रहस्यमय संबंध

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बॉस के मर जाने पर उस की बीवी के साथ बना संबंध
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भुमिका

कहानी की शुरुआत जीवन के उस समय शुरु हुई जब लम्बें समय तक नौकरी ना होने के कारण किसी भी तरह का रोजगार पाने की लालसा में एक जगह आवेदन किया। कंप्यूटर का जानकार होने के कारण तथा अनुभव होने के कारण कंपनी के मालिक ने जो 45 साल के युवा थे मुझ 55 साल के पुरुष को दूबारा नौकरी करने का मौका प्रदान किया। इन्टरव्यू में उन्होनें मुझ से ज्यादा नहीं पुछा मेरा रिज्युमें पढ़ कर बोले कि काफी सालों से आप काम नहीं कर रहे है क्या दूबारा से काम कर पायेगें? मैंने जबाव दिया कि काम ना मिलने के कारण खाली तो बैठना पड़ा है लेकिन काम भुला नहीं है एक मौका अगर देगे तो निराश नहीं करुँगा, मेरी बात सुन कर उन्होंने अपनी कंपनी के कंप्यूटर सैक्शन का चार्ज मुझे दे दिया। उसी समय बताया कि कई लोग मुझ से पहले इसे सुधारने के लिये आये थे लेकिन सफल नही हो पाये।

मैंने कहा कि मुझे भी एक मौका दे मैं सफल होने की पुरी कोशिश करुँगा लेकिन आप को मुझे पुरा समर्थन देना पड़ेगा, अगर आप से वह मिलेगा तो मैं सुधार कर पाऊँगा। मेरी बात सुन कर वह बोले कि मेरा कैसा समर्थन चाहिये आपको? मैंने कहा कि मैं जो कदम सुधार के लिये उठाऊँगा उन के खिलाफ लोग आप से मेरी शिकायत करेगें, उस समय कोई भी फैसला लेने से पहले आप मेरा पक्ष जरुर सुनियेगा इस के बाद ही कोई कदम ऊठाइयेंगाँ। मेरी बात सुन कर वह बोले कि आप की यह बात अनुभव से आती है लगता है कि आप इस तरह की परिस्थियों से गुजरे है। मैंने कहा कि इसी कारण से मैंने यह बात आप से कही है। सुधार के लिये जब कठोर कदम ऊठायें जायेगे तो लोग मेरी शिकायत आप से करेगें।

वह बोले कि मैं आप के साथ हुँ बस जो भी करियेगाँ मुझे बता कर किजियेगा ताकि मैं आप को सपोर्ट कर सकुँ। मैंने कहा कि सब कुछ आप से चर्चा करके ही करुँगा ताकि परेशानी कम से कम हो। इस तरह से मुझें दूबारा नौकरी मिल गयी।

जैसी कंपनियों में आम तौर पर हालत होती है वैसी ही यहाँ भी थी। कोई किसी बात की जिम्मेदारी नहीं लेता था। पुराने कर्मचारी होने के कारण ज्यादा कठोरता भी नहीं बरती जा सकती थी। पुरा हफ्ता लगा मुझे डिपार्टमेंट को समझने में। उस के बाद मैं चीजों को दूरुस्त करने में लग गया। पहले तो सारे हार्डवेयर को सही किया और जो खराब था उस को अलग कर दिया। सभी कंप्यूटरस् के अंदर सॉफ्टवेयर से संबंधित समस्याओं को दूर किया। नेटवर्क की समस्याओं का निदान किया। डाटा को एक जगह करने के लिये पॉलसी बनाई, सब को बिठा कर समझाया कि इस का क्या फायदा है। कुछ दिन तक इसी काम पर लगे रहे। जब डाटा एक जगह स्टोर होने लगा तो उस का बॅकअप लेना शुरु कर दिया।

इंटरनेट को लेकर रोज-रोज समस्या होती रहती थी। मालिक ने नया कनैक्शन लेने में मजबूरी जताई। इस समस्या को देखा तो पता चला कि लोग अधिकांश समय बेकार की साईटों पर समय व्यर्थ कर रहे थे। सीधे से मना करने पर बहुत हंगामा होने की संभावना थी। इस कारण से मालिक को एक दिन बैठ कर समस्या समझायी और उस के निदान के उपाय भी बतायें। वह बोले कि पहले पहल तो लोग बहुत परेशान करेंगें। मैंने बताया कि लोग काम करने के समय बेकार की साईटों पर जा कर समय बर्बाद कर रहे है। उन को जब पुरी रिपोर्ट दिखायी तो उन की आँखें खुल गयी। वह बोले की इस से तो कंपनी का बहुत नुकसान हो रहा है।

