साथी हाथ बढ़ाना Ch. 04

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माया जेठजी की वासना की उस भड़की हुई आग में घी डालने का काम कर रही थी। मेरे जेठजी से चुदवाते हुए हमेशा माया जेठजी की चुदाई करने की क्षमता की तारीफ़ करते हुए नहीं थकती थी। वह यह एहसास दिलाती रहती थी की जेठजी चुदाई में आसानी से एक साथ दो औरतों को संतुष्ट करने की क्षमता रखते थे।

जेठजी के मन में कहीं ना कहीं चुदाई में नए नए परिक्षण करने की गुह्य इच्छा पनपने लगी थी। इस मायने में शायद धीरे धीरे मेरे जेठजी के सिद्धांतो की कठोरता क्षीण होती जा रही थी। माया ने इसी को देखते हुए मौका भाँप लिया और मुझे माँ बनाने के लिए जेठजी से चुदवाने के बारे में सोचा। पर माया के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था की माया मुझे जेठजी से कैसे चुदवायेगी जिससे मेरे और जेठजी के बिच की जो सम्मान और औपचारिकता की दिवार है वह धँस ना जाये और मैं माँ भी बन सकूँ ।

माया का स्वभाव था की वह जब कोई बात अपने मन में ठान लेती है तो फिर उसका कुछ ना कुछ रास्ता निकाल ही लेती थी। माया पोर्न साइट पर जा कर चुदाई के अलग अलग तरीकों के बारे में रिसर्च करने लगी। वहाँ उसने देखा की कई बार पति पत्नी एक दूसरे की आँखों में पट्टी बाँध कर चुदाई करते थी।

माया ने एक वीडियो ऐसा देखा जिसमें एक पति अपनी पत्नी की आँखों पर पट्टी बाँध कर चुदाई करते हुए अपने किसी दोस्त को भी उसकी पत्नी को चोदने के लिए बुला लेता है और उसे मौक़ा देता है की वह उसकी पत्नी को चोदे। दोस्त पत्नी को अच्छी तरह से चोदकर चला जाता है और पत्नी को पता भी नहीं लगता की उसे किसी और मर्द ने चोदा था। शायद ऐसे भी हो सकता हो की पत्नी को दूसरे मर्द की चोदने की अलग शैली से पता लग भी गया हो की उसे कोई दुसरा मर्द चोद रहा था; पर वह लज्जा या झिझक के मारे कुछ नहीं बोलती और चुपचाप दूसरे मर्द से चुदवा लेती है। इस तरह शर्मीली पत्नी को, जो वैसे किसी गैर मर्द से चुदवाने के लिए राजी नहीं होती उसे इस तरह धोखे में रख कर पति दूसरे मर्द से चुदवा लेता है।

माया ने उस वीडियो को देख कर अपना मन बना लिया की वह कैसे मुझे अपने पति (मेरे जेठजी) से चुदवायेगी।

उसी हफ्ते में एक रात जब मेरे जेठजी माया से चुदाई के मूड़ में थे तब माया ने मौक़ा देख कर पासा फेंका। माया ने कहा, "आप कई बार मुझे कहते हैं ना, की हमें कुछ नए नए प्रयोग करने चाहिए? क्यों ना हम एक नया प्रयोग करें? मैंने एक साइट पर देखा था की एक पत्नी अपने पति की आँखों पर पट्टी बाँध कर अपनी चुदाई करवाती है और पति को ऐसा एहसास दिलाती है जैसे वह किसी और औरत की चुदाई कर रहा है। मेरा मन कर रहा है की आप अपनी आँखों पर पट्टी बाँध कर मुझे चोदें और यह सोचें जैसे आप किसी और औरत को चोद रहे हैं?"

