साथी हाथ बढ़ाना Ch. 04

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मेरे लिए मेरे जेठजी के इस तरह इतने करीब बैठना अपने आप में ही एक अनूठा अनुभव था। जब से मैं शादी कर इस घर में आयी थी तब से आजतक कई बार मेरा मन करने पर भी मैं जेठजी के इतना करीब नहीं बैठी। चूँकि मेरे जेठजी मेरे लिए एक आदर्श पुरुष थे और एक तरह से देखा जाय तो वह हम सब के, पुरे घर के वटवृक्ष सामान थे। कई बार मेरा मन करता था की मैं जाऊं और उनकी गोद में बैठ उनसे प्यार करूँ। पर उनकी बहु होने के नाते एक मर्यादा के कारण यह हो नहीं पाया। उस समय मेरे जहन में भावनाओं की कैसी कैसी मौजें उठ रहीं थीं यह कहना मुश्किल है। जिस जेठजी के चरणों की सेवा करने के लिए मेरे पति हमेशा लालायित रहते थे और मैं जिनको भगवान की तरह मानती थी मैं उस रात उनकी दुल्हन बन कर छलावा कर छद्म रूप से उनसे चुदवाने के लिए तैयार थी।

मैं मेरे मन में उठ रही सारी शंका कुशंकाओं को दरकिनार कर अपने मन को एकनिष्ठ कर जेठजी से लिपट गयी। उस समय मैं कितना रोकने पर भी मेरी आँखों से निकल पड़ते हुए आँसुंओं को रोक नहीं पायी। मैंने मेरे होँठ मेरे जेठजी के होँठों से चिपका दिए और उठ कर जेठजी को अपनी दो टाँगों के बिच में फंसाती हुई उनकी गोद में जा बैठी। ऐसे बैठने से मेरी साड़ी और घाघरा मेरी जाँघों के ऊपर तक उठ गए। मैंने मुड़कर माया की और जब देखा तो माया ने अपने अंगूठे को ऊपर कर मुझे "ओके" का इशारा किया। मेरा यह उत्साह देख कर माया के चेहरे पर मुस्कान साफ़ दिख रही थी। मुझे इतना इमोशनल होते हुए देख माया की आँखों में भी आंसूं छलक आये। उसने मुझे बार बार अपने एक हाथ से अपने होठों को चूमते हुए फ्लाईंग किस की और हाथका अंगूठा ऊपर कर इशारा कर आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया।

जेठजी ने अपने हाथ फिरा कर मेरा बदन महसूस किया। जब उनके गाल मेरे गाल को छू रहे थे तब उन्होंने मेरे आँसुंओं को महसूस किया। वह तब बोल पड़े, "क्या बात है? आज तुम इतनी ज्यादा भावुक क्यों हो? तुम्हारी आँखों में आंसूं क्यों?"

माया हमारे करीब आयी। वह भी तो काफी भावुक हालात में थी। उसने उसी भावुक अंदाज में धीरे से बोला, "देखिये जी आज मैं छाया आपसे एक दूसरी ही नयी नवेली दुल्हन बन कर आपसे चुदवाने के लिए आयी हूँ। आज आप माया को नहीं दूसरी औरत छाया को चोदेंगे। आज ना सिर्फ आप छाया को चोदेंगे, बल्कि आज आप अपनी छाया को आपके बच्चे की माँ भी बनाएंगे। आप अपने वीर्य से उसे गर्भवती भी बनाएंगे। और मैं कोशिश करुँगी की आज मेरी हर अदा आपको नयी लगे। आपको महसूस हो की आप आज माया को नहीं दूसरी औरत छाया को चोद रहे हो। आप मुझे माया नहीं दूसरी औरत छाया समझ कर ही चोदेंगे और अपने वीर्य से गर्भवती बनाएंगे। अगर मैं आपको ऐसा करवा पायी तो मैं समझूंगी की मेरा जीवन धन्य हो गया। अब मैं चुप रहूंगी और बिलकुल बोलूंगी नहीं। ओके?"

मेरे जेठजी ने मेरा घूँघट उठाते हुए मेरे गालों को चुम कर मेरे आंसुओं को चाटते हुए कहा, "तू कैसी पागल औरत है रे? क्या तू मुझे इतना ज्यादा चाहती है?"

