साथी हाथ बढ़ाना Ch. 04

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अगर जो माया कह रही थी वह बगैर कुछ झंझट से हो सकता होता तो उससे अच्छी तो कोई बात ही नहीं हो सकती थी। कुछ झुंझलाहट और कुछ नाराजगी से माया को मैंने कहा, "माया, यह तो वही बात हो गयी ना? अगर मैं अपने जेठजी से ही चुदवाती हूँ तो फिर जेठजी को तो पता लग ही जाना है की मेरे पति संजयजी बाँझ हैं इसी लिए मैं उनसे चुदवा ने के लिए तैयार हुई हूँ? यही तो हमें नहीं करना है। मुझे जेठजी को यह पता नहीं लगने देना है की मेरे पति बाँझ हैं। उससे तो फिर आई.वी.एफ़. ही बेहतर विकल्प था। उसमें मुझे बड़े भाई साहब के सामने नंगी हो कर चुदवाना तो नहीं पड़ेगा।"

माया मेरी बात सुनकर कुछ देर चुप रही, फिर मेरी और देख कर बोली, "दीदी, आप क्या समझते हो, मैंने इसके बारे में नहीं सोचा? अगर आप आई.वी.ऍफ़. से ही राजी हैं तो फिर मेरे हिसाब से वह सबसे अच्छा विकल्प है। पर आप किसका वीर्य लोगे? और क्या किसी के भी वीर्य से बच्चा पैदा करना वह सही है या फिर अपने ही पति के ज्येष्ठ भाई से बच्चा पैदा करना बेहतर है? जरा सोचिये तो।"

माया की बात में दम था। जेठजी दिखने में मेरे पति संजयजी से काफी मिलतेजुलते थे। जेठजी काफी हैंडसम, अक्लमंद, शशक्त, बलशाली और स्वस्थ थे। जो भी बच्चा उनके वीर्य से होगा जाहिर है वह हमारे परिवार के संस्कारों से सिंचित होगा। वह जेठजी का भी प्यारा होगा। यह सारी बातें अपनी जगह सही थी। पर सवाल यह था की शेर के गले में घंटी बांधे कौन? मतलब जेठजी से कैसे चुदवाया जाए?

मैंने माया का यह प्रश्न फिलहाल टालने के लिए कहा, "चलो ठीक है, देखते हैं। यह होगा, नहीं होगा, कैसे होगा? यह सब बादमें देखेंगे। पहले मैं संजयजी से तो बात करके देखूं। मेरे ख्याल से तो वह इसके लिए कतई भी सहमत नहीं होंगे। उनके दिल में जेठजी के लिए कितना सम्मान है वह मैं जानती हूँ। वह ऐसा कुछ करके आगे चलके इस बात के कारण हमारे संबंधों में दरार हो ऐसा कभी पसंद नहीं करेंगे। अब दिक्कत यह भी है की क्या मेरे पति इसके लिए तैयार होंगे? यह भी एक समस्या है। उनसे वह बात कैसे करूँ यह मेरी समझ में नहीं आ रहा है।"

माया ने अपना सर हिलाते हुए मुझसे सहमति जताते हुए कहा, "दीदी आप की परेशानी मैं समझ सकती हूँ। पर बात तो करनी ही पड़ेगी। यह एक सबसे बढ़िया और मेरे हिसाब से तो सिर्फ एक ही रास्ता है जो आप को सही बच्चे की माँ बना सकता है। जहां तक आपकी जेठजी को पता लगने की समस्या है उसका इलाज मैंने सोचा है। पर सबसे पहले आप देवरजी से बात कीजिये, फिर उस समस्या को भी सुलझायेंगे।"

मैंने कुछ भी और रास्ता ना सूझने के कारण माया की बात से सहमत होते हुए कहा, "मैं तुम पर भरोसा करती हूँ। मैं तुम्हारे देवरजी से बात करके देखती हूँ। पता नहीं वह मानेंगे या नहीं।"

माया का सुझाव अमल में लाने की कोशिश करने के अलावा आखिर मैं कर भी क्या सकती थी? ज्यादा सोचने का समय भी तो नहीं था। हर एक दिन हमारे लिए बड़े ही मानसिक दबाव का दिन होता जा रहा था। हमारी हालत ऐसी हो गयी थी की मैं और संजयजी हमारे माता पिता के सामने जाने से भी डरते थे की अगर उन्होंने हमें देख लिया तो वह हमें कहीं बच्चे के बारे में पूछ ना बैठे।