माया की बात सुन कर जेठजी बहुत खुश हुए। वह माया की बात फ़ौरन मान गए। उस माया ने मेरे जेठजी की आँखों पर सख्ती से पट्टी बाँध दी और फिर रात जैसे कोई दूसरी औरत मेरे जेठजी से पहली बार चुदवा रही हो उस तरह माया पलँग पर मचलती फुदकती और जेठजी की चुदाई से जैसे बहुत ज्यादा आतंकित हुई हो और उनके लण्ड से चुदवाने में उसे बड़ा ही कष्ट हो रहा हो ऐसे कराहती रही और मेरे जेठजी को चुदाई के आनंद के चरम पर ले जा कर चुदवाया आधी रात तक इतना बढ़िया तरीके से जेठजी का लण्ड चूसा, अपनी चूत जेठजी से चुसवाई और अलग अलग पोजीशन में इतना बढ़िया तरीके से चुदवाया की जेठजी माया पर न्यौंछावर हो गए।

जब माया ने मुझे यह प्लान बताया तो मेरे रोंगटे खड़े हो गए। माया ने जेठजी से मेरी चुदाई का रास्ता अब साफ़ कर दिया था। पर कहीं ऐसा तो नहीं होगा की मेरी चुदाई करते हुए जेठजी अपनी आँखों की पट्टी निकाल दें और मुझे देखलें? या कहीं ऐसा तो नहीं होगा की मेरी और माया की चुदाई करवाने का अंदाज अलग होने के कारण जेठजी को शक हो जाए की वह वाकई में ही किसी और औरत को चोद रहे थे, और आँखों से पट्टी निकाल दें और मुझे देख लें? खैर मैं और माया कद और बदन में एक दूसरे से काफी मिलती जुलती थीं। हालांकि मेरी चूँचियाँ माया की चूँचियों से कुछ बड़ी थीं और माया के कूल्हे मेरे कूल्हों से कुछ बड़े थे। पर आँख पर पट्टी बंधे जोरदार चुदाई करते हुए शायद ही जेठजी इसे भाँप पाएं। अब यह जोखिम तो उठाना ही पड़ेगा। और कोई रास्ता भी तो नहीं था।

जेठजी के ऐसे तगड़े लण्ड से चुदवाने की बात सोचते हुए ही मेरी चूत से पानी रिसने लगा। कैसे मैं मेरे जेठजी का ऐसा तगड़ा लण्ड ले पाउंगी? खैर, माया की काफी अर्से से चुदाई करते हुए मेरे जेठजी का लण्ड कुछ तो नरम जरूर हुआ होगा यह ही मेरे लिए एक सांत्वना का विषय था। पर फिर भी जेठजी से चुदवाने के बारे में सोचते ही मेरे पुरे बदन में ना जाने क्या होने लगता था।

मैंने मेरे पति संजयजी को जब इसके बारे में बताया तो उनकी ख़ुशी का भी ठिकाना ना रहा। उन्होंने मुझे सजधज कर तैयार हो कर जाने को कहा। मैंने कहा, "सजने की क्या जरुरत है? जेठजी तो मुझे देख नहीं पाएंगे?"

तो मेरे पति संजयजी ने कहा, "जब मैंने तुम्हें शादी के लिए पसंद किया था तो मेरे मन में एक दबी हुई कामना थी की काश तुम्हारी सुहाग रात मैं तुम्हें चोद कर नहीं, मेरे बड़े भैया से चुदवा कर करवा पाता। काश हमारी वजह से उनके जीवन में जो सूखापन आया था उसे तुम मेरे जेठजी से चुदवा कर उनका जीवन हराभरा कर सकती। उस समय तो वह नहीं हो पाया। फिर माया आयी और माया ने वह काम किया जो मैं तुमसे करवाना चाहता था। पर अब जब मौक़ा आया ही है तो मैं चाहता हूँ की तुम जेठजी के साथ वह सुहाग रात अब मनाओ। इसी लिए मैं चाहता हूँ की तुम जब बड़े भैया के कमरे में जाओ तो सजधज कर जाओ। क्या तुम इतना मेरे लिए करोगी?"

जब मैने माया से मेरे पति के मन की वह बात कही तो माया ने कहा वह उसकी भी व्यवस्था कर देगी।

तय किये अनुसार मेरी क़त्ल की रात आ गयी। उस रात मुझे माया ने नयी नवेली दुल्हन सा सजाया। जब संजयजी ने मुझे श्रृंगार करने के बाद देखा तो बोले, "अंजू, तू इतनी सुन्दर लग रही है की मेरा मन करता है की मैं अभी ही तुझे नंगी कर चोद डालूं। पर क्या करूँ, आज तेरी बड़े भैया के साथ सुहाग रात है। अगर मैंने ऐसा कुछ किया तो तेरा श्रृंगार बिगड़ जाएगा।"