माया ने जेठजी की बात का कोई जवाब नहीं दिया। उस समय मेरा क्या हाल हुआ होगा? मेरी आँखों से झरझर आँसूं बह रहे थे। मैंने अपना सिर हिलाते हुए जेठजी को "हाँ" का इशारा किया। जेठजी के होंठ उस समय मेरे गालों के ऊपर से बह रहे मेरे आँसुओं को चाट रहे थे। जेठजी ने मेरी "हाँ" का इशारा महसूस किया और बोल पड़े, "मेरी पागल बीबी माया।"

मैंने मेरा सर आजुबाजु "ना" के अंदाज में हिलाकर जब "बीबी माया" शब्द का विरोध किया तो जेठजी समझ गए। वह फ़ौरन मुस्कुराते हुए बोले, "ठीक है बाबा। मेरी पागल बीबी माया नहीं मेरी पागल प्रेमिका छाया। ठीक है?"

मैंने अपना सिर हिला कर "हाँ" का जब इशारा किया तो मेरे जेठजी मुझ पर लपक पड़े और मेरे होँठों को बड़े जोश से चूमने और चूसने लगे। मेरे लिए यह अद्भुत रोमांचकारी अनुभव था। मेरे जेठजी को मैंने सपनों में कई बार चूमा था। आज वह सब सच में हो रहा था। जेठजी के हाथ मेरे स्तनोँ पर चिपक गए और वह उन्हें बेतहाशा मसलने लगे। पहली बार मेरे जेठजी के हाथ मेरे स्तनों को हकीकत में छू रहे थे। मेरे पुरे बदन में एक जबरदस्त सिहरन फ़ैल गयी। रोमांच के मारे मेरे सारे रोंगटे खड़े हो गए। अभी तो जेठजी सिर्फ मेरे ब्लाउज के ऊपर से ही मेरे बूब्स मसल रहे थे।

मुझे काफी जोश से चूमने के बाद जेठजी मेरे सिर पर हाथ फिरा कर अपनी उँगलियों से मेरे बालों को संवारते हुए बोले, "छाया, मैं महसूस कर रहा हूँ की आज मैं वाकई में ही माया को नहीं छाया को प्यार कर रहा हूँ। तुम नयी नवेली दुल्हन सी सजी हुई कितनी सुन्दर लग रही हो?" जेठजी की ऐसी प्यार भरी बात सुन कर मैं और भावुक हो गयी। मैंने माया की और देखा। माया मुझे प्यार भरी नज़रों से देख रही थी। मेरी आँखों से एक बार फिर आँसूं निकल पड़े।

मैंने अपना सिर जेठजी के सिने से लगा दिया और अपनी बाँहों में उनको भर लिया। मेरे बदन को सहलाते हुए मेरे जेठजी के हाथ जब मेरी नंगी जाँघों को छूने लगे तब मेरी महंगी भारी सी साड़ी मेरे बदन से हटाते हुए जेठजी बोले, "छाया तुम्हें मैं बिन देखे तुम्हारी सुंदरता महसूस कर रहा हूँ। तुम तो मेरी माया जैसी ही बहुत सुन्दर हो।" अपने शरीर को इधरउधर कर मैंने जेठजी को मेरी साड़ी हटाने में सहायता की। जेठजी ने मेरी साड़ी निकाल कर एक तरफ कर दी। मैंने अपनी बाँहें जेठजी के गर्दन के इर्दगिर्द फैलायीं और उनके होंठों पर आने होँठ भींच कर मैं जेठजी के होँठ चूसने लगी। जेठजी मेरे मुंह में अपनी जीभ डालकर मेरी जीभ को चाटने और मेरी लार को चूस कर निगल ने में लग गए।

मैं भी मेरे जेठजी का पूरा साथ देते हुए उनसे मेरा मुंह, मेरे होँठ, मेरी जीभ चुसवा कर गजब रोमांच का अनुभव कर रही थी। मेरे लिए वह रात जैसे कोई सपनों की रात जैसी थी। मेरे पति ने सोने में सुहागा जैसे मुझे नयी नवेली दुल्हन जैसे सजधज कर तैयार होने के लिए कहा था। थोडासा अफ़सोस यह था की मेरे जेठजी मुझे इस तरह सजी हुई देख नहीं पाएंगे। पर वह जरूर मेरी नई नवेली दुल्हन जैसे मेरे मन के भाव जरूर महसूस कर पायेंगे, उसका मुझे भरोसा था।

