साथी हाथ बढ़ाना Ch. 04

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माया ने जेठजी का सर अपने स्तनोँ पर टिकाया और बोली, " जी, आप मेरे स्वामी हो और सदा रहोगे। आप की इच्छा मेरे लिए आज्ञा है। मैं अब आपसे स्पष्ट शब्दों को बोलने में नहीं परहेज करुँगी। मुझे कोई भी दरज्जा नहीं भी देते तो भी आपने मुझे पहले ही इतना सारा कुछ दे दिया है की मुझे कुछ और की अपेक्षा नहीं। यह मेरा बहुत बड़ा सौभाग्य होगा की आप मुझे इतना बड़ा दर्जा देना चाहते हैं। मैं आपको इतना ही कहूँगी की मुझे आपसे मिलाने में अंजू भाभी का बड़ा ही जबरदस्त योगदान रहा है। मैं उनकी ही इच्छा से अभी यहां हूँ। मैं उनकी बड़ी ही कृतज्ञ हूँ। जी, मेरा यहां आपसे एक प्रश्न है। यदि आप इजाजत दें तो पूछूं।"

जेठजी ने कुछ आश्चर्य से माया की और देखते हुए अपना सर हिला कर उसे पूछने के लिए सहमति दी। माया ने अपनी नजरें निचीं कर जेठजी से पूछा, "जी, मेरे कहने का बुरा मत मानिये पर मैं जानती हूँ की आप मुझे कई महीनों से आप के कमरे में काम करते हुए ताड़ रहे थे। मैं जब अपनी साड़ी का छोर जाँघों तक ला कर झाड़ू लगाती थी या पोछा करती थी तब आप मेरे बदन को चोरी चोरी ताड़ते हुए देख रहे होते थे। शायद उसी समय आपके मन में मुझे पाने की इच्छा थी। अगर वाकई आपके मन में उस समय मुझे पाने की या मुझे चोदने की इच्छा थी तो आपने क्यों मुझे एक बार भी कोई इशारा तक नहीं किया? आप के एक ही इशारे पर मैं आपके सामने सारे वस्त्र निकाल कर आपसे चुदवाने के लिए खड़ी हो जाती।"

माया का इस तरह का बिलकुल स्पष्ट और साफ़ साफ़ प्रश्न पूछने पर जेठजी कुछ समय के लिए बौखलाते हुए माया को देखते रहे। वह चाहते थे की माया उनसे स्पष्ट और खुली भाषा में बात करे। पर माया ने उनसे इतनी खुली भाषा में यह इतना स्पष्ट प्रश्न पूछा की जेठजी माया के प्रश्न से क्लीन बोल्ड हो गए। फिर अपने आपको सम्हालते हुए बोले, "देखो माया, मैंने तुम्हारे पति के लिए और तुम्हारे लिए जो कुछ भी किया मैं अगर उस हाल में तुमसे ऐसी कोई ख्वाहिश जाहिर करता तो बेशक तुम मुझ पर अपना आत्मसमर्पण कर देती, अपना बदन सौंप देती। पर ऐसा करना एक व्यापार जैसा हो जाता। मैंने जो कुछ भी किया मैंने वह मेरा कर्तव्य समझ कर किया। आज तुम मेरे पास अपने आप आत्मसमर्पण करने आयी इसमें तुमने अपना कर्तव्य निभाया और उसमें हमारी दोनों की मनोकामना की पूर्ति हो रही है तो इसमें मुझे कोई दोष नजर नहीं आया।"

माया जेठजी का हाथ पकड़ कर मुस्कुराती हुई बोली, "मतलब आप मुझे चोदना तो चाहते थे, पर ऐसी इच्छा मेरे सामने जाहिर करना आपके सिद्धांत के विरुद्ध था। सही है ना? तो अब तो मैं स्वयं आपके सामने नंगी हो रही हूँ और चुदवाना चाहती हूँ। अब आपको मुझे चोदने में कोई सैद्धांतिक आपत्ति नहीं होनी चाहिए। तो फिर मेरे स्वामी अब आईये और मुझे जी भर कर चोदिये।" मेरे जेठजी माया की बातें सुन कर हैरान रह गए।