माया ने जेठजी को बता रखा था की वह चाहती थी की उस रात माया नयी नवेली दुल्हन जैसा श्रृंगार कर मेरे जेठजी से चुदवाये।

दूसरी तरफ माया भी रात के ठीक दस बजे, मेरी ही तरह उसी लाल रंग की साडी और बाकी का सारा श्रृंगार कर तैयार हो चुकी थी। मुझे माया ने कमरे के किवाड़ के बाहर खड़े रहने को कहा था। जब सब अपने अपने कमरे में जा चुके थे तब माया मेरी ही तरह सजी हुई अपने बैडरूम में मेरे जेठजी के पास पहुंची। जेठजी ने नयी नवेली दुल्हन के रूप में सजी हुई माया को देखा तो उसे बुला कर अपनी बाँहों में लिया। अक्सर माया जेठजी को खुश करने के लिए कुछ ना कुछ नए प्रयोग करती रहती थी। उस रात माया ने कहा, "आज की रात आप मेरे साथ नहीं किसी दूसरी नयी नवेली दुल्हन के साथ अपनी सुहाग रात मनाएंगे। आज रात मैं कुछ नहीं बोलूंगी। अगर मैं कुछ बोली तो फिर आप को पता चल जाएगा की वह कोई दूसरी नहीं मैं ही हूँ तो सारा मजा किरकिरा हो जाएगा। मुझे चोदते हुए आप यही सोचिये की आप मुझे नहीं किसी और औरतको चोद रहे हैं।"

यह कह कर माया ने मेरे जेठजी से लिपट गयी, उनको होँठों पर गालों पर, हर जगह चूमते हुए कुछ भावुक हो गयी। फिर अपने आप पर नियंत्रण रखते हुए माया ने एक काली पट्टी ले कर जेठजी की आँखों पर सख्ती से बाँध दी।

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जब हवस की मौजें बन सैलाब बड़ी ऊँची उठ जाती हैं,

मर्दानगी तगड़ी जब रूप के अम्बार से मिल छलकाती हैं।

जब बदन की ज्वाला दावानल बन बेकाबू हो जाती हैं,

तब अभिसारिका बन औरत कई मर्दों से चुदवाती है।।

कैसे खुश होगी शमा एक परवाने की कुर्बानी से,

धधकती यह ज्वाला कैसे बुझ जायेगी आसानी से।

प्यार की रिमझिम बारिश की बर्षा ही उसे बुझाएगी

ममता करुणा और सहनशीलता से घर शांति आएगी।।

जब चुदाई के लिए मन में तीव्रेच्छा होती है, जब हवस दिमाग पर हावी होता है तो सिर्फ एक औरत को चोद कर या एक ही मर्द से चुदवा कर मन नहीं भरता। हमें उसमें विविधता चाहिए। विविधता भी कई रूप में प्रगट होती है। अलग अलग मर्दों से चुदवाना या अलग अलग औरतों को चोदना। इसके अलावा विविधताओं में अलग अलग तरीकों से चुदाई करना या करवाना; जिसमें गाँड़ मारना या मरवाना (जिसे कई लोग अप्राकृतिक मानते हैं), दो या ज्यादा मर्दों से एक औरत की चुदाई, या दो कपल के बिच में एक दूसरे की बीबी को चोदना, और इस तरह की अनेकानेक कई विविधताएं शामिल होतीं हैं। कई बार औरतों या मर्दों की आँखों पर पट्टी बाँध कर या हाथ पाँव बाँध कर औरतों को चोदना ऐसे प्रयोग होते हैं। आजकल तो पूरी दुनिया में इस तरह के नए नए प्रयोगों की भरमार नेट पर देखने को मिलती है।

ऐसे प्रयोग अगर सावधानी से और कभी कभी किये जाएँ तो उचित है। यह भी ध्यान रहे की पति और पत्नी ऐसे प्रयोग एक हादसा समझ कर ही करें। क्यूंकि यह प्रयोग अगर ज्यादा नियमित रूप से किया जाए तो पति और पत्नी में परिपक्वता के अभाव से कई बार अविश्वास, इर्षा, मोह और अहंकार के कारण क्लेश पैदा हो सकता है। उस समय यह धधकती हवस की ज्वाला के पागलपन को शांत करने के लिए अपार धीरज, सहनशीलता और अपने साथीदार के प्रति संवेदनशीलता भरा प्यार हमारे अंतर्मन में होना आवश्यक है। पति पत्नी को यह समझना होगा की ऐसे प्रयोग जिंदगी की राह में एक अनुभव के तौर पर ही करने हैं। जिंदगी तो अपने साथीदार के साथ ही गुजारनी है। जिंदगी में ऐसे प्रयोग एक रोमांचक हादसा ही बन कर रह जाए, जिंदगी की राह ना बदलने की कोशिश करें तो ही बेहतर हैं। कभी कभार उत्तेजना में चोदना या चुदवाना एक आसान बात है पर पति पत्नी बनकर जीवन भर साथ निभाना मुश्किल है।