चुम्बन ख़तम होते है जेठजी ने मुझे प्यार से पलंग पर लिटाया। मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी सुहागरात को मेरे प्रियतम ने मुझे प्यार करने के लिए पलंग पर लिटा दिया हो। जेठजी अपने हाथ से मेरे बदन को महसूस करने लगे। उनके हाथ पहले मेरे सिर से ले कर मेरे कपाल, मेरी नाक, मेरे होंठ, मेरी दाढ़ी से मेरी गर्दन पर होते हुए मेरे उरोजों पर कुछ देर टिक गए। मैं अपना हाल कैसे बयाँ करूँ? रोमाँच के मारे मेरी चूत का बुरा हाल हो रहा था। मुझे लगा की मेरी चूत इतनी तेजी से पानी छोड़ रही थी की मुझे डर लग रहा था की कहीं मेरे कपडे ही गीले ना हो जाएँ। मुझे यह भी डर था की जेठजी का लण्ड डलवाने से पहले ही मैं कहीं झड़ ने ना लगूँ। कहीं जेठजी मेरी इस तरह की बेसब्री को भाँप ना ले और उन्हें शक ना हो जाए की मैं माया नहीं हकीकत में ही दूसरी औरत थी।

पर मैंने ठान ली थी की अब जो हो सो हो। मुझे जेठजी को खूब स्वछन्द भरा प्यार कर वह आनंद देना था जो मैं जब से इस घर में आयी थी तब से देना चाह रही थी। जेठजी अपनी जीभ से मेरे कपाल को चाट और चुम रहे थे। मेरे सर को चूमते हुए वह मेरी नाक, मेरे गाल और अपने सिर को घुमा फिरा कर जेठजी मेरी गर्दन को हर जगह चुम रहे थे। जैसे जैसे वह निचे की और आ रहे थे उनके हाथ फिर से मेरे स्तनोँ को ब्लाउज के ऊपर से मसलने लगे।

मैंने मेरे जेठजी के हाथ मेरे ब्लाउज के बटनों पर रख दिए। यह मेरा संकेत था की वह मेरे ब्लाउज के बटनों को खोल दें। जेठजी भी मेरे नंगे स्तनोँ को मसलने, चूमने, काटने और निप्पलोँ को चूसने के लिए उतने ही बेताब थे जितनी की मैं उनको यह सब करवाने के लिए थी। मरे स्तनोँ की निप्पलेँ भी आने वाले अनुभव की अपेक्षा की उत्तेजना में एकदम सख्त हो कर नंगे होने का इंतजार कर रहीं थीं। जैसे ही जेठजी ने मेरे ब्लाउज के बटनों को खोल दिए, मैंने पीछे हाथ कर मेरी ब्रा के हूकों को खोल दिया। मैंने जेठजी के हाथ पकड़ कर उनको मेरे स्तनोँ पर रख दिया। बड़े दिनों से मेरी गुह्य इच्छा थी के मेरे जेठजी मेरे स्तनों को अपने हाथों में पकड़ कर खूब सख्ती से मसले, खींचे, दबाये और चूसे। मेरे स्तनों को छूते ही जेठजी के मुंह से"आह...." निकल गयी। वह बोल उठे, "ओह मेरी प्यारी प्यारी माया की छाया, तुम्हारे स्तन आज मुझे काफी भरे भरे और अलग ही महसूस हो रहे हैं। तुम बहुत मस्त हो रे!"

यह कह कर जेठजी ने झुक कर अपना मुंह मेरे नंगे स्तनोँ पर रख दिया और मेरी निप्पलोँ को दाँत के बिच में दबाते हुए वह मेरे स्तनोँ को बेतहाशा जोर से चूसने लगे।

मैंने जेठजी की जाँघों के बिच में अपनी उंगलियां डालकर जेठजी के लण्ड को सहलाना चाहा। जेठजी ने धोती हटा कर अपनी निक्कर निचे कर अपने लण्ड को बाहर निकाला। हालांकि मैंने जेठजी का लण्ड पहले भी अफरातफरी में देखा था पर उस रात को जेठजी का लण्ड मेरे इतने करीब पा कर मेरे मन में क्या भाव उठ रहे थे उनका वर्णन करना मेरे लिए नामुमकिन है। जेठजी का लण्ड गोराचिट्टा और काफी चिकना चमक रहा था। मुझे माया ने बताया था की माया हर हफ्ते नियमित रूप से जेठजी के लण्ड के बाल साफ़ करती रहती थी। यह काम माया ने अपने हाथों में ले रखा था।

