बताया था की अगर मैं पहले दो विकल्प के लिए राजी नहीं हूँ तो वह मुझे आग्रह करेंगे की मैं मेरी पसंद के किसी और मर्द से चुदवा कर गर्भवती बनूँ। मेरे पति को उसमें कोई भी आपत्ति नहीं थी। अब तय मुझे करना था की मैं किससे चुदवाऊं?

ऐसा नहीं है की मैंने किसी गैर मर्द से पहले नहीं चुदवाया था। हमारे पड़ोस में मेरी एक सहेली रहती थी। वह कॉलेज में मुझसे दो क्लास सीनियर थी। वह बड़ी चुदक्क्ड़ थी। उसके कई बॉयफ्रैंड्स थे। मैं जब पहले साल में थी तभी उसने मेरी पहचान कुछ लड़कों से करवा दी थी। हमारा एक ग्रुप ही बन गया था। पहले तो मैं बड़ी ही शर्मीली थी और लड़कों से ज्यादा करीबी नहीं रखती थी पर धीरे धीरे मेरी सहेली के जबरदस्त आग्रह पर मैं ढीली पड़ने लगी। उनमें से एक लड़का जो मेरी सहेली के क्लास में था वह तो मेरे पीछे ही पड़ गया। वह सुबह शाम मेरे इर्दगिर्द घूमता रहता, मेरी बड़ी चापलूसी करता था और था भी वह बड़ा प्यारा। वह लड़का मुझे पसंद भी था।

उस उम्र की हर युवा लड़की की तरह मेरा भी चुदवाने का बड़ा मन करता रहता था। पर माँ बाप के संस्कार के कारण और कुछ कुदरती भय के कारण मैं आखरी वक्त में पीछे हट जाती थी। मुझसे कुछ लड़कों ने थोड़ी हलकीफुलकी जबरदस्ती कर चुम्माचाटी कर ली थी। मैंने उन्हें हल्काफुल्का विरोध करते हुए मेरे बूब्स मसलने दिए थे। पर मैं किसी लड़के को भी उससे आगे बढ़ने की इजाजत नहीं देती थी। अक्सर भीड़ में बस में या ट्रैन में कई लड़कों ने मेरी चूँचियाँ मसलीं थीं। मेरी पसंदीदा उस लड़के का तो लण्ड भी मैंने पकड़ा, सहलाया और दो बार चूसा भी था। उस लड़के ने मेरी चूत में उंगली डालकर मेरी चूत का रस चूसा था और मेरी चूत को उँगलियों से चोदा भी था। पर मैं उसे उसके आगे बढ़ने नहीं देती थी। मैं उस लड़के के कई बार मिन्नतें करने पर भी उस को चोदने के लिए मना कर देती थी। मेरी सखी मुझे बार बार उलाहना देती रहती थी की अरे, मौक़ा है तो चौक्का मार ले और उससे चुदवाले वरना बादमें मौका नहीं मिलेगा तो पछताएगी। पर मैं पता नहीं क्यों, आखिरी समय में डर कर मना कर देती थी।