माया पलंग पर लेटी हुई थी वहाँ से उठ बैठी और उसने अपनी साड़ी खिंच कर उतारना शुरू किया। जेठजी ने उसके साथ मिल कर माया की साड़ी उतार दी। उसके बाद माया ने स्वयं ही अपने घाघरे का नाडा खोल कर उसे भी अपनी जाँघों के निचे निकाल फेंका। औरतें जब तक शर्माती हैं तब तक शर्माती हैं। जब वह लाज शर्म का पर्दा उठा कर फेंक देती हैं तब वह चुदाई के बारे में इतनी प्रैक्टिकल हो जातीं हैं की मर्द भी उतना प्रैक्टिकल नहीं हो पाता।

जेठजी ने माया की पैंटी को खिसका कर निचे उतार दिया। उन्होंने जिंदगी में पहली बार किसी नग्न औरत के दर्शन किये थे। उन्होंने पहली बार किसी औरत की चूत को अपनी आँखों से देखा था। यह उनके जीवन का एक अद्भुत अवसर था। माया ने उन्हें यह मनुष्य जीवन का एक अद्भुत अवसर देकर कृतार्थ कर दिया था। जेठजी ने बड़े प्यार से माया की जाँघों को चौड़ी फैलाकर उसके बिच में सर रख कर माया की गोरी, प्यारी, सालों की प्यासी कोमल चूत के ऊपर अपना मुंह टिका कर माया की चूत को चूसने लगे। माया की चूत में से जेठजी के सान्निध्य के कारण उसका स्त्री रस रिसने नहीं बहने लगा था। माया जेठजी से इतनी ज्यादा प्रभावित और जेठजी के प्यार पाने के लिए इतनी पागल हो रही थी की जेठजी को इस हाल में देख कर बरबस ही माया की चूत से उसका स्त्री रस बहने लगा था। जेठजी बिना झिझक उस स्त्री रस को चाट चाट कर पिने लगे।

जेठजी को अपना स्त्री रस चाटते और पीते हुए देख कर माया का पूरा बदन रोमांच से और कामुक उत्तेजना से मचलने लगा। माया के रोम रोम में काम वासना की ज्वाला बड़ी ही तेजी से प्रज्वलित हो कर दहकने लगी। पलंग पर माया अपने बदन को हिलने से रोक नहीं पा रही थी। जैसे जैसे जेठजी माया का स्त्री रस चाटते थे वैसे वैसे माया की सिकारियाँ और कराहटें बढ़ती ही जातीं थीं। जेठजी की जीभ के चूत को छूते ही माया के मुंह से बार बार, "आह..... रे माँ..... ओह........ हाय..... उई माँ..... ओह..... " की कराहटें और सिकारियाँ निकले जा रहीं थीं।

माया की चूत चाटते हुए जेठजी बिच बिच में अपना सर ऊपर कर पलंग पर लेटी नंगी माया के कामुक बदन के दर्शन करना नहीं चूकते थे। उनके हाथ हरदम माया के स्तनोँ को मसलने में लगे हुए होते थे। माया के स्तनों की सख्त फूली हुई निप्पलेँ अपनी उँगलियों के बिच में ले कर वह उसे पिचक कर स्तनोँ के अंदर तक घुसाते रहते थे और इस तरह वह अपनी काम वासना का एहसास माया को कराते रहते थे।

पलंग पर लेटी हुई माया की नग्न मूरत को देख जेठजी अपने आपको बड़ा ही भाग्यशाली समझ रहे थे। उनकी समझ में यह नहीं आया की पिछले बीते हुए सालों में क्यों उनको माया को अपनाने के बारे में कोई ख़याल नहीं आया। पलंग पर लेटी नंगी माया कोई अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। जिस माया को कपड़ों में देख कर वह उतने पागल से हो रहे थे आज वही माया सारे कपड़ों का त्याग कर उनकी सेवा में नंगी उनसे चुदाई की उम्मीद करती हुई उनके ही पलंग पर लेटी हुई थी।