माया ने मुझे कहा था की वह जब जब भी जेठजी की जाँघों के बिच के बाल साफ़ करती थी तब वह हमेशा जेठजी के लण्ड की सरसों के तेल से अच्छी तरह मालिश करती थी। यह लण्ड के सर्विसिंग की प्रक्रिया करीब आधे घंटे तक चलती थी। उसके बाद जेठजी का लण्ड बढ़िया तरीके से चमका कर ही माया दम लेती थी। माया की किसी सहेली ने बोला था की ऐसा करने से लण्ड लम्बे समय तक खड़ा रहता है और उसकी लम्बे समय तक चोदने की क्षमता भी बढ़ती है। माया यह कहते हुए शर्मा कर बोलती थी की उसके बाद माया को मेरे जेठजी के लण्ड को चूसने का बड़ा मन करता था, पर चूँकि उसे तेल से लगे हुए ही कुछ देर रख छोड़ना होता था इस लिए वह उसे उस समय चूस नहीं पाती थी।

जेठजी का लण्ड इसके कारण एकदम चिकना, गोरा और साफ़ दिख रहा था। लण्ड के ऊपर कई नसें फैली हुईं थीं। कुछ थोड़ी श्यामल रंग की नसें और कुछ थोड़ी लाल। जेठजी के लण्ड की मोटाई बापरे! मैंने इतना मोटा लंड सिर्फ पोर्न साइट में भी शायद ही देखा था। मेरे किसी भी बॉय फ्रेंड का लण्ड मोटाई और लम्बाई में मेरे जेठजी के करीब नहीं होगा। मैंने जेठजी का लण्ड मेरी हथेली में लिया और मैं उसे सच्चे दिल से प्यार से हिलाने और सहलाने लगी। मेरे जेठजी का लण्ड देखते ही मेरा मुंह उसे चूसने के लिए बेताब हो रहा था। इसे चूसने की चाह जब से मैंने उसे पहली बार देखा था तब से मेरे जहन को झकझोर रही थी।

माया ने मेरी बगल में खड़े हुए मुझे इशारा किया की मैं जेठजी के लण्ड को चूसूं। वैसे भी मुझे इंतजार करने की कोई जरुरत नहीं थी। उस रात मेरे मन में जो भी कुछ छिपी हुई कामना थी, उन्हें पूरा करने का पूरा मौक़ा था। मैंने भी अपने मन में ठान ली की अब जब मुझे मेरे जेठजी से चुदवाना ही था तो फिर मैं क्यों डरते, घभराते या हिचकिचाते चुदवाउं? जब मुझे चुदवाना ही है तो फिर क्यों ना मैं दिल खोल कर के ही चुदवाउं और चुदाई के पुरे मजे लूँ?

मैं अपनी जगह से बैठ खड़ी हुई और मैंने जेठजी को मेरी जगह लिटा दिया। मैंने धीरे से जेठजी की धोती और जांघिया निकाल दिए। जेठजी की सख्त सुडौल जाँघें मेरे सामने सादृश्य हो गयीं। जेठजी की जाँघों पार बाल थे ओर फिर भी उनकी जाँघों की सख्ती और सुदृढ़ता देखते ही बनती थी। जेठजी का बड़ा मोटा लण्ड उनकी जाँघों के बिच काफी निचे तक लटकता हुआ देख कर मेरी चूत में ना जाने क्या हलचल हो रही थी। यह कैसा लण्ड है? ऐसा लगता था जैसे वह शरीर का अंग नहीं कोई लटकता लम्बा मोटा घण्टा हो।

वैसे सच कहूं तो हालांकि उस लण्ड को देख कर मेरी हालत खराब हो रही थी पर उससे कहीं ज्यादा मेरे पुरे बदन में और खासकर मेरी चूत में एक अजीब सा रोमांच और उत्तेजना थी। हर औरत की यह कामना होती है की जिंदगी में कम से कम एक बार वह ऐसे तगड़े लण्ड से चुदवाये। पर ऐसा तक़दीर किसी किसी औरत को ही मिलता है। मेरी तक़दीर भी उस रात खुल गयी थी। अब ना सिर्फ वह लण्ड से मैं चुदने वाली थी पर मैं उस लण्ड से माँ भी बनने वाली थी।

