रहस्यमय संबंध

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घर पहुँच कर वह पत्नी को कपड़ें दिखाने लगी, मुझे पता नही था कि वह पत्नी के लिये भी कपड़े खरीद कर लायी थी। पत्नी अपने कपड़ें देख कर खुश थी। उस ने माधवी जी से पुछा कि इन्होनें शॉपिंग में सहायता कि या एक जगह पर खड़े रहे? इस पर माधवी बोली कि नहीं आज तो मेरी काफी हैल्प की है इन्होनें। इस के बाद उन्होने मेरे लिये खरीदे हुए सुट और पेंट शर्ट भी पत्नी को दिखाये तो वह बोली कि काफी दिनों के बाद इन के लिये कपड़ें आये है इन्होनें तो नये कपड़ें पहनना ही बंद कर दिया था। माधवी जी बोली कि कंपनी उन्नति कर रही है और उस का मालिक पुराने कपड़ें पहन रहा है यह तो सही नहीं लगता इस लिये आज इन के लिय कुछ कपड़ें खरीद ही डाले। फिर वह अपना सामान ले कर अपने फ्लैट में चली गयी।

उन के जाने के बाद पत्नी मुझे देख कर बोली कि मेरे साथ चलने के लिये तो आपके पास समय नही है, इस पर मैंने कहा कि उन्होनें दोपहर में मॉल चलने को कहा, मैं खाली था सो चला गया वैसे भी तुम मेरे साथ शॉपिग करने जाती नहीं हो। यह सुन कर वह बोली कि सही बात है मैं तो तुम्हारें साथ जाती नहीं हूँ उन को पुराने कपड़ें बुरें लगे तो उन्होनें नये खरीद दिऐ। अच्छा है कोई तो तुम्हारी तरफ ध्यान देता है। यह सुन कर मेरे दिमाग में खतरे की घंटी बज गयी। लगा कि यह बात कही बढ़ ना जाये।

असमंजस

इस बात को मैंने महसुस किया कि माधवी जी का ध्यान मुझ पर ज्यादा रहता था कपड़े, खाने और मेरी हर तरह की सुविधाओं का वह पुरी तरह से ध्यान रखती थी। मुझे अच्छा तो लगता था लेकिन डरता था कि इस के कारण कही मेरी पत्नी के मन के कोई शंका ना उत्पन्न हो जाये लेकिन कुछ कर नही सकता था। एक दिन हम दोनों अकेले थे तब मैंने उन से कहा कि आप मेरी इतनी चिन्ता ना करा करें, यह सुन कर वह बोली कि यह कहने वाले आप कौन होते है जब आप हम सब की देखभाल करते है तो हमारी जिम्मेदारी है कि हम भी आप का ख्याल रखे। आज तो आप ने कहा आइन्दा मत कहियेगा।

यह सुन कर मैं चुप हो गया। मुझे चुप देख कर वह बोली की आप नाराज तो नही है मैंने कहा कि नाराज क्यो होऊँगा, लेकिन इतने लॉड-प्यार की आदत नहीं है इस लिये अटपटा सा लग रहा है। वह बोली कि आदत नहीं है तो डाल लिजिये अब से तो ऐसा ही होगा। मुझे भी तो कोई चाहिये मैं जिस की चिन्ता करुँ उस के बारे में सोचुँ। आप अपने मन की करते है तो क्या मैं अपने मन की नही कर सकती। यह कह कर वह रुआंसी सी हो गयी। यह देख कर मैं घबरा गया और उन से बोला कि मेरी बात का बुरा ना मानें मैंने बताया कि मुझे इस की आदत नहीं है लेकिन धीरे-धीरे पड़ जायेगी। मेरी यह बात सुन कर वह मुस्करा दी।

माधवी जी बोली कि आप काम करके थक गये है कुछ दिनों के लिये कहीं घुमने क्यों नही चलते? मैंने कहा कि विचार तो अच्छा है, जगह सोच कर बताइयेगा, मेरी बात पर वह बोली कि आइडिया दे दिया है अब इस पर काम करना आप की जिम्मेदारी है। मैंने मजाक में कहा कि जरुर मैडम। मेरे जबाव सुन कर वह खिलखिला कर हँस पड़ी और बोली कि यह रुप आप ने छुपा कर क्यों रखा है? मैंने कहा कि मजबुरी है फिर कभी बताऊँगा।