उस रात को जब हम डिनर कर हमारे बैडरूम में सोने गए तब बत्ती बुझाने से पहले मैंने संजयजी से बात छेड़ी। मैंने माया से बच्चे को ले कर हमारी परेशानी के बारे में दो दिन पहले जो बात हुई थी उसके बारे में उन्हें बताया। मेरी बात सुन कर मेरे पति संजयजी ने कोई प्रतिक्रया नहीं दी। वह मुझे अच्छी तरह से जानते थे। वह जानते थे की माया को मैंने अपनी परेशानी के बारे में बता दिया था वह कोई बड़ी बात नहीं थी। माया के साथ मेरा कितना घनिष्ठ सम्बन्ध था वह भलीभाँति जानते थे।

वह चुपचाप रह कर मेरे सामने देखने लगे। संजयजी समझ गए थे की मैं उनसे कुछ जरुरी बात करने जा रही थी। मैं उनसे जो ख़ास बात कहने वाली थी वह उसका इंतजार कर रहे थे। मैं असमंजस के मारे कुछ बोल नहीं पा रही थी। मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी की मैं कैसे उनको कहूं जो माया ने मुझे कहा था। मेरे पति भी धीरज का समंदर हैं। वह चुपचाप मेरे बोलने का इंतजार कर रहे थे। मैंने झिझकते हुए लड़खड़ाती जुबान मैं कहा, "माया।.... यह कह रही थी की........ दरअसल माया ने हमारी समस्या जो बच्चे....... के बारे में कुछ......... हल...... सोचा हुआ है, वह आप........ को बताने......... के लिए माया ने........ मुझे कहा है। अब मेरी समझ में यह नहीं आ रहा की जो उसने कहा है वह मैं आपसे वह कैसे कहूं?" कह कर मैं चुप हो गयी।

आगे संजयजी से बात करने की मेरी हिम्मत नहीं थी। संजयजी ने मरे सामने देखा। मेरे पति ने मुझे अपनी बाँहों में लिया और मुझे चूमते हुए कुछ मुस्कुराते हुए बोले, "अंजू, तू मुझे बहुत प्यारी है। मैं तुझे बहुत प्यार करता हूँ।" फिर मेरी नाइटी में अपना हाथ डाल कर मेरे बूब्स को दबा कर सहलाते हुए उन्होंने मुझे पूछा, "मैं अपने अनुमान से बताऊँ की माया ने तुम्हें क्या सुझाव दिया होगा?"

मैंने संजयजी से कहा, "आपको कैसे पता? खैर, बताइये, क्या सुझाव दिया होगा माया ने मुझे?"

मेरी बात सुन कर संजयजी ने मुझे उठा कर अपनी गोद में बिठा दिया। मैं मेरे पति के सख्त लण्ड को मेरी गाँड़ को टोंचते हुए महसूस करने लगी। संजयजी ने मेरी नाइटी के ऊपर के बटनों को खोल कर मुझे ऊपर से नंगा कर दिया। वह कुछ उन्माद के अतिरेक में मेरे स्तनोँ की निप्पलोँ को मुंहमें ले कर चूसने लगे। मेरी निप्पलेँ भी मेरे पति के इस तरह उत्तेजित हो कर मुझे कामातुर कराने के कारण फूल गयीं थीं। मेरे स्तनोँ के शिखर पर मेरी निप्पलोँ को बिच में रख कर गोलाई में फैली हुई मेरे स्तनों की गोल तश्तरी सी मेरी एरोलाओं के सतह पर मारे उत्तेजना और रोमांच के जगह जगह फुन्सियाँ उठ खड़ी हो गयीं थीं। मैं मेरे पति के इस कदर अचानक इतने उत्साहित हो जाने की वजह समझ नहीं पायी।

पर उस समय मैं अपने पति से कामक्रीड़ा करने से भी कहीं ज्यादा यह सुनने के लिए आतुर थी की मेरे पति क्या समझ गए थे। मैं उनकी और बड़ी उत्सुकता से देखते हुए चुप रह कर उनके जवाब का इंतजार करने लगी।