मैं धीरे धीरे खिसक कर जेठजी के पाँव के पास पहुँच गयी। मैंने मेरे जेठजी की टाँगों के बिच में अपना सिर रखने के लिए उनकी टाँगे अपने दोनों हाथोँ से चौड़ी की और अपने हाथों में जेठजी का मोटा तगड़ा लण्ड लिया। उसे अपने हाथों में पकड़ कर और उठा कर मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मैंने अपने हाथोँ में सनी देओल का ढाई किलो का हाथ पकड़ा हो। खैर ऐसा कहना थोड़ी अतिशयोक्ति होगी पर मुझे वैसे ही महसूस हुआ।

मैंने अपनी उंगलियां मेरे जेठजी के लण्ड के इर्दगिर्द बड़े प्यार से घुमाई और फिर धीरे से जेठजी के लण्ड का टोपा मेरे होंठों के बिच रखा और उसे चूमने लगी। जेठजी मेरे होंठों को अपने लण्ड को छूते ही मचलने लगे। उनके मुंह से निकल गया, "आह..... मेरी छाया..... तुम वाकई गजब हो। तुम्हारे होंठ कितने सुकोमल और भरे भरे हैं? वाकई में तुम मेरी माया नहीं मेरी माया की छाया ही हो।"

जैसे जैसे मैं जेठजी का लण्ड मेरे मुंह में लेने लगी, जेठजी पलंग के ऊपर और भी मचलने लगे। मैं अपना मुंह आगे पीछे करती हुई जेठजी का लण्ड चूसने लगी। मेरे पति का लण्ड मैंने कई बार चूसा था, पर जेठजी के लण्ड का स्वाद कुछ और ही था। मेरे मुंह की लार जेठजी के लण्ड के इर्दगिर्द चिपकाते हुए मेरी जीभ मैं जेठजी के लण्ड के चारों और घुमाती रहती थी। मेरा जेठजी के लण्ड को चूसने का सपना पूरा हो रहा था और मेरे इस काम का पारितोषिक मुझे मेरे जेठजी की कराहटों और आहों से मिलता रहता था।

मुझे लगा की मेरे जेठजी मेरे होँठों से अपने लण्ड को चुसवाते हुए महसूस कर अद्भुत रोमांच अनुभव कर रहे थे। उनके मुंह से एक के बाद एक "आह.... छाया...... तुम कितना गजब चूसती हो...... हाय........ ओह......" करते हुए मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे जेठजी मेरा सिर पकड़ कर जैसे मुझे दिल से आशीर्वाद दे रहे थे। मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मेरे इस कार्य से मेरे जेठजी वाकई बड़े ही प्रसन्न हुए थे। बार बार वह अचानक उठ बैठ जाते और मेरा सिर चुम लेते थे। मैं भी उनका लण्ड चूसते हुए इतनी भावावेश में डूबी हुई थी की मुझे यह भी होश नहीं था की उनका लण्ड मेरे गले में इतना घुस रहा था की मेरी साँसे घुट रहीं थीं।

यहां मैं यह स्वीकार करती हूँ की मेरे जेठजी के लण्ड को बड़ी ही शिद्द्त से चूसने में मेरा एक जबरदस्त निजी स्वार्थ था। मैं जानती थी की मेरे जेठजी का लण्ड कितना महाकाय और लंबा था। जब जेठजी उस लण्ड को मुझे चोदने के लिए मेरी चूत में डालेंगे तब मेरा क्या हाल होगा यह मैं भलीभाँति जानती थी। जेठजी का लण्ड चूसते हुए मैं उनके लण्ड के ऊपर पूरी सतह पर मेरी लार की ख़ास चिकनाहट अच्छी तरह से लपेट कर जेठजी के लण्ड को पूरी तरह से स्निग्ध बना देना चाहती थी। मैं अपना प्लान बना रही थी जिससे जब वह लण्ड मेरी चूत में घुसे तब मेरी चूत में कुछ कम तकलीफ महसूस हो। इस कारण से मैं जेठजी का लण्ड चूसती रही और बार बार उसके ऊपर मेरी लार की चिकनाहट लपेटती रही। इस तरह चिकनाहट की कई सतह बनाकर मैं जब चुदवाउंगी तब अपना दर्द कम हो यह सुनिश्चित करने की अपनी और से कोशिश कर रही थी।

जेठजी का लण्ड चूसते हुए मेरा जबड़ा जब दर्द करने लगा तब मैंने जेठजी का लण्ड मुंह से बाहर निकाला। मुझे लगा की जेठजी भी मेरे ऐसा करने से कुछ आश्वस्त हुए क्यूंकि उत्तेजना के मारे वह शायद डर रहे थे की कहीं वह मेरे मुंह में ही अपना वीर्य ना छोड़ दें। मेरे जेठजी ने मुझे अपने ऊपर खिंच लिया और मेरे होँठों को बेतहाशा चूमते हुए बोले, "छाया, तुम मुझे इतना ज्यादा प्यार करती हो? तुम मुझे इससे पहले क्यों नहीं मिली?"