मुझे समझ आ रहा था कि मेरी और माधवी जी की नजदीकियाँ बढ़ रही थी। इन्हें बढ़ने से कोई रोक भी नही सकता था। मुझे डर था कि यह कहाँ पर जा कर रुकेगी और क्या परिणाम होगा? मैं माधवी के एडवान्सिस को ठुकरा भी नहीं सकता था। लेकिन मन में एक चोर सा रहता था कि अपने मालिक की विधवा के साथ निकटता क्या सही है? एक तरह की ग्लानि सी महसुस होती थी। कंपनी के काम से हम दोनों को गोवा जाना पड़ा, कुछ और स्टाफ भी था। दो दिन बाद काम खत्म होने के बाद माधवी मेरे से बोली कि स्टाफ को जाने देते है हम दोनों दो-तीन दिन गोवा में घुमते है।

इस होटल को भी बदल लेते है। स्टाफ को मैंने बता दिया कि हम कुछ दिन बाद आयेगे। वह सब वापस चले गये उन के जाने के बाद हम नें उस होटल को छोड़ कर समुद्र के किनारे स्थित होटल में कमरा लिया मैं अलग-अलग कमरें ले रहा था तभी माधवी ने सुइट ले लिया। वेटर सामान रख कर चला गया। मैं असमंजस में कमरे में खड़ा था तो वह यह देख कर बोली कि मेरे साथ रहने में डर लग रहा है?

डर किस बात का?

समाज का?

नही तो

किसी और का

नहीं

फिर क्या बात है बताते क्यों नही

क्या बताऊँ?

मत बताओं, लेकिन रहना तो मेरे साथ ही पड़ेगा

मना कौन कर रहा है

हाँ भी तो नहीं कर रहें

और कैसे करुँ

मुस्कराओं कपड़ें बदलों

मैं कपड़ें बदलने लगा। कपड़े बदल कर हम दोनों बीच के किनारे घुमने लगे। ठंड़ी हवा में समुद्र के किनारे दोनों टहलते रहे। रास्ते में माधवी जी मुझ से बोली कि आप को अपने लिये भी जीना चाहिये। दुनिया के लिये काफी जी लिये है। कभी तो मन की सुना करो। फिर बोली कि स्वीमिंग पुल में चलेगे, बरसों से नहीं गयी हूँ। टहलने के बाद समुद्र के किनारे रेत पर बैठे रहे और बातें करते हूए समुद्र की आती जाती लहरों को देखते रहे। धुप जब बढ़ी तो होटल वापस चले आये। रेस्टोरेंट में जा कर नाश्ता किया और आराम करने के लिये रुम में आ गये। नाश्ते के बाद लेटते ही मुझे नींद आ गयी और मैं सो गया। जब नींद खुली तो देखा कि माधवी जी मेरी बगल में लेटी थी उन का एक हाथ और टांग मेरे ऊपर रखा हुआ था। मैं उन्हें नींद से जगाना नहीं चाहता था इस लिये चुपचाप पड़ा रहा। सोती हुई माधवी जी बड़ी प्यारी लग रही थी। चेहरे पर मुस्कान थी। निष्क्षलता चेहरे पर झलक रही थी।

मन में विचार आया कि मैं क्यों इन्हें अपने से दूर रख कर कष्ट दे रहा हुँ इन के पास भी क्या बचा है? हम दोनों ही हर समय काम ही काम में लगे रहते है। पैसा कमा रहे है लेकिन उसे उपभोग नहीं कर रहे आखिर ऐसी जिन्दगी का क्या फायदा है? फिर मन में विचार आया कि अपने मालिक की विधवा से संबंध लोग क्या कहेगें, मन ने कहा कि लोग तो अभी भी कुछ ना कुछ कहते होगे, उन की जबान कोई नहीं बंद कर सकता। फिर विचार आया कि मालिक के अहसानों का यही बदला देगा? मन ने कहा कि मालिक तो अब है नहीं यह अब तुम्हारी जिम्मेदारी है तो उन की इच्छा का भी तो ख्याल तुम्हें ही रखना पड़ेगा। पत्नी से तो शारीरिक संबंध जाने कब से खत्म से हो गये है। उस की प्यार की परिभाषा भी अलग ही है। अब अगर इस उम्र के पड़ाव में कोई लगाव कर रहा है तो उसे ठुकराना सही नहीं होगा। लेकिन मन नहीं मान रहा था।