कुछ भी समय ना गँवाते हुए. मेरे स्तनोँ को बेरहमी से मसलते हुए मेरे पति ने मुझे कहा, "मैं माया से यही उम्मीद कर रहा था। आज मैं समझ रहा हूँ की माया के हमारे जीवन में आने से हमारा जीवन कितना सुखमय और शांतिप्रद हो गया है। एक समझदार औरत के घर में शामिल होने से घर कितना प्रफुल्लित हो सकता है, माया उसकी मिसाल है। जो माया ने सोचा है वह मैं भी सोच रहा था पर मैं उसे अन्जामि जामा पहना नहीं सकता था जब तक की तुम या माया और ख़ास कर माया उसके लिए राजी हो। यहां तो यह सुझाव स्वयं माया ने ही दिया है। मैं उस सुझाव के लिए माया की जितनी प्रशष्ति करूँ कम है।"

मैं मेरे पति के इस कदर गोल गोल बात करने से चिढ उठी। मैंने अपनी आवाज में अपनी झुंझलाहट को कुछ हद तक कम करने की कोशिश करते हुए कहा, "वह सब तो ठीक है पर आपने यह तो बताया नहीं की आपके हिसाब से माया ने क्या सुझाव दिया होगा? यह तो बताइये?"

मेरी निप्पलोँ को चूमते, चूसते और उत्तेजित हो कर अचानक ही अपने दांतों में चबाते हुए मेरे पति ने कहा, "अरे पगली, मैंने इतने तो तुझे क्लू दे दिए, अब भी नहीं समझी? चल ठीक है, जो मैंने अंदाजा लगाया है वह मैं तुझे बताता हूँ।" इसके बाद संजयजी ने जो मुझे बताया था लगभग वह सारा का सारा करीब करीब उसी क्रम में मुझे कह सुनाया, जो माया ने मुझे कहा था। मेरे पति की बात सुन कर मैं चौंक गयी। क्या माया ने मुझ से पहले मेरे पति से बात कर ली थी? उन्हें कैसे पता की माया से मेरी क्या बात हुई थी? मैंने तय किया की दूसरे दिन मैं माया को अच्छे से लताडुंगी। अगर संजयजी को ही बताना था तो फिर मुझसे बात क्यों की और मुझे क्यों कहा की मैं संजयजी से बात कर लूँ? मैं भी फ़ालतू में इतनी ज्यादा परेशान हो रही थी की मैं मेरे पति से इतनी ज्यादा नाजुक बात कैसे करूँ? पर यहां तो माया ने पहले से ही सारा सस्पेंस ख़तम कर दिया था।

संजयजी ने मेरे सर को अपने हाथों में पकड़ा और मेरी आँखों में आँखें डाल कर बोले, "तुम माया से कुछ भी मत कहना। माया से मेरी इस बारे में कोई भी बात नहीं हुई है। यह सिर्फ और सिर्फ मेरा अनुमान था। अभी तुमने अपनी बातों से कन्फर्म किया की मेरा सोचना सही था। कल सुबह तुम माया से कहना की मैं उस के सुझाव से पूरी तरह सहमत हूँ। मुझे उसमें कोई आपत्ति नहीं है। अब आगे उसे जो कार्रवाई करनी है करे।" मेरे पति की बात सुन कर मुझे चक्कर आने लगे। इतनी गंभीर बात जो मैं उनको कहने से इतना डर रही थी, उन्होंने मेरे कहे बगैर ही उसे भाँप लिया और उसे इतना सहज रूप में भी ले लिया और उसका जवाब भी दे दिया?

जब मेरे पति ने भी इस बात की स्वीकृति देदी तब मुझे आसमान में सितारे नजर आने लगे। अगर माया ने जो चुनौती उठाई थी अगर वह पूरी भी कर पाती है तो भी मेरी तो शामत आनी ही थी। माया उसे कैसे पूरी करेगी यह देखना था।