माया के लम्बे घने काले केश जेठजी के पलंग पर इस तरह बिखरे हुए थे जैसे बारिश के मौसम में आसमान में घने बादल छाए हों। पलंग पर माया के नग्न कमसिन बदन के इर्दगिर्द चद्दर नहीं हर जगह माया के बिखरे हुए बाल ही नजर आ रहे थे। उन बालों में घिरी हुई माया की नंगी लम्बी मूरत कोई जलपरी अभी अभी समंदर से निकल कर आ कर लेटी हुई हो ऐसा लग रहा था। माया का खूबसूरत चेहरा, कमल की डंडी जैसी लम्बी गर्दन, माया की छाती पर विराजमान दो भरे हुए गुम्बज समान उसके फुले हुए उद्दंड स्तन मंडल, उसकी पतली कमर पर बड़ी ही कामुक नाभि और उसके निचे गिटार की तरह घुमाव लेता हुआ माया की गाँड़ का आकार और चूत का ढलाव और उभार कीसी भी मर्द को पागल करने के लिए काफी था।

माया की नंगीं जांघें देख कर पहले से ही जेठजी पागल थे। अब माया की वह दो जाँघों का मिलन स्थान देख कर जेठजी चकरा रहेथे। जेठजी के कई दोस्तों की पत्नियां बड़ी ही खूबसूरत थीं और जेठजी ने उन पतियों को देखा था की जब दूसरे मर्द लोग उन पत्नियों को चोरीछिपि नजर से ताकते थे तो वह पति कितने गर्वान्वित महसूस कर रहे थे। शायद जेठजी को भी माया से शादी कर ऐसा सौभाग्य प्राप्त हो।

जेठजी भी यह समझते थे की उनको एक औरत के बदन की जरुरत थी वैसे ही माया को भी पुरुष से चुदाई करवाना आवश्यक था। जब से उसके पति का देहांत हो गया था उसकी भी जवानी बेकार जा रही थी और उसके बदन की भूख अतृप्त थी। पति के देहांत के बाद माया ने किसी भी पुरुष की और नजर उठा कर देखा नहीं। पर माया ने जेठजी के किये हुए एहसानों को सच्चे दिल से याद रखा और मौक़ा मिलने पर अपने आप को समर्पण करने में एक मिनट का वक्त भी नहीं लिया।

जरूर माया के बदन में भी अंगड़ाइयां उठती होंगीं, जरूर रात को सोते हुए माया भी अपनी चूत में उंगली डाल कर अपने आपको अपनी ही उँगलियों से चोदने की कोशिश करती होगी। चुदाई के लिए प्यासी औरतों के लिए यह एक आम प्रतिक्रया है। जेठजी को संतोष हुआ की वह जब माया को चोदेंगे तो वह खुद के लण्ड की भूख ही नहीं शमन करेंगे, वह माया की चूत की प्यास भी बुझाएंगे।

माया काफी गरम हो रही थी और जेठजी का लण्ड भी माया की चूत से मिलने के लिए बहुत ज्यादा बेताब था। जेठजी माया को अपनी दो टांगों के बिच रख कर माया के बदन पर उसे चोदने के लिए तैयार हो गए। जेठजी ने माया की चूत की पंखुड़ियों अपने लण्ड से रगड़ कर खोला। जेठजी के लण्ड के चूत से स्पर्श करने पर माया के पुरे बदन में सिहरन फ़ैल गयी। साथ में उसका मन भी आतंकित हो उठा। जेठजी का लण्ड इतना माँसल, लंबा और सख्त था की माया उसको अपनी चूत में लेने की और बाद में उसके अंदर बाहर होने के कारण उसकी चूत की त्वचा पर जो खिंचाव होगा और उसके कारण उसको जो दर्द होगा उसकी कल्पना मात्र से माया को चक्कर आने लगे।

पर यह भी सत्य था की माया को उस लण्ड को ना सिर्फ अपनी चूत में लेना था बल्कि उसकी चूत को अब सालों साल तक उस लण्ड से चुदना है। इसमें माया को कोई संशय या कोई हिचकिचाहट नहीं थी। उसे सिर्फ चिंता थी तो यही की उसकी चूत कैसे और कितनी जल्दी जेठजी के उस महाकाय लण्ड को अंदर ले सके और उससे चुदवाने में सक्षम हो सके। इस लिए हालांकि जेठजी से माया की चुदाई जरूर माया के लिए दर्द और आतंक का विषय थी पर फिर भी माया को कुछ भी सह कर जेठजी से चुदवाना है इसका कोई विकल्प ही नहीं था।