अचानक ध्यान आया कि मालिक साहब के खत में क्या लिखा है उसे खोल कर देखना होगा लेकिन वह तो इस समय यहाँ पर नहीं था। यही सब दिमाग में चल रहा था कि माधवी जी कसमसा कर उठ गयी। मुझे जगा देख और अपने को देखते देख बोली कि कब से जगे हो? मैंने कहा ज्यादा देर नहीं हुई है। मुझे जगाया क्यों नहीं। मैंने कहा कि आप सो रही थी इस लिये नहीं जगाया। यह सुन कर वह शरारत से बोली कि यह क्यों नहीं कहते कि चुपके से देखने का मौका मिल रहा था। मैंने कहा कि हाँ आप को ही देख रहा था, वह हँस कर बोली कि पास लेटी को बस देख कर ही काम चला रहे थे? मैंने कहा कि अब चिढाना बंद करो। वह बोली कि चि़ढ़ तो तुम रहे हो। मैं तो बस पुछ रही हूँ।

मैंने कहा कि चलों स्वीमिग पूल में नहाने चलना था, इस पर जबाव मिला कि अकेले जाने का क्या फायदा है साथ में तो कोई नहीं है। मैंने कहा कि अकेली कहाँ हो मैं भी तो चल रहा हूँ, पहले कभी पानी में उतरा नहीं हुँ मेरा ध्यान रखना। यह सुन कर माधवी के चेहरे पर चमक आ गयी और वह बोली की उठों तुम्हारें लिये कॉस्टुयुम भी तो लेने है। हम दोनों स्वीमिग पूल की तरफ चल दिये। स्वीमिग पूल खाली था दोनों नें कॉस्टुयुम बदले और पानी में उतर गये। मैं तो शायद पहली बार ही उतरा था, सो थोड़ा सकपकाया सा था। माधवी पानी का मज़ा ले रही थी। स्वीमिंग ड्रेस में खुबसुरत लग रही थी, मुझे शॉटस् में देख कर बोली कि आप भी जम रहे हो हम दोनों काफी देर तक पानी में मस्ती करते रहे फिर जब थक गये तो कपड़े बदल कर रुम में वापस आ गये।

रुम में आने के बाद माधवी नें मुझे चुकटी काट कर कहा कि मुझे विश्वास नही हो रहा है कि यह सब कुछ हो रहा है आप मेरी चुकटी काटों। मैंने उसे नोच कर कहा कि सब कुछ हो रहा है कुछ भी सपना नहीं है। उस ने मेरे पेट पर हाथ फिरा कर कहा कि आप के तो सिक्स पैक दिख रहे थे। मैंने कहा कि अब मजाक मत उड़ाओं तो वह बोली कि मैंने तो आप को पहली बार ऐसे देखा है सो जो देखा है वही कह रही हूँ। यह कह कर उस ने मेरी टीशर्ट उठा कर पेट नंगा कर दिया। मैंने गरदन झुका कर देखा तो वहाँ पर मांस नहीं था केवल मसल्स ही दिख रहे थे जिन्हें वह पैक कह रही थी। मैंने हँस कर कहा कि वजन कम होने के कारण ऐसा लग रहा है।

शाम घिर आयी थी, खिड़की से समुद्र पर पड़ती रोशनियां अच्छी लग रही थी। होटल का अपना समुद्र तट था इस लिये भीड़ भाड़ नहीं थी। मन फिर से समुद्री रेत पर चलने का कर रहा था सो दोनों फिर से समुद्र किनारे चले गये। रेत पर बैठ कर समुद्र को निहारने लगे। माधवी जी का हाथ धीरे से मेरे हाथ पर आ गया और फिर वही पर रखा रहा। मैंने भी अपना हाथ हटाया नहीं। दोनों के बीच जो पनप रहा था वह धीरे धीरे बढ़ रहा था, लगाव पहले जाहिर नहीं किया जाता था लेकिन एकान्त में उसे जाहिर करने में हो रही झिझक खत्म हो गयी थी इस लिये उस का इजहार भी होने लगा था दोनों तरफ से। कोई इसे नहीं रोक सकता था यह तो प्रवाह था जिस में सब कुछ बह जाना था। मैं भी इस प्रवाह के आगे ज्यादा देर तक टिक नहीं पाऊँगा ऐसा मुझे लग रहा था। मैं अपने को बड़ा असहाय महसुस कर रहा था लेकिन मन में चल रहे द्वन्द का कोई हल नहीं सुझ रहा था।