जैसा की मैंने बताया, मैं माया से एकदम खुली हुई थी। माया मुझे उसकी चुदाई मेरे जेठजी कैसे करते थे उसके बारे में सब कुछ बताती थी। तब तक मुझे नहीं मालुम था की मेरे जेठजी इतने रंगीले मिजाज के होंगे। जब अचानक एक दिन मैंने सोते हुए जेठजी का लण्ड देखा और नींद में ही जेठजी को उसे सहलाते देखा तब मुझे एहसास हुआ की मेरे जेठजी को उन्हें प्यार करने वाली औरत की सख्त जरुरत है। उस समय मेरे मन में भी अजीब सी हलचल हो रही थी। पर मेरे जेठजी का दबदबा ही कुछ ऐसा हमारे दिमाग पर छाया हुआ था की उनके बारे में इधरउधर सोचना हमारे लिए नामुमकिन सा था। पर आखिर में तो मैं भी एक औरत ही थी ना? और किसी भी औरत को अगर किसी मर्द का ऐसा तगड़ा लण्ड देखने को मिले तो उसके मन में हलचल होगी ही, यह स्वाभाविक था। खास तौर से मेरे जैसी औरत के लिए, जिसने चुदाई में विविधता का अनुभव किया हुआ था और चुदाई के बारे में जिसके विचार ज्यादा रूढ़िवादी नहीं थे, उसका मन तो ऐसे वाकये से हिल जाएगा ही। ।

कुछ देर मेरे मन में भी उलटपुलट ख़याल आते रहे पर मैं अपनी चूत में मेरे जेठजी के लण्ड को लेने के बारे में सोच भी नहीं सकती थी। फिर हमारे पास माया थी जो मेरे जेठजी की समस्या हल कर सकती थी। माया को भी एक मर्द की जरुरत थी। जेठजी के साथ माया की सेटिंग कराना तर्कसुसंगत था। जेठजी का मन जानना जरुरी था इस कारण मैंने कुछ जोखिम मोल कर माया को किसी बहाने मेरे जेठजी के पास करीब आधी रात को अच्छी तरह समझा बुझा कर भेजा। जैसा की पाठक जानते हैं, माया जेठजी के पास गयी और फिर वही हुआ जो मैं चाहती थी और जो होना चाहिए था। दोनों की वासना मर्यादाओं के बंधन तोड़कर बाहर आ गयी और पहली बार माया की मेरे जेठजी से तगड़ी चुदाई हुई और फिर उनकी शादी भी हो गयी। पहली रात की माया की तगड़ी चुदाई से ही मैं जान गयी थी (जब माया पूरी चुदाई के दरम्यान चीखती, चिल्लाती, कराहती और सिकारियाँ भरती रही थी) की मेरे जेठजी से चुदवाना किसी भी औरत के लिए एक ख़ास अनुभव होगा। अब मेरे जेठजी से चुदवाने की मेरी बारी आने वाली थी यह सोच कर ही मैं मन ही मन डर (या रोमांच?) के मारे काँप रही थी।