पर धीरे धीरे उस लड़के से मेरी दोस्ती बढ़ने लगी। मैं उसके बारे में, उससे चुदवाने के बारे में कई बार सोचती रहती थी। हमारी दोस्ती इस हद तक बढ़ गयी की एक दिन पिकनिक में उसने मुझे बाकी लड़के लड़कियों से अलग थलग कर के मौक़ा देख कर एक झरने में धक्का मार कर धकेल दिया। बाद में खुद भी उसमें कूद पड़ा। फिर उसने मुझे प्यार करते हुए हम दोनों के कपड़ों को एक के बाद एक निकाल फेंका। मैं उसे मना करती रही, गिड़गिड़ाती रही पर उसने मेरी एक ना सुनी। कुछ देर बाद जब उसने मेरा ब्लाउज और ब्रा निकाल फेंका और वह मेरे बूब्स को चूसने लगा तब मेरा बचाखुचा अवरोध भी गायब हो गया। उस दिन उस झरने में खेलते हुए नहाते हुए उस लड़के ने मुझे चोद डाला। उस दिन उसने मुझे पानी में और फिर बाद में किनारे ले जा कर रेत में चोदा। वह चुदाई मेरी पहली चुदाई थी जिसे मैं कभी नहीं भूलूंगी। उस साल उस लड़के ने मेरी काफी बार चुदाई की। मैं उस लड़के के साथ प्यार करने लगी थी। सारा कॉलेज यह सब जानता था। वह उस साल के बाद कॉलेज छोड़ आगे की पढ़ाई के लिए विदेश चला गया और बाद में उसने ना तो मेरे किसी ईमेल का जवाब दिया ना ही कोई फ़ोन से बात हुई। इस वाकये से मेरा दिल टूट गया।

उसी समय हमारे ही ग्रुप का एक लड़का जो उस लड़के से पहले मुझ से मेलजोल बढ़ाना चाहता था पर जिसे मैं टरका देती थी उसने मेरा उस मुश्किल समय में जबरदस्त साथ दिया। वह रईस घर का लड़का था। वह मुझे खुश करने के लिए कुछ ना कुछ तोहफे देता रहता था और मुझे हरदम दिलासा देता रहता था और अक्सर अपनी कार में घुमाने के लिए इधर उधर ले जाता था। वह शरीफ भी लगता था क्यूंकि उसने उस दौरान कभी भी मेरा गलत फायदा उठाने की कोशिश नहीं की। मैंने ही उसे किस करना शुरू किया और फिर क्या था, ऐसे ही वक्त जाते हमने उसकी कार में कई बार चुदाई की। उसका लण्ड बड़ा तगड़ा था। मैंने उसके लण्ड को कई बार चूसा भी था। वह बहुत अच्छा चोदता था। पर उसके साथ भी वही हुआ। कॉलेज पास होने पर वह भी विदेश चला गया और फिर दुबारा वही अन्धेरा वक्त।

उसी समय मेरी पडोसी सहेली जो मेरी कॉलेज में थी उसकी शादी हो चुकी थी वह मुझे मिली। जब मेरी उससे दिल खोल कर बात हुई और मैंने उसे मेरा सारा वाक्या बताया तो वह ठहाका मार कर हँस कर बोली, "यार कॉलेज लाइफ ऐसी ही होती है। यहां सब लड़के लडकियां दिल खोल कर मौज करते हैं और बादमें वास्तविक जिंदगी में लड़के या लडकियां माँ बाप के बताये हुए लड़के या लड़की से शादी कर अपना घर बसा लेते हैं। तू इस लफड़े में कहाँ अपना दिल जला बैठी? तू भी बिंदास मस्ती कर। तेरा यह साल आखरी साल है। खूब चुदवा, मौज कर और फिर पास होने के बाद आगे पढ़ना हो तो पढ़, वरना किसी अच्छे लड़के से शादी करके अपना घर बसाले।"

मुझे उसकी बात जँच गयी। बस और क्या था? तब से मैं बिंदास बन गयी। वहीँ पर मेरे दो बॉयफ्रेंड बन गए। मैंने दोनों से कह दिया था की वह दोनों ही मेरे बॉयफ्रेंड हैं। मैंने दोनों से खूब चुदवाया। उनके लण्ड चूसे, उनसे मेरी चूत चुसवाई और सब कुछ किया। मुझे कोई भी अटैचमेंट नहीं रखना था किसी के साथ। बल्कि कुछ और लड़के भी मेरे पीछे पड़े हुए थे। उनके साथ भी मस्ती की चुम्माचाटी की और चुदाई के अलावा सब कुछ किया। आज तक वह सब मुझे मेरे बिंदास मेलजोल के कारण याद करते होंगे। वह सब लड़के अच्छे थे। उन्होंने मेरे साथ कोई धोखाधड़ी नहीं की। किसी ने भी मुझसे किसी भी तरह का कोई वादा नहीं किया और ना ही मैंने किसी लड़के से।