जब रात घिर आयी हम उठ कर होटल की तरफ चले तो रास्तें में एक दुकान में चले गये वहाँ से गोवा के लोकल म्यूजिक की आवाज आ रही थी। अंदर बड़ा शोर था। हम दोनों एक कोनें की खाली सीट पर बैठ गये। यह भी गोवा की जिन्दगी का एक अंदाज है, वेटर आया तो उस से कुछ खाने के लिये मँगा लिया और बियर भी ऑडर कर दी। कुछ देर बाद वेटर पकोड़ें की प्लेट और दो बोतल बीयर की रख गया। हम दोनों भी उस माहौल के वशीभूत हो कर पकोड़ें खाते रहे और बीयर पीते रहे। अच्छा लग रहा था, शायद हम दो कैदियों को जो आजादी मिली थी उस का भरपूर मजा लेना चाह रहे थे। बीयर की बोतलें खत्म करने के बाद बिल चुका कर हम दोनों होटल वापस आ गये। अब खाना खाने के लिये रेस्टोरेंट जाने की हालत नहीं थी सो रुम सर्विस पर खाना ऑडर कर दिया। आधा घंटे के बाद वेटर खाना रख कर चला गया। दोनों बीयर के हल्कें नशें में थे, भुख भी लग रही थी सो खाने पर टूट पड़ें और सारा खाना खा गये।

समुद्र के किनारे बैठे रहने के कारण शरीर चिपचिपा हो रहा था सो सोने से पहले नहाना जरुरी था। खाना खाने के बाद कुछ देर टीवी देखते रहे फिर मैं नहाने चला गया क्योकि मुझे नींद आ रही थी और बिना नहाये में सो नहीं सकता था। नहा कर निकला तो माधवी ने मेरा नाइट सुट निकाल कर बेड पर रख दिया था मेरे बाद वह भी नहाने चली गयी। नहा कर आयी तो मैं उसे देखने का लोभ नहीं छोड़ पाया मुझे अपने को घुरते देख उस ने कहा कि ज्यादा लालायित मत होओ। उस की बात सुन कर मैं चुप रहा और अपना चेहरा दूसरी तरफ कर लिया। नहाने के बाद शायद नशा कुछ ज्यादा ही हो गया था सो मैं बेड के एक किनारें पर चद्दर ओड़ कर लेट गया लेटते ही नींद आ गयी। मुझे नहीं पता चला कि माधवी कब सोने आयी।

रात को जब नींद खुली तो देखा कि माधवी बेड के दूसरे कोने पर लेटी थी, वह भी शायद सो रही थी, मैं उठ कर वाशरुम गया और जब वहाँ से वापस आया तो देखा कि माधवी जग गयी है। मुझे लगा कि अब तो कुछ हो कर रहेगा। जो होना है उसे मैं रोक नहीं सकता था। हम दोनों ही मन ही मन उसे होने देना चाहतें थे लेकिन मेरा मन उसे रोकना चाहता था लेकिन वह उसे रोक नहीं सकता था। मैंने रुम की लाईट बंद की और नाइट लेंप जला दिया। मैं बेड पर अपने किनारे पर आ कर लेटा तो कुछ देर बाद माधवी खिसक कर मेरे समीप आ गयी।

उस की सांसों की आवाज मुझे सुनाई दे रही थी। फिर पता नहीं क्या हुआ कि वह उठी और उस ने नाइटलेंप भी स्वीचऑफ कर दिया। रुम में अब घुपाघुप अंधेरा था। शायद हम दोनों को ऐसे अंधेरे की ही जरुरत थी। माधवी के हाथ मेरी छाती पर पहुंचें और उस के पांव मेरे पांव पर आ गये। अब मेरा कंट्रोल अपने से हट गया मैंने करवट बदल कर माधवी की तरफ मुँह कर लिया और उसे अपनी तरफ सरकाया तो वह बोली कि किनारे पर हो नीचे गिर जाओगें, बीच में आओ उस की बात समझ कर मैं उस की तरफ सरक गया।