मैंने दूसरे दिन सुबह जब माया को यह बताया की मेरे पति संजयजी ने उसके सुझाव को पूरी तरह ना सिर्फ मंजूरी दे दी थी बल्कि उन्होंने माया की सूझबूझ की उसके कारण भुरभुरी प्रशंशा भी की थी तो माया का चेहरा खिल उठा। माया ने फ़ौरन मुझे गले लगाया और कहा, "दीदी, मैं कह नहीं सकती की आप ने यह सुबह समाचार दे कर मुझे कितना प्रसन्न किया है। आप सब ने मेरे जीवन को इतना सफल बनाया था की मैं उस एहसान को कैसे कुछ कम कर पाऊं यह मेरे लिए एक बड़ी समस्या थी। अब आपकी गोद में जब बच्चा होगा तो उसे देख कर मुझे लगेगा की मेरा भी इसमें कुछ योगदान था।"

मैंने माया के बदन पर प्यार से हाथ फिराते हुए कहा, "अरे पगली, वह सब तो ठीक है, पर अब तू यह सब करेगी कैसे? जेठजी को पता ना लगे और फिर भी वह मुझे चोदे, यह दोनों बातें एक साथ तो नहीं हो सकती ना?"

मेरी बात सुन कर माया का चेहरा खिल उठा। वह मेरी और मुस्कुराते हुए देख कर मुझ से अलग होते हुए बोली, "दीदी, अब आपने मुझे हरी झंडी दे ही दी है तो अब यह मेरी जिम्मेवारी है की यह मैं कैसे करूँ। अब आप इसकी चिंता मुझ पर छोड़ दीजिये।"

तब माया ने मुझे कहा की वह उसका ऐसा रास्ता निकालेगी की साँप भी मरे और लाठी भी ना टूटे। माया ने मुझे भरोसा दिलाया की वह ऐसा तरिका निकालेगी की जेठजी को पता ही नहीं चलेगा की संजयजी बाँझ हैं। मेरी समझ में यह नहीं आया की माया ऐसा कैसे कर पाएगी। पर जब मेरे पति ही इस बात से राजी हो गए तो फिर मैं क्या बोल सकती थी? मेरे दिमाग में यह घुस नहीं रहा था की माया यह सब कैसे कर पाएगी।

मेरी हैरानगी इस बात को लेकर थी की एक पत्नी किसी और औरत को, और ख़ास कर अपनी ही देवरानी को अपने पति से चुदवा कर और उसे अपनी (एक तरह से) सौतन बना कर ऐसे खुश कैसे हो सकती है? यह मेरी समझ से बाहर था। यह बात तो जाहिर थी की अगर मैं जेठजी से एक बार चुदने के लिए राजी हो गयी और अगर मैंने उनसे एक बार चुदवा लिया तो कहीं ऐसा ना हो की मुझे जेठजी से बार बार चुदवाने का मन करे। फिर तो बड़ी समस्या हो जायेगी। कहीं मैं सारी मर्यादाओं को तोड़ कर उनके पास बेशर्म बनकर चुदवाने के लिए चली ना जाऊं। फिर तो सारी गोपनीयता भी ख़त्म हो जायेगी। मुझे कोई दुबारा चुदवाने से रोक नहीं पायेगा। उसके बाद तो सारा भांडा ही फुट जाएगा। जेठजी को भी अगर मुझे चोदने का मन हुआ तो कोई उन्हें उस हाल में मुझे दुबारा चोदने से मना नहीं कर पायेगा। उस हाल में मैं तो मेरे जेठजी की दूसरी बीबी ही बन जाउंगी। पुरे घर में हुड़दंग मच जाएगा। माया को यह बात झेलनी पड़ेगी और अपने पति को मुझ से शेयर करना पड़ेगा। खैर यह माया को सोचने का विषय था, पर यह सब सोच कर मेरा दिमाग खराब हो रहा था।

मैंने माया को पूछा, "माया, क्या तुम्हें पूरा यकीन है की तुम यह सब करना चाहती हो? देखो, मैं कोई सुपर इंसान नहीं हूँ। मानलो की तुम्हारे पति और मेरे जेठजीसे चुदवाने के बाद अगर मुझे उनसे बार बार चुदवाने का मन करेगा और अगर मैं उनसे चुदवाने के लिए इतनी बेबस और बेशर्म हो गयी तो मुझे भी आप लोग उनसे चुदवाने से रोक नहीं पाओगे। क्यों की एक बार अगर तीर कमान से निकल गया तो फिर तो निकल ही गया, वह वापस कमान में नहीं जा सकता। एक बार अगर लाज शर्म की मर्यादा टूट गयी तो फिर दूसरी बार और तीसरी बार भी टूट सकती है। फिर तो सारा भांडा ही फुट जाएगा अगर ऐसा हुआ तो मैं तो जेठजी की दूसरी बीबी और तुम्हारी सौतन बन जाउंगी। फिर तो मेरे कारण ख़ास तौर से तुम पर तो बड़ा ही जुल्म हो जाएगा।"