माया ने एक गहरी साँस ले कर अपने आपको जेठजी के विशालकाय लण्ड को अपनी चूत के मुख्यद्वार पर होते हुए चूत की नाली में दाखिल होने से जो मशक्कत उसे करनी होगी उसके लिए वह तैयार हो पाए और जो दर्द उसे सहना पडेगा उसे ख़ुशी ख़ुशी झेलने की क्षमता उसे मिले उस के लिए भगवान से प्रार्थना की और अपने होंठों को भींच कर वह जेठजी के लण्ड का उसकी चूत में घुसने के क्षण का इंतजार करने लगी।

जेठजी माया की चिंता समझ सकते थे। उन्होंने अपनी उँगलियों से माया की चूत की पंखुड़ियों को अलग कर माया की चूत के गुलाबी चिकने छिद्र को देखा था। दिखने में जरूर वह छिद्र छोटा सा ही था, पर जेठजी जानते थे की स्त्री की चूत की नाली में गजब की लचक और फैलने की क्षमता होती है। वक्त आने पर वह अपने नाप से कई गुना फ़ैल सकती है। इसी चूत के द्वार से बड़े बड़े तगड़े और मोटे लण्ड औरत को चोदते हैं और इसी चूत के छोटे से छिद्र में से ही एक चूत के नाप से कई गुना बड़ा नवजात शिशु जन्म लेता है। हालांकि दोनों स्थिति में औरत के शरीर को काफी सेहन करना पड़ता है।

जेठजी ने अपना लण्ड बार बार माया की चूत की सतह पर रगड़ कर चिकना किया। माया ने भी अपनी लार उसके ऊपर चुपड़ कर उसे काफी स्निग्ध बनाया था। जेठजी ने अपने लण्ड को अपने हाथ में पकड़ कर उसके बड़े टोपे को माया की चूत के खुले हुए छिद्र में एक हल्का सा धक्का मार कर थोड़ा सा अंदर डाला। जेठजी ने माया का चेहरा देखा। माया अपनी आँखें मूँद कर उस घडी के उन्माद को महसूस कर रही थी या फिर जेठजी के इतने तगड़े लण्ड के माया की चूत में घुसने से जो दर्द उसे सहना पडेगा उसके लिए वह अपने आपको मानसिक रूप से तैयार कर रही थी, यह कहना मुश्किल था।

जैसे ही जेठजी का लण्ड माया की चूत में दाखिल हुआ, माया के पुरे बदन में एक गजब की सिहरन फ़ैल गयी। माया को उतना ज्यादा दर्द महसूस नहीं हुआ। पर जेठजी ने भी अपने लण्ड का सिर्फ टोपा ही माया की चूत में घुसेड़ा था। अगला धक्का माया की चूत में जेठजी के लण्ड को और अंदर दाखिल करने के लिए लगाना होगा और वह सहन करने के लिए माया को तैयार होना था। जेठजी अपने लण्ड को और घुसेड़ने के लिए झिझक रहे थे तब माया ने जेठजी से कहा, "अब आप ज्यादा मत सोचिये। अगर आपके लण्ड के घुसने से मेरी चूत फट भी गयी और मैं मर भी गयी तो मैं उसके लिए तैयार हूँ, पर आप रुकिए मत। मैं जानती हूँ की ऐसा कुछ भी नहीं होगा। हाँ दर्द जरूर होगा। काफी दर्द होगा। मैं उस दर्द को आपका प्रसाद समझ कर हँस कर झेल लुंगी। पर अब मुझसे आपसे चुदाई करवाने के लिए और इंतजार नहीं होता। चुदाई के इंतजार का दर्द चुदाई से हो रहे दर्द से कहीं ज्यादा है। अब रुकिए मत, प्लीज, बस खुल कर चोदिये मुझे।"

