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Click hereमैंने जब नम आँखों से माया की और देखा तो माया ने हलकी सी सहानुभूति भरी मुस्कान दे कर मुझे आश्वस्त किया की मैं जो करने जा रही थी वह सदा सर्वदा योग्य था और मुझे अपने आप को उसके लिए लेशमात्र भी दोषी या गुनेहगार समझने की आवश्यकता नहीं थी। मैंने देखा की माया भी जैसे कोई कामी लम्पट पुरुष किसी खूबसूरत नंगी औरत के बदन की तस्वीर या मूरत देख कर लोलुपता से प्लावित हो कर उस मूरत को अपने चेहरे पर असहायता का भाव लेकर उसे घूरता रहता है (क्यूंकि वह उस मूरत को कुछ कर नहीं सकता) वैसे ही भाव मुझे माया के चेहरे पर नजर आ रहे थे। शायद माया के मन में भी कहीं ना कहीं मेरे कमनीय नग्न बदन से खेलने की और उसे एक औरत जैसे भी भोग सकती है वैसे भोगने की प्रबल इच्छा उस समय पनप रही होगी। मैंने मन ही मन यह तय किया की मैं माया की उस इच्छा को मौक़ा मिलते ही जरूर पूरी करुँगी। मेरे लिए यह मेरा कर्तव्य था और माया का अधिकार भी था।
मैंने अपना एक हाथ लंबा कर माया का एक हाथ थामा और मेरे मुंह से उसे चूम कर माया को मेरी कृतज्ञता का इजहार किया। माया ने भी थोड़ा करीब आ कर मेरी करारी जाँघ पर हाथ रख कर उसे प्यार से सेहला कर मूकदशा में ही मेरी सुंदरता और कामुक बदन की प्रशंशा की। उस समय मेरे जेठजी मेरी चूत से अपना लण्ड हलके से रगड़ कर उसे चिकना करने की कोशिश कर रहे थे। वैसे ही जेठजी का लण्ड उस समय अपने पूर्व रस से लथपथ चिकना था और हलकी रौशनी में चमक रहा था।
मैंने जेठजी का लण्ड दुबारा अपनी उँगलियों से सही जगह पर रख कर मेरी चूत की पंखुड़ियों को अलग कर उस पर रगड़ कर और हल्का सा अपनी और खिंच कर उसे मेरी चूत की गहराइयों में प्रवेश करने की जैसे इजाजत देदी। मं आगे जो होने वाला था उसे आतंकित नहीं थी यह कहना गलत होगा। पर मैं उस मीठे जबरदस्त दर्द को झेलने के लिए मानसिक रूप से तैयार थी। मैं जानती थी ऐसे मोटे तगड़े और महाकाय लण्ड से चुदने में दर्द तो होता है पर वह दर्द भी अपने आपमें एक ऐसा उन्मादभरा आनंद देता है वह कोई स्त्री जिसे ऐसा अनुभव नहीं हुआ हो वह समझ नहीं सकती। पुरुष के लिए तो खैर वह समझना नामुमकिन ही है।
उसी समय मेरे जेठजी ने कुछ ऐसा किया जिसे अनुभव कर मेरे धैर्य का बाँध टूट गया। जेठजी ने मेरा लण्ड मेरी चूत की सुरंग में थोड़ा घुसा कर, झुक कर मुझे अपनी बाँहों में कस कर जकड़ लिया और मेरे होँठों पर अपने होँठ कस कर भींच दिए और मेरे मुंह में अपनी जीभ डालकर मेरी लार को चूसने लगे। फिर अपने होँठों को मेरे कानों के करीब ला कर मेरे कानों में फुसफुसाते हुए बोले, "मेरी कमसिन खूबसूरत छाया, काश मैं तुम्हारे इस कमसिन, खूबसूरत नंगे बदन को दख पाता। तुमने मेरी आँखों पर यह पट्टी बाँध कर मेरे साथ बड़ा अन्याय किया है। पर फिर भी मैं यह कहना चाहता हूँ की तुमने आज मेरे साथ यह सुहागरात मनाकर मुझे जो सुख दिया है उसके लिए मैं तुम्हारा आजीवन ऋणी रहूंगा। मैं इस एहसान को चुकाने के लिए क्या करूँ यह मैं समझ नहीं पा रहा हूँ।"