हम दोनों एक दूसरे के सामने थे, सालों से जो रोक हमने अपने आप पर लगा रखी थी वह टूट गयी और दोनों आलिंगन में बंध गये। दोनों एक दूसरें के शरीर की गरमाहट का आनंद लेने लगे फिर दोनों के होंठों नें कमान अपने हाथ में ले ली और चुम्बनों की झड़ी लग गयी। जब सांस फुल गयी तो अलग हुये। उस के बाद दोनों के हाथ एक-दूसरे के शरीर को नापने लगे। कब ऊचांईयों का मर्दन हुआ कब गहराईयों को मापा गया पता नहीं चला। कपड़ें कब शरीर से अलग हुये किसी को पता नहीं लगा। दोनों के शरीर में जो आग इतने दिनों से लगी थी उसे आज बुझा देनें में दोनों लग गये।

दोनों इस खेल के पुराने खिलाड़ी थे, आहें, कराहें, सिसकियां कमरें में भर गयी। जब वासना पुरे जोर पर थी तब दोनों के शरीर एक हो गये, मुझे डर था कि मैं कुछ कर पाऊँगा या नहीं क्योंकि मैं तो सब कुछ भुल सा गया था लेकिन शरीर तो कुछ नहीं भुला था सो खेल के लिये पुरी तरह से तैयार था। दौड़ शुरु हो गयी, पहले धीरे दौड़ें फिर रफ्तार बढ़ गयी, कोई रुकने को तैयार नहीं था, फच-फच की आवाज कमरें में गुँज रही थी। एक तो नशा फिर पुरानी प्यास, प्रहार पे प्रहार, काटना, चुमना, नोचना क्या कुछ नहीं हो रहा था। आदिम अवस्था में प्यार का इजहार किया जा रहा था।

आदिम खेल तो अपनी ही शर्तों पर खेला जाता है सो खेला जा रहा था कोई थकान, कोई डर अब किसी को नहीं था। उस आदिम दौड़ के थमने के आसार नहीं दिख रहें थे। दोनों बिस्तर पर इधर-उधर लुढ़क रहे थे कभी कोई किसी के ऊपर होता तो कभी कोई किसी के नीचे। काफी देर तक वासना का खेल चलता रहा। फिर जब ज्वालामुखी फटा तो दोनों एक दूसरें पर पस्त हो कर पड़ गये। ज्वााला जब धधक कर बुझ गयी तो कमरें में शांति छा गयी। सिर्फ उखड़ी हुई और गहरी सांसों का शोर बचा था। वह भी धीरे-धीरे मध्यम होता चला गया। जो होना था सो हो कर रहा। कोई उसे रोक नहीं पाया। शायद कोई उसे रोकना ही नहीं चाहता था।

मेरी नींद मोबाइल के अलार्म की आवाज से खुली। आँख खोल कर देखा तो मैं बेड के बीचो-बीच लेटा था तथा माधवी मुझ से लिपट कर सोई पड़ी थी। रात के तुफान के चिन्ह पुरे बिस्तर पर और हमारें शरीरों पर बिखरे पड़े थे। चद्दरें नीचे गिरी पड़ी थी। मेरा सारा शरीर दर्द कर रहा था। मैंने माधवी के अलग करके लिटा दिया और नीचे से चद्दर उठा कर उसे उढ़ा दी। फिर अपने कपड़ें नीचे से उठा कर पहनें, बहुत तेज प्रेशर लग रहा था सो जल्दी से वाशरुम में चला गया। वहाँ निजी अंगों को धो कर साफ करके आया। माधवी अभी सो रही थी। उस के कपड़ें भी उठा कर एक तरफ रख दिये। रुम की हालत सही की। सुबह के छः बजे थे। दिन निकले वाला था। माधवी को ऊठाऊँ या नहीं यह सोच ही रहा था कि वह कुनमुनाती हुई आँखे मसलती हुई उठ गयी। मुझे देख कर मुस्कराई और बोली गुड मोर्निग। मैंने भी उसे गुड मोर्निग कहा और उस के पास बैठ गया।