मुझे उसका कोई अफ़सोस नहीं है। वह मस्ती का ज़माना था और मैंने खूब मस्ती की। मेरे पति संजयजी को यह सब पता है। पर वह सब बात शादी के पहले की थी। शादी के बाद घरगृहस्थी के बोझ और व्यस्तता के कारण घर से ज्यादा बाहर निकलने का मौक़ा ही नहीं मिला तो किसी और से चुदाई के बारे में सोचना भी नहीं हुआ। हालांकि मेरे पति संजयजी सेक्स के मामले में बड़े ही उदार दिल के हैं। वह मुझे कई बार उनके दोस्तों से जबरदस्ती मिलाते थे और उनके साथ मेलजोल बढ़ाने के लिए उकसाते रहते थे। वह तो मुझे यहां तक कहते थे की अगर उनके मर्द दोस्तों में से कोई दोस्त मुझे ज्यादा ही पसंद आये और अगर मैं उससे चुदवाना चाहूँ तो वह ख़ुशी से मुझे इजाजत दे देंगे, बल्कि मुझे सपोर्ट भी करेंगे। पर मैं मेरे पति को इतना ज्यादा प्यार करती थी और उनसे इतनी ज्यादा खुश थी की मैंने और किसी पर ध्यान दिया ही नहीं।

जब मुझे यह पता चला की मेरे लिए एक ही विकल्प बचा है जिसमें मुझे किसी गैर मर्द से चुदवाना पडेगा तब मुझे कुछ हद तक रंजिश रही की अगर मैंने मेरे पुराने दोस्तों में से किसी के साथ संपर्क बनाये रखा होता अथवा मेरे पति की बात मानी होती और उनके दोस्तों में से किसी दोस्त से चुदवाया होता तो मैं उस दोस्त से दुबारा चुदवा कर गर्भधारण कर सकती थी। मुझे चुदाई का विकल्प सबसे अच्छा इस लिए भी लगा की चुदाई गोपनीय तरीके से हो सकती है और मैं, मेरे पति और तीसरा मर्द जो मुझे चोदेगा, उसके अलावा किसी और को इसके बारे में जानने की जरुरत ही नहीं। अगर मैंने मेरे पति संजयजी के किसी दोस्त को या किसी और को पसंद किया तो उसे हम हमारे घर में हमारे बैडरूम में रात को चुपके से बुला सकते हैं और उस समय वह मुझे रात भर चोद कर जल्दी सुबह जा सकता है। पर इसमें दो दिक्कते हैं। पहला यह की कार्यक्रम एकाध दो रात के लिए तो हो सकता है पर ज्यादा दिन नहीं हो सकता। दुसरा यह की मेरे ख़याल से कोई भी भद्र पुरुष इस तरह रात में आकर सुबह घर वापस चोर की तरह जाना पसंद नहीं करेगा।

दुसरा विकल्प यह भी हो सकता था की हम तीन लोग: मैं, संजयजी और वह मर्द जिससे मुझे चुदवाना है वह कहीं छुट्टियां मनाने के लिए बाहर चले जाएँ और कोई रिसोर्ट या होटल में तीन चार दिन या एक हफ्ते रुक कर उस मर्द से मुझे चुदवाने का कार्यक्रम बनाया जाए। पर इसके लिए भी हमें ऐसे आदमी को ढूंढना पडेगा, उसे तैयार करना पडेगा और प्रोग्राम बनाना पड़ेगा। यह जरुरी नहीं की उस मर्द को बताया जाए की मैं उस मर्द से गर्भ धारण करने के लिए चुदवाउंगी। कुछ ऐसा तिकड़म चलाया जाये की जिसमें उस दोस्त को यह कहा जाए की संजयजी और मैं मिलकर उस आदमी के साथ एम.एम.एफ. करना चाहते थे।