मैंने उन्हें समझाया कि हम धीरे-धीरे इस को कसेगें ताकि कोई बड़ा विवाद ना हो सके। पहले-पहल सामान्य कर्मचारियों पर अंकुश लगायेगें उस के बाद बड़े अधिकारियों का नंबर आयेगा। यही सबसे मुश्किल समय होगा जब आप के पास मेरें खिलाफ शिकायतें आयेगी तथा आप बहुत दवाब में होगे। वह बोले की आप चिन्ता ना करें इस योजना पर आगे बढ़ें आज तक किसी ने मुझे यह नुकसान बताया ही नहीं था। आप पहले व्यक्ति है जिस ने इस समस्या की जड़ को पकड़ा है तो इसे सही भी करना पड़ेगा नहीं तो कंपनी का नुकसान होता रहेगा। मैंने उन की बात से सहमति जताई। मैं अपनी योजना को कार्यान्वित करने में लग गया।

सबसे पहलें इंटर नेट पर एक फायरवॉल इंस्टाल की, जिस से नेट पर नियंत्रण करना आसान हो गया। अब यह पता चल रहा था कि कौन क्या कर रहा है कहाँ जा रहा है। सबसे पहलें जूनियर स्टाफ को कसा, ताकि वह समय बर्बाद ना करें, इस के बाद अपर लेवल के ऊपर कसावट की गयी, वहाँ से जैसा की अंदाजा था, विरोध किया गया लेकिन क्यों कि पहले ही से मालिक को सब बात का पता था इस कारण से उन की कोई चाल सफल नहीं हो पायी। इस योजना के पुरी होने के बाद हुआ यह कि कंपनी की नेट की रफ्तार बढ़ गयी। काम करनें में कम समय लगने लगा तथा वायरस आदि की समस्या कम हो गयी।

पुरी कंपनी में सभी ने यह महसुस किया कि अब इंटरनेट सही चलता है तथा उस की रफ्तार भी सही मिलती है। जबकि नेट वही पहले वाला था कुछ भी बदला नहीं गया था, केवल उस के उपयोग को नियंत्रित किया गया था। इस के कारण कार्य में सुगमता बढ़ गयी थी। कंपनी में सब नें इस बात की सराहना की तथा यह बात मालिक तक भी पहुँची। इस सब में तीन महीनें का समय लग गया था। अब मुझे यह डर था कि कंपनी कही मेरी छुट्टी ना कर दे। एक दिन बॉस नें अपने कमरें में मुझे बुलाया तो लगा कि मेरा डर सच तो नहीं हो जायेगा? डरते-डरते मालिक के कमरे में गया तो उन्होनें कुर्सी पर बैठने को कहा। मैं डरा सा कुर्सी पर बैठ गया।

विकास

बॉस ने कहा कि आप ने जो कहा था वह कर दिखाया है तथा आप के कारण कंपनी के काम में तेजी आयी है और लोगों की कार्यक्षमता भी बढ़ गयी है। मैंने जब आप को रखा था तो मैं सही कहुँ तो आप की बातों पर पुरा विश्वास नही था लेकिन मेरे पास कोई और चारा नहीं था, आप की उम्र यह कहती थी कि आप जो कह रहे है वह कर सकते है लेकिन पहले काफी लोगों के असफल होने की वजह से मुझे विश्वास करने में कठिनाई आ रही थी। लेकिन मैंने एक चांस लिया और आप ने उसे लपक कर डिपार्टमेंट को सुधार दिया। मैं आज अपने निर्णय पर खुश हुँ इसी वजह से मैं चाहता हुँ कि अब से आप कंप्यूटर को छोड़ कर ऐडमिनिस्ट्रेशन में आ जाये।