माया और मैं करीब करीब एक ही कद और काठी के थे। पर फिर भी मन में डर तो था ही की मुझे चोदते हुए मेरे जेठजी को कहीं शक ना हो जाए की मैं माया नहीं कोई दूसरी औरत थी। माया कई बार कह चुकी थी की मेरे जेठजी माया को कम ही बक्षते थे। जेठजी माया को करीब करीब हर रोज ही चोदते थे। माया भी तो बड़े उत्साह से चुदवाती थी। यह तो साफ़ था की इतने समय में मेरे जेठजी माया के बदन के हरेक मोड़, हरेक उभार, हरेक ढलाव, हरेक छिद्र और हरेक कोने से वाकिफ हो चुके होंगे। भले ही दो औरतें बदन के नापदण्ड के हिसाब से एक दूसरे से मिलती जुलती हों, पर हर औरत के बदन में और चुदाई के समय की हरकतों में छोटामोटा फर्क तो होता ही है। हालांकि माया ने मेरे साथ रह कर मुझे काफी टिप्स दिए थे की मुझे कैसे अपने आप को माया की तरह दिखाना है, पर फिर भी कहीं ना कहीं कुछ ना कुछ गड़बड़ हो सकती थी। इस बात को ले कर मन में डर तो था ही।

माया की टिप्स सुन कर तो मैं और डर गयी थी। तब मुझे माया ने ढाढ़स देते हुए कहा था, "दीदी, देखो अगर आपके जेठजी को कोई फर्क महसूस भी हुआ तो वह यही समझेंगे की मैं ही दिखावा कर रही होउंगी, ताकि उनको दूसरी औरत का एहसास हो। हाँ, एक बात हो सकती है। अगर आप को मेरे सामने नंगी होने में और मेरे पति और आपके जेठजी से चुदने में एतराज ना हो तो अगर आप कहो तो मैं आप के पास ही रहूंगी ताकि वक्त आने पर अगर कुछ बोलना पड़ा तो मैं बोल दूंगी।"

माया की बात सुन कर मेरा माथा भी ठनक गया था। अब यही बाकी रह गया था! खैर, जब जेठजी से चुदवाना ही था और वह भी माया के कहने से तो फिर वैसे भी क्या शर्म और क्या लाज? माया ने भी तो मेरे कहने से मेरे जेठजी से चुदवाया था। माया भी जेठजी की चुदाई के बारे में मुझे आकर कुछ भी छिपाए बिना सब कुछ साफ़ साफ़ बता देती थी। मैं इतने महीनों में माया से जेठजी कैसे चोदते थे, क्या क्या पोजीशन में चोदते थे, चोदते समय वह क्या क्या बोलते थे और माया क्या क्या बातें करती थी यह सारी बातें माया मुझे विस्तार पूर्वक बताती रहती थी।

कई बार ऐसा होता था की माया नहा रही होती थी और अगर मैं उसके कमरे में पहुँच गयी तो बेतकल्लुफ, माया मेरे साथ बातें करते हुए तौलिये से अपना बदन पोंछते हुए मेरे सामने ही कपडे बदलती थी और ऐसा करते हुए कई बार मुझे उसकी जाँघें, चूत, गाँड़, चूँचियाँ, निप्पलेँ सब कुछ दिख जाता था। वह उन्हें छिपा ने की कोशिश भी नहीं करती थी। एक दो बार तो तौलिया गिर जाने से वह मेरे सामने बिलकुल नंगी भी हो गयी थी। बादमें जैसे कुछ हुआ ना हो वैसे माया तौलिया उठा कर लपेट लेती थी। एक बार तो उसने बगैर तौलिया लपेटे ही नंगी रहते हुए ही अलमारी में से कपडे निकाल कर पहन लिए थे। मैं जब उसे भौंचक्की सी देखने लगी तो मुझे देख कर वह बोली, "क्या हुआ दीदी? हम दोनों औरतें ही तो हैं? इस में क्या छिपाना?"

माया की बात सुनकर मैं तय नहीं कर पा रही थी की क्या मुझे माया के देखते हुए मेरे जेठजी से चुदवाना चाहिए या नहीं? सबसे पहली बार माया ने जब मुझे मेरे जेठजी से हुई तगड़ी चुदाई के बारे में सविस्तार बताया था तब से मेरे मन में पता नहीं क्या अजीबोगरीब भाव पैदा होने लगे थे। उस वक्त तो मेरी चूत इस कदर गीली हो गयी की शायद मेरी पैंटी भी भीग गयी थी। उसके साथ साथ ना चाहते हुए भी कहीं ना कहीं मेरे मन की गहराइयों में माया के लिए इर्षा के भाव हो रहे थे। काश माया की जगह मैं मेरे जेठजी से चुदवा ने के लिए जा पाती। मेरे जहन में यह इच्छा एक ज्वाला की तरह भड़क उठी थी। पर जेठजी का दबदबा और मर्यादा के कारण इसे अमल में लाना तो दूर, इसके बारे में सोचना भी मेरे लिए लक्ष्मण रेखा को लांघने के समान अयोग्य था।

वही मेरे मन की प्रबल इच्छा छद्म रूप में ही सही पर अब पूरी होने जा रही थी। मैं मेरे जेठजी से चुदने वाली थी। मैंने माया को कहा, "जब सिर ही ओखल में रख ही दिया है तो अब मुसल के क्या डरना?"