जैसे जैसे समय बीतता गया, इस बच्चे की समस्या ने गंभीर रूप ले लिया। करीब करीब हर रोज एक या दुसरा रिश्तेदार हमें बच्चे के बारे में पूछने लगा। तब मुझे ऐसा कोई मर्द नजर नहीं आया जो मेरे काम आ सके। उस वक्त किसी मन पसंद हैंडसम मर्द को ढूंढना और इस तरह का कोई सामन्जस्य या कोई समीकरण बिठाने का समय ही नहीं था। मेरी और संजयजी की समझ में ही नहीं आ रहा था की क्या किया जाए। यह सारी बातें हमारा दिमाग चाट रहीं थीं और दिन बीतते जा रहे थे। हमें कोई जल्दी नहीं थी, पर मेरे सांस ससुर और कुछ हद तक मेरी ननद सा टीना भी बच्चों के बारे में बार बार पूछते रहते थे। हमारे पास कोई ठोस जवाब नहीं था। हमारा दिमाग दिन ब दिन खराब होता जा रहा था।

धीरे धीरे यह समस्या हमारे दिमाग पर ऐसी हावी होने लगी की मुझे और मेरे पति संजयजी को दिमाग पर एक भारी बोझ महसूस हो रहा था। मैं भी कई बार इतनी चिंतित हो जाती थी की क्या काम करना है यह सब ध्यान ही नहीं रहता था। एक दिन जब माया रसोई में आयी तो उसने देखा की मैं रसोई के प्लेटफॉर्म से सटे हुए खड़े कुछ गहराई से सोच रही थी और स्टोव पर रखा दूध उफान आकर बाहर गिर रहा था। तब माया ने मुझे झकझोरते हुए पूछा, "दीदी, क्या बात है? आप क्या सोच रहे हो? सब ठीक तो है?"

मैं माया के हिलाने से चौंक गयी और बात को टालने के लिए बोली, "कुछ नहीं रे! सब ठीक है।" पर माया ने देखा होगा की मेरा जवाब मेरे चेहरे के भाव से मेल नहीं खा रहा था।

माया ने मेरा हाथ थामा और उसे प्यार से सहलाते हुए कहा, "दीदी, तुमने मुझे अपनी जेठानी बनाया पर हकीकत में तो मैं तुम्हारी छोटी बहन ही हूँ। आप मेरी जिंदगी के सूत्रधार हो। आपने मेरी जिंदगी संवार ने के लिए क्या क्या नहीं किया। आपकी ही वजह से मुझे आपके जेठजी ने अपनाया और सुहागन बनाया। आपने मेरी जिंदगी के सबसे मुश्किल वक्त में मुझे सहारा दिया। अब जब मैं आपसे आपकी मुश्किल के बारे में जानना चाहती हूँ तब आप मुझे अपनी चिंता में भागीदार नहीं बना रहे हो और टालने की कोशिश कर रहे हो? यह तो गलत है न?"

मैंने माया का हाथ थाम कर कहा, "क्या बताऊँ माया, बात ही कुछ ऐसी है की इसका कोई इलाज नहीं नजर आता। बात कुछ निजी और नाजुक है।"

माया मुझे पकड़ कर मेरे ही बैडरूम में ले गयी। वहाँ पलंग पर माया ने मुझे बिठाया और बोली, "क्या बात है दीदी? तुम्हें मेरी कसम अगर तुमने मुझसे कुछ भी छिपाया तो। जब मैं उस रात आपके सामने कटघरे में थी तब जैसे आपने मुझे साफ़ साफ़ कहने के लिए बोला था, तो अब मेरी बारी है, मैं आपकी बहन ही नहीं, मैं आपकी जेठानी की हैसियत से भी आपको हिदायत देती हूँ की आप भी मुझे साफ़ साफ़ स्पष्ट भाषा में सब कुछ कहोगे और मुझ से कुछ भी नहीं छिपाओगे।"

माया ने मेरी आँखों में आँखें डालकर पूछा, "क्या आपकी बात मेरी बात से भी ज्यादा नाजुक है? आपके जेठजी से मुझे चुदवा ने से और ज्यादा नाजुक तो नहीं है ना?"