कंप्यूटर भी आपके अंडर ही रहेगा लेकिन आप उस के साथ साथ ऐडमिन भी देखेगे। यह बात सुन कर मैं हैरान रह गया, ऐडमिन का मुझे थोड़ा बहुत अनुभव था इस कारण से मैं असमंजस में था। मेरे मन की बात को पकड़ कर वह बोले की इसे अभी मैं देखता हूँ अब से आप इस में मेरी सहायता करेंगे तो मुझे कुछ राहत मिल जायेगी तथा मैं किसी और विषय में ध्यान दे पाऊंगा। मैंने कहा कि काम तो मैं कर लुगा पहले किया तो है लेकिन ज्यादा अनुभव नहीं है। मेरी बात सुन कर वह बोले की आप चिन्ता ना करें बाकि सब कुछ मैं आप को सिखला दूँगा।

अचानक परिवर्तन

एक दिन अचानक मालिक साहब नें मुझे बुला कर कहा कि मैं आप को कंपनी में बराबर का साझीदार बना रहा हूँ अब आप भी मेरे बराबर के हिस्सेदार हो गये है। मैनें कुछ कहने के लिये मुँह खोला तो उन्होनें हाथ के इशारे से मना कर दिया और कहा कि आप मुझ पर विश्वास रखे जो कुछ कर रहा हूँ अपने, कंपनी और आप के भले कि लिये कर रहा हूँ। यह सुन कर मैं चुप रह गया। उन के इतने अहसान थे मुझ पर कि मैं उन के सामने कुछ कह नहीं पाता था। जो वह कहते थे उस को बिना कुछ ना-नुकर किये मान लेता था और कर देता था।

हम दोनों के मध्य ऐसा रिश्ता बन गया था कि किसी बात को पुछने या कहने की जरुरत नहीं पड़ती थी। आज की घटना पर मैं आश्चर्यचकित था लेकिन कोई जबाव मुझे नहीं मिल रहा था। घर पर आ कर पत्नी को बताया था वह बोली कि कुछ समझ नहीं आ रहा है, काम में तो आप पहले ही साझीदार थे अब कंपनी में साझेदारी और वह भी बराबर की समझ नहीं आ रही है। लेकिन हो सकता है कि इस में भी भगवान् की कोई इच्छा होगी। हम दोनों के पास कोई जबाव नहीं था।

कंपनी में तो काम पहले की तरह ही चल रहा था। जो कुछ परिवर्तन हुआ था वह केवल पेपरों पर हुआ था वह आज भी मेरे मालिक थे और मैं उन का नौकर इस से ज्यादा मैं कुछ सोचना नहीं चाहता था। हम दोनों का प्रयास कंपनी को ऊचाँई पर ले जाने का था। इस के अलावा हम दोनों की कोई और कामना नहीं थी इसी की पूर्ति में हर समय लगे रहते थे। समय बीत रहा था तभी एक दिन अचानक सुबह मालिक साहब के घर से फोन आया कि उन की तबीयत बहुत खराब है और अस्पताल जा रहे है यह सुन कर मैं भी सीधा अस्पताल भागा।

वहाँ पहुँच कर जब उन से मिला तो वह पस्त से दिख रहे थे, मेरे को देख कर उन के चेहरे पर रौनक आ गयी और मुझे पास बुला कर बोले कि तुम से कुछ जरुरी बात करनी है। मैंने कहा कि पहले आप सही हो जाओ फिर कर लेगे तो वह बोले कि नहीं तुम सुनों की क्या करना है? यह कह कर उन्होनें कमरें में मौजूद अपनी पत्नी और सब को बाहर जाने का इशारा कर दिया।

जब सब चले गये तो मेरे हाथ में एक लिफाफा रख कर बोले की भविष्य में कभी फैसला ना कर पाओं तभी इसे खोलना। मैंने लिफाफा ले कर जेब में रख लिया। फिर वह बोले की मेरे बाद कंपनी चलाना तुम्हारी जिम्मेदारी है, मेरे परिवार की, पत्नी की जिम्मेदारी भी तुम्ही पर है मुझे विश्वास है कि तुम इसे पुरा करोगें। मैंने घबरा कर उन का हाथ दबाया तो वह बोले की आप मेरे मित्र बन गये है। यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे आप जैसा मित्र मिला है तो सगों से भी ज्यादा सगा है। मुझे यह चिन्ता नहीं है कि मेरे पीछे मेरे परिवार, कंपनी का क्या होगा। इस तरफ से मैं निश्चित हूँ।