जेठजी जानते थे की उन्हें माया को चोदने के लिए अपना महाकाय लण्ड माया की छोटी सी चूत में घुसाना तो पडेगा ही। और माया को दर्द भी सहना ही पडेगा। जेठजी ने एक और हल्का सा धक्का मार कर अपना लण्ड माया की चूत में थोड़ा और अंदर घुसाया। माया लण्ड के घुसने से सिकारियाँ भरने लगी। उसके मुंह से दबी हुई "आह.... ओह.... " निकलने लगी। जेठजी को लगा की आगे तो बढ़ना ही पडेगा, यह सोच कर जब उन्होंने अपनी कमर से एक थोड़ा और तेज धक्का मार कर अपना लण्ड माया की चिकनी चूत में घुसाया तो माया जोर से चीख पड़ी। उसके मुंह से बरबस निकल पड़ा, "मर गयी रे..... ओजी...... थोड़ा धीरे से डालो। मैं वादा करती हूँ की मैं ज़िंदा रहूंगी तो आप से चुदवाती रहूंगी। अगर मैं मर ही गयी तो आपसे और कैसे चुदवाउंगी? मेरी चूत फट रही है रे!"

फिर माया को ध्यान आया की जेठजी ने उसकी चीख और कराहट सुन कर चुदाई रोक दी और अपना लण्ड माया की चूत से बाहर निकाल दिया। माया को जरूर जेठजी के लण्ड बाहर निकालने से कुछ राहत महसूस हुई पर माया की चूत में जेठजी के महाकाय लण्ड घुसने से जो दर्द भरी उत्तेजना महसूस हो रही थी वह गायब भी हो गयी।

माया ने जेठजी की और देखा, कुछ कमजोरी से ही सही पर वह मुस्कुरायी और बोली, "आप रुक क्यों गए? मैं तो चीखती चिल्लाती रहूंगी। मुझे आपके इस तगड़े लण्ड घुसने से असह्य दर्द जरूर हो रहा है। पर यह तो होना ही था। पर उस दर्द के साथ साथ मुझे आप से अद्भुत दर्द के आवरण में लिपटी हुई प्यार भरी रोमांचक जो उत्तेजना मिल रही थी वह मत छीनो मुझ से। मैं कोई मरने वाली नहीं हूँ। मुझे सालों तक जीना है और आप से चुदवाते रहना है। फिर भी अगर मुझे कुछ शारीरिक घाव जैसा महसूस हुआ तो आप यकीन कीजिये की मैं आपके लण्ड को धक्के मार कर मेरी चूत से बहार निकालने से नहीं कतराऊंगी। मुझे अब जीने का ठोस कारण आज आपने दिया है। मैं ज़िंदा रहूंगी और आपके जीवन को खुशहाल बनाते हुए आप का पूरा साथ जीवनभर निभाती हुई आपसे चुदवाती रहूंगी।"

जब जेठजी ने यह सूना तो उनके पूरा बदन रोमांच से अभिभूत हो गया। स्त्री में भगवान ने कितना प्यार, बलिदान और समर्पण का भाव कूट कूट कर भरा है वह उन्हें महसूस हुआ। जेठजी ने अपने लण्ड को एक और ज्यादा बड़ा धक्का मार कर जब माया की चूत में घुसेड़ा तो फिर से माया चीख उठी। पर इस बार माया जेठजी को रोकने के लिए नहीं बल्कि उन्हें पूरा लण्ड चूत में घुसेड़ कर उसे अच्छी तरह चोदने के लिए आह्वान कर रही थी। माया चीख रही थी, "अजी चोदो जी मुझे। अब सिर्फ धक्के मत मारो, मेरीअच्छी तरह से चुदाई करो। मैं चीखती चिल्लाती रहूंगी। यही तो नारी जीवन का एक अनोखा पारितोषिक है की उसे तगड़ी चुदाई से हो रहे दर्द में भी अद्भुत, अनोखा, रोमांचपूर्ण, उत्तेजक सुख मिलता है।"