फिर उनकी काली पट्टी लगी हुई आँखें मेरी आँखों के सामने रख कर मेरी ठुड्डी पकड़ कर बोले, "देखो छाया मुझे देखो। मैं तुम्हें देख नहीं सकता पर तुम तो मुझे देख सकती हो। मैं पूछना चाहता हूँ की क्या तुम आज मुझसे सच्चे दिल से अपनी ख़ुशी से चुदवाओगी ना?"

मेरे जेठजी की बात सुन कर फिर से मेरी आँखों में आंसूं छलकने लगे। मैंने अपना सर जेठजी को महसूस हो ऐसे हिला कर "हाँ" कहा। और फिर मैं मेरे जेठजी के पुरे बदन को बेतहाशा चूमने और चाटने लगी। ऐसा करते हुए बार बार मेरी नजरें माया की और चली जातीं। मैंने माया का प्यार भरे भाव से मंदमंद मुस्काता हुआ चेहरा देखा। उसकी आँखें मुझे मेरे जेठजी को प्यार करते हुए देख छलक रहीं थीं।

जेठजी मेरे दोनों स्तनोँ को अपने दोनों हाथों में भर कर बोले, "छाया, मेरा मन करता है की मैं तुम्हारे स्तनोँ को खा जाऊं। कितने प्यारे और सख्त हैं यह।"

मैंने जेठजी का सर पकड़ा और उनका मुंह मेरे स्तनोँ पर रख दिया। जेठजी एक के बाद एक निप्पलेँ मुंह में लेकर उन्हें चूसने और चबाने लगे। एक बार तो उनके दांत लगने से मेरी धीमी चीख निकल गयी। पर जेठजी के मेरे स्तनोँ को चूसना मुझे बहुत ज्यादा उत्तेजित कर रहा था। जेठजी को चूँचियाँ चूसने का महारथ था। जब जब वह एक स्तन चूसते थे तो मेरा पूरा का पूरा स्तन उनके मुंह में ही चला जाता था। जब मेरा स्तन जेठजी के मुंह में चला जाता था तब मुझे लगता था जैसे मेरे मेरे पिता समान मेरे जेठजी अचानक मेरे बच्चे जैसे हो गए हों। उस समय मेरे जहन में उनके लिए इतना प्यार उमड़ता था की मेरा मन करता था जैसे मेरे जेठजी के लिए मैं अपना बदन क्या अपनी जान भी कुर्बान कर सकती हूँ।

जब जेठजी मेरे स्तनों को प्यार करते थे तो मेरी चूत का बुरा हाल होता था। मेरी चूत में से मेरा पानी रिसने लगता था। मेरे जेठजी की बाँहों में होते हुए मैं अपनी चूत कैसे सम्हालूं? यह मेरी समस्या थी। पर ना चाहते हुए भी मेरा हाथ मेरी जाँघों के बिच में चला जाता था। जेठजी को महसूस हुआ की मेरी चूत काफी गीली हो रही थी और काफी पानी छोड़ रही थी। जेठजी ने अपना हाथ मेरे घाघरे के नाड़े पर रखा और और खिंच कर मेरे घाघरे का नाडा खोल दिया। फिर अपना मुंह निचे की और सरकाते पहले मेरे पेट को चाटने और चूमने लगे और फिर नाभि पर अपनी जीभ की नोंक को मेरी नाभि में कुरेद कुरेद कर मुझे और ज्यादा उत्तेजित कर रहे थे।