एक बात आप को समझानी है कि आप लोगों की बातें सुन कर कभी भी अपनी डगर से विचलित नहीं होना। आप सही रास्ते पर चल रहे हो। यह सब सुन कर मैं घबरा गया था मेरे को घबराया देख कर उन्होनें कहा कि मुझे पता है कि मैं कुछ देर का मेहमान हूँ इस लिये आप से वायदा चाहता हूँ कि आप अपना कर्तव्य पुरा करेगें तथा किसी की कोई बात सुन कर अपने कर्तव्य से नहीं हटेगें। मैंने उन के हाथ को दूबारा दबाया और कहा कि आप को कुछ नहीं होगा। और जो आप कह रहे है मैं वैसा ही करुँगा आप निश्चित रहे। मेरी बात सुन कर उन के चेहरे पर रौनक सी आ गयी।

इस के बाद कमरे में डॉक्टर, उनकी पत्नी और अन्य लोग आ गये। मैं नें डॉक्टर से पुछा कि इन को क्या हूआ है? तो उस ने कहा कि स्ट्रोक आया है और बड़ा घातक है अगले 24 घंटे इंतजार करना पड़ेगा। यह सुन कर मैं बाहर चला गया तो देखा कि मालिक साहब के वकील आये हूये थे उन से पुछा तो बोले की साहब नें आप को 51 प्रतिशत शेयर ट्रान्सफर करने के पेपर पर साईन करने के लिये बुलाया है। यह कह कर वह कमरे में चले गये। मैं बाहर हैरान सा खड़ा रहा। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है? मेरा मित्र मुझे दूबारा जीवन में मान देने वाला व्यक्ति अचानक ऐसा क्यों कर रहा है, मुझे क्यों नहीं पता चला कि उन्हें कोई बीमारी है मैं तो दिन में 15-16 घंटे उन के साथ ही रहता था।

मेरे पास बहुत काम थे सो मैं फोन पर उन को करने लगा। समय बीत रहा था, समझ कुछ नहीं आ रहा था, वकील साहब भी साईन करा कर चले गये थे। मालिक साहब की पत्नी बाहर आयी और बोली कि आप ने नाश्ता कर लिया है मैंने ना में सर हिलाया तो वह बोली की मेरे साथ केन्टीन चले कुछ खा ले। मैं चलने के लिये राजी नहीं था तो वह बोली कि आप के साहब का हुक्म है कि आप की देखभाल करना मेरी जिम्मेदारी है उन्हें पता है कि आप खाने-पीने के मामले में लापरवाही करते है। आप का सही रहना बहुत जरुरी है। उन की आवाज में कंपन मुझे महसुस हो रहा था। मैं उन के साथ केन्टीन की तरफ चल दिया।

केन्टीन में चाय पीते समय मैनें उन से पुछा कि यह सब कब हुआ है तो वह बोली कि रात को तो सही सोये थे सुबह बोले की सांस नही ली जा रही है मैंने कहा कि आप को फोन करुँ तो वह बोले की फोन तो कर दो लेकिन मुझे अस्पताल ले चलों। मैंने एम्बुलेंस को फोन किया और उसके बाद आप को फोन किया। यहाँ आ कर चैकअप के बाद पता चला कि बहुत सीवियर स्ट्रोक आया है। उस के बाद का तो आप को पता है। मैं ने उन से कहा कि मैं तो अभी तक शॉक में था लेकिन अब मुझे पता है कि क्या करना है? वह बोली कि अब सब कुछ आप के हाथ में है। अपना ध्यान रखियेगा। हम सब की जिम्मेदारी भी आप के कंधों पर है। मैंने कहा कि साहब को कुछ नहीं हो रहा है। वह कुछ ज्यादा ही घबरा गये है। सही हो जायेगे। चाय पी कर मैं फिर से डॉक्टर से मिलने चला गया।