उस ने चद्दर को अपने से पुरी तरह से लपेट लिया। मुझे लगा कि वह मुझ से शर्मा रही है शायद इस लिये ऐसा कर रही है सो मैंने कहा कि मैं दूसरे कमरें में जा रहा हूँ वह कपड़ें पहन ले। यह कह कर मैं कमरें से निकल गया। दरवाजा बंद कर लिया। कुछ देर बाद उस की आवाज आयी कि, आ जाओं तो मैं दरवाजा खोल कर कमरें में वापस लौटा। वह कपड़ें पहन चुकी थी और कुर्सी पर बैठी थी। रात की घटना का कोई असर उस पर नहीं दिख रहा था। बल्कि उस का चेहरा तो चमक रहा था। उस ने बेड को भी सही कर दिया था। मुझे देख कर बोली कि चाय ऑडर कर दी है चाय पीते है उस के बाद सोचेगें कि आज क्या करना है।

मुझे गोवा के बारें में कुछ नहीं पता था, कभी ऐसा वक्त था कि मैं भारत की किसी भी शहर के बारें में बता सकता था लेकिन पिछलें पांच सालों के दौरान मेरा ध्यान इन सब से हट गया था। अब केवल काम ही काम था उस के सिवा कुछ नहीं। चाय पीने के बाद शरीर में स्फूरती सी आ गयी। मैं नहाने के लिये वाशरुम में चला गया, जब नहा रहा था तब शरीर पर पानी पड़ने के बाद पता चला कि पीठ और छाती पर खरोचें लगी हुई थी और पानी लगने पर वह दर्द कर रही थी। समझ नहीं आ रहा था कि क्या करुं? एक बात तो पक्की थी कि रात को हमारा संभोग बहुत जोरदार था।

जब मेरे शरीर का यह हाल था तो माधवी के शरीर का क्या हाल होगा? नहा कर जब मैं निकला तो मेरे कपड़ें माधवी ने निकाल कर रख दिये थे उस की नजर मेरे जख्मों पर पड़ गयी थी, उस ने कुछ पुछा नहीं मैंने कुछ कहा नहीं। मैं कपड़ें पहन कर तैयार हो गया। माधवी देर में नहा कर निकली, मुझ से रहा नहीं गया और उस से पुछा कि शरीर पर खरोचें तो नहीं है वह मुस्करा कर रह गयी, उस की मुस्कराहट ने सारा राज खोल दिया था, उस के शरीर पर भी प्रेम के प्रतीक चिन्ह अंकित हुये थे। हम दोनों में से कोई भी रात को लेकर कुछ बात नहीं करना चाहता था।

रेस्टोरेंट में जा कर नाश्ता करने के बाद माधवी बोली कि यहाँ पर एक पुराना किला है उसे देखने चलते है। मैंने होटल वालों को कार के लिये कह दिया। बाहर कार जब आ गयी तो उन्होनें हमें बता दिया। कार में बैठ कर उसे बताया कि कहाँ जाना है सो वह वहाँ के लिये निकल पड़ा। गोवा का मौसम बड़ा चिपचिपा होता है तो हम दोनों कुछ देर घुमने के बाद थक गये। एक-दो ऐतिहासिक स्थल देख कर वापस होटल के लिये चल दिये। रास्तें में मेडीसन की दूकान दिखी तो कार को रुकवा कर उस से एक ऐन्टीसेप्टिक टयूब खरीद लाया।

रुम में आ कर मैं बोला कि इस गर्मी में तो लगता है बीमार पड़ जाऊँगा। माधवी भी बोली कि बाहर नहीं जा सकते, स्वीमिग पूल में चलते है, शाम को समुद्र किनारे चलेगे। मैंने उस की बात पर सर हिला दिया। कुछ देर बाद जब स्वीमिंग पूल के लिये चलने लगे तो मेरी पीठ के निशान देख कर माधवी बोली कि निशान गहरें है पानी में इन्फेक्शन होने का डर है इस लिये वहाँ जाना कैन्सल करते है। मैंने जेब से क्रीम निकाल कर कहा कि तुम इसे मेरी पीठ पर लगा तो ताकि कुछ आराम पड़े। उस ने मेरी पीठ के जख्मों पर क्रीम लगा दी, क्रीम लगने से जख्मों में हो रही जलन कुछ कम हो गयी। मैंने माधवी से कहा कि वह भी अपने जख्मों पर क्रीम को लगा ले आराम मिलेगा तो वह बोली कि नहीं अपने आप सही हो जायेंगे। इस के बाद मैंने कुछ नहीं कहा।