मैंने माया की आँखों में आँखें डालकर कहा, "उससे भी ज्यादा नाजुक बात है, माया।" मेरी बात सुनकर माया भौंचक्की सी हो कर मुझे देखने लगी। अब उसे लगा की बात काफी गंभीर है।

माया ने मेरे दोनों हाथ थाम लिए और उन्हें बड़े प्यार से सहलाते हुए बोली, "दीदी, आपको मेरी कसम, आपको आपके पति संजयजी की कसम, आपको आपके जेठजी की कसम, आप बताओ की क्या बात है। बात जितनी भी नाजुक हो या गोपनीय हो, हम दोनों के बिच में तो कुछ भी गोपनीय है ही नहीं न दीदी? जब आप जिस तरह आपके जेठजी मेरी चुदाई करते हैं उस के बारे में भी सब कुछ जानते हो तो फिर आपका भी कर्तव्य है की आप मुझसे कुछ भी ना छिपाओ। अगर आप ने नहीं बताया तो कसम से मैं आज से अनशन करुँगी।"

माया की बात सुन कर मुझे हँसी आ गयी। मेरी ही छोटी बहन, जैसे मेरी बड़ी बहन हो ऐसे मुझे ही नसीहत दे रही थी और मैंने जो जो उसे जेठजी के कमरे में भेजते समय कहा था वही वह मुझे कह रही थी। मैंने माया को हलकी सी जफ्फी देते हुए कहा, "रे पगली, मैं तुझसे क्यों छिपाऊंगी? मैं तुमसे सारी बातें तो करती हूँ। जब हम एक दूसरे की चुदाई के बारे में भी खुल्लमखुल्ला बात करते हैं तो फिर अब मैं तुझसे कुछ भी कैसे छिपा सकती हूँ?"

वैसे मेरे और माया के बिच में औपचारिकता की कोई दीवार नहीं थी। माया की जेठजी से जब पहली बार चुदाई हुई तबसे हम दोनों एक दूसरे से सारी बातें साँझा करते रहते थे। यहां तक की हमारी हमारे पतियों से चुदाई के बारे में भी हम कई बार एक दूसरे की चुटकी लेते रहते थे। कई बार जब माया सुबह सुबह टेढ़ीमेढ़ी चलती तो मैं उसे रात को चुदाई के बारे में ताने मारना ना चुकती थी तो कई बार माया भी मेरी संजयजी से पिछली रात को हुई चुदाई के बारे में खिंचाई कर लेती थी। इसी लिए हमारी बातें माया को बताने में मुझे कोई झिझक नहीं थी। बस झिझक थी तो सिर्फ यही की मैं मेरे पति संजयजी की कमी को जाहिर नहीं करना चाहती थी। पर अब माया ने मुझे इतनी तगड़ी कसम जो दे दी थी तो मैंने मेरी बात माया से साँझा करना ही ठीक समझा।

तब फिर मैंने माया को हमारे बच्चा ना होने के बारे में सारी बातें बतायी। मैंने संजयजी के बाँझ होने की बात जब बतायी तब वह दंग रह गयी। क्यूंकि पहले मैं उसे संजयजी मेरी कैसी तगड़ी चुदाई करते थे उसके बारे में बताती रहती थी, और हम कैसे फॅमिली प्लानिंग कर रहे थे वह भी मैंने माया को बताया था।