माया ने जो मेरे प्रश्न जवाब दिया उस जवाब सुन कर मैं हैरान रह गयी। माया ने कहा, "दीदी तुम नहीं जानती की मैं तुमसे कितना प्यार करती हूँ। देखिये, तुमने मुझे अनाथ से सनाथ बनाया, तुमने मुझे अपनी नौकरानी से जेठानी बनाया। तुमने मुझे विधवा से सधवा बनाया। अब मेरी बारी है तो मैं तुम्हें एक बच्चे लिए तड़पता देखने के बजाये माँ बनते हुए देखूं। क्या यह मेरा सौभाग्य नहीं है? दीदी, अगर आपने मेरे पति से चुदवाया तो आपके साथ तो मेरे सम्बन्ध और भी घनिष्ठ हो जाएंगे। आप मेरी दीदी से मेरी देवरानी तो बन ही गयी हो, अब मेरी देवरानी से मेरी सौतन भी बन जाओगी। इसे मेरा दुर्भाग्य मत समझो। यह तो मेरा सौभाग्य होगा। अगर सौतन बनी तो फिर तो आप मेरी सगी बहन बन जाओगी। हमारे बिच में कुछ भी गोपनीय नहीं रहेगा।"

मैं माया को देखती ही रही। माया की आँखों में एक दृढ निश्चय और मेरे प्रति ममता का भाव साफ़ झलक रहा था। माया ने मेरे और करीब आ कर मेरे कानों में फुसफुसाते हुए कहा, " दीदी सच बताऊँ? मैं तो इंतजार कर रही हूँ की काश यह सब गोपनीयता ना हो और एक रात ऐसी आये जब मेरे पति और आपके जेठजी से चुदवाने के लिए मैं ही आपको हमारे बेडरूम में ले जाउं और आपके कपडे उतार कर आपको उनके सामने नंगी कर उनका लण्ड अपने हाथ में ले कर आपकी चूत पर रख कर मेरे पति से आपको चोदने के लिए कहूँ। वह दिन मेरे लिए कितना सौभाग्य का दिन होगा? यह सोच कर ही मेरा अंग अंग रोमांच से काँप उठता है। अगर हो सके तो मैं आपको मेरे पति और आपके जेठजी से एक बार नहीं बार बार चुदवाकर आपको भी वही उन्माद भरा आनंद दिलवाना चाहती हूँ जिसे मैं आपकी बदौलत एन्जॉय कर रही हूँ। मैं आप दोनों की जोड़ी देख कर बड़ी ही खुश हो जाउंगी। मेरे पति के चोदने से आप अगर खुश होंगी, और वह भी खुश होंगे तो मेरा जीवन सफल हो जाएगा।"

माया की यह बड़ी बात सुन कर मेरा मन किया की मैं माया के पाँव छू लूँ। पर मैंने खड़े हो कर माया को अपनी बाँहों में भर लिया और कहा, "माया तुम मेरी बहन ही नहीं, मेरी जान हो। यह सब बात कह कर तुमने मुझे अपनी ग़ुलाम बना लिया है। मुझे नहीं पता की मैं क्या कहूं और कैसे मेरी कृतज्ञता जाहिर करूँ?"

माया ने मेरी बात को अनसुनी करते हुए कहा की अब मैं निश्चिन्त हो कर अपना काम करूँ। आगे जो करना है माया करेगी। माया ने कहा की उसको इस काम को अंजाम देने के लिए कुछ तैयारी करनी पड़ेगी। कुछ दिन चाहिए। हो सकता है एकाध हफ्ता लग जाए। मुझे समझ नहीं आया की माया ऐसा क्या जादू करेगी की मैं जेठजी से चुद भी जाऊं और जेठजी को पता भी ना लगे। पर शायद कहीं ना कहीं मुझे माया की सरलता का जादू और उसके स्त्री चरित्र पर विश्वास था जिसके कारण मुझे लगा की हो सकता है माया यह नामुमकिन को मुमकिन कर पाए।