उस नें मुझे बिठा कर समझाया कि हालत खराब है कुछ कहा नहीं जा सकता है। जो कुछ हो सकता है वह हम लोग कर रहे है। इस के बाद मैं फिर से साहब से मिलने गया तो वह मुझे देख कर बोले की पेपर पर साईन कर दिये है टेकओवर में परेशानी नहीं होगी। मैं चुपचाप खड़ा रहा तो वह बोले कि ऐसी शक्ल मत बनाइयें हालात का सामना करिये। मैं भी वही कर रहा हूँ आप को भी वही करना है और कोई चारा नहीं है। मैं हाँ कह कर बाहर निकल गया। दोपहर बीत गयी, शाम आई और वह भी चली गयी रात का अंधेरा घिर आया था, मैं अस्पताल के बाहर अकेला खड़ा हो रहे घटना क्रम के बारे में सोच रहा था कि कुछ ही समय में कैसे सब कुछ उलट-पलट हो गया है। अब मुझे ही सब कुछ सभांलना है। तभी फोन की घंटी बजी, डॉक्टर नें मनहुस खबर सुना दी। उसे सुन कर अंदर भागा, जब कमरे में पहुंचा तो सब कुछ खत्म हो गया था। साहब निश्चल पड़े थे। मेरे पास उन की पत्नी को कहने के लिये सान्तवना के दो शब्द भी नहीं थे। मैं कुछ देर खड़ा रहा फिर बाहर जा कर आगे के इंतजाम में लग गया।

अन्तिम संस्कार के बाद पारिवारिक रस्मों का पुरा करने के बाद कंपनी में घुसा तो आंखें धुधली हो रही थी लेकिन ठहरने का समय नहीं था जो सपना वह अधुरा छोड़ गये थे उसे पुरा करने का समय था। सो काम में लग गया। पहले भी अंधिकांश काम मैं ही सभालता था। अब भी वही कर रहा था। पहले कही फँसता था तो उन के पास सलाह लेने जाता था तो वह कहते थे कि आप को सलाह की क्या जरुरत है मैं तो खुद आप से सलाह लेता हूँ। करता तो मैं ही था लेकिन किसी और के साथ बात कर लेने से सहायता हो जाती थी, कई बार कुछ ऐसा मिल जाता था जो मुझे ध्यान नहीं रहा होता था या ध्यान से उतर गया होता था। यही अंतर था उन से सलाह लेने का। वह अपना समय कंपनी को आगे ले जाने और नये क्षेत्रों में विस्तार करने में लगाते थे। इस में भी मैं ही उन के साथ होता था।

अब उन के जाने के बाद मैं बड़ा अकेला हो गया था, किसी से बात भी नहीं कर सकता था। जब अकेलापन ज्यादा खलने लगा तो सोचा कि साहब की पत्नी से कहुँगा कि वह कुछ देर के लिये ऑफिस आया करें। मुझे कोई बात करने वाला सलाह लेने वाला मिल जायेगा। देखते है वह इस का क्या जबाव देती है। व्यवसाय से उनका कोई रिश्ता नही था। उन से मेरा मिलना रोज होता था घर से निकल कर पहले मैं उन के पास जाता था उन की आवश्यकता आदि की जानकारी ले कर ही मैं कंपनी ऑफिस आता था। यह मेरा रोज का रुटिन था। उन की जिम्मेदारी भी अब मेरी ही थी।

आज जब सुबह उन से मिला तो मैंने अपने मन की बात उन के सम्मुख रखी तो वह बोली कि मेरा व्यवसाय से कोई नाता नहीं है। मैं ऑफिस जा कर क्या करुँगी तो मैंने कहा कि मुझे वहाँ बहुत अकेलापन लगता है किसी से बात नहीं कर सकता, काम के बारें में राय नहीं ले सकता। आप होगी तो कुछ बातचीत ही हो जायेगी इस बहाने आप का समय भी कट जायेगा। वह हँस कर बोली की काम के मामले में मैं भला आप को क्या सलाह दूगीं? हाँ यह तो है कि मेरा समय कट जायेगा लेकिन मैं रोज नहीं जा सकती और ना ही आप के साथ जा सकती हूँ आप के बाद देर में घर का काम निबटा कर ही आ पाऊंगी।

मैं कहा ही जब आप का मन करें तब आप आ जाये। मैं आप के लिये ऑफिस बनवाता हूँ यह सुन कर वह बोली कि नहीं ऐसा नहीं करना नहीं तो लोगों को लगेगा कि मेरे और आप में कुछ अनबन हो रही है। मुझे उन की बात समझ में आ गयी और हँस कर बोला कि अभी-अभी आप ने कितनी कीमती सलाह दी है। वह मुस्करा कर बोली कि आप के साथ ही बैठ जाया करुँगी। कुछ देर बाद वापस आ जाया करुँगी यह चलेगा? मैंने कहा कि हाँ यही सही रहेगा। उन की बात से मेरे मन का एक बोझ उतर सा गया।