मैंने जब माया को मेरी समस्या के बारे में बताया तब वह एकदम गंभीर हो गयी। वह मुझसे थोड़ा अलग हो कर बैठी और मुझे ताकती हुई गहरी सोच में डूब गयी। मैंने उसे मेरे सामने जो तीन विकल्प थे उन तीनों विकल्पों के बारे में भी बताया। मैंने माया को यह भी कहा की क्यों मुझे पहले दो विकल्प मंजूर नहीं। मैंने कहा की मैं नहीं चाहती थी की हमारे घर में किसी को भी पता चले की मरे पति नपुंशक हैं। वह नपुंशक तो बिलकुल नहीं थे पर बच्चा पैदा नहीं कर सकते। अब यह सारी बातों का बड़ा ही झंझट वाला स्पष्टीकरण रिश्तेदारों से कैसे और कौन करे? इसी लिए मैं इस राज़ को राज़ ही रखना चाहती थी। अब हमारे अलावा माया को भी इस बात का पता लग चुका था। पहले माया को भी मैं यह बात नहीं बताना चाहती थी पर चूँकि माया मेरे हर राज़ में भागीदार थी और मैं उसके हर राज़ जानती थी इस लिए मुझे माया से यह बात शेयर करने में कोई खास दिक्क्त महसूस नहीं हुई। पर अब किसी और से यह बात ना पहुंचे यही मेरा मकसद था।

मेरी बात सुन कर माया ने मुझे कहा, "दीदी, एक नारी होने के नाते मैं आपसे सहमत हूँ। अपने पति की जरासी भी कमी कोई पत्नी नहीं चाहेगी की किसी के सामने आये। यहां तो यह सामजिक दृष्टि से इतनी बड़ी बात है। इस लिए मैं भी मानती हूँ की आपने सही विकल्प चुना है। पर क्या आप और संजयजी आपको किसी और मर्द से चुदवाने के लिए तैयार हैं?"

मैंने तब माया को कहा की मैंने मेरे पति संजयजी से वह सब बात कर ली थी। मैंने माया को यह भी कहा की मेरे पति तो पहले से ही जब यह बच्चे का चक्कर नहीं था तबसे ही मेरे पीछे पड़े थे की मैं मौज करने के लिए किसी गैर मर्द से चुदवाऊं। मैंने माया को मेरी कॉलेज लाइफ के बारे में भी बता ही दिया ताकि वह समझ जाए की मैं पहले भी और मर्दों से चुदवा चुकी थी और मुझे जाती तरीके से किसी और मर्द से चुदवाने में कोई बहुत बड़ी आपत्ति नहीं थी। समस्या यही थी की ऐसा मर्द कहाँ से ढूंढे जो हमारे मापदण्ड में ठीक तरह से फिट बैठ सके।

जब मेरी बात ख़तम हुई तो माया एकदम गंभीर थी। वह उठ खड़ी हुई और बिना कुछ बोले उसने मुझे गले लगा लिया। मैंने महसूस किया की उसकी समझ में नहीं आ रहा था की वह क्या बोले। मैंने देखा की उसकी आँखें नम हो गयीं थीं। मुझसे बिना कुछ बोले, कुछ देर तक मेरे गले लगे रहने के बाद अपने भावावेश को नियंत्रण में रखने की कोशिश करते हुए माया चुपचाप धीरे धीरे चलते हुए मेरे कमरे से बाहर चली गयी। मैंने पहली बार इतने ठोस तरीके से महसूस किया की माया अब कोई बाहर की हस्ती नहीं, वह हमारे परिवार में एकरस हुई हमारे परिवार की ही एक बड़ी ही जिम्मेवार सदस्य बन चुकी थी।

मैं जानती थी की माया से अपना राज़ सांझा करने से मैंने अपने दिमाग का बोझ शायद जरूर कुछ कम किया होगा, पर उससे मुझे कोई सहायता मिलने की उम्मीद नहीं थी। क्यूंकि उसके जाते जाते जब मैंने माया की आँखों में झाँक कर देखा तो मुझे इस समस्या में मेरी कुछ मदद न कर पाने के कारण उसकी की आँखों में असहायता के भाव दिखे। मैं उसमें उसका दोष कैसे दे सकती थी भला? जब मैं और मेरे पति संजयजी ही इसका समाधान कई महीनों से नहीं निकाल पाए तो माया क्या करेगी?