मैंने अपने मन से सारे डर और झिझक को निकाल फेंका। मैं जेठजी से वैसे ही चुदवाने के लिए मानसिक रूप से तैयार हो गयी जैसे मैं अपने पति से या किसी और मनपसंद मर्द से चुदवाती। मैंने जेठजी को मेरे जेठजी के रूप में नहीं पर मेरे आशिक़ या प्रेमी के रूप में देखने का मन बना लिया। अगर मैं मेरे जेठजी से चुदवाते समय उन्हें मेरे जेठजी के रूप में देखूंगी तो मेरे मनमें उनके लिए जो श्रद्धा रूपी आदर है उसके कारण मुझमें एक अजनबी सा भौतिक अंतर, हिचकिचाहट और झिझक रहेगी। वह भाव मुझे उनसे प्यार से चुदवाने नहीं देगा।

मैं यहां यह स्वीकार करती हूँ की मेरे मन में हमेशा मेरे जेठजी के लिए जो गाढ़ आदर और सम्मान के कारण प्यार का भाव था उसके चलते मैंने कई बार सपनों में जेठजी से बेतहाशा दबंगाई से खूब चुदवाया था। हरेक स्त्री के मन में जो उसके अति प्रिय पुरुष रिश्तेदार, चाहे वह भाई, पिता, जेठ, देवर, ससुर, चाचा, ताऊ या कोई और हो; कहीं ना कहीं, कभी ना कभी उनसे चुदवाकर उनको बेतहाशा प्यार कर उनको सुख देने का भाव तो आता ही है। शायद इसी भाव पर लगाम देने के लिए समाज ने कुछ नियम बनाये और उनके द्वारा बंधन पैदा किये, जिनके कारण इस भावना पर नियंत्रण किया जा सके।

जब मुझे मेरे जेठजी से चुदवाने का अवसर मिला तो मेरा कर्तव्य बनता था की मैं उनको वह उच्छृंखल, उन्मत्त, उन्मादपूर्ण आनंद दे पाउं जो मुझे उनको एक प्यारी अभिसारिका के रूप में देना चाहिए। अगर भावान्तर बिच में आ गया तो फिर ना ही मैं स्वयं उनसे वह चुदाई का आनंद ले पाउंगी जिसके लिए मैंने इतना बलिदान किया था और ना ही मैं उनको वह आनंद दे पाउंगी जो मुझे उनको देना चाहिए। यह सच था की मैं उनसे माँ बनने के लिए चुदवा रही थी। पर यह भी सच था की चुदवाते समय अगर स्त्री उन्छृंखल आनद से चुदवाती है तो उसका बच्चा भी आनंदी, शकुशल, कुशाग्र, समझदार और संतोषी पैदा होता है। अगर चुदवाते समय स्त्री के मन में चिंता, द्वेष, ग्लानि या दोष का भाव हो तो उसका नकारात्मक असर बच्चे पर भी पड़ता है।

मैंने माया को कहा, "माया, मैं सच कहती हूँ, जब तुमने मुझे मेरे जेठजी से चुदवाने का प्रस्ताव किया था तब तो मैं दिखावा कर रही थी की मैं ऐसा सोच भी नहीं सकती थी। पर वास्तव में तो मेरे अंतर्मन से बहुत खुश हुई थी। मेरी समस्या यह थी की मैं मेरे जेठजी के सामने उनकी बहु बन कर कैसे चुदवा सकती हूँ? आज तुमने मुझे यह मौक़ा दिया है की मैं उनसे चुदवा भी लुंगी और हमारा भेद भेद ही रहेगा। तो अब हमें इस प्रयास को सफल बनाना है। माया प्लीज यह देखना की मेरी इज्जत बनी रहे और यह भेद ना खुले। मैं तुम्हारे भरोसे यह रिस्क ले रही हूँ। मुझे पुरे स्वच्छंद तरीके से मेरे जेठजी से चुदवाना है। मैं चाहती हूँ की मैं भी तुम्हारे पति और मेरे जेठजी को वैसा आनंद दे सकूँ जैसा की तुम देती हो। इसके लिए बेहतर है तुम भी पास में ही रहो और जरुरत पड़ने पर इशारों से मुझे मार्गदार्शन करती रहो। मुझे तुम्हारे पति और मेरे जेठजी से तुम्हारे सामने ही चुदवाना होगा। मैं तैयार हूँ।"