खाना रुम में ही मगवाँ लिया था, उसे खा कर सोने की तैयारी करने से पहले सुबह जल्दी निकलने के लिये अपने-अपने सामान को पैक कर दिया वही कपड़ें बाहर रखे जो पहनने थे। इस के बाद सोने के लिये लेट गये। नींद नहीं आ रही थी सो मैंने माधवी से पुछा कि गोवा का टूर कुछ ज्यादा सही नहीं रहा है तो उस ने कहा कि सही रहा हैं जिस काम से आये थे वह तो हुआ है। दो दिन कुछ आराम तो कर पाये है यहाँ आने का यही मकसद था। उस की बात में सच्चाई थी । इस लिये मैं चुप रहा। कुछ देर की चुप्पी के बाद वह मेरे पास खिसक आयी और बोली कि जब तक जख्म ना भर जाये बिना कमीज के पत्नी के सामने नहीं जाना। मैंने जबाव दिया कि बड़ा मुश्किल काम है मैं तो तोलिया लपेट कर ही बाथरुम से बाहर आता हूँ बड़ी पुरानी आदत है, कुछ नया करुँगा तो बिना कारण के शक पैदा होगा।

उस ने कहा कि तब तो बचना मुश्किल है। मैनें कहा कि कोई ना कोई उपाय तो करना पड़ेगा क्योकि इन्हें तो सही होने में 7-8 दिन तो लगेगें। किसी से दवाई भी नहीं लगवा सकता हूँ। यह सुन कर वह बोली कि मैं दवा लगा दूँगी ऑफिस में। मैंने कहा कि नहीं वहाँ सही नहीं रहेगा, घर पर ही लगा देना। वह बोली कि आप बहाना कर के आ जाना मैं लगा दूँगी। इस के बाद मैंने पुछा कि तुम्हारा क्या होगा? तो वह बोली कि आप को क्यों लगता है कि मेरे भी आप जैसे जख्म लगे है। मैंने कहा कि जब तुम मेरे खरोच लगा सकती हो तो मैं तो तुमें गहरे जख्म कर सकता हूँ ऐसा मेरा विश्वास है। यह सुन कर वह हँस दी और बोली कि आप से कुछ छुपाना मुश्किल है। मैं सोचती थी कि उन के दर्द को रोज सह कर एक दिन आप को बताऊँगी कि आप ने क्या किया था? लेकिन आप को तो सब पता हैं।

मैंने कहा कि इसी लिये कह रहा हुँ कि दवा लगा लो रात भर में कुछ आराम मिलेगा। अगर पीठ पर हाथ ना पहुँचे तो मैं लगा दूँगा अगर तुम्हें कोई परेशानी ना हो, यह सुन कर वह मुस्कराई और बोली कि अब कातिल ही दवा देगा? मैनें कहा कि हाँ यही होगा। उस ने घुम कर अपनी पीठ मेरे सामने कर दी, वहाँ पर कोई निशान नहीं था। फिर वह पलटी और बोली कि जहाँ पर है वहाँ पर मैं खुद लगा लुगी। यह सुन कर मैंने संतोष की सांस ली तो वह बोली कि

अब क्या हुआ? दवा लगाने का ऑफर खत्म हो गया?

मैंने कहा कि ऑफर तो है लेकिन कोई एक्सेप्ट तो करें। वह मुस्कराई और बोली कि इतने सीधे नहीं है आप जितने दिखते है। मैंने कहा कि जैसी आप की मर्जी, आप मालिक है। यह कह कर मैं करवट बदल कर लेट गया। कुछ देर बाद वह उठीं और रुम की सारी लाइट बंद कर दी।

यह घोषणा थी कि अब प्रेम युद्ध होगा। मैं ने करवट बदली तो वह सामने थी उस के होंठ अपने काम में लग गये। जब मेरे हाथों नें उस की गोलाईयों को सहलाया तो उस की आह निकली तो मुझे पता चला कि यहाँ पर काटने के जख्म लगें है। मैं धीरे-धीरे अपने हाथों द्वारा उसके शरीर का अन्वेष्ण करता रहा। वह भी अपने होंठों से यही काम करती रही। फिर जब दोनों शरीर एक हुऐ तो उस की कराह निकलने लगी। मैंने कुछ पुछा नहीं, इस का कोई फायदा नहीं था। ज्वार चढ़ता गया और फिर एकाएक उतर गया। गहरी सांसे ही सुनाई दे रही थी। मैं उस की बगल में लेट गया। कुछ देर बाद उस के हाथ नें मेरी छाती को सहलाया और हाथ पेट पर जा कर ठहर गया।