इस बात के दो दिन बाद दोपहर के खाने के बाद जब मेरे पति संजयजी और बड़े भैया ऑफिस गए हुए थे और माताजी और पिताजी अपने कमरे में विश्राम कर रहे थे तब माया मेरे कमरे में आयी और मेरे पास आ बैठी। मैं उस समय अपने बालों को सँवार रही थी।

माया का चेहरा काफी गंभीर सा लग रहा था। मैंने माया की और घूम कर प्रश्नात्मक दृष्टि से देखा, क्यूंकि उस समय माया भी सामान्यतः अपने कमरे में कुछ ना कुछ काम में लगी हुई होती थी। माया ने पूछा, "दीदी, जो मैं बात करने जा रही हूँ उसे आप को कुछ सदमा लगे या बुरा भी लगे तो मुझे माफ़ करना और अगर ना जँचे तो उसे नजरअंदाज़ कर देना।"

मैंने कुछ ना बोलते हुए माया की और देखा। माया ने मेरी नज़रों से नजर ना मिलाते हुए जमीन की और नजरें करते हुए कहा, "दीदी, आपने जो मुझे दो दिन पहले बात की थी, मैं आपसे उसके बारे में बात करने आयी हूँ। अगर आप को भयंकर एतराज ना हो तो मैं इसके बारे में एक बड़ा ही व्यावहारिक सुझाव देना चाहती हूँ।" माया क्या कहने वाली थी यह जानने की उत्सुकता मुझसे रोकी नहीं जा रही थी, मैंने फिर भी उस समय चुप रहना ही ठीक समझा। हालांकि माया की आँखों में एकटक मेरी जिज्ञासु आँखें गाड़े बैठना माया को मेरी उत्सुकता जरूर बयाँ कर रहा होगा।

माया ने मेरी आँखों में मेरी स्वीकृति देखि तब बोली, "दीदी, मैं चाहती हूँ की आप किसी बाहर के आदमी से नहीं, अपने जेठजी से ही चुदवाइये। मतलब आपको जो बच्चा हो वह किसी और के वीर्य से नहीं जेठजी के वीर्य से ही हो। इससे घर की बात घर में रहेगी और बच्चा दिखने में भी हम सब की तरह तंदुरस्त, लंबा, चौड़ा और हैंडसम होगा।" यह कह कर माया चुप हो गयी और मेरी सकारत्मक या नकारात्मक प्रतिक्रया के इंतजार में कुछ आशंकित नज़रों से मुझे देखने लगी।

जब मैंने माया ने जो कहा उसे सुना तो मेरे पाँव तले से जैसे जमीन खिसक गयी। मेरे दिमाग में यह बात आयी ही नहीं थी और मैंने दूर दूर तक भी सोचा नहीं था की ऐसा कुछ हो सकता है। माया की बात सुन कर मुझे चक्कर आने लगे। मेरी हवा निकल गयी। जो माया कह रही थी, मेरे हिसाब से वह नामुमकिन सा था। हालांकि माया ने जो बात कही थी वह बात काफी तर्कसंगत थी। पर उसकी बात अगर मैंने मेरे पति से की तो उनकी आस्था और विश्वास पर क्या कुठाराघात होगा यह सोचने से भी मैं डर रही थी। मैं मेरे जेठजी से चुदवाने की बात तो दूर, मैं उन के सामने नंगी कैसे होउंगी यह एक जटिल प्रश्न था।

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