जेठजी इस कार्यकलाप से मेरा बुरा हाल हो रहा था। मैं जेठजी के नीची लेटी हुई मेरे बदन को इधर उधर करते हुए मचल रही थी। मेरी चूत में इतनी जबरद्त हलचल हो रही थी की मुझे लग रहा था की मैं जल्दी ही झड़ने वाली थी। जेठजी ने एक हाथ सरका कर मेरी पैंटी को निचे की और खिसका दिया। उन्होंने अपनी उँगलियों से मेरी चूत की पंखुड़ियों से कुछ देर खेलने के बाद मेरी जाँघों के बिच मेरी तिकोनिया दरार पको बड़े ही प्यार से सहलाने लगे। बिच बिच में वह अपनी उँगलियों से मेरी पंखुड़ियों को खोल कर मेरी चूत की दरार को बेपर्दा कर देते थे। उनकी उँगलियों से खेलने के कारण मेरी उत्तेजना इतनी बढ़ने लगी की मेरे लिए अपने आप को सम्हालना नामुमकिन हो गया। एक ऐसा जुवार आया की मैं उछल पड़ी और मेरे जेठजी को मेरी बाँहों में मैंने जकड कर पकड़ा और मैं झड़ पड़ी। मेरे झड़ ने क्रिया कुछ सेकंडों तक चलती रही। मैं "ओह...... हाय...... आअह्ह्ह्हह......." सी हलकी सिसकारियां भरती हुई कुछ देर के लिए निढाल हो कर पलंग पर शिथिल होकर शांत हो गयी।

जेठजी मेरे झड़ने से कहाँ रुकने वाले थे? बल्कि उसके कारण तो उनमें जोश और भी बढ़ गया। मेरी उत्तेजना की चाभी मेरे जेठजी के हाथ लग गयी थी। जेठजी ने मेरी चूत में अपनी दो उंगलियां डालकर उन्हें अंदर बाहर करना शुरू किया। साथ ही साथ झुक कर कभी वह मेरे होंठों को तो कभी मेरी निप्पलोँ को चूस लेते थे। जैसे ही मैंने मेरे जेठजी की उँगलियों को मेरी चूत में महसूस किया तो बापरे, मैं अपने आप पर कण्ट्रोल नहीं रख पायी। मैं पलंग पर उछल पड़ी। मेरी उत्तेजना देख कर जेठजी और भी उत्साहित हुए। जेठजी ने अपनी उंगली मेरी गाँड़ की दरार में भी डाल दी।

जेठजी की कामुक करतूतों से मैं अपना आपा खो रही थी। अभी तो मेरी चुदाई भी शुरू नहीं हुई थी और मैं दो या तीन बार झड़ चुकी थी। जेठजी को जब भी मौक़ा मिलता, मेरी गाँड़ के गालों को दबाते और सहलाते रहते थे। मेरे लिए वह रात मेरी जिंदगी की सबसे यादगार रात साबित हो रही थी। मेरे पति के साथ मेरी पहली सुहाग रात अब तक की मेरी सबसे यादगार रात थी। पर मेरे जेठजी के साथ मेरी सुहागरात उससे भी ज्यादा रोमांचक और उन्मादक साबित होने जा रही थी।

अचानक मैंने मेरे जेठजी की जीभ की नोंक को मेरी चूत की दरार को कुरेदते हुए पाया। जेठजी अपनी जीभ से वह कर रहे थे जो अब तक उनकी उंगलियां कर रहीं थीं। जीभ एक काम और कर रहीं थीं जो उंगलियां नहीं कर पा रहीं थीं। जेठजी की जीभ मेरे स्त्री रस को चाट रही थी। जेठजी के सर को मेरी जाँघों के बिच में घुसने देने के लिए मुझे मेरी टांगें काफी फैलानी पड़ रहीं थीं। मेरी चूत की दरार में अपनी जीभ डालकर मेरे रिसते हुए स्त्री रस को ऐसे चाट रहे थे जैसे वह शहद को चाट रहे हों। मेरे जेठजी मुझे इतना सुख देंगे उसकी मुझे कल्पना भी नहीं थी। मैं तो मेरे जेठजी की वह कामुक मस्त हरकतों से बिंदास मचलती हुई मेरी हवस के चरम को बार बार अनुभव कर रही थी और बार बार झड़ रही थी।

जेठजी मुझे अपनी जीभ से चाट कर ऐसे पागल कर रहे थे की मुझ से रहा नहीं गया। मैं मेरे जेठजी का लण्ड मेरी चूत में डलवाना चाहती थी। मैं जानती थी की उनका लण्ड जब मेरी चूत में घुसेगा तो अगर वह मेरी चूत फाड़ ना भी दे पर मुझे मेरी नानी की याद जरूर दिला देगा। पर यह भी सच है की हर औरत का यह ख्वाब होता है की कभी ना कभी एक बार ही सही उसे ऐसे बड़े तगड़े लण्ड से चुदने का मौक़ा मिले। मुझे यह मौक़ा मिल रहा था।