मेरी बात सुन कर माया मुझसे लिपट गयी और बोली, "आपने मेरे सर पर बड़ी ही जिम्मेवारी दी है। मैं इसे दिलोजान से पूरी करने की कोशिश करुँगी। आपने पहले मुझे नौकरानी से जेठानी बनाया और अब जेठानी से आगे बढ़ कर सौतन बना दिया। सौतन शब्द बोलने में शायद बुरा लगता होगा, पर हम दोनों के परिपेक्ष में मुझे तो बड़ा मीठा लगता है। मुझे लगता है जैसे हम दोनों अलग नहीं एक ही हैं। आपने मुझे जब इतना ज्यादा सम्मान दिया तो आपका सम्मान रखना मेरा फर्ज बनता है।"

माया की बात सुन कर मैं उस माहौल में भी हंस पड़ी। कितनी प्यारी, सरल, परिपक्व और भोली थी मेरी माया! मैंने माया को बाँहों में भर लिया। कुछ देर तक उस संवदनशील माहौल में लिपट रहने के बाद, जब हम अलग हुए तो माया कुछ गंभीर सी हो गयी और उसने मुझे अपने पास बिठा कर उस शाम का प्रोग्राम समझाया। उसके मुताबिक़, मुझे तैयार हो कर रात को माया के बैडरूम के बाहर रहना था और उसके बाद जब माया अपने सेल फ़ोन से मुझे मिस्ड कॉल करेगी तब मुझे उनके कमरे में दाखिल होना था। मुझे मेरे फ़ोन को वाइब्रेशन मोड़ पर रखना था जिससे घंटी ना बजे पर मुझे पता लग जाए की माया मुझे बुला रही थी।

बाहर किवाड़ के पीछे छिपी हुई मैं अंदर हो रहे सारे संवाद सुन पा रही थी। माया मेरे जेठजी को कह रही थी की वह जेठी की आँखों पर पट्टी बाँध कर कुछ बोले बिना ही चुदवायेगी। जैसे कोई बच्चा नए खेल के बारे में उत्सुकता से सुन रहा हो ऐसी जेठजी भी सुन कर बड़े खुश हुए और माया ने जेठजी की आँखों पर पट्टी बांध दी। पट्टी बाँध कर फ़ौरन माया जेठजी से लिपट गयी। अचानक मायाने जेठजी से एक सवाल पूछा, "सुनियेजी, आप हमारे साथ इस खेल में कोई बेईमानी तो नहीं करेंगे न?"

माया की बात सुन कर जेठजी ने कोई जवाब नहीं दिया। शायद वह माया को ही बात पूरा करने का इंतजार कर रहे थे। माया ने कहा, "देखिये जी, आज इस खेल को मैं बहुत गंभीरता से खेल रही हूँ। यह कोई खेल नहीं है। हम हमारे हर खेल को गंभीरता से खेलेंगे तभी तो हम उस खेल का पूरा लुत्फ़ उठा पाएंगे। आप अपनी काली पट्टी अपने आप नहीं हटाएंगे। मंजूर है?"

शायद उस समय मेरे जेठजी माया की तरफ़ बड़े ही आश्चर्य से देख रहे होंगे। वह बोले, "हाँ, बिलकुल, यह पट्टी नहीं खोलूंगा। पर तुम ऐसे क्यों पूछ रही हो? क्या बात है?"