माया में एक खूबी थी जो हर पति या प्रेमी उसकी पत्नी या प्रेमिका में चाहता है की हो। हमारी सभ्यता में उसे रम्भागुण कहते है। आदर्श पत्नी के लिए संस्कृत में एक श्लोक है जो मैं निचे प्रस्तुत कर रहा हूँ।

कार्येषु दासी, करणेषु मंत्री, भोज्येषु माता, शयनेषु रम्भा ।

धर्मानुकूला क्षमया धरित्री, भार्या च षाड्गुण्यवतीह दुर्लभा ॥

गृहकार्य में दासी, कार्य प्रसंग में मंत्री, भोजन कराते वक्त माता, रति प्रसंग में रंभा, धर्म में सानुकुल, और क्षमा करने में धरित्री माने धरती सामान हो। इन छे गुणों से युक्त पत्नी मिलना दुर्लभ है ।

इस श्लोक में एक शब्द है "शयने शु रम्भा।" कहते हैं की देवलोक में रम्भा एक अप्सरा है। उसे हर कोई देवता चाहता है क्यूंकि वह जब किसी के साथ भी कामक्रीड़ा करती है तो वह अपनी अदाओं और कामुक कारनामों से अपने सहशैया पुरुष का मन जित लेती है। माया में भी यह खूबी थी। माया मुझे बताती रहती थी की मेरे जेठजी को चुदाई में आनंद का अतिरेक मिले इस लिए वह नयी नयी अदाएं सीखती थी और नए नए तरीके ढूंढती रहती थी।

हमारे मोहल्ले में कुछ महिलायें थीं जिनके साथ मैं और माया कभी मंदिर तो कभी बाज़ार जाया करती थी, कभी त्यौहार भी करती थी। उनमें से एक दो से माया कुछ ज्यादा करीब थीं। कई बार लडकियां भी अपनी ख़ास सहलियों से अपने निजी अनुभव और मन की बात शेयर करतीं हैं। माया उन सहेलियों से बातें करती रहती थी की एक मर्द की अपनी प्रेमिका से या पत्नी से चुदाई की रति क्रीड़ा में क्या अपेक्षाएं होतीं हैं। कैसे एक औरत ऐसा कुछ करे जिससे उसके प्रेमी को सबसे अधिक सुख मिले। माया मुझसे भी कई बार यह सब पूछती रहती थी।

मैं माया को कभी नेट में देख कर तो कभी मेरे अपने अनुभव से उसका मार्गदर्शन करती रहती थी। मुझे माया की वह बात बड़ी पसंद थी। अगर पति और पत्नी एक दूसरे को ख़ुशी दें और चुदाई में अलग अलग तरीके से उत्तेजना और उत्साह ला पाएं तो दाम्पत्य जीवन काफी रसमय और टिकाऊ हो सकता है। जब मेरे जेठजी माया की कामुक अदाओं से उत्तेजित हो कर माया की ऐसी तगड़ी चुदाई करते जैसे वह उनकी सुहाग रात हो तभी माया ख़ुशी से झूम उठती और अगली सुबह मौक़ा मिलते ही मेरे पास आकर मुझे पिछली रात की कहानी बता देती। इस मायने में माया मुझे जैसे मेरी छोटी बहन या बेटी हो ऐसा कई बार महसूस होता।

चुदाई के पहले, चुदाई दरम्यान और जब भी एकांत और सही मौक़ा मिले तब कपल्स का एक दूसरे से चुदाई के बारे में अपनी कल्पनाएं, तृष्णाएं और तरंगी इच्छाएं सांझा करना भी कामशास्त्र का एक जरुरी अंग है। अपने पति या पत्नी की ह्रदय के कोने में दबी छिपी हुई कामुक इच्छाओं को जागरूक कर उनका इस्तेमाल कर उनसे अपने दाम्पत्य जीवन को रसमय बनाना एक कला है। शादीशुदा कपल्स शादी के कुछ सालों बाद अपने पार्टनर से ऐसी और दूसरी रसिक बातें करने में या तो झिझकते हैं या फिर उसमें कोई दिलचश्पी नहीं लेते और दाम्पत्य जीवन धीरे धीरे नीरस और उबाऊ और बोरिंग हो जाता है। चुदाई भी एक आवश्यक आपदा समान बोरिंग हो जाती है।