मैंने कुछ ना बोलते हुए, मेरे जेठजी के होँठों से फिर अपने होँठ सख्ती से कस कर मिलाये और उनके मुंह में अपनी जिह्वा डालकर उनके मुंह की लार मैं चूसने लगी। मैंने उनका सिर ऐसे ताकत से पकड़ा जैसे मैं उसे आजीवन नहीं छोड़ने वाली थी। कुछ पलों के लिए मेरे जेठजी भी मेरी इस अचानक प्रतिक्रया से स्तब्ध और भावुक हो गए। उन्होंने एक हल्का सा धक्का मार कर अपना लण्ड मेरी चूत में कुछ और घुसेड़ा और बोले, "छाया आज तुम्हारी चूत गजब की सख्त और साथ साथ में लचीली महसूस हो रही है। मुझे ऐसा लगता है जैसे तुम्हारी चूत तुमसे भी ज्यादा खूबसूरत और प्यारी है। मैंने पहले इतनी प्यारी सी चूत नहीं महसूस की।" मेरे जेठजी की बात सुन कर मेरी जान मेरी हथेली में आ गयी। कहीं उन्हें इस बात का अंदाज तो नहीं हो गया की मैं वाकई में माया नहीं दूसरी औरत थी?
मैंने अपना सिर हिलाते हुए जैसे मेरे जेठजी की प्रशंषा को स्वीकार किया। जेठजी का लण्ड घुसने से मेरी चूत में असह्य पीड़ा हो रही थी। पर जेठजी के प्यारे शब्द और उनका प्यार भरा चुम्बन मुझे ऐसे मदहोश बना रहा था की जैसे मैं उस दर्द को दर्द नहीं उन्माद भरा मीठे स्वाद सा अनुभव कर रही थी। जैसे कोई मरीज ऑपरेशन थिएटर में एनेस्थेसिया के इंजेक्शन के प्रभाव से अपने आपको मदहोश दशा में पाता है और उसकी चमड़ी को काटती हुई तेज छुरी से जो दर्द उसे वास्तव में हो रहा है उसे अनभिज्ञ वह उस उन्माद को अनुभव कर एक अजीब सी आनंद भरी दशा का अनुभव करता है; शायद मेरा भी उस समय वैसा ही हाल था। हालांकि ना चाहते हुए भी मरे मुंह से हलकी चीखें निकल रहीं थीं।
मैंने मेरे असह्य दर्द से यह अनुभव किया की मेरे जेठजी का महाकाय लण्ड मेरी चूत के आखिरी कोने में घुस चुका था और शायद मेरी बच्चेदानी को ठोकर मार रहा था। मैंने थोड़ा सा ऊपर उठकर देखा तो पाया की मेरे जेठजी का अजगर सा लण्ड तब भी मुझे आधा बाहर दिख रहा था। बापरे अगर मेरे जेठजी ने अपना पूरा लण्ड मेरी चूत में घुसेड़ने की कोशिश की तो मेरी चूत का फटना या मेरी बच्चेदानी का तहस नहस हो जाना तय था। मैं मन ही मन प्रार्थना कर रही थी की मेरे जेठजी मेरी इस करुणा भरी दशा को समझेंगे और उतना ही लण्ड मेरी चूत में रख कर मुझे धीरे धीर चोदेंगे।
जेठजी ने जरूर मेरी मनोदशा को भाँप लिया होगा, क्यूंकि उन्होंने उसके बाद अपना लण्ड धीरे से मुझे प्यार करते हुए वापस खिंच लिया और उसके कारण मुझे कुछ राहत का अनुभव हुआ। उन्होंने अपने दोनों हाथ में मेरे दोनों स्तनोँ को ऐसे जकड़ कर पकड़ रखा था जैसे अगर वह उन्हें छोड़ देंगे तो वह कहीं गायब ना हो जायें।