माया ने जवाब में कहा, "आपके लिए यह खेल हो सकता है पर मेरे लिए यह जीवन मरण का और अपनी ममता और एक औरत की इज्जत का सवाल है। जिसे आप चोदेंगे वह मैं नहीं एक दूसरी औरत होगी, जिसको आप छाया नाम से बुलाएंगे। मैं नहीं चाहती की आप यह महसूस करें की आप के साथ मैं हूँ। मैं पूरी कोशिश करुँगी की आपको यह लगे की मैं कोई और हूँ। पर आप मुझे सच्चे मन से वचन दीजिये की आप पट्टी नहीं खोलेंगे। आप को मेरी कसम आपने अगर यह पट्टी खोली तो। मेरा मरा हुआ मुंह देखेंगे आप। खाइये मेरी कसम।"

उन दोनों की चर्चा सुन कर मेरी जान हथेली में आ गयी। उधर मेरे जेठजी कुछ समय के लिए एकदम चुप हो गए। शायद उनकी समझ में यह नहीं आ रहा था की माया इस बात को इतना तूल क्यों दे रही थी? वह उसे क्यों इतनी ज्यादा गंभीर बना रही थी? पर फिर भी मेरे जेठजी का जवाब सुन कर मुझे काफी तसल्ली हुई। जेठजी ने कहा, "माया जब तुम इस खेल को इतनी गंभीरता से ले रही हो तो मैं भी इस बात को हलके में नहीं लूंगा। मैं तुम्हारी कसम खा कर कहता हूँ की यह पट्टी मैं अपने आप नहीं खोलूंगा। जब तुम खोलेगी तभी मैं देखूंगा। बस? अब तो खुश?"

जेठजी का जवाब सुन कर मुझे लगा की माया भी खुश हुई थी। माया ने कहा, "मैं बहुत खुश हूँ। मैं इस खेल को बड़ी ही गंभीरता से ले रही हूँ। यह अनुभव हम सबके लिए ना सिर्फ एक अनूठा, उन्मादपूर्ण और आनंदमय होगा बल्कि वह हमारी जिंदगी का एक बड़ा ही महत्त्व पूर्ण अनुभव होगा। मेरी आपसे करबद्ध प्रार्थना है की आप मुझ पर विश्वास रखें और मेरा कहा मानें।"

माया की बात सुन कर मेरे जेठजी ने शायद माया को अपनी बाँहों में भर लिया और माया को चूमते हुए बोले, "मरी रानी मुझे जो कहेगी मैं उसे कैसे ठुकरा सकता हूँ?"

जेठजी से उसी पोज़िशन में चूमते हुए एक हाथ से अपना सेल फ़ोन निकाल कर माया ने मुझे मिस्ड कॉल किया। मैंने मेरा फ़ोन वाइब्रेशन मोड़ पर रखा था। फ़ोन के आते ही मैंने धीरे से किवाड़ खोला और अंदर झाँका। मुझे देख कर माया ने मुझे एक हाथ से अंदर आ जाने का इशारा किया।

मैं घबराती, झिझकती कुछ क्षोभित सी नयी नवेली दुल्हन सी सजी हुई कमरे में दाखिल हुई। जब मैं जेठजी और माया के बैडरूम में दाखिल हुई तब माया जेठजी की बाँहों में कस कर जकड़ी हुई थी और उनके होठोंसे अपने होंठ चिपका कर उनसे प्रगाढ़ चुम्बन कर रही थी। उसने मुझे देखा तो होँठ पर उंगली कर मुझे एकदम चुप रहने के इशारा कर मुझे अपने पास बुलाया। मैं माया मेरे जेठजो को कैसे चुम्बन कर रही थी वह देखने लगी। जेठजी माया के होंठों को बड़ी ही बेसब्री से चूस रहे थे और माया की जीभ को अपने मुंह में ले कर उसका रसास्वादन कर रहे थे। माया के मुंह में से निकली हुई लार को वह बड़े प्यार से लपालप निगल रहे थे। जेठजी उस समय बनियान और धोती पहने हुए थे।

उन दोनों का प्यार भरा चुम्बन देख कर मेरे मन में अजीब से हिंडोले से तरंग उठ रहे थे। माया को चूमते हुए मेरे जेठजी एक हाथ से माया की गाँड़ सेहला रहे थे। माया पूरी तरह से सजी हुई भारी भरखम साडी में बहुत सुन्दर लग रही थी। माया मेरे आते ही धीरे से जेठजी से अलग हो कर बिना कोई आवाज किये उठ खड़ी हुई और एक तरफ हो गयी। माया जहां बैठी थी ठीक उसी जगह मेरे जेठजी से सट कर मैं बैठ गयी।

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