मेरे कान में उस की फुसफुसाहट आयी की आज क्या हो गया था? मैंने कहा कि कुछ नहीं। कल तो नोच-खचोंट के रख दिया था। मैंने जबाव दिया कि काफी दिनों बाद कुछ मिला था तो उस की उत्तेजना में ऐसा हो गया था आगे ऐसा नहीं करेंगें। वह बोली कि करने को मना किसने किया है। मैंने जबाव दिया कि जब तक जख्म दिखाये नहीं जायेगें तब तक तो शरीफ बनना ही पड़ेगा। उस ने जोर से मुक्का मेरी छाती पर मारा और मेरा हाथ पकड़ कर अपने स्तन पर रखा तो मुझे महसुस हुआ कि दातों ने गहरा निशान छोड़ा है। मेरे मुँह से सॉरी निकला तो वह बोली कि फिर मार खायोंगें। मैं चुप हो गया। मेरे हाथ ने उस की छातियों को सहलाया तो पता चल गया कि कल नशे में बहुत नोचां-नाची हुई थी।

उस ने कान की लो काट कर कहा कि इसी से पता चला कि तुम कितना चाहते हो मुझे। मुझे कोई गम नहीं है यह तो प्यार की निशानी है। मैं कुछ नहीं बोला। इस के बाद हम दोनों सो गये। सुबह अलार्म सुन कर उठा तो माधवी को भी उठा दिया फिर नहाने चला गया, आ कर कपड़ें पहनने लगा, माधवी बोली कि जल्दी क्या है, मैंने कहा कि चैकऑउट करना है समय लग जाता है। तुम नहाने जाओं मैं एक बार फिर से चैक कर लेता हूँ । वह नहाने चली गयी आयी तो मुझ से बोली कि चेहरा दूसरी तरफ करों मुझे कपड़ें पहनने है। मैंने कहा कि दूसरें कमरे में चला जाता हूँ तो बोली कि नहीं यही रहों बस मुँह फेर लो। मैंने वैसा ही किया। इस के बाद हम सामान ले कर रिसेप्शन पर पहुँचें और पेमेंट करने के बाद कार में सामान रखवा कर एअरपोर्ट के लिये चल दिये।

दस बजे घर पहुँचे। पत्नी ने नाश्ता लगा दिया, दोनों ने नाश्ता किया और मैं इस के बाद कपड़ें बदल कर सोने चला गया। दोपहर में पत्नी ने खाने के लिये उठाया तो खाना खा कर फिर से सो गया। शायद माधवी घर आयी तो उस ने पुछा कि मैं कहाँ पर हूँ तो पत्नी ने बताया कि जब से आये है सो रहे है, खाने के लिये उठाया था, खाना खा कर फिर से सो गये है। माधवी को यह सुन कर बड़ी चिन्ता हूई वह बेडरुम में मेरे पास आयी और मुझे झकझोर कर बोली कि आप को क्या हुआ है? मैंने उठ कर कहा कि कुछ नहीं हुआ है नींद आ रही थी सो, सो रहा हूँ वह बोली कि आप तो दिन में नहीं सोते। उस ने बीपी मीटर से मेरा बीपी नापा जो सही था। मैंने उसे घबराया हुआ देख कर कहाँ कि मुझे को समस्या नहीं है। थकान की वजह से नींद आ रही है। उस ने मेरी कोई बात नहीं सुनी और डॉक्टर को फोन करके कहा कि हम आ रहे है। फिर वह मुझे लेकर डॉक्टर के यहाँ पहुँच गयी। डॉक्टर ने सारी जांच करके कहा कि कोई परेशानी नहीं है शायद ऐग्जार्शन है उसी की वजह से नींद आ रही है। उन्होनें बल्ड के सेम्पल ले लिये और जांच के लिये, यह देख कर मैंने डॉक्टर से कहा कि इन के भी सारे चैकअप करवाओं। माधवी के भी सारे चैपअप होने लगे तथा उस के बल्ड का सेम्पल भी लिया गया। इस के बाद हम घर लौट आये।