यह सुन कर जेठजी का लण्ड और सख्त हो गया। जब चुदाई कर रहे एक मर्द को अपनी साथीदार औरत से ऐसी जोशभरी सकारात्मक प्रतिक्रया मिलती है तो उसका लण्ड और भी जोशीला हो जाता है। जेठजी के लण्ड को अब रोकना नामुमकिन था। जेठजी ने एक आखिरी जोरदार धक्का मारा और उनका करीब आधा लण्ड माया की चूत में घुस गया तो माया की चूत पूरी भर गयी। जेठजी का आधा लण्ड बेचारा माया की चूत में दाखिल ही नहीं हो पाया। पर माया के मुंह से चीख के बजाये गहरी गहरी आहें और कामुक सिकारियाँ अब थमने का नाम नहीं ले रही थी। पुरे कमरे में माया की, "हाय राम.... ओह....... आह...... हाय...... चोदो मुझे........ और चोदो........ मत रुको......." यह और ऐसी कई कामुक शब्दों से भरी कराहटें और सिकारियाँ सुन कर जेठजी और जोर से चोदने लगते और उसके साथ साथ माया की कराहटें और भी बढ़ जातीं।

धीरे धीरे माया का चुदाई के कारण हो रहे दर्द की जगह जेठजी के लण्ड के घर्षण हो रहे उन्मादक रोमांच ने ले ली। माया के पति ने उनके दाम्पत्य जीवन दरम्यान माया की काफी चुदाई की थी। पर जेठजी की एक ही चुदाई उत्तेजना और रोमांच के पटल पर माया के पति की दो बरसों की चुदाई के ऊपर भी भारी पड़ रही थी। माया ने कभी सोचा ही नहीं था की किसी औरत की इस तरह चुदाई हो भी सकती है जिस के कारण वह चुदाई इस कदर एक अजीब से रोमांच और उत्तेजना से इतना अद्भुत सुख दे सकती है।

जैसे जैसे जेठजी माया को चोदते रहे वैसे वैसे माया भी उस चुदाई से उत्पन्न सुख और आनंद का उन्माद का आस्वादन करती रही। जेठजी कभी माया के ऊपर चढ़े हुए अपने लण्ड को ऊपर से सीधे माया की चूत में घुसाते हुए उसे चोदते तो कभी माया के बदन को टेढ़ा घुमा कर माया की एक टांग अपनी जाँघों के बिच में रख कर अपना लण्ड माया की साइड में से घुसा कर उसे चोदते। चोदते हुए वह माया की निप्पलोँ को मुंह में रख कर उसे चूसना और काटना भी नहीं चूकते। धीरे धीरे जैसे जैसे माया को चुदाई का दर्द कम महसूस होने लगा वैसे वैसे माया भी जेठजी को अपनी कमर के साथ अपनी चूत ऊपर की और उछाल कर उनकी चुदाइ की लय में लय मिलाती हुई जेठजी का लण्ड और अंदर घुसाने में जेठजी की सहायता करती।

माया की तगड़ी चुदाई करते हुए जेठजी के कमरे में उनकी जाँघों के माया की जाँघों से होते टकराव से पैदा होती "फच्च.... फच्च.... " की कामुक उत्तेजक आवाज से कमरा गूंज रहा था। चुदाई के दरम्यान माया अपनी टांगें कभी जेठजी के कंधे पर तो कभी जेठजी की दोनों बगल के अंदर हवा में अद्धर उठाती हुई जेठजी से खूब प्यार से चुदवाने लगी थी। जेठजी ने जब एक तगड़ा धक्का मार कर अपना आधा लण्ड माया की चूत में घुसेड़ा था उसी समय माया झड़ गयी थी। जेठजी का लण्ड माया की चूत में सिर्फ दर्द नहीं एक बड़ा ही उन्मादक सा पागलपन पैदा कर रहा था। माया की चूत में उस घुसे हुए लण्ड के अंदर बाहर होने से हो रहे घर्षण के कारण अजीब सी फड़फड़ाहट हो रही थी जिसे जेठजी अपने लण्ड के ऊपर हो रहे खिंचाव एवं चूत में बार बार हो रही कम्पन से महसूस कर रहे थे। इस चुदाई ने माया को इतना पागल कर दिया था की जेठजी के लण्ड के एक या दो धक्कों में ही माया का छूट जाता था और माया झड़ती रहती थी।