कपल्स को दाम्पत्य जीवन की रक्षा करने के लिए एक दूसरे के प्रति संवेदनशील रहना और चुदाई की क्रिया को रसमय बनाना आवश्यक है। माया इस बात को भलीभाँति समझती थी।

वैसे तो मेरे जेठजी किसी पार्टी में जाते नहीं थे। पर माया को एक बार मेरे जेठजी एक पार्टी में ले गए। वास्तव में तो उस पार्टी में उनको मजबूरी में जाना पड़ा। वह पार्टी जेठजी के किसी पुराने दोस्त ने जेठजी के ही सम्मान में दी थी। जब माया जेठजी के उनके दोस्त और उसकी पत्नी से मिली तो उनकी बात सुन कर वह आश्चर्यचकित सी रह गयी। पैसों की किल्लत होते हुए भी मेरे जेठजी ने उस दोस्त को उसके बुरे समय में ऐसी मदद की थी की अगर उस समय जेठजी ने वह मदद ना की होती तो वह दोस्त अपनी पढ़ाई नहीं कर पाता। उनका दोस्त आगे की पढ़ाई करने के लिए विदेश स्कालरशिप के सहारे चला गया था। वह पढ़ कर विदेश में ह्रदय का एक नामी सर्जन बन चुका था और बहुत सारे पैसे कमा रहा था। जेठजी तो उस बात को भूल गए थे, पर जेठजी का दोस्त जेठजी का वह अहसान नहीं भुला था। जब वह विदेश से वापस आया तो उसने जेठजी के सम्मान में एक पार्टी रखी और मेरे जेठजी और माया को ख़ास न्यौता दिया।

जेठजी का दोस्त काफी रंगीले मिजाज़ का था। उस पार्टी में दोस्त ने कुछ और दोस्तों को बुलाया और कुछ बार डांसरों को बुला कर डिस्को डांस का भी प्रोग्राम रखा था। पार्टी में कुछ लडकियां कैबरे डांस कर रहीं थीं। जेठजी की इजाजत लेकर जेठजी के दोस्त ने माया को उसके साथ डांस करने के लिए आमंत्रित किया। जेठजी के बार बार आग्रह करने पर मज़बूरी में शर्माती हिचकिचाती माया डांस करने के लिए तैयार हुई। जेठजी के दोस्त ने माया की कमर में हाथ डालकर माया को डांस के स्टेप्स सिखाये और कुछ देर माया के साथ डांस किया।

माया डरी हुई झिझकती बार बार जेठजी की और देखती रहती थी की कहीं जेठजी को बुरा ना लग जाये। पर बुरा लगना तो दूर, जेठजी तालियां बजा कर माया की हौसला अफजाई करते रहे। मेरे जेठजी को भी उस दोस्त की पत्नी ने अपनी कमर के इर्दगिर्द हाथ डलवा कर अपना हाथ जेठजी की कमर में डालकर डांस करना सिखाया। माया ने पहली बार अपने पति को किसी औरत के साथ डान्स करते हुए देखा था। शायद जेठजी पहली बार ही किसी औरत के साथ नाच रहे थे।

माया को कतई भी अंदाज नहीं था की उसके पति किसी ऐसे कार्यक्रम में इस तरह आज़ाद पंछी की तरह हिस्सा ले सकते थे। एक लगभग नग्न लड़की तो जेठजी की गोद में ही बैठ कर कामुक अदाए कर जेठजी को उकसा रही थी। यह अनुभव माया और जेठजी दोनों के लिए अनूठा था। इस डांस ने जेठजी और माया के जीवन में एक अद्भुत परिवर्तन लाने का काम किया। जेठजी और माया रात को वापस आये तो जेठजी ने उस पार्टी में माया के डांस की भूरी भूरी तारीफ़ की।

जेठजी ने माया को कहा की उन्होंने जिंदगी में बड़ा ही संघर्ष किया था पर माया का उनकी जिंदगी में आने के बाद अब उन्हें माया के साथ जिंदगी को पूरा एन्जॉय करने की इच्छा थी। माया को तब यकीन हो गया की उसके पति चुदाई के मामले में उतने भी रूढ़िवादी नहीं थे जितना सब सोचते थे। माया को लगा की अगर मौक़ा मिले तो उसके पति चुदाई में अलग अलग तरिके के प्रयोग करने के लिए तैयार भी हो सकते थे।