ऑफिस में साहब और मैं दोनों ही साथ-साथ बैठते थे सो कुछ करने की जरुरत नहीं थी। अगले दिन 12 बजे साहब की पत्नी ऑफिस आयी और मेरे साथ बैठ गयी। आज कंपनी के मैनेजरों के साथ मिटिंग थी मैंने उन्हें बता दिया था कि क्या होगा और हमें क्या करना है। मिटिंग में सब मैनेजर अपने-अपने डिपार्टमेन्टों के बारे में रिपोर्ट पेश कर रहे थे और मैं बीच बीच में उन से सवाल कर रहा था। वह बड़े ध्यान से सब कुछ सुन रही थी। कुछ मैनेजरों के जबाव से मैं संतुष्ट नही था, पिछली मिटिंग और अब में कोई बदलाव नहीं हुआ था। वह यह देख रही थी कि मेरे पास कोई कागज नहीं था लेकिन मुझे पिछली मिटिंग का सब कुछ याद था, यह देख कर वह शायद कुछ अचम्भित सी लग रही थी।

मिटिंग खत्म होने के बाद जब सब चले गये तो वह मेरे से बोली कि इतना सब कैसे याद रखते है? मैंने कहा कि जब रात दिन काम के बारें में सोचने लगते है तो सब याद रहने लगता है। हम दोनों ने आज एक साथ खाना खाया। खाने के बाद वह बोली कि आप घर कब जायेगे? मैंने कहा कि पांच बजे के बाद जाऊंगा तो वह बोली की मैं आप के साथ ही चलुँगी। आप से कुछ बात करनी है। शाम को वह और मैं एक ही कार में उन के घर के लिये निकले उन की कार ड्राईवर ला रहा था।

रास्तें में वह बोली कि आप को इतना काम नहीं करना चाहिये। कुछ आराम भी कर किजिये। आज ही मेरी आप की पत्नी से बात हुई तो पता चला कि रात को भी आप काफी लेट घर पहुँचे थे। मैंने उन्हें बताया कि कल कोई काम निकल आया था सो इस लिये देर हो गयी थी नहीं तो शाम को समय से पहुँच जाता हूँ। वह बोली कि आप कोई अच्छा सा स्कुल देख कर रोहित को होस्टल भेज दो ताकि वह अपनी पढाई में ध्यान दे सके। साहब की भी यही इच्छा थी यह मुझे पता था मैंने कहा कि मैंने एक जगह बात कर ली है अगले हफ्ते आप और मैं चल कर उसे दाखिल करा देते है। मैनें उन से पुछा कि इस के बाद आप एकदम अकेली हो जायेगी तो वह बोली कि अकेली तो मैं हो ही गयी हूँ जो ईश्वर की इच्छा, लेकिन इस की पढ़ाई से कोई समझौता नहीं कर सकती हुँ।

फिर कुछ रुक कर बोली की आप तो है मैं अपना अकेलापन दूर करने के लिये आप के साथ रोज ऑफिस आया करुँगी। समय कट जायेगा। कुछ सीख भी पाऊँगी। उन की बात सुन कर मैं चुप रहा। उन को घर छोड़ कर मैं अपने घर की तरफ निकल गया जो कुछ दूर ही था। आज एक नया विचार मेरे दिमाग में आया कि दोनों परिवारों को एक साथ ही रहना चाहिये ताकि मैं दोनों की देखभाल कर सकुँ। मेरे लिये तो यह विचार सही था लेकिन उन के विचार भी जानने जरुरी थे। क्या ऐसा करने से उन की प्राईवेसी में कोई दखल तो नहीं दे रहा था मैं?