चुदवाते हुए माया हमेशा जेठजी के चेहरे को बार बार देखती रहती थी की उस चुदाई से जेठजी को सुख मिल रहा है की नहीं। जेठजी की भौंहों के उतार चढ़ाव से माया समझ जाती थी की जेठजी माया को चोदने में अनूठा आनंद महसूस कर रहे थे और माया को चोदते हुए उनका सारा ध्यान अपने लण्ड में हो रहे उत्तेजक घमासान पर ही रहता था। लम्बे अर्से से ब्रह्मचर्य का पालन करने के कारण जेठजी का वीर्य जेठजी के लण्ड की इस तरह की चुदाई से उत्पन्न अति सुख मिलने के कारण अण्डकोष से बाहर निकलने के लिए व्याकुल हो रहा था।

जब माया ने जेठजी के साथ ताल से ताल मिला कर अपनी कमर उछाल कर चुदवाना शुरू किया तब जेठजी अपने वीर्यचाप को रोकने में अपने आपको असमर्थ महसूस करने लगे। जेठजी के चेहरे पर बल पड़ने से माया समझ गयी की जेठजी झड़ने वाले हैं। शायद वह यही उलझन में होंगे की क्या वह अपना वीर्य माया की चूत में उँडेले या नहीं। माया जेठजी के वीर्य को अपनी चूत में लेना चाहती थी। वह जानती थी की जेठजी का वीर्य उसे गर्भवती कर सकता था। माया ने बिना कुछ सोचे समझे जेठजी को कहा, "अजी आप भर दीजिये मेरी चूत को आपके वीर्य से। वैसे तो मेरा इस समय बीज फलीभूत होने का वक्त नहीं है। पर फिर भी अगर मेरा गर्भ रह गया और यदि आपको एतराज ना हो तो मैं आपके बालक को जनम देना चाहती हूँ। मैं आपके बच्चे की माँ बनना चाहती हूँ। फिर भी अगर आपको एतराज होगा तो मैं कल सुबह ही गोली खा लुंगी ताकि गर्भ ना रुके। आप जैसा कहोगे मैं करुँगी पर प्लीज आप अपना वीर्य मेरी चूत में ही जाने दें।"

यह सुनते ही जेठजी ने अपने वीर्य को माया की चूत भरने के लिए खुली छूट दे दी। जेठजी के मन के इशारे से ही एक फव्वारे के सामान जेठजी का गर्मागर्म गाढ़ा वीर्य जेठजी के लण्ड के छिद्र से निकलता हुआ एक पिचकारी की तरह माया की चूत की सुरंगों को भरने लगा। माया ने अपनीं चूत की नाली में जेठजी के गरम वीर्य को भारत हुए महसूस किया और वह एक अजीब से रोमांच से काँप उठी। उस रात उसका जीवन सार्थक हो गया था। जिस मर्द को वह अपने प्राण तक देना चाहती थी वह माया के बदन के सुख को पाकर इतना रोमांच भरा सुख पा सका उसके कारण माया को अपना जीवन सार्थक हो गया था ऐसा महसूस हुआ।

उस चुदाई के बाद हालांकि माया की चूत जेठजी के लण्ड की तगड़ी चुदाई से काफी लाल हो गयी थी और दर्द कर रही थी, पर माया को उस रात जेठजी को पूरी तरह संतुष्ट करना था। थकी हुई माया जेठजी के लण्ड निकालने के चंद मिनटों में ही जेठजी की बगल में आ कर जेठजी को अपने पीछे रख कर जेठजी की बाँहों में और उनकी टांगों के बिच में फंस कर सो गयी। जेठजी का ढीला लंड बार बार माया की गाँड़ के गालों से रगड़ता रहता था। जेठजी भी अपने दोनों हाथों में माया की चूँचियाँ दबाते हुए कुछ ही मिनटों में सो गए।

करीब आधे घंटे बाद माया ने महसूस किया की जेठजी का लण्ड फिर से सख्त होने लगा था और माया की गाँड़ के गालों को टोंचने लगा था। माया इस डर से की कहीं जेठजी माया की गोरी चिट्टी भरी हुई गाँड़ देख कर ललचा ना जाए और गाँड़ मारने की इच्छा ना प्रगट कर दे, एकदम पलट कर जेठजी की तरफ अपना मुंह करने के लिए करवट बदल ली।