माया के यह समझ लेने के बाद माया और जेठजी की काम क्रीड़ा में काफी परिवर्तन आने लगा। उस पार्टी ने माया को भी कामक्रीड़ा के कुछ नए सोपान सिखाये। कभी हफ्ते के अंत में तो कभी जब दोनों का मूड रूमानी हो या फिर जब भी मौक़ा मिलता, जेठजी के सामने चुदाई से पहले माया अच्छी तरह बनठन कर, आभूषण पहने हुए संगीत लगा कर संगीत की लय पर थिरकते हुए एक कैबरे की नर्तकी की तरह कामुक अदाएं करते हुए, एक के बाद एक वस्त्र निकालते हुए अपनी पतली कमर, अपने कूल्हे, चूँचियाँ, घुंघराले घने बाल, अपनी जांघें बल्कि अपने पुरे कामुक बदन को इस तरह लचकाती, मटकाती और लहराती थी की कई बार तो जेठजी माया को निर्वस्त्र होते हुए देखते हुए ही झड़ जाते थे।

कभी इस तरह नृत्य और अदाएं करते हुए जेठजी की गोद में बैठ कर उनके लण्ड से खेलना या फिर जेठजी के कुर्ते में हाथ डाल कर उनके बदन को प्यार से सहलाना और ऐसी अनेकानेक कामकलाप कर माया जेठजी को इतना उन्मादित कर देती थी की जेठजी अपने सख्त खड़े हुए फौलादी लंड को सहलाते हुए बदहवास बन कर माया को ही देखते रहते थे। इसके बाद नंगी हो कर जेठजी से चुदवाते हुए माया प्यार से अदाएं करते हुए अपनी आँखों की पलकों को मटकाती हुई जेठजी की और ऐसे कटाक्ष भरी नज़रों से देखती की जेठजी माया को इस कदर बेतहाशा चोदते जैसे माया किसी और की बीबी हो।

जेठजी से चुदवाते हुए भी माया अपने बदन को इस तरह मचलती रहती और इतनी कामुक कराहटें और सिसकारियाँ मारती रहतीं जिससे जेठजी को अहसास होता की उनके तगड़े लण्ड से हो रही तगड़ी चुदाई से माया कितना उन्माद भरा आनंद पा रही है। माया चुदवाते हुए हरदम जेठजी का हौसला बढ़ाती रहती थी। माया ने जब मुझे यह बताया की मेरे जेठजी भी नए नए तरीके से माया को चोदने में काफी दिलचस्पी ले रहे थे तब मैं बड़ी खुश हुई की कहीं ना कहीं जेठजी के जीवन में जो कुछ एक नया आनंद, उत्तेजना और उन्माद माया के कारण आया था उसमें मेरा भी कुछ थोड़ासा योगदान था।

उस पार्टी के बाद माया को उसके पति (मेरे जेठजी) में कुछ और अजीबोगरीब परिवर्तन नजर आया। जेठजी कई बार माया से बात करते हुए पूछते रहते की क्या माया जेठजी से सतुष्ट है? कहीं ना कहीं मेरे जेठजी के मन में यह आश्चर्य जनक बात आयी की किसी भी कपल की चुदाई में कुछ ना कुछ नवीनता होनी चाहिए। जेठजी ने इंटरनेट पर देखा था की कई कपल अपने पति अथवा पत्नी के अलावा पराये मर्द अथवा औरत से भी मैथुन माने चुदाई करते हैं और इस तरह वह एक दूसरे की सहमति से परपति या परपत्नी से चुदाई का आनंद लेते हैं। उस पार्टी में भी माया को दूसरे मर्द के साथ डांस करते हुए देख जेठजी को इर्षा की बजाय उत्तेजना महसूस हुई थी। उसी तरह जब डांसर उन के साथ छेड़खानी कर रही थी तब जेठजी ने कुबूल किया की उनका लण्ड सख्त हो गया था। जेठजी भी दोस्त की पत्नी के साथ डांस करते हुए उत्तेजित हो रहे थे।

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