रात को पत्नी से इस बारें में बात की तो वह बोली कि बढ़िया विचार है एक-साथ रहने से एक-दूसरें का सहारा बन सकेगें और तुम्हारी भाग-दौड़ कुछ कम हो जायेगी। सुबह जब उन के घर उन से मिला तो मैंने यह बात उन को बताई तो वह बोली कि आइडिया तो अच्छा है, एक साथ रहने से देखभाल करने में आसानी रहेगी और आप की भाग-दौड़ कम हो जायेगी, हमारी जिम्मेदारी भी आपकी है जैसा आप सही समझें करे। मेरा घर तो साहब के घर के स्तर से कम ही था लेकिन अब उस के स्तर को भी बढ़ाना जरुरी था। सबसे महत्वपुर्ण काम था देखभाल में आसानी। साहब के घर में मेरा आ कर रहना सही नहीं लग रहा था। फिर सोचा कि किसी बढिया जगह दो फ्लैट एक-साथ ले लेते है। यही सही लगा तो लोगों को काम में लगा दिया। कुछ दिन बाद वह और मैं जा कर उन के बेटे का दाखिला एक बढ़िया स्कुल में करवा आये।

इस के बाद घर बदलने के लिये प्रयास किये। प्रयासों में सफलता भी मिली। एक जगह दो पेंटहाऊस एक साथ मिल गये तो उन्हें खरीद लिया। पुरी मंजिल हमारी ही थी। नौकरों के रहने के क्वाटर भी अलग बने थे। इन पेंटहाऊसों में सजावट का काम होने लगा। तीन महीनें के बाद इन में हम ने ग्रहप्रवेश कर लिया। ज्यादा लोगों को नहीं बुलाया था। करीबी लोग ही आये। हम दोनों को पता था कि साहब के रिश्तेदार उन से नहीं रखते थे मैं भी किसी से ज्यादा नहीं रखता था। अपने नये घरों में दोनों परिवार खुश थे। वह भी खुश थी कि सारा दिन तो मेरे साथ रहती थी और शाम को भी हमारे साथ ही खाना खाती थी। दोनों परिवारों के बीच संबंध गहरे हो रहे थे। यह कितने गहरे हो गये थे यह मुझे आगे चल कर पता चलने वाला था जिस के लिये मैं बिल्कुल तैयार नहीं था।

समय ऐसे ही गुजरने लगा। एक दिन साहब की पत्नी जिनका नाम माधवी था मुझ से बोली की कुछ शॉपिग करनी है शाम को कही चलते है। मैंने कहा कि कुछ देर बाद खाली हो जायेंगें तो चले चलेगे। काम खत्म होने के बाद मैं और वह शहर के सबसे मशहुर मॉल में शॉपिग के लिये पहुँच गये। मैं किसी मॉल में काफी समय के बाद आया था मेरा सारा काम मेरी पत्नी ही करती थी इस लिये मैं शॉपिग के लिये कही आजा जाता नहीं था। माधवी जी शॉपिग करने लगी अपने लिये कपड़े खरीद कर वह पुरुषों के सैक्शन में मुझे ले कर गयी और बोली कि काफी समय से देख रही हूँ कि आप वही पुराने कपड़े पहन रहे है। कंपनी पैसा कमा रही है लेकिन मालिक पुराने कपड़े पहन रहा है कुछ सही नहीं लगता है। यह कह कर वह मेरे लिये कपड़ें पसन्द करने लग गयी। मैं चुपचाप उन से साथ लगा रहा।

सुट के सैक्शन में दो-तीन सुट पसन्द किये और कुछ शर्ट पेंट पसन्द करके ऑल्टरेशन के लिये दे दी। मेरे को चुपचाप देख कर बोली कि कभी तो कुछ बोल लिया किजिये। मैंने कहा कि क्या बोलूं तो वह हँस कर बोली कि यह भी मैं ही बताऊँ? इस के बाद उन्हें कुछ ध्यान आया तो मेरा हाथ पकड़ कर लॉन्जरी सैक्शन में चली आयी, मेरी तरफ शरारत से देख कर बोली कि कोई परेशानी तो नहीं हो रही है। मैंने कहा कि नहीं आप अपना काम करिये। वह बोली कि आप को सहायता करने के लिये लाई हुँ आप की पत्नी से ही पता चला है कि इस विषय की बहुत जानकारी है आप को। मैंने कहा कि हाँ है सही बताये क्या परेशानी है तो वह बोली कि सही साईज नहीं मिल रहा है। मैंने एक अटैन्डेन्ट को बुला कर कहा कि मैडम का नाप लो और कुछ बी और सी कप की पुशअप ब्रा निकाल कर दो। लड़की मेरी बात सुन कर इन्चीटेप लेने चली गयी, माधवी जी मेरी तरफ हैरानी से देखती रही।