जेठजी जाग चुके थे। माया ने अपना डर ना जाहिर करते हुए जेठजी के होँठों से अपने होँठों को चिपका दिए और जेठजी के मुंह में अपनी जीभ डाल कर माया जेठजी की लार चूसने लगी। जेठजी भी माया की जीभ और होंठों के साथ अपने मुंह और जीभ से खेलते हुए माया के साथ प्रगाढ़ चुम्बन में जुट गए। कुछ देर तक माया को चूमने के बाद जेठजी ने माया को अपनी बाँहों में जकड़ा और अपने सख्त लण्ड को माया की चूत में घुसाने का खेल करने लगे। जेठजी इतने लम्बे और हट्टेकट्टे और बेचारी माया दुबली पतली और जेठजी के मुकाबले छोटी सी। जेठजी उस पोजीशन में माया की चूत में अपना लण्ड कैसे डाल पाते?

जेठजी ने माया को पूछा, "तुम थक तो नहीं गयी?"

माया ने जेठजी की आँखों में आँखें मिला कर पूछा, "और भी एक राउण्ड करना है क्या?"

जेठजी ने कहा, "अगर तुम तैयार हो तो।"

माया ने जेठजी के लण्ड को पकड़ कर बैठ कर उसे चूमते हुए कहा, "अगर मेरा यह दोस्त तैयार है तो उसकी दोस्त भी तैयार है।" माया ने अपनी चूत की और इशारा करते हुए कहा।

माया ने झुक कर जेठजी का लण्ड हाथ में पकड़ा और झुक कर उसे अपने मुंह में डाला। जेठजी की और देख कर माया बोली, "मैं इसे और तैयार कर देती हूँ।" यह कह कर माया ने जेठजी का लण्ड चूसना शुरू किया।

उस रात अगले एक घण्टे से ज्यादा समय तक माया जेठजी से चुदवाती रही। जेठजी ने माया को ऊपर चढ़ कर चोदा, साइड में रख कर चोदा, माया को आसानी से अपनी बाँहों में उठाकर अपनी कमर पर टिका कर चोदा, माया को घोड़ी बना कर चोदा, माया को पलंग पर औंधे मुंह सुला कर ऊपर चढ़ कर चोदा और और भी कई अलग अलग तरीकों से माया को अच्छी तरह से जेठजी ने उस रात चोदा। माया ने भी जेठजी के ऊपर चढ़ कर उनका लण्ड अपनी चूत में लेकर ऊपर से जेठजी को खूब कूद कूद कर चोदा। माया ने कभी अपनी जिंदगी में ऐसी चुदाई कराई तो नहीं थी, पर ऐसा सोचा भी नहीं था की उसकी ऐसी चुदाई बह कभी होगी। माया के जबरदस्त मानसिक निश्चय के बावजूद भी जब उस रात माया को जेठजी ने चुदाई से फारिग किया और माया जब सीढ़ियों से उतर कर निचे आ रही थी तो सिर्फ माया की चूत ही नहीं सूज गयी थी, माया ठीक से चल भी नहीं पा रही थी।

यह सारी बातें माया ने मुझे बतायीं और तब मैंने माया को अपने गले लगा कर कहा, "माया तू आजसे मेरे लिए माया नहीं, मेरी जेठानी है। भले ही तू मुझे अपनी दीदी कहे, पर तूने आज जो काम किया है उससे तूने हम सब को तुम्हारा ऋणी बना दिया है। तुम्हारे इस ऋण का बदला हम चुका नहीं सकते।"

माया ने जब यह सूना तो उसकी आंखों में मेरी बात सुन कर आंसू छलक आये। मेरा हाथ थाम कर वह बोली, "दीदी, मैंने कुछ नहीं किया। मैं तो खुद ही आप सब के एहसानों के बोझ के तले दबी हुई हूँ। आपने मुझे अपने घर में सहारा दे कर अनाथ से सनाथ बनाया। बल्कि आज आपने मुझे विधवा से सधवा बनाया। मैं आपकी जेठानी बनूँगी या नहीं, यह तो मैं नहीं जानती, पर आज आपने मुझे आपके जेठजी से चुदवा कर उनकी पत्नी ना भी बन पाऊं तो उनकी रखैल कहलाने का सम्मान तो दिला ही दिया है। आपके जेठजी की रखैल बनना भी मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी।"

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