मैं उस समय मेर जेठजी से चुदवाने के लिए बेबस हो रही थी। पर साथ साथ मैं मेरी चुदाई को कुछ हद तक कम दर्द भरी बनाने के लिए फिर से एक बार मैंने बैठ कर जेठजी की जांघों के बिच अपनी जगह बना ली और आखिर में एक बार फिर मेरे जेठजी का महाकाय लण्ड चूसते हुए उस पर मेरी लार की चिकनाहट लपेटना शुरू किया। मेरे जेठजी शायद मेरी उलझन समझ गए थे। वह शायद जो फॉर्मूला माया के साथ अपनाते होंगे (माया ने यह मुझे नहीं बताया था) उन्होंने वही किया। मैंने देखा की मेरे जेठजी ने अपने गद्दे के निचे अपना हाथ डाल कर टटोल कर एक छोटी सी बोतल निकाली। वह बोतल उन्होंने मेरा हाथ थाम कर मुझे पकड़ा दी। मुझे समझते देर नहीं लगी की वह शहद की बोतल थी।

मैंने उसे थामा और मैंने आगे बढ़कर मेरे जेठजी को चुम लिया। मेरे जेठजी मेरी उलझन समझ गए थे। मैंने उस शहद को जेठजी के लण्ड के ऊपर अच्छी तरह से चिपकाया। साथ में मं झुक कर उस शहद से चिपडे हुए लण्ड को चूसा भी। मुझे तब काफी तसल्ली हुई की मैं जेठजी से जरूर चुदवा लुंगी।

मैंने जेठजी का सर पकड़ा और उन्हें मेरे ऊपर खींचा। मैंने उनका लण्ड अपनी उँगलियों में पकड़ा और मेरी चूत के पास ले आयी ताकि वह समझ जाएँ की मैं उनसे चुदवाने के लिए कितनी चुदासी हो रही थी। मैंने उन्हें उनका लण्ड हिला कर इशारा किया की वह मुझ पर सवार हों, मेरी चूत से अपना लण्ड रगड़ें और मेरी चुदाई की शुरुआत करें। जेठजी जान गएँ की मैं उनसे चुदवाने के लिए कितनी बेबस थी।

मेरे जेठजी भी मेरी बेबसी समझ रहे थे। वह फ़ौरन मुझ पर सवार हुए। मैंने अपनी टांगें चौड़ी की और मेरे जेठजी को मेरी टांगों के बिच में आने दिया। मैंने अपनी टांगें ऊँची की। जेठजी अपने लण्ड को अपने एक हाथ में पकडे हुए उसे हिलाते उसे मेरी चूत के पास लाने की कोशिश करने लगे। क्योंकी उनकी आँखों के ऊपर पट्टी बंधी थी इस लिए वह ठीक से अपने लण्ड को पोज़िशन नहीं कर पा रहे थे। मैंने उनका लण्ड अपनी हथेली में पकड़ा और प्यार से धीर से खिंच कर उसे मेरी चूत के केंद्र बिंदु के पास ले आयी। मेरे हाथ के खिंचाव से मेरे जेठजी भी खींचते हुए मेरी अद्धर चौड़ी की हुई टांगों के बिच में आ गए।

आप उस समय की मेरी मनोदशा को शायद ही समझ पाएंगे। एक बहु जो अपने जेठजी को अपने पिता या ससुर से भी ऊंचा दर्जा देती हो पर जिसके मन के कोई अँधेरे कोने में एक ऐसी अभिलाषा छिपी हो जो हर कोई कामुक स्त्री किसी अत्यंत हैंडसम, वीर्यवान, मन पसंद पुरुष को देख कर अपने मन में अनायास ही पालती हो; उसे जब उसी पुरुष से चुदवाना के मौक़ा मिले तो उसकी मनोदशा क्या होगी? वही मनोदशा उस समय मेरी थी। इसे एक पुरुष के लिए समझना मुश्किल है और शायद एक औरत ही उसे समझ सकती है। मैं उस समय उम्मीद कर रही थी की हमारे करीब खड़ी माया जो मेरे नंगे बदन को बड़ी ही लोलुपता से देख रही थी, वह जरूर उस समय के मेरे मन के भाव समझ रही होगी।

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