लड़की ने आ कर उन का नाप लिया और कहा कि सर सही कह रहे है आप को 36 बी या सी कप की ब्रा ट्राइ करनी चाहिये। यह कह कर वह ब्रा लेने चली गयी थोड़ी देर बाद कुछ ब्रा हाथ में ले कर वापस आयी और माधवी जी के साथ ट्राइल रुम की तरफ चली गयी। मैं वही खड़ा इंतजार करने लगा। कुछ देर बाद वह कुछ और ब्रा ले कर ट्राइल रुम में गयी। दस मिनट बाद माधवी जी ट्राइल रुम में से बाहर निकली उन के हाथ में पसन्द की हुई ब्रा थी। लड़की ब्रा के लेकर पेमेंट के लिये काउन्टर पर चली गयी। मैंनें कार्ड दे कर पेमेंट कर दिया।

ब्रा का बैग लेकर जब हम कपड़ों के सैक्शन में वापस जा रहे थे तो माधवी जी मेरे कान में फुसफुसाई, आप को मेरे साईज के बारें में कैसे पता चला? आज वह अलग ही मुड में थी सो मैंनें भी उसी मुड में जबाव दिया कि आप यह क्यों भुल जाती है कि मैं लम्बे समय से विवाहित हुँ और दो-दो महिलाओं के साथ रहता हूँ। यह कह कर मैंने मुस्करा कर उन की तरफ देखा तो वह भी शरारत से मुस्करा रही थी। कुछ नही बोली।

रास्तें में कार में हम दोनों ही थे। वह बोली कि आज पता चला कि आप कितनी तेज नजर रखते है। मुझे तो लगता था कि आप कभी मुझे नजरें ऊठा कर भी नही देखते है। मैं कहा कि सही कह रही है मैं आप को नजरें झुका कर ही देखता हूँ आज पहली बार शायद मैंने आप को ध्यान से देखा है। वह बोली कि पहली बार में ही साईज का पता लगा लिया। बड़े छुपे रुस्तम है आप। मैं चुप रहा और गाड़ी ड्राइव करता रहा।

कुछ देर बाद चुप्पी तोड़ने के लिये उन से पुछा कि आप को मेरे सुट का साईज कैसे पता चला तो वह बोली की आप इन से पतले है इस लिये अंदाजे से कहा और वह सही निकल आया, आप के साथ इतने दिनों से घंटों बैठती हूँ काम करती हूँ आप को चलते फिरते देखती हूँ तो इतना तो समझ ही सकती हूँ । मैंने हँस कर कहा कि आप के सवाल का भी यही जबाव है, इस पर वह खिलखिला कर हँस पड़ी और बोली कि आप से बातों में कोई जीत नहीं सकता हैं, मैं तो सोचती थी कि कम बोलने के कारण आप को समझना कठिन होगा लेकिन आप में और मुझ में तो अच्छी जम रही है। आप बिना कुछ कहें मेरे मन की बात जान जाते है और मुझे भी लगने लगा है कि मैं आप के मन में क्या है यह जान जाती हूँ।

मैंने कहा कि आप अब मित्र बन गयी है। इसी लिये ऐसा लग रहा है। मेरे यह कहने पर वह बोली कि सिर्फ मित्र ही या कुछ और? मैंने मजाक में कहा कि आप मालिक है जैसा कहे। वह बोली की अब आप मालिक है। मैंने कहा कि यह रिश्ता कभी नहीं बदल सकता, साहब मेरे मालिक थे, उन के बाद आप उन की जगह पर है। मेरी बात सुन कर वह बोली कि साहब अब नहीं रहे, अब हम सब के लिये उन की जगह पर आप ही है इस लिये आप को मालिक कह रही हूँ। मैंने जबाव दिया कि आप सब में से नहीं है। वह बोली कि आप से पुछना चाहती थी कि आप के लिये मैं क्या हूँ? इस को सुन का मैं सकपका गया और चुप हो गया। कुछ देर बाद वह बोली कि मुझे मेरे सवाल के जबाव का इंतजार रहेगा।